Total Pageviews

THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

Twitter

Follow palashbiswaskl on Twitter

Monday, July 4, 2011

Fwd: भाषा,शिक्षा और रोज़गार



---------- Forwarded message ----------
From: भाषा,शिक्षा और रोज़गार <eduployment@gmail.com>
Date: 2011/7/4
Subject: भाषा,शिक्षा और रोज़गार
To: palashbiswaskl@gmail.com


भाषा,शिक्षा और रोज़गार


तमिलनाडु और हिंदी

Posted: 03 Jul 2011 11:29 AM PDT

(नई दुनिया,दिल्ली,3.7.11)

महाराष्ट्रःपात्रता में छूट दे कर भरी जाएंगी इंजीनियरिंग की सीटें

Posted: 03 Jul 2011 11:15 AM PDT

ऑन लाइन एप्लीकेशन की तिथि बढ़ाने के बावजूद भी इंजीनियरिंग व फार्मेसी पाठ्यक्रम की सीटें पूरी नहीं भर पाई। प्रवेश प्रक्रिया के तहत अभी तक इंजीनियरिंग पाठ्यक्रम के लिए 15 हजार 440 तथा फार्मेसी पाठ्यक्रम के लिए 850 विद्यार्थियों ने आवेदन किया है।

नागपुर संभाग में इंजीनियरिंग पाठ्यक्रम की कुल 25 हजार सीटें हैं, जबकि फार्मेसी की 1 हजार 50 सीटें हैं। बढ़े पैमाने पर सीटें खाली रहने की आशंका के मद्देनजर अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद सोमवार को दोनों ही पाठ्यक्रम में दाखिले की पात्रता में कटौती कर सकता है।

इसके तहत इंजीनियरिंग में कक्षा 12वीं में पीसीएम ग्रुप में 145 अंक हासिल करने वाले विद्यार्थियों को प्रवेश देने की घोषणा की जा सकती है, जबकि फार्मेसी में पीसीबी ग्रुप में इतने ही अंक लाने वाले विद्यार्थियों को प्रवेश के लिए पात्र माना जा सकता है।


इस फैसले के बाद ही पाठ्यक्रम की ऑन लाइन एप्लीकेशन की सीमा तीसरी बार बढ़ाई जा सकती है। राज्य तकनीकी शिक्षा निदेशालय के सूत्रों ने भी इस बात की संभावना जतायी है। 
सभी है हैरत में

एक समय था जब इंजीनियरिंग में दाखिले के लिए विद्यार्थियों को कड़ी प्रतिस्पर्धा से गुजरना पड़ता था। किन्तु पिछले दो वर्षो से पाठ्यक्रम के क्रेज में जबर्दस्त कमी आई है। गत वर्ष 6 हजार सीटें खाली थी। इस बार 10 हजार सीटें खाली हैं। 

गत वर्ष फार्मेसी की महज 50 सीटें खाली थीं इस बार 200 सीटें खाली हैं। रिक्त सीटों की संख्या से संस्था संचालक समेत तकनीकी शिक्षा निदेशालय के अधिकारी भी हैरत में हैं। 

पॉलिटेक्निक में मारा मारी

पॉलिटेक्निक पाठ्यक्रम में प्रवेश पात्रता 35 फीसदी अंक की करने के बाद प्रवेश प्रक्रिया में रौनक लौट आई है। महज एक दिन में 4 हजार विद्यार्थियों ने प्रवेश के लिए आवेदन किया है। 

प्रवेश प्रक्रिया के लिए ऑन लाइन आवेदन करने की अंतिम तिथि 4 जुलाई से बढ़ाकर 11 जुलाई कर दिया गया है(दैनिक भास्कर,नागपुर,3.7.11)।

लखनऊ विवि में अब बाहरी शिक्षक जांचेंगें कापियां

Posted: 03 Jul 2011 11:00 AM PDT

लखनऊ विविद्यालय में परीक्षकों का टोटा हो गया है। नये शैक्षिक सत्र के लिए कई शिक्षक काउंसलिंग में लग गये हैं, लेकिन अभी भी विविद्यालय में हजारों की संख्या में कापियां जांचने के लिए पड़ी हैं। बीएससी बायो ग्रुप में जुलोजी की कई हजार कापी मूल्यांकन के लिए पड़ी हैं और बीकाम की उत्तर- पुस्तिकाओं की कमोवेश यही स्थिति है, इसकी वजह से बीकाम और बीएससी का रिजल्ट घोषित होने में अभ्यर्थियों को इंतजार करना पड़ेगा। विविद्यालय ने अब परीक्षकों की कमी से निजात पाने के लिए बाहरी विविद्यालय के शिक्षकों को लगाने का निर्णय लिया है। खुद परीक्षा नियंत्रक प्रो. यशवीर त्यागी ने सेल के प्रभारियों को परीक्षक जुटाने के लिए इंतजाम करने के निर्देश दिये हैं, ताकि हजारों की संख्या में बगैर मूल्यांकन के पड़ी कापियों को जंचवाया जा सके और 15 जुलाई से पहले परीक्षाफल घोषित हो सके। सूत्रों का कहना है कि बीकाम में अब सात वर्ग हो चुके हैं, कुछ वर्ग की कापियां थोक के भाव सेल में पड़ी हैं। जुलोजी के साथ बीएससी के तीन अन्य विषयों में मूल्यांकन नहीं हो पाया है और सेल में कापियां पड़ी हैं। विविद्यालय के परीक्षा नियंत्रक प्रो. यशवीर त्यागी ने बताया कि परीक्षाफल घोषित करने में हो रही देरी से निपटने के लिए कई कदम उठाये गये हैं। विविद्यालय में शिक्षकों की संख्या तो बढ़ नहीं रही बल्कि महाविद्यालयों को सम्बद्धता देकर परीक्षार्थियों की संख्या खूब बढ़ी है। मूल्यांकन भी अब केन्द्रीयत होने की वजह से शिक्षकों के घरों पर कापी भेजकर जंचवायी नहीं जा सकती है। ऐसे में बाहरी विविद्यालयों के राजधानी में उपलब्ध शिक्षकों को प्राथमिकता दी जाएगी, इसके बाद भी बात नहीं बनी तो बाहरी विविद्यालयों व महाविद्यालयों के शिक्षकों को बुलाया भी जा सकता है। उनकी पूरी कोशिश जल्द से जल्द रिजल्ट देने की है, ताकि छात्र-छात्राएं परास्नातक कक्षाओं में प्रवेश के लिए न भटकें और अंकपत्र उसमें बाधा न बने। हालांकि प्रो. त्यागी ने रिजल्ट घोषित करने की मियाद तय करने से मना कर दिया और कहा कि स्नातक अंतिम वर्ष के परीक्षाफल को जल्द घोषित करने के लिए पूरी ताकत लगायी जा रही है। सूत्रों का कहना है कि बीएससी के अंतिम वर्ष की कापियां नहीं जंच पायी हैं तो द्वितीय व प्रथम वर्ष के रिजल्ट कब तक आ सकेंगे, इस बारे में विविद्यालय के परीक्षा महकमे के जिम्मेदार ही बता सकेंगे, लेकिन इससे नये शैक्षिक सत्र में प्रवेश भी देर से होंगे और पूरा शैक्षिक सत्र बिगड़ने के आसार बनने लगे हैं(राष्ट्रीय सहारा,लखनऊ,3.7.11)।

जयनारायण व्यास यूनिवर्सिटी की कट ऑफ लिस्ट कल से

Posted: 03 Jul 2011 10:45 AM PDT

जयनारायण व्यास यूनिवर्सिटी में विलंब शुल्क के साथ फार्म भरने की शनिवार को अंतिम तिथि थी। फार्म जमा कराने के लिए विभिन्न संकायों में स्टूडेंट्स पहुंचे। हालांकि संकायों में कतारें नहीं लगीं, फिर भी कर्मचारी देर तक संकायों में बैठे रहे।

अब जमा हुए फार्म की छंटनी कर कट ऑफ सूची जारी करने की प्रक्रिया शुरू होगी। ज्यादातर कट ऑफ लिस्ट सोमवार को ही जारी कर दी जाएगी। पहले चरण की सीटों पर प्रवेश प्रक्रिया पूर्ण होने के बाद दूसरी कट ऑफ लिस्ट जारी की जाएगी। संकायों से मिली सूचना के अनुसार सभी संकायों में निर्धारित सीटों से दुगने से ज्यादा आवेदन जमा हुए हैं।

वाणिज्य संकाय: वाणिज्य एवं प्रबंध संकाय के डीन प्रो. आरसीएस राजपुरोहित ने बताया कि संकाय में शनिवार तक 2086 फार्म जमा हुए है। जिनमें से 480 सीटों की कट ऑफ सूची सोमवार को जारी कर दी जाएगी। इस कट ऑफ सूची से प्रवेश प्रक्रिया पूर्ण होने के बाद स्ववित्त पोषित सीटों पर प्रवेश प्रक्रिया आरंभ की जाएगी।

कला संकाय: कला संकाय के डीन प्रो. एके मलिक ने बताया कि बीए प्रथम वर्ष के लिए 2475 फार्म जमा हुए हैं। संकाय के कर्मचारियों को निर्देश दे दिए गए थे की देर शाम तक खिड़कियां खुली रखें। इन फार्म की छंटनी पूर्ण कर अगले एक सप्ताह में प्रथम कट ऑफ लिस्ट जारी की जाएगी।


विज्ञान संकाय: विज्ञान संकाय के डीन प्रो. जी सी टिक्कीवाल ने बताया कि इस बार बीएससी में प्रवेश का काफी रुझान दिखाई दिया है। बीएससी प्रथम वर्ष के लिए संकाय में करीब 1750 फार्म जमा हुए हैं। सभी 720 सीटों के लिए प्रथम कट ऑफ सूची बुधवार को जारी की जाएगी।

केएन कॉलेज: केएन कॉलेज की निदेशक प्रो. इंद्रपाल राय ने बताया कि बीए प्रथम वर्ष के लिए 1782, बीकॉम प्रथम वर्ष के लिए 1076, बीएससी प्रथम वर्ष के लिए 603 व बीएससी होम साइंस के लिए 23 फार्म जमा हुए। बीएससी की कट ऑफ सोमवार को तथा बीकॉम व बीए की कट ऑफ सूची मंगलवार को जारी होने की संभावना है।

सायंकालीन संस्थान: सायंकालीन अध्ययन संस्थान के निदेशक डॉ. ए एल जीनगर ने बताया कि बीए प्रथम वर्ष के लिए 3175 फार्म तथा बीकॉम प्रथम वर्ष के लिए 1719 फार्म जमा हुए हैं। इन फार्म की छंटनी कर बीकॉम व बीए प्रथम की कट ऑफ सूची मंगलवार या बुधवार को जारी कर दी जाएगी(दैनिक भास्कर,जोधपुर,3.7.11)।

समय से एडमिशन कैंसल नहीं कराया तो नहीं मिलेगी फीस वापस

Posted: 03 Jul 2011 10:30 AM PDT

तय समयसीमा के बाद कॉलेज से दाखिला रद्द कराने की स्थिति में छात्रों को फीस नहीं लौटाई जाएगी। ऐसे ही एक मामले में सुनवाई करते हुए उपभोक्ता अदालत ने कहा कि तय समयसीमा के बाद दाखिला रद्द कराने से कॉलेज में एक योग्य छात्र दाखिला लेने से वंचित रह गया। वहीं, संस्थान में भी एक जगह खाली रह गई, क्योंकि समय पर सूचना नहीं मिलने से किसी अन्य छात्र को दाखिला नहीं दिया जा सका। जानकारी के मुताबिक, तीस हजारी उपभोक्ता अदालत के अध्यक्ष बाबूलाल ने शिकायतकर्ता छात्र रविकांत शर्मा की उस मांग को खारिज कर दिया, जिसमें उसने गुरु गोविंद सिंह इंद्रप्रस्थ यूनिवर्सिटी को उसकी 58 हजार रुपये की फीस की रकम लौटाने के लिए आदेश देने की मांग की थी। पेश मामले के अनुसार रविकांत शर्मा ने 12 जून 2007 को गुरु गोविंद सिंह विविद्यालय के एक कॉलेज में दाखिला लिया था। उसने 58 हजार रुपये फीस के तौर पर विवि में जमा कराए। इसके बाद 27 जुलाई को दाखिला रद्द करने की अर्जी दी। जबकि दाखिला वापस लेने की अंतिम तिथि 12 जुलाई निर्धारित की गई थी। ऐसे में विवि द्वारा रुपये वापस नहीं लौटाने पर छात्र ने उपभोक्ता अदालत में अर्जी दायर कर दी। मामले की सुनवाई के दौरान छात्र की ओर से कहा गया कि उसके दाखिला वापस लेने के बाद कॉलेज में किसी अन्य छात्र को उसके स्थान पर रखा गया। इसकी जानकारी आरटीआई के तहत मांगी जानकारी में विविद्यालय की ओर से उपलब्ध कराई गई। लेकिन दोनों पक्षों की सुनवाई के बाद अदालत ने कहा कि तथ्यों से साफ है कि शिकायतकर्ता की जगह खाली रही(राष्ट्रीय सहारा,दिल्ली,3.7.11)।

यूपी के ६२ राजकीय स्कूलों में सभी पद खाली

Posted: 03 Jul 2011 10:15 AM PDT

उत्तर प्रदेश के माध्यमिक शिक्षा मंत्री रंगनाथ मिश्र के गृह जनपद में ही ६२ ऐसे राजकीय हाईस्कूल हैं जहां प्रभारी प्रधानाचार्य को छो़ड़कर अध्यापकों, क्लर्क आदि के सभी पद खाली हैं। वैकल्पिक व्यवस्था के तहत नियुक्त प्रभारी प्रधानाचार्य केवल विद्यार्थियों के प्रवेश का कागजी कोरम पूरा कर रहे हैं। इन विद्यालयों में अध्ययन-अध्यापन कागज पर होता है। ऐसा तब है जब बच्चों को निःशुल्क व अनिवार्य रूप से गुणात्मक शिक्षा देने के उद्देश्य के लिए संचालित राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान और निःशुल्क एवं अनिवार्य बाल शिक्षा अधिनियम २००९, एक जुलाई २०१० से पूरे देश में लागू हो चुका है।विंध्याचल मंडल के शिक्षा सूत्रों ने बताया कि राष्ट्रीय शिक्षा अभियान के तहत मंडल के तीनों जिलों-मिर्जापुर, भदोही और सोनभद्र में पहले चरण में २० जूनियर हाईस्कूलों को उच्चीकृत कर हाईस्कूल की मान्यता प्रदेश सरकार द्वारा प्रदान की गई । इनमे मिर्जापुर जिले में सात, भदोही में दस तथा सोनभद्र में तीन स्कूल शामिल हैं ।


इस वर्ष मिजापुर में १६, भदोही में १२ तथा सोनभद्र में १४ स्कूलों को शामिल किया गया है । विडंबना है कि इन विद्यालयों को हाईस्कूल की मान्यता दे दी गई है और छात्रों को प्रवेश भी दे दिए गए हैं लेकिन इन स्कूलों में न तो भवन हैं और न ही अध्यापक। वैकल्पिक व्यवस्था के तहत राजकीय इंटर कॉलेज के एक-एक अध्यापक को प्रभारी प्रधानाचार्य के रूप में कार्य करने के लिए तैनात कर रस्म अदायगी पूरी कर ली। अध्यापकों के अभाव में विद्यालय में प़ढ़ाई का कार्य असंभव है । लिहाजा इन विद्यालयों में पूरे वर्ष न कक्षाएं चलती हैं, न ही कोई शैक्षणिक वातावरण ही बन पाया। विंध्याचल मंडल के संयुक्त शिक्षा निदेशक उपेंद्र कुमार अध्यापकों की भारी कमी की बात स्वीकार करते हैं और कहते हैं कि इन विद्यालयों के लिए सात-सात अध्यापकों के पद स्वीकृत किए गए हैं। उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा सचिव ने बताया कि लगभग ७००० नवीन माध्यमिक विद्यालयों की आवश्यकता है। इनमें से अभी २५४ विद्यालय ही स्वीकृत हुए हैं। वर्तमान वर्ष २०११ में १७५९ और विद्यालयों के प्रारंभ किए जाने का प्रस्ताव है। सवाल यह है कि विद्यालय खोल देने भर से राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान क्या सफल हो जाएगा? जनगणना-२०११ के अनुसार प्रदेश में छह से १४ वर्ष आयु वर्ग के १,५२,८२९,१० बच्चे विद्यालय जाने से वंचित हैं। १५ से १८ वर्ष की आयु के ८०,०१,३६८ बच्चे वंचितों की श्रेणी में हैं। जनगणना के अनुसार ६ से १४ वर्ष के बच्चों की संख्या ४,१७,२९४,४९ जिसें १,५१,४८९,५६ बालक व १२९७५८३ बालिका विद्यालय जाते हैं। राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान के तहत बच्चों के आवास से ५ किमी की दूरी पर विद्यालय उपलब्ध कराना राज्य व केंद्र सरकारों का उत्तरादायित्व है। वर्तमान स्थिति यह है कि किसी भी विद्यालय में कोई भी प्रशिक्षित अध्यापक नहीं है। सूत्रों की मानें तो निकट भविष्य में अध्यापकों की पूर्ति संभव नहीं लगती है। जब प्रदेश शिक्षा मंत्री के गृह नगर में यह स्थिति है तो पूरे प्रदेश में शिक्षा के स्वास्थ्य का आकलन स्वयं लगाया जा सकता है। फिलहाल विंध्याचल मंडल के २८ राजकीय इंटर कालेजों में शिक्षकों की पहले से ही कमी है।इन ६२ नए विद्यालयों ने भी इन कॉलेजों का स्वरूप बिगा़ड़ दिया है(नई दुनिया,दिल्ली संस्करण,3.7.11 में मिर्जापुर संवाददाता की रिपोर्ट)।

पटना विश्वविद्यालयःनामांकन को उमड़ रही भीड़

Posted: 03 Jul 2011 10:00 AM PDT

पटना विविद्यालय के कॉलेजों में दाखिला लेने के लिए लगातार छात्र-छात्राओं का जमावड़ा लग रहा है। विवि के सभी कॉलेजों में नामांकन की प्रक्रिया प्रारंभ हो चुकी है। यहां दाखिला लेने के लिए छात्र-छात्राओं की भारी भीड़ देखी जा रही है। कॉलेज काउंटरों पर छात्र-छात्राओं की लंबी कतारें देखी जा रही हैं। उधर मगध विविद्यालय में नामांकन की तिथि बढ़ाकर अब पांच जुलाई कर दी गई है। यहां सात जुलाई से मेधा सूची जारी होगी। बीडी कॉलेज में दस जुलाई तक फॉर्म भरा जाएगा। मगध महिला कॉलेज में स्नातक विज्ञान, कला व कॉमर्स संकाय में नामांकन बृहस्पतिवार से ही लिया जा रहा है। आरक्षण कोटा का नामांकन चार जुलाई को लिया जायेगा। वाणिज्य महाविद्यालय में चार जुलाई से ग्यारह जुलाई के बीच नामांकन लिया जायेगा। बीएन कॉलेज में छह जुलाई से नौ जुलाई के बीच नामांकन लिया जायेगा, जबकि पटना साइंस कॉलेज में छह से 12 जुलाई के बीच नामांकन होगा। जेडी वीमेंस में कट ऑफ लिस्ट पांच जुलाई को जारी किया जायेगा। छह जुलाई से यहां नामांकन शुरू हो जायेगा। अरविन्द महिला कॉलेज में चार जुलाई से दाखिला लिया जायेगा। 20 जुलाई से कॉलेज में सत्र प्रारंभ हो जाएगा। वहीं मगध विविद्यालय के कॉमर्स कॉलेज व एएन कॉलेज में फॉर्म भरने की तिथि बढ़ाकर पांच जुलाई कर दी गई है। बीडी कॉलेज में दस जुलाई तक छात्र फॉर्म भर सकेंगे। छह जुलाई से यहां नामांकन शुरू हो जायेगा। एएन कॉलेज में पांच जुलाई को कट ऑफ लिस्ट जारी होगी। सात जुलाई से यहां नामांकन लिया जाना शुरू हो जायेगा(राष्ट्रीय सहारा,पटना,3.7.11)।

मध्यप्रदेशःअब 12वीं पास भी बन पाएंगे शिक्षक

Posted: 03 Jul 2011 09:45 AM PDT

अब प्रदेश के विभिन्न स्कूलों से हायर सेकंडरी उत्तीर्ण करने वाले होनहार युवक/ युवती भी शिक्षक बन पाएंगे। उन्हें इसके लिए बस एक परीक्षा उत्तीर्ण करना होगा। स्कूल शिक्षा विभाग जल्द ही संविदा शाला शिक्षक पात्रता परीक्षा आयोजित करने जा रहा है। इस परीक्षा में पास होने वालों को कक्षा १ से ५वीं तक और ६ से ८वीं तक की कक्षाओं में पढ़ाने का मौका मिलेगा।

लोक शिक्षण संचालनालय यह परीक्षा व्यापमं की मदद से दिसंबर २क्११ तक आयोजित करने वाला है। परीक्षा देने के लिए ५क् प्रतिशत अंकों से हायर सेकंडरी पास और डीईएड होना जरूरी होगा। यह परीक्षा प्रदेश के १क्क्क् केंद्रों पर आयोजित की जाएगी।


खास बात यह है कि इस पैटर्न को केंद्र सरकार ने भी मांगा है, ताकि वह पूरे देश में इसी पैटर्न पर परीक्षाएं आयोजित कर सके। इसका सबसे ज्यादा लाभ निजी स्कूल में पढ़ने वाले उन छात्रों को मिलेगा, जिन्हें अप्रशिक्षित शिक्षक पढ़ाते थे। स्कूल शिक्षा विभाग इस परीक्षा के बाद सरकारी के साथ सीबीएसई और माशिमं से मान्यता प्राप्त निजी स्कूल को अपने दायरे में लेकर आएगा। इससे स्कूली शिक्षा की गुणवत्ता भी सुधरेगी।
बेरोजगारी भी घटेगी

प्रदेश के स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों को बेहतर शिक्षा देने के लिए गुणवत्ता वाले शिक्षक जरूरी हैं। ऐसे में इस परीक्षा के माध्यम से हमको वेल एजुकेटेड शिक्षक मिलेंगे। इससे बेरोजगारी में तो कमी आएगी, साथ ही बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिलेगी। इस बारे में हम काफी समय से चिंता कर रहे थे, लेकिन अब वह पूरी हो रही है। जल्द ही इसकी परीक्षा होगी। 

अर्चना चिटनीस, मंत्री, स्कूल शिक्षा विभाग(दैनिक भास्कर,भोपाल,3.7.11)

संस्कृत को चाहिए संजीवनी

Posted: 03 Jul 2011 09:37 AM PDT

त्रिभाषा फार्मूले की राष्ट्रीय भाषा नीति का उल्लंघन करते हुए सीबीएसई ने हाल ही में 9वीं-10वीं कक्षा के स्कूली पाठ्यक्रम के बाबत जो नया आदेश जारी किया है, उससे सन् 1992 में संसद द्वारा स्वीकृत राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर प्रश्नचिह्न तो लगता ही है, संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल संस्कृत भाषा के मौलिक अधिकारों पर भी कुठाराघात हुआ है। वर्षो से चले आ रहे पुराने सीबीएसई पाठ्यक्रम के अनुसार तृतीय भाषा या फिर अतिरिक्त छठे विषय के रूप में संस्कृत भाषा को पढ़ा जा सकता था किन्तु बोर्ड द्वारा जारी नई द्विभाषा नीति के लागू होने तथा अतिरिक्त छठे विषय के प्रावधान को हटा देने की वजह से स्कूलों में संस्कृत के अध्ययन-अध्यापन की बची-खुची संभावना भी पूरी तरह से समाप्त हो गई है। सीबीएसई के इस नए फैसले से पब्लिक स्कूलों ने अब संस्कृत की पढ़ाई बंद करके उसके स्थान पर जर्मन और फ्रेंच भाषाओं को पढ़ाना शुरू कर दिया है इस कारण हजारों संस्कृत छात्रों-अध्यापकों का भविष्य खतरे में पड़ गया है। संस्कृत के साथ हो रहे इस अन्याय को देखते हुए इसके संगठनों में गम्भीर प्रतिक्रिया हुई है। 'दिल्ली संस्कृत अकादमी' द्वारा आयोजित एक राष्ट्रीय संगोष्ठी में बोर्ड द्वारा जारी संस्कृत विरोधी शिक्षा नीति की घोर निंदा की गई है। विद्वानों ने सरकार से मांग की है कि त्रिभाषा फॉमरूले के तहत पहले की भांति स्कूली पाठ्यक्रम में संस्कृत के पठन-पाठन को जारी रखा जाए। त्रिभाषा फॉमरूले के अंतर्गत स्कूली पाठ्यक्रम में संस्कृत की शिक्षा किस प्रकार दी जानी चाहिए, इस सम्बन्ध में 'संस्कृत कमीशन' का सुझाव है कि सातवीं कक्षा से 11वीं कक्षा तक संस्कृत भाषा की निरंतर शिक्षा दी जानी चाहिए। आयोग के मतानुसार स्कूली स्तर पर जब तक छात्र पांच वर्षो तक संस्कृत भाषा को लगातार नहीं पढ़ेंगे, उनकी नींव मजबूत नहीं हो सकेगी तथा महाविद्यालय में संस्कृत विषय को पढ़ने की सामथ्र्य उनमें नहीं आ सकेगी। 'संस्कृत कमीशन' तथा 'यूजीसी' की सिफारिश के अनुसार संस्कृत भाषा और साहित्य की वर्तमान संदर्भ में उपयोगिता को चरितार्थ करने के लिए स्कूली पाठ्यक्रम में भाषा का माध्यम चुनने की पूर्ण स्वतंत्रता दी जानी चाहिए। किंतु सीबीएसई ने 'संस्कृत कमीशन' और 'यूजीसी' की इन सिफारिशों को दरकिनार करते हुए अपने तुगलकी फरमान द्वारा 9वीं- 10 वीं कक्षा के प्रारम्भिक स्तर पर ही संस्कृत विषय का चयन करने वाले छात्रों के लिए संस्कृत भाषा का माध्यम अनिवार्य कर दिया ताकि छात्र इस भाषा को कठिन मानकर फ्रेंच या जर्मन पढ़ सकें। बोर्ड द्वारा अपनाई गए इस संविधान विरुद्ध भाषाई दुराग्रह का मुख्य कारण है संस्कृत को जन-सामान्य से दूर रखना और इसके राष्ट्रव्यापी प्रचार-प्रसार पर अंकुश लगाना। दरअसल, सीबीएसई का पुराना इतिहास रहा है कि वह कभी मातृभाषा या कभी क्लासिकल भाषा बताकर संस्कृत को स्कूली पाठ्यक्रम से बाहर रखने की रणनीति बनाता आया है। सन् 1986 में जब सरकार द्वारा नई शिक्षा नीति की बुनियाद रखी गई तब भी बोर्ड ने स्कूली पाठ्यक्रम से संस्कृत विषय को ही समाप्त कर दिया और लम्बे संघर्ष तथा सर्वोच्च न्यायालय के हस्तक्षेप से संस्कृत की पुन: बहाली हो सकी। 4 अक्टूबर 1994 को सर्वोच्च न्यायालय ने स्कूली पाठ्यक्रम में संस्कृत भाषा के महत्त्व को रेखांकित करते हुए अपने ऐतिहासिक फैसले में कहा कि किसी देश की सीमा के साथ उसकी संस्कृति की रक्षा भी मुख्य राष्ट्रीय दायित्व होता है। हम भारतवासियों के लिए संस्कृत का अध्ययन देश की सांस्कृतिक धरोहर की रक्षा के लिए किया जाता है। यदि शैक्षिक पाठ्यक्रम से संस्कृत को हतोत्साहित किया जाएगा तो हमारी संस्कृति की धारा ही सूख जाएगी। इन्हीं टिप्पणियों के साथ न्यायमूर्ति कुलदीप सिंह तथा न्यायमूर्ति बी. एल. हनसेरिया ने सीबीएसई को स्कूली पाठ्यक्रम में संस्कृत को एक वैकल्पिक विषय के रूप में पढ़ाने का आदेश जारी किया। अदालत ने पाठ्यक्रम निर्माताओं को इस तथ्य से भी अवगत कराया कि संविधान की आठवीं अनुसूची में संस्कृत को इसलिए शामिल किया गया ताकि देश की संस्कृति को अभिव्यक्ति प्रदान करने वाली हिन्दी शब्दावली के विकास में मुख्य रूप से संस्कृत से सहयोग लिया जा सके। संस्कृत कमीशन की रिपोर्ट हो या सर्वोच्च न्यायालय का फैसला सभी ने स्कूली पाठ्यक्रम में एक वैकल्पिक विषय के रूप में संस्कृत को पढ़ाए जाने की जरूरत इसलिए समझी ताकि इस भाषा के शिक्षण से छात्रों को अपने देश की सांस्कृतिक परम्पराओं का ज्ञान हो सके। संस्कृत पाठ्यक्रम से सम्बन्धित सन् 1988 की यूजीसी की रिपोर्ट के अनुसार स्कूली स्तर पर संस्कृत शिक्षा के तीन उद्देश्य बताए गए हैं-चरित्र निर्माण, बौद्धिक योग्यताओं का समुचित विकास तथा राष्ट्रीय धरोहर का संरक्षण। पर चिंता का विषय है कि ब्रिटिश साम्राज्यवाद के विरुद्ध स्वतंत्रता आंदोलन के राष्ट्रीय संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करने वाली संस्कृत भाषा आज संकट के दौर से गुजर रही है। अभी कुछ वर्ष पूर्व अमेरिकी प्राच्यविद्या मनीषी प्रोफेसर सैल्डन पोलॉक जब केरल स्थित संस्कृत कालेज में व्याख्यान देने आए तो उनकी चिंता यह थी कि जिस संस्कृत विद्या को अमेरिका आदि विभिन्न देशों में गहरी रुचि लेकर पढ़ाया जाता है वही संस्कृत अपने ही देश में अस्तित्व को बचाने के दौर से गुजर रही है। यदि भारत में संस्कृत को मर जाने दिया गया तो यह वि की एक बहुत बड़ी सांस्कृतिक धरोहर की हत्या होगी। सैल्डन पोलॉक के अनुसार ब्रिटिशकालीन उपनिवेशवादी शिक्षानीति जो अंग्रेजी के वर्चस्व को स्थापित करने के लिए सदैव प्रयास रत रहती है, संस्कृत शिक्षा को भारत में हतोत्साहित करती आई है। गांधी जी ने 'संस्कृति को दबाने वाली अंग्रेजी भाषा को अंग्रेजों की तरह ही यहां से निकाल बाहर करने' के आग्रह से राष्ट्रीय शिक्षा पद्धति में संस्कृत शिक्षा पर विशेष बल दिया था। संस्कृत पिछले दस हजार वर्षों के भारतीय ज्ञान-विज्ञान की संवाहिका 'हैरिटेज' भाषा भी है। इसलिए भारतीय संसद द्वारा स्वीकृत 'संस्कृत कमीशन' की रिपोर्ट के अनुसार शिक्षा व्यवस्था में संस्कृत को राष्ट्रीय अस्मिता के संरक्षण की दृष्टि से भी विशेष प्रोत्साहन दिया जाना जरूरी है(मोहन चंद तिवार,राष्ट्रीय सहारा,3.7.11)।

डीयूःएप्लायड साइंस में छात्रों का रुझान कम

Posted: 03 Jul 2011 09:15 AM PDT

दिल्ली विश्वविद्यालय में बेसिक साइंस के कोर्स में दो लिस्ट में तो ताबड़तोड़ दाखिले हुए पर एप्लायड साइंस के गलियारे अब भी छात्रों की बाट जोह रहे हैं। यहां एप्लायड साइंस के लिए खोले गए दो कॉलेजों के ज्यादातर कोर्स में दाखिले पूरे नहीं हुए हैं। प्राचार्य का कहना है कि राजधानी में इनमें उच्च शिक्षा की सुविधा नहीं होने के कारण छात्र इधर कम आ रहे हैं।


विश्वविद्यालय में बीस वर्ष पहले एप्लायड साइंस की पढ़ाई को बढ़ावा देने के लिए राजगुरू कॉलेज और भास्कराचार्य कॉलेज जैसे संस्थान को सामने लाया गया। यहां बेसिक साइंस की जगह एप्लायड साइंस के रूप में पोलिमर साइंस, फूड टेक्नोलॉजी, बॉयोमेडिकल साइंस और इंस्टूमेंटेशन जैसे कोर्स शुरू किए गये। शुरू में इन कोर्सों में दाखिले के लिए छात्रों की काफी भीड़ जुटी पर अब इसकी ओर ヒझान कम हो गया है। छात्रों की इस घटती रूचि के कारण अब इनमें तीन चार कट ऑफ लिस्ट के बाद भी दाखिले पूरे नहीं हो पा रहे हैं। दोनों कॉलेजों में फूड टेक्नोलॉजी, बायोमेडिकल साइंस, पोलिमर साइंस और इंस्टूमेंटेशन की सीटें भर नहीं पाई हैं। इसका कट ऑफ भी भौतिकी, रसायन व गणित के मुकाबले काफी नीचे चला गया है।

भास्कराचार्य कॉलेज फोर एप्लायड साइंस के प्राचार्य डा जयप्रकाश ने बताया कि २० साल पहले जब यह कोर्स शुरू किया गया था तब इसकी प्रासंगिकता थी। अब इसके बजाय राजधानी के इर्द गिर्द बीटेक कोर्स में दाखिला लेना छात्र ज्यादा पसंद करते हैं। वे कहते हैं, इस कोर्स में आगे की पढ़ाई यानी एमएससी के लिए छात्रों को दिल्ली से बाहर जाना पड़ता है। इसलिए छात्र इसमें कम आ रहे हैं । पोलिमर साइंस आदि की फीस भी काफी है। इन्हें बढ़ावा देने और आगे लाने के लिए जरूरी है कि राजधानी में इसमें उच्च शिक्षा की पढ़ाई हो या फिर इस कोर्स को ही पांच साल का इंटीग्रेटेड कोर्स बना दे। 

इन दोनों के अलावा श्रद्धानंद और रामजस कॉलेज में भी एप्लायड लाइफ साइंस की सीटें खाली पड़ी हैं। कट ऑफ ६५ से ७५ फीसदी के बीच आ गया है(अनुपम कुमार,नई दुनिया,दिल्ली,3.7.11)।

12वीं के बाद आईआईएम इंदौर में ले सकेंगें दाखिला

Posted: 03 Jul 2011 09:00 AM PDT

अब आईआईएम में दाखिले की चाह रखने वाले विद्यार्थियों को प्रवेश परीक्षा में बैठने के लिए ग्रेजुएट डिग्री लेने तक इंतजार नहीं करना पड़ेगा।
नई पहल के तहत इंदौर के भारतीय प्रबंधन संस्थान (आईआईएम-आई) इस शैक्षणिक सत्र से पांच वर्षीय इंटीग्रेटेड पोस्ट ग्रेजुएट प्रोग्राम (पीजीपी) शुरू करने जा रहा है।
इसमें प्रथम श्रेणी में 12वीं उत्तीर्ण करने वाले विद्यार्थी प्रवेश के पात्र होंगे। आईआईएम-आई के डायरेक्टर एन. रविंद्रन ने यह जानकारी दी। उन्होंने बताया कि इस पाठ्यक्रम के पहले वर्ष में 120 सीट होंगी।
न्यूनतम योग्यता
इस प्रोग्राम में प्रवेश के लिए सेकंडरी या 10वीं में तथा हायर सेकंडरी या 12वीं में कम से कम 60 प्रतिशत अंक होने जरूरी हैं। वहीं, ओबीसी और एससी-एसटी वर्ग के विद्यार्थियों के लिए यह प्रतिशत 55 रखा गया है। अंतिम चयन एक एप्टीट्यूड टेस्ट और साक्षात्कार के आधार पर किया जाएगा।
क्या होगी फीस

पहले तीन वर्ष के लिए सालाना 3 लाख रुपए फीस होगी। चौथे और पांचवें वर्ष के लिए यह फीसदी 5 लाख रुपए सालाना होगी। आरक्षित वर्ग के लिए फीस में रियायत नियमों के मुताबिक दी जाएगी। इस आवासीय पाठ्यक्रम में रहने-खाने की फीस अलग होगी।
कोर्स में क्या
पीजीपी के पाठ्यक्रम में सभी आवश्यक विषयों का मिश्रण रखा गया है जैसे - गणित, सांख्यिकी, इतिहास, साहित्य और राजनीति विज्ञान, जैविक विज्ञान, भाषा, वित्त और लेखा, अर्थशास्त्र और कंप्यूटर साइंस।
डॉयरेक्टर एन रविंद्रन ने कहा कि अभी इंजीनियरिंग, बीटेक व अन्य कोर्स करने के बाद हमारे पोस्ट ग्रेजुएट प्रोग्राम में दाखिला लेते हैं। हमारा मानना है कि प्रबंधन पाठ्यक्रम में विद्यार्थियों के चयन का सही समय 12वीं के बाद है। हमें उम्मीद है कि नया कोर्स सफल होगा। बाद में अन्य आईआईएम भी इसे अपनाएंगे(दैनिक भास्कर,इन्दौर,3.7.11)।

दसवीं कक्षा की पहली सुधार परीक्षा १६ जुलाई को

Posted: 03 Jul 2011 08:45 AM PDT

दसवीं कक्षा के छात्रों की पहली सुधार परीक्षा १६ जुलाई से शुरू हो रही है। स्कूल की परीक्षा देने वाले छात्रों की सुधार परीक्षा स्कूल ही आयोजित करेगा। विषयों में ई१ और ई २ पाने वाले छात्र नतीजों में सुधार कर सकते हैं। ई ग्रेड पाने वाले छात्र दोबारा परीक्षा देकर ग्रेड सुधार सकते हैं। जिन छात्रों के पांचों विषयों में ई ग्रेड है व डी ग्रेड लाकर दसवीं का सर्टिफीकेट लेने के योग्य हो सकते हैं। सीबीएसई ने अगली सुधार परीक्षा की तारीख अब तय नहीं की है। सीबीएसई छात्रों के आकलन के लिए प्रोफिशियंसी टेस्ट का भी आयोजन कर रहा है। प्रोफिशियंसी टेस्ट सोमवार से शुरू हो रहे हैं। टेस्ट देशभर के ६७८ केंद्रों पर होगा। टेस्ट में हिस्सा लेने वाले छात्रों को बोर्ड की ओर से सर्टिफीकेट दिया जाएगा। बोर्ड ने अपनी वेबसाइट में टेस्ट से जुड़ी विस्तत जानकारी दे दी है(नई दुनिया,दिल्ली,3.7.11)।

उत्तराखंड तकनीकी विश्वविद्यालयःमैनेजमेंट कोटे की सीटों पर कालेज सक्रिय

Posted: 03 Jul 2011 08:30 AM PDT

उत्तराखंड तकनीकी विविद्यालय की काउंसिलिंग से पहले मैनेजमेंट कोटे की सीटों को भरने के की कवायद इंजीनियरिंग कालेजों ने शुरू कर दी है। साथ ही सीटें फुल हो जाने का हवाला देकर छात्रों को तुरन्त एडमिशन लेने की नसीहत दी जा रही है। इससे छात्र असमंजस की स्थिति में हैं। बीटेक प्रथम वर्ष में एडमिशन को लेकर उत्तराखंड तकनीकी विविद्यालय की काउंसिलिंग का इंतजार किए बगैर ही कालेजों हरकत में आ गए है। वैसे तो बीटेक प्रथम वर्ष में राज्य कोटा, ऑल इंडिया कोटा व मैनेजमेंट कोटा निर्धारित है, लेकिन सामान्यत: विवि की काउंसिलिंग से राज्य कोटे की सीटों के भरने के बाद ही मैनेजमेंट कोटे की एडमिशन प्रक्रिया शुरू होती है, ताकि राज्य कोटे में जगह न मिलने की स्थिति में मैनेजमेंट कोटे का विकल्प खुला रहे है। यह सारा खेल सीटों को भरने के लिए हो रहा है। पिछले साल की स्थिति पर नजर डालें तो गिने-चुने कालेजों को छोड़कर अधिकांश में मैनेजमेंट कोटा तो दूर राज्य कोटे की सीटें भी खाली रह गई थी। कालेजों के डर है कि राज्य कोटे की काउंसिलिंग के बाद सीटों की स्थिति पूरी तरह साफ हो जाएगी। यदि पिछले साल की तरह इस बार भी राज्य कोटे की सीटें खाली रही तो छात्र मैनेजमेंट कोटे की ओर देखना पसंद नहीं करेंगे जिसका मुख्य कारण मैनेजमेंट कोटे की फीस अधिक होना है। यही कारण है कि कालेजों काउंसिलिंग से पहले ही मैनेजमेंट कोटे की सीटों को भर देना चाहते हैं। इसके लिए कालेज तमाम तरह से छात्रों को लुभाने में लगे हैं। कुछेक कालेजों ने मैनेजमेंट कोटे की सीटों को लेकर कोटद्वार, श्रीनगर जैसे पर्वतीय नगरों व कस्बों में कैम्प लगाकर छात्रों का पंजीकरण कर रहे हैं। कालेजों के इस रवैये पर छात्रों ने रोष जताया है। डीएवी के पूर्व छात्र संघ महामंत्री अनिल तोमर ने कहा कि विविद्यालय की काउंसिलिंग के बाद ही मैनेजमेंट कोटे की सीटों पर एडमिशन होना चाहिए। उन्होंने इस संबंध में विविद्यालय से आवश्यक कदम उठाने की मांग की है। प्रदेश के विभिन्न इंजीनियरिंग कालेजों में बीटेक प्रथम वर्ष में करीब 10846 छात्रों को एडमिशन दिया जाना है। इसमें से राज्य कोटे की 6055 व मैनेजमेंट कोटे की करीब 1471 सीट है। इसके अलावा करीब 3320 सीट ऑल इंडिया कोटे की है। उत्तराखंड तकनीकी विविद्यालय जुलाई के द्वितीय सप्ताह में काउंसिलिंग कराने पर विचार कर रहा है(राष्ट्रीयसहारा,देहरादून,3.7.11)।

मिड-डे मील मिलेगा दसवीं कक्षा तक

Posted: 03 Jul 2011 08:15 AM PDT

केंद्र सरकार फ्लैगशिप मध्यान्ह भोजन योजना 'मिड डे मील' का दायरा बढ़ाकर दसवीं कक्षा तक करना चाहती है। मानव संसाधन मंत्रालय ने बारहवीं योजना के लिए लक्ष्य पर विचार कर रही उपसमिति की शर्तो में इस मसले को प्रमुखता से जगह दी है।

कांग्रेसनीत यूपीए सरकार के दलित,पिछड़े और अल्पंसख्यक एजेंडे को ध्यान में रखकर मंत्रालय ने एससी,एसटी और अल्पसंख्यक बहुल जिलों में निजी स्कूलों और गैर सहायता प्राप्त विद्यालयों तक भी मध्यान्ह भोजन स्कीम को पहुंचाने का मन बनाया है।

मंत्रालय के उच्च अधिकारी के मुताबिक अल्पसंख्यक बहुल क्षेत्रों,और एससी-एसटी इलाकों के स्ववित्तपोषी निजी स्कूलों तक स्कीम को पहुंचाने का मसला भी उपसमिति की शर्तो में शामिल है।

गौरतलब है कि अभी तक आठवीं कक्षा तक मध्यान्ह भोजन स्कीम के तहत पका हुआ भोजन स्कूलों मे दिया जाता है। कुल 12 करोड़ बच्चों को 12 लाख 65 हजार स्कूलों तक स्कीम का फायदा पहुंचाया जा रहा है।

सरकार के उच्च पदस्थ सूत्रों का तर्क है कि बारहवीं योजना के दौरान स्कूली शिक्षा और उच्च शिक्षा मे विस्तार योजना का प्रारूप तैयार किया जा रहा है। सरकार इस अवधि के दौरान शिक्षा का दायरा व्यापक रूप से बढ़ाना चाहती है। इसी मुहिम में बच्चों को स्कूली स्तर से ही प्रोत्साहित करने की योजना पर काम हो रहा है।

सरकार के उच्च पदस्थ सूत्रों का मानना है कि मिड डे मील के चलते स्कूली शिक्षा में काफी प्रगति हुई है। आठवीं कक्षा तक स्कूलों में इनरोलमेंट दर काफी बढ़ा है। लेकिन ड्रॉप आउट की चुनौती बनी हुई है।



मंत्रालय सूत्रों का मानना है कि अगर दसवीं तक मिड डे मील का दायरा बढ़ा तो सेकेंडरी स्तर तक दाखिले और ड्रॉप आउट की समस्या पर कुछ रोक लग सकती है। 

विस्तार योजना के तहत ही मानवसंसाधन मंत्रालय ने पहली से आठवीं कक्षा तक के लिए बने मुफ्त व अनिवार्य शिक्षा कानून को हाल ही में दसवीं कक्षा तक बढ़ाने का फैसला किया है। मिड डे मील का दायरा बढ़ाने की मंशा को इससे जोड़कर भी देखा जा रहा है।

उच्च अधिकारी के मुताबिक हम शिक्षा को स्कूल से लेकर उच्च शिक्षा तक समग्र रूप से देखना चाहते हैं। इसी लिहाज से योजनाओं को भी आगे बढ़ाया जा रहा है(दैनिक भास्कर,दिल्ली,3.7.11)।

महाराष्ट्रःएफटीआईआई को मिलेंगी विवि की सुविधाएं

Posted: 03 Jul 2011 08:00 AM PDT

सूचना एवं प्रसारण मंत्री अंबिका सोनी ने शनिवार को कहा कि भारतीय फिल्म एवं टेलीविजन संस्थान (एफटीआईआई) को विश्वविद्यालय की सुविधाएं मुहैया कराने एवं उत्कृष्ठ संस्था बनाने के लिए संसद में विधेयक पेश किया जाएगा।

सुश्री सोनी ने कहा कि मीडिया और मनोरंजन उद्योग की बढ़ती मांगों के मद्देनजर एफटीआईआई अपने विद्यार्थियों को देश तथा विदेश में उच्च शिक्षा और शोध की सुविधाएं भी उपलब्ध कराएगा।

उन्होंने बताया कि संस्था के विस्तार एवं उन्नयन के लिए विशेषज्ञों ने विस्तृत प्रोजेक्ट रिपोर्ट भी तैयार कर ली है। इस रिपोर्ट में संस्था के पाठच्यक्रम को बदलती परिस्थितियों के अनुरुप बदलने की बात की गई है।


सुश्री सोनी ने कहा कि संस्था की नियंत्रक इकाई 6 जुलाई को इस रिपोर्ट पर चर्चा करेगी। उन्होंने बताया कि योजना आयोग ने राष्ट्रीय फिल्म हेरिटेज मिशन की स्थापना के लिए 660 करोड़ रुपये आवंटित किये हैं।
 
इस मिशन के तहत राष्ट्रीय फिल्म अभिलेखागार, राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम, फिल्म डिवीजन, फिल्मोत्सव निदेशालय और भारतीय बाल फिल्म सोसायटी में संरक्षित फिल्मों को कंप्यूटरीकृत किया जाएगा(दैनिक भास्कर,पुणे,3.7.11)।

हरियाणा बनेगा एजुकेशन हब

Posted: 03 Jul 2011 07:45 AM PDT

दिल्ली के बाद हरियाणा का सोनीपत अब उत्तर भारत में एजुकेशन का दूसरा बड़ा हब बनने जा रहा है। यानी राज्य के युवाओं को करियर बनाने के मद्देनजर दूसरे प्रदेशों में दाखिलों के लिए धक्के खाने से तो छुटकारा मिलेगा ही, हजारों हाथों को रोजगार भी मिलेगा। हुडा ने देश के पांच बड़े एजुकेशनल ग्रुप्स को सोनीपत के राजीव गांधी एजुकेशन सिटी में जमीन अलाट की और दो साल में निर्माण कार्य पूरा करने पर जमीन की लागत में 10 प्रतिशत छूट देने की आफर भी दी है।

चेन्नई की एसआरएम यूनिवर्सिटी को 47 एकड़ जमीन मेडिकल कालेज और यूनिवर्सिटी बनाने के लिए अलाट की गई है। एसआरएम के देश में सैकड़ों इंस्टीट्यूट पहले से चल रहे हैं। 20 एकड़ जमीन हैदराबाद के प्रतिष्ठित इंस्टीट्यूट आफ चार्टर्ड फायनेंशियल एकाउंटिंग को दी गई है। इस संस्थान की देश के विभिन्न प्रदेशों में 18 ब्रांचें चल रहीं हैं और हरियाणा में अब पहली ब्रांच खुलेगी।


इसी तरह भारतीय विद्यापीठ दिल्ली को साइंस से संबंधित माइक्रोबायोलॉजी व रोबोटिक विषय पढ़ाने के लिए 10 एकड़ जमीन हुडा ने अलाट की है। इस ग्रुप के देश में 182 संस्थान चल रहे हैं। पंजाब के मंडी गोबिंदगढ़ स्थित रीजनल इंस्टीट्यूट आफ मैनेजमेंट टेक्नोलॉजी को हुडा से आर्ट्स, साइंस व कामर्स पढ़ाने और मेडिकल कालेज शुरु करने के लिए 11.5 एकड़ जमीन मिली है। 
सोनीपत स्थित चंद्रावती एजुकेशनल ट्रस्ट को मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट के लिए 2.5 एकड़ जमीन दी गई है। इससे पहले हुडा फरीदाबाद की मानव रचना यूनिवर्सिटी को 25 एकड़ सहित पांच अन्य बड़े ग्रुप्स को एजुकेशन सिटी में जमीन अलाट कर चुका मगर उन्हें कोई छूट नहीं दी गई। 

5 हजार एकड़ में बसेगी एजुकेशन सिटी

चंडीगढ़ दिल्ली हाईवे पर सोनीपत में एजुकेशन सिटी करीब 5 हजार एकड़ में डेवलप होगी। इसके लिए पहले चरण में हुडा ने 2 हजार एकड़ जमीन एक्वायर की है। यह एक तरफ केएमपी यानी कुंडली मानेसर पलवल एक्सप्रेसवे और दूसरी तरफ ईस्टर्न पेरीफेरी एक्सप्रेसवे जो फरीदाबाद नोएडा गाजियाबाद व सोनीपत को जोड़ेगा पर बसेगी। यानी दिल्ली व आसपास के एरिया से कनेक्टिविटी के लिहाज से लोकेशन बढ़िया है।

स्कूलों में बनेंगे प्री-फेब्रीकेटेड रूम

पंचकूला. राज्य के सरकारी स्कूलों में कमरे कम और बच्चों की बढ़ती तादाद को देखते हुए शिक्षा विभाग अब मूवेबल प्रीफेब्रीकेटेड कमरे बनवाने पर विचार कर रहा है। मकसद यही है कि कम लागत और समय में ज्यादा से ज्यादा बच्चों के बैठने की व्यवस्था हो सके। वर्ना विभाग को डर है कि कई बच्चे जगह की तंगी के चलते स्कूल आना छोड़ देंगे या दूसरे स्कूलों में दाखिला ले सकते हैं। इससे सरकार का ज्यादा से ज्यादा बच्चों के उनके घरों के नजदीक नि:शुल्क, अनिवार्य व गुणात्मक शिक्षा देने के प्रयासों को गहरा झटका लग सकता है।

फेब्रिकेटेड क्लास रूम के बारे में विभाग का मानना है कि यह एक महीने में तैयार हो सकता है, जबकि पक्के कमरे बनाने में ज्यादा खर्चे के साथ एक साल तक का समय लगना स्वाभाविक है। इन दिनों राज्य में प्राइमरी से हाई स्कूल लेवल के करीब 16 हजार सरकारी स्कूल हैं। इनमें करीब 26 लाख बच्चे पढ़ रहे और ज्यादातर निम्न व मध्यम वर्ग से हैं। 

जानकारी के अनुसार बीते अर्से में राज्य के विभिन्न जिलों से कई स्कूलों ने उच्च शिक्षा निदेशालय को कमरों की कमी व बच्चों की तादाद का हवाला देते हुए स्कूलों में अतिरिक्त कमरे बनवाने का आग्रह किया है। इन कमरों का निर्माण लोक निर्माण विभाग कराता है। शिक्षा निदेशालय का मानना है कि मूवेबल प्रीफेब्रीकेटेड क्लास रूम बनाने का एक फायदा यह भी होगा कि स्कूलों में मांग अनुसार पक्के कमरे बनने पर इन्हें जरुरतानुसार दूसरे स्कूलों में शिफ्ट किया जा सकता है(कपिल चड्ढा,दैनिक भास्कर,पंचकूला,3.7.11)।

हिमाचल प्रदेश यूनिवर्सिटीःएमबीए की उत्तर-पुस्तिका तो बंटी,पर प्रश्नपत्र नदारद

Posted: 03 Jul 2011 07:30 AM PDT

प्रदेश विश्वविद्यालय के मंडी परीक्षा केंद्र में एमबीए के चौथे सम



--
Palash Biswas
Pl Read:
http://nandigramunited-banga.blogspot.com/

No comments:

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...

PalahBiswas On Unique Identity No1.mpg

Tweeter

Blog Archive

Welcome Friends

Election 2008

MoneyControl Watch List

Google Finance Market Summary

Einstein Quote of the Day

Phone Arena

Computor

News Reel

Cricket

CNN

Google News

Al Jazeera

BBC

France 24

Market News

NASA

National Geographic

Wild Life

NBC

Sky TV