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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Wednesday, May 1, 2013

सोनी सोरी बरी

सोनी सोरी बरी


सोनी सोरी

जगदलपुर | संवाददाता: छत्तीसगढ़ में कांग्रेस नेता अवधेश गौतम की हत्या के मामले में सोनी सोरी को बरी कर दिया गया है. गौतम की हत्या के मामले में स्थानी अदालत ने सोनी सोरी समेत सभी 17 आरोपियों को बाइज्जत बरी कर दिया है. सोनी सोरी के बरी होने से पुलिस को गहरा झटका लगा है. इस मामले में सोनी सोरी समेत सभी लोगों पर नक्सली होने का आरोप था और कहा गया था कि इन सबने एक मत हो कर अवधेश गौतम की हत्या की है. बुधवार को अदालत ने सबूतों के अभाव में सभी को बरी करने के आदेश दिये.

7 अगस्त 2010 को अवधेश सिंह गौतम के नकुलनार स्थित आवास पर आधी रात नक्सलियों ने हमला बोल कर उनकी हत्या कर दी गई थी. इस मामले में सोनी सोरी के साथ साथ उनके पति अनिल सोरी और भतीजे लिंगाराम कोडोपी को भी पुलिस ने आरोपी बनाया था. अदालत ने पुलिस के इन आरोपों को सही नहीं पाते हुये मामले के सभी आरोपियों को बरी कर दिया.

गौरतलब है कि इस मामले में पुलिस ने दावा किया था कि अवधेश गौतम की हत्या की लिंगाराम कोडोपी ने बनाई थी और हमले के समय सोनी सोरी नक्सलियों के साथ थी. पुलिस के अनुसार अनिल सोरी अपनी जीप में बैठ कर नक्सलियों की मदद कर रहा थे. इस मामले में पुलिस की विज्ञप्ति में मेधा पाटकर, अरुंधति राय, नंदिनी सुंदर और हिमांशु कुमार को भी उकसाने का आरोप लगाते हुये मामले की जांच की बात कही गई थी.

पिछले 3 सालों में सोनी सोरी के खिलाफ पुलिस ने 8 मामले दर्ज किये हैं. जिनमें से 5 मामलों में उन्हें बरी कर दिया गया है. महाकाय कंपनी एस्सार से नक्सलियों के लिये पैसे लेने के आरोप में सोनी सोरी की गिरफ्तारी चर्चा में रही है. इस मामले में नक्सलियों को पैसा देने वाले एस्सार के अधिकारी समेत तमाम आरोपी जेल से बाहर हैं. अकेली सोनी सोरी इस मामले में जेल में हैं.


यह देश सोनी सोरी से क्यों डरता है


इस बार तीन जनवरी को सोनी सोरी के मामले की सुनवाई सर्वोच्च न्यायालय में हुई थी .मैं सर्वोच्च न्यायालय में उपस्थित था . मेरे साथ एक बड़े अखबार की महिला पत्रकार भी थी .

सोनी के वकील कालीन गोंसाल्वेस ने कहा कि सोनी सोरी को दिल्ली से पकड़ कर छत्तीसगढ़ ले जाया गया . रात को पुलिस अधिकारी ने उसे थाने में निवस्त्र किया और उसे नीचे गिरा दिया . उसके बाद सोनी के पैरों में बिजली का करेंट लगाया गया . इसके बाद सोनी सोरी के शरीर में कुछ आब्जेक्ट डाले गये .सोनी ने अपने शरीर में भारी पन महसूस किया .फिर वह दर्द से बेहोश हो गई . बाद में जब कलकत्ता के मेडिकल कालेज में सोनी सोरी को जांच के लिये ले जाया गया . तो डाक्टरों ने सोनी की योनी से दो पत्थर के टुकड़े और गुदा से एक पत्थर का टुकड़ा निकाला .

इस पर भारत के मुख्य न्यायाधीश माननीय श्री अल्तमश कबीर ने कहा कि हाँ हमें याद है कि वह पत्थर के टुकड़े सर्वोच्च न्यायालय को भेजे गये थे और हमने उन्हें सील कर सुरक्षित रखने का आदेश दिया था . 

इसके बाद भारत के मुख्य न्यायाधीश महोदय ने कहा कि ठीक है अब अगली सुनवाई फरवरी में रख लेते हैं . छत्तीसगढ़ सरकार के वकील ने देरी करवाने की नियत से कहा नहीं फरवरी में मुझे कुछ काम है . मुख्य न्यायाधीश महोदय ने अगले ही क्षण कहा अच्छा तो फिर मार्च में कर लेते हैं .

और सोनी सोरी के मामले की सुनवाई मार्च तक बढ़ा दी गई .

दिल्ली बलात्कार मामले के कारण उबलती हुई जन भावनाओं से प्रभावित होकर आजकल हमारे मुख्य न्यायाधीश महोदय सभी न्यायाधीशों को पत्र लिख रहे हैं कि महिलाओं पर यौन प्रतारणा के मामलों में शीघ्र न्याय दिया जाए. 

हमें समझना पड़ेगा कि सोनी सोरी के मामले में मुख्य न्यायाधिपति इतनी सुस्ती क्यों दिखा रहे हैं ?

पूरा देश यह तो समझ रहा है कि अगर सोनी के साथ ऐसी प्रतारणा करने वाला कोई सामान्य सा बस ड्राइवर या कोई आवारा लड़का होता तो उसे अब तक  सज़ा मिल गई होती . हम सब यह भी जानते हैं कि सोनी सोरी को न्याय देने में देश की सर्वोच्च न्यायालय इसलिये हिचकिचा रही है क्यों कि सोनी सोरी का अपराधी एक बड़ा पुलिस अपराधी है जिसे इस कांड को अंजाम देने के बाद इस राष्ट्र के राष्ट्रपति ने वीरता का पुरूस्कार दिया था .

सोनी सोरी को न्याय देते ही यह सिद्ध हो जायेगा कि सरकार कैसे जन विरोधी हो चुकी है ? सोनी सोरी को न्याय देते ही सिद्ध हो जायेगा कि यह सरकारी तन्त्र किन लोगों के लिये काम कर रहा है ? सोनी को न्याय देते ही यह भी साफ़ हो जायेगा कि ज़मीने हड़पने के लिये आदिवासियों का जनसंहार किया जा रहा है .

सोनी सोरी को न्याय देने में इस तन्त्र को इसीलिये बहुत डर लग रहा है . कि सोनी सोरी को न्याय देते ही  वो बड़ा पुलिस अधिकारी जेल चला जायेगा . 

उस पुलिस अधिकारी के जेल जाते ही दूसरे पुलिस अधिकारी डर जायेंगे . और आदिवासियों की ज़मीनों को पुलिस के दम पर छीनने का जो खेल देश भर में चल रहा है उसमे उसमे बाधा पड़ सकती है .

इसलिये गरीबों की ज़मीने हड़पने में लगा हुआ यह पूरा सरकारी तन्त्र अपने उस बदमाश पुलिस अधिकारी को बचाने में लगा हुआ है . राष्ट्रपति से लेकर थानेदार तक सब सोनी सोरी से डरे हुए हैं . 

सोनी सोरी को न्याय मिलते ही भारतीय सत्ता तन्त्र का वो पर्दा उठ जायेगा जिसके पीछे इस तन्त्र ने अपना असली क्रूर खूनी पंजा छिपाया हुआ है . 

इसलिये सोनी को न्याय देने में पूरे तन्त्र को घबराहट हो रही है . 

और सच तो यह भी है कि हम सब जो सोनी को न्याय दिलवाना चाहते हैं हम भी सिर्फ एक लड़की को न्याय दिलवाने के लिये नहीं लड़ रहे बल्कि हमे पता है कि सोनी को न्याय मिलते ही इस क्रूर सत्ता तन्त्र को दो कदम पीछे  हटना पड़ेगा . और असके साथ ही तुरंत इस क्रूरता के खिलाफ लड़ने वाले लोग दो कदम आगे बढ़ जायेंगे . 

सोनी सोरी का मामला इसी कारण अब बहुत महत्वपूर्ण हो गया है .क्योंकि सोनी को अगर न्याय नहीं मिलता है तो फिर इस तन्त्र को किसी से भी डरने की कोई ज़रूरत ही नहीं बचेगी . फिर जन का कोई भी डर तन्त्र को नहीं रहेगा .तन्त्र जो चाहेगा वो करेगा .

डर यह है कि तन्त्र के पास लाखों बंदूकें टैंक, बम वर्षक जहाज और परमाणु बम हैं .

खतरनाक बात यह है कि तन्त्र को टाटा, अम्बानी जैसे लोग अपनी जेब में डाल सकते है .

इतना शक्तिशाली तन्त्र अगर कुछ लोगों के फायदे के लिये हमारी ही महिलाओं की योनी में पत्थर भरेगा तो भी हम उस तन्त्र का साथ दे सकते हैं क्या .

हाँ हम इसी तन्त्र का साथ देने के लिये मजबूर हैं .

हमारी मुसीबत यह है कि इस तन्त्र को टैक्स देने , इसे ही वोट देने और इस तन्त्र को ही अपना तन्त्र कहने के अलावा हमारे पास कोई दूसरा रास्ता ही नहीं है . 

और चूंकि हमारे पास कोई दूसरा रास्ता ही नहीं है और हमे पता है कि हमारे द्वारा पोषित तन्त्र हमारी बेटियों पर हमला करेगा तो हमारे पास बचने का कोई दूसरा रास्ता ही नहीं है . 

हमारे पास कोई विकल्प नहीं है .

इसलिये हम सोनी सोरी की तरफ से मूंह फेर लेते हैं . 

हम उधर देखने में डरते हैं . 

कब तक डरोगे ?



1- मुझे नंगा कर के ज़मीन पर बिठाया जाता है।

2- भूख से पीड़ित किया जा रहा है।

3- मेरे अंगों को छूकर तलाशी किया जाता है।

इतना ही नहीं, सोनी सोरी आगे लिखती हैं कि जज साहब छतीसगढ़ सरकार, पुलिस प्रशासन मेरे कपडे कब तक उतरवाते रहेंगे ? मैं भी एक भारतीय आदिवासी महिला हूं। मुझे में भी शर्म है, मुझे शर्म लगती है। मैं अपनी लज्जा को बचा नहीं पा रही हूं ! शर्मनाक शब्द कह कर मेरी लज्जा पर आरोप लगाते हैं ! जज साहब मुझ पर अत्याचार, ज़ुल्म में आज भी कमी नहीं है। आखिर मैंने ऐसा क्या गुनाह किया जो ज़ुल्म पर ज़ुल्म कर रहे हैं। . जज साहब मैंने आप तक अपनी सच्चाई को बयान किया तो क्या गलत किया आज जो इतनी बड़ी बड़ी मानसिक रूप से प्रतारणा दिया जा रहा है? क्या अपने ऊपर हुए ज़ुल्म अत्याचार के खिलाफ लड़ना अपराध है ? क्या मुझे जीने का हक़ नहीं है ? क्या जिन बच्चों को मैंने जन्म दिया उन्हें प्यार देने का अधिकार नहीं है ? इस तरह के ज़ुल्म अत्याचार नक्सली समस्या उत्पन्न होने का स्रोत हैं।

हिमांशु कहते हैं कि सोनी का यह पत्र हम सब के लिये एक चेतावनी है कि कैसे एक सरकार अपने खिलाफ कोर्ट के किसी फैसले का बदला जेल में बंद किसी पर ज़ुल्म कर के ले सकती है ! सरकार साफ़ धमकी दे रही है कि जाओ तुम कोर्ट ! ले आओ आदेश हमारे खिलाफ ! कितनी बार जाओगे कोर्ट ? सोनी पर यह ज़ुल्म सोनी के अपने किसी अपराध के लिये नहीं किये जा रहे। सोनी पर ये ज़ुल्म सामजिक कार्यकर्ताओं से उसके संबंधों के कारण किये जा रहे हैं। सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा छत्तीसगढ़ सरकार के अपराधिक कारनामों को उजागर करने की सजा के रूप में सोनी पर ये अत्याचार किये जा रहे हैं ! सोनी सामाजिक कार्यकर्ताओं के किये की सजा भुगत रही है ! हम बाहर जितना बोलेंगे जेल में सोनी पर उतने ही ज़ुल्म बढते जायेंगे।



सोनी को थाने में पीटते समय और बिजली के झटके देते समय एसपी अंकित गर्ग सोनी से यही तो जिद कर रहा था कि सोनी एक झूठा कबूलनामा लिख कर दे दे जिसमे वो यह लिखे कि अरुंधती राय , स्वामी अग्निवेश , कविता श्रीवास्तव , नंदिनी सुंदर , हिमांशु कुमार, मनीष कुंजाम और उसका वकील सब नक्सली हैं ! ताकि इन सभी सामाजिक कार्यकर्ताओं को एक झटके में जेल में डाला जा सके। सरकार मानती है कि ये सामजिक कार्यकर्ता छत्तीसगढ़ में आदिवासियों की ज़मीनों पर कंपनियों का कब्ज़ा नहीं होने दे रहे हैं ! इसलिये एक बार अगर इन सामजिक कार्यकर्ताओं को झूठे मामलों में जेल में डाल दिया जाए तो छत्तीसगढ़ में आदिवासियों पर सरकारी फौजों के हमलों पर आवाज़ उठाने वाला कोई नहीं बचेगा ! फिर आराम से बस्तर की आदिवासियों की ज़मीने कंपनियों को बेच कर पैसा कमा सकेंगे।

हिमांशु संसद, मीडिया, कोर्ट से अपील करते हुए कहते हैं कि कोई तो बचाओ इस लड़की को। संसद, सुप्रीम कोर्ट, टीवी और अखबारों के दफ्तर हमारे सामने हैं। हमें चिढा चिढा कर मारा जा रहा है। और सारा देश लोकतन्त्र का जश्न मनाते हुए ये सब देख रहा है।

शरीर के एक हिस्से की तकलीफ अगर दूसरे हिस्से को नहीं हो रही है तो ये शरीर के बीमार होने का लक्षण है !एक सभ्य समाज ऐसे थोड़े ही होते हैं। मैं इसे एक राष्ट्र कैसे मानूं ? लगता है हमारा राष्ट्र दूसरा है और सोनी सोरी का दूसरा। नक्सलियों से लड़ कर अपने स्कूल पर फहराए गये काले झंडे को उतार कर तिरंगा फहराने वाली उस आदिवासी लड़की को जेल में नंगा किया जा रहा है और उसे नंगा करने वाले पन्द्रह अगस्त को हमें लोकतन्त्र का उपदेश देंगे।

सोनी सोरी की कहानी सुनो, सोनी सोरी की ज़ुबानी सुनो ...एक कविता

सोनी सोरी की कहानी सुनो 
सोनी सोरी की ज़ुबानी सुनो 
पढ़ी है लिखी है पढ़ाती भी है 
एक माँ है, पत्नी है, साथी भी है 
भारत की नारी है, वासी भी है 
अधिकार से आदिवासी भी है 
तिरंगे का इतना उसे मान है 
लड़कर के लहराया पहचान है 
भले ही अभी लोग अनजान हैं 
मगर ये भारत की असल शान है 
लिंगा कोडोपी की हैं ये बुआ 
सुनो के इक दिन कुछ ऐसा हुआ 
गाँव में तीन सौ घर जल उठा 
हुए बालात्कार और सबकुछ लुटा 
हत्यारा पुलिस बल था पता जो चला 
लिंगा ने जाकर के सब सच लिखा 
सबूतों से लिंगा के रमण सिंह हिला 
यहीं से शुरू हुआ नया सिलसिला 
पहले तो लिंगा को दोषी कहा 
नहीं बस चला तो उसे अगवा किया 
प्रताड़ित किया और भूखा रखा 
फिर सोनी सोरी पर इलज़ाम गढ़ा
पैसों के लालच से बिक न सकी 
तो सोनी भी बलि की बकरी बनी 
उठा लाए दिल्ली से सोनी को वो 
फिर सुन न सकोगे आगे है जो 
अंकित गर्ग नामक एस पी है एक 
वहशी दरिंदा है इन्सां के भेस 
अकेली नारी को बंदी बना कर 
अपने कमीनो की टोली बुला कर 
सोनी सोरी को नंगा किया 
माता को गाली देता गया 
जब बिजली के झटकों से दिल न भरा 
तो सोनी की इज्ज़त पर वो टूट पड़ा 
पीड़ा से सोनी बेहोश हो गई
अत्याचार इसपर भी न रुक सका 
सोनी की कोख में पत्थर भरा 
सुबह को सोनी थी आधी मरी 
दर्द से कराहती वो चल न सकी 
चक्कर जो आया तो फिर गिर पड़ी 
शरीर से निर्बल थी, मगर वाह रे वाह 
टूटा न मर्दानी का हौसला 
उच्चतम न्यायलय में अर्ज़ी लिखी 
रमण सिंह की सरकार हिलने लगी 
सीबीआई तक बातें पहुँचने लगी 
हर एक अत्याचार सबूत बन गए 
आईपीएस के अफसर कपूत बन गए 
वीरता पदक देकर अंकित गर्ग को 
कलंकित किया है हर एक मर्द को 
धिक्कार है ऐसी सरकार पर 
फिटकार है ऐसी सरकार पर 
जिस कोख से जन्मे हैं सब के सब 
उस कोख के लाज की बात है 
लड़ेंगे, क़सम से हम मर जायेंगे 
इन्साफ़ माता को दिलवाएंगे

रिज़वी

http://cgnetswara.org/index.php?id=9071


 आदियोग 

सोनी सोरी का मामला एक बार फिर सतह पर है। देश के प्रमुख महिला संगठनों ने छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह को भेजी गयी अपनी साझा चिट्ठी में इस बात पर गहरी नाराज़गी ज़ाहिर की है कि राज्य सरकार यह जांच करवा रही है कि सोनी सोरी कहीं दिमाग़ी तौर पर बीमार तो नहीं। यह चिट्ठी गुज़री 11 अप्रैल को जारी हुई जिस दिन राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग सूबे में मानवाधिकार हनन से जुड़े कोई दो दर्ज़न चुनिंदा मामलों की रायपुर में सुनवाई कर रहा था। हालांकि केंद्रीय गृह मंत्रालय की राय थी कि मानवाधिकार आयोग को इस तरह के जोखिम से बचना चाहिए और सुनवाई की अपनी योजना रद्द कर देनी चाहिए लेकिन मानवाधिकार आयोग ने अपने पैर पीछे नहीं किये। इस निर्भीक पहल से राज्य सरकार पहले से सकपकायी हुई थी, उसे अपनी पोल खुल जाने का भय सता रहा था। महिला संगठनों की चिट्ठी ने उसे और अधिक सांसत में डाल दिया। 

कौन हैं सोनी सोरी? वे स्कूल शिक्षिका हैं, बस्तर से हैं और डेढ़ साल से भी अधिक समय से जेल में हैं। उन पर माओवादियों की मदद करने का आरोप है। पुलिस के मुताबिक़ 9 सितंबर 2011 को औद्यौगिक समूह इस्सार का ठेकेदार लालाराम 15 लाख रूपये लिंगाराम कोडोपी को देते हुए पकड़ा गया था जिसे माओवादियों तक पहुंचाया जाना था, और कि इस दबिश में तीसरी अभियुक्त सोनी सोरी फ़रार हो गयी। अब इस मामले को खंगालने के लिए यह जानना ज़रूरी है कि आख़िर कौन है लिंगाराम? इससे कोई डेढ़ साल पहले उनका नाम तब सामने आया था जब सूबे के पूर्व पुलिस प्रमुख विश्वरंजन ने उसे फ़रार अपराधी बताया था। हालांकि तब लिंगाराम नयी दिल्ली में पत्रकारिता की पढ़ाई कर रहा था। उसके पक्ष में स्वामी अग्निवेश, प्रशांत भूषण और हिमांशु कुमार जैसे लोग खड़े हो गये और उन्होंने विश्वरंजन को अपने आरोप साबित करने की चुनौती भी दी। लगा कि मामला ठंडा पड़ गया। लिंगाराम में भी हिम्मत जागी और उसने शुभचिंतकों की राय को दरकिनार करते हुए दंतेवाड़ा लौटने का मन बना लिया। यह बड़ी भूल थी। घर वापसी ने उसे और भी घने जाल में फंसा दिया। यह भरोसा तोड़ दिया कि सांच को आंच नहीं। 

लिंगाराम पर यह सरकारी खुन्नस क्यों उतरी? दरअसल, लिंगाराम पर दबाव था कि वह सलवा जुडुम में शामिल हो जबकि वह पत्रकार बनने की धुन में था। लिंगाराम ने अपना चुना हुआ रास्ता नहीं छोड़ने का फ़ैसला किया और वह स्थानीय पुलिस-प्रशासन की आंख की किरकिरी बन गया। इतना ही नहीं, उसने बलात्कार की शिकार कुछेक आदिवासी महिलाओं को नयी दिल्ली में पत्रकारों के सामने पेश करने की भी ज़ुर्रत कर डाली। यह राज्य सरकार को चुनौती देना था। इसके जवाब में उसे फ़रार अपराधी करार दिया गया। आप जानते हैं कि सलवा जुडुम की पैदाइश माओवादियों के नाम पर आदिवासियों को आदिवासियों के ख़िलाफ़ खड़ा किये जाने की सरकारी योजना के तहत हुई थी और जिसने बर्बरता की तमाम घिनौनी मिसालें क़ायम कीं- बस्तर के सैकड़ों गांव वीरान हुए, बेगुनाह आदिवासी फ़र्ज़ी मुठभेड़ों में मारे गये, औरतों के साथ बलात्कार हुए, घर और फ़सलें आग के हवाले हुईं, और इस तरह पूरी दुनिया में हिंदुस्तान की थूथू हुई। यह सिलसिला तभी रूका जब सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को कड़ी फटकार लगाते हुए सलवा जुडुम को फ़ौरन बंद किये जाने का निर्देश दिया। 

ख़ैर, लिंगाराम आख़िरकार 'क़ानून' की पकड़ में आ गया। उधर, सोनी सोरी ने यह ख़बर लगने पर कि उसे फ़रार बताया जा रहा है, किसी बुरी आफ़त से बचने के लिए छत्तीसगढ़ छोड़ देने में अपनी भलाई समझी। इंसाफ़ की गोहार लगाने उड़ीसा के रास्ते किसी तरह देश की राजधानी पहुंचने में क़ामयाब हो गयी। लेकिन 4 अक्टूबर 2011 को दिल्ली पुलिस ने गिरफ़्तार कर उसे छत्तीसगढ़ पुलिस को सौंप दिया और वह दंतेवाड़ा ले जायी गयी। यहीं से उसके बुरे दिनों की शुरूआत हो गयी। 'सच' उगलवाने के लिए पुलिस ने उसके साथ ज़्यादतियों की इंतिहा कर दी- उसे नंगा किया गया, बिजली के झटके दिये गये, बेरहम पिटाई की गयी, उसकी गुदा और यौनि में पत्थर ठूंसे गये। अंकित गर्ग नाम के जिस पुलिस अधीक्षक के आदेश और निगरानी में इंसानियत को तार-तार कर देनेवाला यह धतकरम हुआ, उसे पिछले बरस गणतंत्र दिवस के मौक़े पर पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल के हाथों शौर्य पदक का ईनाम मिला। यह जम्हूरी निजाम की शर्मनाक़ उलटबांसी की बानगी है। 

सोनी सोरी के साथ किये गये ग़ैर इनसानी सुलूक़ के आरोप को राज्य सरकार सिरे से नकारती रही। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर कोलकोता के सरकारी अस्पताल में हुई मेडिकल जांच की रिपोर्ट ने इस वीभत्स सच से परदा उठा दिया। यह आदेश मानवाधिकारों के पैरोकारों की इस दलील की रोशनी में था कि सोनी सोरी की छत्तीसगढ़ में होनेवाली मेडिकल जांच पर भरोसा नहीं किया जा सकता इसलिए जांच का काम सूबे से बाहर हो। हैरत की बात है कि वास्तविकता सामने आने के बावजूद सुप्रीम कोर्ट ने इस अपील को ठुकरा दिया कि सोनी सोरी को वापस छत्तीसगढ़ न भेजा जाये, कि वहां उसकी जान को ख़तरा है।  

लिंगाराम के साथ सोनी सोरी का नाम क्यों आया? दोनों ने मिल कर उस इलाक़े में ठेकेदारों के शोषण के ख़िलाफ़ आदिवासियों को एकजुट किया था जो माओवादियों का गढ़ माने जाते हैं। उनके अथक संघर्ष का नतीज़ा रहा कि आदिवासियों की मज़दूरी दोगुनी हुई। यह ख़तरे का बड़ा सिग्नल था। ज़ाहिर है कि आदिवासियों की एकता माओवादियों के सफ़ाया अभियान के नाम पर चल रहे पुलिसिया दमन के लिए चुनौती बनने की दिशा पकड़ रही थी। इसके अलावा ठेकेदारों से होनेवाली अवैध कमाई में भी घटत होने लगी थी। बांस ही नहीं रहेगा तो बांसुरी भला कैसे बजेगी? इसलिए दोनों को माओवादियों का मददगार साबित करने की साज़िश रच दी गयी। बताते चलें कि सोनी सोरी का भतीजा है लिंगाराम। 

सोनी सोरी के साथ हुई बदसुलूक़ियों पर शोर मचने के बाद राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और राष्ट्रीय महिला आयोग ने गुज़रे साल नवंबर और दिसंबर में इसकी छानबीन की थी और उसे सही पाया था। महिला आयोग के जांच दल की एक सदस्य ने तब कहा था कि हिरासत के दौरान हुए भीषण अत्याचारों के सदमे से उबरने के लिए सोनी सोरी को मनोवैज्ञानिक सलाह की ज़रूरत है। हालांकि इसी दल की दूसरी सदस्य एनी राजा ने इस राय से असहमति दर्ज़ करते हुए कहा था कि सोनी सोरी बहुत बहादुर महिला हैं, कि जांच दल के सामने पूरे होशोहवास में उन्होंने अपनी मार्मिक आपबीती बयां की, कि उन्हें मनोवैज्ञानिक सलाह से कहीं ज़्यादा इंसाफ़ की ज़रूरत है। लेकिन राज सरकार ने पहली टिप्पणी को अपने मुफ़ीद माना और सोनी सोरी के दिमाग़ी हाल की पड़ताल किये जाने का काम शुरू कर दिया। इस फ़ुर्ती के पीछे मंशा यह साबित किये जाने की है कि उनकी दिमाग़ी सेहत सचमुच ठीक नहीं। दिमाग़ी सेहत गड़बड़ है तो उनके कहे पर कैसे यक़ीन किया जा सकता है। इस पूरे मामले से समझा जा सकता है कि छत्तीसगढ़ में क़ानून का शासन किस क़दर लंगड़ा कर चलता है, कि सरकारी गुनाह किस तरह इंसाफ़ का लबादा ओढ़ने की जुगत करता है? 


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