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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Saturday, May 25, 2013

पूरे देश को रेडलाइट एरिया और कैसिनो में तब्दील करने में कोई कसर बाकी है,तो अब पूरी हो जायेगी!

पूरे देश को रेडलाइट एरिया और कैसिनो में तब्दील करने में कोई कसर बाकी है,तो अब पूरी हो जायेगी!


पलाश विश्वास


आईपीएल छह में भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के अध्यक्ष तक के फंसे होने के बाद हम भारतीयों की क्रिकेट राष्ट्रीयता का उन्नत मस्तक तनिक झुका है, इसका सबूत अभी नहीं मिला है। बल्कि फाइनल मैच के पहले से फिक्स होने की खबर आ जाने के बाद कोलकाता के ईडन गार्डन में दर्शक दीर्घा खचाखच भरा होने के पूरे आसार है।आईपीएल कमिश्नर भी सत्तादल के बड़े नेता और संसदीय मामलों के मंत्री राजीव शुक्ल हैं। भारतीय कप्तान की धर्मपत्नी तक विवादों के घेरे में हैं। भारतीय क्रिकेट टीम के प्रायोजक सहारा इंडिया ने अपनी आईपीएल टीम पुम वारियर्स का परित्याग करने के साथ भारतीय क्रिकेट से भी नाता तोड़कर भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के अध्यक्ष से इस्तीफे की मांग की है। इस्तीफे की मांग कर रहे हैं भारत के क्रिकेट विशेषज्ञ कृषि मंत्री शरद पवार भी! जिन्होंने उन्हें अपना उत्तराधिकारी चुना। सब लोग अपने को बेदाग साबित करने में लगे हैं। टीवी पर टीआरपी के मामले में अब भी क्रिकेट सबसे ऊपर है। सोशल मीडिया और नेटवर्किंग पर सामाजिक सरोकार के बजाय क्रिकेट है। टांगें चियारकर देशी विदेशी सुंदरियों का सार्वजनिक विश्व दर्शन का ऐसा खुला मच और कहां मिलने वाला है? एक तरफ तो क्रिकेट जुा को वैध बनाने के लिए जबर्दस्त कारपोरेट लाबिइंग जारी है तो दूसरी तरफ खेलों में फिक्सिंग को अब आपराधिक कानून के तहत लाया जाएगा। आइपीएल स्पॉट फिक्सिंग के घेरे में खिलाड़ियों, फिल्मी सितारों और एक टीम मालिक के आने के बाद सरकार ने इसके लिए नया कानून बनाने का फैसला किया है। संभवत: मानसून सत्र में ही इसे अमली जामा पहना दिया जाएगा। कानून मंत्री कपिल सिब्बल ने स्पष्ट कर दिया है कि नया कानून क्रिकेट समेत सभी खेलों में फिक्सिंग करने वालों के खिलाफ कार्रवाई में कारगर होगा। फंदे में वह हर व्यक्ति होगा जो खेल को किसी भी तरह प्रभावित करने की कोशिश करेगा। यह और बात है कि हाल में फंसे फिक्सर इस कानून के दायरे से बाहर होंगे।


अब बड़ी बेशर्मी से क्रिकेट जुआ को वैध बनाने की मीडिया बहस शुरु हो गयी है। अबाध पूंजी प्रवाह के नाम पर कालेधन का कारोबार पहले से वैध है। बाजार और विदेशी पूंजी पर नियंत्रण की किसी भी कोशिश से वित्तीय घाटा बढ़ जाता है, भुगतान संतुलन गड़बड़ा जाता है,समावेशी समरस  विकासगाथा बाधित हो जाती है। राजनीतिक दलों के लिए कारपोरेट चंदा वैध है और और देश की संपत्ति से लेकर लोकतांत्रिक संस्थाएं तक कारपोरेट हो गयी हैं।जनता के खिलाफ युद्धघोषणा वैध है। सलवा जुड़ुम और सशस्त्र  सैन्य विशेषाधिकार कानून वैध है। वैध है जल जंगल जमीन नागरिकता आजीविका और मानवाधिकार से बेदखली का अश्वमेध अभियान। सबकुछ वैध है तो क्रिकेट में जुआ भी वैध होने में कोई तकनीकी दिक्कत नहीं है। पूरा देसतो जुआघर बन गया है। जनता टीवी चैनलों के जरिये पंचकोटिपति बनने का ख्वाब देखती है। तो प्राकृतिक संसाधन से लेकर जनता की जमापींजी, पेंशन, भविष्यनिधि तक शेयर बाजार के हवाले है। खेलों पर क्रिकेट के रास्ते बाजार का वर्चस्व कायम होने में कोई कसर बाकी है नहीं। तमाम खेलों में आईपीएल की तैयारी है।बंटोदार पूरी तरह हुआ नहीं है लेकिन तैयारी पूरी है।


मुश्किल यह है कि बेटगं वैध करने की मांग स्त्री उत्पीड़न और देह व्यापार, महिलाओं की तस्करी रोकने के लिए फ्रीसेक्स की इजाजत जैसा ही है। यौनकुंठित सेक्स वंचित और खूबसूरती पर सवर्ण वर्चस्व के चलते बाजार के सेक्सी कारोबार के प्रति आकर्षण सबसे ज्यादा है। इसीलिे क्रिकेट कारोबार हो या फिर चिटफंड, जनता कोछलने के लिए सेक्स और ग्लेमर सबसे बड़े हथियार हैं। राजनीतिक संरक्षण से सारा खेल खुल्ला फर्रूखाबादी है। आयातित सुंदरियों का परम उत्तरदायित्व टांगे चियारकर टीवी के जरिये या प्रत्यक्ष दर्शन से जनता की सेक्स मुक्ति के जरिए कारोबारी हित साधना है। पूरे देश को रेडलारट एरिया और कैसिनो में तब्दील करने में कोई कसर बाकी है,तो अब पूरी हो जायेगी।हंसती खिलखिलाती हुई गोरी-गोरी विदेशी लड़कियां यानि 'चीयरलीडर्स' जो दौलत शौहरत और ग्लैमर के खेल आईपीएल के हर मैच में खिलाड़ियों में  छककों और चौकों पर बिना हिंदी जाने भी बॉलीवुड के गानों पर पूरे जोश के साथ नाचती हैं!वही नाच अब हमारी संस्कृति में तब्दील है और  हम जंपिंग झपांग कर रहे हैं।कपिल सिब्बल के अनुसार फिक्सिंग रोकने के लिए प्रस्तावित कानून पर भाजपा भी सरकार का साथ दे सकती है। शुक्रवार को आइपीएल कमिश्नर राजीव शुक्ला और बीसीसीआइ उपाध्यक्ष अरुण जेटली ने सिब्बल से मिलकर नया कानून बनाने का आग्रह किया था। जेटली राज्यसभा में विपक्ष के नेता भी है। लेकिन आइपीएल में स्पॉट फिक्सिंग के मौजूदा आरोपी नये कानून के दायरे से बाहर होंगे। सिब्बल ने कहा कि पुराने और मौजूदा मामलों से हमारा कोई लेना-देना नहीं है, हम भविष्य में फिक्सिंग रोकने के लिए कानून बनाने जा रहे हैं।


आईपीएल के दो चार मैचों के दो चार ओवर में बल्ले या गेंद से जलवा दिखाने वाले क्रिकेटरों को करोड़ों में खेलने का मौका मिल जाता है। करोड़ों का भाव लगता है नीलामी में उन पर । फिर वे सेक्स और बाजार को न्यौच्छावर हो जाते हैं। रियेलिटी शो हो या परदे पर समाचारों के व्यवधान के अलावा छाये विज्ञापनों के घटाटोप, उन्हीं को परम देशप्रेमी आइकन बतौर पेश किये जाते हैं। मीडिया में करोड़ों बाइट और ट्वीट उन्हीं पर न्योछावर। लाखो टन कागद कारा किया जाता है। फिर ऐसे देवताओं के पतन पर यह मातम किसलिए? देव संस्कृति का भवितव्य यही है। जीवित और मडत किंवदंतियों के अवदान को भुलाकर हमने जिन्हें ईश्वर का दर्जा दे रखा है, उनके स्वर्गवास पर बहस ही क्यों? बेटिंग की मांग इसी जमीनी हकीकत की तार्किक परिणति हैं।


शनिवार को सिब्बल ने जहां फिक्सिंग के खिलाफ अब तक कोई कानून न होने पर अफसोस जताया, वहीं यह घोषणा भी कर दी एक हफ्ते तक कानून का प्रारूप तैयार हो जाएगा। सिब्बल ने कहा कि प्रस्तावित कानून का दायरा व्यापक होगा और इसमें खेलों में होने वाले सभी तरह की गड़बड़ियों को शामिल किया जाएगा। खिलाड़ी और बुकी तो दूर, खेल देख रहे दर्शकों और विदेशी खिलाड़ियों को भी इसके दायरे में रखा जाएगा। जल्द ही कानून का प्रारूप खेल मंत्रालय को भेज दिया जाएगा। जो बाद में खेल संघों, खिलाड़ियों, राजनीतिक दलों व अन्य संबंधित पक्षों की राय लेकर इसे अंतिम रूप देगा। सरकार की कोशिश संसद के अगले सत्र में इसे संसद से पास कराने की होगी। खेल संविधान राज्य सूची में होने से सरकार थोड़ा सशंकित थी। लेकिन अटार्नी जनरल जीई वाहनवती ने साफ कर दिया कि खेलों में फिक्सिंग रोकने के लिए कानून बनाना केंद्र के अधिकार क्षेत्र में आता है। उसके बाद सिब्बल ने कोई देरी नहीं की।


हमने यह दुनिया बदल दी है और हमीं इसके भुक्तभोगी हैं। खेलों का देश की संस्कृति और परंपराओं से गहरा नाता है।बड़ी आर्थिक शक्ति होने का बावजूद और अपनी महान दीवार को बाजार के लिए खोल देने के बावजूद चीन का सांस्कृतिक विचलन नहीं हुआ है। इसीतरह लातिन अमेरिका देशों में सारी दिवानगी फुटबाल को समर्पित है। विश्वभर में परपंरागत खेलों को तिलांजलि देकर अपनी संस्कृति और परंपरा के विपरीत बाजार वर्चस्व के हथियार बतौर किसी खेल को अपनाने की नजीर नहीं है। हमने हाकी में दशकों तक दुनिया पर राज किया है।तमाम ओलंपिक गोल्ड जीते , पर आईपीएल का कमाल यह कि हम हाकी के जादूगर ध्यानचंद के बजाय श्रीसंत रपर फिदा हैं। ओलंपियन हाकी खिलाड़ियों को विश्वविजेताओं के लिए एक पंक्ति तक खर्च नहीं होती। जबकि हमने 1984 के ओलंपिक में भी हाकी में स्वर्ण जीता।


अब मृत हाकी के पार्थिव शरीर को भी मुक्त बाजार के हवाले किया जाना है।इसी सिलसिले में  अंतर्राष्ट्रीय हाकी महासंघ (एफआईएच) के अध्यक्ष लिएंड्रो नेग्रे ने कहा  है कि हाकी इंडिया लीग (एचआईएल) से हाकी को लेकर अच्छा माहौल बना है जिससे भारतीय हाकी को काफी फायदा होगा। लखनऊ में  उत्तर प्रदेश विजार्ड्स और दिल्ली वेवराइडर्स के खिलाफ मैच के बाद संवाददाताओं से बातचीत में नेग्रे ने कहा कि एचआईएल से विश्व में हाकी को लेकर अच्छा माहौल बना है और इससे खासकर भारतीय हाकी को काफी लाभ होगा।उन्होंने हाकी इंडिया को अधिकारिक इकाई करार देते हुए भारतीय हाकी महासंघ को सलाह दी कि वह हाकी इंडिया के साथ मिलकर देश में हाकी की तरक्की के लिये काम करे।नेग्रे ने कहा कि उनकी गुजारिश है कि हाकी इंडिया अगले साल से इस लीग में छह से आठ टीमें शामिल करे ताकि लोगों को ज्यादा से ज्यादा मुकाबले देखने को मिले और अधिक अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ी इसमें शामिल हो सकें।उन्होंने कहा कि भविष्य में क्रिकेट की ही तर्ज पर हाकी की भी चैम्पियंस लीग कराने पर विचार किया जाएगा ताकि उसमें दुनिया के विभिन्न देशों में होने वाली ऐसी ही अन्य प्रतियोगिताओं की विजेता तथा उपविजेता टीमें हिस्सा ले सकें।


लेकिन हाकी के बाजरु अवतार के कायाकल्प की अभी शुरुआत भर हुई है। इस बीच बैडमिंटन से लेकर कबड्डी तक को बाजार में झोंकनेकी तैयारी है। जबकि तमाम सम्मान, पुरस्कार और संसदीय प्रतिनिधित्व तक बाजारु क्रिकेट के लिए। मानो भारत में कोई दूसरा खेल हो ही नहीं।इस पर तुर्रा यह कि बीसीसीआई जब स्पाट फिक्सिंग से जूझ रहा है तब उसके मुख्य प्रशासनिक अधिकारी रत्नाकर शेट्टी ने कहा कि केवल क्रिकेट ही नहीं बल्कि देश के अन्य खेल भी संकट से जूझ रहे हैं। शेट्टी ने इंडिया स्पोर्ट्स फोरम 36 में कहा कि देश में सभी खेलों का साफ सुथरा करने की जरूरत है। उन्होंने कहा, ''भारतीय खेल महत्वपूर्ण दौर से गुजर रहे हैं। यह उनके लिये संकट का दौर है और टेलीविजन चैनलों से होने वाली बहस से कोई अंतर पैदा नहीं होने वाला है। युवा पीढ़ी भारतीय खेलों को सही दिशा दे सकती है। चाहे वह भ्रष्टाचार के खिलाफ हो, डोपिंग के खिलाफ हो या फिर खेलों में प्रशासन की बात हो। '' शेट्टी ने कहा, ''सरकार अपनी तरफ से काफी प्रयास कर रही है। भारतीय खेल महासंघों को जागना होगा। उन्हें यह सुनिश्चित करना होगा कि देश में खेलों का संचालन सर्वश्रेष्ठ तरीके से हो। केवल खेलों का संचालन ही महत्वपूर्ण नहीं है। माहौल तैयार करना भी जरूरी है जहां आप खिलाड़ियों को छोटी उम्र से ही खेल से जुड़े तमामू पहुलुओं के बारे में शिक्षित कर सकते हो। ''


1983 में हमने विश्वकप जीता और उसके तुरंत बाद हम धर्मोंमाद में निष्णात होने लगे। भोपाल गैस त्रासदी, सिखो का नरसंहार, बाबरी विध्वंस और गुजरात नरसंहार के जरिए कारपोरेट अशेवमेध अभियान और उग्रतम हिंदुत्व की पैदल सेना में तब्दीलहुए हम लोग। इस घनघोर आईपीएल समय़ में उन धुरंधरों को भी याद कर लेना चाहिये जो हिंदुत्व के पुनरुत्थान के लिए वैचारिक प्रतिबद्धता और सामाजिक सरोकार दोनों का नर्वाह करते हुए मुक्त बाजार का पथ बनाने में क्रिकेट जुनून फैलाने में अविस्मरणीय योगदान दिया। बाजर के वर्चस्व के साथ बाकी खेलों के साथ तेजी से हाकी खत्म ही हो गया और अब हमारा कोई राष्ट्रीय खेल है ही नहीं।


भारतीय क्रिकेट मे खूबसूरत विदेशी लड़कियों को चीयरलीडर्स के रूप में वर्ष 2008 में शुरू हुए आईपीएल के साथ उतारा गया। देश में चीयरलीडर्स को लेकर तब भी हंगामा हुआ और आज भी यह समाज के एक हिस्से का लिए चर्चा का विषय है। विदेशों में चीयरलीडर्स का प्रचलन इस कदर है कि  इसे खेल का दर्जा मिल चुका है। हालांकि  भारत में विदेशों से लाई गई ये चीयरलीडर्स महज आईपीएल को बेचने का एवं जरिया बन गयी है जिसके साथ कई तरह के विवाद भी जुड़े हुए हैं।सेक्स ,ग्लेमरऔर जुआ के काकटेल का नजारा यह है कि बालीवूड से टालीवूड की हिरोिनें चियारनों में तब्दील हैं और सुपरस्टारतक जुआड़ी बन गये हैं।आईपीएल में स्‍पॉट फिक्सिंग की जांच कर रही पुलिस के मुताबिक मयप्पम टीम की रणनीति की जानकारी विंदू को देता था। यही नहीं दूसरी टीम पर पैसा लगाने के मामले में मयप्पम एक करोड़ रुपये हारा था और जब उसने खुद की टीम पर पैसे लगाए तो वह जीतता गया। अब पुलिस उसके चार मोबाइल जब्त करने वाली है जिनसे वह बुकीज से बात करता था।वहीं फिक्सिंग के खुलासे के बाद चल रही धर-पकड़ की कड़ी में शनिवार सुबह अहमदाबाद में एक सट्टेबाज को गिरफ्तार किया गया। उसके पास से एक करोड़ रुपये नकद भी बरामद हुए हैं। उधर, समाचार एजेंसी पीटीआई का कहना है कि एम श्रीनिवासन अगर बीसीसीआई अध्‍यक्ष की कुर्सी नहीं छोड़ते हैं तो उन्‍हें सस्‍पेंड किया जाएगा। हालांकि इसके लिए बोर्ड के 32 में से 24 सदस्‍यों की रजामंदी जरूरी होगी।

श्रीनिवासन अपने दामाद मयप्‍पन से मिलने मुंबई पहुंचे तो पत्रकारों ने उन्‍हें घेर लिया। उन्‍होंने कहा- इस्तीफा देने का कोई सवाल ही नहीं है। मुझ पर कोई इस्तीफे का दबाव नहीं बना सकता। मैंने कुछ गलत नहीं किया है। कानून अपना काम करेगा।

उधर, मुंबई पुलिस ने मयप्पन को शनिवार दोपहर को मुंबई की किला कोर्ट में पेश किया जहां से उसे 29 मई तक पुलिस रिमांड में भेज दिया गया। सूत्रों के मुताबिक पुलिस शुक्रवार शाम से गुरुनाथ से पूछताछ करेगी। पुलिस को कई कोड भी सुलझाने हैं। गुरुनाथ और विंदू को आमने-सामने बैठा कर पूछताछ की जाएगी। सूत्रों के मुताबिक दोनों ने एक दूसरे को मैच से पहले कम से कम 30 बार कॉल और एसएमएस किए थे। एसएमएस में भी कोड छिपे हुए हैं।

 

चेन्नई सुपर किंग्स के टीम के प्रिसिंपल गुरुनाथ मयप्पन की गिरफ्तारी के बाद अब क्रिस गेल भी शक के दायरे में आ गए हैं। आईपीएल मैचों में फिक्सिंग को लेकर चर्चाओं में आए जयपुर के ज्वैलर बंधु पवन और संजय ने टोंक रोड स्थित अपने ज्वैलरी शोरूम मोती संस पर क्रिस गेल को बुलाया था। यहां दोनों भाइयों ने गेल को करीब 4.25 लाख रु. के जेवरात गिफ्ट किए थे। इस शोरूम पर क्रिकेटर श्रीसंत, अभिनेता विंदु दारासिंह एवं अन्य खिलाड़ी आ चुके हैं।

बेंगलूर का 29 अप्रैल को जयपुर में रॉयल्स के साथ मैच था। इसके अगले दिन क्रिस गेल मोती संस शोरूम पर गए और एक घंटे रुके। इसी दौरान ज्वैलरी और डायमंड गिफ्ट किए थे। वहीं दूसरी तरफ बीसीसीआई अध्‍यक्ष एन.श्रीनि‍वासन के दामाद गुरुनाथ मयप्‍पन की मुंबई में गि‍रफ्तारी के बाद से बीसीसीआई अध्‍यक्ष की मुसीबतें बढ़ गई हैं। सहारा ने धमकी दी है कि अगर वह इस्‍तीफा नहीं देते तो सहारा भारतीय क्रि‍केट टीम को भवि‍ष्‍य में स्‍पांसर नहीं करेगी। बीसीसीआई बोर्ड के भी कुछ सदस्‍यों ने श्रीनि‍वासन से इस्‍तीफा देने की बात कही है। (पढ़ें- बंसल गए तो श्रीनिवासन क्‍यों नहीं? सीएसके का फाइनल खेलना भी खतरे में!)

श्रीनि‍वासन के इस्‍तीफे की अटकलें तेज होने के बाद अब चर्चा हो रही है कि दि‍ल्‍ली क्रि‍केट एसोसि‍एशन के पि‍छले 14 सालों से अध्‍यक्ष रहे भाजपा नेता अरुण जेटली को बीसीसीआई अध्‍यक्ष बनाया जा सकता है। वहीं इस बात के भी कयास लगाए जा रहे हैं कि अगर श्रीनि‍वासन इस्‍तीफा देते हैं तो उनकी जगह पर अस्‍थाई रूप से बीसीसीआई के पूर्व अध्‍यक्ष रहे शशांक मनोहर को लाया जा सकता है। उधर दूसरी तरफ कोडाईकनाल में परि‍वार के साथ छुट्टी बि‍ता रहे श्रीनि‍वासन ने एक समाचार पत्र को दि‍ए इंटरव्‍यू में कहा है कि उनके अध्‍यक्ष पद से इस्‍तीफा देने का सवाल ही पैदा नहीं होता। उन्‍होंने कहा कि वह कि‍सी मामले में दोषी नहीं हैं। जो लोग दोषी हैं, वह उन्‍हें बचाने की वकालत नहीं करेंगे।


भारत में चीयरलीडर कई विवादों और आलोचनाओं के बावजूद भी इस खेल का हिस्सा बनी हुई है और इनकी मांग और मौजूदा क्रेज को देखते हुए आगे भी बनी रहेंगी।  इनका चलन दरअसल 1880के दशक में अमेरिका से हुआ था। अमेरिका के बाद धीरे-धीरे यह पूरी दुनिया में ही फैलता चला गया। चीयरलीडिंग विदेशों में इतना लोकप्रिय है कि बाकायदा इसके लिए विश्व चैंपियनशिप आयोजित की जाती है। विश्व चैंपियनशिपों में चीयरलीडर्स को भी अपने हुनर का किसी अन्य खेल के नियमों के अनुसार प्रदर्शन करना होता है। अमेरिका में इसके लिए एक संस्था है, यूनिवर्सल चीयर लीडिंग एसोसिएशन।


आलोचकों का मानना है कि इन विदेशी लड़कियों का दुरुपयोग किया जाता है। उल्लेखनीय है कि 2011 में मुंबई इंडियंस की दक्षिण अफ्रीकी चीयरलीडर गैब्रियाला पास्कालोटो ने अपने ब्लॉग पर लिखा था, ये खिलाड़ी हमसे ऐसे व्यवहार करते हैं जैसे हम चलता फिरता मांस का टुकड़ा हों।


इस ट्वीट के मीडिया में सुर्खियां बनने के बाद गैब्रियाला को तुरंत स्वदेश भेज दिया गया था। इस पूरे विवाद के बाद चीयरलीडर्स एकबार फिर विवादों में आ गई थी। लेकिन आईपीएल के छठे संस्करण में जिस तरह से चीयरलीडर्स आकर्षण का क्रेंद्र बनी हुई है उससे साफ है कि विदशों के बाद अब भारत में भी इनका जादू सभी के सिर चढ़कर बोल रहा है और आयोजकों के लिए भी यह फायदे का सौदा बनी हुई है।


इस अंधेरगर्दी की चकाचौंध रोशनीस चौंधियाये हम यह गौरवशाली इतिहास भुला चुके हैं कि आधुनिक युग में पहली बार ओलंपिक में हॉकी २९ अक्तूबर, १९०८ में लंदन में खेली गई। इसमें छह टीमें थीं। १९२४ में ओलपिंक में अंतर्राष्ट्रीय कारणों से यह खेल शामिल नहीं हो सका। ओलंपिक से हॉकी के बाहर हो जाने के बाद जनवरी, १९२४ में अंतर्राष्ट्रीय हॉकी संघ (इंटरनेशनल हॉकी फेडरेशन) की स्थापना हुई। हॉकी का खेल एशिया में भारत में सबसे पहले खेला गया। पहले दो एशियाई खेलों में भारत को खेलने का अवसर नहीं मिल सका, किन्तु तीसरे एशियाई खेलों में भारत को पहली बार ये अवसर हाथ लगा। हॉकी में भारत का प्रदर्शन काफ़ी अच्छा रहा है। भारत ने हॉकी में अब तक ओलंपिक में आठ स्वर्ण, एक और दो कांस्य पदक जीते हैं। स्वतंत्र भारत ने इसे अपना राष्ट्रीय खेल भी घोषित किया है। इसके बाद भारत ने हॉकी में अगला स्वर्ण पदक १९६४ और अंतिम स्वर्ण पदक १९८० में जीता। १९२८ में एम्सटर्डम में हुए ओलंपिक में भारत ने नीदरलैंड को ३-० से हराकर पहला स्वर्ण पदक जीता था। १९३६ के खेलों में जर्मनी को ८-१ से मात देकर विश्व में अपनी खेल क्षमता सिद्ध की। १९२८, १९३२ और १९३६ के तीनों मुकाबलों में भारतीय टीम का नेतृत्व हॉकी के जादूगर नाम से प्रसिद्ध मेजर ध्यानचंद ने किया। १९३२ के ओलपिंक में हुए ३७ मैचों में भारत द्वारा किए गए ३३० गोल में ध्यानचंद ने अकेले १३३ गोल किए थे।


क्रिकेट का जितना इस्तेमाल मुक्त बाजार को गांव देहात तक विस्तृत  करने में है , उतना शायद कारपोरेट भारत सरकार का भी नहीं।देशी उत्पादन प्रणाली को ध्वस्त करके विदेशी बहुराष्टरीय कंपनियों का आधिपात्य जमाने से लेकर चिटफंड कारोबार फैलाने तक क्रिकेट का धुआंधार उपयोग है।तीस सालों में सौंदर्य प्रसाधन, शीतल पेय,यौनता वर्धक सामग्री के प्रचार प्रसार में क्रिकेट का खूब इस्तेमाल हुआ। अब आईपीएल के जरिये फ्री सेक्स और कैसिनो का कारोबार भी खूब चल निकला और देशबर में इनकी समांतर सरकारें चल रही हैं।


जेनरेशन एक्स की मोबाइल टैबलेट शापिंग चैटिंग पीढी़ पर स्मृति भ्रम या अपसंस्कृति का दोष मढ़ा नहीं जा सकता। हममे से अनेक लोग अपने स्कूल जीवन में हाकी और फुटबाल के खिलाड़ी रहे हैं।हम लोगों ने क्रिकेट को गले से लगया 1983 के बाद और फिर हम सभी नीलकंठ होते चले गये। नीलकंठ बने हैं तो हलाहल तो पीना ही पड़ेगा!


हाकी की कामंट्री से गूंजता देश अब चियारिनों के शित्कार से गूंज रहा है। सार्वजनिक तौर पर जब ऐसा परिवेस हमने बना दिया है तो पांच सितारा जीवन में अप्सराओं की कामकेली में फंसे अपने देवताओं और ईश्वरों के पाप का भी भागीदार बनिये।


भारत में यह खेल सबसे पहले कलकत्ता में खेला गया। भारत टीम का सर्वप्रथम वहीं संगठन हुआ। 26 मई को सन 1928 में भारतीय हाकी टीम प्रथम बार ओलिम्पिक खेलों में सम्मिलित हुई और विजय प्राप्त की। 1932 में लॉस एंजेलिस ओलम्पिक में जब भारतीयों ने मेज़बान टीम को 24-1 से हराया। तब से अब तक की सर्वाधिक अंतर से जीत का कीर्तिमान भी स्थापित हो गया। 24 में से 9 गोल दी भाइयों ने किए, रूपसिंह ने 11 गोल दागे और ध्यानचंद ने शेष गोल किए।


1936 के बर्लिन ओलम्पिक में इन भाइयों के नेतृत्व में भारतीय दल ने पुनः स्वर्ण 'पदक जीता' जब उन्होंने जर्मनी को हराया। बर्लिन ओलम्पिक में ध्यानचंद असमय बाहर हो गये और द्वितीय विश्व युद्ध ने भी इस विश्व स्पर्द्धा को बाधित कर दिया। आठ वर्ष के बाद ओलम्पिक की पुनः वापसी पर भारत की विश्व हॉकी चैंपियन की स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं आया। एक असाधारण कार्य, जो विश्व में कोई भी अब तक दुहरा नहीं पाया है। अन्य टीमों के उभरने के संकेत सर्वप्रथम मेलबोर्न में दिखाई दिए, जब भारत को पहली बार स्वर्ण पदक के लिए संधर्ष करना पड़ा। पहले की तरह, टीम ने अपनी ओर एक भी गोल नहीं होने दिया और 38 गोल दागे, मगर बलबीर सिंह के नेतृत्व में खिलाड़ीयों को सेमीफ़ाइनल में जर्मनी के ख़िलाफ़ और फ़ाइनल में पाकिस्तान के ख़िलाफ़ संघर्ष करना पड़ा। सेमीफ़ाइनल में कप्तान के गोल ने निर्णय किया, जबकि वरिष्ठ रक्षक आर.एस. जेंटल के बनाए गोल ने भारत की अपराजेयता को बनाए रखा। 1956 के मेलबोर्न ओलम्पिक के फ़ाइनल में भारत और पाकिस्तान को 1960 में रोम ओलम्पिक में पाकिस्तान ने फ़ाइनल में 1-0 से स्वर्ण जीतकर भारत की बाज़ी पलट दी। भारत ने पाकिस्तान को 1964 के टोकियो ओलम्पिक में हराया। 1968 के मेक्सिको ओलम्पिक में पहली बार भारत फ़ाइनल में नहीं पहुँचा और केवल कांस्य पदक जीत पाया। मगर मेक्सिको के बाद, पाकिस्तान व भारत का आधिपत्य टूटने लगा। 1972 के म्यूनिख़ ओलम्पिक में दोनों में से कोई भी टीम स्वर्ण पदक जीतने में सफल नहीं रही और क्रमशः दूसरे व तीसरे स्थान तक ही पहुँच सकी। मुख्य रूप से भारत में, हॉकी के पारंपरिक केंद्रों के अलावा अन्य स्थानों पर लोगों की रुचि में तेज़ी से गिरावट आई और इस पतन को रोकने के प्रयास भी कम ही किए गए। इसके बाद भारत ने केवल एक बार 1980 के संक्षिप्त मॉस्को ओलम्पिक में स्वर्ण पदक जीता। टीम का अस्थिर प्रदर्शन जारी रहा। इसके बाद 1998 के एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक की प्राप्ति भारतीय हॉकी का एकमात्र बढ़िया प्रदर्शन था। ऐसे बहुत कम मौक़े रहे, जब कौशल ने शारीरिक सौष्ठव को हराया, अन्यथा यह बारंबार बहुत कम अंतर से हार और गोल चूक जाने का मामला रहा है। यद्यपि भारत अब विश्व हॉकी में एक शक्ति के रूप में नहीं गिना जाता, पर हाल के वर्षों में यहाँ ऐसे कई खिलाड़ी हुए हैं, जिनके कौशल की बराबरी विश्व में कुछ ही खिलाड़ी कर पाते हैं। अजितपाल सिंह, वी. भास्करन, गोविंदा, अशोक कुमार, मुहम्मस शाहिद, जफ़र इक़बाल, परगट सिंह, मुकेश कुमार और धनराज पिल्लै जैसे खिलाड़ीयों ने अपनी आक्रामक शैली की धाक जमाई है।


दावा तो यह है कि भारत में हॉकी के गौरव को पुनर्जीवित करने के गंभीर प्रयास हुए हैं। भारत में तीन हॉकी अकादमियां कार्यरत हैं- नई दिल्ली में एयर इंडिया अकादमी, रांची (झारखंड) में विशेष क्षेत्र खेल अकादमी ऐर राउरकेला, (उड़ीसा) में स्टील अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया लिमिटेड (सेल) अकादमी। इन अकादमियों में प्रशिक्षार्थी हॉकी को प्रशिक्षण के अलावा औपचारिक शिक्षा भी जारी रखते हैं और मासिक वृत्ति भी पाते हैं। प्रत्येक अकादमी ने योग्य खिलाड़ी तैयार किए हैं, जिनसे आने वाले वर्षों में इस खेल में योगदान की आशा है। क्रिकेट के प्रति दीवानगी के बावजूद विद्यालयों और महाविद्यालयों में हॉकी के पुनरुत्थान से नई पीढ़ी में इस खेल के प्रति रुचि जागृत हुई है। प्रतिवर्ष राजधानी में होने वाली नेहरू कप हॉकी प्रतियोगिता जैसी प्रतिस्पर्द्धाओं में उड़ीसा, बिहार और पंजाब के विद्यालयों, जैसे सेंट इग्नेशियस विद्यालय, राउरकेला; बिरसा मुंडा विद्यालय, गुमला और लायलपुर खालसा विद्यालय, जालंधर द्वारा उच्च स्तरीय हॉकी का प्रदर्शन देखा गया है।


हॉकी के खेल में भारत ने हमेशा विजय पाई है। इस स्‍वर्ण युग के दौरान भारत ने 24 ओलम्पिक मैच खेले और सभी 24 मैचों में जीत कर 178 गोल बनाए तथा केवल 7 गोल छोड़े।भारत के पास 8 ओलम्पिक स्‍वर्ण पदकों का उत्‍कृष्‍ट रिकॉर्ड है। भारतीय हॉकी का स्‍वर्णिम युग 1928-56 तक था जब भारतीय हॉकी दल ने लगातार 6 ओलम्पिक स्‍वर्ण पदक प्राप्‍त किए। 1928 तक हॉकी भारत का राष्ट्रीय खेल बन गई थी और इसी वर्ष एमस्टर्डम ओलम्पिक में भारतीय टीम पहली बार प्रतियोगिता में शामिल हुई। भारतीय टीम ने पांच मुक़ाबलों में एक भी गोल दिए बगैर स्वर्ण पदक जीता। जयपाल सिंह की कप्तानी में टीम ने, जिसमें महान खिलाड़ी ध्यानचंद भी शामिल थे, अंतिम मुक़ाबले में हॉलैंड को आसानी से हराकर स्वर्ण पदक जीता।

भारतीय हॉकी संघ के इतिहास की शुरुआत ओलम्पिक में अपनी स्‍वर्ण गाथा शुरू करने के लिए की गई। इस गाथा की शुरुआत एमस्‍टर्डम में 1928 में हुई और भारत लगातार लॉस एंजेलस में 1932 के दौरान तथा बर्लिन में 1936 के दौरान जीतता गया और इस प्रकार उसने ओलम्पिक में स्‍वर्ण पदकों की हैटट्रिक प्राप्‍त की।


किशनलाला के नेतृत्व में दल ने लंदन में स्वर्ण पदक जीता। भारतीय हॉकी दल ने 1975 में विश्‍व कप जीतने के अलावा दो अन्‍य पदक (रजत और कांस्‍य) भी जीते। भारतीय हॉकी संघ ने 1927 में वैश्विक संबद्धता अर्जित की और अंतरराष्‍ट्रीय हॉकी संघ (एफआईएच) की सदस्‍यता प्राप्‍त की। भारत को 1964 टोकियो ओलम्पिक और 1980 मॉस्‍को ओलम्पिक में दो अन्‍य स्‍वर्ण पदक प्राप्‍त हुए। 1962 में कांस्य पदक और 1980 में स्वर्ण पदक प्राप्त किया और देश का नाम ऊँचा कर दिया।


२०१० राष्ट्रमंडल खेलों में भारत ने रजत पदक हासिल किया |


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