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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Saturday, November 29, 2014

अशोक सेकसरिया नहीं रहे,हमने अपना अभिभावक खोया


अशोक सेकसरिया नहीं रहे,हमने अपना अभिभावक खोया

पलाश विश्वास

प्रख्यात समाजवादी चिंतक और लेखक अशोक सेकसरिया अब हमारे बीच नहीं रहे।वे अविवाहित थे।



तीन दिन पहले अचानक घर में पैर फिसल जाने से उनकी कमर की हड्डी टूट गयी थी और रीढ़ की डिस्क भी खिसक गयी थी।उनका आपरेशन कोलकाता के एक निजी अस्पताल में परसो हुआ। वे ठीक भी  हो रहे थे कि अचानक आज देर रात हृदयाघात से उनका देहावसान हो गया।


इसके साथ ही कोलकाता के साहित्यिक सांस्कृतिक जगत को अपूरणीय क्षति हो गयी और उनके जानने वालों के आंसू थम ही नहीं रहे हैं।


पारिवारिक सूत्रों के अनुसार कल उनकी अंत्येष्टि होगी और इस बारे में अभी मालूम नहीं चला है।


अशोक जी का जनसत्ता परिवार से बेहद अंतरंग संबंध थे और वे प्रभाष जोशी जी के निजी मित्र थे।स्वयं जोशी जी ने कोलकाता में जनसत्ता शुरु होने पर उनसे संपादकीय के सभी साथियों से मिलाया था।


हमसे तब जो मुलाकात हुई तो अंतरंगता तो उतनी नहीं हुई लेकिन वे बीच बीच में फोन करते रहते थे।हालचाल जानते रहते थे और सबके साथ उनका यही बर्ताव था।


हमारी सामाजिक सक्रियता से वे चिंतित भी रहते थे कि कहीं हमें कोई नुकसान न हो जाये।नंदीग्राम सिंगुर प्रकरण में जब हमने अनशन कर रही ममता बनर्जी का उनके अनशन मंच से समर्थन किया तो वे अरसे तक परेशान करते रहे और हमें जोखिम उठाने से मना करते रहे।


हालांकि वे भी उस दौरान हमारे साथ जबरन भूमि अधिग्रहण का विरोध करने वाले कोलकाता के चुनिंदा लेखकों में थे।


ऐेसे थे हमारे अशोक सेकसरिया।

जनसत्ता में गंगा प्रसाद,कृष्णकुमार शाह,साधना शाह,अरविंद चतुर्वेद और जयनारायण के अलावा शैलेंद्र जी से उनके निजी संबंध थे।


कोलकाता और नई दिल्ली के अलावा देशभर में हिंदी अहिंदी जगत के साहित्यकारों पत्रकारों और समाजसंस्कृतिकर्मियों  से उनके निजी ताल्लुकात थे और वे सबकी परवाह करते थे।


वे बेहतरीन लेखक थे।इस पर बाद में हम चर्चा करेंगे।


समझा जाता है कि अलका सरावगी के उपन्यास कलि-कथा वाया बाईपास के केंद्रीय चरित्र भी वे ही थे।


हाल में भारतीय भाषा परिषद के अस्तित्व को लेकर भी उन्होंने लंबी लड़ीई लड़ी।


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