Total Pageviews

THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

Twitter

Follow palashbiswaskl on Twitter

Monday, August 31, 2015

किसी कुलबर्गी और तमाम कुलबर्गियों के खून से प्लीज रामचरितमानस को खून से सरोबार करने से बाज आइये।

किसी कुलबर्गी  और तमाम कुलबर्गियों के खून से प्लीज रामचरितमानस को खून से सरोबार करने से बाज आइये।

अपने हिंदू होने पर गर्व है तो हिंदुत्व की लोकतांत्रिक धर्मनिरपेक्ष लोक के रामचरित को बचाइये और राम को कातिल कतई न बनाइये।

वैसे सनद रहे कि इतिहास में हत्याओं का नतीजा हमेशा तानाशाह का काम तमाम है।कहीं ऐसा न हो कि 2020 और 2030 के एजंडा पागलों और हत्यारों के हवाले करके आप दुनिया से हिंदुत्व का नामोनिशां ही मिटाने न चले हों।धर्मांतरण के सच परभी जरा गौर कीजिये।
समझना जरुरी है कि उत्पादकों के साझे चूल्हे में ही लोक का जनम होता है,लोक को कोख उजाड़ने की फितरत से बाज आइये।

पलाश विश्वास

अब यह तय करना ही होगा कि सियासत मजहबी हो तो हो,उससे तो जनता किसी न किसी दिन निबट लेगी लेकिन जब सत्ता सियासत के वास्ते मजहब का बेजां इस्तेमाल करती है तो उस पर अंकुश जरुर लगनी चाहिए।

एमएम कुलबर्गी की निर्मम हत्या और खुलेआम दूसरे लोगों को हिंदुत्व के खिलाफ बोलने लिखने पर कुत्ते की मौत की चेतावनी के मध्य डिजिटल इंडिया के जरिये रामचरितमानस बांचने का जो इंतजाम राजकाज है,उसके नतीजे पर भी नजर रखिये।

दूरदर्शन पर रामायण महाभारत के प्रसारण के जरिये राजीव गांधी ने कांग्रेसी सत्ता को स्थाई बनाने की जो कोसिश की और जो विवादित धर्मस्थल का ताला तोड़कर हिंदुत्व सुनामी पैदा करने की कोशिश की,वह हजार करोड़ के फिल्मी बाक्सआफिस से कहीं ज्यादा कामयाब हुआ है,लेकिन बहुत बेहतर हो कि केसरिया तमाम लोग इस इतिहास से सबक जरुर लें कि नतीजा हिंदुत्व का पुनरुत्थान जरुर हो गया,लेकिन कांग्रेस की कब्र भी उस रस्म से खुद गयी और हिंदुत्व की सुनामी में हिंदुत्व की दावेदारी के साथ साथ सत्ता की लड़ाई में कांग्रेस को अब जमीन कोई मिल नहीं रही है दोबारा खड़ा होने के लिए।

इतिहास अपने को दोहराता है।नये सिरे से राम की सौगंध खाकर हिंदुत्व को दुनिया का इतिहास भूगोल बना देने का एजंडा पूरा करने के लिए जो टाइटैनिक बाबा रामचरित मानस बांचने का नया उपक्रम शुरु कर रहे हैं,वह कहीं राजीव गांधी की ऐतिहासिक भूल की पुनरावृत्ति न हो।


लोकतांत्रक और धर्मनिरपेक्ष ताकतें,प्रगतिशील ताकतें तब तक मर मर कर जीती रहेगी जबतक कायनात में इंसानियत का नामोनिशां है।

कट्टर से कट्टर धर्मराष्ट्र में भी वे ताकतें जिंदा रही है।

भले ही आज जायनी ताकतें दुनिया पर कहर बरपा रही है,लेकिन फासीवाद के खिलाफ यहूदियों की बेमिसाल लड़ाई याद कर लेना चाहिए।जर्मनी और पौलैंड में जैसे उनने फासीवाद से लोहा लिया और मर मिटने के बाद इजराइल बना लिया,उसका इतिहास भी है।यह भी समझने की बात है कि सारे यहूदी जायनी नहीं होते,जयनी यहूदी जड़ों के बजाय विदेशी जड़ों से ज्यादा जुड़े हैं।

भूले नहीं कि यूरोप के तमाम किसान विद्रोह भी सत्ता और धर्म दोने को खिलाफ रहे हैं।धर्म की सत्ता हो या ,सत्ता का धर्म हो, दोनों बेहद खतरनाक है,जनता उसका हिसाब बहुत कायदे से कर देती है।

गुजरात में वैसा होने भी लगा है।

सत्ता और कारपोरेट के हानीमून का नतीजा नये अवतार का जन्म हो गया है।

उस अवतार के मिशन से बाकी कसर भी पूरी होने वाली है अब तो सिर्प रंगा सियार का रंग ही उतर रहा है।

हूबहू भारत में यही हो रहा है।गोस्वामी तुलसीदास के रामचरित मानस का नायक मर्यादा पुरुषोत्तम राम हैं जो लोककल्याण के प्रतिबद्ध इतने हैं,जनसुनवाई से जिनका सरोकार इतना प्रबल है कि जिस सीता के लिए उनने लंकाविजय कर दिखाया,उस सीता को भी किसी एक नागरिक के प्रतिप्रश्न पर वनवास भेज दिया।

राम के इस अतिवादी पदक्षेप में राम का चरित्र है कि रामकथा लिखने वाले का पुरुषतांत्रिक दिलोदिमाग है,यह अलग प्रसंग है।

साफ करना बेहतर होगा,सीता के वनवास के लिए राम को हम मर्यादा पुरुषोत्तम नहीं मान सकते।

फिरभी राम जनता के करीब थे,हालांकि उनकी सीमा मनुस्मृति थी और उनका मिथक भी मनुस्मृति है।मनुस्मृति अनुशासन ही उनका राजकाज है।

हिंदुत्व के मर्यादा पुरुषोत्तम को इसीलिए शंबुक का हत्यारा भी बना दिया गया है।

सच क्या है ,वह हम जानते नहीं है।

रामायण इतिहास है या इतिहास बदलने का उपक्रम है,यह अभी तय करना बाकी है।

रामकथा भले जो हो,रामचरित मानस की जड़ें लेकिन अवधी लोक है और जिसमें आधागांव और नीम की खुशबू भी है।

लोक आस्था का पारायण यह साझा संस्कृति की जड़ों को ही मजबूत करता है।

बोलियों का कोई मजहब होता नहीं है और न लोक का कोई मजहब होता है,यह साहित्य का सबसे बड़ा प्रतिमान है और संस्कृति का भी।

यूं इसको समझे की सरहदों के आरपार जैसे बंगाली और पंजाबी अदब कायदा विभाजन के बावजूद एक है,वैसे ही बोलियों का भूगोल जस का तस है।

भोजपुरी, अवधी, ब्रज, मैथिली, मालवी, गुरखाली, लेप्चा, गोंड, संथाली, बुंदेलखंडी, कुंमाउनी, गढ़वाली, डोगरी, मगही,वज्जिका जैसी बोलियां बोलने वालों की पहचान मजहब से तय नहीं होती और न सियासत से और न जातपांत से।दरअसल भाषा का कोई मजहब होताइच नहीं है।

संत परंपरा को भक्ति आंदोलन समझने की भूल न कीजिये और मध्यकालीन तमस में उजियारे के लिए उस जिहाद के सामतविरोधी जनधर्मी लोकतांत्रिक धर्मनिरपेक्ष विरासत को मजहबी और सियासती बनाना इतिहास और भूगोल को बदलने से मुश्किल काम है।

इसे ऐसे समझिये कि जैसे मुक्त बाजार और नवउदारवाद की औलादों ने असली देशभक्त संघियों को किनारे करके केसरिया को फासीवाद में तब्दील करते हुए सियासत को मजहबी और फिर इस मजहबी सियासत को कत्लेआम का सबब बना दिया है,उससे मनुस्मृति और जाति व्यवस्था के नर्क और बेलगाम पुरुषतंत्र के  के बावजूद हिंदुत्कीव की सनातन परंपरा में लोकतंत्र,स्वतंत्त्रता और धर्मनिरपेक्षता, नास्तिकता के अधिकार का भी कत्लेआम हो रहा है।

मुल्क की विरासत को ही मौत केघाट उतार रहे हैं लोग और समझते हैं कि किसी कुलबर्गी की हत्या कर दी है।यह भी तमीज है नहीं कि शहादत की जमीन पर शख्सियत की मौत कभी होती ही नहीं है।

समझते भी नहीं हैं सियासत कायदे से और न हुकूमत चलामने का कोई शउर है कि यह भी नहीं जानते कि अगर शहादतों का सिलिसिला शुरु हो गया तो न सियासत की खैर है और न हुकूमत की।क्योंकि अपढ़ अधपढ़ बजरंगी न इतिहास जानते हैं और न विज्ञान से उनका वास्ता है और मजहब तो वे खैर जान ही नहीं सकते क्योंकि मजहब कुल मिलाकर इंसानियत के सिवायकुछ होता नहीं है और उन्हें इंसानियत से कोई वास्ता नहीं है।

कोई धर्मग्रंथ पाशविक प्रवृत्तियों की वकालत नहीं कर सकता और न इबादत में किसी मजहब में इसकी इजाजत है।

मजहब हमेशा मजलूम के हकहकूक के हक में फतवा जारी करता है।किसी मजहब में इंसानियत के खिलाफ न फतवे की इजाजत है और न जिहाद की।

रब में आखिराकर इंसानियत और कायनात की तरक्की की दास्तां है।दुआएं भी बरकतों और नियामतों की मांगी जाती है,कयामतों और तबाही की नहीं।

सत्ता की भाषा में जो धर्म है,बोलियों में वह धर्म नहीं है।

इसीलिये कबीर,सूर,रसखान,मीरा,नानक,दादु,तुकाराम,चैतन्य का धर्म वह नहीं है जो शास्त्रीय धर्म है।

बंगाल में धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र की जड़ें इसीलिए सरहदों के आरपार लेकिन फिर वह बाउलफकीर वैष्णव है ,जहां पीर की दरगाहों पर जाने वाले और मतुआ आंदोलन में शामिल होने वालों की न जाति और धर्म की कोई पहचान होती है।

बंगाल के आदिवासी विद्रोह भी दरअसल इसीलिए किसान आंदोलन थे।

बिरसा मुंडा और हरिचांद ठाकुर का धर्म भी किसानों का हक हकूक रहा है।

वैसे ही जैसे कि जमींदारों के खिलाफ,सामंती उत्पादन प्रणाली के खिलाफ तेभागा किसानों का आंदोलन रहा है सरहदों के आरपार जो जमींदारों का सबसे बड़ा संकट भी रहा है।

समझना जरुरी है कि उत्पादकों के साझे चूल्हे में ही लोक का जनम होता है,लोक को कोख उजाड़ने की फितरत से बाज आइये।

भारत विभाजन में तेभागा को तोड़ने के मकसद से जो मजहबी सियासत की नींव रखी गयी,उसका तो हम बाद में भी खुलासा करते रहेंगे।लेकिन इतना जरुर समझ लें कि बंकिम ने जिस सन्यासी विद्रोह पर आनंद मठ लिखा,वह हिंदू सादुओं का विद्रोह न था।उसमें हिंदू भी थे शामिल तो आदिवासी भी थे।मुसलमानों की भागेदारी और रहनुमाई भी थी।साधु संत फकीर बाउल की लड़ाई थी वह इंसानियत के हक हकूक की लड़ाई के लिए।

 समझ लें किन भारतमाता और न वंदेमातरम मजहब की पहचान है ,जिसे ऐसा मजहबी सियासत ने बना दिया है। 

कमसकम रामचरितमानस बांचने वालों को यह तमीज तो होनी ही चाहिए कि वे मर्यादा पुरुषोत्तम को कातिल न बनावें हरगिज।

कमसकम रामचरितमानस बांचने वालों को यह तो होनी ही चाहिए कि इस माटी के सपूतों के धर्म को सियासत में तब्दील करके इंसानियत की विरासत न मिटाये रोज रोज राजकाज के बहाने।

इतिहास बदलने वालों से हमें खास परहेज नहीं है बशर्ते कि उनकी बुनियादी समझ इतिहास की हो।

इतिहास की कोई समझ है ही नहीं,विज्ञान के विरोधी कूपमंडूक भी हैं,अंध आस्था का तेजबत्तीवाला कारोबार अंधियारा का है और सारा जग केसरिया करने चले।

बेहतर हो कि देहमन शुध करके अवधी की लोकजमीन से जुड़कर भारत में भक्तिआंदोलन की विरासत की सही समझ के साथ रामचरित मानस और गोस्वामी तुलसीदास के मानस के साथ सात रामचरित को भी समझ लें।

किसी कुलबर्गी  और तमाम कुलबर्गियों के खून से प्लीज रामचरितमानस को खून से सरोबार करने से बाज आइये।

अपने हिंदू होने पर गर्व है तो हिंदुत्व की लोकतांत्रिक धर्मनिरपेक्ष रामचरित को बचाइये और राम को कातिल कतई न बनाइये।

वैसे सनद रहे कि इतिहास में हत्याओं का नतीजा हमेशा तानाशाह का काम तमाम है।

कहीं ऐसा न हो कि 2020 और 2030 के एजंडा पागलों और हत्यारों के हवाले करके आप दुनिया से हिंदुत्व का नामोनिसां ही मिटाने न चले हों।
 
धर्मांतरण के सच पर भी जरा गौर कीजिये।
-- 
Pl see my blogs;


Feel free -- and I request you -- to forward this newsletter to your lists and friends!

No comments:

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...

PalahBiswas On Unique Identity No1.mpg

Tweeter

Blog Archive

Welcome Friends

Election 2008

MoneyControl Watch List

Google Finance Market Summary

Einstein Quote of the Day

Phone Arena

Computor

News Reel

Cricket

CNN

Google News

Al Jazeera

BBC

France 24

Market News

NASA

National Geographic

Wild Life

NBC

Sky TV