Total Pageviews

THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

Twitter

Follow palashbiswaskl on Twitter

Monday, July 11, 2016

भारत में कोई बांग्लादेश न बने,इसकी चिंता भारतीय जनता और भारत सरकार को कितनी है? देश की एकता और अखंडता को भारी खतरा पलाश विश्वास

भारत में कोई बांग्लादेश न बने,इसकी चिंता भारतीय जनता और भारत सरकार को कितनी है?

देश की एकता और अखंडता को भारी खतरा

पलाश विश्वास


हमारा अपना इतिहास है।दमन का रास्ता अपनाकर कलिंग विजय के बाद तब तक नरसंहारी सम्राट अशोक का निरंकुश सत्ता से मोहभंग हो गया और उनने महात्मा गौतम बुद्ध के धम्म और पंचशील का रास्ता अख्तियार किया।लेकिन इतिहास को बिगाड़ने का काम जो कर रहे हैं,उन्हें हमारी गौरवशाली विरासत से क्या लेना देना है।


अभी मोहनजोदोड़ो पर एक फिल्म बनी है बालीवूड में,जिसे मैंने देखा नहीं है।लेकिन टुसु ने फोन पर बताया कि उसने फिल्म का ट्रेलर देखा है और इस फिल्म में कुछ भी सही नहीं है।सिंधु घाटी की सभ्यता लोकतांत्रिक व्यवस्था पर टिकी थी।


टुसु के मुताबिक शिव कोई व्यक्ति न थे बल्कि सिंधु घाटी की लोकतांत्रिक व्यवस्था में वाणिज्यिक  नगरों के वे व्यवस्थापक थे और इस व्यवस्थापक के पद को शिव कहा जाता था।इस बारे में उसने काफी पहले अंग्रेजी में विस्तार से लिखा भी है।


वहां की भाषा,वेशभूषा,संस्कृति को बिगाड़कर इस फिल्म में निरंकुश सत्ता का महिमामंडन किया गया है।


मुगलिया बादशाहत के पहले इस देश पर पठानों ने सोमनाथ मंदिर के विध्वंस और कुतुब मीनार केनिर्माण से लेकर पानीपथ के युद्ध में बाबर के हाथों इब्राहीम लोदी की शिकस्त तक राज किया।


फिरभी पठानों की कोई विरासत हमारी  नहीं है क्योंकि वे भारतीय जनता के साथ लगातार दूरी बनाये हुए थे और उनका राजकाज ही राजधर्म था।


बादशाह अकबर और हुमायूं तो युद्ध जीतने और हारने के सिवा कुछ नहीं कर पाये लेकिन हुमांयू को हराकर शेरशाह ने आज की डाक व्यव्स्था की शुरुआत की और सम्राट अशोक की तरह जनहित में निर्माण की पुनरावृत्ति की।ग्रांड ट्रंक रोड उनकी ही बनायी हुई है और आज तक शेरशाह के बंदोबस्त के मुताबिक भूमि राजस्व, जमीन का पट्टा, खसरा, खतियान,लगान,पटवारी, तहसील इत्यादि व्यवस्था बनी हुई है।इसमें शेरशाह का मजहब आड़े नहीं आया।


फिर भारत में बादशाह अकबर का राजकाज रहा जिनने पहली बार सत्ता को जनता से जोड़ने की पहल की।उन्हींके कार्यकाल के आसपास गोस्वामी तुलसी दास ने संस्कृत महाकाव्य रामाय़ण को अवधि में रामचरित मानस लिखकर लोक संस्कृति को धार्मिक आस्था से जोड़ा तो धर्म के वैदिकी स्वरुप को लोक के मुताबिक बनाया और तबसे लेकर आज तक रामायण भारतीय जनता की आस्था का आधार है और मर्यादा पुरुषोत्तम राम हैं।


बंगाल में संस्कृत काव्यधारा के अंतिम महाकवि जयदेव ने गीत गोविंदम के मानवीय आख्यान से दैवी सत्ता का निषेध किया है।


सत्ता,धर्म और लोक के इस समरस रसायन में भारतीय मौलिक सुधार आंदोलन भक्ति आंदोलन की जड़ें हैं।जहां से जमीनी रिश्ता बनाकर संत कबीर,रसखान से लेकर पीर फकीर साधु संत बाउल भारत में लगातार साझा चूल्हे की विरासत बनाते रहे हैं।


उस धारा से एकदम अलग हटकर भारत के तमाम मजहबी लोग जहर उगल रहे हैं और जनता को राजनीति के हिसाब से बांटने से खतरनाक काम यह है क्योंकि दरअसल वे भारतवर्ष की हत्या कर रहे हैं।


नवजागरण में हिंदुत्व  की कुप्रथाओं के संशोधन और लगातार जारी किसान आदिवासी आंदोलन और उसीके मध्यदलित आंदोलन से आर्य अनार्य और भारत में आये दूसरी नस्लों की एकातमकता के आधार पर आधुनुक भारतवर्ष की नींव पड़ी।


हिंदु महासभा और मुस्लिम लीग की परस्परविरोधी राजनीति की वजह से भारत विभाजन के कठोर निर्मम वास्तव के बावजूद हमारी सहिष्णुता,विविधता और बहुलता की विरासत अटूट है लेकिन धर्माोन्मादी मुक्तबाजारी राष्ट्रवाद उस विरासत का सिरे से सफाया करने पर आमादा है।


भारतवर्ष की एकता और अखंडता को बाहरी शक्तियों से तत्काल कोई खतरा नहीं है।चीन इतना अहमक नहीं है कि भारत जैसे महाबलि को छेड़कर वह अपनी डांवाडोल अर्थव्वस्था को दीर्घ कालीन संकट में डालेगा और पाकिस्तान बार बार भारत से हारता रहा है तो भारत की सैन्य शक्ति अब भी उसकी ताकत और उसे निरंतर मिली विदेशी मदद पर भारी है।


बांग्लादेश में जो हो रहा है,वह बहुतखराब है लेकिन राजनयिक तौर पर हम इससे निबट सकते हैं।इसके लिए सैन्य हस्तक्षेप की भी जरुरत नहीं है।


सिर्फ कारपोरेट हितों से भारतीय राजनीति और राजनय,राजकाज और राजधर्म को मुक्त कर दिया जाये तो नेपाल और बांग्लादेश समेत सारे पड़ोसियों से हमारे संबंध पहले जैसे मित्रतापूर्ण हो सकते हैं और उनकी जमीन पर भारतविरोधी गतिविधियों पर अंकुश लगाया जो सकता है।


इस वक्त भारतवर्ष को सबसे ज्यादा खतरा आंतरिक सुरक्षा के गहराते संकट से हैं,जो सत्ता वर्ग का अबाध सृजन है।


इस पर चर्चा से पहले एक बुहत मामूली सी घटना का जिक्र करना चाहता हूं।सेरेना विलियम्स ने अभी अभी विंबलडन खिताब जीतकर ग्रांड स्लैम जीतने के स्टेफी ग्राफ के रिकार्ड को स्पर्श किया है जिसे वे अगले ग्रांड स्लैम में तोड़ सकती है।


स्टेफी ग्राफ से लेकर दुनियाभर के क्रीड़ाप्रेमी सेरेना की इस उपलब्धि का बखान करने से अघा नहीं रही है।लेकिन खिताब जीतने के बाद सेरेना का पहला बयान अमेरिका में रंगभेदी गृहयुद्ध में अपने स्वजनों की जाम माल की सुरक्षा को लेकर है।


सेरेना चिंतित हैं कि श्वेत अश्वेत गृहयुद्ध में उनके परिजनों और स्वजनों की जान माल की क्या गारंटी है।दुनिया की एक नंबर महिला टेनिस खिलाड़ी जिनके पास अकूत संपत्ति है,उसकी यह चिंता बेहद संवेदनशील है,जिसे हमें अपने परिप्रेक्ष्य में समझना चाहिए।यह कोई रोजमर्रे की खबर भी नहीं है।


कुल मिलाकर भारत में भी धर्मोन्मादी धर्वीकरण के राजकाज और राजधर्म की वजह से विकास के पैमाने पार या वैश्विक नेतृत्व की कसटी पर भारत अमेरिका बना हो या नहीं,रंगभेदी भेदभाव ,दमन और उत्पीड़न के मामले में हम अमेरिका बन चुके हैं।


अमेरिका को दूर से देखते हुए हम वहां के हालात कमोबेश समझ भी पा रहे हैं और इस गृहयुद्ध के खिलाफ अमेरिकी नागरिकों के मतामत,मीडिया विमर्श से हम उसकी घंभीरत भी समझ रहे हैं।लेकि भारत में इस मुद्दे पर बात करना निषिद्ध है और मीडिया सिर्फ सत्ता पक्ष का विमर्श प्रस्तुत कर रहा है।


इस पर तुर्रा यह आत्मघाती धर्मोन्मादी राष्ट्रवाद।


हम आंतरिक सुरक्षा की भयंकर परिस्थितियों को सिरे से नजरअंदाज करके अपनी अपनी राजनीति के मुताबिक लड़भिड़ रहे हैं और समस्या से निपटने की न हमारी कोई समझ है और न तैयारी।किसी भी संकट से,मसलन आंतरिक सुरक्षा जैसे संवेदनशील मामले में कानून का राज और लोकतंत्र अनिवार्य है।संवैधानिक व्यवस्था बहाल रखना अनिवार्य है और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता भी।


मध्यभारत से लेकर आदिवासी और दलित भूगोल,पूर्वोत्तर से लेकर समूचे हिमालयी क्षेत्र में राजकाज और राजधर्म विशुध अश्वमेधी नरसंहार संस्कृति है,जिससे हालात इतने बेलगाम हो गये हैं।


अभी सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि मणिपुर में डेढ़ हजार फर्जी मुढभेड़ को सेना ने अंजाम दिया है।मणिपुर या देश के दूसरे हिस्सों के बारे में न्यायपालिका और मीडिया को खुलकर मंतव्य करने से जाहिर है कि फिलहाल कोई रोक नहीं रहा है।


इसके विपरीत  कश्मीर पर तो किसी को बोलने की मनाही है। इसलिए विशुध सत्ता की राजनीति में कश्मीर आहिस्ते आहिस्ते बांग्लादेश में तब्दील हो रहा है और यह बेहद खतरनाक है।


इसीतरह सत्ता की राजनीति ने उग्रतम अस्मितावादी उल्फा के हवाले असम को देकर एकमुश्त वहां रहने वाले गैरअसमिया गैर हिंदुओं के लिए जो नरसंहारी हालात बना दिये हैं,उसपर अंकुश के लिए नई दिल्ली शायद अब कुछ भी करने की हालत में नहीं है।  


असम में बांग्लादेश से भयंकर परिस्थितियां बार बार होती रही हैं।अब वही इतिहास नये सिरे से दोहराया जाने वाला है।


नेपाल और बांग्लादेश के मौजूदा हालात के मद्देनजर और बंगाल के भारतविरोधी तत्वों का शरणस्थल में तब्दील हो जाने से यह संकट न सिर्फ असम ,समूचे पूर्वोत्तर में,बंगाल और बिहार में कभी भी प्रलयंकर हो सकता है।


भारत में कोई बांग्लादेश न बने,इसकी चिंता भारतीय जनता और भारत सरकार को कितनी है?


मीडिया के मुताबिक सातवीं बार विंबलडन महिला सिंगल्स का ख़िताब जीतने वाली जानी मानी अमरीकी टेनिस खिलाड़ी सेरेना विलियम्स अमरीका मे पुलिस- अश्वेत संघर्ष से दुखी हैं।उनका कहना है' हिंसा से किसी समस्या का समाधान नहीं हो सकता है।"


विंबलडन का ख़िताब जीतने के बाद उन्होंने अपने देश में अफ्रीकी-अमरीकियों की हत्या और फिर डलास में हुई हिंसा पर गहरा दुख जताते हुए ३४ वर्षीय खिलाड़ी ने कहा, "अपने जैसे रंग के लोगों की सुरक्षा को लेकर मैं चिंतित हूं। मेरे भतीजे हैं, मैं सोच रही हूं कि उन्हें फोन कंरू और कहूं कि बाहर मत जाओ। ऐसा न हो कि जब तुम कार में बैठने जाओ, तो वो अंतिम बार हो जब मैं तुम्हें देख रही हूं।"


सेरेना ने कहा, ''डलास की गोलीबारी दुखद है। इस तरह से किसी को भी अपनी ज़िंदगी नहीं गंवानी चाहिए, चाहें वो किसी भी रंग के हों और कहीं के भी रहने वाले हों। हम सभी इंसान हैं। हमें ये सीखना होगा। हमें एक दूसरे को प्यार करना होगा। इसके लिए शिक्षा में काफी सुधार करने और इस दिशा में काफी काम किए जाने की जरूरत है।हिंसा से किसी समस्या का समाधान नहीं हो सकता है।"


गौरतलब है कि डलास मे दो अश्वेत युवाओं के पुलिस की गोली से मारे जाने के बाद हुए अश्वेत विरोध प्रदर्शन हिंसक हो गये जिसमे पॉच पुलिस कर्मी मारे गये और सात घायल हुए, दो शहरी भी घायल हुए।


गौरतलब है कि फिलवक्त समूचे मध्यबारत,मणिपुर और कश्मीर में यह रोजनामचा है।



--
Pl see my blogs;


Feel free -- and I request you -- to forward this newsletter to your lists and friends!

No comments:

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...

PalahBiswas On Unique Identity No1.mpg

Tweeter

Blog Archive

Welcome Friends

Election 2008

MoneyControl Watch List

Google Finance Market Summary

Einstein Quote of the Day

Phone Arena

Computor

News Reel

Cricket

CNN

Google News

Al Jazeera

BBC

France 24

Market News

NASA

National Geographic

Wild Life

NBC

Sky TV