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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Monday, July 3, 2017

घुमक्कड़ छायाकार , प्रसिद्ध यायावर कमल जोशी अपने घर में पंखे से लटके मिले,भयंकर त्रासदी हम तमाम लोगों के लिए! पलाश विश्वास

घुमक्कड़ छायाकार , प्रसिद्ध यायावर कमल जोशी अपने घर में पंखे से लटके मिले,भयंकर त्रासदी हम तमाम लोगों के लिए!

पलाश विश्वास

मन बेहद उदास था।कई दिनों से पढ़ना लिखना बंद सा है।इतना घना अंधेरा दसों दिशाओं में है कि रोशनी की कोई किरण दीख नहीं रही है।अभी अभी फेसबुक खोला तो जगमोहन रौतेला के पोस्ट से पता चला है कि घुमक्कड़ छायाकार , प्रसिद्ध यायावर कमल जोशी जी का आकस्मिक निधन आज 3 जुलाई 2017 को कोटद्वार में हो गया है , वे अपने घर में पंखे से लटके मिले !

हम जिस कमल जोशी को जानते पहचानते हैं,उसके ऐसे दुःखद अंत की कोई आशंका कभी नहीं थी।

गिर्दा जब चले गये, वीरेनदा ने भी जब सांसें तोड़ी,तो इस आशंकित अंत के लिए हम लंबे अरसे से तैयार थे।लेकिन इस हादसे के मुखातिब हो सकने की कोई तैयारी नहीं थी।

पर्यावरण का मुद्दा जन प्रतिरोध का एक मात्र रास्ता है और इस सिलसिले में मैं सविता के साथ 2014 में देहरादून गया था। हमारे आदरणीय मित्र राजीव नयन बहुगुणा हमारे मेजबान थे और चूंकि हमें उनके पिता सुंदर लाल बहुगुणा से मिलना था तो राजीव दाज्यू से ही ठहरने के इंतजाम के लिए कहा था।

कोलकाता से रवानगी से पहले कोटद्वार में कमल दाज्यू को फोन कर दिया था कि आ जाओ,देहरादून। अरसे से नहीं मिले।

इससे करीब दस साल पहले सविता और मैं दिल्ली में बीमार ताउजी को देखने के बाद उधम सिंह नगर में अपने गांव बसंतीपुर के रास्ते  बिजनौर में सविता के मायके में ठहरे थे और कमल दाज्यू का आदेश हुआ था, कोटद्वार आ जाओ।हम रवाना होने ही वाले थे कि दिल्ली से भाई ने ताउजी के निधन का समाचार दिया।उऩका पार्थिव शरीर दिल्ली से बसंतीपुर रवाना हो चुका था,तो हम तब कोद्वार जा नहीं सके थे।फिर कभी कोटद्वार जाना नहीं हो सका।सचमुच,हिमालय से कोलकाता की दूरी बहुत ज्यादा है और हम अब भी कोटद्वार पहुंच नहीं सकते।

सविता ने उन्हें देखा तक नहीं था।हम नैनीताल जब भी हम गये, कमल जोशी आगे पीछे निकलते रहे थे।

राजीव नयन दाज्यू और किशोरी उपाध्याय ने गोलकुंडा हाउस में हमारे ठहरने का इंतजाम किया।

रात को दस बजे के करीब भारी बारिश के बीच कमल जोशी हाजिर हो गये।कहा कि राजस्थान के लिए ट्रेन पकड़नी है।

हमने कहा कि कैसे यहां तक पहुंचे।बोले किसी की बाइक ले आया हूं।देर रात तक खूब गप्पे हुईं,,पुराने दिन और पुराने साथियों को याद किया।

सविता से कमल दाज्यू की यह पहली और आखिरी मुलाकात थी।

वे जाने लगे तो मैंने यूंही पूछ लिया, इतने बरस हो गये,  इतने बड़े फोटोकार हो,तुमने हमारी कोई तस्वीर नहीं खींची और आज भी कैमरा लेकर नहीं आये।

गर्मजोशी के साथ कमल जोशी बोले,फिर मिलेंगे न,तभी खींचेंगे फोटो।

हमारी कोई तस्वीर खींचे बिना हमारे सबसे प्रिय फोटो कलाकार इस तरह चले गये,यह भी यकीन करना होगा।

विपिन चचा,निर्मल जोशी,निर्मल पांडे का निधन भी असमय हुआ और झटका भी तगड़ा लगा लेकिन उऩमें से किसी ने इसतरह खुदकशी नहीं की थी।

हमारे प्रिय कवि गोरख पांडेय ने भी खुदकशी की थी और हम सभी कमोबेश यह जानते थे कि किन कारणों से ,किन परिस्थितियों में उन्होंने खुदकशी की।

कमल दाज्यू के इस तरह पंखे से लटक जाने की कोई वजह समझ में नहीं आ रही है।

हम जब एमए कर रहे थे,तो कमल जोशी रसायन शास्त्र में शोध कर रहे थे।यूं तो वे शेखर दाज्यू और उमा भाभी के दोस्त थे, लेकिन हम लोगों से दोस्ती करने में उन्होंने कोई देर नहीं लगायी। डीएसबी के कैमिस्ट्री लैब में वे हमेशा दूध चीनी रखते थे।

सर्दी की वजह से हम नैनीताल में गुड़ के साथ चाय पीते थे।लेकिन कैमिस्ट्री लैब में कमल जोशी बीकर को बर्नर पर रखकर चाय बनाते थे और वह चाय हम परखनली में पीते थे।

ऐसी चाय फिर हमने जिंदगी भर नहीं पी।

गिरदा बेहद मस्त और मनमौजी थे।

कमल जोशी की तुलना उन्हीं से की जा सकती है।

दोनों खालिस कलाकार थे।

दोनों पहाड़ का चप्पा चप्पा जानते थे।

फिरभी गिरदा को नापसंद करने वाले लोग कम नहीं थे।लेकिन कमल जोशी को नापसंदकरने वाला कोई शख्स मुझे आज तक नहीं मिला।

अपनी सोच, अपनी सक्रियता और अपनी समझ में भी कमल दाज्यू की तुलना सिर्फ गिर्दा से की जा सकती है।

बरसों पहले उनके पिता घर से निकलकर लापता हो गये और कभी नहीं लौटे।पहाड़ को छानते रहने के बावजूद कमल जोशी की उनसे दोबारा मुलाकात हुई नहीं।

वे नैनीताल छोड़ने के बाद पूरी तरह यायावरी जीवन जी रहे थे और उनकी हर तस्वीर में मुकम्मल पहाड़ नजर आता था।

दुर्गम पहाड़ों के पहाड़ से भी मुश्किल जिंदगी गुजर बसर करने वालों के साथ वे एकात्म हो गये थे।

उनके ख्वाबों,उनकी आकांक्षाओं और उनके संघर्षों के वो जैसे अपने चित्रों में सहेज रहे थे,उन्हें देखकर हम अंदाजा लगाया करते थे कि बंगाल की भुखमरी में चित्र कला मार्फत इतिहास लिखने वाले सोमनाथ होड़ और चित्तप्रसाद जैसे लोग किस तरह चित्र बनाते होंगे।

दिशाएं खोने की वजह से ही शायद ऐसा विक्लप चुनने की सोची होगी कमल दाज्यू ने।

दिशाएं हम लोगों ने भी खो दी हैं।

अब नहीं मालूम कब कहां से इस तरह की खबरें हमारा इंतजार कर रही हैं और पता नहीं ,दिशाएं खो देने की स्थिति में हममें से कितने लोग इस तरह की त्रासदी से अपना जीवन का अंत कर देंगे।

जगमोहन रौतेला ने लिखा हैः

 

 

*** दुखद खबर ****

..............................

बड़े दुख और पीड़ा के साथ सूचित करना पड़ रहा है कि घुमक्कड़ छायाकार , प्रसिद्ध यायावर कमल जोशी जी का आकस्मिक निधन आज 3 जुलाई 2017 को कोटद्वार में हो गया है . वे अपने घर में पंखे से लटके मिले ! एक घुमक्कड़ , यायावर , पहाड़ को बहुत ही नजदीक से जानने समझने , उसके लिए हमेशा चिंतित रहने वाले व्यक्ति का यूँ अचानक से चला जाना बहुत ही पीड़ादायक है . कल ही उन्होंने देर रात को इतिहासकार डॉ. शेखर पाठक से फोन पर बात की थी . पर कहीं से भी कोई तनाव उनकी बातों में नहीं था . फिर अचानक आज क्या हो गया ? किसी की समझ में कुछ नहीं आ रहा है .

ये क्या किया कमल दा आपने ? क्या कोई भी ऐसा नहीं था जिसे आप अपने मन की कह सकते थे ? क्या इतने सारे मित्रों व शुभचिंतकों के बाद भी आप इतने अकेले थे ? जो पूरे उत्तराखण्ड में हमेशा घुमक्कड़ी करता रहता हो , वह इतना अकेला , बेबस कैसे हो सकता है कमल दा ! क्या कहूँ ? क्या लिखूँ ? समझ नहीं आ रहा है . आप हमेशा याद आवोगे कमल दा !

अलविदा कमल दा ! अलविदा !! और क्या कहूँ ? आखिरी विदाई तो मन मारकर देनी ही पड़ेगी ना आपको !


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