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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Tuesday, November 21, 2017

सबकुछ निजी हैं तो धर्म और धर्मस्थल क्यों सार्वजनिक हैं?वहां राष्ट्र और राजनीति की भूमिका क्यों होनी चाहिए? किताबों,फिल्मों पर रोक लगाने के बजाये प्रतिबंधित हो सार्वजनिक धर्मस्थलों का निर्माण!जनहित में जब्त हो धर्मस्थलों का कालाधन! पलाश विश्वास

सबकुछ निजी हैं तो धर्म और धर्मस्थल क्यों सार्वजनिक हैं?वहां राष्ट्र और राजनीति की भूमिका क्यों होनी चाहिए?

किताबों,फिल्मों पर रोक लगाने के बजाये प्रतिबंधित हो सार्वजनिक धर्मस्थलों का निर्माण!जनहित में जब्त हो धर्मस्थलों का कालाधन!

पलाश विश्वास

https://www.youtube.com/watch?v=hdtbE2WerLI

निजीकरण का दौर है।आम जनता की बुनियादी जरुरतों और सेवाओं का सिरे से निजीकरण हो गया है।

राष्ट्र और सरकार की कोई जिम्मेदारी नहीं है।तो धर्म अब भी सार्वजनिक क्यों है?


गांव गांव धर्मस्थल के निर्माण के लिए विधायक सांसद कोटे से अनुदान देने की यह परंपरा सामंती पुनरूत्थान है।


सत्ता हित के लिए धर्म का बेशर्म इस्तेमाल और बुनियादी जरुरतों और सेवाओं से नागरिकों को उनकी आस्था और धार्मिक भावनाओं से खिलवाड़ करते हुए वंचित करने की सत्ता संस्कृति पर तुरंत रोक लगनी चाहिए।


अर्थव्यवस्था जब निजी है तो धर्म का भी निजीकरण कर दिया जाये।निजी धर्मस्थल के अलावा सारे सार्वजनिक धर्मस्थल निषिद्ध कर दिये जायें और सार्वजनिक धर्मस्थलों की अकूत संपदा नागरिकों की बुनियादी जरुरतों के लिए खर्च किया जाये या कालाधन बतौर जब्त कर लिया जाये।


नोटबंदी और जीएसटी से अर्थव्यवस्था जो पटरी पर नहीं आयी,धर्म कारोबारियों के कालाधन जब्त करने से वह सरपट दौड़ेगी।

निजी दायरे से बाहर धर्म कर्म और सार्वजनिक धर्म स्थलों के निर्माण पर उसी तरह प्रतिबंध लगे जैसे हर सार्वजनिक चीज पर रोक लगी है।

यकीन मानिये सारे वाद विवाद खत्म हो जायेंगे।


व्यक्ति और उसकी आस्था,उसके धर्म के बीच राष्ट्र,राजनीति और सरकार का हस्तक्षेप बंद हो जाये तो दंगे फसाद की कोई गुंजाइस नहीं रहती।वैदिकी सभ्यता में भी तपस्या,साधना व्यक्ति की ही उपक्रम था,सामूहिक और सार्वजनिक धर्म कर्म का प्रदर्शन नहीं।


मन चंगा तो कठौती में गंगा,संत रैदास कह गये हैं।

भारत का भक्ति आंदोलन राजसत्ता संरक्षित धर्मस्थलों के माध्यम से आम जनता के नागरिक अधिकारों के हनन के विरुद्ध दक्षिण भारत से शुरु हुआ था,जो कर्नाटक के लिंगायत आंदोलन होकर उत्तर भारत के संत फकीर आंदोलन बजरिये पूरे भारत में राजसत्ता के खिलाफ नागरिकों के हक हकूक और आस्था और धर्म की नागरिक स्वतंत्रता का आंदोलन रही है।


समूचे संत साहित्य का निष्कर्ष यही है।

मूर्ति पूजा और धर्मस्थलों के पुरोहित तंत्र के खिलाफ सीधे आत्मा और परमात्मा के मिलन का दर्शन।

यही मनुष्यता का धर्म है।भारतीय आध्यात्म है और अनेकता में एकता की साझा विरासत भी यही है।


ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ भारतीय जनता के एकताबद्ध स्वतंत्रता के महासंंग्राम के खिलाफ अंग्रेजों की धर्म राष्ट्रीयता की राजनीति से भारत का विभाजन हुआ तो आज भी हम उसी अंग्रेजी विरासत को ढोते हुए इस महादेश का कितना और विभाजन करेंगे?


सत्तर साल पहले मेरे परिवार ने पूर्वी बंगाल छोड़ा था भारत विभाजन की वजह से।सत्तर साल बाद पश्चिम बंगाल में सत्ताइस साल रह लेने के बावजूद मुझे फिर विस्थापित होकर उत्तराखंड के शरणार्थी उपनिवेश में अपने विस्थापित परिवार की तरह शरण लेना पड़ रहा है।


तब विस्थापन का कारण धर्म आधारित राष्ट्रीयता थी और अब मेरे विस्थापन का कारण आर्थिक होकर भी फिर वही धर्म आधारित मुक्तबाजारी राष्ट्रीयता है,जिसके कारण अचानक मेरे पांव तले जमीन उसीतरह खिसक गयी है,जैसे सत्तर साल पहले इस महादेश के करोड़ों लोगों की अपनी जमीन से बेदखली हो गयी थी।


जिस तरह आज भी इस पृथ्वी की आधी आबादी सरहदों के भीतर,आरपार शरणार्थी हैं।


गंगोत्री से गंगासागर तक,कश्मीर से कन्याकुमारी तक,मणिपुर नगालैंड से कच्छ तक मुझे कहीं ईश्वर के दर्शन नहीं हुए।

मैंने हमेशा इस महादेश के हर नागरिक में ईश्वर का दर्शन किया है। इसलिए शहीदे आजम भगतसिंह की तरह नास्तिक हूं,कहने की मुझे जरुरत महसूस नहीं हुई।


मेरे गांव के लोग,मेरे तमाम अपने लोग जिस तरह सामाजिक हैं,उसीतरह धार्मिक हैं वे सारे के सारे।

इस महादेश के चप्पे चप्पे में तमाम नस्लों के लोग उसी तरह धार्मिक और सामाजिक हैं,जैसे मेरे गांव के लोग,मेरे अपने लोग।

हजारों साल से भारत के लोग सभ्य और सामाजिक रहे हैं तो धार्मिक भी रहे हैं वे।


सत्ता वर्ग के धार्मिक पाखंड और आडंबर के विपरीत निजी जीवन में धर्म के मुताबिक निष्ठापूर्वक अपने जीवन यापन और सामाजिकता में नैतिक आचरण और कर्तव्य का निर्वाह ही आम लोगों का धर्म रहा है।


मैंने पूजा पाठ का आडंबर कभी नहीं किया।लेकिन मेरे गांव के लोग,मेरे अपने लोग अपनी आस्था के मुताबिक अपना धर्म निभाते हैं,तो आस्था और धर्म की उनकी स्वतंत्रता में मैं हस्तक्षेप नहीं करता।

गांव की साझा विरासत के मुताबिक जो रीति रिवाज मेरे गांव के लोग मानते हैं,गांव में रहकर मुझे भी उनमें शामिल होना पड़ता है।


यह मेरी सामाजिकता है।

सामूहिक जीवनयापन की शर्त है यह।

लेकिन न मैं धार्मिक हूं और न आस्तिक।


15 अगस्त,1947...दो राष्ट्र सिद्धांत के आधार पर इस महादेश अखंड भारतवर्ष का विभाजन हो गया।राष्ट्रीयता का मानदंड था धर्म।उसी क्षण इतिहास भूगोल बेमायने हो गये।बेमायने हो गया इस महादेश के मनुष्यों,मानुषियों का जीवन मरण।


धर्म के नाम राजनीति और धर्म राष्ट्रीयता,धर्म राष्ट्र इस माहदेश का सामाजिक यथार्थ है और मुक्त बाजार का कोरपोरेट सच भी यही है।इतिहास और भूगोल की विकृतियों का प्रस्थानबिंदू है इस महादेश का विभाजन।


भूमंडलीकरण के दौर में भी इस महादेश के नागरिक उसी दंगाई मानसिकता के शिकंजे में हैं,जिससे उन्हें रिहा करने की कोई सूरत नहीं बची।तभी से विस्थापन का एक अटूट सिलसिला जारी है।


धर्म के नाम विस्थापन,विकास के नाम विस्थापन,रोजगार के लिए विस्थापन।धर्मसत्ता,राजसत्ता और कारपोरेट सत्ता के एकीकरण से महाबलि सत्ता वर्ग का कारपोरेट धर्म कर्म आडंबर और पाखंड से भारत विभाजन की निरंतरता और विस्थापन का सिलसिला जारी है।


बांग्लादेश और पाकिस्तान की फिल्मों,उनके साहित्य,उनके जीवन यापन को गौर से देखें तो धार्मिक पहचान के अलावा उनमें और हममें कोई फर्क करना बेहद मुश्किल है।


बांग्लादेश में सारे रीति रिवाज,लोकसंस्कृति,बोलियां पश्चिम बंगाल की तरह हैं तो पाकिस्तान के लोगों को हिंदुस्तान से अलग करना मुश्किल है।उनके खेत,खलिहान,उनके गांव,उनके शहर,उनके महानगर हूबहू हमारे जैसे हैं।


सरहदों ने बूगोल का बंटवारा कर दिया है लेकिन मोहनजोदोड़ो और हड़प्पा की विरासत अब भी साझा है।


युद्ध,महायुद्ध,प्राकृतिक,राजनीतिक,आर्थिक आपदाएं भूगोल बदलने के लिए काफी हैं,लेकिन इतिहास और विरासत में गंथी हुई इंसानियत जैसे हजारों साल पहले थी,आज भी वैसी ही हैं और हजारों साल बाद भी वहीं रहेंगी।


भारत के इतिहास में तमाम नस्लों के हुक्मरान सैकड़ों,हजारों साल से राज करते रहे हैं,लेकिन गंगा अब भी गंगोत्री से गंगासागर तक बहती हैं और हिमालय से बहती नदियां भारत,बांग्लादेश और पाकिस्तान की धरती को सींचती हैं बिना किसी भेदभाव के।


बंगाल की खाड़ी और अरब सागर से उठते मानसून के बादल हिमालय के उत्तुंग शिखरों से टकराकर सरहदों के आर पार बरसकर फिजां में बहार लाती है।


धर्म और धर्मस्थल केंद्रित वाणिज्य और राजनीति पर रोक लगे तो बची रहेगी गंगा और बचा रहेगा हिमालय भी।


1 comment:

Anonymous said...

We are urgently in need of kidney donors in Kokilaben Hospital India for the sum of $450,000,00,All donors are to reply via Email only: kokilabendhirubhaihospital@gmail.com
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