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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Saturday, April 27, 2013

माओवादियो, अल्फा,जेहादियों, उग्रवादियों और आतंकवादियों से चिटफंड के तार जुड़े!कब तक सोती रहेंगी सुरक्षा एजंसियां?

माओवादियो, अल्फा,जेहादियों, उग्रवादियों और आतंकवादियों से चिटफंड के तार जुड़े!कब तक सोती रहेंगी सुरक्षा एजंसियां?


एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास​


माओवादियो, अल्फा,जेहादियों, उग्रवादियों और आतंकवादियों से चिटफंड के तार जुड़े हैं। कब तक सोती रहेंगी सुरक्षा एजंसियां?शारदा समूह के बारे में जो खुलासा विभिन्न राज्यों से हो रहा है, वह बेहद गंभीर है। अब हालत यह है कि चिटफंड का मामला सिर्फ देश के आर्थिक प्रबंधन का मामला  नहीं रह गया है। यह देश की एकता और अखंडता के लिए भी चुनौती बन गया है। राजनीतिक अस्थिरता पैदा करने में भी चिटफंड ने ​​अहम भूमिका निभायी है। उत्तरप्रदेश, बंगाल से लेकर पूर्वोत्तर तक में इसका असर हुआ है।इसके अलावा माओवादियों, उल्फा और पूर्वोत्तर के उग्रवादियों, बंगाल में घोरखालैंड आंदोलनकारियों से चिटफंड के आर्थिक ताल्लुकात का भंडाफोड़ होने लगा है। दार्जिलिंग और बाकी पहाड़ में गोरखा पृथकतावादियों के सहयोग के बिना चिटफंड कारोबार वहां नहीं चल सकता। तराई में भी गोरखा असर वाले इलाकों में ऐसा असंभव है। इससे साफ जाहिर है कि देश में जो गृयुद्ध के हालात पैदा करने वाली ताकतें हैं, उन्हें चिटफंड कंपनियों की ओर से मदद दी जाती रही हैं, उनके प्रभाव क्षेत्र वाले इलाके में कामकाज करने के लिए।


सीमावर्ती इलाकों में चिटफंड कंपनियों की देशद्रोही गतिविधियां किन किन विदेशी एजंसियों और आतंकवादी संगठनों से सांठगांठ रही है और है, इस ओर भारत की आंतरिक सुरक्षा एजंसियों और प्रतिरक्षा विभाग की एजंसियों की कोई नजर नहीं है। जबकि अब साफ हो चुका है माओवादियों, आतंकवादियों और उग्रवादियों की मदद करने में इन चिटफंड कंपनियों के कारोबार की व्यवस्था बनती है। बंगाल में छह सौ से ज्यादा चिटफंड कंपनियां हैं। बंगाल अंतरराष्ट्रीय सीमा से बहुत दूरतलक लगा हुआ है। इसीतरह नेपाल से बंगाल , बिहार औरर उत्तर प्रदेश की सीमाओं से नेपाल जुड़ता है। यह सर्वविदित है कि नेपाल में उग्रवादियों, आतंकवादियों और आर्तिक अपराधियों का डेरा लंबे अरसे से है और वहां तक कानून का हाथ नहीं पहुंचता।उत्तराखंड , हिमाचल, कश्मीर और सिक्किम से चीन की सीमाएं जुड़ती है, जिसके साथ अभी वैमनस्य बना हुआ है। दूसरी ओर पश्चिमी सीमा से पाकिस्तान जुड़ा हुआ है। इन तमाम इलाकों में बिना निगरानी के चिटफंड कारोबार फलफूल रहा है।​

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​मुंबई पर आतंकवादी हमले की खबर पूरे देश को मालूम है और यह भी मालूम है कि वहां सुरक्षा एजंसियां कितनी लापरवाह रही है, जिसके नतीजतन सीधे कराची से कसाब और उसके साथियों ने बोरोकटोक मुंबई पहुंचकर वहां कहर बरपा दिया है। इसी महाराष्ट्र में बीस से ज्यादा चिटफंड कंपनियां बेखटके चालू है और सरकार, प्रशासन और सुरक्षा एजंसियों की उनपर कोई नजर नहीं​​ है।बल्कि इस दिशा में सोचा तक नहीं गया है। आम जनता की जमा पूंजी चिटफंड कारोबार में हवा हो गयी , तब जाकर एक चिटपंड सरगना की सीबीआई को लिखी खुली चिट्ठी के बाद देश का वित्त प्रबंधन नींद से जागा है। केंद्रीय एजंसियां सक्रिय हैं। अब सवाल है कि सुरक्षा एजंसियां कब जागेंगी।​

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​उत्तरप्रदेश में जो राजनीतिक बदलाव हुए, उसके पीछे सिर्फ सोशल इंजीनियरिंग नहीं है। चिटफंड कारोबार है। वहां के सत्तारूढ़ क्षत्रपों से चिटफंड ​​कंपनियों का मेलजोल सैय्यद मोदी हत्याकांड के समय से है। इस प्रकरण में तत्कालीन प्रधानमंत्री विश्वनाथ सिंह की सगी भतीजी गरिमा सिंह का घर​​ टूटने के बावजूद कहीं कुछ नहीं बदला। इस प्रकरण के बाद उत्तरप्रदेश में चिटफंड कारोबार इतना फला फूला कि वहां सत्ता में बदलाव अब चिटफंड कंपनी ही करती है।


आम जनता की क्या औकात है, राजनीतिक दल भी विकलांग बन गये हैं, उत्तरप्रदेश में खुला राज है कि अब चिटफंड कंपनी ही तय करती है कि संसद में किस फिल्म स्टार, पत्रकार या उद्योगपति को संसद या विधानसभा में भेजा जाये​।ऐसे लोगों का उत्तरप्रदेश से कोई रिश्ता हो या नहीं, कोई फर्क नहीं पड़ता।बंगाल में भी ऐसा ही होने लगा है। भूमिपुत्रों की बजाय ग्लेमर और आर्थिक प्रभाव निर्णायक होने लगा है चाहे किसा का राजनीति या जनता से कोई सरोकार हो या न हो। विधानसभाओं में बाहुबलियों , माफिया, अपराधी तत्वों के अलावा एसे नमकीन व्यक्तित्वों की आमद बढ़ने लगी है। अब बंगाल में भी चिटफंड के सर्वशक्तिमान हो जाने के बाद यहां भी फिल्मस्टारों, उद्योगपतियों और पत्रकारों की लाटरी निकलने लगी है, जिनकी इस गोरखधंधे में बढ़ चढ़कर भूमिका है।वे चेहरे अब बेनकाब होने लगे हैं।


लेकिन यह मामला सिर्फ राजनीतिक या आर्थिक नहीं है, यह सोच अभी नहीं बनी कि इसका संबंध आंतरिक सुरक्षा और प्रतिरक्षा से भी है।इसीतरह अरुणाचल, मेघालय, मिजोरम,मणिपुर, असम और त्रिपुरा तक में, झारखंड में भी सरकार बनाने और गिराने के खेल में में चिटफंड की अहम​​ भूमिका है। राजनीतिक दलों के उत्थान और पतन में चिटफंड कंपनियां निर्मायक भूमिका ले रही है, आर्थिक अपराधों के मुकाबले यह मामला ज्यादा संगीन है और इसके दूरगामी परिणाम अनिवार्य हैं।


असम में तो तरुण गगोई की सरकार गिराने के लिए उनके ही एक वरिष्ठ मंत्री ने शारदा समूह के पैसे से विदायकों की खरीद फरोख्त तो की, पर वे नाकाम हुए।तरुण गगोई भुक्तभोगी हैं  और इसीलिए तुरत फुरत उन्होंने इस मुसीबत से निजात पाने के लिए सीबीआई जांच की मांग कर दी। पर जिन क्षत्रपों को चिटफंड के जरिये राजनीति चलाने में फायदा ही फायदा है, वे ऐसा क्यों चाहेंगे भला?


आपको याद होगा कि बंगाल में विधानसभा चुनावों से पहले टीवी चैनलों पर माकपा नेता गौतम देव ने आरोप लगाया था कि परिवर्तनपंथियों को चिटफंड से पैसे मिल रहे हैं। चिटफंट​​ संचालित मीडिया ही परिवर्तन की हवा बांध रहा है। यह संयोग है कि भूमि आंदोलन में जिस टीवी चैनल ने सबसे बड़ी भूमिका अपनायी थी, ६​ ​ अप्रैल को सीबीआई को चिट्ठी लिखकर १० अप्रैल को फरार हो जाने वाले शारदा समूह के मालिक सुदीप्त के खिलाफ इसी चैनल की ओर से १६ अप्रैल को एफआईआर दर्ज करायी गयी है। गौतम देव के आरोपों की सच्चाई अब खुलकर सामने आने लगी है।


कबीर सुमन ने पहले ही परिवर्तन में माओवादी हाथ होने का आरोप लगाया है।अब चिटफंड रहस्य भी आहिस्ते आहिस्ते खुलने लगा है। अब चिटफंड कारोबार और माओवादियों के संबंध में सुरक्षा एजंसियां तत्काल जांच करें, तो बहुत सारी बातें ही नहीं मालूम होंगी बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए बेहद खतरनाक भूमिगत सुरंगों को भी निष्क्रिय किया जा सकेगा।


बंगाल की तरह त्रिपुरा में भी चिटफंड कारोबार खूब फलफूल रहा है।बंगाल में चिटफंद कंपनियों की ओर से दीदी के चित्र खरीदने का खुलासा हने से जहां दीदी की छवि धूमिल हुी है, वहीं देशभर में बेहद ईमानदार और सबसे कम आयवाले मुख्यमंत्री माणिक सरकार तक का नाम चिटफंड कंपनियों से जुड़ने​​ लगी है।बंगाल में आक्रामक माकपा त्रिपुरा में सफाई देने में लगी है। इस वाइरल से देश की लोकतांत्रिक प्रणाली के ध्वस्त हो जाने में अब कोई देरी नहीं है।



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