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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Saturday, August 3, 2013

कृपया हमें लतियाइये मत। वैसे भी हम लतखोर की जमात में तब्दील हैं!

कृपया हमें लतियाइये मत। वैसे भी हम लतखोर की जमात में तब्दील हैं!


पलाश विश्वास


हम लोग पिछले दशक भर बायोमेट्रिक डिजीटल नागरिकता के कारपोरेट असंवैधानिक उपक्रम का विराध करते रहे हैं। अपने अपने तरीके से जनजागरण करते रहे हैं। लेकिन इस देश की कारपोरेट सरकार ने तमाम नागरिक सेवाओं से लेकर वेतन, स्कूल ,अस्पताल और बैंकिंग तक को गैरकानूनी ढग से जोड़कर हर नागरिक की निजता और संप्रभुता का जो वधस्थल बना दिया है भारतवर्ष को, उसमें हर नागरिक कितना असहाय है, उसका ज्लंत उदाहरण राजधानी दिल्ली के सर्वज्ञ और सर्वशक्तिमान पत्रकारों के लिए आयोजित आधार शिविर है। इस योजना का सदर्भ यह है कि बंगाल में नौ करोड़ लोगों में से सिर्फ 78 लाख लोगों को आधार कार्ड मिला है और बाकी तमाम नागरिक हमें सहित निराधार है। राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टकर का बायोमेट्रिक चरण अभी देश के अनेकह हिस्सों में शुरु ही नहीं हुआ है। कारपोरेट कंपनियां नागरिकों की पुतलियां और उंगलियों की छाप सहेज रहे हैं। भारत अब इजराइल और अमेरिका की अगुवाई में पारमाणविक सैन्य गठजोड़ में है और आतंक के विरुद्द युद्द में साझेदार भी। ऊपर से प्रिज्म की छतरी है। इस पर देश व्यापी बेदखली का अभियान। निजता का उल्लंघन जो हुआ सो हुआ, लेकिन इस तरह कारपोरेट समूहों को उंगलियों की छाप और पुतलियों की छवि देने के और भी खतरे हैं। साइबर हैकिंग के जमाने में तथ्य किसी के भी हाथ लग सकते हैं और उसके बाद क्या क्या हो सकता है, देस के कोने कोने में उसके अजब गजब किस्सों का खुलासा करने में अपने इन्ही पत्रकार बंधुओं की कोई सानी नहीं है। सबको बाकी नागरिकों से कुछ ज्यादा ही जानकारी होगी। इतनी जानकारी कि हम उन्हें संबोधित करने की हिम्मत भी नहीं कर सकते। पर चूंकि जीवन सिद्धांतों से नहीं चलता, चूंकि बाकी साठ करोड़ को नदंन निलेकणि ने भले ही हाशिये पर डाल दिया है, कोई अपनी नागरिकता और अनिवार्य बुनियादी सेवाएं स्थगित करने का जोखिम उठा नहीं सकता, इसलिए पत्रकार लोग भी जान बूझकर जहर पीने को आमादा है।




हमारे तेज तर्रार युवा मित्र अभिषेक इन्हें कूपमंडूक बता रहे हैं। यह सरासर अन्याय है। कूपमंडुक होते तो सत्ता संघर्ष में हमारे लोग इतने निर्णायक नहीं होते। रोज ये ही लोग देश दुनिया कीखबरे अपडेट करते हैं। सूचना हवाई मार्ग पर अबाध हैं उनकी यात्राएं। वे तो बस अपनी नागरिक सेवाएं बबहाल रखने की इन्सानी जज्बात से मजबूर हैं।बाकी लोग भी आधार कार्ड झट से झटक लेने के फिराक में ही हैं। अपना जुगाड़ किसी तरह बन जाये, बाकी जाये भाड़ में, कुल मिलाकर यही भावना है। हरित क्रांति में इस देश के किसानों ने भी इसीतरह खेती की पद्धति बदलकर समृद्धि की आकांक्षा की थी। नतीजा जो सामने है, उसपर हमारे ही पत्रकार मित्रों पी साईनाथ और जयदीप हार्डीकर और दूसरे तमाम लोगों ने लगातार लिखा है।लेकिन हममें से ज्यादातर वर्चस्ववादियों के साथ खड़े हैं और खुले बाजार के कार्निवाल में पांचसितारा झांकी में शामिल हैं।


अभिषेक बाबू, आप नाहक नाराज होते हैं। इधर हम मजीठिया के िइंतजार में रिटायर होते होते मरे जा रहे हैंऔर रिटायर होने के बाद भी हमारे सातियों की आत्मा अतृप्त है। पेंशन दो ढाई हजार से ज्यादा मिलने को है नहीं। जो वेतनमान पर हैं , उनकी यह दशा है। जो ठेके पर हैं, कुछ दिग्गजों को ठोड़कर उनकी ौर करुण दशा है। बंधुा मजदूरी भी न ठीक मिलती है और न नियमित।हम तो अपनी बिरादरी की रसोई का हाल भी नहीं जानते थे। अब मीडिया पर सोशल मीडिया की रोशनी हो जाने से अपनी दुनिया में हम ताकझांक कर रहे हैं। किसी तरह बटोरकर घर चलाने की क्या न करा लें। इस पर गुस्सा नहीं, करुणा होनी चाहिए। बड़े बड़े मामले टी ब्रेक और काफी ब्रेक में सलट जाते हैं, लेकिन मजीठिया रपट न हुई द्रोपदी की साड़ी है। खुलती ही जा रही है। कोई कृष्ण पत्रकारिता को निर्वस्त्र होने से बचा नही सकता। हमें इस बात से भी कोई फर्क नहीं पड़ा कि संपादक नामक जीव अब विलुप्त प्रजाति है और हम जूट मिल मैनेजरों के मातहत काम करने लगे हैं। हमारा सृजन कही दिकता नहीं है। हम अपनी पहचान खो चुके हैं। अब बायोमेट्रक ही सही, डिजिटल ही सही,कोई पहचान जो मिल रही है उसपर हंगामा न्यायोचित तो कतई नहीं है।कितनी आसानी से पेड न्यूज के हम भागीदार हैं, कितनी सहजता से हमारे लोग घू के डिब्बे पर लेबेल लगाते हैं और शिकायत तक नहीं करते।


पूरी पत्रकारिता पूंजी के वर्चस्ववादी मठाधीशों के हवाले थी और उसीकी हवा में गुब्बारे की तरह फूले हुए हम हवा में उड़ रहे हैं। पिछले दो दशकों में जमीन से भारतीय पत्रकारिता का कोई वास्ता नही है ौर आप उम्मीद करते हैं कि वे तमाम लोग आधार कार्ड का विरोद करेंगे, जिन्होंन अपन हाउस में न य़ूनियने बनने दीं और बनीं तो उनपर काबिज होकर प्रबंधन के हित साधे, उनसे इतनी बड़ी अपेक्षा क्यों करते हैं?


फिर अब राज्यों, जिलों तक के मीडिया घराने हो गये हैं, जहां चप्पे चप्पे पर प्रत्यक्ष विदेशी पूंजी निवेश है। विदेशी पूंजी में तली जली पत्रकारिता से हम क्या क्या उम्मीद पालने लगे हैं?


अब हमारे समाज के मूर्धन्य मेधासंपन्नों को ही लें, उनकी सारी प्रतिभा , सारी कला एक दूसरे को हद दर्जेका चूतिया साबित करने में लग रही है। हर कोई हर किसी कीधोती उतार रहा है इनदिनों। हमारे अग्रज और अगुआ, हमारे आइकन आपस में धोबी पछाड़ में लगे हैं। अखाड़े सजे हुए हैं। वहीं करतब दिखाये जा रहे हैं। किसीका किसी मुद्दे पर कोई स्टैंड है नहीं। जनसरोकार के मसलों को कोई छू नही रहा। अपनी अपनी महानता का बाजार लगा हुआ है खुले बाजार में और चूतियापे पर शोध जारी है।


चिदंबरम और मंटेक का आपरेशन, निलेकणि का एथनिक क्लीन्जिंग के प्रतिरोध के लिे जनमत तो विदेशी मीडिया बनायेगा, हम तो जनसंहार को जायज ठहराने के लिए अपनी प्रतिभा का भरपूर इस्तेमाल करते हुए कहीं से कोई पुरस्कार, कहीं से कोई बंगला, कहीं संसद की सदस्यता तो कहीं मंत्रित्व हासिल करने के मोक्ष की तलास में हैं। कुच न मिला तो कम सेकम घर तो भर लेने दो। वह भी नहीं सही तो ईमानदारी से अपनी खैर मना लने दो।


कृपया हमें लतियाइये मत। वैसे भी हम लतखोर की जमात में तब्दील हैं।



  1. नागरिकों की नागरिकता, संप्रभुता और निजता के ...

  2. strategichumanalliance.blogspot.com/2013/07/blog-post_6005.html

  3. 03-07-2013 - नागरिकों की नागरिकता, संप्रभुता और निजता के अधिकारों के हनन की नींव पर ही खुले बाजार की अंतरिक्ष छुती ... यहीं नहीं, मजदूरी, वेतन और भविष्यनिधि का भुगतान आधार योजना से अवैध तौर पर जोड़कर विलंबित या स्थगित करने का नागरिक ...

  4. ताकि घोटालों और पक्षपात, भेदभाव, बहिष्कार और ...

  5. palashupdates.blogspot.com/2012/10/blog-post_12.html

  6. 12-10-2012 - अबाध आर्थिक सुधारों के नरमेध यज्ञ बायोमैट्रिक नागरिकता के जरिये निजता और नागरिक संप्रभुता का हनन जायज है। कारपोरेट आधार कार्ड योजना के तहत नागरिकों की निगरानी जरूरी है और कारपोरेट के नख​​ दर्पण में हमारे फिंगर प्रिंट ...

  7. नागरिक और मानव अधिकार

  8. www.bahujanindia.in/index.php?option=com...id...

  9. 04-07-2013 - नागरिकों की नागरिकता, संप्रभुता और निजता के अधिकारों के हनन की नींव पर ही खुले बाजार की अंतरिक्ष छुती ... और नागरिकता से बेदखली का सबसे कारगर हथियार है गैरकानूनी कारपोरेट बायोमेट्रिक नाटो आविस्कृत आधार योजना ,जिसे ...

  10. घोटालों और पक्षपात, भेदभाव, बहिष्कार और नरसंहार ...

  11. bahujanindia.in/index.php?option=com_content...

  12. 16-10-2012 - आर्थिक सुधारों के नरमेध यज्ञ बायोमैट्रिक नागरिकता के जरिये निजता और नागरिक संप्रभुता का हनन जायज है। कारपोरेट आधार कार्ड योजना के तहत नागरिकों की निगरानी जरूरी है और कारपोरेट के नख दर्पण में हमारे फिंगर प्रिंट रखना और ...

  13. Deshbandhu : Editorial, पहचान का आधार

  14. www.deshbandhu.co.in/newsdetail/700/6/22

  15. 01-10-2010 - हर योजना की तरह इस योजना का भी विरोध करने वाले कुछ समूह व व्यक्ति हैं, जिन्हेंआधार से पारदर्शिता में कमी, निजता का हनन जैसे खतरे दिखाई दे रहे हैं। उनकी शिकायतों कासंज्ञान सरकार को लेते हुए इस योजना को अधिक से अधिक ...

  16. क्या वास्तव में आधार कार्ड - कैश सब्सिडी की जरुरत ...

  17. awazaapki.com/archives/2847

  18. 08-03-2013 - खैर मैं सिर्फ इतना समझ नहीं पाया हूँ कि इस तरह की सभी योजनाओं को आधार कार्ड से जोड़कर आनन-फानन में आधार ... फिर आधार के नाम पर एक और नया नंबर थमाने का क्या मतलब ? ... क्या यह मेरे निजता (प्राइवेसी) के अधिकार का हनन नहीं है.

  19. पहचान का अभूतपूर्व संकट! - आवाज़-ए-हिन्द

  20. aawaz-e-hind.in/showarticle/442.php

  21. 11-01-2013 - इससे व्यापक मानवाधिकार हनन का क्या मामला बनता है? अब दिल्ली में ... विशिष्ट पहचान का आधार प्रोजेक्ट दुनिया की सबसे बड़ी परियोजना है।केंद्र सरकार ने .... यों आधार-योजनाको लेकर निजता भंग होने का सवाल भी उठता रहा है। मगर इसे ...

  22. आधार योजना निजता का हनन के लिए समाचार

    1. असंवैधानिक और अलोकतांत्रिक आधार कार्ड बनवाने के लिए शिविर लगातीं कूपमंडूक पत्रकार ...

    2. Bhadas4Media ‎- 21 घंटे पहले

    3. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच ने आधार संख्‍या पंजीकरण के खिलाफ यूआईडीएआई, वित्‍त मंत्रालय और योजना ... आधार / यूआईडी को लोकतंत्र का हनन करार देते हुए प्रधानमंत्री के पास 3.57 करोड़ लोगों के दस्‍तखत का एक ज्ञापन भी जा चुका है। ... पत्रकारों से अपील: अपनी निजताबचाइए, आधार को ठुकराइए।


एफडीआई

http://hi.wikipedia.org/s/4s9e

मुक्त ज्ञानकोष विकिपीडिया से

खुदरा कारोबार में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश यानी एफडीआई को लेकर इन दिनों देश में बहस का दौर जारी है। इससे ग्राहकों, स्थानीय खुदरा कारोबारियों और खुदरा कारोबार के वैश्विक दिग्गजों के हित जुड़े हों तो बहस होना स्वाभाविक ही है। पिछले कई साल से इस पर बातचीत जारी है लेकिन 14 सितंबर 2012 को केंद्र सरकार ने भारत में इसे मंजूरी दे दी है। एफडीआई से जहां उपभोक्ताओं को तो फायदा होता ही है, वहीं बुनियादी ढांचे और अर्थव्यवस्था को भी लाभ मिलता है। देश में दूरसंचार, वाहन और बीमा क्षेत्र में एफडीआई की वजह से आई कामयाबी को हम देख ही चुके हैं। इन क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर हुए निवेश की वजह से ग्राहकों को बेहतर सेवाएं और उत्पाद नसीब हुए हैं।

मनमोहन सिंह की सरकार ने देश में विदेशी निवेश में बढ़ावा देते हुए मल्टी ब्रांड रिटेल क्षेत्र 51 फीसदी विदेश निवेश को मंजूरी दे दी। वहीं एकल ब्रांड में सौ फीसदी विदेशी निवेश को मंजूरी दे दी गई। हालांकि केंद्र सरकार ने विदेशी कंपनियों को राज्यों में प्रवेश देने का फैसला राज्य सरकारों पर छोड़ दिया है। इसके अलावा सीसीईए की बैठक में देसी एयरलाइंस कंपनियों में 49 फीसद की एफडीआई को मंजूरी दे दी गई है। विनिवेश की गाड़ी को आगे बढ़ाते हुए मंत्रिमंडल ने चार सरकारी कंपनियों में विनिवेश को हरी झंडी दे दी है। एमएमटीसी और ऑयल इंडिया में दस फीसदी, हिंदुस्तान कॉपर में 9।59 फीसदी और नाल्को में 12।5 फीसदी विनिवेश हो सकेगा। साथ ही सरकार ने ब्रॉडकास्ट मीडिया क्षेत्र में एफडीआई की सीमा बढ़ाकर 74 फीसदी कर दिया है।

भारत में खुदरा क्षेत्र में विदेशी निवेश को लेकर विशेषज्ञ पहले ही चेतावनी देते रहे हैं। रविवार के स्तंभकार जे के कर के अनुसार भारत में वर्तमान खुदरा व्यवसाय 29।50 लाख करोड़ रुपयों का है, जो देश के सकल घरेलू उत्पाद का करीब 33 प्रतिशत है। अब यदि यह हिस्सा विदेशी धन्ना सेठों के हाथ चला गया तो जितना पैसा मुनाफे के रुप में विदेश चला जाएगा, उससे देश में आयात-निर्यात का संतुलन बिगड़ना तय है। भारत में छोटे और मंझौले खुदरा दुकानों की संख्या 1 करोड़ 20 लाख के आसपास है। इन दुकानों में करीब 4 करोड़ लोगों को रोजगार मिलता है। ऐसे में सवाल पूछने का मन होता है कि अगर इन 4 करोड़ लोगों के बजाये 4 या 5 धन्ना कंपनियों को रोजगार दे दिया जाएगा तो क्या इससे देश का भला होगा ? भारत में अगर एक बार इन महाकाय कंपनियों को खुदरा के क्षेत्र में प्रवेश दे दिया गया तो ये कंपनियां दिखा देंगी कि लूट पर टिकी हुई अमानवीय व्यापार की परिभाषा क्या होती है ! इन दुकानों के सस्ते माल और तरह-तरह के लुभावने स्कीम के कारण भारतीय दुकानों को अपना बोरिया-बिस्तर समेटना पड़ जाएगा। जब इन कंपनियों का एकाधिकार कायम हो जाएगा, उसके बाद ये अपने असली रुप को सामने लाएंगी।


प्रिंट व प्रसारण मीडिया में एफडीआई पर सूचना प्रसारण मंत्रालय ने ट्राई व प्रेस परिषद् से सुझाव मांगे


केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (Telecom Regulatory Authority of India, TRAI) तथा भारतीय प्रेस परिषद् (Press Council of India, PCI) से देश के क्रमश: प्रसारण एवं प्रिंट मीडिया संस्थानों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की उच्चतम सीमा निर्धारित करने से संबंधित सुझाव मांगे. मंत्रालय ने इससे संबंधित निर्देश 15 जुलाई 2013 को जारी किये. साथ ही, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने वाणिज्य मंत्रालय के औद्योगिक नीति एवं संवर्धन विभाग (Department of Industrial Policy & Promotion, DIPP) से किसी नई अधिसूचना के आने तक प्रसारण एवं प्रिंट दोनो ही माध्यमों की मीडिया संस्थानों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की वर्तमान सीमा को ही यथावत रखने का आग्रह किया. विदित हो की समाचार प्रसार संस्थाओं में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की सीमा को लेकर काफी चर्चाएं होती रही हैं. इससे पहले आर्थिक मामलों के सचिव अरविंद मायाराम की अध्यक्षता में गठित समिति ने प्रिंट मीडिया में एफडीआई की सीमा को वर्तमान के 26 फीसदी से बढ़ाकर 49 फीसदी करने की सिफारिश की थी. समिति ने एफएम रेडियो, समाचार तथा करेंट अफेयर्स चैनलों में भी एफडीआई की सीमा बढ़ाकर 49 फीसदी करने की सिफारिश की थी.


INS votes overwhelmingly in favour of raising FDI cap in Print Media to 49%

At the Executive Committee Meeting of INS held on July 29, called at the request of the Ministry of Information & Broadcasting, 22 of the 31 board members voted in favour of the higher FDI limit   

BestMediaInfo Bureau | Delhi | July 31, 2013At an Executive Committee Meeting (ECM) of the INS (Indian Newspaper Society) held on Monday, July 29, 2013, an overwhelming majority of the board members present voted in favour of enhancing the FDI limit in Print Media from 26 per cent to 49 per cent.

It is reliably learnt that of the 31 board members present, 22 voted in favour of raising the FDI limit to 49 per cent, seven voted against, while two abstained from voting. Most of the large media houses present at the ECM voted in favour of the higher FDI limit, it is leant.

The Ministry of Information & Broadcasting (MIB), which has begun the process of holding discussions with stakeholders on the subject of FDI in Print Media, had invited INS, through a letter dated June 27, 2013,  to attend a meeting on June 29, 2103, called by the I&B Minister. In response, INS pointed out that a two-day notice was too short for INS to carry out any purposeful consultations amongst its member publications and arrive at the industry point of view on an important subject such as FDI in print media.

INS had sought 30 days' time for holding wider consultations. Accordingly, the ECM was held on July 29 in New Delhi.

The Print Media business in India in the last few decades has grown exponentially and the prospects of further growth in the corning years are enormous. To sustain this growth, print media companies need an inflow of funds to expand and reach every comer of India. In this context, there is an urgent need for enhancing the FDI cap in print media from the existing 26 per cent to 49 per cent.

Info@BestMediaInfo.com



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