Total Pageviews

THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

Twitter

Follow palashbiswaskl on Twitter

Sunday, August 4, 2013

आज वीरेन दा का जन्‍मदिन है। वे छासठ बरस के हो गये। आपने पढ़ी होगी, फिर भी आज उनकी दो कविताएं आपलोगों को पढ़ाने का जी चाहता है...

वीरेन डंगवाल को पहली बार दरभंगा में देखा था और दूसरी बार पटना में। फिर तो उन्‍हें देखने, सुनने के कई सिलसिले आये। दरभंगा का वाकया है कि आकाशवाणी ने अखिल भारतीय कवि सम्‍मेलन आयोजित किया था। शायद सन तिरानबे की बात है। बरेली से ‪#‎VirenDangwal‬ आये थे, खंडवा से Pratap Rao Kadam और पटना से‪#‎AlokDhanwa‬ आये थे। और भी कवि थे, नाम याद नहीं। कवि सम्‍मेल आधी रात को खत्‍म हुआ। घर लौटते हुए साथ में मेरी एक दोस्‍त प्रतिमा राज थी। हम एक ही साइकिल पर थे। पीछे से आती हुई एक मारुति वैन पास आकर रुक गयी। आलोक जी और वीरेन दा उतरे। वे हैरान थे एक छोटे शहर में हमारी ऐसी मटरगश्‍ती पर। हमसे उन्‍होंने थोड़ी बात की और सही-सही घर पहुंचने की हिदायत दे कर चले गये। उस घटना का जिक्र जब-तब आलोकधन्‍वा करते रहे हैं।

वीरेन दा को भी वह सब याद था। इसलिए सन छियानबे में जब वे पटना आये, तो उन्‍होंने पहचान लिया। जनसंस्‍कृति मंच ने उनका एकल काव्‍यपाठ रखा था। मैंने उस काव्‍यपाठ की रिपोर्टिंग दैनिक हिंदुस्‍तान के लिए की थी। तब नागेंद्र जी फीचर एडिटर हुआ करते थे। रिपोर्ट का शीर्षक मुझे याद है, जो वीरेन दा की काव्‍यपंक्तियों से ली गयी थी: "आएंगे उजले दिन जरूर आएंगे"।

आज वीरेन दा का जन्‍मदिन है। वे छासठ बरस के हो गये। आपने पढ़ी होगी, फिर भी आज उनकी दो कविताएं आपलोगों को पढ़ाने का जी चाहता है...

हम औरतें
----------

रक्त से भरा तसला हैं
रिसता हुआ घर के कोने-अंतरों में

हम हैं सूजे हुए पपोटे
प्यार किये जाने की अभिलाषा
सब्जी काटते हुए भी पार्क में अपने बच्चों पर निगाह रखती हुई प्रेतात्माएं

हम नींद में भी दरवाज़े पर लगा हुआ कान हैं
दरवाज़ा खोलते ही
अपने उड़े-उड़े बालों और फीकी शक्ल पर
पैदा होने वाला बेधक अपमान हैं

हम हैं इच्छा-मृग

वंचित स्वप्नों की चरागाह में तो
चौकड़ियां
मार लेने दो हमें कमबख्तो!

पीटी उषा
---------

काली तरुण हिरनी अपनी लंबी चपल टांगों पर
उड़ती है
मेरे ग़रीब देश की बेटी

आंखों की चमक में जीवित है अभी भूख को पहचानने वाली विनम्रता
इसीलिए चेहरे पर नहीं है सुनील गावस्कर की सी छटा

मत बैठना पीटी उषा
इनाम में मिली उस मारुति कार पर
मन में भी इतराते हुए
बल्कि हवाई जहाज में जाओ
तो पैर भी रख लेना गद्दी पर

खाते हुए मुंह से चपचप की आवाज़ होती है ?
कोई ग़म नहीं
वे जो मानते हैं बेआवाज़ जबड़े को सभ्यता
दुनिया के सबसे खतरनाक और खाऊ लोग हैं...
Like ·  ·  · 7 hours ago near New Delhi, Delhi · 
  • Sanjay Kumar अविनाश भाई,
    उन दिनों आकाशवाणी के अनेक मंचीय आयोजन होते थे. अ. भा. कवि सम्मेलन, मुशायरा, लोक संगीत, ग़ज़ल, शास्त्रीय संगीत समेत नाटकों की प्रस्तुति तक. अब तो ये शास्त्रीय संगीत तक सिमट गए हैं.
    उन दिनों मंचित बगिया बांछाराम की और बड़ा नटकिया कौन अब भी याद है.
  • Ajit Azad umda kavi ki umda kavitayen...
  • Amrendra Suman Viren dangval sahab ke liye is se badhiya tohfa aur kya ho sakta hai ki unke janm din ke awser per unke saath bitae dino ka asmeran aur hidayat ke sath-sath unki kavitao ka awlokan vi logo ko prapta ho raha hai. kavitae behad hi umda hai.
  • Amit Upmanyu P.t. usha behtareen kavita hai

No comments:

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...

PalahBiswas On Unique Identity No1.mpg

Tweeter

Blog Archive

Welcome Friends

Election 2008

MoneyControl Watch List

Google Finance Market Summary

Einstein Quote of the Day

Phone Arena

Computor

News Reel

Cricket

CNN

Google News

Al Jazeera

BBC

France 24

Market News

NASA

National Geographic

Wild Life

NBC

Sky TV