Total Pageviews

THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

Twitter

Follow palashbiswaskl on Twitter

Friday, August 2, 2013

कानून के राज से बेदखल है जनता

AddThis Social Bookmark Button


पलाश विश्वास


 

और कानून का राज?

बामुलाहिजा होशियार

कि इस जनगणतन्त्र में जनता की कोई जगह नहीं।

कानून के राज से बेदखल है जनता।

और कानून का राज का मतलब है राडिया टेप!

बाकी जो तन्त्र है वह मोंटेक का तिलिस्म हैं

और चिदंबरम का वधस्थल

बाकी जो हैं अय्यार

वे हवा में तलवारबाजी के दक्ष कलाकार!

शतरंज की बिसात पर जबर्दस्त धमाचौकड़ी है। ग्रांड मास्टर का यावतीय कला कौशल की धूम लगी है। मंत्रीहाथी घोड़ेनाव खूब दौड़लगा रहे हैं। हर चाल पर मारे जा रहे हैं पैदल मोहरे थोक भाव पर।

जी हांयही भारत का वर्तमान परिप्रेक्ष्य है। शतरंज की बिसात पर महाभारत हुआ और गीता के उपदेश सह विश्वरुप दर्शन भी।

फिर टूटा विधा का व्याकरण तो विद्वतजनों ,माफ करना।  मैं प्रचलित कवि हूँ और  विद्वतजन!

हम लोग रोजमर्रे की ज़िन्दगी में वही परम अलौकिक विश्वरुप दर्शन कर रहे हैं। पर साधन विहीन साधनाहीन लोगों के चर्मचक्षु में यहदर्शन होकर भी चाक्षुस नहीं है।

लोकसभा के 2014 के चुनाव के दाँव बदलने लगे हैं। जनादेश प्रबंधन का कारोबार अब सौंदर्यशास्त्र के व्याकरण को तोड़ने लगा है।धर्मोन्मादी राष्ट्रवाद में समाहित होने लगी हैं जातीय और क्षेत्रीय अस्मिताएं भी।

अब तक मंडल बनाम कमंडल का करिश्मा देखतेझेलते और बूझते हुये भी हम भारतीय जनगण उसी में अपनी अग्निदीक्षा सम्पन्नकराने में अभ्यस्त रहे हैं। इतिहास के विरुद्ध भूगोल की लड़ाई में मुख्यधारा की कभी कोई दिलचस्पी नहीं रही है, जैसे कि जातिउन्मूलन के जरिये सामाजिक न्याय और समता का लक्ष्य मृगमरीचिका समान हैजैसों की चूती हुयी अर्थव्यवस्था और विकासदर,परिभाषाओं और योजनाओं के तिसलिस्म में गरीबी उन्मूलन की आड़ में खुले बाजार में नरमेध अभियान।

जाहिर है कि तेलंगाना अलग राज्य को अमली जामा पहनाने में अभी देर है। काँग्रेस ने मुहर लगायी है। प्रशासनिकसंवैधानिक प्रक्रियाअभी पूरी नहीं हुयी है। लेकिन इस खेल ने नरेंद्र मोदी की रथयात्रा की गति थाम दी है और देश के कोने कोने में क्षेत्रीय अस्मिता काबवंडर हिंदुत्व के ध्रुवीकरण की परिकल्पना को भटकाने लगी है।

यह महज राजनीति है। जिसे समझते बूझते भारतीय नागरिक कुछ और समझने की कोशिश करने का अभ्यस्त नहीं है।

निजी तौर पर इस मामले में हम हर कीमत पर अस्पृश्य भूगोल और वंचित समुदायों के साथ हैं। आखिर नये राज्य ही बन रहे हैंनयेदेश नहीं। उत्तराखण्डझारखण्ड और छत्तीसगढ़ बनने से अगर उत्तर प्रदेशमध्यप्रदेश और बिहार की पहचान खत्म नहीं हुयी हैतो दूसरेराज्यों के विभाजन से उनके वजूद खतरे में कैसे पड़ सकता है। राज्य के भीतर ही क्षेत्रीय विकास के असंतुलन को बनाये रखकर,अस्पृश्य भूगोल पर वर्चस्ववादी शासन के जरिये राज्य की भौगोलिक अंखडता क्षेत्रवादी सांप्रदायिकता के अलावा कुछ नहीं है। इस बारेमें हमारी कोई दुविधा नहीं है और  राज्यों की सीमाओं की पवित्रता जैसी किसी अवधारणा में हमारी कोई आस्था है।

लेकिन मुद्दा यह है ही नहीं। अस्पृश्य भूगोल को मुख्यधारा में शामिल करने या किसी क्षेत्र विशेष के वंचित समुदायों को उनके हकहकूककी बहाली का मामला यह है ही नहीं। अलग हुये राज्यों मसलन पंजाब से अलग हुये हिमाचल से लेकर असम से अलग हुये पूर्वोत्तर तमाम राज्यों के पुरातन मामलों से लेकर अधुना बने तीनों राज्यों उत्तराखण्डझारखण्ड और छत्तीसगढ़ के अनुभव से जाहिर है किविकास और बहिस्कार के प्रचलित समीकरण कहीं नहीं बदले। क्षेत्रीय अस्मिता पर बने राज्यों का कायाकल्प होने के बजाय वहाँप्राकृतिक संसाधनों की अबाध कॉरपोरेट लूट की व्यवस्था ही स्थनापन्न हुयी है और हिमाचल को अपवाद मान भी लें तो मूल राज्यों सेअलगाव की प्रक्रिया में बनाये गये नये राज्यों को सत्ता समीकरण का खिलौना ही बना दिया गया। कहीं भी जनाकाँक्षाओं की पूर्ति हुयीनहीं है। और तो और जिनकी अस्मिता की लड़ाई बजरिये इन राज्यों का गठन हुआनये राज्यों में सत्ता में तो क्या किसी भी क्षेत्र मेंउनको वाजिब हिस्सा अभी तक नहीं मिला। झारखण्ड में मुख्यमंत्री आदिवासी जरुर बन जाते हैंलेकिन आदिवासियों का रजनीतिकआर्थिक सशक्तिकरण हुआ हैऐसा दावा कोई नहीं कर सकता। प्राकृतिक संसाधनों और खासतौर पर खनिज संपदा के अबाध लूट केतन्त्र में कोई बदलाव नहीं हुआ है।  कहीं पाँचवी अनुसूची लागू है और  छठीं। प्रोमोटर माफिया राज कॉरपोरेट राज का दायाँबायाँहै और राजनीति दलाली कमीशनखोरी के पर्याय के अलावा कुछ नहीं है।

इसी तरह छत्तीसगढ़ तो आदिवासियों की क्षेत्रीय अस्मिता पर बना दूसरा राज्य हैजहाँ आदिवासियों के विरुद्ध निरंतर युद्ध गृहयुद्ध जारीहै। पर छत्तीसगढ़ झारखण्ड की तरह कॉरपोरेट हवाले है। किसी भी क्षेत्र में आदिवासियों के सशक्तिकरण के बारे में हमें जानकारी नहीं है,पर सलवा जुड़ुम के बारे में दुनिया जानती है। नयी राजधानी बनाने में सौकड़ों आदिवासी गाँवों का वध हो रहा है और आदिवासी निहत्थादमनतन्त्र की चांदमारी में प्रतिनियत लहूलुहान।

उत्तराखण्ड की कथा तो हाल की हिमालयी जलप्रलय ने ही बेपर्दा कर दी है। उत्तरप्रदेश में जब शामिल थे पहाड़ी जिलेतब भी राजनीतिमैदानों से चलती थी औज भी वही हाल है। उद्योग लगे भी तो स्थानीय जनता को रोजगार नहीं। ऊर्जा प्रदेश बना तो तमाम घाटियाँ डूबमें शामिल। ग्लेशियरों को भी जख्म लगे हैं। झीले दम तोड़ने लगी हैं और नदियाँ साकी की सारी बँध गयी। बँधकर रूठकर हिमालयीजनता पर कहर बरपाने लगी हैं। अलग राज्य बनने से पहले पर्यटन और धार्मिक पर्यटन से स्थानीय जनता का जो रोजगार थावहअब अबाध कॉरपोरेट पूँजी की घुसपैठ से बेदखल है और यह पूँजी  हिमालयी पर्यावरणउसके संवेदनशील अस्तित्व और  हिमालयीजनता की वजूद की कोई परवाह करती है। राजनीति अब उसी पूँजी के खेल में तब्दील हैजो आम जनता की आकाँक्षाओं की कौन कहें,उनकी लावारिश लहूलुहान रोजमर्रे की ज़िन्दगी पर तनिक मलहम लगाने के लिये भी तैयार नहीं है।

राज्य चाहे हजार बनेंइसमें देश का बंधन टूटता है नहीं और इस पर ऐतराज पागलपन के सिवाय कुछ नहीं है। लेकिन अलग राज्यबनने का मतलब अगर कॉरपोरेट राज हैअबाध पूँजी प्रवाह है और प्राकृतिक संसाधनों की खुली लूट हैभूमिपुत्रों को हाशिये पर रखकरवर्चस्ववादी समुदायों की मोनोपोली हैनिरंकुश दमनतन्त्र हैनागरिक मानवाधिकारों के हनन की अनंत श्रृंखला हैतो ऐसे राज्य केबनने से तो वंचितों की हालत वैसी ही खराब होने की आशंका हैजैसे समूचे पूर्वोत्तरउत्तराखण्डछत्तीसगढ़ और झारखण्ड की हुयी है।

राज्य पुनर्गठन का कोई तो प्रावधान होने चाहिएसिद्धांत होने चाहिएपैमाने होने चाहिए। महज राजनीतिक तूफान खड़ा करके क्षेत्रीयअस्मिता की सुनामी खड़ी करके अलग राज्य बनने से वह क्षेत्रीय अस्मिता अंततः अंध धर्मोन्मादी राष्ट्रीयता में समाहित हो जाती है।कम से कम उत्तराखण्डझारखण्ड और छत्तीसगढ़ इसके ज्वलंत उदाहरण हैं। जहाँ अब क्षेत्रीय अस्मिता और पहचान का नामोनिशान हीनहीं है और सब कुछ भगवा ही भगवा है।

लेकिन यह समझना और जरुरी है कि लोकसभा चुनाव से पहले मोदी की बढ़त थामने के लिये ही यह शतरंजी बिसात का प्रयोजन नहींहुआ। क्षेत्रीय अस्मिता का बवंडर खड़ा करने का मकसद यही है कि अस्मिता राजनीति की आड़ में आर्थिक सुधारों का राजसूय यज्ञनिर्बाध संपन्न हो। राज्य बने या  बनेमुद्दा यह दरअसल है ही नहीं। असली मुद्दा यह है कि इस मसले के उभार से राजनीति धुँआधारबनाकर पूरे देश को ऑपरेशन टेबल पर सजा देना हैजहाँ उसकी शल्यक्रिया करेंगी चिदंबरम मोंटेक कॉरपोरेट टीम। सोनिया राजनीतिसाधेंगी और नरमेध अभियान का सिलसिला जारी रखेंगे युगावतार सुधारों के ईश्वर। बाकी बचा है कुरुक्षेत्र का मैदान जहाँ स्वजनों केहाथों स्वजनों का वध सम्पन्न होगा। विधवाएं विलाप करती रहेंगी और घाव चाटते रहेंगे अश्वत्थामा। अपने बनाये चक्रव्यूह में ही घिररहे हैं हम और किसी को नहीं मालूम मारे जाने से पहले बचाव के रास्ते कैसे बनेंगे।

हमने अपने अग्रज पी साईनाथ का हवाला देकर कहा था कि इस अर्थव्यवस्था के तिलिस्म को तोड़ने की सबसे बड़ी अनिवार्यता है जिसपर रंग बिरंगी चाकलेटी कंडोम आवरण हैजो धारी दार है और खूब मजा देते हैं। भरपूर मस्ती है। लेकिन ध्वंस के बीज अंकुरित होकरमहावृक्ष हो गये हैं और वे विष वृक्ष में तब्दील है।

तेलंगाना में कभी खेत जागे थेहम भूल चुके हैं। नयी तेलंगाना अस्मिता में उन मृत खेतो की सोंधी महक लेकिन कहीं नहीं है। हम तोबूटों की धमक से बहरे हुये जाते हैं। बख्तरबंद वर्दियाँ दसों दिशाओं से हमलावर हैं एकाधिकारवादी कॉरपोरेट वर्चस्व के लिये। हमारेमोर्चे पर  प्रतिरोध है और आत्मरक्षा के उपाय।  किलेबंदी है और  विरोधहै तो सिर्फ नपुंसक आत्मसर्पण। यह देश अबकंडोमवाहक है निर्बीजजहाँ खेतों से  कोई उत्पादन होगा  दानेदाने पर लिखा होगा किसी का नाम। नदियाँ बिक गयी हैं। हिमालयका वध जारी है। अरण्य अरण्य दावानल है। समुंदरसमुंदर विनाश गाथा। कारखानों में खामोश है उत्पादन। बिना उत्पादन विकासगाथाका अद्भुत यह देश है जहाँ आर्थिक नीतियाँ वाशिंगटन से बनती हैं और उनके कार्यान्वन के लिये बिछायी जाती शतरंज की बिसात।

बार बार महाभारत दोहराया जाता है पर स्वर्गारोहण पर सिर्फ युधिष्ठिर का एकाधिकार। अमर्त्य सिर्फ एकमेव। बाकी बचा जो मर्त्य वहरसातल है। बार-बार स्वजनों के वध से हमारे हाथ रक्तरंजित और कोई पापबोध नहीं। कोई पाप बोध नहींनृशंस नरसंहार के अपराधीहम सभी।

हम सभी अपराधी सिखसंहार के। हम सभी अपराधी भोपाल त्रासदी के। हम सभी अपराधी हिमालय वध के। हम सभी अपराधी सशस्त्रसैन्य शासन के। हमीं अपराधी मुंबई और मालेगांव के धमाकों के। बाबरी विध्वंस के। देश विदेश व्यापी दंगों के। गुजरात नरसंहार केऔर इस कॉरपोरेट पारमाणविक महाभारत में हम हमेशा या तो पांडव हैं या कौरव।

सिर्फ मौद्रिक कवायद के सिवाय क्या है वित्तीय प्रबंधन बताइये। सुब्बाराव माफिक नहीं है शेयर बाजार के सांढ़ों के लियेतो उन्हें हटानातय है। चिदंबरम ने उनके अखण्ड सुधार जाप से  पसीजकर भस्म हो जाने का शाप दे दिया है। दुर्वासा मोंटेक हैंजो नागरिक सेवाओंकी पात्रता से बेदखल करके बारबार शापित कर रहे हैं गरीबों को। निलेकनी हमें बायोमेट्रिक डिजिटल बना ही चुके हैं। अपनी अपनीनिगरानी का उत्सव मना रहे हैं हम इस देश के कबंध नागरिक।

रस्सी जल गयी अस्मिता कीजलकर राख हुयी अस्मिता हर कोईफिर उसे रस्सी समझकर अपनी अकड़ में अकड़ू!

क्या खाक डिकोड करेंगे कि ममता दीदी के दरबार में क्यों हाजिरा लगा रहे हैं दरबारी तमाम कारपोरेटकोचर से लेकर अंबानी। टाटा सेलेकर जिंदल। गोदरेज तमाम।

राष्ट्रपति बनाने वाले लोग अब दीदी को साध रहे हैंकिस लिये आखिर सिंगुर से भागे टाटा को क्या मालूम नही निवेश माहौल बंगालका?

कॉरपोरेट विकल्प कोई अकेला नहीं होता।

 महज मोदी

 महज राहुल

 नीतिश अकेला

और  मुलायम

और  अग्निकन्या कोई

कॉरपोरेट मीडिया में तमाम ताश फेंटे जा रहे हैं। तमाम सर्वे और प्रोजक्शन जारी है। पहला नहीं तो दूसरा। दूसरा नहीं तो तीसरा। हरविकल्प को साधने का खेल है। शह और मात का इंतजाम पुख्ता है।

यह कॉरपोरेट चंदा हर झोली में क्यों?

और क्यों सूचना अधिकार से बाहर राजनीति?

और कानून का राज?

बामुलाहिजा होशियार

कि इस जनगणतन्त्र में जनता की कोई जगह नहीं।

कानून के राज से बेदखल है जनता।

और कानून का राज का मतलब है राडिया टेप!

बाकी जो तन्त्र है वह मोंटेक का तिलिस्म हैं

और चिदंबरम का वधस्थल

बाकी जो हैं अय्यार

वे हवा में तलवारबाजी के दक्ष कलाकार!

No comments:

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...

PalahBiswas On Unique Identity No1.mpg

Tweeter

Blog Archive

Welcome Friends

Election 2008

MoneyControl Watch List

Google Finance Market Summary

Einstein Quote of the Day

Phone Arena

Computor

News Reel

Cricket

CNN

Google News

Al Jazeera

BBC

France 24

Market News

NASA

National Geographic

Wild Life

NBC

Sky TV