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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Monday, July 13, 2015

एन जी टी का आदेश कंपनियों के हित में-जबकि स्थानीय वाशिंदे होंगे बंचित.Note on NGT order on Manali Rohtang Tourism

हिमालय नीति अभियान

गाँव खुंदनडाक बंजारजिला कुल्लू हिमाचल प्रदेश।

 

Note on NGT order on Manali Rohtang Tourism  to  Press for publication and public debate

 

एन जी टी का आदेश कंपनियों के हित में-जबकि स्थानीय वाशिंदे होंगे बंचित

दिनांक:12-7-2015

 

नेशनल ग्रीन ट्रिवूनल (एनजीटी) के 6 जुलाई 2015 के आदेशानुसार अब घोड़ों, वर्फ के स्कूटर, ATV, पेराग्लाइडिंग इत्यादि के चलाने पर भी रोक लगा दी है। इस से पहले मनाली रोहतांग सड़क पर दस बर्ष पुराने व डीजल वाहनों के चलाने पर पाँच मई से रोक लगा दी गई  थी तथा इस सड़क पर दिन में केवल छ: सौ पेट्रोल व चार सौ डीजल के पर्यटन वाहन को चलाने की अनुमति दी थी। 2008 से चल रहे इस केस में कई अलग –अलग आदेशों में एन जी टी ने सोलंग नाला व इस सड़क के अन्य स्थलों पर से सभी खोखों  व ढ़ावों को हटाने तथा लघु पर्यटन से जुड़ी बहुत सी सेवाओं पर भी रोक का फर्मान जारी किया है।  

पर्यावरण संरक्षण के नाम पर लिए गए इन एक तरफा आदेशों में हजारों लोगों की आजीविका की सुरक्षा पर गोर नहीं किया गया व न ही कोई वैकल्पिक रास्ता दिखाया गया। यह भी नहीं बताया गया कि कैसे स्थानीय लोगों की आजीविका बचेगी व कैसे पर्यावरण मित्र पर्यटन का विकास होगा।

कोर्ट के इस कदम से छ: हजार से भी ज्यादा स्थानीय व प्रवासी कामगारों का रोजगार छिन जाएगा। इस क्षेत्र में पर्यटन के विकास में पिछले तीस सालों से भरी बढ़ोतरी हुई है। इस से पहले यहाँ के ग्रामीण गरीबी व अल्प शिक्षा के हालतों में जीवन जीने को मजबूर थे, क्योंकि यह पिछड़ा इलाका माह बर्फ छादित रहता था।  पर्यटन के विकास से लोगों को आजीविका उपार्जन के नए अवसर प्राप्त हुए। स्थानीय लोगों ने चाए व खाने के ढ़ावे खोले, छोटे-छोटे खोखे खोल कर दुकानों चलाई, जिन में कोट, बूट, दस्तकारी का समान व कारयाने का व्यापार शुरू किया, टेक्सी चलना,घोड़े व याक की सवारी, वर्फ के पहाड़ी वाहन, स्थानीय पहनावे की थड़ी, जोरबिंग, ट्रेंपलिंग, स्लेज,फोटोग्राफी, पेराग्लाइडिंग, और स्कीइंग इत्यादि का कम शुरू किया । स्थानीय ग्राम पंचायत बुरुआ,शनाग, पल्चान, वशिष्ठ व मनाली तथा आसपास के हजारों लोग इन करोवरों में पिछले कई वर्षों से संलग्न हैं और इस से वे अपनी आजीविका उपार्जन कर रहे हैं । इन्हीं पर्यटन सहयोगी गतिविधिओं के कारण आज इस इलाके में पर्यटन का भरी विकास हो पाया है। 

इस से पहले के आदेश में एन जी टी ने सरकार को वशिष्ठ से रोहतांग दर्रे तक पी॰पी॰पी/ मॉडल पर रोप वे स्थापित करने व सीएनजी बसें चलाने का सुझाव दिया था और "लोगों को पर्यावरण संरक्षण व टिकाऊ विकास के बारे में समझाने को कहा। यह धारणा कि इस से लोगों के रोजगार प्रभावित होंगे, के लिए लोगों को ठीक से पढ़ाएँ कि टिकाऊ विकास खुशाली लाने के लिए वाध्य है जो उन्हें भविष्य में रोजगार प्रदान कराएगा।" 

 

उक्त आदेशों की पालना करते हुए प्रशासन ने सेंकड़ों ढ़ावों व खोखों इत्यादि को अभी तक हटा दिया है। पाँच मई के बाद पर्यटन वाहनों पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया है। ऐसे में आज यहाँ अराजकता का वातावरण बन हुआ है।  

सोलंग नाला में निजी कंपनी रोप वे चला रही है, विद्युत परियोजना व दूसरे निजी बड़ी पूंजी के करोवरी वन भूमि लीज पर लेकर व्यापार कर रहे हैं। क्या इन स्थानीय ग्रामीणों जो छोटा कारोवार पिछले तीस-चालीस वर्षों से कर रहे हैं को भी लीज पर वन भूमि दी जा सकती थी, जो आज तक नहीं दी गई और न ही इस पर कोई बात होती है।

अपुष्ट सूचना यह भी है कि बशिष्ठ-रोहतंग रोप वे की परियोजना PPP मॉडल पर 450 करोड़ रुपया में TATA कंपनी को देने का प्रस्ताव सरकार के पास विचारधीन है। दूसरे बात यह है की 2019 के बाद जब सोलंग  लाहौल सुरंग बन कर तैयार होगी और सेना रोहतंग सड़क के रखरखाव व वर्फ हटाने के काम से हट जाएगी, जिस पर आज सेना का लगभग 70 करोड़ बार्षिक खर्च होता है,उसके बाद इस सड़क का रखरखाव का कार्य कैसे होगा व कौन करेगा? क्या हिमाचल सरकार यह कार्य करने की जिम्मेवारी उठाने को तैयार है या TATA जैसी किसी कंपनी को सड़क ही PPPमॉडल पर यह भी सोंप दी जाएगी?

PPP क्या है- Public Private Partnership, यह आज कल देश में एक व्यापार का माडल विकास के नाम पर चल रहा है, जिस में निजी कंपनी परियोजना में पैसे लगाती है और सरकार उसे जमीन इत्यादि अन्य सुविधाएं मुफ़त में देती है। कारोवार कंपनी का होता है तथा मुनाफा भी कंपनी ही लेती है। 40-50 साल बाद यह परियोजना सरकार को सौंप दी जाती है । इस का सीधा अर्थ होता है सरकारी (जनता) के पैसे व जमीन से निजी व्यापार । आज कल इस तरह की परियोजनाएं सड़कों, जलविद्युत इत्यादि की भी चल रही हैं।

ऐसे में कोर्ट व सरकार के सारे प्रयत्न यही लगते हैं कि फिर से SKI VILLAGE जैसी कोई योजना (पर्दे के पीछे से) चलाई जाए, जिस का मात्र उदेश्य पर्यटन कारोवार से स्थानीय लघु व्यवसायियों को हटना ही लगता है। इस के लिए कोर्ट में तर्क भी दिए गए और कहा गया कि स्थानीय लघु पर्यटन व्यवसायियों के कारण पर्यावरण को इस संवेदनशील इलाके में भारी नुक्सान हो रहा हैये प्रदूषण फैल रहा है, इन्होंने गंदगी व कचरा फैला दिया, नाजायज कब्जे किए, पर्यटकों की लूट की जा रही है इत्यादि-इत्यादि ।

पिछली बर्ष जब NGT के आदेश आए उसके बाद फरवरी 2015 को हिमालय नीति अभियान के कार्यकर्ताओं ने क्षेत्र का दौरा किया। हमने स्थानीय लघु पर्यटन व्यवसायियों के समूहों, होटलवालों तथा जिला प्रशासन से बात की और उसके बाद एक रिपोर्ट इस पर सार्वजनिक की। इस से पहले बर्ष 2011-12 में हमने EQUATION, Bangluru तथा ENVIRINICS TRUST, दिल्ली के साथ मिल कर, हिमाचल के पर्यटन उद्योग की संभावनाओं, टिकाऊपन तथा ज़िम्मेवार पर्यटन के लक्ष्य को ले कर छ: गोष्ठियों का आयोजन चंबा, मक्लोड्गंज, मनाली, बंजार, रिकोङ्गपीओ व कुफ़री में किया था। इन गोष्ठियों में प्रदेश के पर्यटन से जुड़े अलग- अलग विधाओं के करोवरियों ने भाग लिया था। हिमालय नीती अभियान इस से पहले SKI VILLAGE के खिलाफ चले जन आंदोलन के साथ रही है, इस लिए प्रदेश में पर्यटन उद्योग को  पर्यावरण मित्र, टिकाऊ व ज़िम्मेवार उद्यम बनाने के लक्ष्य से हमने यह पहल की थी।

हमने पाया कि पर्यटन के टिकाऊ नियोजन, कायदे कानून व प्रचार प्रसार की कमी, पर्यावरण व साफ़सुथरा वातावर्ण, गैरकानूनि कृत्य, सरकारी विभागों की भ्रष्ट कार्यप्रणाली पर उचित दिशानिर्देशका भी अभाव है। इसी कारण आज प्रदेश में पर्यटन का कारोवार अराजक तरीके से चल रहा है। इसलिए छोटे स्थानीय करोवरीयों को इस स्थिति के लिए जीमेबार नहीं ठहराया जा सकता है।

हमने पाया कि प्रदेश में आज लगभग छ; लाख से भी ज्यादा लोग इस उद्योग में नौकरी व प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष रूप से अपनी आजीविका उपार्जन कर रहे हैं। यह भी देखा गया कि प्रदेश के राजस्व में इस उद्योग  की 7% के करीब भागी दरी है।

आज दुनिया में यह उद्योग 25% की दर से वृद्धि कर रहा है। ऐसे में यह उद्योग अभी और भी फले-फूलेगा। इसीलिए कारण कारपोरेट की नजरें इस तरह की परियोजना पर टिक्की हैं और मुनाफे के लिए इस क्षेत्र में निवेश करना चाहते हैं न कि पर्यावरण की चिंता के कारण। इस उद्योग में फ़ैली अराजकता, पर्यावरण का नुक्सान, लूट-घसूट व बुराइयाँ तथा गैरकानूनि गतिविधियां जो सरकारी  संरक्षण व लापरवाही से ही पन्नपी हैंअसल में मात्र बहाना है, जबकि छुपा हुआ मकसद कुछ और ही है। 

चार दिन पहले मेंने एक चर्चा पत्र सरकार, पर्यटन उद्योग से जुड़े जानकारों व मनाली के लघु पर्यटन करोवरियों को जारी किया था। उस में भविष्य में क्या होना चाहिए पर कुछ विंदु उठाए थे।

1         क्योंकि इस उद्योग से कई बुराइयाँ पन्नपी हैं, तो क्या इसे बंद कर दिया जाए?

2         क्या कारपोरेट व बड़ी कंपनी के आने से पर्यावरण का नुक्सान नहीं होगा और अनैतिकता व बुराइयों का खातमा हो जाएगा तथा लूट बंद होगी और पर्यटक को सस्ती सेवा मिलेगीइसलिए कारपोरेट को कारोवार सँभाला जाए?

3         या फिर कोई और भी विकल्प है, जो टिकाऊ व पर्यावरण मित्र हो, स्थानीय युवाओं को रोजगार व आजीविका का आधार प्रदान कर्ता हो, साथ में बुराइयों व लूट-घसूट पर अंकुश लगा सके।

चर्चा उपरांत हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि पर्यटन उद्योग बंद नहीं हो सकता बल्कि भविष्य में और ज्यादा फैलेगा। कारपोरेट व कंपनी स्वच्छ व पर्यावरण मित्र पर्यटन का विकास एक भ्रम है जिस कि मिसाल केरल व दूसरे स्थानों पर देखि जा सकती है कि किस तरह ये पर्यटन के बड़े व्यापारी पर्यावरण को नुक्सान पहुंचा रहे हैं। स्थानीय युवाओं को रोजगार नहीं देते, जिस के कई बहाने होते हैं जैसे स्किलल इत्यादि। छोटी मोती बेटर इत्यादि की नौकरी जरूर मिल सकती हे,परंतु उस मे भी स्थानीय कर्मी ज्यादा नहीं लिए जाते हैं, क्योंकि उन का यूनियन बनाने का खतरा होता है। जबकि प्रबंधन में कभी भी स्थानीय लोग नहीं लिए जाते हैं, यह देश भर में इन कंपनियों के बारे में सर्वविदित अनुभव है। सस्ती सेवा तो इन कि हो ही नही सकती हे। सोलांग नाला में बने रोप वे व उस के रेस्टोरेन्ट का बिल जरूर देखें, आप को रेट मालूम हो जाएंगे।

आज प्रदेश में दस लाख से ऊपर वेरोजगारों की  फौज रोजगार की तलाश में है, यह उद्योग एक संभावना है, जिस में इन्हें रोजगार मिल सकता है। पर्यावरण संरक्षण, प्रदूषण नियंत्रण व वनों का विकास कभी भी स्थानीय जन भागीदारी के बिना संभव नहीं हो सकता है। हमारी सरकार,नीतिनिर्धारक व राजनेता इस तरफ सोचना चाहिए।  ऐसे में एक ही रास्ता है की सरकार जन भागीदारी से इस समस्या का समाधान निकालें तथा उझी क्षेत्र के स्थानीय लोगों, होटल व लघु पर्यटन सेवाओं से जुड़े करोवरीयों से मिल कर कोई रास्ता प्रदेश व स्थानीय लोगों के हित में निकले जो पर्यावरण मित्र हो तथा स्थानीय लोगों को रोजगार व आजीविका प्रदान करे। हमारा निम्न सुझाव है ;-

1         उझी क्षेत्र के स्थानीय लोगों, होटल व लघु पर्यटन सेवाओं से जुड़े करोवरीयों को एक मंच से एक राय के साथ अपना मत टिकाऊ, पर्यावरण मित्र, रोजगार मूलक,लोक मित्र व जिम्मेवार पर्यटन पर रखना चाहिए।

2         सरकार को इस मुड़े पर जनता के साथ चर्चा में बैठना चाहिए और जो लोग मिल कर तय करें उस पर अमल करके एनजीटी के समक्ष अपना पक्ष रखना चाहिए। और भी कानूनी रास्ते मिल कर तलाशे जा सकते हैं।

3         मनाली रोहतंग पर एक पूरी परियोजना का प्रकल्प तैयार कर्ण चाहिए, जिस में क्या-क्या पर्यटन से संबन्धित गतिविधियां संचालित की जाएंगी का उलेख हो तथा पर्यावरण संरक्षण व रोजगार की संभावनाओं को इंगित करना होगा। उन्हें कैसे संचालित किया जाएगा का पूरा हवाला देना होगा, जिस में पर्यावरण सरक्षण,स्वछता, कचरा प्रबंधन, पार्कींगकाम से काम छ: स्थानों पर शॉपिंग व खाद्य तथा मनोरंजन के स्थानों का निर्धारण व उसकी प्रबंध योजना का प्रारूप पेश करना होगा। इस का प्रबंधन कौन करेगा, नियम कायदे भी बनाने होंगे जिस का लागू करने का जिम्मा किस का होगा भी दिखाना पड़ेगा।  

4         प्रदेश सरकार को भी अपनी पर्यटन नीति बनानी होगी जो टिकाऊ, पर्यावरण मित्र, रोजगार मूलक, लोक मित्र व जिम्मेवार पर्यटन जैसे पहलुओं पर आधारित हो।

में अगले कल 13 जुलाई को मनाली में स्थानीय लोगों से चर्चा करने के लिए इस मसले पर आऊंगा। इस संदर्भ में जिलाधीश कुल्लू से मेरी बात आज सुबह हुई थी, वह भी शायद 14 जुलाई को स्थानीय लोगों से बात करेंगे।

 

 

गुमान सिंह

राष्ट्रीय संयोजक – हिमालय नीति अभियान

National Coordinator, Himalaya Niti Abhiyan

Village Khundan PO. Banjar, Kullu HP.

Mail: gumanhna@gmail.com, Ph. 9418277220

 

 

 

 

 

NGT Order ON Manali Rohtang Tourism

 

Document for debate on 9th July 2015 for Internal circulation

Dear all,

 

Principal Bench of National Green Tribunal in CWPIL No. 15 of 2010 in the matter of Court on its Motion V/S state of Himachal Pradesh & others order on dated 20 and 21 January, 2015 in original application No.237 (Tac) of 2013, to stop ply vehicles from Manali to Rohtang which are 15 years old from coming tourism season later on 10 year old vehicles were banned.. Secondly the NGT ordered to "immediately demolish all Khokas and Dhabas unauthorised and illegally being carried on. NGT has also ordered to start a Rope Way project from Vashist to Rohtang on PPP mode and ply CNG busses only. This court has issued many other orders later on such as no diesel vehicle be allowed and then 600 petrol 400 diesel vehicles be allowed to Rohtang. 

NGT has passed latest order on 6-7-2015 in matter of Manali –Rohtan tourism operation in which court is intending to stop/regulate all activities related to tourism and has been justified by the report of a environment Scientist.  This is not first time, it happened last year when team of experts/court officers visited the site and after the submission of their  report  NGT ordered to demolish Khokha /Dhawa, suggested to plying CNG buses, stop 10 year old vehicle and proposal for rope-way on PPP basis etc. was  pronounced by the same court in the interest of environment protection and suggested that people shall taught regarding the sustainable development ; which will provide employment and livelihood  later on.   

 

At that time I visited the site and met local people who were involved in small tourism related activities such as Dhawa/Khokha operators,  Coat boot shop owners,  taxi operators, snow scooters, ATVs, horse riding, paragliders, snow biking, tyre tube gaming owners etc and district administration too.

 

After that, I sent a report to all concerned such local effected community, media, state government and general public. I found that livelihood of more than 6000 persons is at stake directly (see t report). Nobody took this issue seriously, rather the matter was politicized and both major political parties (ruling and opposition) played with the sentiment of affected.  Government official as usual were unconcerned and are still relaxed and has not taken any proactive initiative to resume the matter in the interest of local host community, tourism industry as well as environmental concerns.

 

So called issue of cheating by these small tourism operators remained main hidden mind set of all authorities/regulators due to which they were not interested to find prompt solution. Actually, this had been the negligence in connivance of local administration, tourism department and other regulators since long at Manali, hence failed to check and regulate tourism business fairly.  I also found some instances of cheating but it has emerged systematically in connivance of whole system in place for which these are not exclusively responsible.

 

Interest of big business houses and it reflection on regulators seems major reason. I am a witness of Sky Village project of Ford worth Rs. 6500 crord and was associated with the local people of the region those who were opposing this project four year back. Now new investors have their eyes on this lucrative business at this site. These investors have capacity to influence system. At present an investor is running rope-way with restaurant on leased land of forest at Solang Nala and may interested to expand his business or may be some other party behind this systematic campaign against local small operators.       

 

Issue of environment protection and so call eco sensitive region is a least priority in this case but it can be good and convincing factor to pave smooth path for big investors.

 

 We  as Himalaya Niti Abhiyan are saying since long that unscientific and unregulated constructions in hilly areas, unplanned urbanisation producing just shit and dumping it into rivers, Hydro projects and power transmission lines even near glacier, cement plants and mining for them,  four line roads,  hazardous chemical industry in peripheral region of the state, over burdened population inflow in Himalaya for so called leisure and searching peace,   plying huge number of vehicle for luxuries by rich, heavy army installation across the Himalaya by all bordering  countries are main reasons for environmental crisis, deforestation,  glacier depletion, pollution, erratic weather and disasters in this Himalayan region, which are actually responsible for  contributing to climate change and carbon imitation.

 

Sorry, no one is interested to speak and stand with truth even courts today. Let's search which court has stop and took notice by its own motion against Hydro projects and power transmission lines, hazardous industries, Sky village, SEZ, cement plants and even thermal plant of JP at Nalagarh; which were really climate criminal proposals. There is no evidence available where court on its own motion took justified notice but my experience is that people resisted of their own and compelled government and judiciary to stall some of these disastrous projects in Himachal. 

 

On This recent issue of Manali Rohtang tourism operation we had been suggesting on simple prospects; first is Himachal Pradesh needs employment for its more than ten lekh unemployed youth and tourism is a sector; which can absorb and generate employment and huge number of livelihoods opportunities.  Himalaya Niti Abhiyan and Equation(Bangloru) organised six communities gathering on the issue of tourism in 2011-12 in which people from tourism industries particularly Hoteliers, home stay and guest house owners, Taxi operators, rafter, pony owners, small dhawa and shop owners and others related participated. These meeting were conducted at Chamba, Meclodganj, Manali, Kufari, Recongpio and Banjar. We found that more than six lekh people are involved in tourism and related businesses in Himachal. Tourism industry is contributing about 7% to states revenue receipt today.

 

We were informed by the participants and on the bases we found many irregularities such as poor planning and promotion of the business, poor regulations and guidelines, poor security measures for tourists, unhygienic service, missing garbage disposal regulations in practice, corruption by government agencies such as Tax department, tourism department, police, and others on government side.  On the other hand found that cheating of customers by  operators, poor garbage disposals and filth at all sites, unprofessional, unhealthy and violent behaviours, poor infrastructure and risky constructions at many places and encroachments over forest and government land, illegal activities such as prostitution, drug addiction, exploitation of migrant labour particularly child labour.

 

Reply These-

 

1.        These are flip side of this business, so shall we stop this business?

 

2.        Is there an alternate to it, which will be based on equity, protecting the interest of host community, socially and culturally responsibility, sustainability and environment friendly?

 

3.        Shall this business be handed over to big investors and mega tourism operators?

 

 

I am proposing debate on the matter and also suggest a meeting of all concerned i.e. government, local tourism operators of Manali and experts on the matter so that we could come to some solution.

 

Tourism industry is going to increase in future; hence there is no question and possibility to stop it; but we have to search solution which really can be safe, responsible, non exploitive and sustainable in its practice.

 

Guman Singh

 

 

 

 

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