Total Pageviews

THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

Twitter

Follow palashbiswaskl on Twitter

Saturday, March 12, 2016

और गधों,खच्चरों की अंध फौज से हम जुल्म की इंतहा का तिलिस्म तोड़ नहीं सकते! जादूगर अय्यारों की तलवारों की धार को जंगल की आदिम महक से हराने की तरकीब चाहिए!


हमें इंसानियत के हकहकूक के लिए कयामत से टकराने वाले कायनात के रहनुमा लड़ाके चाहिए क्योंकि अंधियारे के खिलाफ रोशनी की जंग हम हार नहीं सकते!

और गधों,खच्चरों की अंध फौज से हम जुल्म की इंतहा का तिलिस्म तोड़ नहीं सकते!

जादूगर अय्यारों की तलवारों की धार को जंगल की आदिम महक से हराने की तरकीब चाहिए!

पलाश विश्वास

बहुत कोफ्त हो रही थी कि लोग यह भी नहीं समझते कि जाति कोई सवर्ण असवर्ण नहीं होती और हर जाति अंततः गुलाम शूद्र है।दीवार है इंसानियत को बांटने की और साप्रदायिकता उन दीवारों को मजबूत करने का सबसे बड़ा सीमेंट हैं।जातियों के असम अन्याय तंत्र मंत्र यंत्र को मजबूत बनाने के लिए धर्मोन्माद बलिप्रदत्त प्रजाजनों के लिए एनेस्थेसिया है ताकि अंग प्रत्यंग कट जाने का अहसास ही किसी को नहीं हो।एकाधिकारवादी वर्चस्व अश्वमेध राजसूय मुक्तबाजार समय में धर्मोन्माद मनुस्मृति के तहत जातियों को बहाल रखते हुए निर्मम नरसंहार को वैध टहाराने की आधार परियोजना है।


इन हालात से टकराने के लिए,वक्त की चुनौतियों के मुकाबले के लिए वैज्ञानिक सोच के सिवाय,सच की खोज के सिवाय लोक विरासत की जड़ों में अपनी ताकत खोजने के अलावा जनगण के लिए आत्मरक्षा का कोई रक्षाकवच नहीं है।भारतवर्, के लोक विरासत में जीवन जीविका जल जंगल जमीन नागरिकता और मानवाधिकार की रक्षा के अचूक ब्रह्मास्त्र हैं और हम अपने खजाने से अनजान बेमतलब आत्मध्वंस पर तुले हुए अपने स्वजनों के खून की खुशबू से मदहोश उपभोक्ता समुदाय नरभक्षी भेड़ियों की पैदल फौजें है।

जागरण अगर है नहीं।सहमति का विवेक और असहमति का विवेक अगर है नहीं,सहिष्णुता का मजहब और बहुलता की इंसानियत अगर है नहीं,तो बहुजन हो या दूसरा कोई,वह सत्ता वर्ग का पालतू गधा और खच्चर के सिवाय कुछ भी नहीं है।


और गधों,खच्चरों की अंध फौज से हम जुल्म की इंतहा का तिलिस्म तोड़ नहीं सकते


हमें इंसानियत के हकहकूक के लिए कयामत से टकराने वाले कायनात के रहनुमा लड़ाके चाहिए क्योंकि अंधियारे के खिलाप रोशनी की जंग हम हार नहीं सकते


और गधों,खच्चरों की अंध फौज से हम जुल्म की इंतहा का तिलिस्म तोड़ नहीं सकते


जादूगर अय्यारों की तलवारों की धार को जंगल की आदिम महक से हराने की तरकीब चाहिए



हजारों जातियों में बंटे हुए प्रजाजन यह समझते ही नहीं कि मनुस्मृति मुक्मल अर्थशास्त्र है और संसाधनों पर एकाधिकार का स्थाई बंदोबस्त की जमींदारी और रियासत है जाति व्यवस्था।


जिस पायदान पर जो भी हैं,वह न सवर्ण है और न असवर्ण क्योंकि जाति से जो पहचान बनती है वह गुलामी की मुकम्मल मुहर है।


पिछवाड़े लग कर यह ठप्पा जनमजात नहीं है और ने जैविकी कोई करिश्मा अनिवार्य है लेकिन पहचान के जनमजात बंदोबस्त के तहत यही ठप्पा दिलोदिमाग तालाबंद आदमजाद इंसान का मुकद्दर बन जाता है और मजहब कत्ल हो जाने के लिए लिये तयशुदा लोगों को पकाने खाने की रस्म अदायगी में तब्दील है अगर वह रुह की आजादी के खिलाफ निरंकुश सत्ता की सियासत है।


भूमिहार हो या कायस्थ,जाट हो या गुज्जर या मराठा या लिंगायत .इनमें कोई वर्ण नहीं है और वर्ण नहीं है तो मनुस्मृति के विशेषाधिकार के हकदार भी नहीं हैं।


जातियां सिर्फ शूद्रों की होती हैं और शूद्रों को हजारों हजार खाने में तब्दील करने का लोकतंत्र है निरंकुश राष्ट्र का जनविरोधी सैन्यतंत्र यह।जाति जिसकी भी है,वह अंततः शूद्र है तो जाति की यह मंडल कमंडल सियासत हमारे कत्लेाम का सैन्यतंत्र है राष्ट्र को अंधकार के भेड़यों का निरंकुश कत्लगाह में तब्दील करने का।


हमें अफसोस है कि बहुसंक्य जनगण यह समझ नहीं रहे हैं और मुद्दा फिर रोहित वेमुला से बदलकर जेएनयू फिर माल्या और फिर श्री श्री है।तंत्र मुद्दों से मुद्दों के भटकाव,व्यक्तिनिर्भर आंदोलन के अस्मिता संघर्ष की सियासत के तहत निरंतर मजबूत होता रहेगा औरनरसंहार का सिलसिला थमेगा नहीं क्योंकि बुनियादी मुद्दा फिर वही शक्ति और संसाधन के स्रोतों के न्यायपूर्ण बंटवारे का है,सबके लिए समान अवसर के लोकतंत्र का है,मेहनतकशों के हक हकूक का है,नागिरक संप्रभुता और स्वंतंत्र मनुष्यता और सुरक्षित प्रकृति और पर्यावरण का है।


जाति जिनका ज्ञान विज्ञान है वे इन तमाम जटिल मुद्दोंं से,सामाजिक यथार्थ से,बहुआयामी सच से और एकाधिकारवादी मुक्त बाजार के पेचीदा आध्यात्मिक धर्मोन्मादी अंध आत्मघाती राष्ट्रवाद के आत्मघाती दावानल में जलकर खाक हो जाने को अभिशप्त हैं।


आज दिन में दलित अस्मिता टीम से लंबी बातचीत में मैंने भाषाओं की दीवारें,अस्मिताओं की दीवारें तोड़ने के अपने विचार ऱकते हुुए वर्चस्व के सौंदर्यशास्त्र व्याकरण इत्यादि के बदले लोक विरासत की जड़ों मे खोये मुख्यधारा की कला संस्कृति  के तहत विधायों और माध्यमोंके किलों और तिलिस्मों को ढहाने की बात की  तो हमारे मित्रों को गलतफहमी हुई कि शायद हम दलित सौंदर्यशास्त्र की बात कर रहे हैं।धलित,आदिवासी,पिछड़ा सौदर्यशास्त्र फिर वही मनुस्मृति तिलिस्म बंटवारे का है।


चीखों का न कोई सौंदर्यशास्त्र होता है और न कोई नियत विधा या माध्यम की सीमाबद्धता होती है।उत्पीड़ितोंं,वंचितों और बहिस्कृतों को तमाम माध्यमों और विधायों से बेदखल करने की संस्कृत काव्यधारा है यह मुक्म्मल मनुस्मृति।


आज तकनीक ऐसी है कि पीसी पर अनुवादक मौजूद है और कोई भाषा अबूझ नहीं है और हर चीख अब पढ़ी लिखी जा सकती है।इंसानियत के मुकम्मल मुल्क के लिए,मेहनतकशों की सरहदों के आरपार गोलबंदी का यह अभूतपूर्व मौका है।


बेहतर हो कि हम समझें कि अभिव्यक्ति का कोई शास्त्र नहीं होता।


बेहतर हो कि हम समझें कि शास्त्र,व्याकरण और वर्तनी मनुस्मृति अनुशासन के तहत प्रजाजनों को ज्ञान विज्ञान के अधिकारों से वंचित करने का षडयंत्र है।


बेहतर हो कि हम समझें कि विधाओं ,माध्यमों के नियम और प्रतिमान भी लोक को हाशिये पर रखकर अश्वमेध के राजसूय के तहत कला साहित्य में बहुजनों का सफाया अभियान है।


बेहतर हो कि हम समझें कि भाषा कोई बंधन नहीं है।

बेहतर हो कि हम समझें कि भाषा अंततः मातृभाषा है और हर भाषा हमारी मातृभाषा है।


बेहतर हो कि हम समझें कि हमें हर भाषा से मुहब्बत होनी चाहिए।हर भाषा हमें समझनी चाहिए।


बेहतर हो कि हम समझें कि भाषा में अभिव्यक्ति की मुक्ति है और उत्पीड़ियों ,वंचितों और बहिस्कृतों की अनंत चीखों की शृंखला है भाषा,जो गंगा यमुना की अविरल धारा है।समुंदर की लहरे हैं।


बेहतर हो कि हम समझें कि नदी और समुंदर को बांधकर जीवन जीविका के सभी स्रोतों पर काबिज मनुस्मृति तंत्र के अनुकरण में मुक्ति का न विमर्श है और न समता और न्याय का पथ।


बेहतर हो कि हम समझें कि हमें लोक विरासत में कला और साहित्य संस्कृति की जल विरासत की जड़ों में लौैटना होगा और कुलीनत्व के झूठे ताम झामे के किले  और तिलिस्म तोड़ने होंगे।



जाहिर है कि सौंदर्यशास्त्र भी मनुस्मृति का ही  अंग प्रत्यंग है।


जाहिर है कि सौंदर्यशास्त्र श्री श्री का विशुध वेदपाठ है और यह वैदिकी लोक उत्सव गुलामी को हसीन ख्वाबगाह में तब्दील करके अंध,मूक,वधिर जन गण के नरसंहार के जरिये शक्ति के तमाम स्रोतों और नैसर्गिक संसाधनों पर सत्तावर्ग के एकाधिकारवादी मुक्तबाजारी वर्चस्व कायम करता है।


कभी मार्क्सवादियों ने भी मार्क्सवादी सौंदर्यशास्त्र पर धूम धड़ाके से बहस चलायी थी जो पहले ही सिरे खारिज हो गयी है।


बाजारु दल्ला समाजशास्त्रियों के फतवे के मुताबिक बहुजन मुखयधारा बायप्राडक्ट सबअल्टर्न है।


जबकि हकीकत इसके उलट है क्योंकि सत्ता का सौदर्याशास्त्र अंततः मनुस्मृति राज है।


प्रसंगः


2016-03-12 13:32 GMT+05:30 Dr. Haresh Parmar <editorsangharsh@gmail.com>:

दिलीप जी se aapki baat दलित सौन्दर्यशास्त्र की हुई, आप बतचीत के आधार एवं आपके विचारों अध्ययन के आधार पर हमें लिख केन भेजे.

दलित अस्मिता के लिए.

धन्यवाद

डॉ. हरेश परमार


--


Dhanyvad


Dr. Haresh Parmar

Associate Editor in Sangharsh (Struggle)

Mo. 09408110030 / 09716104937

Email : editorsangharsh@gmail.com

Web : www.dalitsahitya.com and http://eklavyapublication.in


राष्ट्र्वाद का वजूद साम्राज्यवाद के विरुद्ध संघर्ष के रूप में सामने आया था, लेकिन कुछ देश राष्ट्रवाद की राह पर चलकर सर्वसत्तावादी राष्ट्र-राज्य में तब्दील हो गए. चूंकि राष्ट्रवाद देशप्रेम जैसी स्वाभाविक भावना का राजनीतिक रूप है, इसलिए इसका कोई सर्वमान्य मूल्य स्थापित नहीं है. इसकी सकारात्मकता में दमनकारी होने की संभावनाएं भी मौजूद हैं.
भारत के राष्ट्रीय आंदोलन में राष्ट्रवाद की भूमिका बेहद अहम रही है, लेकिन तभी से इसकी कई धाराएं भी मौजूद रही हैं. आज जब एक खास तरह का राष्ट्रवाद अराजक तत्वों के रूप में कोर्ट परिसरों से लेकर विश्वविद्यालयों तक में उपद्रवकारी साबित हो रहा है तब 8 जनवरी 1934 को 'हंस' में प्रकाशित प्रेमचंद का यह लेख बेहद प्रासंगिक हो गया
यह तो हम पहले भी जानते थे और अब भी जानते हैं कि साधारण भारतवासी राष्ट्रीयता का अर्थ नहीं समझता, और यह भावना जिस जागृति और मानसिक उदारता से उत्पन्न होती है, वह अभी हम में बहुत थोड़े आदमियों में आई है. लेकिन इतना जरूर समझते थे कि जो पत्रों [...]



--

Pl see my blogs;

http://ambedkaractions.blogspot.in/


http://palashscape.blogspot.in/


Feel free -- and I request you -- to forward this newsletter to your lists and friends!


--
Pl see my blogs;


Feel free -- and I request you -- to forward this newsletter to your lists and friends!

No comments:

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...

PalahBiswas On Unique Identity No1.mpg

Tweeter

Blog Archive

Welcome Friends

Election 2008

MoneyControl Watch List

Google Finance Market Summary

Einstein Quote of the Day

Phone Arena

Computor

News Reel

Cricket

CNN

Google News

Al Jazeera

BBC

France 24

Market News

NASA

National Geographic

Wild Life

NBC

Sky TV