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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Sunday, March 19, 2017

बेहतर हो कि संघ परिवार के राजनीतिक और आर्थिक एजंडा के मुकाबले आरोप प्रत्यारोप और आलोचना से आगे कुछ सोचा जाये।मजहबी सिय़ासत की कयामत तो अब बस शुरु ही हुई है।आगे आगे देखते जाइये। क्या महंत नरेंद्र सिंह नेगी गढ़वाल और उत्तराखंड के हितों का भी ख्याल रखेंगे? पलाश विश्वास

बेहतर हो कि संघ परिवार के राजनीतिक और आर्थिक एजंडा के मुकाबले आरोप प्रत्यारोप और आलोचना से आगे कुछ सोचा जाये।मजहबी सिय़ासत की कयामत तो अब बस शुरु ही हुई है।आगे आगे देखते जाइये।
क्या महंत नरेंद्र सिंह नेगी गढ़वाल और उत्तराखंड के हितों का भी ख्याल रखेंगे?
पलाश विश्वास

महंत आदित्यनाथ कहते हैं कि  जन्मजात गढ़वाली है और सन्यासी बनने से पहले उनका नाम नरेंद्र सिंह नेगी रहा है।उन्होंने हेमवतीनंदन बहुगुणा विश्विद्यालय गढ़वाल से बीए पास किया।
गढ़वाल के पहाड़ों से उतरकर पिछड़े पूर्वांचल में गोरखपीठ की ऐतिहासिक विरासत को संभालते हुए चाहे उनकी विचारधारा कुछ हो,वे उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री बने।गढ़वाले के हमवती नंदन बहुगुणा की तरह।
बहुगुणा परिवार के सारे लोग अब संग परिवार के सिपाहसालार हैं।तो महंत अजयसिंह बिष्ट  बिना किसी राजनीतिक विरासत के बहुगुणा और तिवारी के बाद पहाड़ से उतरकर मैदान में अपने धुरंधर प्रतियोगियों को पछाड़कर यूपी जैसे राज्य के मुख्यमंत्री बन गये,यह उनकी निजी उपलब्धि हैं।जिसे खारिज नहीं किया जा सकता।
विचारधारा के स्तर पर उनके एजंडे के हम खिलाफ हैं लेकिन हम उनके राजनीतिक मुकाबले की हालत में नहीं हैं।
सपा और बसपा का बंटाधार हो चुका है।
संघ परिवार,मोदी,भाजपा और महंत अजयसिंह बिष्ट के एजंडे में कोई अंतर्विरोध नहीं है।
यह संघ परिवार की सोची समझी दीर्घकालीन रणनीति है कि वीर बहादुर सिंह के बाद गोरखपुर अंचल के किसी कट्टर हिंदुत्ववादी महंत को उन्होंने यूपी की बागडोर सौंपी है।
2019 के चुनाव से पहले हम जय श्रीराम का नारा अब भारत के हर हिस्से में सुनने को अभ्यस्त हो जायेंगे और हिंदुत्व सुनामी के साथ आर्थिक कारपोरेटीकरण से उपभोक्ता संस्कृति का बाग बहार विचारधारा के स्तर पर बेईमान और मौकापरस्त राजनीतिक दलों को भारतीय राजनीति में सिरे से मैदान बाहर कर देगा।
जाहिर है कि संघ परिवार आगे कमसकम पचास साल तक हिंदू राष्ट्र के नजरिये से यह निर्णय किया है।जिसे अंजाम देने के लिए अपने संस्थागत विशाल संगठन के अलावा मुक्ताबाजार की तमाम ताकतेंं,मीडिया और बुद्धिजीवि तबका एक मजबूत गठबंधन बतौर काम कर रहा है।
केशव मौर्य को मुख्यमंत्री इसलिए नहीं बनाया क्योंकि संग परिवार के पास दलित सिपाहसालार इतने ज्यादा हो गये है कि उन्हें अब मायावती से कोई खतरा नजर नहीं आ रहा है।
दलित मुख्यमंत्री चुनने के बजाय कट्रहिंदुत्ववादी ठाकुर महंत मुख्यमंत्री बनाकर रामजन्मभूमि आंदोलन का ग्लोबीकरण का यह राजसूय यज्ञ है।
बहरहाल,वीरबहादुर सिह ने जिस तरह पूर्वी उत्तर पर्देश का कायाकल्प किया,उसका तनिको हिस्सा काम अगर महंत पूर्वी उत्तर पर्देस के लिए कर सकें,तो यह इस अब भी पिछड़े जनपद के विकास के लिहाज से बेहतर होगा।
सन्यास के बाद पूर्व आश्रम से कोई नाता नहीं होता।साधु को राजनीति और राजकाज से भी किसीतरह के नाते का इतिहास नहीं है।तो राजनीति में राजपाट संभालनेके बाद पूर्व आश्रम की याद के बदले महंत नरेंद्र सिंह नेगी अगर उत्तराखंड को यूपी का समर्थन देकर उसका कुछ भला कर सके,तो उत्तराखंड के लिए बेहतर है।
छोटा राज्य होने से भारत की राजनीति में उत्तराखंड कीकोई सुनवाई नहीं है और सत्ता चाहे किसी की हो सत्ता पर काबिज वर्चस्ववादियों को उत्तराखंड की परवाह नहीं होती।ऐसे में कोई गढ़वाली फिर यूपी जैसे बड़े राज्य का मुख्यमंत्री बन गये हैंं,यह शायद हिंदुत्वकी कारपोरेट राजनीति में केसरिया उत्तराखंड के लिए बेहतर समाचार है.
गौरतलब है कि चंद्रभानु गुप्त से पहले पंडित गोविंद बल्लभ पंत आजादी से पहले संयुक्त प्रांत की अंतरिम सरकार के प्रधानमंत्री थे,जो यूपी के भी मुख्यमंत्री बने। वे केद्र में गृहमंत्री थे.उके बेटे कैसी पंत निहायत सजज्न थे और लंबे समय तककेंद्रे में मंत्री रहे है और वाजपेयी के समय योजना आयोग के उपाध्यक्ष भी रहे हैंं।फिर हेमवती नंदन बहुगुणा के बाद नारायण दत्त तिवारी उत्तर प्रदेश के तीन तीन बार मुख्यमंत्री बने।इन नेताओं ने बदले में उत्तराखंड को कुछ नहीं दिया है।
अब उत्तराखंड अलग राज्य है।वहां भी एक स्वयंसेवक त्रिवेंद्र सिंह रावत को सत्ता की बोगडोर सौंपी गयी है।चूंकि तीन चौथाई बहुमत से यूपी और उत्रतराखंड में भाजपाकी सरकारे बनी हैं,तो लोगों को ुनसे बड़ी उम्मीदें है।
महंत शुरुसे विवादों में रहे हैं और उनके खिलाफ गंभीर आरोप रहे हैं।ऐसे आरोप संगपरिवार के सभी छोटे बड़े नेताओं के बारे में रहे हैं।जाहिर है कि इन विवादों की वजह से सत्ता के शिखर पर पहुंचने का राजमार्ग उनके लिए खुला है,तो वे उसी राजमार्ग पर सरपट भागेंगे।
बेहतर हो कि संघ परिवार के राजनीतिक और आर्थिक एजंडा के मुकाबले आरोप प्रत्यारोप और आलोचना से आगे कुछ सोचा जाये.मजहबू सिय़ासत की कयामत तो अब बस शुरु ही हुई है।आगे आगे देखते जाइये।
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