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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Monday, September 27, 2010

नौकरी जाने का डर है तो बेनामी होकर करें काम

नौकरी जाने का डर है तो बेनामी होकर करें काम


http://mohallalive.com/2010/09/27/p-sainath-lecture-by-duj/

नौकरी जाने का डर है तो बेनामी होकर करें काम

27 September 2010 3 Comments

दिल्‍ली में डीयूजे ने कराया पी साईनाथ का व्‍याख्‍यान

छिपाते-दबाते खबरों की खरीद-बिक्री का मसला आज देश में सतह पर आ चुकी चिंताओं में शुमार किया जाने लगा है। इसी मसले पर शुक्रवार की शाम दिल्ली के कंस्टीट्यूशन क्लब में पी साईनाथ का व्याख्यान था। आयोजन दिल्ली यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट का था। अंग्रेजी अखबार 'द हिंदू' के ग्रामीण मामलों के संपादक पी साईनाथ ने मीडिया से जुडे़ लगभग हर मसले पर अपनी राय जाहिर की। उन्होंने कहा कि भारतीय मीडिया कंपनियों ने विमानन, होटल, सीमेंट, जहाजरानी, इस्पात, शिक्षा, ऑटोमोबाइल, कपड़ा, क्रिकेट, सूचना प्रौद्योगिकी और अचल संपत्ति जैसे कई क्षेत्रों में निवेश किया है। मीडिया और कॉरपोरेट घरानों के बीच हुई संधियों के कारण अखबार इश्तेहारों की गारंटी और नकारात्मक कवरेज नहीं देने के लिए हर कंपनी में सात से दस फीसद की हिस्सेदारी खरीद लेते हैं। एक अखबार आईपीएल के दक्षिण क्षेत्र की टीम का मालिक है तो दूसरा अखबार कोलकाता नाइट राइडर्स में पैसे लगा रहा है। तो क्या हम उम्मीद कर सकते हैं कि ये अखबार कभी इसके खिलाफ कुछ छपने देंगे?

पी साईनाथ ने कहा कि आज मीडिया ने कॉरपोरेट संधियों के कारण नये शब्द भी ईजाद किये हैं। उन्होंने फिल्म 'बंटी और बबली' का उदाहरण देते हुए कहा कि कैसे एक अंग्रेजी न्यूज चैनल 'बंटी और बबली' के रिलीज को सबसे अहम खबर मानता है और उसे दिन भर दिखाता है। इसके लिए एक शब्द भी गढ़ा गया है – 'प्रमोशनल प्रोग्राम।' इसी 'प्रमोशनल प्रोग्राम' के तहत फिल्मों और दूसरी कारोबारी गतिविधियों को दिन भर टीवी पर चलाया जाता है। मीडिया और कॉरपोरेट एक-दूसरे का सहारा बन चुके हैं। इसलिए मीडिया घराने अब 'बिजनेस लीडर्स अवार्ड' देते हैं।

साईनाथ ने कहा कि कोई मीडिया घराना अच्छे डॉक्टर या नर्स को पुरस्कार नहीं देता है। उसके हीरो सिर्फ 'बिजनेस लीडर्स' ही हैं। इसी मानसिकता के तहत देश के दो प्रमुख अखबारों ने 'रिसेशन' जैसे शब्द के प्रयोग तक पर रोक लगा दी थी। पत्रकारों को खास हिदायत दी गयी थी कि वे 'मंदी' यानी 'रिसेशन' शब्द के इस्तेमाल से बचें। इसके बदले 'इकोनॉमिक स्लोडाउन' यानी धीमी अर्थव्यवस्था का इस्तेमाल करें। इसका प्रमुख कारण यह है कि मीडिया मालिकों से लेकर बड़े-बड़े पत्रकारों तक का भविष्य शेयर बाजार पर निर्भर करता है। इसलिए शेयरों का चढ़ना-उतरना इनकी सबसे बड़ी चिंता होती है।

साईनाथ ने जन सरोकारों के प्रति मीडिया के घटते लगाव के बारे में कहा कि अब शायद ही कोई अखबार कृषि और मजदूरों की हालत की रिपोर्टिंग के लिए अलग से पत्रकार रखता है। मुख्यधारा के मीडिया में भारत का ग्राम्य समाज कहीं नहीं दिखता है। उन्होंने आगाह किया कि अगर आप किसानों, मजदूरों, गरीबों को मीडिया से दूर रखते हैं तो इसका मतलब यह है कि आप पचहत्तर फीसद यानी तीन चौथाई भारत को अलग कर देते हैं। साईनाथ ने उन कृषि पत्रिकाओं पर भी चिंता जतायी जो दिल्ली और केरल जैसी जगहों से किसानों के हितों के नाम पर निकल रहे हैं। उन्होंने कुछ कृषि पत्रिकाओं का उदाहरण देते हुए बताया कि इन पत्रिकाओं में उन्हीं बहुराष्‍ट्रीय बीज कंपनियों के भारी-भरकम विज्ञापन होते हैं, जो किसानों की जमीन और उपज पर एकाधिकार चाहते हैं।

साईनाथ ने कहा कि मुख्यधारा का मीडिया वंचितों की खबर नहीं चाहता। उन्होंने मुंबई के पास के एक स्कूल की घटना का जिक्र किया। स्कूल की शिक्षिकाओं ने बताया कि हमारे स्कूल के बच्चों को शनिवार और रविवार का दिन अच्छा नहीं लगता। इन स्कूलों में उन घरों से बच्चे आते हैं, जिन्हें दिन में भरपेट दो वक्त का खाना नहीं मिलता। शुक्रवार दोपहर भरपेट खाना खाने के बाद इन बच्चों को सोमवार की दोपहर को ही पूरा पेट खाना मिल पाता है। शिक्षिका ने बताया कि सोमवार को मध्याह्न से पहले की कक्षा लेना मुश्किल हो जाता है। बच्चों को इंतजार रहता है कि कब घंटी बजे और कब खाना मिले। हमें तो लगता है कि इन भूखे बच्चों को पहले खाना दे दिया जाए, तभी पढ़ाया जाए। हमारी मुख्यधारा के मीडिया में उन बच्चों के लिए जगह नहीं होती है, जिन्हें रविवार से इसलिए खौफ होता है क्योंकि उस दिन वे भूखे रह जाएंगे।

उन्होंने कहा कि हम कॉरपोरेट मीडिया घरानों से यह उम्मीद नहीं कर सकते हैं कि वे खबरों की बिक्री या पेड न्यूज को नकार देंगे। मीडिया अब सांगठनिक रूप से भ्रष्ट हो चुका है। इसलिए अब निजी कोशिशों की अहमियत ज्यादा हो गयी है। उन्होंने वहां मौजूद युवा पत्रकारों से कहा कि आपकी नौकरी के कांट्रैक्ट में कहीं भी यह नहीं लिखा होता है कि आप पैसे लेकर खबर लिखें या मीडिया साधनों का इस्तेमाल निजी लाभ के लिए करें। आप अपनी तरफ से ईमानदारी बरतने की कोशिश करें। उन्होंने कहा कि महाराष्‍ट्र चुनाव में पेड न्यूज की क्लीपिंग किसी अनजान पत्रकार ने उन्हें ईमेल की थी। नौकरी जाने से खौफजदा युवा पत्रकार बेनामी रह कर उन व्यक्तियों और संस्थानों तक मीडिया के भ्रष्टाचार की खबर पहुंचाएं जो शिद्दत से इसके लिए काम कर रहे हैं।

दलित की रोटी खाकर सवर्ण का कुत्ता हुआ अछूत…

सी कार्यक्रम में इतिहासकार रोमिला थापर ने भी अपनी बातें कहीं। रोमिला थापर ने अखबारों में छपी एक कुत्ते की कहानी का जिक्र किया। जब किसी दलित ने एक ऊंची जाति के घर के कुत्ते को अपनी रोटी खिला दी तो कुत्ते के मालिक ने अपने कुत्ते को अछूत घोषित कर दिया, क्योंकि दलित की रोटी खाकर वह भी अछूत हो गया था। कुत्ते का मालिक अपने हर्जाने के लिए दलित के खिलाफ पंचायत में भी चला गया और पंद्रह हजार रुपए हर्जाने की मांग की। खबरों की खरीद-बिक्री के बरक्स बकौल थापर आज हमें ऐसी खबरों पर भी मंथन करने की जरूरत है।


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[27 Sep 2010 | One Comment | ]
नौकरी जाने का डर है तो बेनामी होकर करें काम
[27 Sep 2010 | Read Comments | ]

पी साईनाथ ♦ कोई मीडिया घराना अच्छे डॉक्टर या नर्स को पुरस्कार नहीं देता है। उसके हीरो सिर्फ 'बिजनेस लीडर्स' ही हैं। इसी मानसिकता के तहत देश के दो प्रमुख अखबारों ने 'रिसेशन' जैसे शब्द के प्रयोग तक पर रोक लगा दी थी।

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अनुराग ♦ इंडियन मेल के बीच प्रॉब्लम रहा है कि ख्याल भी रखेंगे और फैंटेसी भी। मैं स्वतंत्र लड़की पसंद करता हूं। हमलोग बहुत इंप्रेशनलेबल होते हैं कि समाज लड़की को किस तरह की पैकेज में देखना चाहता है।
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सिनेमा »

[27 Sep 2010 | No Comment | ]
गया में तीन दिन रह कर ओमपुरी ने देखे कई नाटक

अनीश अंकुर ♦ ओमपुरी ने 'वीकली-हाट बाजार' को सार्थक सिनेमा का उदाहरण बताया। सीमा कपूर को दर्शकों ने बधाई देने के साथ-साथ कुछ सवाल भी पूछे। सीमा कपूर ने बताया कि उन्होंने मात्र दो करोड़ रुपये में यह फिल्म बनायी है जो कि आजकल की महंगाई के हिसाब से काफी सस्ती मानी जाएगी। जब इस पर चर्चा चली तो संजय सहाय ने बताया कि 1993 में गौतम घोष द्वारा बनी 'पतंग' 40 लाख में बनायी गयी थी। ओमपुरी पहली बार गया उसी फिल्म के दौरान आये थे। ओमपुरी को गया के डीएम संजय सिंह ने एक मोमेंटो प्रदान किया। ओमपुरी ने थोड़ी चुटकी लेने के अंदाज में कहा कि भाई गया इतना एतिहासिक शहर है, सारी दुनिया से लोग आते हैं, देश भर के लोग पिंडदान यहां कराते हैं पर यहां की सड़कें इतनी क्यों खराब हैं?

मोहल्ला रांची »

[27 Sep 2010 | One Comment | ]
लाल बत्ती छोड़ने की अपील पर कल सूचना आयोग में होगी चर्चा

डॉ विष्‍णु राजगढ़‍िया ♦ समय आ गया है जब सूचना आयोगों की भूमिका पर गंभीर चर्चा हो और एक कारगर रास्ता निकले। देश भर के सूचनाधिकार कार्यकर्त्ता विभिन्न रूपों में इस पर सवाल कर रहे हैं। लिहाजा, स्वयं सूचना आयुक्तों का कर्तव्य बनता है कि इस दिशा में कारगर पहल हो। हमें उम्मीद है कि देश और राज्‍यों में ऐसे मुख्य सूचना आयुक्तों, सूचना आयुक्तों की कमी नहीं जो इस पद को महज पैसे, पावर और प्रतिष्ठा की नौकरी नहीं बल्कि इस लोकतंत्र और इसके नागरिक के प्रति एक दायित्व के बतौर देखते होंगे। ऐसे सभी मुख्य सूचना आयुक्तों/सूचना आयुक्‍तों से निवेदन है कि वह 12 अक्तूबर 2010 को सूचना कानून की पांचवीं वर्षगांठ पर निम्नांकित बिंदुओं की स्वयंघोषणा करें।

नज़रिया »

[27 Sep 2010 | 3 Comments | ]
कई पुरुष लेखकों में एक छोटा-मोटा विभूति बैठा हुआ है

अजेय कुमार ♦ आज विभूति-कालिया का विरोध करने वालों में निश्चित तौर पर वे लोग भी शामिल हैं, जिनको उनसे अपने कोई पुराने हिसाब-किताब चुकता करने हैं। साहित्यकारों में और विशेषकर हिंदी के साहित्यकारों में आपसी गुटबाजी और द्वेष के कारण धड़ेबंदी की पुरानी परंपरा है। यहां अक्सर सौदेबाजी होती है और उसके आधार पर लोगबाग अपनी पोजीशन बदलते रहते हैं और कभी-कभी पता नहीं चलता कि कौन किसके खेमे में है। यह इस बहस का निंदनीय पहलू है। बेशक अधिकांश लेखिकाओं व लेखकों ने केवल सैद्धांतिक प्रश्नों को ही तरजीह दी है। परंतु एक भ्रष्ट व्यवस्था में आखिरकार सत्तासीनों का अपना एक खौफ होता है। इसी खौफ ने इस विवाद में कई जेनुइन लेखकों को चुप रहने पर विवश कर दिया है।

uncategorized »

[27 Sep 2010 | Comments Off | ]

मोहल्ला दिल्ली, विश्‍वविद्यालय »

[22 Sep 2010 | 21 Comments | ]
जेएनयू में पिछड़ों की एकजुटता को तोड़ने की साजिश

♦ इस साल भी इनकी गलत नामांकन प्रकिया के कारण 255 पिछड़े वर्ग के छात्रों को जेएनयू में पढ़ने से महरूम कर दिया गया। इन सभी सीटों को जनरल कटैगरी में तब्दील कर दिया गया है। इस मामले में प्रशासन हाइकोर्ट के फैसले को नजरअंदाज कर रहा है।

मीडिया मंडी, मोहल्ला भोपाल, विश्‍वविद्यालय »

[22 Sep 2010 | No Comment | ]
रिपोर्टिंग में जनहित का खयाल रखें : ए संदीप

डेस्‍क ♦ चौदह भाषाओं में प्रकाशित होने वाली समाचार पत्रिका द संडे इंडियन और माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय ने 18 सितंबर को भोपाल में "मध्य प्रदेश के विकास में मीडिया की भूमिका" पर एक राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन किया! इस सेमिनार में मध्‍यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, शिक्षामंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा, द संडे इंडियन के समूह संपादक ए संदीप, वरिष्‍ठ पत्रकार राहुल देव, उदय सिन्हा, दीपक चौरसिया के अलावा मध्य प्रदेश के कई वरिष्ठ पत्रकार उपस्थित थे। इस मौके पर ए संदीप ने कहा कि खोजी पत्रकारिता हो या फिर आलोचनात्मक पत्रकारिता, उसमें किसी व्यक्ति एवं संस्था पर आक्षेप लगाने के बजाय जनहित का ख्याल रखना चाहिए।

शब्‍द संगत »

[21 Sep 2010 | 5 Comments | ]
हम जो अब तक मारे नहीं गये…

रंजीत वर्मा ♦ हम जो अब तक मारे नहीं गये / शामिल थे शवयात्रा में / एक गुस्सा था जो दब नहीं रहा था / एक दुख था जो थम नहीं रहा था… लोगों ने कहा, हमने पहले ही कहा था उनकी ताकत को चुनौती मत दो / शवयात्रा तो निकलनी ही थी / लेकिन क्या यह सचमुच ताकत है / नहीं यह ताकत नहीं मक्कारी है / और अगर यह ताकत है भी तो सोचिए कि यह उनके पास / कहां से आयी और यह किसलिए है / और इसको लेकर ऐसा अंधापन / समझ लीजिए वे अपनी नींव की ईंट पर चोट कर रहे हैं… हमें मारे जाने का ब्लूप्रिंट हाथ में लिये / उनके पैरों का राग-विकास पर थिरकना देखिए / हमें बेदखलियाते लूटते ध्वस्त करते / बूटों के कदमताल पर मुख्यधारा का उनका आलाप सुनिए…

स्‍मृति »

[21 Sep 2010 | 2 Comments | ]

जावेद अख्‍तर खान ♦ आज चंद्रशेखर का जन्‍मदिन है। आज उसकी याद दोस्‍तों के साथ शेयर कर रहा हूं। हम सब उसे फौजी कहा करते थे, एनडीए से उसके बाहर आने के बाद। जेएनयू जाने के पहले वो एआईएसएफ और इप्‍टा में बहुत सक्रिया था। उन्‍हीं दिनों उसने पटना इप्‍टा की प्रस्‍तुति, स्‍पार्टाकस में काम किया था। एक छोटी सी भूमिका, एक अलग सी भूमिका, जो उसे अन्‍य राजनीतिकर्मियों से अलग बनाती थी। उसकी याद को सलाम!

नज़रिया, मीडिया मंडी »

[20 Sep 2010 | 28 Comments | ]
इस देश का मीडिया मूलतः हिंदुओं का मीडिया है

विनीत कुमार ♦ कई मौकों पर एहसास होता है कि इस देश का मीडिया मूलतः हिंदुओं का मीडिया है, जिसको चलानेवाले से लेकर पढ़नेवाले लोग हिंदू हैं। बाकी के समुदाय से उनका कोई लेना-देना नहीं होता। साल के कुछ खास दिन जिसमें विश्वकर्मा पूजा, दीवाली सहित हिंदुओं के कुछ ऐसे त्योहार हैं, जिसमें अखबार खरीदनेवाले को न तो पाठक और न ही ग्राहक की हैसियत से देखा जाता है बल्कि हिंदू के हिसाब से देखा जाता है। बाकी के जो रह गये वो अपनी बला से। उन्हें अगर उस दिन अखबार पढ़ना है, तो इतना तो बर्दाश्त करना ही होगा कि वो एक हिंदू बहुल मुल्क में रह रहे हैं। अब आप कहते रहिए इसे सामाजिक विकास का माध्यम और पढ़ाते रहिए लोगों को बिल्बर श्रैम की थीअरि।

Palash Biswas
Pl Read:
http://nandigramunited-banga.blogspot.com/

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