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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Friday, January 28, 2011

Fwd: रुबल दत्ता ने ‘सहारा मीडिया’ में बतौर नेशनल हेड सेल्स मार्केटिंग ज्वाइन किया,नेटवर्क18 को तीसरी तिमाही में 82.77 करोड़ शुद्ध लाभ



---------- Forwarded message ----------
From: समाचार4मीडिया <mailer@samachar4media.com>
Date: 2011/1/28
Subject: रुबल दत्ता ने 'सहारा मीडिया' में बतौर नेशनल हेड सेल्स मार्केटिंग ज्वाइन किया,नेटवर्क18 को तीसरी तिमाही में 82.77 करोड़ शुद्ध लाभ
To: palashbiswaskl@gmail.com


 
Fri, 01/28/2011 - 11:25
रुबल दत्ता ने 'सहारा मीडिया' में बतौर नेशनल हेड सेल्स मार्केटिंग ज्वाइन किया
रुबल दत्ता ने 'सहारा मीडिया' में बतौर नेशनल हेड, सेल्स मार्केटिंग के तौर पर ज्वाइन किया है। रूबल इससे पहले इंडोनेशिया की एक कंपनी में अपनी सेवाएं दे रहे थे। रुबल को 'सहारा मीडिया' के लिए मार्केटिंग, बिजनेस प्लानिंग, सेल्स आदि की जिम्मेदारी सौपी गई है। 'सहारा मीडिया' प्रबंधन ने समाचार4मीडिया से रुबल दत्ता की 'सहारा समूह' में शामिल होने की बात की ख़बर की पुष्टि करते हुए बताया है कि रुबल दत्ता ने 'सहारा' ज्वाइन कर लिया है और वे 'सहारा' के तीनों माध्यमों टीवी, प्रिंट और वेब को देखेंगे।

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नेटवर्क18 को तीसरी तिमाही में 82.77 करोड़ शुद्ध लाभ
नेटवर्क18 मीडिया एंड इनवेस्टमेंट ने 27 जनवरी, 2011 को तीसरी तिमाही के नतीजों की घोषणा की है। कंपनी ने 31 दिसंबर, 2010 को समाप्त हुए तीसरी तिमाही में समेकित शुद्ध लाभ 82.77 करोड़ का अर्जित किया है। पिछले वर्ष इसी वित्तीय अवधि में कंपनी को 54.51 करोड़ की शुद्ध हानि हुई थी। कंपनी का राजस्व इस तिमाही में 405.58 करोड़ रुपये का दर्ज किया गया है जबकि पिछले वर्ष की इसी अवधि में कंपनी को 370.11 करोड़ रुपये का राजस्व अर्जित हुआ था।

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निवेदिता मुखर्जी ने 'बिजनेस स्टैंडर्ड' ज्वाइन किया
निवेदिता मुखर्जी जल्द ही 'बिजनेस स्टैंडर्ड' ज्वाइन करने जा रही हैं। समाचार4मीडिया से खबर की पुष्टि करते हुए उन्होंने कहा कि वे 1 फरवरी से 'बिजनेस स्टैंडर्ड' ज्वाइन करेगी। वे अखबार में बतौर एडिटर की भूमिका में रहेंगी। इससे पहले, वे 'डीएनए' अखबार में अपनी सेवाएं दे रही थीं।निवेदिता ने यह भी बताया कि वे 'बिजनेस स्टैंडर्ड' में रियल स्टेट, हॉस्पिटैलिटी, फार्मा, हेल्थ-केयर पर्यावरण और पर्यटन जैसे क्षेत्रों में अग्रणी भूमिका निभायेगी। उनका मुख्य फोकस अखबार का सर्कुलेशन और रीडरशिप को बढ़ावा देना होगा।

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विशेष खबरें
'बीएजी' का 'आईसोम्स' अब लखनऊ में भी खुलेगा

'बीएजी फिल्म्स' ने अपने मीडिया संस्थान 'आईसोम्स' का विस्तार किया है अब 'आईसोम्स' की अगली शाखा लखनऊ में खोल जा रही हैं। अब तक, 'आईसोम्स' नोएडा में चल रहा था जहां देश भर से पत्रकारिता के छात्र-छात्रा पढ़ाई के साथ-साथ ट्रेनिंग भी लेते थे। प्रबंधन की कोशिश है कि दूर-दराज से आने वाले छात्र-छात्रा नोएडा न आकर लखनऊ में ही रहकर वहीं पढ़ाई करे। 'आईसोम्स' पीछे कई सालों से सकुशल काम कर रहा है। यहां के छात्र, 'न्यूज़ 24' ही नहीं तमाम जाने माने न्यूज़ चैनल तथा अन्य विधाओं में अपनी सेवाऐं दे रहे हैं।

'बीबीसी रेडियो' की हिन्दी सेवा बंद होगी
'बीबीसी' से एक बुरी खबर आ रही है। खबर यह है कि 'बीबीसी' ने विश्व की पांच भाषाओं की सेवा को बंद करने का फैसला किया है। इतना ही नहीं, इसके अलावा वह अपनी हिंदी रेडियो सेवा भी बंद करने जा रही है। 'बीबीसी' ने यह कदम कॉस्ट कटिंग की कोशिशों के तहत उठाया है। इस निर्णय से 'बीबीसी' में कार्यरत लगभग 650 लोगों का जीवन प्रभावित होगा क्योंकि इन लोगों को अपनी नौकरियों से हाथ धोना पड़ेगा। 'बीबीसी' के लिए यह दिन 'काला दिन' से कम नहीं है।

 
'बीबीसी' हिंदी सेवा को बंद करने का निर्णय दुर्भाग्यपूर्ण: कुलवंत कोचर

कुलवंत कोचर, ऑडियो सर्कुलेशेन 'बीबीसी रेडियो' के इंचार्ज ने बीबीसी रेडियो की हिन्दी सेवा बंद करने पर कहा, "'बीबीसी' हिंदी सेवा को बंद करने का निर्णय दुर्भाग्यपूर्ण है। इसके कारण संचार माध्यम में पैदा होने वाले रिक्त स्थान को भरना असंभव होगा। हिंदी सेवा को बंद करने के पीछे यदि यह तर्क दिया जाये कि इसमें मुनाफा नहीं हो रहा है, जैसा कि आपने बताया, तो मैं इसे कुतर्क कहूंगा, क्योंकि 'बीबीसी वर्ल्ड' सर्विस के लिये अनुदान ब्रिटिश पार्लियमेंट मुहैया कराती है ताकि वह अपना सामाजिक दायित्व पूरा कर सके। 'बीबीसी हिंदी' सेवा का उद्देश्य कभी भी मुनाफा कमाना नहीं रहा।"

 
यह उनका नुकसान है जिनके पास कोई और माध्यम नही है: रामदत्त त्रिपाठी

बीबीसी हिन्दी रेडियो सेवा बंद करने के सवाल पर राम दत्त त्रिपाठी,  ब्यूरो प्रमुख, लखनऊ, 'बीबीसी' ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा, "'बीबीसी' खास कर जो हिन्दी रेडियो है तमाम ऐसे लोगों का समाचार माध्यम है, जिनके पास और कोई दूसरे साधन नहीं है इसके अलावा। यह सबसे बडा नुकसान है उन करोड़ लोगों का हैं जो देश-दुनिया की विश्वनीय जानकारियां 'बीबीसी' के माध्यम से लेते थे। अब, वे इससे वंचित हो जायेंगे। खास कर, हिन्दुस्तान की जनता को इसका नुकसान होगा। हिन्दुस्तान की आम जनता और स्टूडेंट वर्ग को देश-दुनिया की ख़बर 'बीबीसी हिन्दी' से नहीं मिल पायेगी।"

 
'बीबीसी हिंदी' रेडियो की कमान कहीं और लगाव कहीं: आलोक कुमार
'बीबीसी' हिंदी को चलाने के लिए जो पैसे आ रहे थे वो सरकारी बजट से आ रहे थे। अब जब सरकार ने पैसे देना बंद कर दिया तो 'बीबीसी' के पास कोई और रास्ता ही नहीं रह गया है क्योंकि 'बीबीसी हिंदी' को विज्ञापन से कोई आय प्राप्त नहीं हो रही थी। 'बीबीसी हिंदी' रेडियो की सेवा से लगभग 35 मीलियन लोग दिल से जुड़े हुए थे और इसमें कोई दो राय नहीं कि 'बीबीसी' के श्रोताओं को धक्का पहुंचा होगा। ब्रिटेन की माली हालात ठीक न होने के कारण यह फैसला लिया गया है।

 
'हिन्दुस्तान' का हापुड़ संस्करण लॉन्च
हिन्दी दैनिक 'हिन्दुस्तान' ने उत्तर प्रदेश में 24 जनवरी, 2011 को हापुड़ संस्करण लॉन्च किया है। इस संस्करण में स्थानीय खबरों के लिए कुल आठ पृष्ठ समर्पित किए गए हैं। इससे पहले 'हिन्दुस्तान' ने गाजियाबाद, नोएडा, गुड़गांव और फरीदाबाद संस्करण लॉन्च किया था जिसमें स्थानीय खबरों को प्रमुखता दी गई थी। 'हिन्दुस्तान' के मुख्य संपादक, शशि शेखर ने इस अवसर पर कहा, "अपने शहर में क्या घटना घट रही है इसके प्रति पाठक ज्यादा रुचि लेते हैं। इन क्षेत्रों में अति स्थानीय संस्करण की जरूरत है और मेरा मानना है कि ये संस्करण स्थानीय जरूरतों को पूरा कर रहे हैं।"

 
रांची से 'कशिश न्यूज़' चैनल लॉन्च
गणतंत्र दिवस के मौके पर रांची में 24 घंटे का ख़बरिया न्यूज़ चैनल 'कशिश न्यूज़' लॉन्च हो गया है। लॉन्चिंग के मौके पर मुख्यमंत्री, अर्जुन मुंडा सहित झारखंड के कई गणमान्य लोग उपस्थित थे। 'कशिश न्यूज़' ने इस मौके पर झारखंड-बिहार के जाने-माने हिंदी दैनिक 'प्रभात ख़बर' के साथ मिलकर एक सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया जिसमें भारत और पाकिस्तान के बीच सौहार्द बढ़ाने के लिए, पहचाने जाने वाले मशहूर गजल गायक, गुलाम अली ने अपने सूरों का जादू बिखेरा।

 
अनुरंजन झा को 'मेरी दिल्ली' अवार्ड
'सीएनईबी' के सीओओ अनुरंजन झा को 'मेरी दिल्ली' अवार्ड से सम्मानित किया जाएगा। एन.एन.एस मीडिया ग्रुप द्वारा हर वर्ष दिया जाने वाला यह पुरस्कार समाज के विभिन्न क्षेत्र से जुड़े लोगों को उनके बेहतरीन योगदान के लिए दिया जाता है। 8वें 'मेरी दिल्ली' अवार्ड 2010 में मीडिया क्षेत्र से इस बार झा का चयन हुआ है। दिल्ली में 5 फरवरी को आयोजित एक समारोह में विभिन्न क्षेत्रों के लोगों को सम्मानित किया जाएगा।

 
मीडिया ग्लैमर नहीं जिम्मेदारी है: शशि शेखर
1950 से अब तक मीडिया में बहुत बदलाव हुआ है। टेक्नोलॉजी ने बहुत बदल दिया है। उस समय जिन मशीनों पर काम होता था उसमें बहुत श्रम लगता था। अब कंप्यूटर ने बहुत कुछ बदल दिया है और क्वालिटी में भी अंतर आया है। मेरा मानना है कि अब मीडिया पहले से बेहतर काम कर रही है। वैश्विक परिदृश्य में मीडिया में भी कई तरह का बदलाव आया है। मीडिया में विदेशी पूंजी निवेश हो रहा है। पूंजी के प्रभाव से अब पत्रकारों को पहले से बेहतर पैसे और सुविधाएं मिल रहीं है। लेकिन इस पूंजी ने कुछ प्रश्न भी खड़े किए हैं।

 
मीडिया की जिम्मेदारी भी बढ़ी है: श्रवण गर्ग

मीडिया में काफी बदलाव आया है और यह गणतंत्र के साथ परिपक्व हुआ है।  इस दौरान, एक ओर गणतंत्र के साथ मीडिया  काफी मजबूत हुआ है तो वहीं दूसरी ओर गणतंत्र में जो कमजोरियां प्रकट हुईं वह मीडिया में भी आईं है। मीडिया में जिस तेजी से विस्तार हुआ है उस तेजी से इसमें प्रोफेशनल लोगों की आपूर्ति नही हो पाई है और दुनिया की सबसे बड़ी युवा आबादी वाले देश के लिए यह चिंताजनक पहलू है। समय के साथ, मीडिया की जिम्मेदारी भी बढ़ी है और यह ताकतवर भी हुआ है। तमाम कमियों के बावजूद मीडिया बहुत ईमानदारी से काम कर रहा है।

 
अगर ख़बर का असर नहीं है तो मीडिया की कोई प्रासंगिकता नहीं: सतीश के सिंह

लोकतंत्र के जो अंग हैं उसमें मौजूदा समय में मीडिया की भूमिका अहम हो गई है। समय-समय पर बदलाव आते रहते हैं और जब लोकतंत्र की कोई एक संस्था शिथिल पड़ने लगती है तो दूसरे से उम्मीद जग जाती है। टेक्नोलॉजी, कम्युनिकेशंस और बदलाव की वजह से मीडिया का दायरा बढ़ गया है, इसकी गूंज हो गई है। जाहिर तौर पर इससे लोगों की उम्मीदें भी बढ़ गई हैं। शायद मीडिया का इतना महत्व, प्रभाव, उम्मीद और भूमिका पहले कभी नहीं रहा है। हां, आजादी के बाद एक-दो बार इस तरह की भूमिका में मीडिया जरूर आई।

 
मीडिया आज भी आम सरोकारों की बात करता है: पंकज पचौरी
1950 में मीडिया कुछ छोटे पत्र-पत्रिकाओं और पुराने घरानों 'टाइम्स ऑफ इंडिया', 'हिन्दुस्तान' तथा 'इंडियन एक्सप्रेस' तक सीमित था। अब भारत में मीडिया एक पूरा उद्योग बन गया है। कुल 37 कंपनियां शेयर बाजार में सूचीबद्ध हैं और इनकी कुल कीमत 70 हजार करोड़ से ज्यादा है। दुनिया की सभी बड़ी कंपनियां भारतीय मीडिया में पैसा निवेश कर रहीं है चाहे टीवी में, चाहे प्रिंट में हो। यह देश के लिए अच्छा है। इससे मीडिया जगत में प्रतिद्वंदिता और प्रोफेशनलिज्म बढ़ा है।

 
अखबार के आकार-प्रकार, चरित्र, उद्देश्यों और प्रसार में बहुत व्यापक परिवर्तन हुये हैं: राहुल देव

जिसको हम याद करते है उस पत्रकारिता का उद्देश्य देश को आजाद करना था और उसके लिए माहौल बनाना था. लोक जागरण, स्वाधीनता के लिए संघर्ष और विदेशी शासकों से लड़ने और सजा पाने का जोखिम उठाकर लोगों को आजादी की लड़ाई के लिए तैयार करना ही अखबारों का उद्देश्य था। हालांकि उस समय भी शायद ऐसे अखबार थे, जो इन आदर्शों से प्रेरित नहीं थे और कुछ तो सीधे अंग्रेज शासको के पक्ष में लिखने वाले थे।

 
मीडिया के आकार में बढ़ोतरी से गुणवता में गिरावट आई है: सुधीर चौधरी

 'लाइव इंडिया' के सीईओ और एडिटर-इन-चीफ सुधीर चौधरी ने पत्रकारिता में आये बदलावों पर चर्चा करते हुए बताया कि लोगों की पहले की अपेक्षा अब खबरों में रुचि बढ़ी है। और उनके पास खबरें देखने और पढ़ने के कई ऑप्शन भी मिल गये हैं। अब देखें तो खबरों के कई माध्यम मौजूद हैं जैसे टीवी, डिजिटल, रेडियो और प्रिंट जिससे लोगों को पल-पल की खबरें मिलती रहती हैं। मीडिया में क्रांति सी आ गई है। और हर तरह की अलग-अलग कैटेगरी के चैनल हैं, अखबार हैं। आज के समय में मीडिया का स्पेशलाइजेशन हो गया है।

 
विश्वसनीयता बनाए रखना आज मीडिया के लिए बड़ी चुनौती है: एन. के. सिंह

1950 से लेकर अब तक मीडिया में काफी बदलाव आया है। पहले तो प्रिंट मीडिया ही हुआ करता था। उस दौर में कंपोजिंग बहुत मुश्किल हुआ करती थी। पहले हैंड कंपोजिंग हुआ करती थी फिर मोनो कंपोजिंग और लाइनो कंपोजिंग आई। जाहिर तौर पर इस दौरान टेक्नोलॉजी बढ़ी और फोटो कंपोजिंग आई और यह बदलाव अभी भी जारी है। गैर संपादकीय कामों में भी काफी बदलाव आया और अब तो प्रूफ रीडिंग की अलग से परंपरा ही खत्म हो गई। एडिटोरियल करेक्टर भी बदला है। आजादी के बाद कई तरह के बदलाव आए।

 
मीडिया ने कई ऐसे मुद्दे उठाये हैं जिससे जजमेन्ट भी बदला है: निशिकांत ठाकुर
आजादी से पहले की पत्रकारिता विदेशियों को भगाने के लिए की गयी थी इसमें महात्मा गांधी सहित तमाम बड़े लोग जुड़े। आज की पत्रकारिता से देश के वातावरण को स्वच्छ बनाने का प्रयास किया जा रहा है। पहले भी पत्रकारिता में समाज के अच्छे लोग आते थे और आज भी पत्रकारिता में समाज के अच्छे लोग आ रहे हैं। पहले के मुकाबले प्रिन्ट, इलेक्ट्रॉनिक और अब डिजिटल और मजबूत हुई है।

 
आज की मीडिया आम लोगों की मीडिया है: सुप्रिय प्रसाद

बीएजी फिल्म्स के 'न्यूज़24' के न्यूज़ डायरेक्टर, सुप्रिय प्रसाद ने गणतंत्र दिवस पर अपने विचार समाचार4मीडिया के सामने रखते हुए बताया कि भारतीय पत्रकारिता में पहले की अपेक्षा बहुत सारे बदलाव आये हैं और टीवी आने पर इन बदलावों में काफी बढ़ोतरी हुई है। क्योंकि अब ख़बरें 24 घंटे दिखानी होती हैं तो ख़बरों के सलेक्शन में काफी दिक्कत होती हैं। वर्तमान में दिनों-दिन समय के अनुसार बदलाव हो रहे हैं। अब माध्यम भी कई आ गये हैं। जिससे भी कई असर पड़ने लगे हैं। इंटरनेट के आने से खबरों को सीधा-सीधा लोगों से जोड़कर देखे जाने लगा है।

 
आज की पत्रकारिता को देश, समाज और जनता के सरोकारों से जुड़ने की जरुरत है: उर्मिलेश उर्मिल

आजादी से पहले भारत में जो पत्रकारिता थी वो एक मिशन से प्रेरित थी देश आजाद कैसे हो, कैसे अपने लोगों का राज आये भारतीय स्वतंत्रता आदोलन में विभिन्न धारायें रही हैं और उनकी विचार धारात्मक पृष्ठभूमि भी उसकी अभिव्यक्ति हर तरह के रचनात्मक लेखन और पत्रकारिता में भी दिखायी पड़ी। गणेश शंकर विद्यार्थी, पं. नेहरू, महात्मा गांधी जैसे बडे नेताओं का लेखन भी आजाद और खुशहाल भारत के सपने से प्रेरित था। रामवृक्ष बेनीपुरी, राहुल सांस्कृत्यायन सहित प्रेमचंद की रचनायें कथा-साहित्य और नोबल में समाज के विभिन्न पहलू झलकते थे।

 
पटरी से उतर गई है खबरपालिका- वेद प्रताप वैदिक

आजादी के पहले की पत्रकारिता व्रत थी, अब वह वृत्ति है, प्रोफेशन है। जैसे और काम-धंधे होते हैं, वैसे ही पत्रकारिता हो गई है। इसीलिए पत्रकारिता अब प्रोफेशन है, मिशन नहीं। इसीलिए जब आप पत्रकारों को दलाली करते हुये, ब्लैकमेल करते हुये और पत्रकारिता की आड़ में दूसरे धंधे करते हुये पाते हैं, तो दुख जरूर होता है लेकिन आश्चर्य नहीं होता क्योंकि पूरा देश इसी राह पर चल रहा है।

 
आज भी पत्रकारिता में अच्छे लोग ज्यादा हैं: संतोष भारतीय

आजादी के पहले की पत्रकारिता में भी दो धाराये थीं, कुछ लोग आजादी की लड़ाई का समर्थन करते थे लेकिन पत्रकारों की एक बड़ी संख्या ऐसी भी थी जो वायसराय और दूसरे अंग्रेज बहादुर के यहां चाय पीने में अपनी इज्जत समझते थे। आज भी पत्रकारिता में ऐसी ही दो धारायें चल रही हैं। एक ईमानदार पत्रकारों का वर्ग है जो लिखने में ईमानदारी बरतता है और अपने विषय की पकड़ भी रखता है। जनता के लिए मार्गदर्शक भी बनता है।

 
सरोकार की पत्रकारिता अब भी जीवित है: किशोर मालवीय
1950 से अब तक मीडिया में काफी बदलाव हुए हैं। यह बदलाव कंटेंट और तकनीक दोनों में हुए है। तकनीक ने मीडिया को काफी एडवांस बनाया है लेकिन कंटेंट पर काफी हद तक बाजार हावी होता चला गया। लोगों को लगता है कि पहले पत्रकारिता आम सरोकार के ज्यादा करीब थी और अब उससे दूर होती नजर आ रही है। बाजार के असर के कारण ऐसा लगता है लेकिन सरोकार की पत्रकारिता अब भी जीवित है भले ही इसका प्रतिशत कम हो।

 
पत्रकारिता आज मिशन से उद्योग में परिर्वतित हो गयी है: उमेश त्रिवेदी

आजादी से पहले की पत्रकारिता का एक ध्येय था, देश की आजादी। उससे जुड़े भाव इस बात का अहसास कराते थे कि हम हमारी सोच, हमारी विचार धारा, हमारा लेखन उसके इर्द-गिद घूमता था और वह जो पत्रकारिता का समय था वह बाद के कुछ सालों तक बना रहा और पत्रकारिता वाला मिशन रूप-स्वरूप डेढ़ दशक तक रहा। समाज को ध्यान मे रखकर पत्रकारिता होती रही लेकिन धीरे-धीरे निहित स्वार्थों ने इसमें अपनी जगह बनाना शुरू कर दिया और पूंजी का वर्चस्व कायम होने लगा एवं पत्रकारिता आज मिशन से उद्योग में परिर्वतित हो गयी है।

 
आज पत्रकारिता अपने उद्देश्य से भटक गयी है: प्रो.निशीथ राय

आजादी की पहले की जो पत्रकारिता थी उसका एक मिशन था, एक क्लियर विजन था, देश को आजाद करना है कहीं भी कोई कॉमर्शियल उद्देश्य नही था लेकिन अब आजादी के बाद की पत्रकारिता का मुख्य उद्देश्य समाज सेवा के स्थान पर व्यवसाय परक हुआ है आज पत्रकारिता अन्य व्यवसाय की तरह एक प्रोडक्ट हो गया है और उसको लाभकारी व्यवसाय बनाने के लिए तरह-तरह के अनैतिक कार्य भी किये जाने लगे हैं।

 
यह मौका आत्म मंथन का है: शीतल राजपूत 'ज़ी न्यूज़'
मुझे लगता है कि संविधान में बदलाव के बारे में सोचने से ज्यादा यह मौका आत्म मंथन का है कि हमने कितनी शिद्दत से कोशिश की है उन मूल्यों, उन हकों और उन जिम्मेदारियों को निभाने की जो हमारे इस महान गणतंत्र का आधार है।

 
 
 
 
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