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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Sunday, August 28, 2011

Fwd: तिहाड़ जेल से अन्ना का सन्देश



---------- Forwarded message ----------
From: Dr Mandhata Singh <drmandhata@sify.com>
Date: 2011/8/28
Subject: तिहाड़ जेल से अन्ना का सन्देश
To: Palash Chandra Biswas <palashbiswaskl@gmail.com>


TUESDAY, AUGUST 16, 2011

तिहाड़ जेल से अन्ना का सन्देश

मेरे देशवासियो,
मैं अन्ना का सन्देश लेकर जेल से बाहर आया हूँ. उनका कहना है कि देश की दूसरी आज़ादी की लड़ाई शुरु हो गई हैं. मैं चाहे जेल में रहूँ या जेल से बाहर मेरा अनशन तब तक जारी रहेगा जब तक संसद मैं सख्त लोकपाल नही पेश किया जाता.
अन्ना तब तक तिहाड़ जेल से बाहर नही आयेगे जब तक उन्हें बिना शर्त जे पी पार्क में सख्त लोकपाल के लिए अनशन करने की इजाजत नहीं दे जाती. अन्ना का सभी देशवासियों से अपील हैं कि आन्दोलन को जारी रखे. लेकिन विरोध प्रदर्शन पूरी तरह से शांतिपूर्ण होना चाहिए. हो सकता है कि कुछ लोग शांति भंग करने कि कोशिश करे मगर हमारा आन्दोलन पूरी तरह से शांतिपूर्ण ही होगा. 
दिल्ली के सभी लोग तिहाड़ जेल पहुंचे. आज अगर चूक गए तो ये मौका फिर नही मिलेगा.

TUESDAY, AUGUST 2, 2011

'गरीब विरोधी सरकारी लोकपाल बिल' को संसद में आने से रोकें : लोकपाल बिल को संसद में रखे जाने से ठीक पहले अन्ना ने सांसदों को लिखी चिट्ठी

सेवा में,
माननीय सांसद महोदय                            
संसद 
नई दिल्ली

विषय:  मंत्रिमंडल द्वारा पारित 'गरीब-विरोधी लोकपाल बिल' को संसद में पेश किए जाने से रोकने हेतु विनम्र निवेदन 

आदरणीय सांसद महोदय, 
आपमें से बहुत से भाइयों बहनों की तरह मैं भी लोकतंत्र की जड़ों को मजबूत करने की दिशा में प्रयासरत हूं. आपमें से बहुतों की तरह मेरे प्रयास भी देश के आम लोगों, गरीब किसानों, मजदूरों, नौकरीपेशा लोगों की समस्याओं  को दूर करने के लिए समर्पित रहे हैं. और आपमें से बहुतों की तरह ही मैंने भी देखा है कि गरीब आदमी किस तरह भ्रष्टाचार की सर्वाधिक मार झेल रहा है. 

आम गरीब आदमी के हितों की रक्षा के लिए ही मैंने लोकपाल के लिए बनी साझा ड्राफ्टिंग समिति में शामिल होना स्वीकार किया था. लेकिन मुझे अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने जिस लोकपाल बिल को मंजूरी दी है उसमें आम आदमी के भ्रष्टाचार से मुक्ति दिलाने वाले अधिकतर मुद्दे नज़र अंदाज़ कर दिए गए हैं. 

संसद में इतना कमजोर बिल लाना संसद और सांसद, दोनों का अपमान है, इसमें बहुत से ऐसे मुद्दे हैं ही नहीं जिन पर संसद में बहस होनी चाहिए थी. ऐसे कुछ प्रमुख मुद्दे हैं - 

1. आम जनता की शिकायत के  निवारण के लिए एक प्रभावी व्यवस्था - जिसमें तय समय सीमा में किसी विभाग में एक नागरिक का काम न होने पर, दोषी अधिकारी पर ज़ुर्माने का भी प्रावधान है, ताकि गरीब लोगों को भ्रष्टाचार से राहत मिल सके. 

2. लोकपाल के दायरे में गांव, तहसील और ज़िला स्तर तक के सरकारी कर्मचारियों को लाना- गरीबों, किसानों, मजदूरों और आम जनता को इन कर्मचारियों का भ्रष्टाचार अधिक झेलना पड़ता है. वैसे भी निचले स्तर के कर्मचारियों के भ्रष्टाचार को लोकपाल के दायरे में लाए बिना आला अफसरों के भ्रष्टाचार की जांच करना भी संभव नहीं होगा.

3. केंद्र सरकार के लिए लोकपाल और राज्य सरकारों के लिए लोकायुक्त का गठन इसी कानून के तहत किया जाए. क्योंकि गरीब लोगों का वास्ता राज्य सरकार के कर्मचारियों से ही ज्यादा पड़ता है. 

4. लोकपाल के कामकाज को पूरी तरह स्वायत्त बनाने के लिए वित्तीय स्वतंत्रता, सदस्यों के चयन एवं हटाने की निष्पक्ष प्रक्रिया हो. 

5. इसी तरह कई और महत्वपूर्ण मुद्दे जिसमें लोकपाल की जवाबदेही बनाए रखते हुए,प्रधानमंत्री, सांसद और न्यायाधीश के भ्रष्टाचार की जांच को लोकपाल के दायरे में लाना, भ्रष्ट अफसरों को हटाने की ताकत लोकपाल को देने के मामले भी शामिल हैं. 

लोकपाल के बारे में मुद्दे तो बहुत से हैं लेकिन मैं यहां विशेष रूप से भ्रष्टाचार के चलते गरीब आदमी की बदहाली की ओर ध्यान दिलाना चाहता हूं. सरकार ने जो लोकपाल  बिल तैयार किया है उसमें गरीब आदमी को भ्रष्टाचार से राहत दिलवाने का कोई इंतज़ाम है ही नहीं.

अगर सरकार इस ओर ध्यान नहीं देती है तो मैंने 16 अगस्त से अनिश्चितकालीन उपवास पर बैठने का ऐलान किया है. मेरा यह उपवास संसद के विरोध में नहीं बल्कि सरकार के कमजोर बिल के विरोध में होगा. 

मैं उम्मीद करता हूं कि देश की संसद अपनी परंपरा और दायित्वों का निर्वाह करते हुए ऐसे गरीब विरोधी बिल को संसद में आने से रोकेगी. 

सरकारी लोकपाल बिल और जनलोकपाल बिल के अंतर का तुलनात्मक विवरण आपके  संदर्भ हेतु इस पत्र के साथ संलग्न कर भेज रहा हूं. 

भवदीय                                                                दिनांक: 2 अगस्त 2011

किशन बाबूराव हज़ारे (अन्ना हज़ारे)

SUNDAY, JULY 31, 2011

अन्ना के आन्दोलन पर नेताओं का अंट-शंट

कल शाम एनडीटीवी के  एक कार्यक्रम में केन्द्रीय मंत्री नारायण सामी, अन्ना के जनलोकपाल बिल के बारे में  सफ़ेद झूंठ बोलते पकड़े गए.  उन्होंने कहा कि अन्ना लोकपाल के नौ सदस्यों को केंद्र और राज्यों के तमाम कर्मचारियों के भ्रष्टाचार की जांच का काम दिलवाना चाहते हैं. जब उनके सामने साफ़ किया गया कि अन्ना तो लोकपाल की तरह राज्यों में भी लोकायुक्त बनाने की मांग कर रहे है. उनसे पूछा भी गया कि केंद और राज्यों का सारा काम लोकपाल को ही सौंपने की बात कहाँ की जा रही है? अन्ना के जनालोकपाल की किस क्लॉज़ में ऐसा लिखा गया है? उनके पास इसका कोई जवाब नहीं था. 

इसी कार्यक्रम में जब उनसे पूछा गया कि आप निचले स्तर के अधिकारियों को लोकपाल कानून के दायरे में क्यों नहीं ला रहे हैं, तो उन्होंने पहले कहा कि राशन, अस्पताल, स्कूल आदि का भ्रष्टाचार देखना राज्य सरकारों का काम है. फिर जब उनसे पूछा गया कि रेलवे, टेलीकाम, खाद्य, कृषि, स्वास्थ्य आदि तमाम  मंत्रालयों में निचले स्तर के कर्मचारियों के भ्रष्टाचार की खबरें आती रहती हैं. इनका भ्रष्टचार किसकी जांच के दायरे में आयेगा तो इसका भी उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया. 
देश के नेता और बुद्धिजीवी लोग किस दुनिया में जी रहे हैं इसकी एक बानगी देखिए. एक रेडियो कार्यक्रम में राज्य सभा सांसद (और संविधान के बारे में कई किताबों के लेखक) सुभाष कश्यप ने कहा कि अन्ना और उनके साथियों को अगर कानून बदलवाने हैं तो चुनाव लड़कर आना चाहिए. उनसे पूछा गया कि "एक सामान्य नागरिक को ड्राइविंग लाइसेंस बिना रिश्वत दिए नहीं मिलता है, जो रिश्वत न दे वो धक्के खाकर बनवाए." तो क्या इसके खिलाफ आवाज़ उठाने के लिए भी चुनाव लड़ना होगा. इसके जवाब में उन्होंने बड़ा बचकाना तर्क दिया. कहा कि "मेरे पास ड्राइविंग लाइसेंस है, मुझसे तो किसी ने रिश्वत नहीं मागी. ड्राइविंग लाइसेंस या पासपोर्ट जैसी चीजों के लिए रिश्वत माँगने की कहानियाँ एकदम बकवास हैं." अब उन्हें कौन बताए कि संविधान पर दर्ज़नों किताबें लिखने से देश की हकीकत नहीं बदलती. बड़े अधिकारी, नेता और सांसदों से रिश्वत नहीं मांगी जाती. बल्कि उनके लिए और  उनकी वजह से मांगी जाती है. 

--
Dr. Mandhata Singh
From Kolkata (INDIA)
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​अपनी भाषा को पहचान दें, हिंदी का प्रसार करें।।
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--
Palash Biswas
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