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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Thursday, October 27, 2011

Fwd: [Destroy Brahminism As early As Possible] New Doc: आन्दोलन और सबक



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From: Tanaji Kamble <notification+kr4marbae4mn@facebookmail.com>
Date: 2011/10/27
Subject: [Destroy Brahminism As early As Possible] New Doc: आन्दोलन और सबक
To: Destroy Brahminism As early As Possible <254250641286340@groups.facebook.com>


created the doc: "आन्दोलन और सबक"
Tanaji Kamble created the doc: "आन्दोलन और सबक"

आन्दोलन और सबक

बाबासाहब ने आदेश दिया है, "जो कौम अपना इतिहास भूलती है, वो कौम अपना इतिहास (भविष्य निर्माण) नहीं कर सकती,  जो कौम इतिहास भूलती है, उस कौम को इतिहास सबक सिखाता है"

हम इतिहास से सबक सिख के आगे बढ़ रहे है.

इतिहास में जितने भी सबक सिखानेवाले ऐतिहासिक घटना हुई उनमे ब्राहमणों का सीधा हात था. आज तक जितने भी हमारे महापुरुष हो गए, उन सभी महापुरुषों की हत्याए ब्राहमणों द्वारा रचाए गए षडयंत्र से है. इन सभी घटनाये में हमारे महापुरुषों ने कभी भी हिंसा का सहारा नहीं लिया लेकिन ब्राहमणों ने हिंसा का सहारा लिया और उन्हें ख़त्म कर दिया, फिर भी हमारे गिने चुने पढ़े लिखे लोग ब्रहामंवाद को दोषी मानते है, लेकिन ब्राहमणों को दोषी नहीं मानते. बल्कि इस ब्रहामंवाद का सहारा, पोषक, हितवर्धक, संरक्षक और उसको बढ़ने वाला ब्राहमण ही है. फिर भी हमारे पंडित लोग ब्राहमण को दोषी नहीं मानते, ओ ब्रहामंवाद को दोषी मानते. रोग (बीमारी) मालूम है, रोगी (बीमार आदमी) मालूम है, लेकिन उस जंतु (ब्राहमण) को हात नहीं लगाते, उसको बचाके रखते है. ओ कहते है जंतु को हात नहीं लगाते हुए भी हम रोगी को बचा सकते है, इसमे हजारो साल गुजर गए फिर भी ये होशियार पढ़े लिखे लोग इलाज कर रहे है, लेकिन बीमार आदमी अच्छा नहीं हो रहा बल्कि मर रहा है.

इसका सबूत है मेरे देश को ९० करोड़ लोग भुकमरी के शिकार हो चुके है, उन्हें तड़पा तड़पा के मरने का प्लानिग शत्रु कर रहा है. देश का बजेट है १२५७७२८ करोड़ (इसमे पूंजीपतियों को ४०% कर (पैसा दान) माफ़ किया जाता है, २०% देश का कर्जा चुकाने में जाता है, २०% देश के दलालों और भड़वो को जाता है, सिर्फ २० % देश के आदमी को जाता है या नहीं ये भी पता नहीं) और मंदिरों (ब्राहमणों) का बजेट है ८३ लाख करोड़ है. अमीर और गरीब लोगो के बिच अंतर कम नहीं, बढ़ता ही रहा है, आमिर आदमी (पूंजीपति) दुनिया की कंपनी खरीद रहा है, आम आदमी दुनिया में भीक मांग रहा है.  हमारी औलादे शत्रु के खेमे (कब्जे) में रहकर हमारे लोगो पर इलाज करने की कोशिश कर रहे है. इनको शत्रु का आता पता भी मालूम नहीं, तो लढ़ने बात नहीं करते, देश की हालत कैसी हुई इसका सही आकलन करते भी नहीं. लेकिन शत्रु को बचाने के लिए छाती तानके आगे आते है. सन्दर्भ में बुद्ध और बाबासाहब कुछ पंक्तिया बताते रहते है. लेकिन सबक सिखानेवाली बात कभी भी नहीं करते, इसका फायदा उठाकर शत्रु इनके पीछे छिपा रहता है.

हमारे पढ़े लिखे लोग अपना मोहल्ला (क्षेत्र) छोड़के बहार भी नहीं आते और कुत्ते की तरह गुरगुराते रहते है, खुद को ज्यादा होशियार समझते रहते है. बाबासाहब और बुद्ध की कुछ किताबे पढ़कर भौकने लगते है. खुद को शहाणा समझकर किताबों से किताबो लिखते रहते है. खुद को बाबासाहब जैसे समझाने लगाते है. ये आदमी ने कभी आन्दोलन नहीं किया, इतवार (रविवार) को मिशन डे (दिन) कभी नहीं मनाया, लेकिन हर इतवार को मटन डे (दिन) मनाते रहते है. आन्दोलन क्या चीज है ये मालूम नहीं और घर में बैठे आन्दोलन की कविता (काव्य) और किताबे लिखते रहते है.

बाबासाहब और बुद्ध का आन्दोलन कहाँ तक पहुंचा ये मालूम है, ये आन्दोलन कैसे ख़त्म हुवा इसकी ये लोग समीक्षा अपने घर में बैठे करते है. जहाँ जहाँ तक आन्दोलन की जड़े गई है, ये लोग वहां वहां तक जाते ही नहीं, आन्दोलन की समीक्षा करनी है, तो पहले आन्दोलन के ऊपर स्वार होना चाहिए, आन्दोलन को चलाना चाहिए, देश के कोने कोने में घूमना चाहिए सभी जगह का आकलन करना चाहिए, सभी जगह घुमाके समीक्षा करनी चाहिए, किधर किधर आन्दोलन मर रहा है, किधर किधर आन्दोलन अंतिम साँस ले रहाँ है, या किधर किधर आन्दोलन धीरे धीरे या तेज चल रहाँ है, इसकी भी समीक्षा करनी चाहिए, ये लोग गल्ली का संघटन बनाते है और खुद को राष्ट्रिय अध्यक्ष कहते है. इनकी लायकी एक चपरासी से भी कम रहती है और खुद को बड़े तीसमार खान समझाने लगते है.

राष्ट्रिय अध्यक्ष के मन और मस्तिष्क में क्या चल रहा है ये किसीको भी पता नही चलता. उसके आजू बाजु में खड़े हुए आदमी को भी मालूम नही रहता की हमारे साहब के मन में क्या है, तो सामान्य कार्यकर्ता की दूर की बात है. इसका सबूत बाबासाहब के आजू बाजु में दादासाहब गायकवाड, रूपवते, बी. सी. काम्बले ऐसे लोग उनके आजू बाजु में खड़े रहते थे. फिर भी बाबासाहब कहते थे, की मुझे दूर दूर तक किधर भी नजर नही आ रहा है, कोई नौजवान, जो मैंने जो कार्य किया उसको आगे बढ़ाएगा समाज कार्य का गाडा आगे ले जाये, कोई भी नही. राष्ट्रिय अध्यक्ष बनाना कोई गिल्ली डंडा खेलने जैसा नही या कोई भी आ जाय टिकली मारके चला जाय. बिना त्याग और बलिदान से अध्यक्ष बन जाय, उसकी औकात भी उतनी होनी चाहिए. बाबासाहब की किताबे पढ़कर भी पता नही चलता, तो उनके मन और मस्तिष्क में क्या होगा ये किसीको भी पता नही चलेगा. इसके लिए सिर्फ केवल एक मात्र पर्याय उन्होंने (बाबासाहब) जितना बड़ा संघटन बनाया जाय, उससे भी बड़ा संघटन बनाना तभी हो सकता है, की बाबासाहब के मन में क्या चल रहा होगा ये सिर्फ उस अध्यक्ष को पता चल सकता है अन्यथा कभी भी किसीको पता नही चलेगा की बाबासाहब क्या करना चाहते थे. क्यंकि जो आदमी लिखता है, उसके मन में क्या क्या चलता है ये किसीको भी मालूम नही होता.

जो संघटन राष्ट्रिय है, उसके अध्यक्ष को इतने गलियां गल्ली के अध्यक्ष देते है, की इनके माँ बाप ने भी कभी गालियाँ नहीं दी, उतनी गालियाँ हर बार उठते बैठते देते रहते है, ये लोगोने पढ़ा है, हत्ती चलता है और कुत्ते भौकने लगते है. फिर भी ये लोग कुत्ते की तरह भौकने का कार्यक्रम नहीं छुडाते. ये आदमी सागर (समुद्र) के किनारे बींच पर खड़े रहते या आसपास तैरते रहते है और दम लग गया तो रेत पर आंके सो जाते है. वहां से ही चिल्ला ने लगते है, जो आदमी सब कुछ त्याग कर लहरों के ऊपर स्वार होकर महासागर के अन्दर गया है, अन्दर जाकर जो भी शत्रु है, उनके ऊपर वर (हल्ला) अपनी जान जोखिम में डालकर कर रहा है. ये शहाने किनारे से चिल्लाते रहते है और कहते है ओ अध्यक्ष किसीकी सुनाता भी नहीं, लोकशाही (प्रजातंत्र) ही उसके संघटन में नही, बाबासाहब और बुद्ध के विरोध में ओ काम करता है, ओ आम्बेडकर द्रोही है. ओ तानाशाही कर रहा है. जो मन में आये ओ बकते रहते है और कुत्ते का स्वाभाव नही छोड़ते, ये हरामी घर में बैठे दिशा निर्देशन देने में माहिर रहते, ये डरपोक कभी भी इस आन्दोलन के महासागर (देश का कोना कोना) में छलांग नही लगाते, अपने जिल्हे या ज्यादासे ज्यादा राज्य का संघटन बनाते है. ये लोग हिजड़े की तरह सागर किनारे रेत में बैठे बैठे रोते रहते या चिल्लाते रहते है. आपको कब हक्क है चिल्लाने का, जब आप उस अध्यक्ष (आदमी) के आसपास का संघटन बनाकर उसके आसपास पहुंचेंगे

उसकी जैसी लढाई करोगे, उस लहरों (संकटो) को पार करके उस तंक पहुंचे गे, तभी आप बोल सकते हो अरे भाई बाबासाहब ने ऐसा किया था तू क्यों गलत कर रहा है, तभी उसको आपकी आवाज सुनने जाएगी और आपकी बात सुनेगा और तभी ओ आपको जवाब दे सकता है, उसका स्पष्टीकरण भी, अन्यथा आप जवाब भी मांगने के हक्कदार नही हो, पहले उस आदमी ने जो त्याग किया है, संघर्ष किया है, दिन रात मेहनत की है, लांखो लोगो को इकट्ठा किया है, गाँव गाँव, शहर शहर, राज्य राज्य जाके चिल्ला रहा है. उसके जैसा आप भी खड़े (संघटन और कर्तुत्व) हो जाना और खड़े (जोर से आवाज देकर कहना) तुम देश द्रोही हो, तभी ओ आपको स्पष्ट बताएगा की ओ क्या कर रहा है, क्यों कर रहा है, कैसे कर रहा है, तभी आपको पता चलेगा सही क्या और गलत क्या अन्यथा कुत्ते की तरह रहोगे और कुत्ते की तरह मर जावोगे.

फिर भी आपके दिमाग में आएगा या नही इतिहास से सबक कैसी सीखी जाती है और आन्दोलन कैसे चलाया जाता है.


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Palash Biswas
Pl Read:
http://nandigramunited-banga.blogspot.com/

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