क्या बंगाल की मुख्यमंत्री प्रधानमंत्री को पीट देंगी?
पलाश विश्वास
बांग्लादेश में विपक्ष की नेता व पूर्व प्रधानमंत्री बेगम खालिदा जिया विरोधियों की आंखें निकाल लेने और उन्हें लूला बना दने की धमकी देती रही है। बंगाल के मंत्री सार्वजनिक सभाओं में न केवल माकपाइयों को जहां देखें, वहां धिन डालें, का फतवा जारी कर रहे हैं, बल्कि इसे बखूब अंजाम दे रहे हैं।पूर्व माकपाई मंत्री रेज्जाक मोल्ला की पिटाई और उसके बाद माकपाइयों पर हमले का मामला अभी ठंडा नहीं हुआ। राजधर्म निभानेके लिए हमलावर तृणमुल कांग्रेस के बाहुबली विधायक अराबुल इस्लाम को गिरफ्तार करके रिहाभी कर दिया गया। दीदी के मंत्री विरोधियों के सामाजिक बहिष्कार और उनसे घृणा करने का फतवा जारी कर ही रहे हैं। अपने मंत्रियों और समर्थकों से दो कदम आगे बढ़कर दीदी ने प्रधानमंत्री के लिए जो राजनीतिक भाषा का प्रयोग किया है, किसी मुख्यमंत्री की ओर से क्रिकेटीय बाषा में यह मौलिक रिकार्ड है।बिजनस स्टैंडर्ड ने क्या खूब लिखा हैः पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अगली बार जब दिल्ली पहुंचेंगी तो प्रधानमंत्री शायद अपनी सुरक्षा और कड़ी करा लेंगे! सुरक्षा कड़ी करानी भी चाहिए क्योंकि बनर्जी ने प्रधानमंत्री से निपटने की धमकी दे डाली है!दरअसल बनर्जी अपने राज्य के लिए काफी समय से वित्तीय सहायता की मांग कर रही हैं, लेकिन केंद्र सरकार के कानों पर जूं भी नहीं रेंग रही है। यह देखकर बनर्जी के सब्र का बांध अब टूट गया है। शायद इसीलिए एक जनसभा के दौरान आज उनके मुंह से निकल गया, 'क्या मैं उनको (प्रधानमंत्री को) पीट दूं?'
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सोमवार को कोलकाता में एक सरकारी कार्यक्रम में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की 'पिटाई' करने का विवादास्पद बयान दे डाला। ममता बनर्जी केंद्र सरकार के पश्चिम बंगाल को आर्थिक पैकेज न दिए जाने से तमतमाई हुई थीं।पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि केंद्र से जब भी मदद मांगी जाती है तो कोई सुनवाई नहीं होती है... 'तो क्या मैं उनको थप्पड़ मारूं...।'ममता बनर्जी ने यह भी दावा किया कि कांग्रेसनीत संप्रग इस साल के मध्य में चुनाव करवा सकता है।बनर्जी ने कहा, 'वे इस साल अगस्त-सितंबर में चुनाव करवा सकते हैं।' केंद्र पर बरसते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि उन्होंने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से कई बार भेंट कर उर्वरकों की कीमत में बढ़ोतरी पर अपना एतराज जताया लेकिन उनकी बात को तवज्जो नहीं दी गई। उन्होंने कहा, 'मैंने प्रधानमंत्री से दस बार भेंट की। इससे ज्यादा मैं कुछ नहीं कर सकती। हमें कुछ राह निकालना होगा। हमें उर्वरक फैक्टरी लगाने की जरूरत है और इसके लिए तीन चार साल और लगेंगे।'
मुख्यमंत्री ने कहा कि केंद्र सरकार खुदरा में एफडीआई और डीजल कीमत में इजाफे जैसी 'जनविरोधी' नीतियां अपना रही है।राज्य के कर्ज पर ब्याज स्थगित किए जाने का अनुरोध नहीं माने जाने के लिए उन्होंने केंद्र सरकार पर भी निशाना साधा। उन्होंने कहा कि हम जितना कमाते हैं उससे ज्यादा चुका रहे हैं।
बनर्जी ने कहा, 'हम खुदरा में एफडीआई और डीजल कीमतों में बढ़ोतरी, रियायती रसोई गैस की संख्या सीमित किए जाने जैसी अन्य जनविरोधी नीतियों की अनुमति नहीं दे सकते।'
देखें विडियोः ममता ने की पीएम को पीटने की बात
http://youtu.be/Mm2nc7GObtw
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दीदी केंद्र की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ राष्ट्रीय आंदोलन का नेतृत्व करें, ऐसा तो हम लोग लिख ही रहे थे। इस वक्त दीदी के जनाधार और निर्विवादित लोकप्रियता के मद्देनजर अगर वे इस सिलसिले में बंगाल से कोई राजनीतिक पहल करती, तो नरसंहार की संस्कृति के खिलाफ प्रतिरोध की गुंजाइश बनती। पर पंचायत चुनाव के मद्देनजर कांग्रेस और माकपा दोनों के सफाये के लिए अपने समर्थकों को उकसाने के लिए बयानबाजी तक सीमित है उनकी क्रांति। लेकिन इस मुंहजुबानी क्रांति की भाषा से तो हिंसा की संस्कृति के प्रति उनकी अटूट आस्था ही व्यक्त हुई है। गौरतलब है कि उन्हीकी पार्टी के सांसद कबीर सुमन ने खुलेआम आरोप लगाया है कि जिस जमीन आंदोलन के जरिये दीदी सत्ता में आयी, उसमें उनकी भूमिका से कहीं ज्यादा निर्णायक माओवादियों की सक्रियता रही है और माओवादियों के कंधे पर चढ़कर वे सत्ता में आयी। पर सत्ता और सैन्यकृत पूंजीवादी कारपोरेट राष्ट्र के खिलाफ बाकायदा युद्ध लड़ रहे माओवादियों ने भी इस राजनीतिक भाषा का कभी इस्तेमाल किया हो, ऐसा कम से कम हमें तो मालूम नहीं है। यह तो विचारहीन बाहुबल की भाषा है और हकीकत यह है कि दीदी की राजनीति में इस वक्त बाहुबल ही सबसे ज्यादा मुखर है। कुछ ही प्रतिशत मतों के अंतर से वामपंथी भले ही सत्ता से बाहर हो गये, पर उनका जनाधार खत्म हो गया हो , ऐसा नहीं है। उनका सांगठनिक ढांचा अब भी दीदी की पार्टी के मुकाबले मजबूत है। वामपंथी राजनीतिक हिंस के विरोध में एक के बाद एक रैली में इसे साबित भी कर चुके है। यही नहीं, उत्तर बंगाल में कांग्रेस संगठनन के मामलों में दीदी से मीलों आगे है। जंगल महल में दीदी अमन चैन का दावा करती नहीं थकतीं।पहाड़ में भी शांति लौटाने का दावा उन्होंने किया था। लेकिन गोरखा आंदोलनकारी अब तेलंगना के साथ अलग गोरखालैंड की घोषणा की मांग पर अड़े हुए हैं। दीदी को बाहैसियत मुख्यमंत्री यह तो मालूम होना ही चाहिये कि कैसे पूरा बंगाल बारुदी सुरंगों के ऊपर खड़ा है। उनकी आक्रामक गोलंदाजी से राज्य में हिंसा की वर्चस्ववादी संस्कृति के बेलगाम हो जाने के पूरे आसार हैं।
सवाल यह है कि क्या प्रधानमंत्री या केंद्रीय नेतृत्व को पीट देने से आर्थिक नीतियों को बदला जा सकता है? क्या इसीसे थम जायेगा कारपोरेट अश्वमेध, जिसके पुरोहित सभी राजनेता हैं? ऐसा अगर है तो माओवादियों की निंदा कैसे की जा सकती है? जबकि वे दूरदराज के इलाके में एकाधिकारवादी कारपोरेट आक्रमण के खिलाफ जमकर प्रतिरोध कर रहे हैं? क्या संसदीय लोकतंत्र और संबविधान के प्रति राजनेताओं की आस्था खत्म हो रही है? क्या वे सत्ता दखल के लिए कुछ भी कर सकते हैं?
इससे पहले तृणमूल कांग्रेस के सांसद कबीर सुमन ने अपनी बयानबाजी से पार्टी के लिए दिक्कत पैदा कर दी है। उन्होंने एक साक्षात्कार में कहा कि नंदीग्राम आंदोलन में माओवादियों ने तृणमूल का साथ दिया था। कहा कि ममता बनर्जी निःसंदेह लड़ाकू नेत्री हैं और माकपा के खिलाफ लड़ती आई हैं, लेकिन उन्होंने बंगाल की सत्ता से माकपा को अकेले नहीं हटाया। बीते लोकसभा चुनाव के दौरान भी माओवादियों ने तृणमूल का समर्थन किया था। सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ में मारे गए किशनजी ने तृणमूल को जिताने के लिए अपने हाथों में पार्टी का झंडा थामा था। लोकसभा चुनाव के समय कबीर को जिताने के लिए नक्सलियों ने उनके समर्थन में प्रचार किया था।तृणमूल सांसद कबीर सुमन आज उन्हीं बातों को दोहरा रहे हैं, जो पूर्व में माकपा द्वारा कही गई थीं। इसमें कोई नयी बात नहीं है। तृणमूल कांग्रेस की माओवादियों से सांठगांठ थी और आज भी है। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता। इसी बात को कबीर सुमन उजागर कर रहे है।यह कहना है बंगाल के पूर्व उद्योग मंत्री निरुपम सेन का। वे शुक्रवार को सिलीगुड़ी अनिल विश्वास भवन में जिला के राजनीतिक पाठशाला का शुभारंभ करने के बाद पत्रकारों से बातचीत कर रहे थे। उन्होंने कहा कि नंदीग्राम, जंगलमहल, सिंगूर या दक्षिण बंगाल में जो भी हिंसा हुई उसके लिए सिर्फ तृणमूल कांग्रेस जिम्मेदार है। उन्होंने कहा कि गणतंत्र में विरोध करने का सबको अधिकार है। राजनीतिक में आरोप-प्रत्यारोप लगाए जाते हैं लेकिन इसमें भाषा की मर्यादा बनाए रखना जरूरी है। जिस प्रकार इन दिनों राजनीति में भाषा का स्तर गिरा है यह चिंता और दुख का विषय है। इसको लेकर सभी राजनीतिक दलों के नेताओं और कार्यकर्ताओं को सोचना होगा। भाषा अमर्यादित हो गई तो राजनीति का पतन हो जाएगा। राजनीति समाज का आइना होती है। इस लिए नेताओं, कार्यकर्ताओं को सजग और सतर्क रहना होगा।
बनर्जी का पारा चढऩे की असली वजह राज्य की खस्ता माली हालत है। हालांकि इसके लिए वह भी कम जिम्मेदार नहीं हैं। जबरदस्त वित्तीय संकट से गुजरने के बावजूद पश्चिम बंगाल बाजार से उतना कर्ज उठा चुका है, जितने की उसे इजाजत दी गई है। इसकी वजह मुख्यमंत्री के जनता को लुभाने वाले कदम ही हैं। उन्होंने हाल ही में राज्य के स्थानीय क्लबों को दूसरी बार रकम बांटी थी और कहा था कि अगले पांच साल तक उन्हें पैसे की किल्लत नहीं होने दी जाएगी। उद्योगों और रकम से महरूम राज्य के लिए ऐसी हरकत अय्याशी ही करार दी जाएगी। भारतीय रिजर्व बैंक ने राज्यों की माली हालत पर जोर रिपोर्ट हाल ही में पेश की थी, उसमें भी पश्चिम बंगाल को आखिरी पायदान या आखिरी तीन पायदानों पर जगह मिली थी।
उन्होंने कहा, '2010, 2011 और 2012 में मैंने वित्तीय सहायता की मांग लेकर प्रधानमंत्री से दस बार मुलाकात की। इससे ज्यादा मैं कुछ नहीं कर सकती हूं। क्या अब मैं उनको पीट दूं? अगर मैं ऐसा करूंगी तो आप कहेंगे कि मैं बदमाश हो गई हूं और बिना कुछ किए ही मुझे गुंडा कहा जाएगा। लेकिन मुझे उसकी फिक्र नहीं है। जनता के लिए मैं यह कदम भी उठा सकती हूं।' उन्होंने यूरिया की कीमत बढ़ाने के सरकार के फैसले की भी आलोचना की। उन्होंने कहा कि केंद्र पर निर्भरता कम करने के लिए राज्य सरकार अपना यूरिया कारखाना लगाएगी। आर्थिक मामलों पर मंत्रिमंडलीय समिति के 11 अक्टूबर 2012 के फैसले के मुताबिक मंत्रिमंडल ने भी यूरिया वाली खाद की कीमत 50 रुपये प्रति टन बढ़ाने का निर्णय लिया था।
ममता केंद्र से आर्थिक पैकेज न मिलने से काफी आक्रोशित थीं। उन्होंने कहा कि राज्य सरकारों का पैसा केंद्र दबा देता है। उन्होंने कहा कि अगर केंद्र सरकार ने उनकी बात नहीं सुनी तो वह कुछ दिन के बाद दिल्ली पहुंचकर धरना देंगी। गौरतलब है कि ममता ने इससे पहले अपने एक चर्चित बयान में कहा था कि अगर उन्हें पता होता कि वामपंथियों ने पश्चिम बंगाल का पूरा खजाना खाली कर दिया है, तो वह सीएम बनना ही पसंद नहीं करतीं।
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सोमवार को यह कहते हुए कि "गुजरात दंगे कर सकता है, हम नहीं" उसकी समृद्धि का राज एनआरआई के भारी निवेश को बताया।उन्होंने कहा कि मेरे सामने गुजरात का बखान मत कीजिए। गुजरात क्या कर सकता है जो हम नहीं कर सकते। हां, हम दंगे में संलिप्त नहीं हो सकते। गुजरात एनआरआई के अपार निवेश से चमक रहा है। दक्षिणी 24 परगना जिले में आयोजित रैली को संबोधित करते हुए बनर्जी ने गुजरात और पश्चिम बंगाल की तुलना पर असंतोष जाहिर किया।उन्होंने कहा कि क्यों गुजरात से तुलना की जाती है, उनकी आबादी हमारे मुकाबले बेहद कम है। वहां जाम, बंद और हड़तालें नहीं होती। वे हमारी तरह कर्ज में डूबे हुए नहीं हैं। राज्य की वित्तीय दुर्दशा का ठीकरा पूर्व की वामों सरकार पर फोड़ते हुए बनर्जी ने कहा कि सत्ता में आने से पहले उन्हें खराब माली हालत का भान नहीं था।
हाल ही में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने दूसरे चरण के तहत स्थानीय क्लबों को धन का आवंटन शुरू किया था, साथ ही उन्होंने अगले 5 साल तक रकम सतत रूप से मुहैया कराने का भी आश्वासन दिया था।
नई सरकार के सत्ता में आने के बाद से पश्चिम बंगाल में मुख्यमंत्री द्वारा धन का आवंटन कोई नई बात नहीं है। बहरहाल राज्य नकदी के संकट से जूझ रहा है और उद्योगों से वंचित है। ऐसे में इस तरह के फैसले महंगे शौक के अलावा कुछ नहीं है।
हाल ही में आई रिपोर्ट- स्टेट फाइनैंस : स्टडी ऑफ बजट्स 2012-13 से एक बार फिर राज्य की खस्ता वित्तीय स्थिति उजागर हुई है। राज्यों की वित्तीय हालत के मामले में बंगाल लगातार निचले पायदान पर बना हुआ है।
2011-12 में पश्चिम बंगाल के सकल राज्य घरेलू उत्पाद (पुनरीक्षित अनुमान) और राजस्व प्राप्तियों का अनुपात 10.80 प्रतिशत था, जो देश के अन्य राज्यों की तुलना में सबसे कम था। सकल वित्तीय घाटे के मामले में भी पश्चिम बंगाल 2011-12 में 79.70 प्रतिशत के साथ उच्चतम राजस्व घाटे वाला राज्य था। ब्याज भुगतान के मामले में भी राज्य की स्थिति सबसे खराब है और 2011-12 में इसका अनुपात राजस्व खर्च का 21.10 प्रतिशत रहा।
यह एक मात्र आंकड़े नहीं हैं। राज्य की खस्ता वित्तीय हालत का पता गैर-विकासात्मक खर्च के आंकड़ों से भी पता चलता है। साथ ही राज्य पर कर्ज का बोझ भी बहुत ज्यादा है। 2011-12 के पुनरीक्षित आंकड़ों के मुताबिक जीएसडीपी अनुपात में पश्चिम बंगाल दूसरा बड़ा राज्य है। आरबीआई रिपोर्ट के मुताबिक राज्य पर जीएसडीपी का 39 प्रतिशत कर्ज है।
मार्च 2013 के आखिर तक पश्चिम बंगाल की कुल देनदारी 2.30 लाख करोड़ रुपये होगी, जो सभी राज्यों में तीसरी बड़ी देनदारी है। 2011-12 के पुनरीक्षित अनुमान के मुताबिक ब्याज भुगतान और राजस्व प्राप्ति अनुपात (आईपी-आरआर) गुजरात, केरल, पश्चिम बंगाल और पंजाब के अलावा सभी राज्यों में 15 प्रतिशत था। पश्चिम बंगाल में आईपी-आरआर जहां सबसे ज्यादा 27.20 प्रतिशत था, वहीं छत्तीसगढ़ में यह 4.5 प्रतिशत के न्यूनतम स्तर पर रहा।
इस वित्तीय वर्ष के राज्य बजट दस्तावेजों के मुताबिक पश्चिम बंगाल में राजस्व प्राप्तियां 76,943 करोड़ रुपये रहने का अनुमान है और खर्च 83,801 करोड़ रुपये रहेगा, जिसके चलते 6585 करोड़ रुपये का भारी राजस्व घाटा होगा। इस वित्त वर्ष के आखिर तक पश्चिम बंगाल का वेतन पर होने वाला खर्च ही 28,889 करोड़ रुपये से बढ़कर 31,184 करोड़ रुपये होने का अनुमान है, जो सरकार के अनुमानित खर्च का करीब 37 प्रतिशत है। इसी तरह से राज्य का पेंशन और सेवानिवृत्ति लाभों पर खर्च 8,385 करोड़ रुपये से बढ़कर 9,582 करोड़ रुपये होने का अनुमान है।
आरबीआई की रिपोर्ट सिर्फ एक मामले में उम्मीद जगाती है कि राज्य सरकार ने राज्य की वित्तीय स्थिति में 2012-13 के बजट अनुमानों में सुधार की उम्मीद की है।
पश्चिम बंगाल में राजस्व घाटे में कमी और बिहार में राजस्व अधिशेष में बढ़ोतरी गैर विशेष राज्य के दर्जे वाले राज्यों के राजस्व खातों में बजटीय सुधार के संकेत देते हैं।
सरकार और पार्टी के जिम्मेदार शख्स का गैर जिम्मेदाराना बयान- मामला पश्चिम बंगाल सरकार के खाद्य मंत्री और तृणमूल कांग्रेस नेता ज्योतिप्रिय मल्लिक से जुड़ा है। जिन्हें लोकतंत्र में गुंडाराज को बढ़ावा देने में भी कोई खोट नजर नहीं आता।वरना 24 उत्तर परगना इलाके में तृणमूल कांग्रेस के दफ्तर के उद्घाटन के दौरान पार्टी कार्यकर्ताओं को उन्होंने जो कहा वो लोकतंत्र के रखवाले नहीं कह सकते हैं। हैरान रह जाएंगे आप ये जानकर कि ज्योतिप्रिय मल्लिक सीधे-सीधे तृणमूल कांग्रेस कार्यकर्ताओं को सीपीएम कार्यकर्ताओं को मारने पीटने के लिए उकसा रहे हैं और इसकी छूट तक वो कार्यकर्ताओं को दे रहे हैं।
आनेवाले पंचायत वोट में बंगाल में सीपीएम को हम एक भी सीट जीतने नहीं देंगे। इसके लिए अगर राजनीतिक लड़ाई के बजाए मारपीट की भी जरूरत पड़े तो वो भी आप कीजिए। हम उसके लिए तैयार हैं,हमारी तरफ से इसकी छूट है, लेकिन सीपीएम का एक भी इलाका आप नहीं छोड़ें।
सरकार और पार्टी के जिम्मेदार शख्स का ये गैर जिम्मेदाराना बयान है कि ये बयान बानगी भर है पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस और सीपीएम के बीच पनप रही दुश्मनी। लेकिन सवाल बड़ा है कि क्या लोकतंत्र में गुंडातंत्र को बढ़ावा देना गैर कानूनी नहीं है।
क्या तृणमूल कांग्रेस के नेता और सरकार के मंत्री की हैसियत से ज्योतिप्रिय मल्लिक गुंडातंत्र को इस कदर बढ़ावा देने की बात कर सकते हैं? क्या इन्हीं मंत्रियों और नेताओं की बदौलत पश्चिम बंगाल में परिवर्तन लाने की कोशिश कर रही हैं ममता बनर्जी।
शर्म आती है लोकतंत्र के ऐसे सेनापतियों को देखकर और सुनकर, जो बिना किसी खौफ के अपने विरोधियों को मारने की वकालत करते हैं।
हद तब हो गई किज्योतिप्रिय मल्लिक ना सिर्फ तृणमूल कांग्रेस के नेता हैं, बल्कि वो सरकार में खाद्य मंत्री भी हैं। उत्तर 24 परगना जिले में पार्टी दफ्तर का उद्घाटन करने ज्योतिप्रिय मल्लिक आए थे।
पश्चिम बंगाल में गुंडई संबंधी बयानों को लेकर जुबानी जंग के बीच राज्य के राज्यपाल एम. के. नारायणन और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने आपसी सद्भाव के साथ एक ही मंच साझा किया। ममता और नारायणन ने स्वामी विवेकानंद के 150वें जन्मदिन पर साल्टलेक स्टेडियम में आयोजित कार्यक्रम में मंच पर हाथ मिलाए और दोनों को एक दूसरे से बातचीत करते देखा गया।गौरतलब है कि नारायणन ने राज्य में राजनीतिक हिंसा की चर्चा करते हुए गुंडई फैलने की बात कही थी। उनके इस बयान पर पंचायत मंत्री सुब्रत मुखर्जी ने कड़ी प्रतिक्रिया जताई थी। इस बीच मुख्यमंत्री ने कार्यक्रम में मौजूद युवाओं को शपथ दिलाते हुए अपनी पार्टी के नारे मां, माटी और मानुष का इस्तेमाल कर विवाद पैदा कर दिया। ममता ने कहा कि मां, माटी और मानुष को बचाना हमारा कर्तव्य है। राज्य में विपक्षी लेफ्ट फ्रंट ने सरकारी कार्यक्रम में पार्टी के नारे का इस्तेमाल किए जाने पर मुख्यमंत्री की आलोचना की है।
गौरतलब है कि भागड़ में माकपा विधायक अब्दुर्रज्जाक मोल्ला पर हमले के बाद राज्यपाल एमके नारायणन ने राज्य की विधि व्यवस्था को लेकर केंद्र सरकार को एक रिपोर्ट भेजी है।गौरतलब है कि राज्यपाल ने उस घटना के बाद सार्वजनिक तौर पर कहा था कि यह राजनीतिक संस्कृति नहीं है बल्कि गुंडागर्दी है। श्री नारायण ने अचानक यह बातें नहीं कही थीं। विधानसभा के मुख्य सचेतक शोभनदेव चटर्जी के साथ उन्हीं की पार्टी के लोगों द्वारा दुर्व्यहार करने से लेकर मंत्री रवींद्र भंट्टाचार्य द्वारा सरकार पर वसूली करने के लगाए गए आरोप और लोबा गांव में ग्रामीणों पर पुलिस कार्रवाई की घटना से राज्यपाल पहले से ही क्षुब्ध थे। भागड़ की घटना पर उन्होंने अपनी भड़ास निकाल दी। वह इसके पहले वह राज्य में गिरती कानून व्यवस्था पर चिंता जताते हुए केंद्र को रिपोर्ट भेज चुके थे। राज्य में राजनीतिक हिंसा के मद्देनजर पश्चिम बंगाल के राज्यपाल एमके नारायण ने कहा कि राज्य में गुंडागिरी हो रही है और तृणमूल कांग्रेस-वाम मोर्चा के बीच झड़पों से प्रदेश दहल गया है। ऐसे हालात में पुलिस को निष्पक्ष होकर काम करना चाहिए।राज्यपाल ने एक कार्यक्रम में कहा, इसका राजनीतिक संस्कृति से कोई लेना-देना नहीं है। मुझे लगता है कि यहां किसी तरह की गुंडागिरी हो रही है। उन्होंने एक सवाल के जवाब में कहा, पिछला दो दिन बहुत परेशानी भरा रहा है। इस तरह की हिंसा नहीं होनी चाहिए थी...यह स्वीकार्य नहीं है।
राज्यपाल ने कहा, और जो कोई भी जिम्मेदार होगा, उसके खिलाफ कार्रवाई होगी और जहां तक इस बात का सवाल है, पुलिस को निष्पक्ष होकर काम करना होगा। नारायणन ने कहा, दोषी के खिलाफ स्पष्ट सबूत हैं। गौरतलब है कि मंगलवार को दक्षिण 24 परगना के बमनघटा में माकपा और तृणमूल कार्यकर्ताओं के बीच झड़प हुई थी। वहां इससे पहले माकपा के पूर्व मंत्री अब्दुर रज्जाक पर तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने कथित तौर पर हमला किया था।
शुरु से आखिरतक राज्य के हेवीवेट मंत्री हमलावर अराबुल के पक्ष में रैली और बयानबाजी करते रहे, लेकिन राज्यपाल के इस बयान के बाद दीदी को राजधर्म निभाना ही पड़ा और बंगाल के भांगड़ कांड के मुख्य आरोपी तृणमूल नेता व पूर्व विधायक अराबुल इस्लाम को घटना के दस दिन बाद पुलिस ने गुरुवार को गिरफ्तार किया। इस्लाम के खिलाफ माकपा विधायक व पूर्व मंत्री अब्दुर्रज्जाक मोल्ला और पार्टी की जुलूस पर हमले का आरोप है। अपने नेता की गिरफ्तारी के विरोध में तृणमूल समर्थकों ने भांगड़ में गुरुवार को जुलूस निकाला और बाजार बंद करा दिया। इलाके में तनाव व्याप्त है।
कोर्ट में पेशी के दौरान पुलिस की तरफ से अराबुल को सात दिनों की रिमांड पर लेने का आवेदन किया गया था, लेकिन अदालत ने सिर्फ पांच दिन की ही मंजूरी दी। गौरतलब है कि छह जनवरी को दक्षिण 24 परगना जिले के भांगड़ क्षेत्र के कांटातल्ला इलाके में माकपा विधायक मोल्ला पर हमला हुआ था, जिसमें वह जख्मी हो गए थे। इसके दो दिन बाद आठ जनवरी को घटना के खिलाफ जब वाममोर्चा के जुलूस में शामिल होने के लिए माकपा समर्थक बसों, मेटाडोर में सवार होकर कोलकाता आ रहे थे, बामनघाटा में उन पर फिर हमला हुआ। इस हमले में गोली से तीन लोग जख्मी हुए। एक दर्जन से अधिक वाहनों में आग लगा दी गई। करीब 30 गाड़ियों में तोड़फोड़ की गई। अराबुल की गाड़ी में भी तोड़फोड़ हुई। माकपा ने अराबुल पर आरोप लगाया कि उसी के नेतृत्व में बम व गोली से तृणमूल समर्थकों ने उनपर हमला किया है। उधर अराबुल भी अपने को जख्मी बताते हुए अस्पताल में भर्ती हो गया। माकपा समर्थकों ने अराबुल समेत 17 लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराई। अराबुल ने भी सत्तार मोल्ला समेत चार सौ माकपा समर्थकों के खिलाफ एफआइआर दर्ज कराई। पुलिस ने दोनों दलों के करीब 90 समर्थकों को गिरफ्तार किया, परंतु अराबुल की गिरफ्तारी नहीं हुई। इसे लेकर तृणमूल सरकार की काफी किरकिरी हो रही थी और अस्पताल से छुंट्टी मिलने के बाद आखिरकार पुलिस ने गुरुवार को अराबुल को गिरफ्तार कर लिया। माना जा रहा है कि अब सत्तार मोल्ला की भी गिरफ्तारी हो सकती है।
अगले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और भाजपा को हराना माकपा का उद्देश्य है। पार्टी का विशेष जोर वाममोर्चा को मजबूत करना है लेकिन गैर कांग्रेस व गैर भाजपा ताकतों को भी एकजुट किया जाएगा। चुनाव के समय गैर भाजपा व गैर कांग्रेस लोकतांत्रिक सेकुलर दलों के साथ चुनावी तालमेल की संभावनाओं पर भी विचार किया जाएगा। कोलकाता में शनिवार को संपन्न हुई माकपा केंद्रीय कमेटी की तीन दिवसीय बैठक में वाममोर्चा के अतिरिक्त गैर कांग्रेस व गैर भाजपा ताकतों को भी एकजुट करने का निर्णय किया गया। बैठक के बाद माकपा महासचिव प्रकाश करात ने संवाददाता सम्मेलन में यह जानकारी दी।
राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव द्वारा तीसरे मोर्चा की संभावना को खारिज करने के सवाल पर श्री करात ने कहा कि लालू प्रसाद यादव कांग्रेस के साथ हैं। बिहार में कांग्रेस के साथ मिल कर उन्होंने चुनाव भी लड़ा है। ऐसी स्थिति में लालू क्यों चाहेंगे कि कांग्रेस के खिलाफ कोई मोर्चा बने। वैसे माकपा भी अभी तीसरे मोर्चा की बात नहीं उठाएगी। वामपंथी ताकतों को मजबूत करना ही माकपा का उद्देश्य है। इसके साथ गैर भाजपा व गैर कांग्रेस ताकतों को भी एकजुट करने का प्रयास किया जाएगा ताकि चुनाव के समय उनके साथ चुनावी गठबंधन या सीटों की तालमेल हो सके।
करात ने कहा कि मूल्य वृद्धि तथा केंद्र की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ राष्ट्रव्यापी आंदोलन करने का निर्णय किया गया है। कन्याकुमारी से दिल्ली तक वामपंथी युवकों का राष्ट्रव्यापी जत्था निकलेगा, जो देश के विभिन्न भागों से होकर 19 मार्च को दिल्ली पहुंचेगा। इस आंदोलन में महंगाई के अतिरिक्त खाद्य सुरक्षा, भूमि व आवास, रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य व भ्रष्टाचार आदि मुद्दों शामिल किया गया है। कन्याकुमारी से दिल्ली तक का जत्था पोलित ब्यूरो के सदस्य रामचंद्र पिल्लई, मुंबई से दिल्ली तक के लिए सीताराम येचुरी और अमृतसर से दिल्ली तक के जत्था को वृंदा करात रवाना करेंगी। श्री करात ने कहा कि कोलकाता से दिल्ली तक का जत्था वह खुद 25 फरवरी को रवाना करेंगे।
करात ने कहा कि झारखंड में भाजपा- झामुमो की सरकार के गिरने के बाद राष्ट्रपति शासन लागू हुआ है। माकपा ने झारखंड विधानसभा भंग कर वहां अविलंब चुनाव कराने की मांग की है। बैठक में डीजल के मूल्य से सरकारी नियंत्रण हटाने से आम जनता पर पड़ने वाले प्रभाव, सब्सिडी के बदले बैंक खाते में नकदी का हस्तांतरण, महिलाओं पर अत्याचार, जम्मू कश्मीर में नियंत्रण रेखा पर तनाव की स्थिति तथा सीरिया में बाहरी ताकतों से हथियारों की आपूर्ति आदि मुद्दे पर चर्चा हुई। केंद्रीय कमेटी ने पश्चिम बंगाल में बढ़ती राजनीतिक हिंसा व कानून व्यवस्था में गिरावट की स्थिति पर चिंता जतायी है।
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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST
We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas.
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THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA
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