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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Wednesday, December 24, 2014

(मज़दूर बिगुल के दिसम्‍बर 2014 अंक में प्रकाशित लेख। अंक की पीडीएफ फाइल डाउनलोड करने के लिए यहाँ क्लिक करें और अलग-अलग लेखों-खबरों आदि को पढ़ने के लिए उनके शीर्षक पर क्लिक करें)

(मज़दूर बिगुल के दिसम्‍बर 2014 अंक में प्रकाशित लेख। अंक की पीडीएफ फाइल डाउनलोड करने के लिए यहाँ क्लिक करें और अलग-अलग लेखों-खबरों आदि को पढ़ने के लिए उनके शीर्षक पर क्लिक करें)

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  • साम्राज्यवादी संकट के समय में सरमायेदारी के सरदारों की साज़िशें और सौदेबाज़ियाँ और मज़दूर वर्ग के लिए सबक
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    आपके मन में यह प्रश्न उठना लाज़िमी है कि भारत से लगभग 10 हज़ार मील दूर ऑस्ट्रेलिया देश के ब्रिस्बेन शहर में अगर दुनिया की 20 बड़ी आर्थिक ताक़तों के मुखिया इकट्ठा हुए हों तो हम इसके बारे में क्यों सोचें? हम तो अपनी ज़िन्दगी के रोज़मर्रा की जद्दोजहद में ही ख़र्च हो जाते हैं। तो फिर नरेन्द्र मोदी दुनिया के बाक़ी 19 बड़े देशों के मुखियाओं के साथ क्या गुल खिला रहा है, हम क्यों मगजमारी करें? लेकिन यहीं पर हम सबसे बड़ी भूल करते हैं। वास्तव में, हमारी रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में हमें जिन परेशानियों का सामना करना पड़ता है, वे वास्तव में यहाँ से 10 हज़ार मील दूर बैठे विश्व के पूँजीपतियों के 20 बड़े नेताओं की आपसी उठा-पटक से करीबी से जुड़ी हुई हैं। क्या आपने कभी सोचा है कि नरेन्द्र मोदी द्वारा श्रम क़ानूनों को बरबाद किये जाने का कुछ रिश्ता दुनिया के साम्राज्यवादियों की इस बैठक से भी हो सकता है? क्या आपने सोचा है कि अगर कल को आपको आटा, चावल, दाल, तेल, सब्ज़ि‍याँ दुगुनी महँगी मिलती हैं, तो इसका कारण जी20 सम्मेलन में इकट्ठा हुए पूँजी के सरदारों की आपसी चर्चाओं में छिपा हो सकता है? क्या आपको इस बात का अहसास है कि अगर कल सरकारी स्कूल बन्द होते हैं या उनकी फ़ीसें हमारी जेब से बड़ी हो जाती हैं तो इसके पीछे का रहस्य जी20 में बैठे सरमायेदारों के सरदारों की साज़िशों में हो सकता है? क्या हमने कभी सोचा था कि अगर कल बचा-खुचा स्थायी रोज़गार भी ख़त्म हो जाता है और मालिकों और प्रबन्धन को हमें जब चाहे काम पर रखने और काम से निकाल बाहर करने का हक़ मिल जाता है तो इसमें जी20 में लुटेरों की बैठक का कोई योगदान हो सकता है? सुनने में चाहे जितना अजीब लगे, मगर यह सच है!

  • स्त्रियों, मज़दूरों, मेहनतकशों को अपनी रक्षा के लिए ख़ुद आगे आना होगा
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    अधिकतर परिवार छेड़छाड़, बलात्कार, अगवा आदि की घटनाओं को बदनामी के डर से दबा जाते हैं। लेकिन पीड़ित परिवार ने ऐसा नहीं किया। तमाम धमकियों, अत्याचारों के बावजूद भी लड़ाई जारी रखी है। पीड़ित लड़की और उसके परिवार का साहस सभी स्त्रियों, ग़रीबों और आम लोगों के लिए मिसाल है। इंसाफ़ की इस लड़ाई में मज़दूरों और अन्य आम लोगों धर्म, जाति, क्षेत्र से ऊपर उठकर जो एकजुटता दिखाई है वह अपने आप में एक बड़ी बात है। कई धार्मिक कट्टरपंथी, चुनावी दलाल नेता, पुलिस-प्रशासन के पिट्ठू छुट्टभैया नेता इस मामले को एक ''कौम'' का मसला बनाने की कोशिश कर रहे थे। लेकिन जनता ने इनकी एक न चलने दी। 14 दिसम्बर को रोड जाम करके किये गये प्रदर्शन के दौरान पंजाबी भाषी लोगों का भी काफी समर्थन हासिल हुआ। स्त्रियों सहित आम जनता को अत्याचारों का शिकार बना रहे गुण्डा गिरोहों और जनता को भेड़-बकरी समझने वाले पुलिस-प्रशासन, वोट-बटोरू नेताओं और सरकार के गठबन्धन को मज़दूरों-मेहनतकशों की फौलादी एकजुटता ही धूल चटा सकती है।

  • मोदी सरकार ने सार्वजनिक उपक्रमों को औने-पौने दामों में निजी पूँजीपतियों को बेचने के लिए कमर कसी
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    वैसे तो आज़ादी के बाद से हर सरकार ने अपने-अपने तरीक़े से पूँजीपति वर्ग की चाकरी की है, लेकिन अपने कार्यकाल के शुरुआती छह महीनों में ही मोदी सरकार ने इस बात के पर्याप्त संकेत दिये हैं कि उसने चाकरी के पुराने सारे कीर्तिमान ध्वस्त करने का बीड़ा उठा लिया है। देशी-विदेशी पूँजीपतियों को लूट के नये-नवेले ऑफ़र दिये जा रहे हैं। एक ओर यह सरकार विदेशी पूँजी को रिझाने के लिए मुख़्तलिफ़ क्षेत्रों में विदेशी पूँजी के सामने लाल कालीनें बिछा रही है, वहीं दूसरी ओर देशी पूँजी को भी लूट का पूरा मौक़ा दिया जा रहा है। पूँजी को रिझाने के इसी मक़सद से अब मोदी सरकार आज़ादी के छह दशकों में जनता की हाड़-तोड़ मेहनत से खड़े किये गये सार्वजनिक उद्यमों को औने-पौने पर बेचने के लिए कमर कस ली है।

  • निवेश के नाम पर चीन के प्रदूषणकारी उद्योगों को भारत में लगाने की तैयारी
    Pollution

    मोदी सरकार की 'मेक इन इण्डिया' की नीति ने चीन जैसे देशों के लिए बड़ी सहूलियत पैदा कर दी है। उन्हें अपने देश के अत्यधिक प्रदूषण पैदा करनेवाले और पुरानी तकनीक पर आधारित उद्योगों को भारत में ढीले और लचर श्रम क़ानूनों की बदौलत यहाँ खपा देने का मौक़ा मिल गया है। पिछले तीन दशकों से चीन में लगातार जारी औद्योगिकीकरण ने चीन की आबोहवा को इस कदर प्रदूषित कर डाला है कि वहाँ के कई शहरों में वायु प्रदूषण के चलते हमेशा एक धुन्ध जैसी छायी रहती है। यह किस ख़तरनाक हद तक मौजूद है इसे सिर्फ़ इस बात से समझा जा सकता है कि यहाँ एक क्यूबिक मीटर के दायरे में हवा के प्रदूषित कण की मात्र 993 माइक्रोग्राम हो गयी है जबकि इसे 25 से अधिक नहीं होना चाहिए। एक अन्तरराष्ट्रीय संस्था की रिपोर्ट के मुताबिक़ दुनिया के 20 सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में 16 तो चीनी शहर ही हैं और ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में इसका स्थान तीसरा है। चीन के पर्यावरण के लिए ये महाविपदा साबित हो रही हैं।

  • फ़ॉक्सकॉन के मज़दूरों का नारकीय जीवन
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    चीन की फ़ॉक्सकॉन कम्पनी एप्पल जैसी कम्पनियों के लिए महँगे इलेक्ट्रॉनिक और कम्प्यूटर के साजो-सामान बनाती है। इसके कई कारख़ानों में लगभग 12 लाख मज़दूर काम करते हैं। यहाँ जिस ढंग से मज़दूरों से काम लिया जाता है उसके चलते 2010 से 2014 तक ही में 22 ख़ुदकुशी की घटनाएँ सामने आयीं और कई ऐसी घटनाओं को दबा दिया गया। दुनियाभर में "कम्युनिस्ट" देश के तौर पर जाने वाले चीन का पूँजीवाद इससे ज़्यादा नंगे रूप में ख़ुद को नहीं दिखा सकता था। चीन दुनिया का सबसे बड़ा निर्यातक है। परन्तु बाज़ारों में पटे सस्ते चीनी माल चीन के मज़दूरों के हालात नहीं बताते हैं। पर फ़ॉक्सकॉन की घटना पूरे चीन की दुर्दशा बताती है।

  • जनता को तोपें और बमवर्षक नहीं बल्कि रोटी, रोज़गार, सेहत व शिक्षा जैसी बुनियादी ज़रूरतें चाहिए
  • Repression

    सरकार देश के लोगों से डरती है और उन पर दमन बढ़ाने, उनके हक़ और गुस्से की हर आवाज़ को दबाने के लिए ही फ़ौजी मशीनरी को और ज़्यादा आधुनिक, और ज़्यादा दैत्याकार तथा और ज़्यादा मज़बूत कर रही है। कारण भी साफ़ है कि संसार पूँजीवादी ढाँचे के आर्थिक संकट की लपेट में आये भारतीय अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए भारत का पूँजीपति वर्ग मेहनतकश आबादी की लूट बढ़ाकर, उनको दी जाती जन-सुविधाएँ छीनकर अपनी तिजोरियों में डालना चाहती है। इसी लिए उन्होंने गुज़रात दंगों के नायक मोदी को अपना प्रतिनिधि बनाया है, क्योंकि लोगों को और ज़्यादा लूटने-पीटने के लिए उनको राहुल (और कांग्रेस) जैसा नाजुक-कोमल-सा प्रतिनिधि नहीं चाहिए, बल्कि ज़्यादा अत्याचारी, बदमाश और बेरहम प्रतिनिधि चाहिए जोकि मोदी है। मोदी ने आते ही लोगों के मुँह से निवाले छीनकर पूँजीपति वर्ग को परोसने शुरू कर दिये हैं, विदेशी निवेशकों को बुलाना शुरू कर दिया है, लोगों को दी जाती सहूलियतें और अधिकारों को छीनना शुरू कर दिया है और ज़रूरत पड़ने पर लोगों पर डण्डा चलाना भी शुरू कर दिया है। लोगों के बढ़ते गुस्से और बेचैनी के लिए मोदी अपना डण्डा और मज़बूत करना चाहता है।

  • पाखण्ड का नया नमूना रामपाल: आखि़र क्यों पैदा होते हैं ऐसे ढोंगी बाबा?
    Babas

    लोग पूँजीवादी व्यवस्था में व्याप्त सामाजिक-आर्थिक असुरक्षा होने के कारण धर्म-कर्म के चक्कर में पड़ते हैं। पूँजीवादी समाज का जटिल तन्त्र और उसमें व्याप्त अस्थिरता किसी भाववादी सत्ता में विश्वास करने का कारण बनती है। असल में धार्मिक बाबाओं के पास लोग एकदम भौतिक कारणों से जाते हैं। किसी को रोज़गार चाहिए, किसी को सम्पत्ति के वारिस के तौर पर लड़का चाहिए, कोई अपनी बीमारी के इलाज के लिए जाता है तो किसी को धन चाहिए। यही नहीं बौद्धिक रूप से कुपोषित नेता-मन्त्री और ख़ुद को पढे-लिखे कहने वाले लोग भी अपनी कूपमण्डूकता का प्रदर्शन करते रहते हैं। मौजूदा व्यवस्था की वैज्ञानिक समझ के बिना और तर्कशीलता और वैज्ञानिक नज़रिये से रीते होने के कारण लोग पोंगे-पण्डितों को अवतार पुरुष समझ बैठते हैं। ये ढोंगी बाबा एकदम विज्ञान पर आधारित कुछ ट्रिकों का इस्तेमाल करते हैं और अपनी छवि को चमत्कारी व अवतारी के तौर पर प्रस्तुत करते हैं। हरियाणा में कभी सिंचाई विभाग का जूनियर इंजीनियर रह चुका रामपाल भी चमत्कारी प्रभाव छोड़ने के लिए हाईड्रोलिक्स कुर्सी तथा रंगबिरंगी लाइटों का इस्तेमाल करता था। धार्मिक गुरु घण्टाल लोगों को तर्क न करने, पूर्ण समर्पण करने, दिमाग़ को ख़ाली रखने आदि जैसी "हिदायतें" लगातार देते रहते हैं। यहाँ पर 'श्रद्धावानम् लभते ज्ञानम्' के फ़ार्मूले पर काम करना सिखाया जाता है। लेकिन इस सबके बावजूद कुछ लोग इनके पाखण्ड को समझने की "भूल" कर बैठते हैं तो इन जैसों से ये बाबा दूसरे तरीक़े से निपटते हैं। अपने "भटके हुए" भक्तों की हत्या तक करवा देना इन बाबाओं के बायें हाथ का खेल है। आसाराम और नारायण साईं, कांची पीठ के शंकराचार्य जयेन्द्र सरस्वती, डेरा सच्चा सौदा के गुरमीत राम रहीम, चन्द्रास्वामी, प्रेमानन्द आदि ऐसे चन्द उदाहरण हैं जिनके नाम अपने भक्तों को असली मोक्ष प्रदान करने में सामने आये हैं।

  • मामला सिर्फ़ मेडिकल लापरवाही या घटिया दवाओं का नहीं है!
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    यह नीति और नसबन्दी अभियान भयंकर हद तक नारी-विरोधी है और यह समाज में मौजूद मर्द प्रधानता और महिलाओं की गुलामों वाली हालत का एक बहुत ही नीच दिखावा है, जिसका एक सभ्य समाज में कोई चलन नहीं हो सकता, परन्तु भारत समेत तीसरी दुनिया के सभी देशों में औरतों को इस अमानवीय व्यवहार का दशकों से शिकार बनाया जा रहा है।

  • 1984 के ख़ूनी वर्ष के 30 साल – अब भी जारी हैं योजनाबद्ध साम्प्रदायिक दंगे और औद्योगिक हत्याएँ
  • Anti sikh riots 1984

    हर चीज़ की तरह यहाँ न्याय भी बिकता है। पुलिस थाने, कोर्ट-कचहरियाँ सब व्यापार की दुकानें हैं जो नौकरशाहों, अफ़सर, वकीलों और जजों के भेस में छिपे व्यापारियों और दलालों से भरी हुई हैं। आप क़ानून की देवी के तराजू में जितनी ज़्यादा दौलत डालोगे उतना ही वह आपके पक्ष में झुकेगी। इन दो मामलों के अलावा भी हज़ारों मामले इसी बात की गवाही देते हैं। बहुत से पूँजीपति और राजनीतिज्ञ बड़े-बड़े जुर्म करके भी खुले घूमते फिरते हैं, क़त्ल और बलात्कार जैसे गम्भीर अपराधों के दोषी संसद में बैठे सरकार चलाते हैं और करोड़ों लोगों की किस्मत का फ़ैसला करते हैं। सरकारी आँकड़ों के मुताबिक़ ही केन्द्र और अलग-अलग राज्यों में करीब आधे राजनीतिज्ञ अपराधी हैं, असली संख्या तो कहीं और ज़्यादा होगी। कभी-कभार मुनाफ़े की हवस में पागल इन भेड़ियों की आपसी मुठभेड़ में ये अपने में से कुछ को नंगा करते भी हैं तो वह अपनी राजनैतिक ताक़त और पैसे के दम पर आलीशान महलों जैसी सहूलियतों वाली जेलों में कुछ समय गुज़ारने के बाद जल्दी ही बाहर आ जाते हैं। ए. राजा, कनीमोझी, लालू प्रसाद यादव, जयललिता, शिबू सोरेन, बीबी जागीर कौर, बादल जैसे इतने नाम गिनाये जा सकते हैं कि लिखने के लिए पन्ने कम पड़ जायें।

  • गीता प्रेस – धार्मिक सदाचार व अध्यात्म की आड़ में मेहनत की लूट के ख़ि‍लाफ़ मज़दूर संघर्ष की राह पर
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    धर्म बहुत लम्बे समय से अनैतिकता, अपराध, लूट व शोषण की आड़ बनता रहा है। परन्तु मौजूदा समय में गलाजत, सड़ान्ध इतने घृणास्पद स्तर पर पहुँच चुकी है कि धर्म की आड़ से गन्दगी पके फोड़े की पीप की तरह बाहर आ रही है। आसाराम, रामपाल जैसे इसके कुछ प्रातिनिधिक उदाहरण हैं। इसी कड़ी में धर्म और अध्यात्म की रोशनी में मज़दूरों की मेहनत की निर्लज्ज लूट का ताज़ा उदाहरण गीता प्रेस, गोरखपुर है। कहने को तो गीता प्रेस से छपी किताबें धार्मिक सदाचार, नैतिकता, मानवता आदि की बातें करती हैं, लेकिन गीता-प्रेस में हड्डियाँ गलाने वाले मज़दूरों का ख़ून निचोड़कर सिक्का ढालने के काम में गीता प्रेस के प्रबन्धन ने सारे सदाचार, नैतिकता और मानवता की धज्जियाँ उड़ाकर रख दिया है। संविधान और श्रम कानून भी जो हक मज़दूरों को देते हैं वह भी गीता प्रेस के मज़दूरों को हासिल नहीं है! क्या इत्तेफ़ाक है कि गीता का जाप करनेवाली मोदी सरकार भी सारे श्रम कानूनों को मालिकों के हित में बदलने में लगी है। इसी माह प्रबन्धन के अनाचार, शोषण को सहते-सहते जब मज़दूरों का धैर्य जवाब दे गया तो उनका असन्तोष फूटकर सड़कों पर आ गया।

  • क्या भगवा और नक़ली लाल का गठजोड़ मज़दूरों आन्दोलन को आगे ले जा सकता है?
  • फ़ैक्टरियों में सुरक्षा के इन्तज़ाम की माँग को लेकर मज़दूरों ने किया प्रदर्शन
  • तेल की क़ीमतों में गिरावट का राज़
  • चीनी क्रान्ति के महान नेता माओ त्से-तुङ के जन्मदिवस (26 दिसम्बर) के अवसर पर
  • उद्धरण
  • अस्ति का मज़दूर आन्दोलन ऑटो सेक्टर मज़दूरों के संघर्ष की एक और कड़ी!
  • फ़ॉक्सकॅान के मज़दूर की कविताएँ
  • मोदी सरकार के अगले साढ़े-चार वर्षों के बारे में वैज्ञानिक तथ्य-विश्लेषण आधारित कुछ भविष्यवाणियाँ!
  • पार्टी मजदूर वर्ग का संगठित दस्ता है
  • मज़दूर विरोधी "श्रम सुधारों" के खि़लाफ़ रोषपूर्ण प्रदर्शन

 

मज़दूर बिगुल' के पाठकों से एक जरूरी अपील
प्रिय पाठको, 
बहुत से सदस्यों को 'मज़दूर बिगुल' नियमित भेजा जा रहा है, लेकिन काफी समय से हमें उनकी ओर से न कोई जवाब नहीं मिला और न ही बकाया राशि। आपको बताने की ज़रूरत नहीं कि मज़दूरों का यह अख़बार लगातार आर्थिक समस्या के बीच ही निकालना होता है और इसे जारी रखने के लिए हमें आपके सहयोग की ज़रूरत है। अगर आपको 'मज़दूर बिगुल' का प्रकाशन ज़रूरी लगता है और आप इसके अंक पाते रहना चाहते हैं तो हमारा अनुरोध है कि आप कृपया जल्द से जल्द अपनी सदस्यता राशि भेज दें। आप हमें मनीआर्डर भेज सकते हैं या सीधे बैंक खाते में जमा करा सकते हैं। बहुत सारे पाठकों को ये अखबार ईमेल से भी नियमित तौर पर मिलता है। ऐसे सभी संजीदा पाठकों से भी अनुरोध है कि वो बिगुल की सदस्‍यता ले लें व अपने आसपास रिश्‍तेदारों, दोस्‍तों आदि को भी दिलायें। मनीआर्डर के लिए पताः मज़दूर बिगुल, द्वारा जनचेतना, डी-68, निरालानगर, लखनऊ-226020 बैंक खाते का विवरणः Mazdoor Bigul खाता संख्याः 0762002109003787, IFSC: PUNB0076200 पंजाब नेशनल बैंक, निशातगंज शाखा, लखनऊ सदस्यताः (वार्षिक) 70 रुपये (डाकखर्च सहित) (आजीवन) 2000 रुपये मज़दूर बिगुल के बारे में किसी भी सूचना के लिए आप हमसे इन माध्यमों से सम्पर्क कर सकते हैं: फोनः 0522-2786782, 8853093555, 9936650658, ईमेलःbigulakhbar@gmail.com फेसबुकः www.facebook.com/MazdoorBigul

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