Total Pageviews

THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

Twitter

Follow palashbiswaskl on Twitter

Monday, April 6, 2015

‘आणा-भ्वीणा ’पीछे छूटते समय की एक समळऔण वीरेन्द्र पंवार

पुस्तक समीक्षा

'आणा-भ्वीणा 'पीछे छूटते समय की एक समळऔण

                                                                             वीरेन्द्र पंवार

                                                                                     

आणा-भ्वीणा का शाब्दिक अर्थ है पहेलियाँ। सुधीर बर्त्वाल गढ़वाली भासा और साहित्य के लिए नया नाम हैलेकिन*आणा-भ्वीणा* नाम से गढ़वाली में पहेलियो को प्रकाशित कर उन्होंने सराहनीय कार्य किया है। मेरी दृस्टि में गढ़वाली में पहेलियों का ये पहला संकलन है ! इससे पूर्व कहावते और मुहावरों के संकलन प्रकाशित हुवे हैं। गढ़वाली भासा एवं साहित्य में इस महत्वपूर्ण अवदान के लिए सुधीर बर्त्वाल बधाई के पात्र हैं। असल में आणा-भ्वीणा पीछे छूटते समय की एक समळऔण हैं।

            लोकसमाज में आज विज्ञानंटेक्नॉलॉजीमोबाइल,इंटरनेट और संचार के तमाम संसाधनों की घुसपैठ के बाद भले ही इन् पहेलियों का अस्तित्व कहीं खो सा गया है,बावजूद इसके इनका महत्व है। गढ़वाल के जीवन में संघर्ष,विरह और करुणा व्याप्त रही है,युगों तक यहाँ का लोकजीवन प्रायःस्थिर रहा हैआज की भांति उसमे गतिशीलता कम रही है। पहेली पर्वतीय लोकसमाज के उसी युग का प्रतिनिधित्व करती है। इन्में गढ़वाल के लोकजीवन की झलक देखि जा सकती है। सुधीर बर्त्वाल ने ऐसी विधा का डॉक्यूमेंटेशन किया है,जो साहित्य का हिस्सा भले ही न रही हो, भले ही ये टाइम-पास का  साधन रही होंलेकिन पहेलियाँ लोकरंजन के साधन के रूप में लोकसमाज का महत्वपूर्ण हिस्सा रही हैं ।कालान्तर में पहेलियाँ लोकसमाज में काफी प्रचलित रही। इन् पहेलियों की उपस्थिति दर्शाती है परिस्थितयां कैसी भी रही हों,पर्वतीय लोकसमाज में ज्ञानार्जन करने की विधियों की आकांक्षा बलवती रही।

           पहेलियाँ लोकसमाज की अपनी परिकल्पना पर आधारित रचनाएँ हैंजिनमें  प्रश्न सीधे न पूछकर प्रतीकों को माध्यम बनाकर पूछे जाते हैं। इनका सृजन प्रायः मनोविनोद के लिए किया गयाइन् पहेलियों में तर्क और विज्ञानं के बजाय इनको लोकरंजन के एक उपकरण के रूप में अधिक देखा जाता है,इनका उपयोग बुद्धि चातुर्य की परख के रूप में किया जाता रहा है। लेखक ने एक जगह लिखा भी है की कभी कभी पहेलियों के प्रतीक सटीक नहीं बैठते,कभी कभी मजाक में ही सही वाद-विवाद की नौबत आ जाती है।

 ये पहेलियाँ मौखिक रूप में रहीपरन्तु युगों तक जिन्दा रहीं। सभ्यता के इस दौर में संस्कृति के ये पदचिन्ह पीछे छूटते नजर आ रहे हैं, अभी भी इन् पहेलियों को समग्रता के साथ उकेरा नहीं जा सका है। आज ये पहेलियाँ प्रायः लुप्ति के कगार पर हैं । आज के समय में संकलन का यह कार्य श्रमसाध्य ही नहीं कठिन भी हैक्योंकि पुरानी पीढ़ी की मदद के बगैर यह कार्य सम्भव नहीं है। और पुराने जानकार लोग अब कम रह गए हैं।जिनको पहेलियाँ कंठस्त याद हों। ऐसे समय में सुधीर ने इनको उकेरने सहेजने ,संजोने का कार्य किया है। समझा जा सकता है की एक युवा रचनाकार के लिए यह चुनौती भरा कार्य रहा होगा। 

लोक समाज में इन् पहेलियों का चलन और इनकी उपस्थिति एक सुखद अनुभूति देते हैं। संकलन में लगभग ४२९ पहेलियां संकलित हैं,१०० मुहावरे १०० कहावतें संकलित की गयी हैं।गढ़वाली के शब्द-युग्म एवं ब्यावहरिक बोधक शब्दों का संकलन कर लेखक ने इस कृति को दिलचस्प बना दिया है।पहेलियों के रूप में लोकभासा प्रेमियों के लिए आणा-भ्वीणा एक अच्छी सौगात है। संकलन में तल्ला नागपूरया भासा अपनी रवानगी पर है।संस्कृति प्रकाशन अगस्तमुनि की साफ़ सुथरी छपाई ने इस संकलन को ख़ूबसूरत आकार दिया है।पुस्तक की कीमत १०० रुपए है। लेखक सुधीर बर्त्वाल  का  फोन नंबर ९४१२११६३७६।

No comments:

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...

PalahBiswas On Unique Identity No1.mpg

Tweeter

Blog Archive

Welcome Friends

Election 2008

MoneyControl Watch List

Google Finance Market Summary

Einstein Quote of the Day

Phone Arena

Computor

News Reel

Cricket

CNN

Google News

Al Jazeera

BBC

France 24

Market News

NASA

National Geographic

Wild Life

NBC

Sky TV