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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Sunday, June 28, 2015

इन महान धर्म वालों के देशों में महिलाओं को जितना पुरुषों पर निर्भर रहना पड़ता है,पुरी जिंदगी एक खूंटे से बंधे पशु के समान वो भी किसी विकाशशील देश में ढूंढे से न मिलेगा.....


हिन्दुओं और मुस्लिमों के देशों में जब लड़कियां पैदा होती है तो उसे शुरुवात से ही पता होता है उसके अधिकार उसकी दुनिया कितनी सीमित है ....उसे क्या-क्या करना और झेलना है अपनी जिंदगी में. .इन महान धर्म वालों के देशों में महिलाओं को जितना पुरुषों पर निर्भर रहना पड़ता है,पुरी जिंदगी एक खूंटे से बंधे पशु के समान वो भी किसी विकाशशील देश में ढूंढे से न मिलेगा..... शिक्षा,जाँब और आगे बढ़ने से रोकना,घर की औरतों को,मारना पीटना ये सब तो गलत है ही नही..डेली रूटीन है....घर-घर की कहानी है यहाँ। लड़कियां भी अब उसी में खुश रहने,मुसकुराने लगी है..देश में पैदा होने की नियति मानकर.. जैसे खुदको पिंजरे में बंद होकर भी हिरनी समझने और कुलांचे मारने में गौरवतींत होना हो.. उसे पिंजरे के बाहर कदम रखने की सख्त मनाही है..अंदर ही खुश हो लो..,गा-बजा लो चाहे जितना.. .अब तो हालात इतने बुरे हैं कि,वो स्वयं पिंजरे की मांग करने लगती हैं...गाँवों की नही शहरी लड़कियां भी..भले वो शिक्षित हों..ग्रेजुएट हो.. आये दिन रेप,गैंगरेप, फांसी लटका के मारना ,तेजाब फैंकना,जला के मारना,आनर किलिंग और भी तमाम तरीके हैं..जो इनके देशों को छोड़कर और कहीं नही होते.. ..एकदम कॉपीराइट है इनका तमाम जाहिलीपन में....और ये रीती-रिवाज की तरह हंसी-ख़ुशी से चलते रहते हैं. देवी और कदमों के निचे जन्नत कहने वालों में और जानवरों में मामूली फर्क है बस.. और सबसे बुरा निराशाजनक तो ये है कि, जिनसे आस होनी चाहिए सुधार करने की वो पीढ़ी तो अब रेडीमेड जाहिल ही पैदा होने लगी है.... पैदा होने के साथोसाथ पुराने घटिया तौर-तरीके, जीवन-पद्धति को अपने-आप आत्मसात करने लगी है धर्म-ईश्वर और बढ़ों की खींची लकीर मानकर.. धर्म,संस्कृति-संसकार ढोते-ढोते दिमागी रुप से सड़कर एकदम बेकार हो चूंके हैं सबके सब.. शायद अब ये नही समझने,सुधरने वाले..और ये कौमे जिस तरह से झंडा उठाये और भी तमाम आपसी मारकाट में लगी हैं अपने-अपने देशों में... इनका,इनके ईश्वर,धर्म का यहाँ तक कि,इनकी पूरी नश्ल का भी खत्म होने का खतरा है..इसी सदी में नहीं आनेवाली सदियों में...खत्म ही होजाये तो अच्छा.. तब वापस आएंगे वही अंग्रेज फिर से रिचर्स करने...इन जाहिलों की सभ्यता के खात्मे का..वैसे उन्हें पहले से पता है.ये कहाँ तक जानेवाले हैं..सबकुछ कंट्रोल में है उनके..जब चाहे वो कुछ भी कर भी सकते हैं इन जाहिलों के साथ...अगर चाहें तो... आधी आबादी को गुलाम बनाकर रखते हुए..देश,धर्म,भगवान-खुदाओं को और अपने सारे कुकर्मों-कार्यों को श्रेष्ट साबित करने की दलील खूब देते हैं...लेकिन... सभ्य शब्दों में दीजियेगा भाई लोगन... बहुत सी महिलायें भी पढ़ने वाली हैं...

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