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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Tuesday, September 1, 2015

नर्मदा बचाओ आंदोलन : एक जीवंत संघर्ष

नर्मदा बचाओ आंदोलन : एक जीवंत संघर्ष

Posted by संघर्ष संवाद on मंगलवार, सितंबर 01, 2015 - See more at: 
नर्मदा बचाओ आंदोलन द्वारा मध्य प्रदेश के बड़़वानी केे नजदीक नर्मदा किनारे स्थित  राजघाट गांव में 11 अगस्त से जारी 'जीवन अधिकार सत्याग्रह' को दो हफ्ते से भी अधिक हो गए हैं। इस बीच डूब प्रभावित 244 गांव एवं धरमपुरी नगर के हजारों नागरिकों का सत्याग्रह स्थल पर आने का सिलसिला लगातार जारी है। प्रतिदिन प्रभावित 4-5 गांव के नागरिक सत्याग्रह स्थल पर अपनी आमद दर्ज करा कर अपनी भूमि का दावा पत्र तैयार कर रहे हैं। सभी का एक स्वर में प्रण है कि वह किसी भी सूरत में अपना घर, खेत व गांव नहीं छोड़ेगें। पेश है सप्रेस से साभार रिपोर्ट;

 सत्याग्रह में जांगरवा, घनोरा, छोटा बडदा (बड़वानी) गांगली, चिखल्दा, आवली, सेगावा, निसरपुर, अकोला, अवल्दा, खरिया बादल, कत्मेरा, मनावर, दतवाड़ा, मोहीपुरा, गांगली, सेमल्दा आदि गांवों के निवासी पिछले एक सप्ताह में सत्याग्रह स्थल पर पहुँचे थे। इसके अलावा 24 व 25 अगस्त को हुए सम्मेलनों एवं मछुआरा सम्मेलन में सैकड़ों गांवों के तमाम निवासी भी सत्याग्रह में शिरकत करने पहुंचे। 

इस बीच नर्मदा घाटी में ही खरगोन जिले में बन रहे अपरवेदा बांध में अवैध रूप से 14 गांवों को डुबाने का विरोध करने पर नबआ की वरिष्ठ कार्यकर्ता चित्तरूपा पालित (सिल्वीबहन) को गिरफ्तार किए जाने के खिलाफ भी निंदा प्रस्ताव पारित किया गया। ओडिशा के वरिष्ठ पर्यावरणविद् एवं सामाजिक कार्यकर्ता प्रफुल्ल सामंतरा ने कहा नर्मदा बचाओ आंदोलन ने विकास की अवधारणा पर जो प्रश्न 30 वर्ष पहले उठाए थे वह आज देश के राजनीतिक एजेंडे पर आ चुके हैं। भूमि अधिग्रहण से हो रहा अन्याय, किसानों और आदिवासियों की लूट के खिलाफ अब देशवासी लामबंद होने लगे हैं। मोदी सरकार की तानाशाही का सबूत है सरदार सरोवर बांध की ऊँचाई को 17 मीटर बढ़ाना। इस बीच कुक्षी व धार के विधायकों ने भी जीवन अधिकार सत्याग्रह का समर्थन कर शासन को चेतावनी दी है।

सत्याग्रह के दौरान ''मछली अधिकार सम्मेलन'' का आयोजन भी किया गया। इसमें महाराष्ट्र व मध्यप्रदेश के मछुआरों ने बड़ी संख्या में भाग लिया। बरगी बांध में 54 मछुआरा सहकारिता समितियों के महासंघ के अध्यक्ष रहे मुन्ना बर्मन इसमें विशेष अतिथि थे। सम्मेलन में म.प्र. में जलाशयों को ठेके पर दिये जाने का विरोध किया। सुश्री मेधा पाटकर का  कहना था कि नर्मदा नदी के दोनों किनारों पर बसे मछुआरों के पुर्नवास के बिना विस्थापन गैरकानूनी है। उनका कहना था कि जिस 40000 हेक्टेयर सरदार सरोवर जलाशय पर मछुआरों का अधिकार है उन्हें महज 40 हजार रु. का नगद अनुदान देकर बेदखल किया जा रहा है। चर्चा में मीरा और कैलाश अवास्या ने भी भागीदारी की। 

24 अगस्त को सत्याग्रह स्थल पर भूमि आवास आजीविका महासम्मेलन का आयोजन किया गया। इसमें देशभर से जनआंदोलनों के कार्यकर्ताओं ने शिरकत की। सभी का मानना था कि सरदार सरोवर राजनीतिक षड़यंत्र एवं कारपोरेट लूट का एक प्रतीक है। जनआंदोलनों के प्रतिनिधियों के साथ ही साथ राजनैतिक कार्यकर्ताओं, सामाजिक संस्थाओं के प्रतिनिधियों, बुद्धिजीवियों, कलाकारों व सामाजिक कार्यकर्ताओं ने हजारों प्रभावितों के साथ संकल्प लिया कि 30 वर्षाें से चल रहे नर्मदा के संघर्ष को वह और भी तीव्र करेंगे ताकि घाटी के लोगों को न्याय मिल सके। सबका कहना था कि यह सत्याग्रह अनिश्चितकाल तक चलेगा, जब तक कि न्याय नहीं हो जाता।

सम्मेलन में स्वराज अभियान के राष्ट्रीय संयोजक योगेंद्र यादव ने कहा कि गैरकानूनी सरदार सरोवर और उसकी अमानवीयता अब न्यायालय में, सरकार के सामने व जमीन पर भी जाहिर हो चुकी है, अब सरकार को गेट लगाने से रोकना ही होगा। उनका कहना था कि यह विकास नहीं राजनीतिक घमंड है। गुजरात व महाराष्ट्र के विस्थापितों ने अपनी दुर्दशा व व्यथा को सबके साथ साझा किया। वरिष्ठ गांधीवादी अनिल त्रिवेदी का कहना था कि ''नर्मदा बचाओ आंदोलन अपने आप में एक जीता जागता विश्वविद्यालय है व गांधी और अम्बेड़कर के विचारों का दुबारा आविष्कार है।''

किसान संघर्ष समिति की अधिवक्ता आराधना भार्गव ने सरकारों की किसान विरोधी नीतियों का खुलासा किया। उन्होंने कहा कारपोरेट व कलेक्टर के बिना देश चल सकता है पर किसान व फसल के बिना नहीं। बिहार से आए महेंद्र यादव व कामायनी स्वामी एवं केरल से पधारे सी. के जानू ने भी नरेंद्र मोदी सरकार की नीतियों की आलोचना की। सामाजिक कार्यकर्ता एवं सोशलिस्ट पार्टी के नेता संदीप पांडे जो कि अपरवेदा बांध प्रभावितों के संघर्ष को समर्थन देकर लौटे थे, का कहना था कि अस्वस्थ राजनीति के खिलाफ संयुक्त संघर्ष छेड़ना होगा। उन्हांेेने बांध को गैरकानूनी घोषित करने एवं परियोजना पर पुनर्विचार की मांग की। प्रभवित क्षेत्र के आदिवासियों की ओर से तीनों राज्यों म.प्र. महाराष्ट्र एवं गुजरात से आए गोखरु, नूरजी व जीकूभाई ने भी संबोधित किया था। नबआ की ओर से सुश्री मेधा पाटकर ने सरकार द्वारा बड़े बांधो पर पुनर्विचार न करने पर सवाल उठाया। उन्होंने विगत 60 सालों में बांधों से हुए नुकसान का लेखा जोखा भी प्रस्तुत किया। उनका कहना था कि 90 हजार करोड़ के निवेश के बावजूद सरदार सरोवर बांध से विस्थापित होने वाले 2.5 लाख लोगांें का पुनर्वास नहीं हुआ। 

सम्मेलन के दूसरे दिन 15 राज्यों  से आए नागरिकों एवं जनसंगठनों ने पिछले दो हफ्ते की सरकार की चुप्पी पर भी सवाल उठाया। जनसंगठनों के राष्ट्रीय समन्वय ने तय किया कि आने वाले दिनों मे प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, मानवाधिकार आयोग आदि को पत्र लिखेंगे। साथ ही प्रभावित गांवों द्वारा पोस्टकार्ड अभियान चलाया जाएगा। हरसूद दिवस (28 सितंबर) को नर्मदा घाटी में एक संयुक्त सम्मेलन का आयोजन भी किया जाए। तमिलनाडु से आई ग्रेब्रियल ने नर्मदा बचाओ आंदोलन को देशभर के आंदोलन का प्रेरणा स्त्रोत बताया। इस मौके पर जनआंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय ने बताया कि भू-अर्जन एवं विकास की झूठी अवधारणा के खिलाफ नवंबर माह में एक देशव्यापी ''भू-अधिकार जन विकास यात्रा'' निकाली जाएगी। इस अवसर पर रामकृष्ण राज, कैलाश मीणा, अमिताभ मित्रा, संजीव कुमार, शबनम, जो अथियाली, कुसुम जोसफ, डा. सुनीलम, सुनीती सु.र., सुभाष लोमाते, मारूती भापकर, सतीश लोमते, प्रसाद बागवे, सुहास कोल्हेकर, परवीन जहांगीर, साधना दाधीच, पूनम कनौजिया, उमेश तिवारी, डा. रूपेश वर्मा, मानव काम्बले आदि भी मौजूद थे।


अपरवेदा बांध में गैरकानूनी तौर पर पानी भरा

इन्दौर (सप्रेस)। नर्मदा बचाओ आंदोलन के वरिष्ठ कार्यकर्ता आलोक अग्रवाल ने विज्ञप्ति में बताया कि मध्यप्रदेश के खरगोन जिले में बन रहे अपरवेदा बांध पुनर्वास संबंधी अधिकारों से वंचित किए जाने के विरोध स्वरूप प्रभावित जनसमुदाय डूब क्षेत्र के उदयपुर गांव में अनिश्चितकालीन जल सत्याग्रह पर बैठ गया है। प्रभावित लोग विगत 7 दिनांे से पानी में ही है और उनके अंगों को जबरदस्त नुकसान पहुंच रहा है। इस बीच वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता एवं मेग्सेसे पुरस्कार विजेता संदीप पांडे ने जल सत्याग्रह स्थल पर पहुंच कर संघर्षशील आदिवासी महिला और पुरुषों को अपना समर्थन दिया। श्री पाण्डे ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि देश के विकास के लिए अपना सबकुछ कुर्बान करने वाले आदिवासियों को बिना पुनर्वास डुबोया जाना सरकार की असंवेदनशीलता और उसके दमनकारी चरित्र को ही उजागर करता है। इस बीच छः दिन तक गिरफ्तार रहने के बाद न.ब.आ. की प्रमुख कार्यकर्ता चित्तरूपा पालित को अंततः न्यायालय द्वारा जमानत पर रिहा कर दिया गया। गौरतलब है कि नवीनतम मामले में जमानत मिलने के बावजूद सरकार ने पुराने मामले खोलकर उन्हें जेल में डाल रखा था। आज ही एक अन्य कार्यकर्ता अजय गोस्वामी को भी निजी मुचलके पर रिहा कर दिया गया। अभी तक शिकायत निवारण प्राधिकरण (जी आर ए) की सुनवाई ही पूरी नहीं है और शासन ने बांध को अवैध रूप से भरना भी प्रारंभ कर दिया है। जबकि सर्वोच्च न्यायालय के 13 मई 2009 के निर्णय में स्पष्ट उल्लेख है कि शिकायत निवारण प्राधिकरण की प्रक्रिया पूरी होने के बाद एवं जब तक विस्थापितों को पुनर्वास हक प्राप्त नहीं होते तब तक बांध में पानी नहीं भरा जा सकता।  - See more at: http://www.sangharshsamvad.org/2015/09/blog-post.html#sthash.ZhXFIiPI.dpuf
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