Total Pageviews

THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

Twitter

Follow palashbiswaskl on Twitter

Friday, October 16, 2015

राम पुनियानी का लेख ब्राह्मणवाद और श्रमणवाद

राम पुनियानी का लेख

ब्राह्मणवाद और श्रमणवाद


'हिंदू' शब्द, आठवीं सदी ईस्वी में अस्तित्व में आया। मूलतः, यह एक भौगोलिक अवधारणा थी। इस शब्द को गढ़ा अरब देशों व ईरान के निवासियों ने, जो तत्समय भारतीय उपमहाद्वीप में आए। उन्होंने सिंधु नदी को विभाजक रेखा मानकर, उसके पूर्व में स्थित भूभाग को सिंधु कहना शुरू कर दिया। वे सिंधु का उच्चारण हिंदू करते थे और इसलिए, सिंधु नदी के पूर्व में रहने वाले सभी निवासियों को वे हिंदू कहने लगे। उस समय, इस 'हिंदू' देश में कई धार्मिक परंपराएं थीं। आर्य-जो कई किस्तों में यहां आए-पहले घुमंतु और बाद में पशुपालक समाज बन गए। वे कभी भी राष्ट्र-राज्य नहीं थे, जैसा कि अब कहा जा रहा है। वेद और स्मृतियां, पशुपालक आर्य समाज के जीवन और उनकी विश्वदृष्टि का वर्णन करते हैं।

उस समय के सामाजिक तानेबाने का वर्णन मनुस्मृति में किया गया है। पहले पदक्रम आधारित वर्ण व्यवस्था और बाद में जाति व्यवस्था, इस सामाजिक तानेबाने का मूल आधार थीं। ब्राह्मणों के वर्चस्व पर इस समाज में कोई प्रश्न नहीं उठाया जा सकता था और सामाजिक असमानता, इसका अभिन्न हिस्सा थी। दमित जातियों (दलितों) को अछूत माना जाता था और उनका एकमात्र कर्तव्य ऊँची जातियों की सेवा करना था। दूसरे वर्णों के अधिकार और सामाजिक स्थिति भी सुपरिभाषित थी। ऊँची जातियों के केवल अधिकार थे और दमित जातियों के केवल कर्तव्य। यह स्पष्ट 'श्रम विभाजन' था!

इस पृष्ठभूमि में, बौद्ध धर्म का उदय हुआ जो अपने साथ समानता का संदेश लाया। समाज का बड़ा हिस्सा समानता के मूल्य से प्रभावित हुआ और उसने बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया। आंबेडकर का मानना है कि बौद्ध धर्म का उदय, एक क्रांति थी। इसने सामाजिक समीकरणों को बदल दिया और जातिगत ऊँच-नीच को चुनौती दी। उस समय ब्राह्मणवाद के समानांतर अन्य धार्मिक परंपराएं भी अस्तित्व में थीं। बौद्ध धर्म द्वारा जाति व्यवस्था पर प्रश्नचिन्ह लगाने के कारण, ब्राह्मणवादियों को अपनी रणनीति में परिवर्तन करना पड़ा। ब्राह्मणवाद ने आमजनों को बौद्ध धर्म के आकर्षण से मुक्त करने और अपने झंडे तले लाने के लिए कई धार्मिक अनुष्ठानों, सार्वजनिक समारोहों और उपासना पद्धतियों का आविष्कार किया। इसके बाद से इस धर्म को हिंदू धर्म कहा जाने लगा। जैसे-जैसे बौद्ध धर्म का प्रभाव बढ़ा, ब्राह्मण भूपतियों का नीची जातियों पर नियंत्रण कमज़ोर होता गया। शंकराचार्य के नेतृत्व में बौद्ध धर्म को वैचारिक चुनौती देने के लिए एक बड़ा आंदोलन शुरू हुआ। आंबेडकर इस आंदोलन को प्रतिक्रांति बताते हैं। बौद्ध धर्म पर इस हमले को पुश्यमित्र शुंग और शशांक जैसे तत्कालीन शासकों का पूर्ण समर्थन प्राप्त था। इस आंदोलन के फलस्वरूप, बौद्ध धर्म, धरती के इस भूभाग से लुप्तप्राय हो गया और प्रकृति पूजा से लेकर अनीश्वरवाद तक की सारी धार्मिक परपंराएं, हिंदू धर्म के झंडे तले आ गईं। यह एक ऐसा धर्म था, जिसका न कोई पैगंबर था और ना ही कोई एक ग्रंथ। ब्राह्मणवाद ने जल्दी ही हिंदू धर्म पर वर्चस्व स्थापित कर लिया और अन्य धार्मिक परंपराओं को समाज के हाशिए पर खिसका दिया। यह वह समय था जब हिंदू को एक धर्म के रूप में अपनी विशिष्ट पहचान मिली। हिंदू धर्म में दो मुख्य धाराएं थीं-ब्राह्मणवाद व श्रमणवाद। इन दोनों धाराओं के विश्वास, मूल्य और आचरण के सिद्धांत, परस्पर विरोधी थे।

ब्राह्मणवाद ने, जो जातिगत और लैंगिक पदक्रम पर आधारित था, अन्य सभी परंपराओं का, जिन्हें संयुक्त रूप से श्रमणवाद कहा जा सकता है, दमन करना शुरू कर दिया। इन परंपराओं, जिनमें नाथ, तंत्र, सिद्ध, शैव, सिद्धांत व भक्ति शामिल थे, के मूल्य ब्राह्मणवाद की तुलना में कहीं अधिक समावेशी थे। श्रमणवाद में आस्था रखने वाले अधिकांश लोग समाज के गरीब वर्ग के थे और उनकी सोच व परंपराएं, ब्राह्मणवादी सिद्धांतों, विशेषकर जातिगत ऊँच-नीच, की विरोधी थीं। बौद्ध और जैन धर्म में भी जातिगत पदानुक्रम नहीं हैं व इस अर्थ में वे भी श्रमणवादी परंपराएं हैं। परंतु जैन और बौद्ध धर्म, हिंदू धर्म का भाग नहीं हैं क्योंकि इन दोनों धर्मों के अपने पैगंबर हैं और उनमें व हिंदू धर्म में सुस्पष्ट विभिन्नताएं हैं।

इतिहासविद रोमिला थापर ("सिंडीकेडेट मोक्ष", सेमीनार, सितंबर 1985) लिखती हैं "ऐसा कहा जाता है कि आज के हिंदू धर्म की जड़ें वेदों में हैं। परंतु वैदिक काल के घुमंतु कबीलों का चाहे जो धर्म रहा हो, वह  आज का हिंदू धर्म नहीं था। इसका (आज का हिंदू धर्म) का उदय मगध-मौर्य काल में प्रारंभ हुआ...।"

उन्नीसवीं सदी के बाद से, ब्राह्मणवाद के वर्चस्व में और वृद्धि हुई। चूंकि ब्रिटिश उपनिवेशवादियों के लिए विभिन्न स्थानीय परंपराओं और हिंदू धर्म के विविधवर्णी चरित्र को समझना मुश्किल था, इसलिए उन्होंने ब्राह्मणों का पथप्रदर्शन स्वीकार कर लिया और ब्राह्मणवाद को ही हिंदू धर्म मान लिया। धार्मिक मामलों में ब्रिटिश शासकों के सलाहकार वे ब्राह्मण थे, जो अंग्रेज़ों की नौकरी बजाते थे। ये ब्राह्मण अपने गोरे आकाओं को यह समझाने में सफल रहे कि भारत के बहुसंख्यक निवासियों के धार्मिक विश्वासों को समझने की कुंजी, ब्राह्मणवादी ग्रंथों में है। नतीजे में भारतीय उपमहाद्वीप के धर्म को समझने के लिए ब्रिटिश केवल ब्राह्मणवादी ग्रंथों का इस्तेमाल करने लगे। इससे हिंदू धर्म पर ब्राह्मणवाद का चंगुल और मज़बूत हो गया और परस्पर विरोधाभासी मूल्यों वाली विविधवर्णी परंपराओं पर हिंदू धर्म का लेबल चस्पा कर दिया गया। और इस हिंदू धर्म में ब्राह्मणवाद का बोलबाला था। यही कारण है कि आंबेडकर ने हिंदू धर्म को ब्राह्मणवादी धर्मशास्त्र बताया।

ब्रिटिश शासन में उद्योगपतियों व आधुनिक, शिक्षित वर्ग के नए सामाजिक समूहों के उभार ने ज़मींदारों और पूर्व राजा महाराजाओं-जो ब्राह्मणों के हमराही थे-में असुरक्षा का भाव उत्पन्न किया। जैसे-जैसे यह लगने लगा कि देश में देरसबेर समानता पर आधारित प्रजातांत्रिक शासन व्यवस्था लागू होगी, ये वर्ग और सशंकित व भयभीत होने लगे। राष्ट्रीय आंदोलन का उदय हुआ और साथ ही दलितबहुजन आंदोलन का भी। जोतिराव फुले और बाद में आंबेडकर ने इन मुक्तिदायिनी विचारधाराओं को मज़बूती दी। दलित बहुजनों में जागृति, ब्राह्मणवाद के लिए एक गंभीर चुनौती बनकर उभरने लगी। बुद्ध की शिक्षाएं, पूर्व शासकों, ब्राह्मणों और तत्कालीन सामाजिक व्यवस्था के लिए खतरा बन गईं। दलितबहुजन विचारधारा को आधुनिक शिक्षा और औद्योगीकरण से और बल मिला।

इस चुनौती से मुकाबला करने के लिए ज़मीदार-ब्राह्मण गठबंधन ने हिंदुत्व को अपना हथियार बनाया। उन्होंने पहले यह कहना शुरू किया कि दलितबहुजनों को शिक्षा प्रदान करना, 'हमारे धर्म' के विरूद्ध है। आगे चलकर उन्होंने अपने सामाजिक-राजनैतिक हितों की रक्षा के लिए धर्म-आधारित राजनैतिक संगठनों का गठन किया। हिंदुत्व, दरअसल, नए कलेवर में हिंदू राष्ट्रवाद और ब्राह्मणवाद का राजनैतिक संस्करण है। ब्राह्मणवादी पहले हिंदू धर्म के नाम पर दलितबहुजनों का दमन करते थे। अब वे यही काम हिंदुत्व के नाम पर कर रहे हैं। सभी गैर-मुस्लिम व गैर-ईसाई परंपराओं जैसे बौद्ध धर्म, जैन धर्म व सिक्ख धर्म को हिंदुत्व में आत्मसात कर लिया गया है। यह हिंदू धर्म का राजनीतिकरण है और इसका धर्म से कोई लेनादेना नहीं है।

बुद्ध से लेकर मध्यकालीन भक्ति परंपरा और वहां से लेकर फुले और आंबेडकर के नेतृत्व में चले आंदोलनों तक, दलितबहुजन, वर्ण और जाति व्यवस्था का विरोध करते आए हैं। आज भाजपा-आरएसएस के सत्ता में आने से हिंदुत्ववादी और खुलकर दमित जातियों के हित में उठाए जाने वाले कदमों का विरोध कर रहे हैं।

दलितबहुजन विचारधारा का विकास तीन प्रमुख चरणों में हुआ और इसके तीन प्रमुख विरोधी थे। बौद्ध धर्म का विरोध शंकराचार्य और तत्कालीन शासकों ने किया; मध्यकालीन संतों का विरोध ब्राह्मण पुरोहित वर्ग ने ब्रिटिश शासकों के सहयोग से किया; और फुले, आंबेडकर की विचारधारा का विरोध, राजनैतिक ब्राह्मणवाद या हिंदुत्व कर रहा है।

दमित जातियों (दलितबहुजन) की गैर-ब्राह्मणवादी परंपराएं, विद्रोह और प्रतिरोध की परंपराएं हैं, जिनकी भाषा, संदर्भ के साथ बदलती रही हैं। आज उनका मुकाबला उस विचारधारा से है, जो उन्हें हिंदुत्व के नाम पर कुचलना चाहती है। वह अलग-अलग तरीकों से दलितबहुजनों के हितों पर चोट करने का प्रयास कर रही है।

-- उनका मिशन: The Economics of Making in!
उनका मिशन:The institution of the religious partition and the Politics of religion


उनका मिशन: the strategy and strategic marketing of blind nationalism based in religious identity!
মন্ত্রহীণ,ব্রাত্য,জাতিহারা রবীন্দ্র,রবীন্দ্র সঙ্গীত!
We have to go back to roots as all the holy men and women in the past spoke love,which is the central theme of Tagore literature which is essentially the original dalit literature in India!
अरब का वसंत भारत में गोरक्षा आंदोलन बन गया है,फिर बंटवारे का सबब!
कब तक हम अंध राष्ट्रवाद, अस्मिता अंधकार और जाति युद्ध में अपना ही वध देखने को अभिशप्त हैं?

# BEEF GATEThanks Kejri!Hope not a Gimmick again!Kejriwal sacks minister on live TV for corruption

# BEEF GATE!Thanks Kejri!Hope not a Gimmick again!

अछूत रवींद्रनाथ का दलित विमर्श
Out caste Tagore Poetry is all about Universal Brotherhood which makes India the greatest ever Ocean which merges so many streams of Humanity!
आप हमारा गला भले काट दो,सर कलम कर दो लब आजाद रहेंगे! क्योंकि हिटलर के राजकाज में भी जर्मनी के संस्कृतिकर्मी भी प्रतिरोध के मोर्चे पर लामबंद सर कटवाने को तैयार थे।जो भी सर कटवाने को हमारे कारवां में शामिल होने को तैयार हैं,अपने मोर्चे पर उनका स्वागत है।स्वागत है।

https://youtu.be/OxH3xyFacco


Why do I quote Nabarun Bhattacharya so often?

এই মৃত্যু উপত্যকা আমার দেশ নয়!

এই মৃত্যু উপত্যকা আমার দেশ নয়!Nabarun Da declared it in seventies!

Pl see my blogs;


Feel free -- and I request you -- to forward this newsletter to your lists and friends!

No comments:

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...

PalahBiswas On Unique Identity No1.mpg

Tweeter

Blog Archive

Welcome Friends

Election 2008

MoneyControl Watch List

Google Finance Market Summary

Einstein Quote of the Day

Phone Arena

Computor

News Reel

Cricket

CNN

Google News

Al Jazeera

BBC

France 24

Market News

NASA

National Geographic

Wild Life

NBC

Sky TV