Total Pageviews

THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

Twitter

Follow palashbiswaskl on Twitter

Thursday, November 26, 2015

लगे रहो,बाबासाहेब बेदखल और अब संविधान दिवस भी बेदखल। गैंडे की खाल मुबारक,बहुजनों! कातिल जब मुहब्बत करें जियादा जियादा तो समझो कि कत्लआम होकर रहेगा! पलाश विश्वास


लगे रहो,बाबासाहेब बेदखल और अब संविधान दिवस भी बेदखल। गैंडे की खाल मुबारक,बहुजनों!


कातिल जब मुहब्बत करें जियादा जियादा तो समझो कि कत्लआम होकर रहेगा!

पलाश विश्वास

अब बहुजन समाज को आराम है कि महाराष्ट्र सरकार के बाद भारत सरकार भी संविधान दिवस मनाने लगी है।लाखों अंबेडकरवादी संगठनों को अब शायद यह तकलीफ उठाने की जरुरत नहीं है।


कल्कि अवतार से संविधान कौन बेहतर कौण जाणे हैं।  


कोलकाता में दीदी का जलवा रहा और वे घमासान बोली संविधान पर।असहिष्णुता के खिलाफ भी वे धुआंधार बोली हैं।

उनकी सहिष्णुता हालांकि बंगाल में कानून व्यवस्था बहार।



बीफ बैन से लेकर खान पान के हकहकूक और बोलने लिखने की आजादी से लेकर आमिर खान के प्रसंग में भी।प्रतिक्रया पर जरुर गौर करते रहे।दीदी ने सीबीआई के बेजां इस्तेमाल के खिलाफ लाखों मुसलमानों के जलसे में गुर्रायी भी खूब है।


अब देखना है कि दीदी के खिलाफ फतवा जारी होता है पाकिस्तान चले जाने का या सीबीआई ठंडे बस्ते में से फिर निकालकर शारदा का जिन्न खड़ा करती है।


जो भी होगा सियासती तौर पर मजेदार होगा।


भीतर ही भीतर पक क्या रहा है और खुशबू असल है या नकली कहना मुश्किल है।वाम जरुर हाशिये पर दोबारा।


कुलो समीकरण यह है बंगाल का कि मुसलामान दीदी के साथ हैं और बहुजन कमसकम वामदलों के हक में नहीं हैं।


ऐसे में केसरियाकरण जारी रहा और पिछले लोकसभा चुनावों की तरह औचक संघी वोटबैंक गुब्बारा बन जाये तो कांग्रेस और वाम दलों का सफाया तय है।मातम अभी मना लें।


बाकी नौटंकी में लैला मजनूं का खेल हो या शीरीं फरहाद हो,कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि इस समीकरण में लाल नीला दोनों अब्दुल्ला दीवाना है और बहुत जल्द बंगाल के चुनाव में हिसाब बराबर हो जाना है।


उधर नई दिल्ली में धर्मनिरपेक्षता को फर्जी बताकर फासिज्म के राजकाज ने संविधान दिवस मनाया है।


सरकारी महकमों में न संसाधनों की कमी है और न लाव लश्कर की,संविधान दिवस की ऐसी धूम अभूतपूर्व है और लोगों को पता भी नहीं है कि किस संविधान का यह जश्न है।


संवैधानिक प्रावधानों को खत्म करके संपूर्ण निजीकरण संपूर्ण विनिवेश,संपूर्ण एफडीआई के साथोसाथ जनसंख्या घटाने के एजंडे में संविधान दिवस का मतलबे क्या है।


कल ही अमलेंदु ने हस्तक्षेप पर शमशुल हक का अंग्रेजी आलेक टांग दियाःTHE CONSTITUTION OF INDIA DAY: REMAIN VIGILANT AGAINST HINDUTVA WHICH ALWAYS DENIGRATED IT!


न पढ़ा हो तो इसे जरुर पढ़ लें।

हम तो संवैधानिक प्रवधानों,नागरिक और मानवाधिकार के हाल हकीकत के बारे में बतियाते रहे हैं।


नेता मंत्री अफसर लेखक कलाकार आइकनवा,डागदर कोई बामहण हो,गुरुजी कोई बामहण हो,पुरोहित सगरे बामहण हो तो जो ससुरे भागे नहीं,वे हस्तक्षेप से परहेज करे और फिन हालात बदलने की क्रांति को अंजाम भी दें,वाह!


जो मसीहा संप्रदाय हैं,उनके जलवे बहुत हैं और अंबेडकरी आंदोलन के वे ही झंडेवरदार।


हर बारात में वे ही दूल्हा हैंऔर किसी को मालूम होता नहीं है कि दूल्हाक्या क्या दहेज आगे पीछे वसूल रहे हैं।


बारातियों को खाना पीना बराबर चाहिए और मौज मस्ती भी कुछ हो तो मजे ही मजे।


अंबेडकर की यह दुर्गति खत्म हुई समझो।भौत ही जियादा मुहब्बत जताया जा रहा है अंबेडकर से और बहुजनों के सफाये का चाक चौबंद इंतजाम है।


गांव देहात में अब वैदिकी रीत रिवाज लोकरिवाज पर बारी है और पूजा चाहे गैरवैदिकी मिथकों की हो रही हो,कर्मकांड होम यज्ञ और बलि अनिवार्य है।


बलि का वह नजारा नगरों,उपनगरों और महानगरों में कम नहीं है।नरबलि कानूनन अवैध है,इसलिए नारियल को नरमुंड का प्रतीक बनाकर शुभमुहूर्त पर फोड़कर शिलान्यास शुभकर्म की परंपरा है और इस प्रसंग में सबसे जियादा महत्व बलिप्रदत्त का ही होता है।


बलि से पहले हर बकरे की खातिरदारी में कोई कसर रहे नहीं,बलिप्रदत्तकी देह में कोई खोट रहे नहीं,यह जजमान और पुरोहित का सरदर्द है।


पूरे देश में वैदिकी कर्मकांड जोर शोर से जारी है और बलि का बंदोबस्त भी खूब है।यह मृत्यु उपत्यका दरअसल अनंत बलिबेदी है और अपना अपना सर चढ़ावा देने को भेड़धंसान।


जल जंगल जमीन से बेदखल,आजीविका रोजगार से बेदखल,खान पान से बेदखल लोगों से कुछ जियादा ही जियादा मुहब्बत जतायी जा रही है जैसे उनकी फिक्र में अरबपति जातिधर्म की सियासत की साझे वातानुकूलित बिस्तर में लिव इन बिरादरी की नींदो हराम है।


तकनीक और विज्ञान का कमाल है कि कहीं भी ,किसी भी हाल में हम जैसे कुछ भी करने को आजाद हैं जैसा मनचाहे क्योंकि क्रियाकर्म के सारे रंगबिरंगे सुगंधित उपकरण हैं,उसीतरह लोकतंत्र के वातानुकूलित साझा शयनकक्ष की नूरा कुश्ती भी लाइव है।ताकाताकी झांझांकी खूबो है।जो सोवै,वे मजे में,जो अब्दुल्ला दीवाना ध्वजभंग,वे भी खूब शीत्कारे।नाइटक्लब ह।


हमउ समझ रियो ह कि वे आपसे में भिड़े हैं,जैसे किसी जवान दंपत्ति की मासूम संतान देर रात अचानक नींद से जागने के बाद जिस दृश्य के मुखातिब होते हैं,समझदार मां बाप उसे मजे मजे में व्यायाम,योगभ्यास कुछ भी कह देते हैं।


कुछ जियादा समझदार लोग राबड़ी वगैरह खिलाकर बच्चों को सुला देते हैं रात गहराने से पहले। खाते रहो राबड़ी।


भारतीय लोकतंत्र वही गहराई रात है और लोकतंत्र का गुलशन गुल बहार।बाकी आम नागरिक शिशु हैं कि उन्हें कुछ भी झुनझुना थमा दो तो वे कतई नहीं समझेंगे कि आखिर गरम लिहाफ के किस्से दरअसल क्या हैं और किसके लिहाफ में कौन हैं।यह झुनझुना बजाता है खूब,जैसे मंडल और मंडल।विकास और डिजिटल इंडिया का तिलिस्म।मुक्त बाजार तबाही का।


यही पहेली है कि कबहुं न जान सको कि कौन किससे मिला है और किसे आखिर किससे मुहब्बत है।कौन किसके साथ सोवै।


तलाक का सिलसिला सीरियल है कि समझो न सकत कि कौन किससे कब कहां शादी कर रिया  है  और कौन सी जोड़ी असल बा कौन सी नकल।कौन हो रहा बेदखल।कौन दखलदार।


आज बहुजन नेता कोई अंबेडकर मूर्ति के साये में खूब जोर पाद रिया था कि लोकतंत्र है और बाबासाहेब ने हर नागरिक के हवाले एटमो बम दे दिहिस कि बटन चांप दो तो तुरंते व्यवस्था बदली।एटमो बम कितनो ही बार छोड़ दियो लेकिन बिस्तर और लिहाफ के अंदर के किस्से वहींच।हमउ उल्लू बरोबर।


हमउ जब देश जोड़ने की गुहार लगा दिहिस,कोई नीली क्रांति के कामरेड ने सीधे पूछ लिया कि आप किस पार्टी  के हो और आप भी तो दीदी की तरह मुसलमानों के हक हकूक पर बोल रहे हो।जानते नहीं कि मुसलमान कितने खतरनाक हैं।


बहुत दिनों बाद भौत गुस्सा आया कि ये अंबेडकर केकैसे निराले भगत हैं अंधे कि संविधान भी पाद रहे हैं और मुसलमान को दुश्मन भी बता रहे हैं।बहुजन समाज।


राजकाज के स्तर पर संविधान दिवस का आशय यहींच।


लाल नीला मसलन हरेक रंग अब केसरिया है।


जियादा जियादा मुहब्बत का मतबल इन्हें का बताया जाये कि आतंक के खिलाफ जुध से लेकर फिर हुलस हुलसके कारसेवकों का आवाहन के मंदिर वहींच बनावेके खातिर नयका हिंदुत्व का एजंडा आखेरे अफगानिस्तान इराक सीरिया नजारा है।


हमारे गुरुजी ने सुबो सुबो धुांदार दीवाल लेखन कर दिया और उन्हींको समेटे बिना घर से निकरते निकरते देरी हुई रहे तो सोदेपुर से कोलकाता के दिल धर्मतल्ला और कोलकाता मैदान में मुसलमानों का लाखोंलाख हुजूम।


जो हम बतावत रहे तो दसों दिशाओं से सुनने वाले वे ही मुसलमान हजारों की तादाद में और वे ही मुसलमान लाखों लाख हिजाब पहनी बहनिया को सुनने वाले।


बहुजन समाज के लोग कहां होते हैं,कोई नहीं जानता।



सरकारी महकमों में जयंती वगैरह में भाखन पेलो परतियोगिता के बाद जो गिफ्टवा रियेलिटी शो के मुताबिक राजकोष से बांटी जाये,लाभान्वितों के अलावा मजमे में ठहरता कोई चेहरा नहीं होता।


ये ही मुसलमान और उनके नेता बगावत किये रहे।पिछले साल इसी मौके पर बहनिया के मैके में ही उनकी पुलिस और पुलिसिया अफसरान को धुने रहिस जबकि पुलिस दीदी के मातहत ही है। वे ही मुसलमान अब दीदी के पाले में हैं।


आज ही माकपा निस्कासित कामरेड रेज्जाक अली मोल्ला की पार्टी की रैली भी धर्मतल्ला में थी।जंगी एसयूसी की रैली थी और मदरसा शिक्षकों की रैली थी।दीदी के मुकाबले सब फेल।


अब बंगाल में कमसकम नीली क्रांति तो होने से रही।

यूपी में भी बहुजन वसंत बहार नइखे।

उहां भी सर्वजन हिताय।


जबकि लाखों संगठन रंगबिरंगे बहुजनों के और उनमें नेता के सिवाय कोई कार्यकर्ता होता नहीं है।कोई किसी से बोले भी नहीं।कौन किसके बिस्तर मा घुसलल कोई नाही जाने।


कार्यकर्ता मसीहा की मार्केंटिंग में होते हैं और वे होलटाइम खटकर रोजी रोटी पाते हैं मसीहा का हिस्सा ले देकर।


महाराष्ट्र में तो धड़ों में बंटाधार नीली क्रांति की।

राम जितने बहुजन समाज में पैदा हुए सारेके सारे हनुमान ह।


फिर भी सत्ता दखल करने का बीज मंत्र जापते हुए नत्थी हो रहे हैं सत्ता के साथ और वे ही लोग कारसेवकों की पैदल फौजें।


छह लाख गांवों के भारत में छह लाख जातियों को मजबूत करने,और जियादा से जियादा आरक्षण और कोटा लूटकर आखेर अपने ही कुनबे को मालामाल करने में निष्णात हैं बहुजन और सत्ता कैसे मिलेगी और समता और नियाय की फसल कैसे इस कटकटेला अंधियारे में तेज बत्तीवालों की रोशनी में काटेंगे,कवायद यही है।


सुबो से बाबासाहेब के फोट दे मार दे।

सुबो से संविधन का फोटो दे मार दे।


बाबासाहेब पहिले ही विष्णु का अवतार,गडसे की मंदिर के साथ उनके भी बन रहे हैं भव्य राममंदिर।


संविधान का तो रोजे रोज बेड़ा गर्क औररोजे रोज इसी संविधान के तहत जलुमोसितम बेइंतहा।


ना कानून का राज और न सुनवाई।


पादै मा भौते जोर जबरजंग लेकिन चीखने की औकात नहीं।

गुलामी की चाशनी भौते मीठी है और जूठन का जायका हमारी जन्नत है।बाकी पेर तंत्र मंत्र ताबीज और चक्रब्यूह।


लगे रहो,बाबासाहेब बेदखल और अब संविधान दिवस भी बेदखल।गैंडे की खाल मुबारक,बहुजनों!


We have latest agenda of Hinutva isseued by no one else but Praveen Togadia.I had to include a little bit of his speech recently in one of my video talks ,I am sharing the link once again if you missed it pleases see how democrat he seems to be just before asking Aamir Khan or anyone else to move out of India!



Paradise Lost! हेइया हो,गोड़ उठाइके मूं पर 


मारो! के हग दें,सगरे जुलमी ससुरो! রক্তে বোনা ধান ! 



https://www.youtube.com/watch?


v=ODxoK9DQJAM



मैं नास्तिक क्यों हूं# Necessity of 


Atheis#!Genetics Bharat Teertha#Charvak 


# one blood India! 


https://www.youtube.com/watch?


v=tt5g_AlXVvU



--
Pl see my blogs;


Feel free -- and I request you -- to forward this newsletter to your lists and friends!

No comments:

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...

PalahBiswas On Unique Identity No1.mpg

Tweeter

Blog Archive

Welcome Friends

Election 2008

MoneyControl Watch List

Google Finance Market Summary

Einstein Quote of the Day

Phone Arena

Computor

News Reel

Cricket

CNN

Google News

Al Jazeera

BBC

France 24

Market News

NASA

National Geographic

Wild Life

NBC

Sky TV