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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Monday, November 30, 2015

भोला की चिट्ठठी!मास्टर जी मैं ६ साल का था जब मेरे पिताजी ने आपके स्कूल में मेरा दाखिला कराया था. उनका कहना था कि सरकारी स्कूल जाऊँगा तो पढना-लिखना सीख जाऊँगा और बड़ा होकर मुझे उनकी तरह मजदूरी नहीं करनी पड़ेगी, दो वक़्त की रोटी के लिए तपते शरीर में भी दिन-रात काम नहीं करना पड़ेगा… अगर मैं पढ़-लिख जाऊँगा तो इतना कमा पाऊंगा कि मेरे बच्चे कभी भूखे पेट नहीं सोयेंगे!

भोला की चिट्ठठी

TaraChandra Tripathi shared Dinesh Karnatak's photo.

चिठ्ठी आदरणीय मास्टर जी, 
मैं भोला हूँ, आपका पुराना छात्र. शायद आपको मेरा नाम भी याद ना हो, कोई बात नहीं, हम जैसों को कोई क्या याद रखेगा. मुझे आज आपसे कुछ कहना है सो ये चिट्ठी डाक बाबु से लिखवा रहा हूँ.

मास्टर जी मैं ६ साल का था जब मेरे पिताजी ने आपके स्कूल में मेरा दाखिला कराया था. उनका कहना था कि सरकारी स्कूल जाऊँगा तो पढना-लिखना सीख जाऊँगा और बड़ा होकर मुझे उनकी तरह मजदूरी नहीं करनी पड़ेगी, दो वक़्त की रोटी के लिए तपते शरीर में भी दिन-रात काम नहीं करना पड़ेगा… अगर मैं पढ़-लिख जाऊँगा तो इतना कमा पाऊंगा कि मेरे बच्चे कभी भूखे पेट नहीं सोयेंगे!

पिताजी ने कुछ ज्यादा तो नहीं सोचा था मास्टर जी…कोई गाडी-बंगले का सपना तो नहीं देखा था वो तो बस इतना चाहते थे कि उनका बेटा पढ़ लिख कर बस इतना कमा ले कि अपना और अपने परिवार का पेट भर सके और उसे उस दरिद्रता का सामना ना करना पड़े जो उन्होंने आजीवन देखी…!

पर पता है मास्टर जी मैंने उनका सपना तोड़ दिया, आज मैं भी उनकी तरह मजदूरी करता हूँ, मेरे भी बच्चे कई-कई दिन बिना खाए सो जाते हैं… मैं भी गरीब हूँ….अपने पिता से भी ज्यादा !


शायद आप सोच रहे हों कि मैं ये सब आपको क्यों बता रहा हूँ ?

क्योंकि आज मैं जो कुछ भी हूँ उसके लिए आप जिम्मेदार हैं !

मैं स्कूल आता था, वहां आना मुझे अच्छा लगता था, सोचता था खूब मन लगा कर पढूंगा,क्योंकि कहीं न कहीं ये बात मेरे मन में बैठ गयी थी कि पढ़ लिख लिया तो जीवन संवर जाएगा…इसलिए मैं पढना चाहता था…लेकिन जब मैं स्कूल जाता तो वहां पढाई ही नहीं होती.

आप और अन्य अध्यापक कई-कई दिन तो आते ही नहीं…आते भी तो बस अपनी हाजिरी लगा कर गायब हो जाते…या यूँही बैठ कर समय बिताते…..कभी-कभी हम हिम्मत करके पूछ ही लेते कि क्या हुआ मास्टर जी आप इतने दिन से क्यों नहीं आये तो आप कहते कुछ ज़रूरी काम था!!!

आज मैं आपसे पूछता हूँ, क्या आपका वो काम हम गरीब बच्चों की शिक्षा से भी ज़रूरी था?

आपने हमे क्यों नहीं पढाया मास्टर जी…क्यों आपसे पढने वाला मजदूर का बेटा एक मजदूर ही रह गया?

क्यों आप पढ़े-लिखे लोगों ने मुझ अनपढ़ को अनपढ़ ही बनाए रखा ?

क्या आज आप मुझे वो शिक्षा दे सकते हैं जिसका मैं अधिकारी था?

क्या आज आप मेरा वो बचपन…वो समय लौटा सकते हैं ?

नहीं लौटा सकते न ! तो छीना क्यों ?

कहीं सुना था कि गुरु का स्थान माता-पिता से भी ऊँचा होता है, क्योंकि माता-पिता तो बस जन्म देते हैं पर गुरु तो जीना सिखाता है!

आपसे हाथ जोड़ कर निवेदन है, बच्चों को जीना सिखाइए…उनके पास आपके अलावा और कोई उम्मीद नहीं है …उस उम्मीद को मत तोड़िये…आपके हाथ में सैकड़ों बच्चों का भविष्य है उसे अन्धकार में मत डूबोइए…पढ़ाइये…रोज पढ़ाइये… बस इतना ही कहना चाहता हूँ!

क्षमा कीजियेगा !

भोला

———————–

[10:41pm, 29/11/2015] Rajiv Joshi:

भोला को उसके मास्टर का उत्तर
प्यारे भोला!
तुम्हारा पत्र मिला। तुमने लिखा कि तुम सबसे निर्धन तबके के हो।तुम्हारे वर्ग के लोग बड़े मेहनती होते हैं। यदि बढ़िया शिक्षा मिले तो यह हाड़ तोड़ पसीना बहाने वाले लोग शाशक वर्ग के नाजुक और मेहनत से भागने वाले बच्चों से आगे न बढ़ जाएंगे? इसलिए शाशक वर्ग तुम्हें सिर्फ साक्षर करना चाहता है शिक्षित नहीं। इसलिए स्कुल में मास्टर गरीब के बच्चों को कहीं वास्तव में शिक्षित न कर बैठे, मुझे खूब काम सौंप दिए जाते हैं। मगर फालतू की सूचनाएं देने, दाल भात पकाने, स्कुल के निर्माण कार्य करवाने, आदि काम के बाद भी में पढाने का समय निकाल ही लेता हूँ। पर इन्होंने blo,जनगणना, पल्स पोलियो, पशु गणना, चुनाव और भी कई ड्यूटी लगाकर मुझे स्कुल से बाहर कर दिया।तुम समझते हो मै गायब रहता हूँ।
मै एक शिक्षक हूँ।शाशक वर्ग की इस नापाक और जन विरोधी चाल को समझता हूँ। इसलिए अकेले भी ' सारा जहां दुश्मन सही आओ मुकाबला करें की तर्ज पर डटा हूँ। मैं इन परिस्थितियों में शिक्षित सबको नहीं कर पाता पर साक्षर तो तब भी कर ही पाता हूँ।मुझे अफ़सोस है कि तुमने लिखा तुमने पत्र डाक बाबू से लिखवाया। इसलिए कह सकता हूँ कि तुम मेरे शिष्य हो ही नहीं। तुम झूठे हो।तुम जो भी हो बड़े ही भोले हो और सचमुच पप्पू हो। मगर तुमने निम्न वर्ग का बनकर एक ऐसे शिक्षक की अस्मिता पर सवाल खड़ा कर दिया है जो इसी वर्ग की शिक्षा यानि जन शिक्षा यानि सम्यक शिक्षक के लिए भी संघर्षरत है। 
भोला! हमारे देश में शिक्षा का बाज़ार 350 लाख करोड़ रूपये से भी बड़ा है। ओटो मोबाइल,कम्युटर आदि सबसे बड़े चार सेक्टर से भी बड़ा सेक्टर शिक्षा का है। इस बाजार की यह तारीफ़ है कि जब पूरे बाजार में आर्थिक मंदी होती है तब शिक्षा के सेक्टर में बूम आता है। तब अन्य सेक्टर में छटनी होती है। नोकरिया नहीं मिलती। बेरोजगारी बढती है। लोग और और और डिग्रियां लेने दौड़ते हैं। फलस्वरूप शिक्षा के व्यवसाय में बूम आता है।
प्यारे भोला! पूंजीवादी वैस्वीकरण के दौर में गरीब दिन पर दिन गरीब और अमीर रोज अमीर होता जा रहा है। गरीब की क्रय शक्ति ख़त्म हो गयी है। बाजार में अमीरों ने अपने मुनाफे को बढ़ाने के लिए माल पाट तो दिया है। मगर खरीदे कौन? कैसे? किससे? इसलिए विश्व के कई देशों की अर्थ व्यस्था लड़खड़ा रही हैं। स्वीडन का उदहारण हाल में तुमने देखा। पूरा यूरोप और अमेरिका भी इस मंदी का शिकार है।हमारा देश भी इस आर्थिक मंदी की जकड में आता जा रहा है। 
इसलिए सभी कारपोरेट घराने शिक्षा के क्षेत्र में पूंजी लगाना चाहते हैं। ये कार्पोरेट्स इतने शक्तिशाली है कि हमारी और तुम्हारी सरकार्रे इनके सामने नत मस्तक हैं। ये समझो कि यही सरकार हैं। 
खैर, तुम यह खेल समझो। सरकारी स्कूल बढ़िया चलेंगे तो निजी स्कुल कैसे खुलेंगे? इसलिए सरकारी मास्टर को और सरकारी स्कूलों या पूरी सरकारी शिक्षा को पहले बदहाल करो। फिर बदनाम करो। अंत में हड़प लो की नीति चल रही है। ये जो मीडिया सरकारी शिक्षक को शिक्षा की पूरी बदहाली का दोषी करार देता है न! वह यह सब जानबूझकर करता है। मीडिया पूंजीपतियों का तो है।वही शिक्षक को लक्ष्य बनाता है ताकि जनता का उस पर से यकीन ही उठ जाए।
भोला बेटे! तुम भी मुझे इसी वर्ग की काल्पनिक रचना लगते हो। तुमने एक शिक्षक को छेड़ा है। इसलिए एक सवाल तुमसे।
बताओ हम सरकार क्यों चुनते हैं। तुम्हारे जवाब हो सकते हैं। हमारी पार्टी की बने तो सरकार हमारे कारपोरेट सेक्टर को वेल आउट पैकेज दे। हम पूंजीपतियों को अनुदान दे सके। हमारी फैक्टरियों के लिए मुफ़्त जमीन बिजली पानी सड़क वाले सेज बनाकर दे। आदि आदि।
मगर जनता की ओर से जवाब होगा कि किसी लोक कल्याणकारी राज्य की सरकार को अपनी जनता की रोटी कपडा मकान पढाई दवाई और सुरक्षा इन छः चीजों की जिम्मेदारी लेनी चाहिए। हम शिक्षा की बात करते हैं।
हमारे संविधान में पैदा होने से बारहवीं तक की शिक्षा को सरकार की जिम्मेदारी माना है। शिक्षा अधिकार अधिनियम लाकर सरकार ने इसे मात्र 6 से 14 साल तक की घटिया शिक्षा के अधिकार में बदल दिया है। 1 अप्रैल 2010 को यह लागू हो गया था। छः साल होने को हैं। शिक्षा में कोई बदलाव आया?
भोला! ये गरीबों की शिक्षा का घटिया प्रबंध है। अमीर के बच्चे कहीं और उम्दा शिक्षा ले रहे हैं। वे ही हम पर हमेशा राज करेंगे। इसलिए हम शिक्षक निम्न वर्ग के लिए हमेशा चिंतित हैं।
सामान शिक्षा प्रणाली की मांग करते हैं। हम चाहते हैं कि अमीर-गरीब, हिन्दू मुसलमान, किसान सुल्तान, रानी- मेहतरानी, शिक्षक मजदुर नेता अभिनेता सबके बच्चे एक साथ एक छत के नीचे मुफ़्त में सरकारी स्कुल में ही पढ़ें। हम एक ऐसा शिक्षा का ढांचा लेकर रहेंगे।
भोला! तुम मुझे इस पत्र का भी जवाब देना और पुरे भारत में एक ऐसा सरकारी प्राथमिक स्कुल बताना जहां हर कक्षा के लिए एक टीचर हो। एक ऐसा प्राइवेट स्कुल भी बताना जहां हर कक्षा के लिए कम से कम एक टीचर प्रिंसपल क्लर्क आया न हो।
एक पत्र अपने प्रधानमंत्री के लिए भी लिखना भोला! और कहना कि हमारे देश में सामान शिक्षा प्रणाली लागू करो। भारत जैसा संसाधन सम्पन्न देश ऐसा कर सकता है। अपने हक़ के लिये लड़ो भोला। हम मास्टर इस लड़ाई में सबसे आगे होंगे।
एक अंतिम वात और। कभी फिर चिठ्ठी लिखो तो अपने शिक्षक का नाम जरूर बताना। मैं जनता हूँ। ऐसे शिक्षक नहीं होते। शिक्षक आज भी मेहनत करते हैं। तुम झूठे हो भोला! तुम शिक्षा विरोधी और जन विरोधी जमात की काल्पनिक उपज हो।
तुम्हारी पूरी जमात को मेरी श्रीधांजलि।
तुम्हारा राजीव मास्टर।


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