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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Saturday, March 5, 2016

ना, आजादी कोई अधूरी लावारिश चीख नहीं है! मनुस्मृति राज के खिलाफ,मनुवाद के खिलाफ,जाति के खिलाफ,रंगभेदी नस्लभेद के खिलाफ,मजहबी सियासत और सियासती मजहब के खिलाफ,मुक्त बाजार के खिलाफ लड़ाई चंद नारों का सैलाब भी नहीं है। यह एक लंबी लड़ाई है। इस लड़ाई की पहली शर्त है कि किसी शख्सियत या किसी पहचान के दायरे में कैद होकर बखरे ना यह आंदोलन। 'धूप में जब भी जले हैं पांव सीना तन गया है, और आदमकद हमारा जिस्म लोहा बना गया है' जो रोहित वेमुला है वही फिर कन्हैया है। जो लाल है ,वही फिर नील है। वे लोग कौन है जो रोहित से कन्हैया को और कन्हैया से रोहित को अलग कर रहे हैं? वे लोग कौन ही जो सियासत के दलदल में कन्हैया के साथ साथ पूरे आंदोलन को जमंदोज करने की साजिशें रच रहे हैं? पलाश विश्वास

ना, आजादी कोई अधूरी लावारिश चीख नहीं है!
मनुस्मृति राज के खिलाफ,मनुवाद के खिलाफ,जाति के खिलाफ,रंगभेदी नस्लभेद के खिलाफ,मजहबी सियासत और सियासती मजहब के खिलाफ,मुक्त बाजार के खिलाफ लड़ाई चंद नारों का सैलाब भी नहीं है।
यह एक लंबी लड़ाई है।
इस लड़ाई की पहली शर्त है कि किसी शख्सियत या किसी पहचान के दायरे में कैद होकर बखरे ना यह आंदोलन।
'धूप में जब भी जले हैं पांव सीना तन गया है, और आदमकद हमारा जिस्म लोहा बना गया है'
जो रोहित वेमुला है वही फिर कन्हैया है।
जो लाल है ,वही फिर नील है।
वे लोग कौन है जो रोहित से कन्हैया को और कन्हैया से रोहित को अलग कर रहे हैं?
वे लोग कौन ही जो सियासत के दलदल में कन्हैया के साथ साथ पूरे आंदोलन को जमंदोज करने की साजिशें रच रहे हैं?
पलाश विश्वास
बेहद डरा हुआ हूं कि अंजाम से पहुचने से पहले छात्रों और युनवाओं की पहल फिर सियासत के दलदल में जमींदोज होने का खतरा है।
आंदोलन का कोई चेहरा नहीं होता।आंदोलन के मुद्दे होते हैं।
मुद्दा सामाजिक यथार्थ का है।
मुद्दा इंसनियत औक कायनात का है।
मुद्दा जल जमीन जंगल का है।
मुद्दा खेत खलिहान का है।
मुद्दा कटे हुए हाथों का है।
मुद्दा कटी हुआ जुबान और कटे हुए दिलोदिमाग का है।
मुद्दा वजूद का है।
मुद्दा मुल्क का भी है।
मुद्दा जम्हूरियत का भी है।
मुद्दा कायदे कानून का भी है।
मनुस्मृति राज के खिलाफ,मनुवाद के खिलाफ,जाति के खिलाफ,रंगभेदी नस्लभेद के खिलाफ,मजहबी सियासत और सियासती मजहब के खिलाफ,मुक्त बाजार के खिलाफ लड़ाई चंद नारों का सैलाब भी नहीं है।
ना आजादी कोई अधूरी लावारिश चीख है।
यह एक लंबी लड़ाई है।
इस लड़ाई की पहली शर्त है कि किसी शख्सियत या किसी पहचान के दायरे में कैद होकर बखरे ना यह आंदोलन।
हम गौर से सुन रहे थे जब रोहित वेमुला के नाम पहचान के तमाम तिसलिस्म किरचों के मानिंद ढहने लगे थे।
अब उसी पहचान की सियासत को कौन लोग जिंदा करने लगे हैं।बदलाव की सारी लड़ाई को कन्हैया की शख्सियत में कैद करके कौन लोग उसके भूमिहार होने के सवाल उठाकर छात्रों और युवाओं को फिर जाति और मजहब में बांटने की सियासत कर रहे हैं।
हमें कन्हैया से कोई शिकायत नहीं है।
उसकी समझ के हम कायल हैं।
उसकी परिपक्वता के हम कायल है।
हम सिर्फ कन्हैया को देख नहीं रहे हैं।
न हम सिर्फ जेएनयू को देख रहे हैं।
हम इस नई पीढ़ी के हर चेहरे के मुखातिब है।
हम उस हर आंख के दीवाने हैं जो बदलाव के ख्वाबों से गहरी नीली झील है।
हम हर उस चेहरे में रोहित वेमुला को देख रहे हैं।
हम उस हर नीली झील की गहराइयों से कन्हैया की आवाज सुन रहे हैं।
बदलाव की इस प्रतिबद्ध जुझारु नईकी फौज से कौन है जो उसके सिपाहसालार को अलहदा करने के लिए भूमिहार भूमिहार की आवाज दे रहा है।
जो रोहित वेमुला है वही फिर कन्हैया है।
जो लाल है ,वही फिर नील है।
वे लोग कौन है जो रोहित से कन्हैया को और कन्हैया से रोहित को अलग कर रहे हैं?
वे लोग कौन ही जो सियासत के दलदल में कन्हैया के साथ साथ पूरे आंदोलन को जमंदोज करने की साजिशें रच रहे हैं?
सवाल फिर वहीं है कि अचानक जिंदा हो गये बाबा साहेब डा.अंबेडकर और उनके जाति उन्मूलन के मिशन से असल में क्या सिर्फ आरएसएस परेशान है
सवाल फिर वहीं है कि लाल और नीली जनता अलग अलग क्यों है
सवाल फिर वही है कि हम एक दूसरे के खिलाफ हर बार क्यों लामबंद हो जाते हैं और हर बार क्यों सियासत जीत जाती है और आंदोलन बिखर जाते हैं।
हम आंदोलनों का इतिहास भूगोल जानते रहे हैं।
हम आंदोलनों का चेहरा बनकर सियासत में दफन हो जाने का सिलसिला भी जानते हैं।
हम फिर वही दोहराव देख रहे हैं।
हम फिर डर रहे हैं।
मुद्दे गायब होते जा रहे हैं।
चेहरे रोशन होते जा रहे हैं।
हम डरते हुए देख रहे हैं कि मुल्क गायब होता जा रहा है और सियासत कयामत बन कर कायनात पर कहर बरपाने को तैयार।
हम डरते हुए देख रहे हैं कि अंधेरे के अचूक हथियार हमारे बच्चों के दरम्यान फिर वहीं दीवारे खड़े करने लगे हैं जिन दीवारों से टकरा कर हर बार हमारे ख्वाब किरचों में बिखरते रहे हैं।
अंधेरे के जो हथियार हैं अचूक,उन्हें भी पहचानने की जरुरत है।
जमीन पकी हुई है।
जमीन के भीतर ही भीतर ख्वाबों के ज्वालामुखी हजारों हजार दहकने लगे हैं।
वह भूमिगत आग मुहानों के बेहद करीब है,जो इंसानियत और कायनात पर छाये एंधेरे को खाक कर देगी।
हूबहू वैसा ही हो रहा है,जैसा हमने अबतक बार बार देखा है।
बदलाव के हालात बनते नजर आते हैं और सत्ता की सियासत करवटें बदलकर ऐसा पलटवार करती है कि सारा कुछ गुड़गोबर कर देती है और अपने तिलिस्म को और मजबूत बना लेती है।
हर बार बदलाव के सिपाहसालार सत्ता और सियासत के पहरे दार बना दिये जाते हैं।
जेल से छूटने के बाद जेएनयू लौटकर कन्हैया ने जो कुछ कहा वह इतिहास में दर्ज है और लाइव है।
अभी अभी राजदीप सरदेसाई के मुखातिब जिस सुलझे तरीके से कन्हैया ने तमाम सवालों के जवाब दिये और रोहित वेमुला और बाबासाहेब अंबेडकर के जाति उन्मूलन के एजंडे के तहत सामाजिक न्याय और समता,कानून के राज,लोकतंत्र,जल जंगल जमीन,संविधान की प्रस्तावना पर उनने जिस तरह फोकस बानाते हुए सहिष्णुता और संवाद,विमर्श और विवेक पर फोकस बनाये रखा और छात्र आंदोलन की विरासत को चिन्हित किया तो समझ में आने वाली बात है कि क्यों यह दुनिया उसे या तो महानायक या फिर खलनायक बनाने पर आमादा है।
गनीमत है कि कमसकम हमारे बच्चों का दिलोदिमाग साफ है और वे जाति पहचान को तोड़ने में कामयाब है।
फिरभी खतरा है।
देशद्रोह और ओबीसी विमर्श अब भूमिहार विमर्श में तब्दील होकर सत्ता,सत्तावर्ग,मुक्त बाजार और मनुस्मृति के तिलिस्म को बनाये रखने की नई कवायद है।
इतिहास की वस्तुनिष्ठ व्याख्या के साथ समय की चुनौतियों के मुकाबले की लंबी लड़ाई में व्यक्ति नहीं,समाज खास है।
देखिये कितने सहिष्णु हैं ये #भाजपाई.. #JNU के #कन्हैया_कुमार की जीभ काटने वाले को बदायूं के भाजपा नेता ने 5 लाख रूपये का इनाम देने की घोषणा की.. इनसे#असहमति इन्हें कत्तई बर्दाश्त नहीं.. #भाजपा और #नमो का विरोध अपमान मानते हैं यह लोग.. मार पीट करेंगे.. अंग भंग करेंगे.. वीडियो डॉक्टरड करेंगे.. कुछ भी करेंगे पर विरोधी मिटा देंगे..
उनकी इस असहिष्णुता का जवाब हर हाल मे हमारे पास है।
वे हमें कलबुर्गी बना दें या दाबोलकर या पनसारे,फर्क नहीं पड़ता।
इसका मुकाबला करने के लिए हम तैयार हैं।
हमारे मित्र मशहूर पत्रकार उर्मिलेश ने लिखा हैःकन्हैया तो फौलादी है ही. टीवी पर कल रात उसके पिता जी, जो किसी बीमारी से तकलीफ में भी हैं, की बात सुनकर मेरी आंखों में आंसू छलक आये. ये आंसू खुशी और गव॓ के थे. आपने सुना कि नहीं, अत्यंत साधारण घर में पैदा हुए कन्हैया के बीमार पिता ने कल क्या कहा? उन्होेंने कहा, मेरे बेटे को वो लोग देशद्रोही बताने की साजिश कर रहे हैं, जो देश की आजादी की लड़ाई में कहीं थे ही नहीं, जिन्होंने समाज को सिफ॓ बांटने का काम किया है. सांप्रदायिक और दंगाई मानसिकता के ऐसे ही तत्वों ने गांधी जी की हत्या की थी. मुझे कन्हैया पर गव॓ है. मुझे यहां भाई रमेश रंजक की दो लाइनें याद आ रही हैं: 'धूप में जब भी जले हैं पांव सीना तन गया है, और आदमकद हमारा जिस्म लोहा बना गया है' . जय कन्हैया, जय Jnu, जय भारत, रोहित वेमुला की लड़ाई जिन्दाबाद!
खतरा आरएसएस से उतना नहीं है जितना कि िस पहचान की सियासत में लाल को नीले से और नीले से लाल को अलग करने की हमारी फितरत से है।इस अलगाव की कोख में है बिखराव जो भूमिहार कन्हैया को रोहित बन जाने से बौखला रहा है।
सबसे बड़ा खतरा यही है।
मसलनः
काश! कन्हैया एक बार कह देता, दबी-दबी सी आवाज में ही कह देता कि मेरी जाति#भूमिहार है और मुझे शर्म आती है कि मेरा जन्म और पालन-पोषण उन लोगों के बीच हुआ जिन्होंने #बथानीटोला, #लक्ष्मनपुरबाथे, और #शंकरबीघा जैसे जघन्य नरसंहार किये; स्त्रियों के गर्भ चीरकर भ्रूणों को हवा में उछालकर गोली मारी गई; मासूम किलकारियों का गला घोंट दिया गया. कन्हैया, तुम्हे कहना चाहिए था कि तुम्हे शर्म आती है! तुमने नही कहा. तुम जातिविहीन होगये एक झटके में. कन्हैया, तुम्हे बताना चाहिए था लोगों को, उन क्रूर हत्यारों ने ये जानने की कोशिश नही की थी कि किसका परिवार कितने#हजार रुपये में पलता है. एक बात बताओ, कन्हैया, सबके प्यारे कन्हैया. तुम्हारे जैसे कुछ और परिवार भी तो होंगे जो #तीनहजार से कम में पलते होंगे. बताओ ऐसे कितने #भूमिहार परिवारों को उनकी गरीबी देखकर मौत की नींद सुलादिया गया. बता पाओगे. बोलो!
#प्यारेकन्हैया, क्रान्ति का ये तुम्हारा #उद्घोष अधूरा है; इसमें शक की गुंजाईश है.
इन तस्वीरों को देखो, #प्यारेकन्हैया! इन तस्वीरों को देखों, ये क्या कहती हैं!. शायद इनकी ये हालत करने वाला आपका सम्मानित रिश्तेदार भी होसकता है!
क्या तुम्हारा ह्रदय नही पसीजता? कि एक बार उन्हें भी याद कर लो जो बिना किसी के मारे मर गए!
बेहद डरा हुआ हूं कि अंजाम से पहुचने से पहले छात्रों और युनवाओं की पहल फिर सियासत के दलदल में जमींदोज होने का खतरा है।
आंदोलन का कोई चेहरा नहीं होता।आंदोलन के मुद्दे होते हैं।
मुद्दा सामाजिक यथार्थ का है।
मुद्दा इंसनियत औक कायनात का है।
मुद्दा जल जमीन जंगल का है।
मुद्दा खेत खलिहान का है।
मुद्दा कटे हुए हाथों का है।
मुद्दा कटी हुआ जुबान और कटे हुए दिलोदिमाग का है।
मुद्दा वजूद का है।
मुद्दा मुल्क का भी है।
मुद्दा जम्हूरियत का भी है।
मुद्दा कायदे कानून का भी है।
मनुस्मृति राज के खिलाफ,मनुवाद के खिलाफ,जाति के खिलाफ,रंगभेदी नस्लभेद के खिलाफ,मजहबी सियासत और सियासती मजहब के खिलाफ,मुक्त बाजार के खिलाफ लड़ाई चंद नारों का सैलाब भी नहीं है।
ना आजादी कोई अधूरी लावारिश चीख है।
यह एक लंबी लड़ाई है।
इस लड़ाई की पहली शर्त है कि किसी शख्सियत या किसी पहचान के दायरे में कैद होकर बखरे ना यह आंदोलन।
हम गौर से सुन रहे थे जब रोहित वेमुला के नाम पहचान के तमाम तिसलिस्म किरचों के मानिंद ढहने लगे थे।
अब उसी पहचान की सियासत को कौन लोग जिंदा करने लगे हैं।बदलाव की सारी लड़ाई को कन्हैया की शख्सियत में कैद करके कौन लोग उसके भूमिहार होने के सवाल उठाकर छात्रों और युवाओं को फिर जाति और मजहब में बांटने की सियासत कर रहे हैं।
हमें कन्हैया से कोई शिकायत नहीं है।
उसकी समझ के हम कायल हैं।
उसकी परिपक्वता के हम कायल है।
हम सिर्फ कन्हैया को देख नहीं रहे हैं।
न हम सिर्फ जेएनयू को देख रहे हैं।
हम इस नई पीढ़ी के हर चेहरे के मुखातिब है।
हम उस हर आंख के दीवाने हैं जो बदलाव के ख्वाबों से गहरी नीली झील है।
हम हर उस चेहरे में रोहित वेमुला को देख रहे हैं।
हम उस हर नीली झील की गहराइयों से कन्हैया की आवाज सुन रहे हैं।
बदलाव की इस प्रतिबद्ध जुझारु नईकी फौज से कौन है जो उसके सिपाहसालार को अलहदा करने के लिए भूमिहार भूमिहार की आवाज दे रहा है।
जो रोहित वेमुला है वही फिर कन्हैया है।
जो लाल है ,वही फिर नील है।
वे लोग कौन है जो रोहित से कन्हैया को और कन्हैया से रोहित को अलग कर रहे हैं?
वे लोग कौन ही जो सियासत के दलदल में कन्हैया के साथ साथ पूरे आंदोलन को जमंदोज करने की साजिशें रच रहे हैं?

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