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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Thursday, March 2, 2017

सीनाजोरी का जलवा! इतिहास,भूगोल,विज्ञान के बाद अब अर्थशास्त्र पर भी फासिस्ट हमला! अर्थव्यवस्था से किसानों, जनपदों, गांवों, मेहनतकशों, खुदराबाजार, कारोबारियों,युवाओं और स्त्रियों,बहुसंख्य बहुजन जनता का एकमुश्त बहिस्कार! बेइंतहा बेदखली, दमन, उत्पीड़न, अत्याचार, नरसंहार के खिलाफ आवाज उठाना, विविधता बहुलता ,सहिष्णुता की बात करने पर अंजाम कलबुर्गी, पानेसर, दाभोलकर, रोहित वेमुला या नज�

सीनाजोरी का जलवा!

इतिहास,भूगोल,विज्ञान के बाद अब अर्थशास्त्र पर भी फासिस्ट हमला!

अर्थव्यवस्था से किसानों, जनपदों, गांवों, मेहनतकशों, खुदराबाजार, कारोबारियों,युवाओं और स्त्रियों,बहुसंख्य बहुजन जनता का एकमुश्त बहिस्कार!

बेइंतहा बेदखली, दमन, उत्पीड़न, अत्याचार, नरसंहार के खिलाफ आवाज उठाना, विविधता बहुलता ,सहिष्णुता की बात करने पर अंजाम कलबुर्गी, पानेसर, दाभोलकर, रोहित वेमुला या नजीब का है या शहीद की इक्कीस साल की बेटी को रेप की धमकी है या राष्ट्रद्रोह का तमगा है।

अब नोटबंदी के बाद जुबां पर तालाबंदी की तैयारी है।


पलाश विश्वास

इन दिनों राजनीति और राजकाज में सीनाजोरी का जलवा है।

नोटबंदी के मारे किसानों ने पश्चिम उत्तर प्रदेश में गन्ने को हथियार में तब्दील करके दंगाई राजनीति की तबीयत हरी कर दी है और यूपी में दो चरण का मतदान बाकी रहते रहते रिजर्व बैंक, अर्थशास्त्र और अर्थशास्त्रियों, रेटिंग एजंसियों के आकलन के खिलाफ विकास दर के झूठे आंकड़े पेश करके नोटबंदी से विकास तेज होने का जो दावा पेश किया गया है,वह तो हैरतअंगेज हैं ही,चुनाव प्रचार अभियान में जिस तरह सता पर काबिज  शीर्षस्थ राष्ट्र नेता अपने संवैधानिक पद से अर्थशास्त्र और अर्थशास्त्रियों की जो बेशर्म खिल्ली उड़ाई है, वह भारत ही नहीं,दुनिया के इतिहास में बेनजीर कारनामा है।

सीनाजोरी का जलवा!

इतिहास,भूगोल,विज्ञान के बाद अब अर्थशास्त्र पर भी फासिस्ट हमला!

अर्थव्यवस्था से किसानों, जनपदों, गांवों, मेहनतकशों ,खुदराबाजार, कारोबारियों, युवाओं और स्त्रियों,बहुसंख्य बहुजन जनता  का बहिस्कार!

हाल में इसी तर्ज पर अमेरिकी अलोकप्रिय राष्ट्रपति डान डोनाल्ड ने मीडिया को खारिज करने का अभियान छेड़ दिया है और इसी ट्रंप कार्ड के इस्तेमाल की भारत में तैयारी हो रही है।

देश में फासिज्म के राजकाज में वित्तीय आपदायों के सृजनशील कलाकार और झोलाछाप विशेषज्ञों के सरताज भोपाल गैस त्रासदी के पीडितों के वंचित करने वाले यूनियन कार्बाइड के  मशहूर कारपोरेट वकील ने बाबुलंद आवाज में ऐलान कर दिया है कि अब अभिव्यक्ति की आजादी पर बहस होनी चाहिेए।

नागरिक और मनवाधिकार,मेहनतकशों के हकहकूक,जल जंगल जमीन पर्यावरण पहले से निषिद्ध विषय हैं।

बेइंतहा बेदखली, दमन, उत्पीड़न, अत्याचार, नरसंहार के खिलाफ आवाज उठाना, विविधता, बहुलता,सहिष्णुता की बात करने पर अंजाम कलबुर्गी, पानेसर, दाभोलकर, रोहित वेमुला या नजीब का है या शहीद की इक्कीस साल की बेटी को रेप की धमकी है या राष्ट्रद्रोह का तमगा है।

अब नोटबंदी के बाद जुबां पर तालाबंदी की तैयारी है।

आला सिपाहसालार नोटबंदी पर यूपी का जनादेश जीतने का दावा कर रहे थे और उनकी जीत के लिए राम की सौगंध नाकाफी साबित होने लगी तो बाकायदा अर्थशास्त्र के खिलाफ युद्ध घोषणा कर दी गयी है।

इतिहास के खिलाफ तो वे भारत में संस्थागत फासिज्म के जनमकाल से लड़ रहे हैं।सारा इतिहास दोबारा लिख रहे हैं। मिथकों और किंवदंतियों के अलावा अब सफेद झूठ को धर्म जाति नस्ल की रंगभेदी राजनीति के हिसाब से इतिहास बताया जा रहा है।

भूगोल का बड़ा करना उनका सबसे प्रिय खेल है और इसमें उनकी मेधा बेमिसाल है।भारत विभाजन का किस्सा अभी आम जनता के लिए अबूझ पहेली है और भारत विभाजन से लेकर गांधी की हत्या और फिर फिर गांधी की हत्या के जरिये देश के बंटवारे से भूगोल के खिलाफ,राष्ट्रीय एकता और अखंडता के खिलाफ, संप्रभुता के खिलाफ उनका अविराम युद्ध धरअसल भारतीय जनता के दिलोदमिामाग में महाभारत के अश्वत्थामा का रिसता हुआ सदाबहार जख्म है,जिसका इलाज निषिद्ध है।

इतिहासकारों को कूढ़े के ढेर में फेंकने के बाद अर्थशास्त्र बदलने और अर्थशास्त्रियों को भी खारिज कर देने का यह अभियान इतिहास के खिलाफ युद्ध की ही निरंतरता है और इसे हैरतअंगेज भी नहीं माना जा सकता।

हैरतअंगेज इसलिए भी नहीं है कि भारतीयता और भारतीय संस्कृति के नाम राजनीति,राजकाज,राजधर्म  की विचारधारा सभ्यता,विज्ञान , आध्यात्म, धर्म, मनुष्यता और प्रकृति के विरुद्ध है,ईश्वर की अवधारणा और तमाम पवित्र धर्म ग्रंथों  में निहित बुनियादी मूल्यों,सामाजिकता,उत्पादन संबंधों,मनुष्यता,विवधता,बहुलता के विरुद्ध है।

यह ध्यान देने की बात है कि वे विज्ञान,उच्च शिक्षा,शोध,विश्वविद्यालय के खिलाफ हैं लेकिन वे विध्वंसक परमाणु ऊर्जा के पक्ष में हैं।जनसंहार के तमाम उपकरणों और आयुधों के वे कारोबारी हैं।

वे ऐप्पस,तकनीक और मशीनीकरण, रोबोटीकरण,तेज शहरीकरण, महानगरीकरण और औद्गोगीकीकरण के नाम बाजारीकरण के पक्षधर है,जो श्रम और उत्पादन संबंधों की बुनियादी सामाजिक आर्थिक शर्तों की मनुष्यता का खुल्ला उल्लंघन ही नहीं जनसंहार संस्कृति है।गैरजरुरी जनसंख्या का सफाया करके वे अपने धर्म कर्म एजंडे के हिसाब पसंदीदा जनता के अलावा बाकी सबको टरमिनेट कर देंगे।

कारपोरेट एकाधिकार के लिए खेती और खुदरा कारोबार को खत्म करने के लिए नरसंहारी अश्वमेध के नस्ली एजंडा को लागू करने के लिए उनका संविधान मनुस्मृति है।नोटबंदी के जरिये मुक्तबाजार में आम जनता को नकदी से वंचित करके किसानों, कारोबारियों और मेहनतकशों के सफाया अभियान को जायज बताने के लिए इतिहास और विज्ञान के बाद अर्थशास्त्र पर यह अभूतपूर्व हमला है।

मजे की बात तो यह है कि मनमर्जी आधार वर्ष, अवैज्ञानिक पद्धति,सुविधा के हिसाब से पैमाना और फर्जी आंकड़ों के इस खेल में सिर्फ औपचारिक और संगठित क्षेत्र और सच कहें तो शेयर बाजार में सूचीबद्ध कंपनियों के विकास को इस विकास दर का आधार बनाया गया है जो भारतीय अर्थव्यवस्था का एक फीसद का भी प्रतिनिधित्व नहीं करता है।

भारतीय अर्थव्यवस्था मूलतः कृषि आधारित है,यह संसाधनों के लिहाज से ही नहीं,प्राकृतिक और पर्यावरण के सच के हिसाब से भी नहीं,बल्कि हुस्ंक्य जनता के नैसर्गिक रोजगार और आजीविका होने की वजह से है।

भारत आजाद होने के सत्तर साल में भोगोल का सच भी बदला नहीं है।कुछ महानगरों,उपनगरों और चुनिंदा शहरों में उपभोक्तावादी अंधाधुंध विकास के बावजूद, गांव गांव बिजली और उपभोक्ता बाजार पहुंचने के बावजूद,हर हाथ में मोबाइल, एटीएम पेटीएम,जीजीजीजजीजी संचार क्रांति के बावजूद डिजिटल कैशलैस इंडिया का  सच यही है कि हमारा यह स्वदेश जनपदों का देश है।

जाहिर है कि गांवों, देहात ,किसानों और कृषि के विकास के बिना भारत के विकास का दावा झूठ के पुलिंदा के सिवाय कुछ नहीं है।

औद्योगिक उत्पादन लगातार गिर रहा है क्योंकि तमाम देशी उद्योग,कल कराखाने बंद हो रहे हैं,उनका निजीकरण और विनिवेश बाजार में हुए अबाध विदेशी पूंजी के हितों के मुताबिक अंधाधुंध है।

तमाम सार्वजनिक उपक्रमों के निजीकरण हो जाने और यहां तक कि मीडिया पर कारपोरेट पूंजी का वर्चस्व कायम हो जाने की वजह से पढ़ी लिखी नई पीढी व्यापक पैमाने पर बेगोजगार है।

जिस पैमाने पर स्त्री शिक्षा और स्त्री चेतना  का विकास हुआ है,उस अनुपात में स्त्री रोजगार और पितृसत्तात्मक समाज में घर बाहर और कार्यस्थल पर उनकी सुरक्षा की गारंटी एक फीसद भी नहीं है।

नई आर्थिक नीतियों के नवउदारवादी मुक्तबाजार बन जाने के बाद कृषि विकास दर शून्य से नीचे पहुंच गयी है।

कृषि संकट सुलझाये बिना आंकडो़ं की बाजीगरी से कृषि विकास दर में ढाई फीसद तक विकास की उपलब्धि पर छप्पन इंच का सीना न जाने कितने इंच का हो गया और सुनहले दिन के सपनों के तहत कृषि विकास दर चार से पांच फीसद बढ़ाने के दावे के बीच जल जंगल जमीन और पर्यायावरण, किसानों और मेहनतकशों, कारोबारियों और खुदरा बाजार, खेत खलिहानों और जनपदों के खिलाफ एकाधिकार कारपोरेट वर्चस्व का डिजिटल कैसलैस फर्जीवाड़ा नरमेध अभियान है।

विकास दर में असंगठित और अनौपचारिक क्षेत्र और भारतीय अर्थव्यवस्था के बुनियादी आधार कृषि को शामिल नहीं किया गया है।जाहिर है कि केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) ने राष्ट्रीय आय का जो दूसरा अग्रिम अनुमान पेश किया, उतना इंतजार हाल में शायद ही किसी आंकड़े का किया गया हो। इसलिए कि इनसे न केवल पूरे वर्ष के लिए सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्घि के अनुमान मिलते हैं बल्कि तीसरी तिमाही के जीडीपी अनुमान भी ये आंकड़े बताते हैं।  इन आंकड़ों में अहम बात यह है कि वृद्घि पर नोटबंदी के प्रभाव से काफी हद तक निपटा जा चुका है। विभिन्न क्षेत्रों पर इसका बेहद कम असर हुआ है। इस प्रक्रिया में सीएसओ ने सरकार से बाहर के हर व्यक्ति को चकित कर दिया है।

यानी हिंदुत्व के एजंडे के तहत राम की सौगंध के साथ जिस अर्थव्यवस्था कि विकास दर पर संस्थागत फासिज्म का राजकाज और कारपोरेट वित्तीय प्रबंधन बल्ले बल्ले हैं,उससे कृषिजीवी भारतीय बहुसंख्य बहुजन जनता का सीधे बहिस्कार हो गया है। असंगठित क्षेत्र में जो मेहनतकश और नौकरीपेशा लोग हैं,वे भी हिंदुत्व के झोला छाप अर्थ शास्त्र के दायरे से बाहर हैं और बाहर हैं खुदरा बाजार और कारोबार में शामिल तमाम छोटे और मंझौले वर्ग के कारोबारी।बेरोजगार युवा और पढ़ी लिखी स्त्रियां भी इस अर्थव्यवस्था के बाहर है।उत्पादन प्रणाली में किसान और मजदूरों का सिरे से सफाया है।इसके बावजूद मीडिया और सर्वदली कारपोरट राजनीति जनविरोधी आर्थिक नीतियों की मनुस्मृति बहाल करने में लगी है।

साठ के दशक से अमेरिका में अमेरिका मीडिया और राजनीति का समर्थ पुलसिसिया अमेरिकी युद्धक अर्थव्यवस्था के पक्ष में था जिसका नतीजा तेलयुद्ध से लेकर सीरिया का संकट है।य़ह अमेरिकी वसंत अब मध्यपूर्व और अरब अफ्रीकी देशों,पश्चिम यूरोप के बाद भारत का बदला हुआ मौसम है और तापमान तेलकुंओं की दहकती आंच है।भोपाल गैस त्रासदी के बाद परमाणु विध्वंस कर्मफल नियतिबद्ध है।

अमेरिकी मीडिया को अपने धतकरम का अंजाम ट्रंप की ताजपोशी से समझ में खूब आ गया है।लेकिन 2014 के बाद भारतीय मीडिया अपने कारपोरेट अवतार में पूरीतरह फासिज्म के अंध राष्ट्रवाद के शिकंजे में है और इसीलिए अंधियारे का तेजबत्तीवाला कारोबार इतना निरंकुश है।

मीडिया की सुर्खियां चीख रही हैंः वित्त मंत्री ने कहा है कि जीडीपी वृद्धि के तीसरी तिमाही के आंकड़ों पर नोटबंदी का बड़ा असर रहा। हालांकि, कृषि क्षेत्र में ग्रोथ का जिक्र करते हुए उन्होंने यह भी कहा कि जीडीपी आंकड़ों ने उन लोगों के दावों को निराधार साबित कर दिया जो ग्रामीण क्षेत्रों को लेकर बढ़ा-चढ़ाकर बातें कर रहे थे, कृषि क्षेत्र की वृद्धि रेकार्ड उच्चस्तर पर पहुंची। जेटली ने कहा कि बाजार में नोट डालने का काम काफी आगे पहुंच चुका है। इसके साथ साथ अर्थव्यवस्था की आंतरिक मजबूती से आर्थिक वृद्धि में तेजी लौटने के संकेत हैं।

यही नहीं, दावा यह भी है कि भारत अब भी दुनिया की सबसे तेजी से आगे बढ़ती अर्थव्यवस्था बनी हुई है। नोटबंदी और उसके बाद लोगों को हुई परेशानी को देखते हुए यह काफी हैरान करने वाला है। हालांकि, भारत की विकास दर अक्टूबर-दिसंबर की तिमाही में सात प्रतिशत ही रही। यह पिछली तिमाही से कम है। पिछली तिमाही में यह विकास दर 7.4 रही थी। 2016-17 में जीडीपी की वृद्धि दर 7.1 प्रतिशत पर रहने का अनुमान है जो इससे पिछले वित्त वर्ष में 7.9 प्रतिशत रही थी। वहीं भारत का पड़ोसी देश चीन दिंसबर वाली तिमाही में भारत से पीछे रहा। इस तिमाही में उसकी विकास दर 6.8 प्रतिशत रही।

गौरतलब है कि येआंकड़े जारी होने से पहले तक ऐसी आशंका जताई जा रही थी कि तीसरी तिमाही के मध्य में (8 नवंबर, 2016) के नोटबंदी के फैसले से अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्र बुरी तरह प्रभावित हुये होंगे। भारतीय रिजर्व बैंक के साथ साथ अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (आईएमएफ) तथा आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (ओईसीडी) ने इस दौरान भारत की जीडीपी वृद्धि दर के अनुमान को कम किया है।बहरहाल  इन संगठनों का मानना है कि नोटबंदी का भारतीय अर्थव्यवस्था पर अल्पावधि असर हुआ है। सीएसओ ने बयान में कहा कि वर्ष (2011-12) के स्थिर मूल्य पर वास्तविक जीडीपी 2016-17 में 121.65 लाख करोड़ रुपये पर कायम रहने का अनुमान है।

जाहिर है कि जीडीपी विकास दर को लेकर आए बिल्कुल ताज़ा आंकड़े इशारा कर रहे हैं कि जीडीपी पर नोटबंदी का असर ज़्यादा नहीं पड़ा है। बेशक, अर्थव्यवस्था की रफ़्तार धीमी पड़ी है. फिर भी 2016-17 के लिए अनुमानित विकास दर 7.1% है। बीते साल ये दर 7.9% थी। देश की अर्थव्यवस्था पर नोटबंदी का मामूली प्रभाव देखने को मिला है और दिसंबर में समाप्त मौजूदा वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर घटकर सात फीसदी रही. मंगलवार को जारी आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, दूसरी तिमाही में विकास दर 7.3 फीसदी थी।

गौरतलब है कि ये आंकड़े केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय यानी सीएसओ ने जारी किए हैं। देश की आर्थिक विकास दर के आंकड़े और पूर्वानुमान जारी करने वाली आधिकारिक संस्था सीएसओ ही है। इसके साथ ही सीएसओ ने पहली और दूसरी तिमाही में हुई जीडीपी वृद्धि के संशोधित आंकड़े भी जारी किये हैं। पहली तिमाही में संशोधित वृद्धि दर बढ़कर 7.2 प्रतिशत और दूसरी तिमाही में 7.4 प्रतिशत हो गई।

अब दावा यह है कि 2025 तक भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था 5 लाख करोड़ डॉलर की अर्थव्‍यवस्‍था बन जाएगी। मोर्गन स्‍टेनली का अनुमान है कि वित्‍त वर्ष 2024-25 तक प्रति व्‍यक्ति आय 125 प्रतिशत बढ़कर 3,650 डॉलर हो जाएगी। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत की 40 करोड़ युवा जनसंख्‍या दुनिया में सबसे बड़ी जनसंख्‍या है और इनके पास तकरीबन 180 अरब डॉलर की खर्च शक्ति है। स्‍मार्टफोन के अत्‍यधिक इस्‍तेमाल और हर जगह मोबाइल ब्रॉडबैंड इंफ्रास्‍ट्रक्‍चर मौजूद होने से अधिकांश कारोबार में विकास के लिए मददगार होगा। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत की ओवरऑल ग्रोथ में जनसंख्‍या का एक बहुत बड़ा महत्‍व है।

इस लोकतंत्र में फासिज्म के राज में आम जनता कितनी असहाय है,यूपी जैसे निर्णायक चुनाव के मध्य रातोंरात रसोई गैस की कीमत में 86 रुपये की वृद्धि इसका सबूत है।यहीं नहीं,नोटबंदी को जायज ठहराते हुए भुखमरी,बेरोजगारी और मंदी के चाकचौबंद इंतजाम के बीच कैशलैस डिजिटल इंडिया में बैंकों और एटीएम से नकदी की निकासी पर भारी सर्विस टैक्स ऐसे लगा दिया गया है कि उसमें बचत पर ब्याज खप जाये और आगे बैंकों में जमा पूंजी रखने की सजा बतौर अलग से जुर्माना लगाने का इंतजाम है।

नागरिकों को अपनी कमाई,अपनी बचत और जमापूंजी बैक से निकालने  के लिए आयकर और दूसरे तमाम टैक्स चुकाने के बाद लेन देन टैक्स चुकाने होंगे।

एक से बढ़कर एक जनविरोधी नीति रोज संसद और संविधान को हाशिये पर रखकर झोलाछाप बिरादरी की सिफारिश पर लागू हो रही है।जरुरत के मुताबिक जब चाहे तब पैमाने ,परिभाषा और आंकड़े गढ़कर मीडिया में पेइड न्यूज के तहत हर गलत नीति को विकास का गेमचेंजर बताया जा रहा है।

यही नहीं, जेएनयू,जादवपुर,हैदराबाद समेत देशभर के विश्वविद्यालयों में मनुस्मृति राजकाज के तीव्र विरोध के बावजूद बजरंगी सेना ने ऐन यूपी चुनाव के बीच जैसे दिल्ली विश्वविद्यालय में उधम मचाकर धार्मिक ध्रूवीकरण का माहौल बनाया है, एक इक्कीस साल की शहीद की बेटी के खिलाफ बेशर्म बलात्कारी अभियान चलाकर जिसतरह महिलाओं और छात्र युवाओं पर हमले किये हैं तो इसके पीछे के राजनीतिक समीकऱण को समझना भी जरुरी है।

यह सारा खेल बुनियादी मुद्दों और समस्य़ाओं को किनारे करके हिंदुत्ववादी सुनामी फिर 2014 की तर्ज पर पैदा करने की सुनियोजित साजिश है ताकि हारे हुए यूपी जीतकर सत्ता पर ढीली हुी पकड़ मजबूत की जा सके।

सत्ता के लिए यह धतकरम जघन्य राष्ट्रद्रोह है।

दूसरी ओर मीडिया के मुताबिक केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) द्वारा जारी सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के तीसरी तिमाही के आंकड़ों पर नोटबंदी का कोई बड़ा असर नजर न आने से ब्रोकरेज और रिसर्च हाउसेज आश्चर्यचकित हैं। नोटबंदी के खासकर असंगठित क्षेत्र पर असर को लेकर आंकड़े को लेकर उन्हें संशय है। आंकड़ों के मुताबिक चालू वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही में जीडीपी की वृद्धि दर 7 प्रतिशत रही, जो दूसरी तिमाही में 7.4 प्रतिशत और एक साल पहले तीसरी तिमाही में 6.9 प्रतिशत थी।

नोमुरा के मुताबिक, 'हमारे विचाार से जीडीपी के आधिकारिक आंकड़े नोटबंदी का वृद्धि दर पर असर कम करके आंक रहे हैं।' नोमुरा का कहना है कि संभव है कि सीएसओ के आंकड़े में असंगठित क्षेत्र में नोटबंदी के असर का प्रभावी आकलन नहीं हुआ और कंपनियों ने अपनी नकदी को बिक्री के रूप में दिखाया हो। वित्तीय ब्रोकरेज फर्म ने कहा है कि नोटबंदी के बाद वास्तविक गतिविधियों के आंकड़े से पता चलता है कि खपत एवं सेवा क्षेत्र ज्यादा प्रभावित हुआ है क्योंकि यहां नकदी से ज्यादा काम होता है।  

बहरहाल आधिकारिक आंकड़ों से पता चलता है कि नोटबंदी ने आर्थिक गति पर बहुत कम असर डाला है। तीसरी तिमाही में निजी खपत, नियत निवेश और औद्योगिक उत्पादन में वृद्धि बढ़ी है, जबकि सिर्फ सेवा क्षेत्र में मंदी आई है।

ऐम्बिट कैपिटल का कहना है कि सीएसओ के आंकड़े का मामूली महत्त्व है, क्योंकि छोटे व मझोले कारोबारी समुदाय से बातचीत और बैंक के कर्ज देने की वृद्धि जैसे आंकड़ों से पता चलता है कि आर्थिक रफ्तार तीसरी तिमाही में धीमी पड़ी है। इसमें कहा गया है, 'हमारा विचार है कि जीडीपी वृद्धि दर चौथी तिमाही में रफ्तार पकड़ेगी। साथ ही वित्त वर्ष 18 में वृद्धि दर ज्यादा रहेगी।'  

एडलवाइस रिसर्च का कहना है कि कुल जीडीपी में सरकार की भूमिका बढ़ रही है। भारत जैसे विकासशील देश में इसकी वजह से निजी निवेशकों की संख्या बढ़ सकती है। निजी खपत के आंकड़ोंं को भी देखें तो इस क्षेत्र में जोरदार तेजी आई है और इस पर नोटबंदी का सीमित असर ही दिख रहा है। इसमें कहा गया है, 'हालांकि आंकड़ों को लेकर संदेह किया जा सकता है, वित्त वर्ष 17 में 7.1 प्रतिशत की वृद्धि दर को मूर्त रूप दिया जा सकता है। हमारा मानना है कि जीडीपी आंकड़े बाजार अनुमानों से अलग आएंगे और इससे मध्यावधि के हिसाब से लाभ होगा।'  


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