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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Thursday, March 9, 2017

जीत का जश्न मना लें,आगे अनंत अमावस्या है! आटोमेशन से नौकरियां, कंप्यूटर के बाद रोबोट के हमले में रोजगार,आजीविका खत्म विदेशों में हमले रुकें या न रुकें,भारत में तकनीकी पीढ़ियों के लिए अभूतपूर्व रोजगार संकट, भारत में रोजगार का इकलौता विकल्प IT सेक्टर में काम करने वाले करीब 14 लाख कर्मचारियों का भविष्य अंधकार! मुक्त बाजार में नोटबंदी के बाद अब भुखमरी, बेरोजगारी, मंदी, असहिष्णुता, घृणा,ह�


जीत का जश्न मना लें,आगे अनंत अमावस्या है!

आटोमेशन से नौकरियां, कंप्यूटर के बाद रोबोट के हमले में रोजगार,आजीविका खत्म

विदेशों में हमले रुकें या न रुकें,भारत में तकनीकी पीढ़ियों के लिए अभूतपूर्व रोजगार संकट, भारत में रोजगार का इकलौता विकल्प  IT सेक्टर में काम करने वाले करीब 14 लाख कर्मचारियों का भविष्य अंधकार!

मुक्त बाजार में नोटबंदी के बाद अब भुखमरी, बेरोजगारी, मंदी, असहिष्णुता, घृणा,हिंसा  और जुबांबंदी का सवा सत्यानाशी माहौल।

पलाश विश्वास

जीत का जश्न मना लें,आगे अनंत अमावस्या है।

अमेरिका और बाकी दुनिया में भारतीय मूल के लोगों पर हमले तेज हो रहे है तो स्वदेश में भी आजीविका और रोजगार पर कुठाराघात है।

मुक्तबाजार में नोटबंदी के बाद अब भुखमरी, बेरोजगारी, मंदी, असहिष्णुता, घृणा, हिंसा और जुबांबंदी का माहौल है।भारत में IT सेक्टर में काम करने वाले करीब 14 लाख कर्मचारियों का भविष्य एक ट्रांजिशन फेज से गुजर रहा है। इनमें से ज्यादातर कर्मचारियों की जॉब खतरे में है।

विकास दर के झूठे दावे और झोलाछाप अर्थशास्त्रियों के करिश्मे से सुनहले दिनों के ख्बाब और रामजी की कृपा से धार्मिक ध्रूवीकरण और आखिरी वक्त आईसिस के हौआ से भले ही यूपी जीत लें संघ परिवार,अर्थ व्यवस्था की गाड़ी पटरी पर लौटनेवाली नहीं है।मसलन ग्लोबल मंदी और डॉनल्ड ट्रंप की नीतियों से आईटी सेक्टर घबराया हुआ है। इंडस्ट्री में लगातार उतार-चढ़ाव देखने को मिल रहा है। इसी को देखते हुए नैसकॉम ने भी वित्त वर्ष 2018 का ग्रोथ अनुमान तीन महीने के लिए टाल दिया है। ऐसा पहली बार है जब नैसकॉम ने वित्त वर्ष शुरू होने से पहले ग्रोथ अनुमान टाला हो। हालांकि आईटी सेक्टर को अब भी आने वाला समय बेहतर दिखाई दे रहा है।

नैसकॉम चेयरमैन सी पी गुरनानी ने कहा है कि आईटी इंडस्ट्री तेजी से ऑटोमेशन की तरफ बढ़ रही है इसलिए नौकरियों पर खतरा मंडरा रहा है।

For the sector as a whole – including large, medium and small IT firms but excluding MNC captive centres – the growth in 2017 is expected to be a mere 5.3 per cent. That's a steep drop from the 8-10 per cent that the industry is expected to do, as per IT industry body Nasscom.

भारतीय आईटी सेक्टर में काम करने वाले मिड लेवल के कर्मचारियों के लिए चिंता करने वाली खबर है।

इकॉनमिक टाइम्स की खबर के मुताबिक, ये कंपनियां खुद को ऑटोमेशन और नई टेक्नॉलजी के हिसाब से ढालने में लगी हुई हैं। मिड लेवल की कंपनियों में करीब 14 लाख कर्मचारी हैं। उनके पास 8 से 12 साल का अनुभव है और उनकी सेलरी 12 से 18 लाख रुपए सलाना है। बताया जा रहा है कि री-स्किलिंग और री-स्ट्रक्चरिंग का असर इन्हीं पर है। आमतौर पर इनकी उम्र 35 साल के आस-पास ही होती है।

यूपी समेत पांच राज्यों में मीडिया सत्ता के साथ रहा है और पहले ही केसरिया सुनामी पैदा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।

नोटबंदी से लेकर राममंदिर और आखिरकार आतंकवाद जैसे पड़ाव पार करने के बाद मतदान पर्व समाप्त है और 11 मई तक भारतीय मीडिया में ज्योतिष शास्त्र वास्तुशास्त्र के तहत कुंडलीपर्व जारी रहना है।

बहरहाल कोई जीते या कोई हारे,यह हमारे सरदर्द का सबब नहीं है।

कामर्शियल, माफ करें चुनावी अंतराल के बाद संसद का बजट सत्र फिर चालू है और किसी ने सवाल दाग ही दिया कि अमेरिका में भारतीय मनुष्यों पर एक के बाद एक हमले पर प्रधान सेवक क्यों चुप हैं।सवाल कोई चाबी जाहिर है नहीं कि चुप्पी का सिंहद्वार खोल दें।बहरहाल गृहमंत्री ने कहा कि सरकार सीरियस है।

हालात लतीफों से ज्यादा हास्यास्पद है मसलन खबर है कि कल तक एनआरआई दूल्हे के लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार बैठे परिवार अब शादी के ऐसे प्रस्तावों से कन्नी काटने लगे हैं।

मजे का किस्सा यह है कि शादी की जोड़ियां मिलाने वाली वेबसाइटों के आंकड़े बताते हैं कि अमेरिका में हाल की घटनाओं से भारतीय परिवारों में एनआरआई दूल्हे का क्रेज काफी कम हुआ है। कुछ रिपोर्टों के मुताबिक इनकी मांग में 25 फीसदी की कमी आई है। यह कमी ज्यादातर अमेरिका में बसे भारतीय दूल्हों के संदर्भ में बताई जा रही है। कहने को एनआरआई कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड से लेकर संयुक्त अरब अमीरात तक तमाम देशों में फैले हुए हैं..  

अब तनिको इस सीरियस संवाद पर गौर फरमायेंः

In recent weeks, at least two Indians have been killed in incidents of hate crime in the US. "Why is the Modi government silent on the attacks against Indian in the US? The Prime Minister tweets on every other issue, why doesn't he talk on this issue? Why is he silent? He should make a statement today," Kharge said.

In his reply, Union Home Minister Rajnath Singh said that the government has taken a serious note of the recent incidents against Indians in US. He added that the government will make a statement on the issue next week in the Parliament. "What is happening in the US is being viewed seriously by the government and a statement would be made in the Parliament next week," he said during Question Hour. Parliamentary Affairs Minister Ananth Kumar also said the government was very much concerned about the incidents in the US.

साभार इंडियन एक्सप्रेस

कुछ पल्ले पड़ा? सरकार सीरियस है लेकिन इस नस्ली घृणा अभियान की निंदा या विरोध करने की स्थिति में नहीं है।जाहिर है कि  मामले को मटियाने के लिए संसद में  बयान जारी कर दिया जायेगा।

जाहिर है कि मनुस्मृति शासन के सत्ता वर्गी की राजनीति और राजनय अमेरिकी हितों के खिलाफ चूं भी करने की हालत में नहीं है।जिस कारपोरेट फंडिंग के बिना संसदीय राजनीति नहीं चलती,उसके तार सीधे व्हाइट हाउस से जुड़े हुए हैं।

सत्ता वर्ग नोटबंदी के मुक्तबादा र में किताना मालामाल है उसका एक उदाहरण पेश है।एक तरफ कहा जाता है कि नोटबंदी की वजह से व्यापार और कमाई में भारी गिरावट की आई है, वहीं आंध्र प्रदेश के अधकेसरिया मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू के बेटे और युवा नेता नारा लोकेश की कमाई में इस दौरान 23 फीसद बढ़ोत्तरी देखने को मिल रही है। चंद्रबाबू नायडू के बेटे और तेलगू देशम पार्टी के महासचिव नारा लोकेश जल्दी ही अपने पिता की कबिनेट में शामिल होने वाले हैं। नारा लोकेश ने सोमवार को चुनाव आयोग में जो हलफनामा दिया है उससे ही खुलासा हुआ है कि नोटबंदी के दौरान उनकी संपत्ति में भारी बढ़ोत्तरी हुई है।

From Rs 14.50cr to Rs 330cr in 5 months, Nara Lokesh's net worth in affidavit raises eyebrows


सवाल यह है कि राष्ट्र को नागरिकों की जान माल की कितनी चिंता है और नागरिकों की देश विदेश में सुरक्षा की जिम्मेदार चुनी हुई सरकार है या नहीं।

धर्म कर्म से लेकर आतंकवाद तक जो अंध राष्ट्रवादी की सुनामी है,वहां राष्ट्र जाहिर है कि सार्वभौम है, सर्वशक्तिमान है, लेकिन उस राष्ट्र के नागरिकों का वजूद सिर्फ आधार नंबर है।सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवमानना करते हुए हर जरुरी सेवा के लिए आधार अनिवार्य किया जा रहा है,जो सबसे बड़ा आईटी टमत्कार है तो नागरिकों की गतिविधियों,उनकी निजता,गोपनीयता से लेकर उनके सपनों और विचारों की लगातार निगरानी का चाकचौबंद इंतजाम है। अपरेने ही नागरिकों की कारपोरेट कंपनियों के हित में निगरानी करने वाले राष्ट्र के नागरिकों की देश विदेश में सुरक्षा करने की कितनी जिम्मदारी है और इस सिलसिले में सरकार और सत्ता तबक कितना सीरियस है जो पल पल नागरिकों की जिंदगी नर्क बनाने में सक्रिय हैं,समझ लें।

मिड डे मिल पर दि वायर के वीडियो में मशहूर पत्रकार विनोद दुआ ने सही कहा है कि आधार है तो आपका वजूद एक नंबर है और आधार नहीं है तो आपका कोई वजूद नहीं है। राजकाज और राजधर्म से तो साबित है कि निराधार आधार का भी कोई वजूद नहीं है। नंबरदार गैरनंबरदार नागरिक कैसा भी हो,उसका कोई वजूद नहीं है।

अमेरिका के किसी नागरिक का दुनियाभर में कहीं बाल भी टेढ़ा हो जाये तो अमेरिका अपनी पूरी सैन्य शक्ति अपने उस इकलौते नागरिक के हक में झोंक देता है। उसी अमेरिका में जब किसी उपनिवेश के नागरिक की ऐसी तैसी या हत्या तक हो जाये तो जाहिर है कि उपनिवेश की सरकार के लिए जुंबा पर तालाबंदी के सिवाय कोई दूसरा विकल्प नहीं है।तकनीकी जनता की हालत भी अदक्ष श्रमजीवी आम जनता से बेहतर नहीं है तकनीकी गैरतकनीकी क्रयशक्ति विभाजन की नोटबंदी के बावजूद।इस तकनीक कार्निवाल के कबंध नागरिकों का भी बाकी जनता का हाल होने वाला है।

मुश्किल यह है कि फ्रांस में भी लेडी ट्रंप की ताजपोशी तय है।भूमंडल में कहीं, शरणार्थी हो या आप्रवासी श्वेत आतंकवाद के निशाने से किसी का भी बच पाना मुश्किल है।यूरोप और अमेरिका के बाहर न्यूजीलैंट से लाइव स्ट्रीमिंग शुरु है।

विदेश में बारतीय नागरिकों पर हमले से बड़ी खबर यह है कि अब क्योंकि IT सेक्टर वक्त के साथ साथ नई टेक्नोलॉजी के हिसाब से बदल रहा है। यह दौर ऑटोमेशन का है।सत्ता तबके के मेधावी बच्चों पर शायद फिलहाल फर्क न पड़े।

क्योकि ऑटोमेशन से अगर सबसे ज्यादा खतरा है तो वे हैं कंपनी के मिड लेवल कर्मचारी।जो आम जनता और बहुजन परिवारों के मध्य मेधा वाले बच्चे हैं और तकनीक के अलावा कुछ नहीं जानते और दलील यह है कि  इनकी जॉब खतरे में इसलिए है क्योंकि ये कर्मचारी खुद को बदलना नहीं चाहते हैं। कहा जा रहा है कि ये कर्मचारी एक अच्छे मैनेजर हैं जो मैनेज करना अच्छे से जानता है। बदलती टेक्नोलॉजी के साथ इन कर्मचारियों ने खुद को नहीं बदला।

इस आटोमेशन का जीता जागता नजारा भारतीय मीडिया का नंगा सच है।अब किसी भी अखबार में मार्केटिंग से नीति निर्धारण होता है और संपादकीय विभाग का कोई वजूद नहीं है तो आटोमेशन का कुल रिजल्ट पेड न्यूज है,मीडिया भोंपू है।

हर सेक्टर में मैनेजमेंट श्रम कानून और वेतनमान के झंझट से बचने के लिए आधुनिकीकरण  के नाम पर कंप्यूटर और रोबोट से काम चलाने के लिए आटोमेशन का विकल्प आजमाने लगा है और इसपर सरकारी या राजनीतिक कोई अंकुश नहीं है और न इसके खिलाफ कोई ट्रेड यूनियन आंदोलन है।

जाहिर है कि सबसे मुश्किल यह है कि हमारी अब कोई उत्पादन प्रणाली नहीं है और न हमारी कोई अर्थव्यवस्था है।

कहने को तो शेयरबाजारी एक बाटमलैस ट्रिलियन डालर अर्थव्यवस्था है,जो सीधे तौर पर अमेरिकी डालर से नत्थी है यानी खुल्लमखुल्ला अमेरिकी उपनिवेश है।

परंपरागत कृषि आधारित उत्पादन प्रणाली सिरे से खत्म है और ब्रिटिश उपनिवेश के दौरान जो पूंजीवादी उत्पादन प्रणाली बनी थी औद्योगीकरण की वजह से, उसे भी मुक्तबाजार ने खत्म कर दिया है।

अब चुनावों में खैरात बांटकर नागरिकों को भिखारी मानकर नोटवर्षा करके जीत हासिल करने का लोकतंत्र है।विकास का मतलब है उपभोक्ता बाजार का विस्तार,सीधे तौर पर अंधाधुंध शहरीकरण और शहरीकरण के तहत उपभोग के चकाचौंध करने वाले बाजार के हित में सुपर एक्सप्रेस वे, हाईवे, मेट्रो, फ्लाईओवर, माल, मल्टीप्लेक्स, लक्जरी हाउसिंग,हेल्थ हब का विकास और यह सब कल कारखानों और देहात के श्मशानघाट या कब्रिस्तान पर गजब के शोर शराबे के साथ हो रहा है।जिसके तहत जल जंगल जमीन नागरिकता और मानवाधिकार,बहुलता,विविधता,लोकतंत्र विरोधी यह दस दिगंतव्यापी कयामती फिजां है और सारा देश गैस चैंबर में तब्दील है।

आर्थिक सुधारों से पहले वामपंथी मशीनीकरण और कंप्यूटर का विरोध कर रहे थे।लेकिन बाद में वामपंथी भी चुप हो गये।वे भी पूंजीवादी विकास की अंधी दौड़ में शामिल हो गये और पिछले 26 साल से वे लगातार हाशिये पर जाते हुए भी खुश हैं और जनता के बीच खड़े होने से मुंह चुरा रहे हैं।

नतीजतन अब हालत यह है कि रोजगार का एकमात्र साधन कंप्यूटर है।

पिछले छब्बीस साल से कंप्यूटर यानी आईटी की आटोमेशन की कृत्तिम मेधा ही इस देश में रोजगार की धुरी है।मानवीय मेधा और मनुष्यता तेल लाने गयी हैं।

हावर्ड बनाम हार्डवर्क पहेली का हल यही है कि उच्च शिक्षा,शोध और विश्वविद्यालय गैरजरुरी है क्योंकि तकनीक जानना ही आजीविका के लिए पर्याप्त है। पहले विदेशों में डाक्टर इंजीनियर जाते थे और अब दुनियाभर में आईटी सेक्टर से भारतीय मूल के लोग खा कमा रहे हैं।इसीलिए सत्ता वर्ग के निशाने पर हैं तमाम विश्वविद्यालय और उनके छात्र और शिक्षक।असहिष्णुता का यह रसायन है।जो मनुस्मृति का डीएनए भी है और संक्रामक महामारी भी है।

मशीन और कंप्यूटर ने विकसित दुनिया के लिए भारत की श्रम मंडी से औपनिवेशिक भारत के कच्चा माल की तरह सस्ता दक्ष श्रमिकों का निर्यात उसीतरह शुरु किया जिस तरह उन्नीसवीं दी तक एशिया और अप्रीका से गुलामों का निर्यात होता था। फर्क यह है कि गुलामों के कोई हक हकूक नहीं थे और अब दुनियाभर में हमारे दक्ष श्रमिक बेहद सस्ते मूल्य पर श्रम के बदले यूरोप अमेरिका और आस्ट्रेलिया से लेकर लातिन अमेरिका और अफ्रीका में भी भारत की तुलना में बेहतर जीवनशैली में जीते हैं।

हमारे यहां हुआ हो या न हुआ हो, उन बेहतर विकसित देशों में तेज एकाधिकारवादी पूंजी के विकास में आम जनता के लिए रोजगार के मौके खत्म हो गये। मसलन इंग्लैंड में जीवन के किसी भी क्षेत्र में सौ साल पहले भी पूरी दुनिया पर राज कर रहे अंग्रेजों का वर्चस्व नहीं है।

इसीतरह अमेरिका में गरीबी और बेरोजगारी बढ़ी है क्योंकि एशियाई लोगों को नौकरी देकर कंपनियां इतना ज्यादा मुनाफा दुनियाभर में कमाने लगी है कि उन्हें अमेरिकी नागरिकों को रोजगार देना घाटे का सौदा है।

इसी का नतीजा धुर दक्षिणपंथी राष्ट्रवादी नस्ली डान डोनाल्ड ट्रंप की ताजपोशी है और अश्वेतों केखिलाफ श्वेत जनता की घृणा है।

अब फ्रांस में भी वही होने जा रहा है तो ब्रेकसिट से बाहर आने के लिए ब्रिटिश जनादेश का मतलब भी गैर अंग्रेज नस्लों के ब्रिटेन से सफाये का कार्यक्रम है।

स्थानीय रोजगार अब दुनियाभर में कहीं नहीं है,मशीनीकरण के बाद कंप्यूटर और कंप्यूटर के बाद रोबोट आधारित मुक्तबाजार के अर्थव्यवस्था में। इसलिए भूमिपुत्रों के हकहकूक की मांगों, उनकी गरीबी और बेरोजगारी के बढ़ते संकट की वजह से देश के बाहर किसी भी देश में नौकरी और आजीविका के लिए गये भारतीय मूल के लोगों के लिए यह भयानक दुस्समय है।

स्थानीय रोजगार के अलावा इस समस्या का समाधान नहीं है लेकिन बारत में सरकारे रोजगार सृजन के बदले रोजगार और आजीविका कारपोरेट एकाधिकार हित में अपनी जेबें गरम करने के लिए खत्म करने पर आमादा है।  

अमेरिकी ही नहीं,बाकी दुनिया में भी ये हमले बढ़ते जायेंगे क्योंकि उत्पादन संबंधों के अत्यंत शत्रुतापूर्ण हो जाने से दुनियाभर में अंध राष्ट्रवाद का तूफां चल रहा है जो हमारी अपनी केसरिया सुनामी से भी ज्यादा प्रलयंकर है। यह संकट गहराते जाना है।रोजगार सृजन के नये विकल्पों पर तेजी से काम करने के अलावा और कृषि संकट को सुलझाने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं है,सरकारे ऐसा चाहती नहीं हैं।

इस विचित्र संकट का सबसे खतरनाक पहलू यह है कि शिक्षा के बाजारीकरण हो जाने से स्नातक स्नातकोत्तर की पढ़ाई की जगह तकनीकी पढ़ाई सर्वोच्च प्राथमिकता हो गयी है क्योंकि उत्पादन के बजाय आईटी आधार निराधार सेवाओं में ही रोजगार और आजीविका हैं।

अब इसमें सत्यानाश यह है कि यह सारी सेवा तकनीक आधारित रोजगार आउटसोर्सिंग पर निर्भर है।जो अमेरिका के नाभिनाल से जुडा़ है।

अमेरिका से हमलों के अलावा तीन बड़ी खतरनाक खबरें आ रही हैं।

पहली रोजगार के लिए वीजा में सख्ती,रोजगार के लिए अमेरिका गये व्यक्ति के पति या पत्नी या आश्रितों के वीजा खत्म और आउटसोर्सिंग सिरे से खत्म की तैयारी है।

आउटसोर्सिंग खत्म करने के बाद सिर्फ तकनीक से लैस 1991 के बाद की पीढ़ियों के रोजगार और आजीविका का क्या होना है,संकट यह अमेरिका और बाकी दुनिया में भारतीय मूल के लोगों पर हमलों से भी बड़ा संकट है।

एच-1बी, एच-4 वीसा और आउटसोर्सिंग के साथ कंप्यूटर की जगह रोबोट के विकल्प अपनाने की तैयारी और दुनियाभर में ट्रंप सुनामी के मद्देनजर आईटी सेक्टर में रोजगार की एक तस्वीर इस प्रकार हैः

  • 2015-16 में आईटी सेक्टर में 2.75 लाख कर्मचारी नियुक्त किये जाने थे,वास्तव में सिर्फ दो लाख नई नियुक्तियां हो सकीं।

  • 2016-17 में नियुक्तियां और घटेंगी।

  • 2021 तक 6.4 लाख नौकरियां खत्म होंगी।

  • अगले चार सालों में आईटी सेक्टर में 69 प्रतिशत नौकरियां खत्म होगीं।

  • आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी रोबोट ने पिछले साल इनफोसिस और विप्रो में सात हजार कर्मचारियों के बदले काम किया है।

  • 2016 में टीसीएस,विप्रो,इनफोसिस और एचसीएल में 12 प्रतिशत नियुक्तियां कम हुई हैं।

सौजन्य सूत्रःहर्सेज फार सोर्सेज और विश्व बैंक

वीकिपीडिया के मुताबिकः

Artificial intelligence (AI) is intelligence exhibited by machines. In computer science, the field of AI research defines itself as the study of "intelligent agents": any device that perceives its environment and takes actions that maximize its chance of success at some goal.[1] Colloquially, the term "artificial intelligence" is applied when a machine mimics "cognitive" functions that humans associate with other human minds, such as "learning" and "problem solving" (known as Machine Learning).[2] As machines become increasingly capable, mental facilities once thought to require intelligence are removed from the definition. For example, optical character recognition is no longer perceived as an exemplar of "artificial intelligence", having become a routine technology.[3] Capabilities currently classified as AI include successfully understanding human speech,[4] competing at a high level in strategic game systems (such as Chess and Go[5]), self-driving cars, intelligent routing in content delivery networks, and interpreting complex data.

गौरतलब है कि इंफोसिस के CEO विशाल सिक्का ने एक इंटरव्यू में जिक्र किया है कि IT कंपनी हर साल कंसलटेंट्स के लिए करोड़ों डॉलर खर्च करती है। और कंसलटेंट्स के निशाने पर मिड लेवल कर्मचारी ही होते हैं। हर कंसलटेंट्स को लगता है कि मिड लेवल ही कंपनी पर सबसे बड़ा बोझ है। क्योंकि इनकी तादाद सबसे ज्यादा होती है और इनमें इनोवेशन की कमी होती है। ये बदलने के बजाए ठहर जाते हैं।

विशाल सिक्का ने भी इस बात को माना कि मिड लेवल का बाहरी दुनिया और क्लाइंट से संपर्क नहीं होता है। अपर लेवल के कर्मचारी बाहरी दुनिया में क्या कुछ हो रहा है उससे बेहतर वाकिफ होते हैं। साथ ही वे इस बात को भी बखूबी समझते हैं कि अगर मैनेजमेंट ने कोई फैसला लिया है तो इसका क्या मकसद है इसलिए अगर वे खुद में कोई कमी पाते हैं तो खुद को अपडेट करते हैं। लेकिन भारत में मिड लेवल के कर्मचारी बेहतर मैनेजर होते हैं। इंडस्ट्री भी उनसे उम्मीद करता है कि जो कुछ उन्हें मिल रहा है वे उसी से कंपनी के लिए बेहतर काम करें। या फिर यू कहें कि सबकुछ मैनेज कर के चलें।  यहां का मिड लेवल डिलीवरी पर ज्यादा फोकस्ड रहता है ना कि इनोवेशन पर।

मशहूर गांधीवादी कार्यकर्ता हिमांशु कुमार जी ने आज फेसबुक पर लिखा हैः

तो देशवासियों खबर यह है कि आपको नौकरी देने वाली कंपनियों के लिये आदिवासी इलाकों में ज़मीनें छीनने के लिये हमारे सैनिक लगातार आदिवासियों की हत्या और औरतों से बलात्कार कर रहे हैं,

ग्रामीण रोज़गार योजना में मज़दूरों की मजदूरी 6 महीने में भी नहीं मिल रही है,

भाजपा सरकार नें नौजवानों को हर साल 2 करोड़ रोज़गार देने का वादा किया था,

लेकिन ढाई साल में सिर्फ पौने दो लाख लोगों को रोज़गार मिला,

राशन दुकान में मशीन पर उंगालियों के निशान लेकर गरीबों को अनाज दिये जाने का हुक्म दिया गया है,

लेकिन मज़दूरो की और बूढ़ों की उंगलियां घिस जाती हैं और लकीरें मिट जाती हैं,

लाखों गरीब बिना राशन भूखे सो रहे हैं,

लेकिन यह सब इस मुल्क के मुद्दे नहीं हैं,

आपको बताया जा रहा है कि आप लखनऊ में मार डाले गये एक मुसलमान नौजवान के खौफ में कुछ दिन भारतीय मुसल  मानों को गालियां देते हुए गुजारिये,

इस बीच अंबानी अडानी की ज़मीनें कुछ हज़ार एकड़ और बढ़ जायेगी,

कुछ लाख भारतीय किसानों को बेज़मीन बनाकर ज़्यादा गरीब बना दिया जायेगा,

उनकी ज़मीन मोदी के आकाओं को देकर उन्हें ज़्यादा अमीर बना दिया जायेगा,

इस बीच कुछ गरीब सिपाही मरेंगे कुछ गरीब आदिवासी मर जायेंगे,

आप आतंकवाद की फर्जी सनसनी में डूबे रहिये,

खेल एकदम सटीक चालू है,


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