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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Monday, April 1, 2013

मीडिया में दलितों के साथ दलित समस्याएं भी अनुपस्थित संजय कुमार की पुस्तक ‘मीडिया में दलित ढूंढते रह जाओगे’ का लोकार्पण

मीडिया में दलितों के साथ दलित समस्याएं भी अनुपस्थित

संजय कुमार की पुस्तक 'मीडिया में दलित ढूंढते रह जाओगे' का 

लोकार्पण


15 hours ago 

मीडिया में दलितों के साथ दलित समस्याएं भी अनुपस्थित
संजय कुमार की पुस्तक 'मीडिया में दलित ढूंढते रह जाओगे' का लोकार्पण

लखनऊ, 31 मार्च। मीडिया में दलितों के साथ दलित समस्याएं भी अनुपस्थित है। साथ ही वे अगर मीडिया में आ भी जाये तो करेंगे क्या? एक बड़ा सवाल मौजूद है, जिस पर समग्र रूप से विचार करने की जरूरत है। मुख्य धारा की मीडिया को जनतांत्रिक कैसे बनाया जाये इस पर भी विमर्श की आवश्यकता है। आज यू. पी पे्रस क्लब लखनउ में लेखक व पत्रकार संजय कुमार की किताब 'मीडिया में दलित ढूंढते रह जाओगे' के लोकार्पण के बाद वक्ताओं ने परिसंवाद में यह बातें कही। पुस्तक का लोकार्पण संयुक्त रूप से मानवाधिकार कार्यकर्ता व दलित चिंतक एस आर दारापुरी, जाने माने आलोचक वीरेन्द्र यादव, प्रगतिशील महिला एसोसिएशन की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष ताहिरा हसन, दलित चिंतक अरूण खोटे और जसम के संयोजक कौशल किशोर ने किया। 
प्रिसंवाद के दौरान जाने माने आलोचक वीरेन्द्र यादव ने कहा कि मीडिया में मुकम्मल भारत की तस्वीर नही हैं, गांव नहीं है, हाशिये का समाज नहीं है। मीडिया में दलितों के साथ दलित समस्याएं भी अनुपस्थित है। आज समाज को समग्र नजरिये से देखने की जरूरत है। उपस्थिति के साथ, दलित समाज के आलोचना की जरूरत के लिए भी मीडिया में दलितों की आवश्यकता हैै। 
वहीं दलित चिंतक अरूण खोटे ने कहा कि इतिहास में जायंे तो दलित ही मीडिया के जनक रहे है। इसके बावजूद शिक्षा और संसाधनों से वंचित यह वर्ग अब मीडिया से गायब हो गया है। आज बात सिर्फ मीडिय में दलितों के प्रतिनिधित्व नहीं है, बल्कि दलितों के मुद्दों के लिए क्या यहंा जगह है-सवाल यह भी है।
दलित चिंतक एस आर दारापुरी ने कहा कि दलितों के साथ अब भी भेदभाव बरकरार है। लेकिन यह सब मीडिया में खबर नहीं बनती है, क्योंकि मीडिया भी उसी द्विज वर्चस्व को बरकरार रखना चाहता है। उन्होंने कहा कि मीडिया में दलित नहीं है यह सच्चाई है तो सवाल यह है कि हम क्या करें। ऐसे में दलित मीडिया को आगे लाने की जरुरत है। दूसरी ओर महिला एसोसिएशन की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष ताहिरा हसन ने कहा कि राजनीति को समझते हुए दलितों और मुस्लमानों को एक साथ आगे आना होगा और लामबंद तरीके से लड़ाई लड़नी होगी। जसम के संयोजक कौशल किशोर ने कहा कि कहने को तो लोकतांत्रिक व्यवस्था है लेकिन समाजिक बराबरी आज भी दुर्लभ है। मीडिया को लोकतंत्र का चैथा खंभा कहा जाता है परन्तु इसकी बनावट जातिवादी तथा दलित विरोधी है। दलित मीडिया से जुड़ना तो चाहते हैं, लेकिन उन्हें जान-बूझकर इससे दूर रखा जाता है। यदि कोई प्रतिभाशाली और योग्य दलित मीडिया में प्रवेश भी पा लेता है तो उसे शीर्ष तक पहुंचने नहीं दिया जाता, बल्कि उसे बाहर का रास्ता दिखाने के लगातार उपाय ढंूढ़े जाते हैं। 
पुस्तक के लेखक और आकाशवाणी पटना के समाचार संपादक संजय कुमार ने कहा कि मीडिया को लोकतंत्र का चैथा खंभा कहा जाता है परन्तु इसकी बनावट जातिवादी तथा दलित विरोधी है। दलित मीडिया से जुड़ना तो चाहते हैं, लेकिन उन्हें जान-बूझकर इससे दूर रखा जाता है। यदि कोई प्रतिभाशाली और योग्य दलित मीडिया में प्रवेश भी पा लेता है तो उसे शीर्ष तक पहुंचने नहीं दिया जाता, बल्कि उसे बाहर का रास्ता दिखाने के लगातार उपाय ढंूढ़े जाते हैं। उन्होंने राष्ट्रीय मीडिया के सर्वे का हवाला देते हुए कहा कि मीडिया में दलित ढूंढते रह जायगे। सर्वे के अनुसार कुल जनसंख्या में 8 प्रतिशत वाली ऊँची जातियों का मीडिया हाऊस में 71 प्रतिशत शीर्ष पदों पर कब्जा है। इनमें 49 प्रतिशत ब्राह्मण, 14 प्रतिशत कायस्थ, वैश्य और राजपूत 7-7 प्रतिशत, खत्री-9, गैर द्विज उच्च जाति-2 और अन्य पिछड़ी जाति 4 प्रतिशत हैं। इनमें दलित कहीं नहीं दिखते। श्री कुमार ने कहा कि राजनैतिक रूप से जागरूक बिहार की राजधानी पटना के मीडिया घरानों में काम करने वालों के भी सर्वे है। सर्वे के मुताकिब बिहार के मीडिया में सवर्णों का 87 प्रतिशत कब्जा है। इनमें ब्राह्मण 34, राजपूत-23, भूमिहार-14 और कायस्थ-16 प्रतिशत है। शेष 13 प्रतिशत में पिछड़ी जाति, अति पिछड़ी जातियों, मुसलमानों और दलितों की हिस्सेदारी है। इनमें सबसे कम लगभग 01 प्रतिशत दलित पत्रकार ही बिहार की मीडिया से जुड़े हैं। सरकारी मीडिया में लगभग 12 प्रतिशत दलित है। जसम की ओर से आयोजित इस कार्यक्रम में नाटककार राजेश कुमार, अलग दुनिया के के.के.वत्स, कवि आलोचक चंद्रेश्वर सहित कई चर्चित पत्रकार-साहित्यकार उपस्थित थे। 
विषय पर परिसंवाद का आयोजन जन संस्कृति मंच ने यू0 पी0 प्रेस क्लब में किया गया।
कार्यक्रम का संचालन जसम के संयोजक कौशल किशोर किया।


कौशल किशोर
संयोजक
जन संस्कृति मंच, लखनऊ
मो - 8400208031, 9807519227
 — with Kaushal Kishor,Tahira HasanYogesh NafriaMediamorcha E-patrika MediamorchaJayprakash ManasDalit Mat and Musafir D. Baitha.
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