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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Saturday, November 29, 2014

3 december public meeting in Bhatti mines, delhi and 15 dec in Jantar Manta on forest rights,3 दिसम्बर 2014 को अपने अधिकारों के लिए एकजुट हो - भाटी माईन्स संजय गांधी पार्क, NEW DELHI 15 दिसम्बर 2014 को जंतर मंतर चलो

Dear friends, 
Pl find the handbill in hindi on the public meeting in Bhatti mines, Bhagirath nagar, chattarpur new delhi on 3rd Dec and on 15dec in Jantar Mantar, New delhi. Pl join in large numbers. The village has been notified under wild life sanctuary and they are now faced with eviction notice by the authorities. The Od tribal nomadic community especially women of this village have come together to strongly oppose the eviction and demanding their constitutional and democratic rights and also to implement the Forest Rights Act 2006.
 
Inqalab Zindabad !! 
 




इन्कलाब जिन्दाबाद                    महिला एकता जिन्दाबाद                     मज़दूर एकता जिन्दाबाद  

जो ज़मीन सरकारी है वो ज़मीन हमारी है, जल-जंगल और ज़मीन ये हों जनता के अधीन 

3 दिसम्बर 2014 को अपने अधिकारों के लिए एकजुट हो - भाटी माईन्स संजय गांधी पार्क, NEW DELHI
15 दिसम्बर 2014 को जंतर मंतर चलो
मज़दूर बहनो व भाईयो!
हम सब ग्राम भागीरथ नगर के बाशिंदे ओड़ घुमन्तु जनजाति की मज़दूर महिलाएं एवं गांव के प्रतिनिधि वरिष्ठ जन, आज अपने वंचित संवैधानिक अधिकारों को पाने के लिए एकजुट हो रहे हंै। हमारा गांव भागीरथ नगर पिछले 50 साल से भाटी राजस्व गांव की ग्राम सभा भूमि पर बसा हुआ है। हमारे ओड़ समाज के पांच हज़ार परिवारों ने 1965 से लेकर 30 साल तक भाटी माईन्स की विशाल और खतरनाक खदानों में कड़ा परिश्रम किया है। अनगिनत मज़दूर खनन दुर्घनाओं में मारे गए हैं। सन् 1975 में खदानों की मिल्कियत भ्रष्ट सरकारी कम्पनी क्ब्प्क्ब्ध्क्ैडक्ब् को सौंपी गई थी, लेकिन श्रम कानूनों का उलंघन और श्रमिक अधिकारों का हनन ज़ारी रहा। सरकार की तरफ से भाटी माईन्स लेबर कालोनी के नाम पर हमारे गांव को राशन की दुकान, बिजली, सड़क, प्राथमिक व माध्यमिक स्कूल, अस्पताल आदि सुविधाए मुहैया कराई गईं। सन् 1990 में जब भाटी खानंे अचानक बंद कर दी गईं, तब हम लोगों को हमारी किस्मत पर बेसहारा छोड़ दिया गया। न मुवाअज़ा मिला और न वैकिल्पक रोज़गार। हमें रोज़ी-रोटी की तलाश में दूर दूर तक भटकने को मजबूर किया गया। पर हमने अपने आशियाने को नहीं छोड़ा जहां हमारी पहचान सांस्कृतिक धरोहर मौज़ूद है। इतने में 1991 में आम चुनाव के मौके पर दिल्ली के शासक वर्ग ने क्ैडक्ब् के भ्रष्टाचारी अफसरों को कानूनी जांच से बचाने के लिए इस पूरे क्षेत्र को सेंचुरी घोषित कर वनविभाग को गैरकानूनी व असंवैधानिक तरीके से सौंप दिया व रातांेरात हमंे अतिक्रमणकारी बना दिया गया और 1996 में बिना हमारी जानकारी के हमारे गांव को यहां से बेदखल करने के लिए सुप्रीम कोर्ट से आदेश पारित कराया। हमारी पुरानी बसी आबादी को झुग्गी झोपड़ी कहकर अपमान जनक धब्बा दिया और गांव के विकास पर रोक लगा दी। आज सरकारी लेखे जोखे में भागीरथ नगर गांव का वजूद ही नहीं है, इस जगह संजय कालोनी जे0जे का उल्लेख है जिस का दर्जा एम अवैध शहरी स्लम का है। वे हमें यहां से बेदख़ल करने पर तुले हुए हैं।    
 इस बार दोबारा चुनाव की घोषणा होने से पहले ही पार्टियां, नेता, माफिया व दलाल सक्रिय हो कर घूमने लगे हैं व हमारे वोट का सौदा करने को तैयार बैठे हैं। इस चुनाव में आइए हम सभी मिल कर यह तय करें कि हम किसी भी पार्टी या दलाल के कहने पर अपना वोट नहीं बेचेंगे व अपने हक़ व मुददों पर जो उम्मीदवार काम करेगा या पार्टी काम करेगी, हम उनको एकजुट हो कर अपना मत दंेगे। हमारे बहुत सारे मुददे हैं, जिनके ऊपर हमें ध्यान देना है। सबसे पहला विरोध हमें वनविभाग व सरकार द्वारा दिए गए हमें विस्थापित करने के नोटिस पर देना है व हमें सन् 2006 में संसद में पारित ''वनाधिकार कानून'' के तहत सम्मानजनक बसाए जाने की मांग करनी है। हमारे पंचायत गठन करने या फिर वार्ड पंचायत गठन करने के अधिकार को भी समाप्त कर दिया गया व सेंचुरी भी वनकानून की परिभाषा के अनुरूप गठित नहीं की गई, न ही इसमे वन है और न ही वन्य जन्तु। वन के नाम पर केवल कीकर के पेड़ हैं और वन्य जन्तु के नाम पर केवल बंदर, ये दोनों ही पर्यावरण के दुश्मन हंै। वनविभाग द्वारा करोड़ों का बजट इस सेंचुरी में बंदरों को खाना खिलाने व कीकर जैसे दूषित पेड़ों को बचाने में खर्च किया जा रहा है व उल्टे वनविभाग द्वारा यहां के आदिवासी घुमन्तु जाति के बच्चों व महिलाओं के ऊपर बंदरों का खाना चुराने का आरोप लगा कर उन्हें चोर बनाया जा रहा है। इसलिए आइए हम सब यह संकल्प लें कि हम अपने भागीरथ नगर को एक आर्दश नगर बनाएंगे। इसे शोषण, अन्याय, भुखमरी, गरीबी और जातिगत हिंसा से मुक्त कराएंगे। इस संकल्प को लेने के लिए आप लोग ज्यादा से ज्यादा संख्या में 3 दिसम्बर 2014, बुधवार को संजय गांधी पार्क पर एकत्रित हों व 15 दिसम्बर 2014 को जंतर मंतर पर देश भर से आए मेहनतकश वर्ग के हज़ारों संगठनों के साथ शामिल हो कर अपने संघर्ष को आगे बढ़ाने का काम करें। 3 दिसम्बर के सम्मेलन में हमारे संगठन के अ0भ0वनश्रमजीवी यूनियन व न्यू टेªड यूनियन इनिशिएटिव के कई वरिष्ठ साथी भाग लेंगे ।

हमारी मांगें 

पहले एक हाथ से विकास दो और फिर दूसरे हाथ से वोट लो
1. भागीरथ नगर भाटी माईन्स को सन् 2006 में संसद में पारित वनाधिकार कानून के तहत बसाया जाए। इस कानून के तहत संरक्षित वनक्षेत्र में रहने वाले घुमन्तु जनजातीय समुदाय को वनाधिकार के साथ-साथ इस कानून की धारा 3 की उपधारा 2 के तहत 13 तरह के विकास के अधिकार प्रदान किए गए हैं। 
2. ओड़ घुमन्तु जनजाति समुदाय को पूरे देश में घुमन्तु जनजाति समूह का दर्जा दिया जाए। 
3. वनाधिकार कानून-2006 भाटी माईनस में रहने वाले ओड़ समुदाय के घुमन्तु जनजातीय समुदाय पर पूर्ण रूप से लागू होता है, चूंकि इस समुदाय को सरकार द्वारा ही खदानों में काम करने के लिए बसाया गया था व बाद में 80 के दशक में स्वयं सरकार द्वारा ही इस पूरे क्षेत्र को असोला सेंचुरी घोषित कर दिया गया। जिसमें भागीरथ नगर के तमाम संवैधानिक बुनियादी अधिकारों को समाप्त कर दिया गया व ग्राम सभा से भी बाहर कर दिया गया। देश के संविधान व वनाधिकार कानून के तहत यहां के अधिकारों को बहाल किया जाए। 
4. इस कानून की धारा 2 की उपधारा छः में यह स्पष्ट रूप से अंकित किया गया है कि किसी भी वनक्षेत्र में अगर ग्राम पंचायत व ग्राम सभा नहीं है, तो वह अपनी ग्राम सभा गठित कर सकते हैं तथा इसी कानून की धारा 3 की उपधारा ज में यह अंकित किया गया है कि ऐसे गांव वनग्राम की श्रेणी में आते हैं व इन गांवों को राजस्व ग्राम घोषित कर तमाम विकास के कार्यक्रमों को लागू किया जाए। 
5. भागीरथ नगर के गरीब व वंचित ओड़ घुमन्तु समुदाय को इस कानून की धारा 3 की उपधारा घ में स्पष्ट प्रावधान है कि यायावर समुदायों की मछली और जलाशयों के अन्य उत्पाद, चरागाह के उपयोग या उनके हकदारी ओर पारम्परिक मौसमी संसाधनों तक, जैसे; सभी वनोपज जलौनी लकड़ी, शहद, घास-फूस, तालाबों व मछली मारने पर अधिकार प्रदान किए जाएं। 
6. इसी कानून की धारा 4 की उपधारा 2 के तहत सेंचुरी के अंदर क्रिटिकल वाईल्ड लाइफ हेबिटेट के कार्यक्रम के तहत वन्य जन्तुओं के संरक्षण व वनों के संरक्षण के लिए स्थानीय समुदाय के साथ मिल कर योजना बनाने के प्रावधान हैं, लेकिन उल्टे वनविभाग यहां के समुदाय को अतिक्रमणकारी कह कर चोर बनाने पर अमादा है। 
7. इस कानून की धारा 3 की उपधारा 2 के तहत सभी विकास के अधिकार, संविधान के अनु0 21 में दिए गए ''जीने के अधिकार'' के मौलिक अधिकार के तहत व पंचायत की संशोधित अधिनियम के तहत इस गांव में जल्द से जल्द बुनियादी स्वास्थ के लिए 25 बेड की सुविधा वाला अस्पताल, प्राथमिक व उच्च माध्यमिक विद्यालयों, पीने के पानी की समुचित व्यवस्था, सभी सड़कों का निर्माण, आंगनवाड़ी, सामुदायिक केन्द्र, जल एवं विद्युत योजनाएं, महिला पंचायत, बंदर व वन्य जन्तुओं के द्वारा घायल हो जाने की अवस्था में मुफ्त उपचार व मुआवज़ा भागीरथ नगर मंे ही देने के प्रावधान भी जल्द लागू किए जाएं। 
8. भाटी माईन्स में भ्रष्ट खदान कम्पनियों द्वारा श्रमिकों का वेलफेयर फंड जो कि करोड़ों में है, उसे वापिस किया जाए व यहां के श्रमिकों के विकास पर उसे खर्च किया जाए। 
9. क्ैप्क्ब्ध्क्ैडक्ब् द्वारा अभी तक श्रमिकों को कम्पनी द्वारा लेखा-जोखा नहीं दिया गया व यह कम्पनी भगोड़ी है, जिसके द्वारा श्रमिकों की बकाया मज़दूरी का अभी तक भुगतान नहीं किया गया, इसे जल्द दिलवाया जाए। 
10. प्राकृतिक सम्पदाओं के ऊपर वनविभाग एवं सरकारी नियंत्रण के बदले सामुदायिक मालिकाना हक़ एवं स्वशासन कायम किया जाए व वनविभाग को वनों एवं वनभूमि से बेदख़ल किया जाए। 
11. महिला श्रमिकों के लिए खास तौर पर महिला श्रम योजनाए चालू की जाए, महिला हिंसा से निपटने के लिए व्यापक स्थानीय स्तर पर ठोस कदम उठाए जाए, भाटी माईन्स में महिला थाना को स्थापित किया जाए। 
12. ज़मीन एवं प्राकृतिक सम्पदाओं पर महिलाओं का अधिकार। असोला सेंचुरी के अंदर पैदा हो रही तमाम लघुवनोपज पर वनाधिकार कानून 2006 की संशोधित नियमावली 2012 के अनुसार सहकारी समितियों का गठन कर लघुवनोपज का मालिकाना हक़ समुदाय को सौंपा जाए। 
13. उद्योगों में ठेका-मज़दूरी प्रथा को समाप्त किया जाए और नियमित किया जाए । समस्त श्रमजीवियों के लिये सामाजिक सुरक्षा योजना पूर्णतया लागू की जाए, सम्मान पूर्वक वृद्धा पेंशन योजना, महिलाओं के लिए मातृत्व लाभ व अन्य योजनाओं को लागू किया जाए। सभी श्रमिकों के लिए सम्मान से जीने लायक वेतन सुनिश्चित किया जाए। 
14. इस गांव में ओड समुदाय व वंचित तबकों के ऊपर ज़ारी जातिगत हिंसा को समाप्त किया जाए। 
15. महिला श्रमिकों के लिए सम्मानजनक रोजगार का सृजन किया जाए। 
16. भागीरथ नगर में प्राथमिक एवं उच्च माध्यमिक स्कूलों में अध्यापकों की रिक्त स्थानों की पूर्ति की जाए, स्कूलों में सफाई रखी जाए, प्राथमिक स्कूल में बच्चों के लिए शौचालय बनाए जाए व पानी की व्यवस्था की जाए, वनविभाग द्वारा उच्च माध्यमिक स्कूल के निर्माण पर जो रोक लगाई गई है उसे चालू किया जाए व 12वीं से लेकर उच्च शिक्षा मुफ्त उपलब्ध करना, जिसमें फीस के साथ किताबें व अन्य व्यवस्थाएं भी शामिल हों। 
17. जंगली जानवरों व बंदरों द्वारा स्थानीय ग्रामीणों पर आक्रमण पर रोक लगाई जाए व बंदरों के उत्पात पर नियंत्रण किया जाए। बंदरों के घायल करने, हमला करने पर प्राथमिक उपचार वनविभाग द्वारा मुहैया कराया जाए व घायल को वनविभाग व सरकार द्वारा मुआवजा दिया जाए। 
18. संगठित क्षेत्र के लिए सातवें वेतन आयोग की तरह श्रमिक वर्ग के लिए अलग वेतन आयोग का गठन किया जाए।
19. सभी खदानों का राष्ट्रीयकरण किया जाए व इन संसाधनों को लोकतांत्रिक मूल्य पर आधारित जांच के  दायरे में रखा जाए। कारपोरेट घरानों के प्राकृतिक संसाधनों के एकाधिकार को समाप्त किया जाए । 

भागीरथ नगर महिला संगठन, अखिल भारतीय वन-जन श्रमजीवी यूनियन AIUFWP, न्यू टेªड यूनियन इनिशिएटिव NTUI
सम्पर्क 8377922402, 9711684176,9811360937 भागीरथ नगर, संजय कालोनी, भाटी माईनस, नई दिल्ली 
बी-137, दयानंद कालोनी, लाजपत नगर फेस -4, नई दिल्ली 110024
Establish Constitutional Rights of Forest Dwelling Working People !
                  Long Live the Victory of Historic Struggles of Forest People 

On the occasion of 8th year of Forest Rights Act,2006 passed in our Parliament 

Thousands of struggling forest people, in asserting their rights are coming together to challenge the Govt for effective implementation of the Act and to safeguard all Constitutional rights of the forest people
                             on 15th December 2014
                               at Jantar mantar, 11am to 4pm 

       Many people's organizations participating in this mass protest.

 Please join in large numbers.

 Demands
  • Implement the Forest Rights Act 2006 effectively with political will across the country. The forest rights and the developmental rights of the forest people should be addressed immediately.
  • The community rights of the forest people should be granted immediately according to the Forest right Act 
  • The rights on Non Timber Forest Produce (NTFP) to be given to the forest people and formation of the cooperatives of the forest people should start immediately as per the September 2012 amendment of the Rules of the FRA. The control of Forest Department and Forest Corporation on the NTFP worth of millions of rupees should be abolished completely to bring out forest people from abject poverty. 
  • The Provision of 75 years for other forest dwellers is Unconstitutional and should  be amended. 
  •  The Forest Department and Forest Corporation  responsible for the historical injustice against the forest people since colonial days should be ousted from the forest region. 
  • The Indian Forest Act ( 1927) should be abolished, it is in contradiction with FRA and Indian Constitution Art. 39b. IFA 1927 was framed by British to colonize our forest to exploit the vast resources for establishing colonial  Eminent Domain. It is also in contravention with Art no. 13 of Part I of fundamental rights section of Indian Constitution that says that "All laws in force in the territory of India immediately before the commencement of this Constitution, in so far as they are inconsistent with the provisions of this Part, shall, to the extent of such inconsistency, be void". IFA 1927 also violates Art no 39 B of the Indian Constitution. 
 
  • Programmes should be initiated to empower forest women, their role, control and participation in all forest protection, conservation, management,procurement, development and livelihood needs to be enhanced. As women are more close to nature and for them nature is source of heritage and livelihood and not revenue earning source. 
 
  • All false criminal cases and forest cases filed by forest department and police on forest people especially adivasi/dalit/poor section/women should be immediately withdrawn to end their criminal history falsely built by the state. 
 
  • All the forest village/taungiya villages,as per the provision of Sec 3(h) in F.R.A should be converted into revenue village. The only state that has converted the forest village into revenue village is UP, village Surma, Golbojhi, Dudwa National Park, Distt Lakhimpur Khiri and various other villages. This example should be replicated in other states too. 
 
  • The multinational & Indian companies and especially mining and power companies violating the FRA should be booked under criminal Act and stringent punishment should be imparted for irreparable destruction to our environment. 
 
  • The Big dams, super power projects to corporates such as Jaypee, Birla, Reliance, Lanco, Adani, Mittal, Tata, Essar and others needs be scrutinized and the projects that are not environmentally viable should be cancelled and heavy penalties to be imposed on these companies and groups of companies.  
 
  • The PTG, nomadic tribes and other vulnerable groups in the forest area should be given special protection under FRA and their rights should be recognized cross districts and states. The process of recognition of their rights has not started till now that is a shame on the part of the government. 
 
  • Ensure labour rights and labor standards in the forest areas; ensure social security, Guarantee a Living Wage for All,Make non-payment of the Minimum Wage a Cognisable Offence,Ensure Equal Wage for Equal Work,Ensure Universal Health care and an Indexed Pension for All,Protect Livelihood Rights for all, Regularise All Contract Workers - Regularise All Honorarium Workers,Guarantee an allowance equaling half the minimum wage to all unemployed working people

     

 
  • The Indian Govt. should stop functioning as agent of corporate and should focus on the implementing the rights of the forest people as guaranteed by Indian Constitution, U.N. Human Right Charter and I.L.O Convention no.169 to safeguard the environment and democracy .
                 Long live the unity of forest people and all working people!
 
ALL INDIA UNION OF FOREST WORKING PEOPLE

-- 
Ms. Roma ( Adv)
Dy. Gen Sec, All India Union of Forest Working People(AIUFWP) /
Secretary, New Trade Union Initiative (NTUI)
Coordinator, Human Rights Law Center
c/o Sh. Vinod Kesari, Near Sarita Printing Press,
Tagore Nagar
Robertsganj, 
District Sonbhadra 231216
Uttar Pradesh
Tel : 91-9415233583, 
Email : romasnb@gmail.com
http://jansangarsh.blogspot.com

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