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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Wednesday, March 18, 2015

कालाधन ही अब इस देश की उत्पादन प्रणाली अमेरिकी अर्थव्यव्स्था से जुड़े मुक्तबाजार पर खतरे का अंदेशा पलाश विश्वास

कालाधन ही अब इस देश की उत्पादन प्रणाली

अमेरिकी अर्थव्यव्स्था से जुड़े मुक्तबाजार पर खतरे का अंदेशा

पलाश विश्वास


गौर करें कि देश के वित्तमंत्री अरुण जेटली  को राजनीति से शिकायत है कि वह देश के विकास के रास्ते पर अड़ंगे डाल रही है।


संसद में कई महत्वपूर्ण विधेयकों के अटके रहने के बीच सरकार ने आज विपक्ष से अपील की कि वह बाधाकारी भूमिका नहीं अपनाये क्योंकि देश को अपनी विकास दर को अगले वर्ष तक 8 प्रतिशत से अधिक ले जाकर चीन से आगे निकलने का ऐतिहासिक अवसर मिला है।


गौरतलब है कि लोकसभा में मंगलवार को आम बजट का पहला चरण पूरा हो गया। बजट पर चर्चा के बाद वर्ष 2015-16 के लिए लेखानुदान की मांगों, वर्ष 2014-15 की अनुदान की अनुपूरक मांगों और उससे संबंधित विनियोग विधेयकों को मंजूरी दे दी गई।


वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि मोदी सरकार का लक्ष्य देश की विकास दर को 7 से 8 प्रतिशत तक ले जाना है। अपने संसाधनों को सक्षम बनाने, गरीबी हटाने और सामाजिक सुरक्षा के उपायों में तेजी लाने के लिए धन की जरूरत होगी। धन तभी मिलेगा, जब देश की विकास दर में तेजी आएगी। बाधा न बने विपक्ष : वित्त मंत्री ने कहा कि विकास दर के मामले में हम चीन से आगे निकल गए …


जेटली ने कहा कि हमने अगले तीन वर्षों में राजकोषीय घाटे को 4.1 प्रतिशत से कम करके 3 प्रतिशत करने का लक्ष्य रखा है। कृषि क्षेत्र का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि सिंचाई समेत विभिन्न कृषिगत क्षेत्रों पर ध्यान दिया गया है ताकि कृषि क्षेत्र का विकास हो सके। अगर भारत को विकास करना है तब कृषि क्षेत्र का विकास जरूरी है। पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतों के बारे में विपक्ष के आरोपों पर उन्होंने कहा कि पिछले 10 महीने में पेट्रोल और डीजल की कीमतें 11 बार कम की गई। जबकि पूर्व में लागत से कम कीमत पर बेचने के कारण तेल विपणन कंपनियों को 30 हजार करोड़ रुपये नुकसान हुआ था।


नवउदारवाद की संतानों ने इस देश के साथ जो गद्दारी की ,उसकी कोई दूसरी मिसाल नहीं है।


अर्थशास्त्रियों और राजनेताओं ने कारपोरेट और वैशिविक पूंजी के हितों में देशज उत्पादन प्रणाली को सिरे से खत्म करके भारत को जो अमेरिकी उपनिवेश बना दिया ,वह लंबे संघर्षों के बाद हमारे पुरखों की हासिल आजादी और हमारी संप्रभूता का बेशर्म राष्ट्रद्रोही हस्तातंरण है ।


हमारी अर्थव्यवस्था इतनी निराधार है कि हम अमेरिका ले आने वाले वैश्विक इशारों से अपनी वित्तीय और मौद्रिक नीतियां तय करते हैं वह भी कारपोरेट और वैश्विक पूंजी और देशज कालाधन के हित में।कालाधन ही अब इस देश की उत्पादन प्रणाली है।


राष्ट्रद्रोही तत्वों ने मिथ्या राष्ट्रवाद की आड़ में बायोमैट्रिक डिजिटल रोबोटिक क्लोन नागरिकों को सही मायमे में आधार नंबर देकर निराधार बना दिया है।अब आधार लाकर भी होंगे।कहा जा रहा है कि इसमें तमाम तरह के निजी दस्तावेज स्कूली सर्टिफिकेट से लेकर पैन कार्ड,आधार कार्ड वगैरह वगैरह स्कैन कराकर अपलोड करा दें तो कहीं भी आटोमैटिकैली आपके कागजात का बिना उन्हें दिखाये सत्यापन हो जायेगा।यानी बायोमैट्रिक तथ्य के अलावा आप निदजी तमाम दस्तावेज वहां रखेंगे। डिजिटल देश बनाने की दिशा में यह अगला चरण है।


अब सबसे बड़ी खतरे की घंटी है कि वैश्विक मंदी का अब तक ,2008 की महामंदी में भी भारतीय अर्थव्यवस्था और भारतीय जनगण पर खास असर नहीं हुआ।सिर्फ अरसे तक शेयरों के भाव गिरते रहे।लेकिन अब वैश्विक इशारों का मतलब कयामत है।


दुनियाभर में पराधीन अर्तव्यवस्थाओं का हश्र हम देखते रहे हैं।हम शुरु से लगातार लिख रहे हैं कि डालर वर्चस्व और युद्ध,गृहयुद्ध,आतंक और धर्मोन्माद की अमेरिकी अर्थव्वस्था से भारतीय अर्थव्यवस्था को जोड़ना बेहद आत्मघाती साबित हो सकता है कभी भी।दुनिया के इतिहास भूगोल में भूकंप और सुनामी कभी भी कहीं भी संभव है और अमेरिका में भी संभव है।


दुनियाभर के देशों को तोड़ने वाला अमेरिका टूटेगा नहीं,इसकी कोई गारंटी दे नहीं सकता।डालर वर्चस्व टूटेगा नहीं,इसकी भी गारंटी दी नहीं जा सकती।


तो जैसे रुबल और मार्क टूटने पर इन मुद्राओं और अर्थव्यवस्थाओं का हाल हुआ है,जैसे समूचा यूरोप विकसित हो दाने के बाद उत्पादन प्रणाली से बेदखल होकर आर्थिक झंझावत से गुजर रहा है,उससे सबक नहीं लेते तो डालर वर्चस्व टूटने से उससे नत्थी हमारी अर्थव्यवस्था का क्या हाल होना है,यह अभी कहा नहीं जा सकता।जिसकी न कोई उत्पादन प्रणाली है और न जिसका कोई आधार है।




अब शेयर बाजार ही अर्थव्यवस्था है।इंफ्रा बूम बूम के इस दूसरे चरण के आर्थिक सुधारों के जमाने में भारतीय अर्थव्यवस्था का कोई बुनियादी आधार ही नही है।


भारतीय अर्थव्यवस्था  का मतलब फर्जी आंकड़े,फर्जी परिभाषा, सहूलियत के मुताबिक आधार वर्ष में बदलाव,कारपोरेट हितों में निरंतर टैक्स छूट और आम जनता का अर्थव्यवस्था से थोक निर्वासन,रोजगार,आजीविका,नागरिकता,जल जंगल जमीन और राष्ट्रीय संसाधनों से निरंकुश बेदखली,फर्जी बजट,फर्जी राजस्व और संसाधन प्रबंधन,अमेरिकी फेड बैंक का दबाव और अमेरिका नियंत्रित आर्थिक संस्थानों का रिमोट कंट्रोल,रेटिंग एजंसियों का निरंतर हस्तक्षेप,फर्जी विकास दर,फर्जी विकास,फर्जी इंक्लुजन और डाउ कैमिकल्स मनसैंटो हुकूमत है।


जिसका प्रबंधन कारपोरेट वकील के हाथों में है और मीडिया जिसे रंगीन कंडोम की तरह जनता के सामने भोग के कार्निवाल बतौर पेश कर रहा है।


उत्पादन के आंकड़े,मुद्रास्फीति दर और वित्तीय घाटा,व्यापार घाटा और भुगतान संतुलन के आंकडे भी कारपोरेट सुविधा के मुताबिक हैं।


बिना फासीवादी धर्मोन्मादी राष्ट्रवाद के उत्पादन प्रणाली और उत्पादक शक्तियों का सत्यानाश करके ,देशज कारोबार,कृषि और देशज उद्योग को बाट लगाकर अबाध पूंजी की यह अंधी दौड़ असंभव है और इसीलिए वैश्विक पूंजी ने भारत में एक हिटलर की ताजपोशी की है।


जो सिलसिलेवार अपनी नरसंहार दक्षता और विशेषज्ञता के साथ भारतीय अर्थव्यवस्था की बची हुई संजीवनी शक्ति को पारमाणविक रेडिएशन से खत्म करता जा रहा है।


इसे समझने की जरुरत है कि जैसे हम कहते रहे हैं कि जाति व्यवस्था,रंगभेदी नस्लवाद और मनुस्मृति शासन मुकम्मल एकाधिकारवादी वर्तस्ववादी अर्थव्यवस्था है जो बहुसंख्य जनता के बहिस्कार और एथनिक क्लीजिंग पर आधारित है,उसी तरह शत प्रतिशत हिंदुत्व और सन 2021 तक भारत को इस्लाममुक्त और ईसाई मुक्त करने की युद्धघोषमा और दस दिगंत व्यापी धर्मोन्माद भी कुल मिलाकर हिंदू साम्राज्यवादी अर्थव्यवस्था है,जो बिल्कुल अमेरिकी युद्धक अर्थव्यवस्था के हितो में हैं।


हम बिना समझें बतौर राष्ट्र वियतनाम बनते जा रहे हैं,लेकिन हम वियतनाम जैसा प्रतिरोध भी नहीं कर सकते।



अकूत तेलभंडार से समृद्ध अरब दुनिया,मध्यपूर्व और इस्लामी विश्व को जैसे अमेरिका ने तबाही के कगार पर पहुंचा दिया है,वहीं हाल ग्लोबल हिंदुत्व के प्रायोजन से भारतीय उपमहाद्वीप का होने वाला है।भारत के पड़ोसी देश भी भारत के साथ साथ इस महाविनाश के शिकार होंगे।


हालात कितने संगीन है,इसे ऐसे समझें कि  अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (आईएमएफ) की प्रमुख क्रिस्टीन लगार्ड ने भारत और अन्य उभरती अर्थव्यवस्थाओं को चेतावनी दी है। उन्होंने कहा है कि अगली बार जब अमेरिकी फेडरल रिजर्व ब्याज दरों में बढ़ोतरी करेगा तो इन बाजारों से बड़ी मात्रा में पूंजी निकलेगी। मंगलवार को क्रिस्टीन ने भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन से मुलाकात की। क्रिस्टीन ने राजन के विचारों का समर्थन करते हुए तमाम देशों के केंद्रीय बैंकों के बीच अधिक समन्वय की अपील की। उनके अनुसार ब्याज दरों में बढ़ोतरी बाजारों को चौंका सकती है।


सवाल यह है कि रिजर्व बैंक के गवर्नर और भारत के वित्तमंत्री इतने लाचार क्यों हैं।

इस पर तुर्रा कारपोरेट लाबिंग और कारपोरेट फंडिंग से इस देश की राजनीति को जनता के पक्ष से कोई मतलब नहीं है।संसदीय सहमति से सारे आत्मध्वंसी सुधार सिर्फ वोट बैंक के गणित साधने की कवायद के तहत लागू हो रहे हैं और मिलियनरों बिलियनरों की राजनीति को न देश की पर वाह है और जनता की।यह अभूतपूर्व संकट है।


मसलन तृणमूल कांग्रेस ने संसद में वित्तमंत्री की ओर से बंगाल सरकार के विकास विरोधी रवैये की आलोचना के से तिलसमिलाकर साफ कर दिया कि भूमि अधिग्रहण को छोड़कर उसे किसी किस्म के सुधार से ऐतराज नहीं है।राज्यसभा में क्षत्रपों के क्षेत्रीयदल ही मोदी की नैया पार लगा रहे हैं।


तृणमूल कांग्रेस किसी नीति या अर्थव्यवस्था की समझ से ऐसा कर रही है ,ऐसा भी नहीं है।धर्मोन्मादी ध्रूवीकरण की नूरा कुश्ती जारी रखते हुए मोदी और दीदी साथ साथ हैं तो धर्मनिरपेक्षता और धर्मोन्माद भी उसीतरह सुधार एजंडा पर एकाकार है।


दीदी भूमि आंदोलन के जरिये चूंकि सत्ता में आयी है तो इस फंडे को वे किसी तरह छोड़ना नहीं चाहती।बंगाल में निवेश हो नहीं रहा है और जमीन की वजह से तमाम परियोजनाएं अटकी हुई हैं।


दीदी भूमि अधिग्रहण की इजाजत नहीं देंगी।लेकिन बीमा बिल,खुदरा बाजार से लेकर श्रम कानून संधोधन,नागरिकता कानून संशोधन और भूमि अधिग्रहण से कहीं ज्यादा खतरनाक खनन अधिनियम और कोयला अधिनियम, जिसका बंगाल की जनता और बंगाल की अर्थव्यवस्था से सीधा नाता है,ऐसे तमाम कानूनों के मामले में वह संघ परिवार के साथ मुश्तैद खड़ी हैं।


बाकी राजनीति की हालत भी वही है।इसके विपरीत जनता की अपनी कोई राजनीति है ही नहीं।वाम और बहुजन आंदोलन सिरे से हाशिये पर है और धर्मोन्मादी ध्रूवीकरण की वजह से,अस्मिता सीमाबद्ध राजनीति के सत्तालोलुप तिलिस्म में भारतीय नागरिक का कोई वजूद ही नहीं है जो राष्ट्रहित के पक्ष में कोई आवाज बुलंद कर सकें।


किसी तरह की जनपक्षधर गोलबंदी नहीं है तो प्रतिरोध असंभव।


जनांदोलनों से भी कारपोरेट,मीडिया और पूंजी ने जनता को बेदखल कर दिया है।फर्जी आंदोलन और फर्जी विक्लप के बंवर में हम नियतिबद्ध वध्य बहुसंख्य जनगण है।


भारत में मोदी के गुजराती पीपीपी माडल मेकिंग इन स्मार्ट बुलेट विकास पर कारपोरेट दांव कितना ज्यादा है,इसे इस तरह समझें कि  हितों के टकराव के आरोपों को देखते हुए अन्तिम पलो में इस प्रोजेक्ट से जुड़ा एक बड़ा टेंडर रद्द कर दिया गया।


यह टेंडरस्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के लिए कंसल्टेंट नियुक्त करने के मकसद से दिया गया था। नरेंद्र मोदी सरकार के महत्वाकांक्षी स्मार्ट सिटीप्रोजेक्ट की रफ्तार बढऩे से पहले ही रोड ब्रेकर आ गया। इस मामले की जानकारी रखने वाले लोगों ने बताया कि 7,000 करोड़ रुपये के इस प्रोजेक्ट का आधार तैयार कराने में इंटरनैशनल कंसल्टेंसी फर्म मैकिंजी गैर आधिकारिक तौर पर अर्बन डिवेलपमेंट मिनिस्ट्री की मदद कर रही है।


दूसरी ओर,हिताची इंडिया लिमिटेड व सीमेंस लिमिटेड ने सीआईआई अर्थात काँन्फेडरशन आँफ इंडियन इंड्रस्ट्री के साथ सरकार के महत्कांक्षी परियोजना १०० स्मार्ट सिटी स्थापन करने की परियोजना से संबंधित एक एमओयू पर हस्ताक्षर किये। यह हस्ताक्षर भारतीय औद्योगिक नीति संवधर्न बोर्ड के सचिव श्री अमिताभ कांत की उपस्थिति मे हुए। इस अवसर पर हिताची के प्रबंध निदेशक ईचिरो लिनो, सीमेंस लिमिटेड की तरफ से श्री सुनील माथुर और काँन्फेडरशन आँफ इंडियन इंड्रस्ट्री के महानिदेशक श्री चंद्रजीत बनर्जी ने हस्ताक्षर किये।


पूत के पांव तो अभी पालने में हैं।बुलेटट्रेन के लिए एक किमी रेलवे लाइन बनाने की लागत करीब सौ करोड़ डालर बतायी जा रही है।जीवन बीमा के डेढ़ लाख करोड़,जो बीमाधारकों के प्रीमियम से निकाले गये हैं,निजी इंफ्रा कंपनियों क मुनाफे के लिए रेलवे के पीपीपी विकास में जोंक दिये गये हैं।जबकि विनिवेश का सारा कार्यक्रम जीवन बीमा निगम और भारतीय स्टेट बैंक की खरीददार पर निर्भर है।


अब समझ लीजियकि यह बुलेट ट्रेन किसके लिए होगी।आपकी मदद के लिए खबर यह है कि

1 अप्रैल से रेलवे प्लेटफॉर्म टिकट महंगा हो जाएगा। रेलवे ने फैसला किया है कि नए वित्त वर्ष से प्लेटफॉर्म टिकट के दाम 5 रुपये से बढ़ाकर 10 रुपये किए जाएंगे।


साथ ही डिवीजनल रेलवे मैनेजर्स यानी डीआरएम को ये अधिकार भी दिया गया है कि मेले या रैली जैसे मौकों पर इसके दाम 10 रुपये से भी ज्यादा किए जा सकते हैं।


रेलवे के मुताबिक प्लेटफॉर्म पर गैर-जरूरी भीड़ कम करने और यात्रियों को असुविधा ना हो, इस मकसद से प्लेटफॉर्म टिकट के दाम बढ़ाए जा रहे हैं।


सीएनबीसी आवाज़ को एक्सक्लूसिव जानकारी मिली है कि रेलवे के कायाकल्प की जिम्मेदारी रतन टाटा को दी जा सकती है। रेलवे के मेकओवर के लिए मंत्रालय इन्नोवेशन काउंसिल बनाएगा, और इस काउंसिल की बागडोर रतन टाटा के हाथ दी जा सकती है।


रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने बजट में इस कायाकल्प काउंसिल का एलान किया था। रेलवे के 2 मुख्य फेडरेशन एआईआरएफ, एनएफआईआर भी इस काउंसिल के सदस्य होंगे। इस काउंसिल में अरुंधति भट्टाचार्य, के वी कामत शामिल होंगे।



इसी बीच, भारत ने निवेश आकर्षित करने का रास्ता बना रखा है और और अमेरिकी कंपनियां वहां निवेश के लिए आगे बढ़ने को तैयार हैं। यह बात भारत में काम करने वाली अमेरिकी कंपनियों के मंच के प्रमुख ने कही।

अमेरिका भारत व्यापार परिषद (यूएसआईबीसी) के प्रमुख मुकेश अघी ने भारत में कारोबार का वातारण बेहतर बनाने की दिशा में नरेंद्र मोदी सरकार की पहल की तरीफ करते हुए कहा कि भारत निवेश के लिए तैयार है और अमेरिका आगे बढ़ने के लिए उत्सुक है। इस महीने यूएसआईबीसी की कमान संभालने वाले अघी ने कहा कि अमेरिकी कंपनियां विशेष तौर पर बुनियादी ढांचा क्षेत्र में 1,500 अरब डालर के निवेश के मौकों के लिए तैयार हैं।

उन्होंने कहा कि अपनी स्थापना के 40वें वर्ष में यूएसआईबीसी की सफलता इस बात से आंकी जाएगी कि द्विपक्षीय व्यापार में 500 अरब डालर की वृद्धि हुई। उन्होंने कल कहा कि चुनौतियां हैं लेकिन मैं इसे अवसर की तरह देखता हूं। अघी ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी ने एक यात्रा शुरू की है। उम्मीदें बहुत हैं। यदि बड़े जहाज को मोड़ना हो तो समय तो लगता है। माहौल बदलने की कोशिश करें तो इसमें समय लगता है। इसमें शायद ज्यादा लंबा समय लगे।



सभी बीमार सराकारी उपक्रमों के विनिवेश के लिए नया बगुला पैनल बनकर तैयार है।जिन कंपनियों को बंद करना है,उनमें सबसे ऊपर एअर इंडिया का नाम है तो दूसरी तरफ विदेशों में सेवा शुरु करने के लिए निजी विमानन कंपनियों को अब पांच साल के बजाय सिर्फ एक साल इंतजार करना है।ऐसा एअर इंडिया की कीमत पर हो रहा है।


गौरतलब है कि सरकार ने उन सार्वजनिक उपक्रमों की सूची तैयार की है जिनका अगले वित्त वर्ष में विनिवेश करना है और इसकी शुरूआत अप्रैल में भेल से हो सकती है ताकि 2015-16 के लिए तय 41,000 करोड़ रुपए के विनिवेश लक्ष्य को हासिल किया जा सके।

आधिकारिक सूत्रों ने कहा कि विनिवेश विभाग ने भेल के विनिवेश के संबंध में लंदन, सिंगापुर और हांगकांग में रोड शो की प्रक्रिया पूरी कर ली है। भेल के 260.75 रुपए प्रति शेयर के मौजूदा बाजार मूल्य के आधार पर 12.23 करोड़ शेयरों की बिक्री से सरकारी खजाने में 3,200 करोड़ रुपए आएंगे।

इस कतार में जो अन्य कंपनियां हैं उनमें एनएमडीसी, नाल्को और आईओसी शामिल हैं जिनकी 10-10 प्रतिशत हिस्सेदारी की बिक्री का प्रस्ताव है। इसके अलावा ओएनजीसी, पीएफसी और आरईसी में पांच प्रतिशत हिस्सेदारी की बिक्री की भी तैयारी है। सूत्रों ने कहा कि विनिवेश विभाग का मानना है कि भेल के शेयरों में स्थिरता है और संभव है कि यह समय हिस्सेदारी बिक्री के लिए बिल्कुल सही हो।

सरकार की भेल में 63.06 प्रतिशत हिस्सेदारी है। मार्च 2014 में सरकार ने एक थोक सौदे के जरिए भेल की 4.66 प्रतिशत हिस्सेदारी 1,800 करोड़ रुपए में जीवन बीमा निगम को बेची थी।

सूत्रों के मुताबिक अन्य सार्वजनिक उपक्रमों में भी विनिवेश की प्रक्रिया जारी है। विशेष तौर पर ओएनजीसी की पांच प्रतिशत हिस्सेदारी बेचने के संबंध में सरकार सब्सिडी योगदान कार्यक्रम पर काम कर रही है ताकि निवेशकों के सामने स्थिति स्पष्ट की जा सके। अप्रैल से शुरू हो रहे वित्त वर्ष 2015-16 के लिए सरकार ने सार्वजनिक उपक्रमों में विनिवेश के जरिए 69,500 करोड़ रुपए जुटाने का लक्ष्य रखा है।

इसमें नुकसान दर्ज करने वाली और मुनाफे में चल रही, दोनों तरह की कंपनियों की अल्पांश हिस्सेदारी बेचकर 41,000 करोड़ रुपए और रणनीतिक हिस्सेदारी बेचकर 28,500 करोड़ रुपए जुटाना शामिल है।

काले धन पर कानून लागू होने से पहले मामला रफा-दफा करने की स्कीम ला सकती है सरकार

By  एबीपी न्यूज

नई दिल्ली: काले धन वालों को सरकार राहत देने के मूड में दिख रही है. प्रस्तावित नए काननू में 10 साल की सजा का प्रावधान है लेकिन सरकार उससे पहले ही जुर्माने की रकम  लेकर मामले को रफा-दफा कर सकती है.

काले धन पर सरकार जल्द कानून लाने वाली है. लेकिन अंग्रेजी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक सरकार इससे पहले ही मामला रफा-दफा करने की स्कीम ला सकती है.

इसके तहत अगर किसी के पास काला धन है तो वह पेनल्टी देकर जेल जाने से बच सकता है. छिपाये गये काले धन और संपत्ति पर तीन सौ फीसदी जुर्माना वसूलने का प्रस्ताव है. इसे इस तरह भी समझ सकते हैं कि अगर किसी के पास 1 करोड़ रुपये है तो उसे नियम के मुताबिक 30 फीसदी टैक्स यानि 30 लाख रुपये देना होगा. अगर यही 1 करोड़ रुपये काला धन है तो स्कीम के तहत टैक्स का 300 फीसदी जुर्माना देना होगा. यानि 30 लाख रुपये टैक्स पर  300 फीसदी जुर्माने की रकम 90 लाख रुपये होगी. इसका मतलब ये हुआ कि 1 करोड़ के काले धन पर 30 लाख का टैक्स और 90 लाख का जुर्माना मिलाकर कुल 1 करोड़ 20 लाख रुपये देना होगा.

सरकार जो कानून बनाने वाली है उसके तहत कालाधन छिपाने वालों को 10 साल की सजा हो सकती है. अगर रिटर्न में विदेशी संपत्ति का पूरा ब्योरा नहीं दिया या आधा-अधूरा दिया तो सात साल की सजा का भी प्रावधान है.

काले धन पर रोक के लिए प्रस्तावित कानून के मुताबिक दोषी को सेटलमेंट कमीशन में अपील का भी अधिकार नहीं होगा. हो सकता है कि सरकार काले धन पर प्रस्तावित इसी कड़े कानून का डर दिखाकर उससे पहले ही मामला रफा-दफा करने का रास्ता खोज रही हो.

काले धन पर बिल की बड़ी बातें

  • विदेश में काला धन छुपाने पर 300 प्रतिशत जुर्माना

  • 10 साल की सजा का भी प्रावधान होगा

  • ऐसे आरोपी को सेटलमेंट कमीशन में भी पनाह नहीं मिलेगी.

  • विदेशी संपत्ति के बारे में रिटर्न दाखिल न करने या अधूरा रिटर्न दाखिल करने पर सात साल की कैद होगी.

  • विदेशी संपत्ति के स्वामी या उससे लाभ लेने वाले व्यक्ति को आय न होने पर भी रिटर्न दाखिल करना होगा.

  • काला धन जमा करने के लिए उकसाने वाले बैंकों के खिलाफ कार्रवाई होगी.

  • आयकर रिटर्न में बताना होगा, किस तारीख में खुला विदेशी बैंक में खाता.

http://abpnews.abplive.in/ind/2015/03/18/article530041.ece/black-money



Mar 18 2015 : The Economic Times (Kolkata)

WORDS OF CAUTION - Jaitley Advises Politicians to Shun Obstructionism


New Delhi:

Our Bureau





Rejects pro-corporate charge against his budget; tells the Lok Sabha members that lower corporate tax is needed to encourage investment; backs auction of spectrum and coal

India is at a historic juncture to take off on the path of faster development and politicians must shun obstructionism to support the country, Finance Minister Arun Jaitley said in Lok Sabha on Tuesday, reminding members that investments were needed to create jobs, infrastructure and alleviate poverty as he rejected the pro-corporate charge against his budget.

"This is a historic occasion for all politicians to choose the path that can lead to faster development of the country... We should rise above the politics of slogans," the minister said in his reply to the budget debate.

Jaitley presented his second and the first full budget of the Narendra Modi government last month. "Are we in the business of distributing poverty or are we in the business of generating wealth and distributing wealth, so that it can reach the poor," Jaitley said, winding up the debate in Lok Sabha. The Appropriation Bill was later passed by a voice vote, completing the first phase of the budgetary exercise in the lower house.

PLEA TO NOT STALL REFORMS

Jaitley`s appeal was largely directed at the opposition, which has been stalling some of the key legislations on land acquisition, coal and mine auctions.

He said that India is expected to grow by 7.4% this year and the next year it should be 8% plus, and added that other macroeconomic parameters such as the current account deficit are expected to come down to 1%.

"You prevent economic decision making, you prevent reform, you prevent investments, you prevent jobs, you prevent infrastructure and you perpetuate India as a poor nation. That is not a course that we are going to follow. That is not a roadmap on which we are going to go," the finance minister said, indicating the government's intent to push reforms.

In an indirect reference to development policies taking a back seat under the previous UPA government, he said: "You concen trated on distribution of existing resource. And the steps which were required for higher growth rate took a back seat. The result was, we were caught between two stools and we fell down. I don't want to commit the same mistake".

`LOWER CORPORATE TAX NEEDED'

The finance minister strongly rejected the charge that the government is pro-rich as it had proposed reduction of corporate tax to 25% from 30% over the next four years, saying the idea had been borrowed from the Direct Taxes Code (DTC) proposed by UPA's two finance ministers--P Chidambaram Pranab Mukherjee. He said the country needs investments and it is competing with other nations for not just overseas investments but also domestic investments as busi nesses will move where it is profitable to do business, pointing to their lower tax rates.

The effective tax rate is around 23% globally, 21.9% in Asean nations and 19.66% in Europe, the finance minister pointed out."Who will invest in India if tax is 30%," he said, justifying the government's budget announcement to reduce corporate tax rate to 25%, while pointing out that this was suggested by the UPA in the DTC. "Investment will lead to jobs. Investment must also lead to profitability," he said, warning that if the country does not get investment, it will become a nation of traders. "I am requesting you with folded hands that let politics of obstructionism not be carried to a level that UPA now says, `I oppose every word of DTC'," he said in an emotional plea to the opposition. Referring to the issue of black money, Jaitley said the government would bring a new legislation in current session of Parliament, which would have provisions like 300% penalty and punishment up to 10 years for concealing overseas assets.

BACKS AUCTIONS

Talking about the coal sector, Jaitley said his government believes in auction. In this context, he said Manmohan Singh, as prime minister, also wanted auction of coal blocks in 2004 but could not implement the proposal till 2014. "We should learn the lessons" and "there should be no situation that a court summons a former PM", Jaitley said in an apparent reference to a legal notice sent to Singh by a Delhi court in connection with the coal block allocation scam.




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