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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Monday, July 18, 2016

सबसे पहले कश्मीर सरकार को बर्खास्त करें! कश्मीर की जनता के साथ भारत की सरकार और भारत राष्ट्र का कोई संवाद नहीं है तो सिर्फ सशस्त्र सैन्य विशेषाधिकार कानून के तहत कश्मीर में अमन चैन कैसे बहाल हो सकता है,यह बुनियादी सवाल है। कानून और व्यवस्था राज्यसरकारी की जिम्मेदारी है जिसे निभाने में पीडीएस भाजपा की सरकार एकदम फेल है तभी वहां आपातकालीन तौर तरीके आजमाये जा रहे हैं। पलाश विश्वास


सबसे पहले कश्मीर सरकार को बर्खास्त करें!


कश्मीर की जनता के साथ भारत की सरकार और भारत राष्ट्र का कोई संवाद नहीं है तो सिर्फ सशस्त्र सैन्य विशेषाधिकार कानून के तहत कश्मीर में अमन चैन कैसे बहाल हो सकता है,यह बुनियादी सवाल है।


कानून और व्यवस्था राज्यसरकारी की जिम्मेदारी है जिसे निभाने में पीडीएस भाजपा की सरकार एकदम फेल है तभी वहां आपातकालीन तौर तरीके आजमाये जा रहे हैं।

पलाश विश्वास


आपातकाल और आपरेशन ब्लू स्टार के वक्त जो न हुआ,वह कश्मीर में हो रहा है।जबकि वहां एक चुनी हुई सरकार है और सरकार में शामिल है वह सत्तादल भी ,जिसकी केंद्र सरकार है।संसद का मानसून अधिवेशन है और कश्मीरेमें न सिर्फ अखबार बल्कि सारे संचार के माध्यम बंद है।


अखबार जब नहीं निकलते तो आम जनता को खभर भी नहीं होती कि दरअसल हो क्या रहा है।


सरकारी पक्ष बताने के लिए भी अखबार निकलने चाहिए।


वरना जनता को एकतरफा जो सूचनाएं अनधिकृत सूत्रों और खालिस अफवाहों से मिलेंगी,उससे कश्मीर के हालत और संगीन होने का अंदेशा है।


कश्मीर पहले से सशस्त्र सैन्य विशेषाधिकार कानून के मातहत है और वहां राजकाज इसी कानून के तहत चल रहे हैं।कानून और व्यवस्था से निपटने की जिम्मेदारी भी सेना की है।


देश के अनेक हिस्से हैं,जहां कानून व्यवस्था सेना के हवाले का मतलब भुक्तभोगी जनता खूब जानती है।


मसलन मणिपुर जहां कश्मीर की तरह सशस्त्र सैन्य विशेषाधिकार कानून लागू है और हाल में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने सेना को संयम बरतने का आदेश देते हुए बल प्रयोग का निषेध किया है।


इसी फैसले में मणिपुर में करीब डेढ़ हजार फर्जी मुठभेडों की जांच का आदेश भी दिया गया है।देश के बाकी हिस्सों में भी ऐसे हजारों मुठभेड़ें होती रही हैं और न्याय हुआ नहीं है।मसलन यूपी में।


जिस कश्मीर में मुठभेड के हालात इस कदर बिगड़े हैं वहां सैन्य आपरेशन और मुठभेडों का अनंत सिलसिला है।फिरभी देश को उसका ब्यौरा मालूम नहीं है।


कश्मीर विवादों के मद्देनजर हम मान बी लें कि इन संवेदनशील सूचनाओं का सार्वजनिक खुला सा होना नहीं चाहिए।जनता को न सही ,इस देश की जनता के प्रति जिम्मेदार संसद और न्यायपालिका को इसके ब्यौरे कमसकम मिलने चाहिए।


गौरतलब है कि मणिपुर की लौह मानवी इरोम शर्मिला इसी सशस्त्र सैन्य विशेषाधिकार कानून खत्म करने की मांग लेकर चौदह साल से आमरण अनशन पर हैं।


मेरठ और यूपी के अलावा देश के अनेकि संवेदनशील हिस्से समयसमय पर सेना के हवाले रहे हैं।


असम और पंजाब की चर्चा न भी करें तो बेहतर।


हम आदिवासी भूगोल में सेना के रंगबिरंगे अभियानों की चर्चा भी नहीं कर रहे हैं और न बरसों पहले मणिपुर की माताओं के भारतीय सेना के खिलाफ असम राइफल्स के मुख्यालय पर नग्न प्रदर्शन की बात कर रहे हैं।


अगर किसी आतंकवादी की मुठभेड़ में मौत हुई है तो इतने व्यापक पैमाने पर घाटी में हिंसा भड़कने की स्थितियां कैसे बनी,भारतीय संसद को इसकी पड़ताल जरुर करनी चाहिए,खासकर तब जब वहां की सत्ता की बागडोर केंद्र में सत्तादल के हाथों में हैं।


हम कश्मीर को लेकर ऐतिहासिक विवादों का पिटारा यहं खोलना नहीं चाहते ,जिनपर अभी लोकतांत्रिक तरीके से कोई संवाद हुआ ही नहीं है और अब तक भारत के अभिन्न अंग भूस्वर्ग कश्मीर की नर्क जैसी कथा व्यथा को सुनने के लिए,समझने के लिए बाकी भारत कभी तैयार नहीं हुआ है।


कश्मीर की जनता के साथ भारत की सरकार और भारत राष्ट्र का कोई संवाद नहीं है तो सिर्फ सशस्त्र सैन्य विशेषाधिकार कानून के तहत कश्मीर में अमन चैन कैसे बहाल हो सकता है,यह बुनियादी सवाल है।


कानून और व्यवस्था राज्यसरकारी की जिम्मेदारी है जिसे निभाने में पीडीएस भाजपा की सरकार एकदम फेल है तभी वहां आपातकालीन तौर तरीके आजमाये जा रहे हैं।


ऐसे में सबसे पहले उस सरकार को बर्खास्त करने की जरुरत है।


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