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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Saturday, July 16, 2016

अगर इतनी बड़ी तादाद में बच्चों का ब्रेनवाश हो रहा है और इकलौता आतंकवाद नई विधि प्राविधि है,तो विनाश किताना तेज और कितना भयंकर होगा?


अगर इतनी बड़ी तादाद में बच्चों का ब्रेनवाश हो रहा है और इकलौता आतंकवाद नई विधि प्राविधि है,तो विनाश किताना तेज और कितना भयंकर होगा?


पलाश विश्वास


कालजयी फ्रांसीसी साहित्यकार विक्टर ह्यूगो का क्लासिक उपन्यास ला मिजरेबल्स पढ़ लें तो फ्रांसीसी क्रांति के बारे में अलग से इतिहास पढ़ने की जरुरत नहीं होगी।इस उपन्यास की कथा बास्तिल दुर्ग को केंद्रित है।इसी बास्तिल दुर्ग के पतन के साथ फ्रांस सांतसाही से मुक्त होकर लोकतांत्रिक देश बना और दुनियाभर में स्वतंत्रता और लोकतंत्र के लिए बास्तिल दुर्ग का पतन प्रस्थान बिंदू रहा है।इसी बास्तिल दुर्ग के पतन के दिन लोकतंत्र, स्वतंत्रता और भ्रातृत्व का उतस्व मना रहे फ्रांस के पर्यटन स्थल नीस में इकलौते एक हमलावर ने जिस तरह से 84 लोगों को मार गिराया,वह आने वाली कयामतों की शुरुआत है।अगली सुबह इस्लामी दुनिया में प्रगतिशीलता ,आधुनिकता और लोकतंत्र का मरुद्यान तुर्की में तख्ता पलट की कोशिश हुई।सड़कों पर टैंक दौड़े और हेलीकाप्टर से गोलिया बरसायी गयीं।दुनिया के ये हालात है,जहां पल दर पल इंसानियत लहूलुहान है और अमन चैन सिरे से लापता है।यह एक बेहद खतरनाक दौर है।


अभी अभी में ब्रेक्सिट के जनमत संग्रह के बाद नई सरकार बनी है तो अमेरिका में सत्ता में फेरबदल होने जा रहा है।राजनीतिक अस्थिरता के शिकंजे में हैं बड़े से छोटे तमाम देश।ऐसे में हमारे लिए राहत सिर्फ इतनी है कि भारत में फिलहाल जैसे भी हो राजनीति,राजनीतिक अस्थिरता नहीं है।वैश्विक परिस्थितियों के मद्देनजर यह बहुत अहम है कि कुल मिलाकर भारत में तमाम चुनौतियों के बावजूद लोकतांत्रिक व्यवस्था बनी हुई है।

पेरिस हमला और दुनियाभर में तमाम दहशतगर्द वारदातों के बारे में आर रात दिन टीवी पर देख रहे होंगे या अखबारों में सिलसिलेवार पढ़ भी रहे होंगे,इसलिए उनका ब्यौरा दोहराने की जरुरत नहीं है।


कुल मिलाकर इन हमलों से साफ जाहिर है कि सामान्य जनजीवन और सामाजिक गतिविधियों के कैंद्रों पर ये हमले बेहद तेज हो रहे हैं।सत्ता को जितनी  चुनौती है,कानून और व्यवस्था के लिए जितना सरदर्द का सबब है,उससे कहीं ज्यादा इंसानियत के वजूद को खतरा है और इस खतरे से कोई अछूता नहीं है।क्योंकि कहीं भी किसी भी वक्त घात लगाकर हमले की आशंका बनी हुई है।


सत्ता का तख्ता पलटने की कोशिश की अपनी दलील हो सकती है तो सियासती मजहब और मजहबी सियासत के तौर तरीके अलग हो सकते हैं।लेकिन यह मामाला अब पक्ष प्रतिपक्ष का रह नहीं गया है क्योंकि हमले में मारे जाने वाले बेगुनाह लोगों का कोई पक्ष प्रतिपक्ष नहीं होता।यह विशुद्ध संकट है मनुष्यता और सभ्यता का।सत्ताकेंद्रे पर हमले हमेशा होते रहे हैं।सभ्यता का यही इतिहास है।मध्ययुग से धर्मस्थलों पर भी हमले सत्तादखल का दस्तूर बन गया है और हम उत्तर आधुनिक मध्ययुग में जी रहे हैं इन दिनों।मुक्तबाजार में भोग की सारी समामग्री है लेकिन समाज और राजनीति और धर्म के नाम जो भी हो रहा है,वैज्ञानिक औक तकनीकी विकास के बावजूद वह प्रतिक्रियावादी मध्ययुगीन मानसिकता है।


विकास और प्रगति की अहम शर्त है अमन चैन।राष्ट्र व्यवस्था की बुनियाद कानून और व्यवस्था है।ये चीजें न हों तो न समाज संभव है,न आजीविका संभव है,न जान माल की कोई गारंटी है और यह अराजकता है।जो मनुष्यता और प्रकृति के विरुद्ध है।


पेरिस हमले का मकसद सीधे फ्रासींसी राष्ट्रीयता और वहां के लोकतंत्र को ध्वस्त कर देने का है,यह समझना लाशों की गिनती से ज्यादा जरुरी है।दुनियाभर में ऐसा हो रहा है।यह आतंकवाद की नई विधा है।तकनीक और विधि है यह आतंकवाद की।किसी एक व्यक्ति के दलोदिमाग पर कब्जा करके उसे टरमिनेटर की तरह विध्वंसक बना दो तो वह अकेला सबकुछ तबाह कर देगा।आतंकवाद की यह संस्थागत प्रणाली राष्ट्रप्राणाली पर हावी होती जा रही है,यह सबसे बड़ा खतरा है।


मसलन बांग्लादेश में सत्तावर्ग के बच्चे बड़ी संख्या में गायब हैं।जिनमें से इक्के दुक्के ने बांग्लादेश के हालिया दहशतगर्द वारदातों को अंजाम दिया है।पेरिस के ताजा हमलों के मद्देनजर इस खतरे को समझने की जरुरत है कि अगर इतनी बड़ी तादाद में बच्चों का ब्रेनवाश हो रहा है और इकलौता आतंकवाद नई विधि प्राविधि है,तो विनाश किताना तेज और कितना भयंकर होगा!


यह सिर्फ कानून और व्यवस्था का संकट नहीं है।उससे कहीं परिवार और समाज का संकट है।जिसे तुरंत हल करने के बारे में जितनी जल्दी हम सोचें,उतना ही बेहतर है।


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