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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Wednesday, January 4, 2017

महज दो चार घंटे की तैयारी में नोटबंदी, जबकि इसी नोटबंदी के बाद सोवियत संघ टूट गया था।तो क्या नोटबंदी के जरिये हिंदुत्व पुनरूत्थान के लिए भारत को तोड़ने का कोई मास्टर प्लान है हिंदुत्व के एजंडे का? बजट भी नोटबंदी के बाद यूपी जीतने का हिंदुत्व कार्यक्रम? यूपी में दंगल और बंगाल में सिविल वार के हालात फेल नोटबंदी को भुलाने के लिए काफी हैं?भुखमरी,मंदी और बेरोजगारी का क्या जबाव है? फेल नो�

महज दो चार घंटे की तैयारी में नोटबंदी, जबकि इसी नोटबंदी के बाद सोवियत संघ टूट गया था।तो क्या नोटबंदी के जरिये हिंदुत्व पुनरूत्थान के लिए भारत को तोड़ने का कोई मास्टर प्लान है हिंदुत्व के एजंडे का?

बजट भी नोटबंदी के बाद यूपी जीतने का हिंदुत्व कार्यक्रम?

यूपी में दंगल और बंगाल में सिविल वार के हालात फेल नोटबंदी को भुलाने के लिए काफी हैं?भुखमरी,मंदी और बेरोजगारी का क्या जबाव है?

फेल नोटबंदी कैसे नजर घूमाने की सीबीआई कवायद से राजनीतिक रंग में बंटा बंगाल धू धू जल रहा है,हिंदुत्व का एजंडा वहां राष्ट्रपति शासन।

नोटबंदी के बाद कतारों में जो लोग मारे गये,उनके खून से तानाशाह के हाथ रंगे हैं।करोडो़ं जो लोग बेरोजगार होकर कबंध हैं,उनका सारा खून भी उन्हीं को हाथों में है।जो भुखमरी और मंदी के शिकार होंगे ,उनकी लाशों का बोझ भी उनके कांधे पर है।

कितना चौड़ा सीना है?

कितने मजबूत कंधे हैं?

पलाश विश्वास

पांच राज्यों के लिए चुनाव आचार संहिता लागू हो गयी है।चार फरवरी से मतदान है।यूपी में ग्यारह फरवरी से सात दफा में वोट गेरने हैं।गणना 11 मार्च को वोटों की गिनती  है।चुनाव प्रक्रिया के मध्य पहली फरवरी को वक्त से पहले रेल और आम बजट मिलाकर डिजिटल कैशलैस इंडिया का बजट पेश होना है।

सीधा फायदा संघ परिवार को है।

विपक्ष के विरोध और चुनाव आयोग की विवेचना  के बीच वित्त मंत्री अरुण जेटली ने अपना फैसला सुना दिया हैं कि बजट पेश करने की तारीख में कोई बदलाव नहीं होगा। उन्होंने ये भी कहा बैंक से रकम निकालने की सीमा हटाने का फैसला हालात को देखने के बाद ही लिया जाएगा।वित्त मंत्री का कहना है कि बजट एक संवैधानिक आवश्यकता है और लोकसभा चुनाव से पहले भी बजट पेश होता है। साथ ही वित्त मंत्री ने ये भी कहा कि कैश निकालने की लिमिट पर आरबीआई फैसला लेगा और जैसे पाबंदी किश्तों में आई, उसी तरह रियायतें भी किश्तों में आएंगी।

चुनाव आयोग पारदर्शिता के नाम पर जो कर रहा है,उसका स्वागत है।लेकिन सत्ता घराने को एकतरफा बढ़त देने के इस इंतजाम को अगर रोक नहीं सका चुनाव आयोग तो चुनाव की निष्पक्षता का सवाल बेतमलब है।

उठते सवालों के बीच वित्तमंत्री अरुण जेटली ने कहा है कि बजट को लेकर विपक्ष का विरोध सही नहीं है।भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त ने कहा है कि चुनाव आयोग जल्द ही चुनाव के दौरान बजट पेश करने के मामले पर अपनी राय देगा। इस साल परंपरा तोड़ते हुए केंद्रीय बजट पेश किए जाने से एक दिन पहले 31 जनवरी से संसद का बजट सत्र शुरू होने वाला है और अलग से रेल बजट पेश नहीं किया जाएगा।

साफ जाहिर है कि  अब नोटबंदी के बाद देश का बजट भी यूपी के हिंदुत्व पुनरूत्थान के नाम।सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव प्रक्रिया को धर्मनिरपेक्ष बनाये रखने का आदेश दिया है और साथ ही हिंदुत्व को धर्म मानने से इंकार करके संघ परिवार के हिंदुत्व के ग्लोबल एजंडे को हरी झंडी दे दी है।

चुनाव प्रक्रिया के मध्य बजट का मतलब भी सत्ता वर्चस्व के आगे स्वायत्त लोकतांत्रिक संस्थानों के अवसान है।गौरतलब है कि परंपरागत रूप से आम बजट 28-29 फरवरी को पेश किया जाता रहा है। बजट में सरकार कई योजनाओं की घोषणा करती है और जनता को कई किस्म की छूट भी दी जाती है। वैसे भी नववर्ष की पूर्व संध्या पर कई फर्जी योजनाओं की घोषणा डिजी मेले में कर दी गयी है।बजट के जरिेये फिर बाजीगरी के आसार हैं।कांग्रेस समेत 16 विपक्षी पार्टियों ने राष्ट्रपति और चुनाव आयोग को पत्र लिख कहा है कि अगर बजट तय वक्त से पहले पेश हुआ तो बीजेपी इसे आगामी विधानसभा चुनावों में भुनाने का प्रयास करेगी। इस सप्ताह की शुरूआत में भेजे गए इस पत्र में विपक्ष ने एनडीए सरकार की मंशा पर सवाल उठाते हुए कहा है कि सरकार बजट के दौरान वोटरों को रिझाने के लिए लोक-लुभावन वादे कर सकते है।

इसी बीच बरसों पहले होने वाली गिरफ्तारियां टालकर नोटबंदी फेल होने की अभूतपूर्व उपलब्धि से नजर घूमाने के लिए जो सनसनी पैदा की जा रही है,उससे पूरा बंगाल जलने लगा है और वहां हालात तेजी से राष्ट्रपति शासन के बन रहे हैं।कोलकाता की सड़कों पर जो हुआ वह आने वाले वक्त की झांकी भर है।

अभी बंगाल की नंबर वन हिरोइन जो अभी भी परदे पर उतनी ही लोकप्रिय हैं,का नाम हवाला गिरोह से जुडा़ है जिसके मार्फत हवाला के जरिये रोजवैली के तीन सौ करोड़ रुपये विदेश में भेजने का जिम्मा उन्हें था,त्रेसठ करोड़ वे भेज भी चुकी हैं।इस हिरोइन ने कमसकम तीन बार रोजवैली के सर्वेसर्वा गौतम कुंडु के साथ विदेश यात्रा की थी और तापस पाल के साथ वे भी रोजवैली का फिल्म ट्रेड देखती थीं।नाम का खुलासा अभी नहीं हुआ है।वे बालीवूड फिल्मों के लिए भी मशहूर है।रुपा गांगुली कभी नंबर वन नहीं रही हैं।न ही शताब्दी राय।शताब्दी ने बालीवूड में कोई काम नहीं किया है।

रुपा और शताब्दी पहले से विवादों में है।लेकिन रहस्यमयी हिरोईन से चिटपंड और राजनीति के हवाला कारोबार के खुलासा होने के आसार है।

गौरतलब है कि इस हिरोइन के खासमखास रिश्तेदार सिंगापुर से हवाला रैकेट चलाते हैं।सुदीप बंदोपाध्याय को अब शारदा मामले से भी नत्थी कर दिया गया है।शारदा समूह के मीडिया कारोबार को भी लपेटे में लिया जा रहा है।रफा दफा शारदा फर्जीवाड़ा मामले के फाइलें फिर खुल गयी हैं।सुदीप्त देवयानी फिर चर्चा में हैं।

इसी बीच ममता ने आशंका जताई है कि मोदी के कहे मुताबिक उनके भतीजे अभिषेक बंदोपाध्याय समेत उनके परिजनों,बाबी हकीम और शुभेंदु अधिकारी जैसे मंत्रियों और कोलकाता के मेयर शोभनदेव को सीबीआई गिरफ्तार करने वाली हैं।इसके बाद ही वे सीधे केंद्र सरकार और संघ परिवार से सीधे मुकाबले के मोड में हैं और उनकी इस जिहाद को बंगाल भर में नोटबंदी के विरोध की शक्ल में हिंसक आंदोलन में पहले ही दिन बदल देने में उनके समर्थकों  और कार्यकर्ताओं ने भारी कामयाबी पायी है।

विजयवर्गीज औस सिर्द्धार्थ नाथ सिंह बंगाल भाजपा के संघी अध्यक्ष दिलीप घोष की अगुवाई में बंगाल भर में भाजपा के प्रतिरोध का नेतृत्व कर रहे हैं।

भाजपाइयों ने राज्यपाल से मिलकर बंगाल में राष्ट्रपति शासन की भी मांग कर दी है।अब हालात तेजी से राष्ट्रपति शासन के बन भी रहे हैं।

यूपी में दंगल और बंगाल में सिविल वार के हालात फेल नोटबंदी को भुलाने के लिए काफी हैं?

भुखमरी,मंदी और बेरोजगारी का क्या जबाव है?

रोज वैली चिटफंड घोटाले के सिलसिले में सीबीआई द्वारा तृणमूल कांग्रेस के सांसद संदीप बंदोपाध्याय की गिरफ्तारी के बाद कोलकाता और बंगाल के हर जिले में आज प्रधानमंत्री का पुतला जला है।सड़क रेल परिवहन ठप है।सुंदरवन से लेकर पहाड़ों तक में बंगाल में जनता तृणमूल और भाजपा के झंडे के साथ आपस में मारामारी कर रहे हैं।बमबाजी ,आगजनी और हिंसा का महोत्सव है।

बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह पर जमकर हमला किया। यहां तक कि 2002 के गुजरात दंगों के लिए उनकी गिरफ्तारी की भी मांग की।उन्होंने मोदी सरकार के खिलाफ राष्ट्रव्यापी विरोध प्रदर्शन की घोषणा की है और कहा है कि हिम्मत है तो उन्हें गिरफ्तार करें। बंदोपाध्याय की गिरफ्तारी के बाद टीएमसी के सैंकडों कार्यकर्ताओं ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी के खिलाफ नारे लगाए और बीजेपी के प्रदेश मुख्यालय पर पथराव किया।

फिर पूरे बंगाल में प्रधानमंत्री का पुतला दहन और उनका वैदिकी रीति रिवाज से श्राद्धकर्म हो रहा है।

ममता बनर्जी ने प्रधानमंत्री मोदी पर यह आरोप लगाया कि राजनीतिक बदले की भावना के तहत वे टीएमसी के सांसदों को गिरफ्तार करवा रहे हैं। ममता बनर्जी ने इस गिरफ्तारी के विरोध में अपने कार्यकर्ताओं से देशभर में विरोध-प्रदर्शन करने की अपील की थी। इस अपील के बाद मंगलवार को कोलकाता में बीजेपी के दफ्तर पर तथाकथित टीएमसी के कार्यकर्ताओं ने तोड़फोड़ की। आज कोलकाता सहित पूरे बंगाल में टीएमसी कार्यकर्ताओं का विरोध-प्रदर्शन जारी रहा।

बंगाल के हुगली में स्थित भारतीय जनता पार्टी के आॅफिस में बुधवार को टीएमसी कार्यकर्ताओं ने आग लगा दी। एएनआई की रिपोर्ट के अनुसार, बीते दो दिनों में टीएमसी कार्यकर्ताओं ने दूसरी बार बीजेपी आॅफिस को निशाने पर लिया है। मंगलवार को भी टीएमसी स्टूडेंट्स विंग के कार्यकर्ताओं ने कोलकाता स्थित बीजेपी के राज्य मुख्यालय पर हमला बोला था। इसमें कई बीजेपी कार्यकर्ता घायल भी हुए थे। विरोध करने वाले सभी लोग टीएमसी सांसद सुदीप बंदोपाध्याय की रोज वैली चिटफंड घोटाले में गिरफ्तारी का विरोध कर रहे हैं।

केंद्रीय मंत्री बाबुल सुप्रियो ने ट्विटर पर एक वीडियो पोस्ट किया है जिसमें उन्होंने कहा कि तृणमूल पार्टी के कार्यकर्ता उनके घर में जबर्दस्ती घुसने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने लिखा, 'तृणमूल कांग्रेस के गुंडे मेरे कैलाश बोस स्ट्रीट के अपार्टमेंट में जबर्दस्ती घुसने का प्रयासस कर रहे हैं। वहां मेरे मां-बाप रहते हैं। कितना शर्मनाक है ये।'

नोटबंदी से पहले 2014 के चुनाव के बाद सीबीआई के छापे पड़ चुके होते और गिरफ्तारियां हो गयी होतीं तो ऐसा नजारा नहीं होता।सीबीआई केंद्र की सत्ता की कठपुतली है और नोटबंदी के खिलाफ खड़े लोगों को खामोश करने लगी है,आम जनता में यह धारणा बनी है।ममतादीदी को प्रबल जनसमर्थन के मद्देनजर बंगाल में हालात आपातकाल तो क्या तेजी से गृहयुद्ध में तब्दील होते जा रहे हैं।

संघ परिवार के हिंदुत्व एजंडे के लिए दसों उंगलियां घी में और सर कड़ाही में।कल रात से ही यूपी में भाजपा की बढ़तवाले सर्वे शुरु हो गये हैं।

रिजर्व बैंक और उसके रिलायंस रिटर्न मोदी नजदीकी गवर्नर सीबीआई गिरफ्त में नहीं हैं और न सारे दस्तावेज,गवाह और सबूत उनके सामने रखकर कोई पूछाताछ हो रही है।आरटीआई के सवालों के जबाव में वित्त मंत्री से सलाह ली गयी है या नहीं, नोटबंदी कि सलाह किन विशेषज्ञों से ली गयी है,ऐसे शाकाहारी सवाल भी टाले जा रहे हैं।इसी माहौल में सूचना के अधिकार (RTI) के तहत ताजा खुलासा हुआ है कि भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के केंद्रीय बोर्ड की गत आठ नवंबर को हुई बैठक में 500 और 1,000 रुपये के पुराने नोटों को वापस लेने की सिफारिश की गयी थी। प्रधानमंत्री ने इसी दिन देर शाम राष्ट्र के नाम अपने टेलीविजन संदेश में घोषणा की थी कि मध्यरात्रि से ये नोट वैध मुद्रा नहीं रह जायेंगे।

यानी कि प्रधानमंत्री का राष्ट्र के नाम संबोधन रिकार्ड होने के बाद रिजर्व बैंक से आरबीआई कानून से बचने के लिए यह सिफारिश जबरन वसूली गयी थी और वित्तमंत्री ही नहीं रिजर्व बैंक के गवर्नर भी नोटबंदी के मामले में अधेरे में थे।मोदी ने रिकार्डेड भाषण दिया था ,यह पहले ही साबित हो चुका है।

सीधे तौर पर इससे साबित होता है कि नोटबंदी के बाद कतारों में जो लोग मारे गये,उनके खून से तानाशाह के हाथ रंगे हैं।करोडो़ं जो लोग बेरोजगार होकर कबंध हैं,उनका सारा खून भी उन्हीं को हाथों में है।जो भुखमरी और मंदी के शिकार होंगे ,उनकी लाशों का बोझ भी उनके कांधे पर है।

कितना चौड़ा सीना है?

कितने मजबूत कंधे हैं?

सारा जोर कैसलैस डिजिटल लेनदेन पर है।आदार पहचान अनिवार्य है।लेकिन डिजिटल लेनदेन की रियायतें खत्म हैं।जोकिम अलग से भयंकर हैं क्योंकि सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं है।डिजिटल लेनदेने के लिए ई-वॉलेट सबसे सरल और आसान उपाय बनकर उभरे हैं लेकिन इसके साथ जोखिम भी कम नहीं। डाटा चोरी का डर है तो मोबाइल गुम हो जाने पर बैलेंस ट्रांसफर का खतरा और पेटीएम जैसी ईवॉलेट दिग्गज कंपनियां भी सुरक्षित नहीं हैं। मोबाइल गुम होना आम बात है।अब मोबाइल गुम होते ही आपकी जान भी चली जायेगी।जमा पूंजी निजी जानकारियां,गोपनीयता सब कुछ आधार नंबर के साथ बेदखल होगा।

गौरतलब है कि सुरक्षा का हवाला देकर ही एसबीआई ने आज ई-वॉलेट में पेमेंट ट्रांसफर पर रोक लगा दी है। लेकिन बड़ा सवाल है जब कैशलेस होने की तरफ हम आगे बढ़ रहे हैं तो ई-वॉलेट सहूलियत का सबसे बड़ा उपाय था लेकिन अगर इसमें इतने खतरे हैं तो क्या करें और कैसे फ्रॉड से बचेंय़इसका कोई जबवा रिजर्व बैंक दें तो बेहतर।

कितना चौड़ा सीना है?

कितने मजबूत कंधे हैं?

सात समुंदर के पानी से गुजरात नरसंहार के खून धुले नहीं हैं,बल्कि व्हाइट हाउस के रेड कार्पेट से वे खूनी हाथ चांप दिये गये हैं,जो अब फिर इंसानियत और जम्हूरियता का कत्ल करने लगे हैं।

रिजर्व बैंक की सिफारिश जिस दिन मिली ,उसी दिन राष्ट्र के नाम संबोधन,तो किन विसेषज्ञों से कब किस बैठक में नोटबंदी के बाद की स्थितियों से निबटने के बारे में सलाह मशविरा हुआ था,यह जानकारी जाहिर है ,आरटीआई सवाल से नहीं मिलेगा।

महज दो चार घंटे की तैयारी में नोटबंदी,जबकि इसी नोटबंदी के बाद सोवियत संघ टूट गया था।

कितना चौड़ा सीना है?

कितने मजबूत कंधे हैं?

वर्ष 1991, सोवियत संघ (यूएसएसआर - यूनियन ऑफ सोवियत सोशलिस्ट रिपब्लिक्स) में नोटबंदी और सोवियत संघ का विघटनः

मिखाइल गोर्बाचेव के नेतृत्व वाले सोवियत संघ ने अपने 'अंतिम साल' की शुरुआत में 'काली अर्थव्यवस्था' पर नियंत्रण के लिए 50 और 100 रूबल को वापस ले लिया था, लेकिन यह कदम न सिर्फ महंगाई पर काबू पाने में नाकाम रहा, बल्कि सरकार के प्रति लोगों को विश्वास भी काफी घट गया... उसी साल अगस्त में उनके तख्तापलट की कोशिश हुई, जिससे उनका वर्चस्व ढहता दिखाई दिया, और आखिरकार अगले साल सोवियत संघ के विघटन का कारण बना... इस कदम के नतीजे से सबक लेते हुए वर्ष 1998 में रूस ने विमुद्रीकरण के स्थान पर बड़े नोटों का पुनर्मूल्यांकन करते हुए उनमें से बाद के तीन शून्य हटा देने की घोषणा की, यानी नोटों को पूरी तरह बंद करने के स्थान पर उनकी कीमत को एक हज़ार गुना कम कर दिया... सरकार का यह कदम तुलनात्मक रूप से काफी आराम से निपट गया...

तो क्या नोटबंदी के जरिये हिंदुत्व पुनरूत्थान के लिए भारत को तोड़ने का कोई मास्टर प्लान है हिंदुत्व के एजंडे का?

मध्य प्रदेश के नीमच निवासी सामाजिक कार्यकर्ता चंद्रशेखर गौड़ ने बताया कि उनकी RTI अर्जी के जवाब में उन्हें बताया गया कि रिजर्व बैंक के केंद्रीय बोर्ड ने गत आठ नवंबर को नयी दिल्ली में आयोजित बैठक में ही इसकी सिफारिश की थी कि उस वक्त वैध मुद्रा के रूप में चल रहे 500 और 1,000 रुपये के नोट चलन से वापस ले लिये जाने चाहिए.

गौड़ ने हालांकि, बताया कि आरबीआई के एक अधिकारी ने सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 की धारा आठ (1) (ए) का हवाला देते हुए उन्हें नोटबंदी के विषय पर आरबीआई के केंद्रीय बोर्ड की संबंधित बैठकों के मिनटों की जानकारी नहीं दी। इसी धारा का उल्लेख करते हुए उन्हें यह भी नहीं बताया गया कि आरबीआई ने नोटबंदी पर अंतिम निर्णय अपनी किस बोर्ड बैठक में लिया था।

सूचना का अधिकार अधिनियम की धारा आठ (1) (ए) के मुताबिक उस सूचना को जाहिर करने से छूट दी गयी है, जिसे प्रकट करने से भारत की प्रभुता और अखंडता, राष्ट्र की सुरक्षा, रणनीति, वैज्ञानिक या आर्थिक हितों और दूसरे देशों से संबंधों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता हो या किसी अपराध को उकसावा मिलता हो।

कितना चौड़ा सीना है?

कितने मजबूत कंधे हैं?

भारत में कृषि उत्पादन दर हरित क्रांति के दो चरण पूरे होने से लेकर मनसेंटो क्रांति,जीएम सीड और ठेके पर खेती के बावजूद शून्य से ऊपर उठ नहीं रहा है। बुनियादी तौर पर भारत की अर्थव्यवस्था कृषि अर्थव्यवस्था है और मुक्त बाजार में भी सत्तर फीसद से ज्यादा लोगों की आजीविका कृषि पर निर्भर है।

अंधाधुंध शहरीकरण, अंधाधुंध बेदखली विस्थापन और प्राकृतिक संसाधनों की खुली लूट, बहुराष्ट्रीय कंपनियों के हवाले खेत खलिहान पहाड़ जंगल रण मरुस्थल और समुंदर हो जाने से खेती का रकबा लगातार घटता जा रहा है।

मुनाफावसूली की खेती में जीने के लिए,बाकी देशवासियों के लिए अनाज, दाल, तिलहन की उपज लगातार घटती जा रही है और हरित क्रांति के बाद खाद बीज सिंचाई मशीनों और मजदूरी के आसमान चूमते भावों की वजह से कैश फसल पर किसानों का जोर हैं लेकिन लागत का पैसा भी फसल से वापस नहीं आ रहा है।इस कृषि संकट को संबोधित न करने की वजह से लाखों किसान खुदकशी कर चुके हैं।

नोटबंदी के बाद अब करोडो़ं किसान कंगाल हैं।खरीफ की फसल बिकी नहीं है और रबी की बुवाई हुई नहीं है।अब पुरानी योजनाओं के कायाकल्प या चुनावी बजट के झुनझुना से नये सिरे से खेती हो नहीं सकती।

अनाज की भारी किल्लत और भुखमरी आगे हैं।इसी सिलसिले में हाल ही में 2010 में उत्तर कोरिया में नोटबंदी के अनुभव के मद्देनजर बगुला छाप विशेषज्ञों ने क्या एहतियाती इंतजामात किये हैं,इसका खुलासा आहिस्ते आहिस्ते होना है।

बहरहाल उत्तर कोरिया में वर्ष 2010 में तत्कालीन तानाशाह किम जोंग-इल ने अर्थव्यवस्था पर काबू पाने और काला बाज़ारी पर नकेल डालने के लिए पुरानी करेंसी की कीमत में से दो शून्य हटा दिए, जिससे 100 का नोट 1 का रह गया... उन सालों में देश की कृषि भी भारी संकट से गुज़र रही थी, सो, परिणामस्वरूप देश को भारी खाद्यान्न संकट का सामना करना पड़ा... चावल की बढ़ती कीमतों जनता में गुस्सा इतना बढ़ गया कि आश्चर्यजनक रूप से किम को क्षमा याचना करनी पड़ी तथा उन दिनों मिली ख़बरों के मुताबिक इसी वजह से तत्कालीन वित्त प्रमुख को फांसी दे दी गई थी…

कितना चौड़ा सीना है?

कितने मजबूत कंधे हैं?

लोग इस खुशफहमी में आज भी डिजिटल पेमेंट कर रहे हैं कि केंद्र सरकार की ओर से इसपर रियायत है। लेकिन 30 दिसंबर तक दी गई छूट को सरकार ने आगे नहीं बढ़ाया है। इसलिए अब आपसे बैंकों ने पैसा वसूलना शुरू कर दिया है।

लोग इस उम्मीद में बैठे थे कि सरकार एटीएम और डेबिट कार्ड ट्रांजैक्शन पर रियायतें 30 दिसंबर के बाद भी जारी रखेगी। या फिर 2000 रुपये से कम डिजिटल भूगतान करने पर सर्विस टैक्स छूट बरकरार रखेगी। लोग गलतफहमी में हैं। क्योंकि बैंको ने एक्स्ट्रा चार्जेस लगाने की प्रक्रिया फिर से शुरू कर दी है। जिसका सीधा असर अब आपके डिजिटल बटवे पर हो रहा है।

नोटबंदी के पचास दिन पुरे होने के बाद एटीएम से कैश निकालने पर ट्रांजैक्शन मुफ्त था उस वापस पांच ट्रांजेक्शन की पाबंदी लग चुकी है। इतना ही नहीं 2000 से कम डिजिटल भूगतान पर मिल रही रियायत की अवधि समाप्त हो गई है और बौंको ने मर्चेंट को इससे जुडे इंस्ट्रक्शन देना भी शुरू कर दिया है।

दरअसल, नोटबंदी लागू थी तब भी रेलवे टिकट या हवाई टिकट में डिजिटल भुगतान पर 1.8 फीसदी के आसपास चार्जेस लग रहे थे। अब ई-वॉलेट कंपनिया भी वॉलेट से बैंक में पैसे ट्रांसफर करने पर फिर से फीस वसूलना करना शुरू कर सकती हैं।

हम यह भी उम्मीद नहीं कर सकते कि कोई सपेरा या बाजीगर या सौदागर आम जनता से अपनी गलती की वजह से होने वाली तबाही के लिए माफी मांगेंगे।

मीडिया में सोवियत संघ और उत्तर कोरिया के अनुभवों के अलावा हाल में हुए तमाम देशों में नोटबंदी के असर का खुलासा पहले ही हो गया है।मसलनः

घाना, वर्ष 1982...

विश्व के आधुनिक इतिहास में नोटबेदी का कदम सबसे पहले अफ्रीकी देश घाना में उठाया गया था, जब वर्ष 1982 में टैक्स चोरी व भ्रष्टाचार रोकने के उद्देश्य से वहां 50 सेडी के नोटों को बंद कर दिया गया था. इस कदम से घाना के नागरिकों को अपनी ही मुद्रा में विश्वास कम हो गया, और उन्होंने विदेशी मुद्रा और ज़मीन-जायदाद का रुख कर लिया, जिससे न सिर्फ देश के बैंकिग सिस्टम को भारी नुकसान पहुंचा, बल्कि विदेशी मुद्रा पर काला बाज़ारी बेतहाशा बढ़ गई... ग्रामीणों को मीलों चलकर नोट बदलवाने के लिए बैंक जाना पड़ता था, और डेडलाइन खत्म होने के बाद बहुत ज़्यादा नोट बेकार हो जाने की ख़बरें थीं...


नाइजीरिया, वर्ष 1984...

नाइजीरिया में वर्ष 1984 में मुहम्मदू बुहारी के नेतृत्व वाली सैन्य सरकार ने भ्रष्टाचार से लड़ने के उद्देश्य से बैंक नोटों को अलग रंग में जारी किया था, और पुराने नोटों को नए नोटों से बदलने के लिए सीमित समय दिया था... नाइजीरिया सरकार द्वारा उठाए गए कई कदमों में से एक यह कदम पूरी तरह नाकाम साबित हुआ था, और कर्ज़ में डूबी व महंगाई तले दबी अर्थव्यवस्था को कतई राहत नहीं मिल पाई थी, और अगले ही साल बुहारी को तख्तापलट के कारण सत्ता से बेदखल होना पड़ा था...


म्यांमार, वर्ष 1987...

नोटबंदी का भारत से मिलता-जुलता कदम वर्ष 1987 में पड़ोसी देश म्यांमार में भी उठाया गया था, जब वहां सत्तासीन सैन्य सरकार ने काला बाज़ार को काबू करने के उद्देश्य देश में प्रचलित 80 फीसदी मुद्रा को अमान्य घोषित कर दिया... इस कदम के प्रति गुस्सा काफी रहा, और छात्र इसके विरोध में सड़कों पर उतर आए तथा भारी विरोध प्रदर्शन किया... देशभर में प्रदर्शनों का दौर काफी लंबे अरसे तक जारी रहा, और आखिरकार अगले साल सरकार को हालात पर काबू पाने के लिए पुलिस और सैन्य कार्रवाई करनी पड़ी...


'90 के दशक की शुरुआत में, ज़ायरे...

बैंक नोटों में सुधार के नाम पर '90 के दशक की शुरुआत में कई कदम उठाने वाले ज़ायरे के तानाशाह मोबुतु सेसे सेको को उस दौरान भारी आर्थिक उठापटक का सामना करना पड़ा... वर्ष 1993 में अप्रचलित मुद्रा को सिस्टम से पूरी तरह वापस निकाल लेने की योजना के चलते महंगाई बेतहाशा बढ़ गई, और अमेरिकी डॉलर की तुलना में स्थानीय मुद्रा में भारी गिरावट दर्ज की गई... इसके बाद गृहयुद्ध हुआ, और वर्ष 1997 में मोबुतु सेसे सेको को सत्ता से बेदखल कर दिया गया..


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