Total Pageviews

THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

Twitter

Follow palashbiswaskl on Twitter

Monday, April 20, 2009

Re: दखल की लड़ाई में बेदखल हुए वामपंथी



2009/4/21 Mandhata <drmandhata@gmail.com>


 
 

Sent to you by Mandhata via Google Reader:

 
 

via HAMARAVATAN by डा.मान्धाता सिंह on 4/20/09

कोलकाता में राजभवन के नजदीक पश्चिम बंगाल औद्योगिक विकास निगम का दफ्तर है। इस दफ्तर में प्रवेश करते ही सामने एक बोर्ड लगा है जिसपर लिखा है- टर्न लेफ्ट फार राइट डायरेक्शन। इसका सीधा अर्थ तो यही हुआ कि दफ्तर में घुसने के लिए बाएं मुड़िए। इसका सांकेतिक अर्थ भी है। अर्थात् अगर पश्चिम बंगाल को औद्योगीकृत देखना चाहते हैं तो वामपंथी रूझान रखिए। यानी वामपंथी बनिए या वामपंथ की राह चलिए। प्रकारांतर से यह एक नारा भी है कि अगर वामपंथी सरकार पर भरोसा रखें तभी पश्चिम बंगाल का औद्योगिकीकरण संभव होगा। अब पंचायत चुनाव के नतीजों ने इस नारे पर सवाल उठा दिया है। वह लाख टके का सवाल यह भी है कि क्या जिन तौर-तरीकों, सिद्धांतों को हथियार बनाकर बंगाल का औद्योगिकीकरण किया जा रहा है, वह जनता को स्वीकार्य है ?
कम से कम सिंगूर और नंदीग्राम में वाममोर्चा की भारी पराजय से तो यही लगता है कि सेज की यह नीति जनता को मंजूर नहीं। विशेष आर्थिक क्षेत्र (एसईज़ेड) के लिए भूमि अधिग्रहण को लेकर हिंसा का शिकार रहे सिंगूर और नंदीग्राम में त्रिस्तरीय पंचायती चुनाव में विपक्षी पार्टी तृणमूल कांग्रेस ने जीत हासिल की है। इन चुनावों को उद्योग के लिए कृषि भूमि के अधिग्रहण की बुद्धदेव भट्टाचार्य सरकार की नीति के लिए अग्निपरीक्षा के तौर पर देखा जा रहा था। जबरन कैडरवाहिनी के आतंक के साये में औद्योगिकीकरण के इस प्रयास को जनता ने नकारकर वाममोर्चा सरकार पुनर्विचार करने पर विवश कर दिया है।

माना जाता है कि पश्चिम बंगाल में पंचायतें जिनके आधीन होती हैं राज्य में सरकारें भी उन्हीं की कायम रहती हैं। यही ग्रामीण आधार हैं जिनपर १९७१ के बाद से वाममोर्चा सरकार कायम है। इसी कारण बंगाल को वामपंथियों का अभेद्य लालदुर्ग कहा जाता है। लेकिन मई २००८ में हुए पंचायत चुनाव में ममता बनर्जी की अगुआई में तृणमूल कांग्रेस ने इसी अभेद्य लालदुर्ग में सेंध लगा दी है।

आखिर ऐसा क्यों हुआ ?
अगर पंचायत चुनाव को जनादेश मानें तो ऐसे कई कारण हैं जिसने माकपा समेत उसके घटक दलों को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया है। पहला तो यह कि जिस सरकारी गुंडीगर्दी और कैडर राज का वाममोर्चा सरकार ने अधिग्रहण वाले इलाकों में प्रदर्शन किया उससे जनता बेहद भयभीत हो गई। इस डर का ही विपक्ष ने फायदा उठाया। दूसरे घटक दलों को हासिए पर रखनेऔर उन्हें दरकिनार कर अकेले फैसले लेने की रवायत ने इतना नाराज किया कि उन्हें मजबूर होकर अपनी ही सरकार की आलोचना करनी पड़ी। इसका मनोवैग्यानिक असर यह पड़ा कि जनता ने उनके विकल्प के तौर पर दूसरे दलों को चुना। घटक दलों को भी नुकसान इसी लिए हुआ क्यों कि वे विरोध भी करते रहे और वाममोर्चा में भी बने रहे। घटक दलों की इस बेवकूफी ने वाममोर्चा को वोट देने वालों में काफी भ्रम पैदा किया।
ममता बनर्जी के आंदोलन को बंगाल के बुद्धिजीवियों का समर्थन और सरकार की नीतियों के विरोध में कोलकाता में बुद्धिजीवियों का जुलूस वह मंजर था जहां साबित हो गया कि सरकार कहीं न कहीं तो गलत है। इसने एक ऐसा वातावरण तैयार किया जो सरकार की नीतियों की धज्जी उड़ाने के लिए काफी थी।
किसी लोकतांत्रिक व्यवस्था में तरह सरकार चलाने वालों का व्यवहार भी लोगों में सरकार के प्रति घृणा ही पैदा किया। मसलन तसलामा नसरीन के मुद्दे से लेकर सिंगुर और नंदीग्राम के मुद्दे पर पार्टी के आला नेता विमान बसु. विनय कोन्नार और खुद मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य का रवैया अल्पसंख्यकों को बेहद नाराज करने वाला रहा। इनकी जगह अनिल विश्वाश होते तो शायद विपक्ष इन मुद्दों को इतना भुना नहीं पाता। इसका सीधी अर्थ यह भी है कि पिछले दो साल में सरकार को डांवाडोल करने वाले रिजवानुर रहमान, तस्लीमा नसरीन, सिंगुर और नंदीग्राम के साथ खेती की जमीन के अधिग्रहण के तमामा मुद्दे पर ज्योति बसु को छोड़कर बाकी राज्य के माकपा के कर्णधारों का रवैया किसानों और अल्पसंख्यकों को नाराज करने वाला ही रहा। नतीजे में लालदुर्ग में तृणमूल ने आसानी से सेंध लगा ली। अगर यह शहरी इलाका होता माकपा को कम परेशानी होती मगर गांवों में तृणमूल का बढ़ता जनाधार वाममोर्चा के लिए खतरे की घंटी है।
चुनाव के बाद हिंसा तो अब भी नंदीग्राम में जारी है। नीचे दिए गए कुछ फोटो देखिए जो सरकार की उस मनमानी की कहानी कह रहे हैं जिसने आज वाममोर्चा को कुछ हद तक कमजोर कर दिया है और ऐसा बंगाल में वाममोर्चा के साथ पहली बार हुआ है।

टाटा की वह नैनो कार जिसका कारखाना सिंगुर में विवाद का विषय बना।


तापसी मलिक। सिंगुर में टाटा मोटर कारखाना स्थल से इसकी जली लाश बरामद हुई। सरकार के विरोध का इसे भी भिगतना पड़ा खामियाजा।


सरकार का विरोध करने वालों के तहस-नहस कर दिया गए घर।


नंदीग्राम में खाली कराए गए एक गांव में लहराता माकपा का झंडा।


नरसंहार के बाद खाली पड़े वे गांव जिन पर माकपा कैडरों ने पुनर्दखल का दावा किया।


बूथ रिगिंग करने के आरोप में इन लोगों को पकड़ी है पुलिस


अंततः ११ मई से शुरू हुए पंचायत चुनाव। नंदीग्राम में वोट डालने कतारबद्ध महिलाएं। बुलेट को बैलेट की ताकत दिखाने का वक्त आ गया था।


हिंसा में मारे गए बेकसूर लोगों के शव


नंदीग्राम में फायरिंग से दीवालों पर गोलियों के निशान


नंदीग्राम में नरसंहार की खबर के बाद ममता भी रवाना हुई नंदीग्राम। सभी को रास्ते में रोक लिया गया।


मेधापाटकर हिंसाग्रस्त नंदीग्राम को रवाना होती हुईं


बुद्धिजीवी सड़कों पर

कोलकाता में नंदीग्राम की हिंसा और सरकार के पुनर्दखल के बयान से बौखलाए बुद्धिजीवी सड़कों पर उतरे


नंदीग्राम में हिंसा के खिलाफ कोलकाता में बुद्धिजीवियों की रैली


नंदीग्राम में तैनात सीआरपीएफ जवान


पंचायत चुनाव में इस तरह ममता ने लगाई सेंध
पूर्वी मिदनापुर ज़िले में ज़िला परिषद की 53 सीटों में से 36 तृणमूल कांग्रेस के कब्ज़े में आई है।इसी जिले में नंदीग्राम है। तीन चरणों में हुए पंचायत चुनावों में बड़े पैमाने पर हिंसा हुई थी और दस से ज़्यादा लोग मारे गए थे। पिछले पंचायत चुनाव में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी यानी सीपीएम के नेतृत्व में वाम मोर्चे ने नंदीग्राम की 24 में से 19 पंचायत समितियों में जीत हासिल की थी। भूमि अधिग्रहण को लेकर तृणमूल कांग्रेस नीत भूमि उच्छेद प्रतिरोध समिति और माकपा के बीच विवाद में पिछले दो वर्षों में नंदीग्राम में काफी हिंसा हुई है और कई लोग मारे गए हैं। वाम मोर्चा को सिंगूर में भी करारा झटका लगा है। यहीं पर टाटा मोटर्स की प्रतिष्ठित नैनो कार परियोजना का निर्माण स्थल है। माकपा का पारंपरिक गढ़ रहे इस जिले में 1978 के बाद ऐसा पहली बार हो रहा है, जब जिला परिषद पर उसका नियंत्रण खत्म हो गया है। इस जिले में मिली हार इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यहीं ऐतिहासिक तेभागा कृषक विद्रोह हुआ था। पिछले तीन दशकों से इस जिले की जनता पार्टी के साथ दृढ़ता से खड़ी थी।

वाम मोर्चे के परंपरागत गढ़ दक्षिण चौबीस परगना में सीपीएम को 1978 के बाद पहली बार ज़िला परिषद में हार का सामना करना पड़ा है। यहाँ ग्राम पंचायत की 73 में से 34 पर तृणमूल ने जीत दर्ज की है, जबकि पांच पर उसकी सहयोगी सोशलिस्ट यूनिटी सेंटर के उम्मीदवार जीते हैं। जिले में वाम मोर्चा सरकार को ऐसे समय में झटका लगा है, जब वह नॉलेज सिटी और हेल्थ सिटी जैसी अनेक मेगा परियोजनाएँ शुरू करने की योजना बना रही है। इस जिला परिषद पर माकपा का कब्जा लगातार पिछले छह कार्यकाल से था। तृणमूल कांग्रेस ने कुल्पी पंचायत समिति में जबरदस्त जीत हासिल की। वहाँ पार्टी ने 31 सीटें जीतीं। माकपा को महज पाँच सीटों से संतोष करना पड़ा जबकि कांग्रेस को एक सीट पर जीत मिली।
वाम मोर्चा ने हालाँकि मुर्शिदाबाद जिला परिषद का नियंत्रण कांग्रेस से छीन लिया। इस क्षेत्र से कांग्रेस के कद्दावर नेता प्रणब मुखर्जी और दो अन्य नेता अधीर चौधरी तथा मन्नान हुसैन 2004 में लोकसभा पहुँचे थे। उत्तरी दीनाजपुर जिला परिषद सीटों पर कांग्रेस ने माकपा से कब्जा छीन लिया। इस बार पंचायत चुनाव में भूमि अधिग्रहण बड़ा मुद्दा था।

 
 

Things you can do from here:

 
 



--
Palash Biswas
Pl Read:
http://nandigramunited.blogspot.com/

No comments:

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...

PalahBiswas On Unique Identity No1.mpg

Tweeter

Blog Archive

Welcome Friends

Election 2008

MoneyControl Watch List

Google Finance Market Summary

Einstein Quote of the Day

Phone Arena

Computor

News Reel

Cricket

CNN

Google News

Al Jazeera

BBC

France 24

Market News

NASA

National Geographic

Wild Life

NBC

Sky TV