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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Monday, May 21, 2012

देश जिस वित्तीय संकट से जूझ रहा है, कालाधन पर श्वेत पत्र से उससे मुक्ति मिलने के आसार नहीं है और न ही विदेशी बैंकों से कालाधन की वापसी के!

देश जिस वित्तीय संकट से जूझ रहा है, कालाधन पर श्वेत पत्र से उससे मुक्ति मिलने के आसार नहीं है और न  ही विदेशी बैंकों से कालाधन की वापसी के!

​​मुंबई से एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास

कालाधन पर श्वेत पत्र जारी करके वित्तमंत्री प्रमव मुखर्जी ने सरकार की साख बचाने की जोरदार कोशिश की है। पर गार के मामले में जैसे उन्होंने कारपोरेट दबाव में लीपापोती की, उससे इस श्वेत पत्र के प्रकाशन से कालाधन के विदेशी निवेश के रास्ते देश के अर्थ व्यवस्था को अपने चंगुल में लेने का सिलसिला बंद नहीं होने जा रहा है। न ही भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम की आग ठंडी पड़नेवाली है।सरकार का चाहे जो हो, राष्ट्रपति बनकर ​राष्ट्रपतिभवन से देश पर राज करने का मौका भी अब लगता है कि प्रमव दा ने को दिया है। क्षत्रपों ने अपने पत्ते इस खूबी से खेलने शुरु कर दिये हैं कि य़ूपीए और एनडीए को खेलने का मौका ही नहीं मिल पा रहा है। जयललिता, नवीन पटनायक और मायावती के बाद बंगाल की मुख्यमंत्री​ ​ ममता बनर्जी ने किसी बंगाली को पहली दफा राष्ट्रपति बनने की रही सही संभावना खत्म कर दी। इससे ज्योति बसु को प्रधानमंत्री पद तक पहुंचने की माकपा की कार्रवाई के इतिहास के दुहराने जैसा कुछ तो जरूर हो गया है।आज जब प्रणवदादा ने कालाधन पर श्वेत पत्र जारी किया तब दीदी ने मीरा कुमार को राष्ट्रपति बनाने की जोरदार पेशकश करते हुए उनकी हवा निकाल दी। बंगाल में कुछ लोग जरूर यह कह रहे है कि यह दीदी और ​​दादा की मैच फिक्सिंग है, राजनीतिक रैव पार्टी से अलग होने की दादा की कोई मंशा नहीं है और वे प्रधानमंत्री पद के दावेदार हैं। पर सच तो यह है कि हिलेरिया से मुलाकात के बाद दीदी अब महज बंगाल तक सीमित रहेंगी ऐसा असंभव है, नेहरु गांधी परिवार के वर्चस्व के बने रहते ददा को भी प्रधानमंत्री बनने की कोई महत्वाकांक्षा होगी, ऐसा नहीं लगता। फिर इसके लिए कांग्रेस का दुबारा सत्ता में आना जरूरी है, पर देश जिस वित्तीय संकट से जूझ रहा है, कालाधन पर श्वेत पत्र से उससे मुक्ति मिलने के आसार नहीं है और न  ही विदेशी बैंकों से कालाधन की वापसी के।डॉलर के मुकाबले रुपया 55.03 के स्तर पर बंद हुआ है। 2012 में अब तक रुपया 23% कमजोर हुआ है।

वोटबैंक को साधने की यह कवायद कांग्रेस को फिर सत्ता में ला पायेगी यह लगता तो नहीं है।इसी हालात के मद्देनजर क्षत्रपों की ताकतें बढ़ी हैं और वे खुद सबकुछ हासिल कर लेने की हर कोशिश करने से बाज नहीं आयेंगे।श्वेत पत्र में काले धन को वापस देश में लाने के लिए कर दरों में रियायत और दोबारा कर माफी जैसी योजना शुरू करने का प्रस्ताव दिया गया है। लेकिन संसद में पेश श्वेत पत्र में वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने काले धन का न तो कोई अनुमान दिया है और न ही काले धन के आरोपी किसी व्यक्ति के नाम का खुलासा किया है।  हां, यह दावा अवश्य किया गया है कि स्विस बैंकों में जमा काले धन में कमी आयी है।  प्रणब मुखर्जी ने काले धन पर जो श्वेत पत्र पेश किया वो काले धन पर सरकार का कोरा कागज ज्यादा लगता है। स्विस नेशनल बैंक के मुताबिक 2010 में स्विटजरलैंड के बैंकों में भारतीयों का सिर्फ 9295 करोड़ रुपया जमा था।इससे भी चौंकाने वाला आंकड़ा ये है कि स्विस बैंक में भारतीयों का जमा 2006 के मुकाबले आधे से भी कम रह गया है। 2006 में भारतीयों के 23 हजार 373 करोड़ रुपए स्विस बैंकों में जमा थे।सरकार का मानना है कि फाइनेंशियल सेक्टर, रियल एस्टेट सेक्टर, बुलियन और ज्वेलरी सेक्टर काले धन के अड्डे बन गए हैं। कैश इकोनॉमी, माइनिंग, इक्विटी ट्रेडिंग, एनजीओ और को-ऑपरेटिव सेक्टर से भी काला धन बनने की आशंका है।सरकार ने बजट पर चर्चा के दौरान श्वेत पत्र लाने की बात कही थी। वित्त मंत्री इस रिपोर्ट में काले धन को देश में वापस लाने पर सरकार की कोशिशों के बारे में बताएंगे।हालांकि वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने साफ कर दिया था कि इस पत्र में काले धन के मालिक का नाम नहीं दिया जाएगा। क्योंकि काले धन के मुद्दे पर एक्सपर्ट कमेटी की रिपोर्ट अभी बाकी है।जानकारों के मुताबिक इस पत्र में काले धन पर टैक्स देकर देश में वापस लाने पर जोर हो सकता है।

यूपीए-2 को लेकर पैदा हुए मोहभंग के बीच राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाने की मांग तेजी पकड़ रही है। आईबीएन7 के लिए किए गए GFK-MODE के आंकड़े इस ओर साफ इशारा करते हैं। सर्वेक्षण में लोगों से सीधा सवाल पूछा गया कि यूपीए सरकार में मनमोहन सिंह के बाद प्रधानमंत्री पद के लिए उनकी पसंद क्या है? जवाब में 33 फीसदी लोगों ने राहुल गांधी का नाम लिया जबकि 20 फीसदी लोग प्रणब मुखर्जी और 7 फीसदी लोग सोनिया गांधी को प्रधानमंत्री बनाने के हक में हैं।सवाल ये भी है कि क्या राहुल गांधी प्रधानमंत्री बनने की क्षमता रखते हैं? GFK-MODE के आंकड़ों के मुताबिक 48% लोग मानते हैं कि राहुल गांधी में प्रधानमंत्री पद संभालने की क्षमता है, जबकि 43% लोगों की नजर में राहुल में ऐसी क्षमता नहीं है। सर्वेक्षण में शामिल 9 फीसदी लोगों ने इसपर कोई राय नहीं दी।

हर मोर्चे पर संकट झेल रही यूपीए सरकार के लिए खतरे की घंटी बज गई है। यूपीए की दूसरी पारी के तीन साल में ही लोगों का उससे मोहभंग हो गया है। आईबीएन 7 के लिए किए गए GFK-MODE के आंकड़े इस ओर ही इशारा कर रहे हैं। सर्वे में लोगों से सवाल पूछा गया था कि क्या यूपीए को एक और मौका मिलना चाहिए? जवाब में सिर्फ 38 फीसदी लोगों ने इसके लिए हामी भरी जबकि 49 फीसदी लोग यूपीए सरकार को तीसरी बार मौका दिए जाने के पक्ष में नहीं हैं। 9 फीसदी लोग मनमोहन सरकार को अभी कुछ और वक्त देना चाहते हैं।सर्वे में सीधा सवाल पूछा गया कि क्या सरकार की साख कम हुई है? जवाब में 66 फीसदी लोगों ने कहा कि हां जबकि सरकार के पक्ष में सिर्फ 31 फीसदी लोग ही खड़े नजर आए। आईबीएन7 के लिए किए गए GFK-MODE के सर्वे के आंकड़ों के मुताबिक 21 फीसदी लोग मानते हैं कि अन्ना आंदोलन पर नाकामी सरकार की साख गिरने की बड़ी वजह रही। 20 फीसदी मानते हैं कि आर्थिक सुधार लाने में नाकाम रहने पर सरकार की साख गिरी।17 फीसदी का कहना है कि भ्रष्टाचार रोकने में नाकाम रहने का असर साख पर पड़ा। 16 फीसदी लोगों की मानें तो गठबंधन चलाने में नाकामी साख गिरने की वजह बनी। 11 फीसदी लोगों के मुताबिक फैसले लेने में देरी और नाकामी का असर सरकार की साख पर पड़ा। वहीं 11 फीसदी मानते हैं कि सोनिया की खराब सेहत से कमजोर हुए प्रधानमंत्री ने भी सरकार की साख गिराई।आंकड़े गवाही दे रहे हैं कि अपने तीन साल पूरे कर रही मनमोहन सरकार कुप्रबंधन का शिकार ज्यादा रही। हर मुद्दे पर भ्रम की स्थिति, सहयोगियों की एक घुड़की के बाद बदलते फैसले। जाहिर है, सरकार अपनी करनी के चलते बैकफुट पर है।

यूपीए सरकार के मुखिया हैं मनमोहन सिंह। बतौर अर्थशास्त्री मनमोहन की एक साख है लेकिन सर्वे में जनता से उनकी इमेज पर पूछे गए सवाल के चौंकाने वाले जवाब मिले। ये सर्वे IBN7 के लिए GFK-MODE ने किया। सवाल था कि क्या मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री पद से हटा देना चाहिए? 55 फीसदी लोगों ने कहा हां, 39 फीसदी ने कहा नहीं, जबकि 6 फीसदी की कोई राय नहीं थी।दूसरा सवाल था कि दूसरी पारी में क्या है प्रधानमंत्री की सबसे बड़ी नाकामी? 31 फीसदी ने कहा बेकाबू कीमतें तो 17 फीसदी ने मनमोहन को भ्रष्टाचार रोकने में नाकाम पाया। 13 फीसदी ने माना कि विकास की रफ्तार पर ब्रेक लग गया है तो 10 फीसदी ने कहा सरकार संकट के समय फैसला लेने में नाकाम रही। 10 फीसदी ने कहा कि आर्थिक सुधार ठप हो गए हैं तो 6 फीसदी लोगों की राय में सरकार आम लोगों से संवाद कायम करने में नाकाम रही। 4 फीसदी आतंकवाद और नक्सलवाद पर मनमोहन को नाकाम पाते हैं।

ममता बनर्जी ने अगले राष्ट्रपति के रूप में लोकसभाध्यक्ष मीरा कुमार का जोरदार समर्थन किया। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अगले राष्ट्रपति के रूप में कांग्रेस नेता प्रणव मुखर्जी के बारे में आज कोई स्पष्ट वादा नहीं किया लेकिन इस पद के लिए लोकसभाध्यक्ष मीरा कुमार का जोरदार समर्थन किया। ममता ने कहा कि यह निर्णय कांग्रेस पार्टी को करना है कि उसका उम्मीदवार कौन है। ममता बनर्जी ने सोमवार को स्पष्ट कहा कि केंद्रीय वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी के बजाय यदि मीरा कुमार, गोपाल कृष्ण गांधी या एपीजे अब्दुल कलाम राष्ट्रपति बनें तो उन्हें खुशी होगी। उन्होंने इशारे में ही सही, यह संकेत दे दिया कि वह प्रणब की उम्मीदवारी से सहमत नहीं हैं।सीएनएन-आईबीएन को दिए साक्षात्कार में ममता ने प्रणब के बारे में कहा कि यदि देश उन्हें इसकी अनुमति देता है तो मैं इसका विरोध करने वाली कौन होती हूं। वैसे यह बहुमत पर निर्भर होगा, यह लोकतांत्रिक देश है। वह केंद्र में वित्त मंत्री हैं। यह निर्णय कांग्रेस को लेना है कि वह किसे राष्ट्रपति का उम्मीदवार बनाए। हम कुछ नहीं कह सकते। मैं कांग्रेस के कामकाज में हस्तक्षेप नहीं कर सकती, यह मेरा काम नहीं है।


दूसरी ओर यूपीए सरकार ने दूसरे कार्यकाल की अपनी तीसरी वर्षगांठ पर कालाधन पर श्वेत पत्र जारी कर अपनी साख को बचाने की कोशिश की है। प्रणव मुखर्जी ने कालाधन श्वेत पत्र पेश किया। हालांकि, 50 से ज्यादा पन्नों के इस श्वेत पत्र में कालाधन का आंकड़ा नहीं बताया गया है। सरकार पर यह आरोप लग रहे हैं कि पहले कार्यकाल की तुलना में दूसरे कार्यकाल में भ्रष्टाचार को रोकने और अर्थव्यवस्था को बेहतर बनाने के लिए वह कोई ठोस कदम उठाने में असफल रही है।लोकसभा में कालाधन पर श्वेत पत्र पेश करते हुए वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने सुझावों और उपायों की झड़ी लगाई। उन्होंने यह संदेश देने की कोशिश की सरकार ब्लैक मनी की समस्या को लेकर काफी गंभीर है। इसका जल्द समाधान किया जायेगा। श्वेत पत्र में सरकार ने इस बात का खुलासा किया है किस सेक्टर में ब्लैक मनी सबसे ज्यादा है। सरकार के अनुसार सबसे अधिक कालाधन रीयल सेक्टर, बुलियन एंड जूलरी मार्केट, शेयर मार्केट और फाइनैंशल सेक्टर के साथ सार्वजनिक खरीद क्षेत्र में सबसे ज्यादा है। सरकार के अनुसार रीयल एस्टेट के प्रॉजेक्टों में कालाधन का इस्तेमाल इनवेस्टमेंट के रूप में हो रहा है। कालाधन का इस्तेमाल जमीन खरीद से निर्माण में हो रहा है। इसी तरह से बुलियन सेक्टर में इनवेस्टमेंट से लेकर जूलरी खरीदने की कैश से खरीद में कालाधन धड़ल्ले से आ रहा है। शेयर मार्केट में पार्टिसिपटरेरी प्री नोट के जरिए विदेशों से और विदेशों में गया कालाधन भारतीय शेयर मार्केट में लग रह है।फाइनैंशल मार्केट में कंपनियों के पब्लिक प्रींफेशियल इश्यू (आईपीओ) में कालाधन लग रहा है। श्वेत पत्र के अनुसार, सार्वजनिक खरीद का मार्केट आठ लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। यहां पर ब्लैक ने अपने पांव जमा रखे हैं।

इस बीच एक बार फिर से लोकपाल बिल राज्यसभा में लटक गया है. राज्यसभा ने इस बिल को सलेक्ट कमेटी को भेज दिया है।सरकार के इस फैसले से आहत टीम अन्ना ने 25 जुलाई से अनशन का ऐलान किया है. यह अनशन दिल्ली के जंतरमंतर पर किया जाएगा।टीम अन्ना के सदस्य अरविंद केजरीवाल ने कहा कि बुज़ुर्ग गाँधीवादी समाजसेवी अन्ना हज़ारे अनशन पर नहीं बैठेंगे।

बिल को सलेक्ट कमेटी के पास भेजे जाने के बाद केजरीवाल ने कहा, "सिर्फ टीम अन्ना के सदस्य ही अनशन पर बैठेंगे"।

अन्ना ने भ्रष्टाचार के मुद्दे पर हमला करते हुए कहा कि कोई भी पार्टी लोकपाल को लेकर गंभीर नहीं है।

अन्ना ने जलगांव में कहा, "बिल को सलेक्ट कमेटी के पास भेजने के पीछे वजह सिर्फ समय बर्बाद करने की कोशिश है. कोई भी पार्टी यहां तक के सत्ता पक्ष या विपक्ष या बीजेपी लोकपाल बिल पास कराने को लेकर गंभीर नहीं है. लेकिन जनता सरकार पर दबाव डाले ताकि यह बिल पास हो सके।"

ग़ौरतलब है कि पिछले एक साल टीम अन्ना लोकपाल बिल को लेकर सरकार पर लगातार दबाव डाल रही है, लेकिन यह बिल पास नहीं हो पा रहा है।

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने काले धन पर केंद्रीय वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी द्वारा लोकसभा में सोमवार को पेश किए गए श्वेत पत्र को निराशाजनक कह कर खारिज किया। वरिष्ठ भाजपा नेता जसंवत सिंह ने सोमवार को कहा कि यह श्वेत पत्र 'बिकनी' के समान है जो आवश्यक चीजों को ढक लेती है और अनावश्यक चीजों को खुला रहने देती है। उन्होंने कहा, 'यह एक निराशाजनक दस्तावेज है। इस श्वेत पत्र में लिखा गया है कि 213 बिलियन डॉलर काला धन देश से बाहर गया और 462 बिलियन डॉलर का लेन देन अवैध तरीके से हुआ।

स्विस नेशनल बैंक के मुताबिक स्विस बैंकों में विदेशी खातेदारों की कुल जमा रकम का सिर्फ दशमलव 13 फीसदी हिस्सा ही भारतीयों का है।

स्विस नेशनल बैंक के आंकड़े पेश करके सरकार ने ये साबित करने की कोशिश की है कि स्विस बैंकों में भारतीयों के सबसे ज्यादा रकम जमा होने की दलील गलत है।

सरकार ने ग्लोबल फिनांस इंटिग्रिटी यानी जीएफआई का एक दूसरा आंकड़ा पेश किया है। लेकिन वो खुद ही इसे मानने को तैयार नहीं है।

जीएफआई ने 60 साल में भारत से बाहर गए काले धन का ब्योरा पेश किया है और ये भी कि मौजूदा आर्थिक परिस्थितियों में उसकी कीमत कितनी होती।

नवंबर 2010 में आई जीएफआई की रिपोर्ट के मुताबिक 1948 से लेकर 2008 तक 213.2 अरब ड़ॉलर यानि करीब 11 हजार 715 अरब रुपया काले धन के तौर पर देश से बाहर जा चुका है।

इसी रिपोर्ट में ये भी बताया गया है कि आज की तारीख में इसकी कीमत 462 अरब डॉलर होती। अगर इसको रुपए में बदलें तो ये आंकड़ा 25 हजार 410 अरब रुपए बनता है।

सरकार कहती है कि जो रुपया काले धन के तौर पर बाहर गया है उसका बहुत बड़ा हिस्सा वापस आ चुका है। कितना आया है ये सरकार को नहीं पता. हालांकि ये जरूर है कि ये वापसी तीन तरह से हुई है।

एक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश यानि एफडीआई के जरिए दो शेयर बाजार में पी नोट्स के जरिए और तीन एनजीओ के जरिए।

मतलब सरकार अपने श्वेत पत्र में खुद ही मान रही एफडीआई के नाम पर जो पैसा आ रहा है वो दरअसर एक बड़ा भ्रम है और वो दरअसल भारत से ही विदेश गया काला धन है।

कालाधन के विस्तार पर अंकुश लगाने के लिए कालेधन पर जारी श्वेत-पत्र में कहा गया है कि बैंकों के डेबिट और क्रेडिट कार्ड और इलेक्ट्रॉनिक ट्रांसफर के इस्तेमाल को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। कालेधन पर सोमवार को लोकसभा के पटल पर रखे गये श्वेतपत्र में कहा गया है, 'इस मामले में एक और महत्वपूर्ण उपाय बैंकिंग चैनलों विशेषकर क्रेडिट और डेबिट कार्ड्स के इस्तेमाल को प्रोत्साहित करना हो सकता है। इन मामलों में उपयुक्त लेनदेन और खातों की उचित ढंग से लेखापरीक्षा होती है इसलिये कालेधन के सृजन को इससे हतोत्साहित करने में मदद मिलेगी।' इसमें कहा गया है, 'सरकार कोरिया गणराज्य की तरह क्रेडिट और डेबिट कार्ड के इस्तेमाल को कर प्रोत्साहन उपलब्ध कराकर भी बढ़ावा दे सकती है। निम्न स्तरीय नकद खरीदारी पर सोत पर कर संग्रह के प्रावधान को भी संभावित नीतिगत विकल्प के तौर पर विचार किया जा सकता है।' ई-सेवा माध्यमों के जरिये डेबिट और क्रेडिट कार्ड से भुगतान को और अधिक सरल बनाया जा सकता है। इससे अर्थव्यवस्था में नकद लेन-देन को कम करने में मदद मिलेगी। श्वेतपत्र में कहा गया है कि अब व्यापार में इलेक्ट्रॉनिक हस्तांतरण की सुविधा उपलब्ध है, ऐसे में भुगतान का यह जरिया जवाबदेही की मजबूती और बिना हिसाब-किताब वाली गतिविधियों को हतोत्साहित करेगा। रिपोर्ट में इस बात पर भी जोर दिया गया है कि निजी क्षेत्र में भी वेतन और भत्तों का भुगतान भी बैंकिंग चैनल के जरिए किया जाना चाहिए और उसे भी सरकार के समावेशी कार्यक्रम के साथ साथ नकदी रहित बनाया जाना चाहिए। चेक डिस्काउंटिग जैसी व्यापारिक गतिविधियों को हतोत्साहित करने की दिशा में चेक और डिमांड ड्राफ्ट की वैध अवधि को भी छह महीने से घटाकर तीन महीने कर दिया गया है। एक अप्रैल 2012 से व्यवस्था लागू हो गई है।

डॉलर के मुकाबले रुपये के 54.87 के स्तर तक पहुंचने से बाजार की तेजी पर ब्रेक लगा। सेंसेक्स 30 अंक चढ़कर 16183 और निफ्टी 15 अंक चढ़कर 4906 पर बंद हुए।एशियाई बाजारों में तेजी लौटने से घरेलू बाजारों ने भी मजबूती के साथ शुरुआत की। शुरुआती कारोबार में ही निफ्टी 4900 के ऊपर पहुंच गया।लेकिन, रुपये में बढ़ती कमजोरी ने बाजार की तेजी पर लगाम लगाए रखी। दोपहर तक बाजार उतार-चढ़ाव के साथ सीमित दायरे में घूमते नजर आए।यूरोपीय बाजारों के कमजोरी पर खुलने से घरेलू बाजारों पर भी दबाव नजर आया। हालांकि, यूरोपीय बाजारों में रिकवरी आने से घरेलू बाजारों में भी जोश भरा। सेंसेक्स 145 अंक उछला और निफ्टी में करीब 50 अंक की तेजी आई।हालांकि, दोपहर 2 बजे के बाद रुपये के फिसलने से बाजार की रफ्तार पर ब्रेक लगा। डॉलर के मुकाबले रुपये के निचले स्तर के करीब पहुंचने से बाजारों ने तेजी गंवा दी।कैपिटल गुड्स, रियल्टी, पावर, बैंक शेयर 2-1 फीसदी चढ़े। पीएसयू, ऑयल एंड गैस, ऑटो, मेटल, हेल्थकेयर शेयरों में 0.6-0.3 फीसदी की तेजी आई। कंज्यूमर ड्यूरेबल्स सुस्ती पर बंद हुए।टाटा पावर, एसबीआई, मारुति सुजुकी, बीएचईएल, कोल इंडिया, एलएंडटी, हिंडाल्को, सन फार्मा 4.5-2 फीसदी चढ़े। डीएलएफ, एचडीएफसी, रिलायंस इंडस्ट्रीज, गेल, आईसीआईसीआई बैंक, टाटा मोटर्स, टाटा स्टील, एमएंडएम 1.75-0.5 फीसदी तेज हुए।आईटी, तकनीकी और एफएमसीजी शेयरों में 1 फीसदी की कमजोरी आई। विप्रो, आईटीसी, इंफोसिस, स्टरलाइट इंडस्ट्रीज, सिप्ला, एनटीपीसी, एचयूएल, ओएनजीसी, भारती एयरटेल, बजाज ऑटो, जिंदल स्टील, एचडीएफसी बैंक 2-0.5 फीसदी गिरे।दिग्गजों के मुकाबले छोटे और मझौले शेयरों में ज्यादा खरीदारी आई। स्मॉलकैप 1 फीसदी और मिडकैप 0.5 फीसदी तेज हुए।

काले धन पर संसद में श्वेत पत्र जारी

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