Total Pageviews

THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

Twitter

Follow palashbiswaskl on Twitter

Sunday, May 20, 2012

सावधान! पत्रकारिता गिरवी रख दी गयी है

http://news.bhadas4media.com/index.php/creation/1419-2012-05-20-10-46-54

[LARGE][LINK=/index.php/creation/1419-2012-05-20-10-46-54]सावधान!  पत्रकारिता गिरवी रख दी गयी है [/LINK] [/LARGE]
Written by नीरज Category: [LINK=/index.php/creation]बिजनेस-उद्योग-श्रम-तकनीक-वेब-मोबाइल-मीडिया[/LINK] Published on 20 May 2012 [LINK=/index.php/component/mailto/?tmpl=component&template=youmagazine&link=a9e569872a633e30560ff33a034b4d5d0782bc75][IMG]/templates/youmagazine/images/system/emailButton.png[/IMG][/LINK] [LINK=/index.php/creation/1419-2012-05-20-10-46-54?tmpl=component&print=1&layout=default&page=][IMG]/templates/youmagazine/images/system/printButton.png[/IMG][/LINK]
कुछ दिनों पहले खबर आयी कि एबी बिरला ग्रुप और टी.वी.टुडे के बीच एक डील हुई. डील के तहत अब टी.वी.टुडे में ए.बी.बिरला ग्रुप का हिस्सा तकरीबन 27% फीसदी का होगा.  मद्देनज़र, एक मोटी रकम टी.वी.टुडे के हिस्से में आयी है. टी.वी.टुडे देश के प्रभावशाली मीडिया संस्थानों में से एक है. पत्रकारिता में भी इसने सराहनीय योगदान दिया. पर पिछले कुछ दिनों से इसकी गिरती साख (न्यूज़ के नाम पर, आज तक और इंडिया टुडे में परोसी जाने वाली सामग्री) और पैसों के लिए कंटेंट में गिरावट पर इसने ज़्यादा जोर लगाया. बात समझने वाली थी. पत्रकारिता पर पैसा भारी पड़ने लगा था.

 

अब लौटते हैं ज़मीनी मुद्दे पर. क्या कोई उद्योगपति घाटा सहकर भी समाज का भला करता है? क्या कोई उद्योगपति अपने व्यवसायिक हितों के खिलाफ खबर दिखाएगा या छापेगा? क्या कोई उद्योगपति, किसानों-मजदूरों-गरीब तबके की बेबाक बातों को सामने आने देगा? क्या कोई उद्योगपति, सरकार से पंगा मोल लेगा? क्या किसी उद्योगपति में इतनी हिम्मत है कि- अपना "कुछ" न्योछावर कर, दूसरों का भला करे? उद्योगपतियों का इतिहास, कभी गरीबों के हितों का साक्षी रहा है? इतिहास गवाह है कि- मुनाफ़ा कम होने को घाटा करार देना उद्योगपतियों की पुरानी आदत है. इतिहास गवाह है कि- मुनाफ़ा बढ़ाने के लिए कर्मचारियों को एक झटके में निकाल देना, उद्योगपतियों के लिए आम बात है. इतिहास गवाह है कि- उद्योगपति, पत्रकारिता की मूल भावना (सच और ज़मीन से सरोकार) से कोई इत्तेफाक नहीं रखता.  ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है- कि- कोई उद्योगपति, मीडिया संस्थानों में घुसपैठ किस लिए बना रहा है? मीडिया संस्थानों का इस्तेमाल, वो किस तरह से करेगा? लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ की गरिमा को किस हद तक कायम रख पायेगा?

लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ को गिरवी बना देने का ये प्रयास उत्साहजनक नहीं है. हालांकि देखा जाए तो आज कई नामचीन अखबार उद्योगपति घरानों के हैं. ये अखबार अपने सम्पादकीय और कंटेंट में (निजी हितों को ध्यान में रख) एक पार्टी विशेष के प्रति झुकाव का साफ़ संकेत देते हैं. चुनाव के दिनों में तो कुछ पूछना ही नहीं. पेड न्यूज़ का मामला यहीं से शुरू होता है. पेड न्यूज़ सिर्फ पैसा देकर न्यूज़ छापने को ही नहीं कहते हैं. पेड न्यूज़ की कतार में वो समाचार सामग्री भी शुमार होती हैं जो निजी/ व्यवसायिक हितों को दिमाग में रख कर छापी जाती हैं. देश की तमाम राजनीतिक पार्टियों की विचारधाराओं को अक्सर अलग-अलग- मीडिया संस्थानों में पलते-पोसते देखा जा सकता है. यही नहीं- बल्कि- अब तो उद्योगपतियों के व्यावसायिक हितों की छाप देश के अधिकाँश मीडिया संस्थानों में देखी जा रही है. पर एक बात ध्यान देने की है- कि- अब तक ये सब बंद कमरों में होता था. सरे-आम नहीं. पर ए.बी.बिरला ग्रुप और टी.वी.टुडे के बीच डील, अब इसे सरे-आम बना देगी.

जिस देश में गरीब और ज़मीन से जुड़े आदमी की आवाज़, अनदेखा कर दी जाती है, उस देश में मीडिया की तरफ आम आदमी देखता था. कुछ आवाज़, गाहे-बगाहे सुनी भी जाने लगीं. पर अब क्या होगा? क्या बिरला ग्रुप, अपनी हिस्सेदारी की धौंस से समाचारों/पत्रकारिता की गुणवत्ता को प्रभावित नहीं करेगा? क्या अरुण पुरी, पूरी ज़िम्मेदारी (जैसा की कभी माना जाता था) के साथ पत्रकारिता करेंगे? क्या बड़े पत्रकार (जो थोड़े बहुत बचे हैं), मोटी तनख्वाह का लालच छोड़ कर पत्रकारिता का सच सामने ला पाएंगें. क्या बिरला का "सच", वाकई सच होगा?  मुश्किल है. ये तो शुरूवात है. आगे-आगे देखिये होता है क्या. अरुण पुरी को पत्रकारिता जगत में जो सम्मान हासिल था- वो (पैसों की खातिर) उन्होंने बेच डाला. पत्रकारिता के इतिहास में अरुण पुरी कभी नायक थे, अब खलनायक के तौर पर याद किये जाएंगे. ऐसा खलनायक, जिसने पत्रकारिता को उद्योगपतियों के हाथ, गिरवी रखने की (खुले-आम ) शुरुआत की.  अरुण पुरी को मालूम होना चाहिए कि- पत्रकारिता (आज भी) समाजवाद के नज़दीक है और उद्योग-धंधे पूंजीवाद के करीब. पत्रकारिता (आज भी) हक़ की आवाज़ बनने की (कमज़ोर ही सही) कोशिश करती है, उद्योग-धंधे हक़ को दबाने का हुनर सदियों से पाले हैं. ऐसे में, किस तरह का ताल-मेल, अरुण पुरी ने बैठाने की कोशिश की है- ये आम- आदमी की समझ से परे है (समझने वाले समझ चुके हैं).

आज समाचार जगत में घाटे की तस्वीर अक्सर पेश की जाती है. कंटेंट से समझौता कर, कॉमेडी सर्कस-यू ट्यूब और अजीबो-गरीब कंटेंट (जिनका खालिस पत्रकारिता से कोई लेना-देना नहीं) के ज़रिये टी.आर.पी. और सर्कुलेशन बढ़ाया जा रहा है. बावजूद इसके ज़मीन से जुड़े रहने का दबाव इन सब पर बना हुआ था. आम-आदमी की खबर और सच से (थोडा-बहुत ही सही ) सरोकार दिखाना मजबूरी थी. आदिवासियों की ज़मीन-जंगल पर कब्ज़ा ज़माने की उद्योगपतियों की गंदी चालों को बे-नकाब करना (अब तक) पत्रकारिता का (एक छोटा सा ही सही) हिस्सा था. अब? कौन किसका हिस्सा बनेगा? लोकतंत्र के चौथे-स्तम्भ को (घाटा-मुनाफ़ा के तहत चलने वाले)  खुले-आम उद्योग-धंधे की शक्ल में तब्दील करने के सूत्रधार तो आखिरकार वही माने जायेंगे. एक उद्योगपति इस क्षेत्र में घुस कर कितना घाटा सह पायेगा और अपना हक़ मारकर, ज़मीनी हकीक़त को कितना तवज्जों देगा - ये एक आम पत्रकार बखूबी समझ सकता है.  ज़ाहिर है- पत्रकारिता होगी बे-खबर, उद्योगपति बनायेंगे खबर. सावधान.  पत्रकारिता गिरवी रख दी गयी है.

[B]नीरज[/B]

No comments:

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...

PalahBiswas On Unique Identity No1.mpg

Tweeter

Blog Archive

Welcome Friends

Election 2008

MoneyControl Watch List

Google Finance Market Summary

Einstein Quote of the Day

Phone Arena

Computor

News Reel

Cricket

CNN

Google News

Al Jazeera

BBC

France 24

Market News

NASA

National Geographic

Wild Life

NBC

Sky TV