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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Wednesday, August 29, 2012

​ हम अब उत्पादक नहीं, सिर्फ उपभोक्ता हैं। मस्तिष्क नियंत्रण कवायद में भारतीय अर्थ व्यवस्था का कायाकल्प। खेती और देहात को तबाह करके बाजार का विस्तार ही सर्वोच्च प्राथमिकता!

​ हम अब उत्पादक नहीं, सिर्फ उपभोक्ता हैं। मस्तिष्क नियंत्रण कवायद में भारतीय अर्थ व्यवस्था का कायाकल्प। खेती और देहात को तबाह करके बाजार का विस्तार ही सर्वोच्च प्राथमिकता!   

​​एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास

​दूसरे चरण के आर्थिक सुधारों का एजंडा राजनीतिक बवंडर के बावजूद खूब अमल में है। शहरों और कस्बों तक बाजार का विस्तार का मुख्य लक्ष्य हासिल होने के करी ब है, जिसके लिए सरकारी खर्च बढ़ाकर सामाजिक सेक्टर में निवेश के जरिए ग्रामीणों की खरीद क्षमता बढ़ाने पर सरकार और नीति निर्दारकों का जोर रहा है।अर्थ व्यवस्था पटरी पर लाना प्रथमिकता है  ही नहीं। होती तो वित्तीय और मौद्रक नीतियों को दुरुस्त किया​ ​ जाता। खेती और देहात को तबाह करके बाजार का विस्तार ही सर्वोच्च प्राथमिकता है। कोयला घोटोला तो रफा दफा होनो के करीब है ही, आजतक किसी घोटाले में राजनेताओं को सजा होने का कोई इतिहास नहीं है। पर इस मस्तिष्क नियंत्रण कवायद में भारतीय अर्थ व्यवस्था का कायाकल्प जरूर हो रहा है। हम अब उत्पादक नहीं, सिर्फ उपभोक्ता हैं। अर्थव्यवस्था की सुस्ती और ऊंची महंगाई से भले ही शहरी लोगों की जेब सिकुड़ गई हो मगर ग्रामीणों पर इसका कोई असर नहीं दिख रहा है। तभी तो वे दिल खोल कर खर्च कर रहे हैं। उदारीकरण के दो दशक बाद पहली बार गांव वालों ने खपत के मामले में शहरियों को पीछे छोड़ दिया है। गैर-कृषि क्षेत्र में रोजगार बढ़ने के चलते इनकी आमदनी में खासा इजाफा हुआ है। साथ ही शहर में काम कर रहे परिजनों द्वारा ज्यादा धन भेजने से ग्रामीण इलाकों में खर्च लायक राशि बढ़ी है। रेटिंग एजेंसी क्रिसिल के ताजा सर्वे में यह तथ्य सामने आया है।मंदी के दौर में शहर की अपेक्षा गांव के लोग खुलकर खर्च कर रहे हैं। प्रति व्यक्ति खपत पर क्रिसिल ने एक रिपोर्ट जारी की है। इस रिपोर्ट में कहा गया है गांव में प्रति व्यक्ति खपत शहरों के मुकाबले १९ फीसदी ज्यादा है। रिपोर्ट के मुताबिक वित्त वर्ष २०१० से लेकर वित्त वर्ष २०१२ में गांवों में ३,७५,००० हजार करोड़ रुपये की खपत हुई है। वहीं इस दौरान शहरों में २,९,००० करोड़ रुपये की खपत हुई है।शुक्र मनाइये, कमजोर मानसून के चलते सूखे के हालत से निपटने की कमान प्रधानमंत्री कार्यालय ने संभाल ली है। प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने सभी मंत्रालयों और विभागों को मानसून की स्थिति पर नजर रखने के निर्देश दिए हैं। इसके लिए सरकार ने एक व्यापक योजना तैयार की है ताकि किसी भी आपात स्थिति से बचा जा सके। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष [आईएमएफ] के पूर्व मुख्य अर्थशास्त्री रघुरमन जी. राजन ने बुधवार को केंद्रीय वित्त मंत्रालय में मुख्य आर्थिक सलाहकार [सीईए] का कार्यभार संभाला लिया। राजन ने कार्यभार संभालने के बाद मीडियाकर्मियों से कहा कि मैं यहां आकर खुश हूं। दुनिया की अर्थव्यवस्था गंभीर चुनौतियों का सामना कर रही है और भारत इससे बचा नहीं है। विलय एवं अधिग्रहण पर क्षेत्राधिकार को लेकर भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (सीसीआई) और विभिन्न क्षेत्रों के नियामकों के बीच जारी विवाद जल्द निपट सकता है, क्योंकि आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति (सीसीईए) द्वारा प्रतिस्पर्धा नियामक को यह अधिकार दिए जाने के लिए एक प्रस्ताव लाए जाने की संभावना है। कंपीटीशन ऐक्ट, 2002 में प्रस्तावित संशोधन पर आगामी सप्ताह में होने वाली सीसीईए की अगली बैठक में विचार किया जा सकता है।

कोयला ब्लाक आवंटन लाइसेंस को रद्द करने की विपक्ष की मांग को ठुकराते हुए कांग्रेस ने कहा कि इस तरह के कदम से भारी आर्थिक नुकसान के साथ साथ देश का बिजली और इस्पात क्षेत्र बुरी तरह से प्रभावित होगा।पार्टी ने साथ ही सरकार पर कैग की आलोचना करने के भाजपा द्वारा लगाये गये आरोपों को भी हास्यास्पद बताया। केन्द्रीय मंत्री कपिल सिब्बल ने यहां कांग्रेस मुख्यालय में संवाददाता सम्मेलन में कहा कि कोयला ब्लाक के आवंटन से किसी के फायदे का सवाल नहीं है क्योंकि कोयला की बिक्री नहीं हुई है।उन्होंने भाजपा पर पलटवार करते हुए आरोप लगाया कि मुख्य विपक्षी दल देश के बारे में नहीं सोचती और 2014 से पहले किसी तरह सत्ता में आना चाहती है। उन्होंने मुख्य विपक्षी दल से जानना चाहा कि क्या 1998 से 2004 तक कोयला आंवंटन के जो भी फैसले किये गये हैं वे सभी रद्द कर दिये जायें और हजारों करोड़ का नुकसान करा दिया जाये।

राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी भारतीय मूल के उद्योगपतियों तथा अन्य सदस्यों की अगले महीने होने वाली बैठक को संबोधित करेंगे। अगले महीने होने वाली बैठक में भारत के लिये सतत वृद्धि मॉडल तथा विश्व अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने वाले मुद्दों पर चर्चा होगी।ग्लोबल इंडियन बिजनेस मीट 2012 20 सितंबर से 23 सितंबर के बीच होगी और दुनिया भर में रह रहे भारतीय मूल के उद्योगपति, उद्यमी, शिक्षाविद तथा निवेशक इसमें भाग लेंगे।ग्लोबल इंडियन बिजनेस मीट (जीआईबीएम) ने बयान में कहा कि मुखर्जी बैठक को संबोधित करेंगे। उनके अलावा बैठक को अमेरिका में भारतीय राजदूत निरुपमा राव, जन सूचना बुनियादी ढांचा तथा अनुसंधान मामलों पर प्रधानमंत्री के सलाहकार सैम पित्रोदा तथा दक्षिण एवं मध्य एशिया मामलों के सहायक मंत्री रॉबर्ट ब्लेक संबोधित करेंगे।बैठक में पर्यटन मंत्री सुबोधकांत सहाय, कंपनी मामलों के मंत्री वीरप्पा मोइली, गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी तथा भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी भी शामिल होंगे। बैठक का आयोजन न्यू ग्लोबल इंडियन (एनजीआई) फाउंडेशन द्वारा फिक्की, पीएचडी चैंबर तथा नास्काम जैसे उद्योग संगठनों के सहयोग से किया जा रहा है।

इस बीच गवर्नेस और निर्णय में सरकार की सुस्ती अर्थव्यवस्था पर भारी पड़ रही है। अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष [आइएमएफ] की ताजा रिपोर्ट में भी इसको लेकर सवाल उठाए गए हैं। शुक्रवार को जारी एशिया प्रशांत क्षेत्र आर्थिक परिदृश्य रिपोर्ट में मुद्राकोष ने कहा है कि गवर्नेंस संबंधी चिंता के चलते कारोबारी धारणा कमजोर होने से निवेश में कमी आई है। इससे रफ्तार घटने लगी है। इसके मद्देनजर आइएमएफ ने देश की आर्थिक विकास दर का अनुमान घटाकर 6.9 फीसद कर दिया है।इससे पहले ग्लोबल रेटिंग एजेंसी मूडीज ने वर्ष 2012 के लिए विकास दर अनुमान को फिर से घटाकर 5.5 फीसद कर दिया है। कमजोर मानसून, गलत आर्थिक नीतियों और ग्लोबल संकट के कारण एजेंसी ने यह कटौती की है। इससे पहले इसने जीडीपी के 6.5 फीसद की दर से बढ़ने का अनुमान लगाया था। मूडीज ने वर्ष 2013 के अपने अनुमान को भी 6.2 फीसद से कम कर छह फीसद कर दिया है।: देश के शेयर बाजारों में बुधवार को गिरावट का रुख रहा। प्रमुख सूचकांक सेंसेक्स 140.90 अंकों की गिरावट के साथ 17490.81 पर और निफ्टी 46.80 अंकों की गिरावट के साथ 5287.80 पर बंद हुआ। बम्बई स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) का 30 शेयरों पर आधारित संवेदी सूचकांक सेंसेक्स सुबह 19.43 अंकों की तेजी के साथ 17651.14 पर खुला और 140.90 अंकों यानी 0.80 फीसदी की गिरावट के साथ 17490.81 बंद हुआ। दिन के कारोबार में सेंसेक्स 17653.90 के ऊपरी और 17471.13 के निचले स्तर तक पहुंचा।

मजे की बात तो यह है कि उपभोक्ता तो हम हो गये, माल की भी ज्यादा खपत करने लगे हैं। सत्तावर्ग इसे समृद्धि बताते हुए अघाते नहीं है। पर रस्मी तौर पर मुद्रास्फीति और मंहगाई का रोना रोते हुए अर्थशास्त्री समावेशी व्कास का व्यामोह जरूर बनाये रखते हैं। वित्त मंत्री पी चिदंबरम भले ही औद्योगिक उत्पादन की रफ्तार बढ़ाने को मौद्रिक नीति में नरमी लाने की योजना बना रहे हों, मगर आरबीआइ ने साफ कर दिया है महंगाई अभी भी उसकी प्राथमिकता में हैं। रिजर्व बैंक [आरबीआइ] गवर्नर डी सुब्बाराव का कहना है कि गरीबों को महंगाई की सबसे ज्यादा मार झेलनी पड़ रही है। उनकी आवाज सुनने के लिए कोई तंत्र भी मौजूद नहीं है। ऐसे में महंगाई के खिलाफ जंग फिलहाल बंद नहीं होगी। पिछले तीन माह में जरूरी चीजों की कीमतों में सबसे अप्रत्याशित उछाल के बीच मूल्यवृद्धि पर नजर रखने वाली मंत्रिमंडलीय समिति की बैठक करीब छह माह से नहीं हुई है। महंगाई के आकलन को लेकर रिजर्व बैंक व सरकार में गहरे मतभेदों ने बात और बिगाड़ दी है। कीमतों के ताजा आंकड़े भी चक्कर में डाल रहे हैं। थोक कीमतों में महंगाई सधी है, मगर उपभोक्ता बाजार तप रहा है। इन हालात ने महंगाई को लेकर सरकार में एक अजीब किस्म का नीतिगत शून्य पैदा कर दिया है।

मुद्राकोष ने जनवरी में इसके सात फीसद रहने का अनुमान लगाया था। रिपोर्ट में कहा गया है कि ग्लोबल के अलावा घरेलू कारणों से भी वर्ष 2011 की दूसरी छमाही में अर्थव्यवस्था की रफ्तार कम हुई। आइएमएफ ने वर्ष 2013 के लिए भारत की वृद्धि दर की रफ्तार 7.3 प्रतिशत रहने के अपने अनुमान को कायम रखा है। मुद्राकोष के मुताबिक, बीते साल भारतीय अर्थव्यवस्था 7.1 फीसद की दर से बढ़ी।

-गिनाए कारण-

-गवर्नेंस की चिंता और मंजूरियों की धीमी गति से निवेश बुरी तरह प्रभावित

-निवेश घटने से कमजोर हुआ वर्ष 2012 में आर्थिक विकास का परिदृश्य

-बजट में सुधारों को लेकर सार्वजनिक निजी भागीदारी [पीपीपी] जैसे थोड़े से उपाय

-इंफ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र से संबंधित सुधारों के क्रियान्वयन की रफ्तार बनी हुई है सुस्त

--दिए सुझाव--

-ढांचागत सुधार एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए नए प्रयासों की जरूरत

-निवेश का माहौल सुधरे और दूर की जाएं इंफ्रास्ट्रक्चर से जुड़ी बाधाएं

-विकास के लिए व्यापार की बाधाएं कम करने को दी जाए अहमियत

-ईंधन सब्सिडी जैसे गैर प्राथमिकता वाले खर्च में हो कटौती

-महंगाई के दबाव को कम करने के लिए राजकोषीय मजबूती जरूरी

-सार्वजनिक निवेश और स्वास्थ्य तथा शिक्षा पर देना होगा ध्यान

रेटिंग एजेंसी क्रिसिल  की रिपोर्ट के मुताबिक वित्ता वर्ष 2009-10 और 2011-12 में गांव के लोगों ने कुल 3.75 लाख करोड़ रुपये खर्च किए। इसके मुकाबले शहर वालों का कुल खर्च 2.90 लाख करोड़ रुपये ही रहा है। ग्रामीण इलाकों में बढ़ते खर्च का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि अब गांव के हर दूसरे घर में मोबाइल है। बिहार और ओडिशा जैसे पिछड़े राज्यों के भी हर तीसरे घर में मोबाइल का इस्तेमाल हो रहा है। इसके अलावा 14 फीसद घरों में मोटरसाइकिल है। 2004-05 की तुलना में 2009-10 में यह संख्या दोगुनी हो गई है।

क्रिसिल का कहना है कि सरकार द्वारा रोजगार बढ़ाने के लिए चलाई जा रही योजनाओं का फायदा गांव के लोगों को मिल रहा है। इससे खेती पर निर्भरता कम हुई है। राष्ट्रीय सैंपल सर्वे संगठन [एनएसएसओ] के आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2004-05 में जहां 24.9 करोड़ लोगों को खेती से रोजगार मिला था, वहीं 2009-10 में यह घटकर 22.9 करोड़ रह गया है। इस दौरान ग्रामीण निर्माण क्षेत्र में रोजगार 88 फीसद बढ़ा।

बाजार में जरूरी चीजों की खुदरा कीमतों में बढ़त के लिहाज से यह सबसे बुरा दौर है। आवश्यक वस्तुओं की कीमतें पिछले दो साल से ही काफी ऊंची हैं, मगर मार्च से अब तक इनमें सबसे तेज उछाल आया है। यह बढ़ोतरी दाल, तेल से लेकर फैक्ट्री में बने सामानों तक है। उपभोक्ता मंत्रालय के आंकड़े प्रमाण हैं कि केवल मार्च से अब तक चार माह में ही खाद्य तेल और दालों के दाम पांच से लेकर आठ रुपये प्रति किलो तक बढ़ गए हैं। मार्च से अब तक देश के अलग-अलग हिस्सों में आलू दोगुना और टमाटर ढाई गुना महंगा हुआ है। इधर बजट में बढ़ी एक्साइज ड्यूटी के कारण फैक्ट्री सामानों की कीमतों में इजाफे ने स्थिति और बिगाड़ दी है।

खराब मानसून के कारण जब महंगाई में नई लपट उठने वाली है, तब सरकार का महंगाई नियंत्रण तंत्र पूरी तरह सुन्न पड़ गया है। कीमतों में बढ़ोतरी रोकने के लिए पिछले छह माह से केंद्र सरकार ने कोई कदम नहीं उठाया। महंगाई की मॉनीटरिंग के लिए केंद्रीय मंत्रियों की समिति को छह माह में एक बैठक का मौका तक नहीं मिला। महंगाई पर सचिवों की एक समिति भी है। इस समिति की तीन माह से बैठक नहीं हुई। अलबत्ता खाद्य मंत्री केवी थॉमस ने 'जागरण' से कहा कि कीमतें नियंत्रण में हैं। इसलिए मॉनीटरिंग की जरूरत नहीं पड़ी है।

महंगाई के आंकड़ों लेकर भी सरकार के भीतर असमंजस चरम पर है। महंगाई के असर को कम करने के जिम्मेदार रिजर्व बैंक व वित्त मंत्रालय में गहरे मतभेद दिख रहे हैं। ब्याज दरों में कमी बेसी का आधार बनने वाली मुद्रास्फीति की मूलभूत दर [पॉलिसी इंफ्लेशन] जून के आंकड़े के अनुसार पांच फीसद से नीचे रही है। इस मुद्रास्फीति दर में खाद्य उत्पादों की कीमतें शामिल नहीं होतीं। थोक मूल्य सूचकांक पर आधारित महंगाई की दर इसी दौरान 7.25 फीसदी पर रही है, लेकिन इसमें उपभोक्ता कीमतों की झलक नहीं होती। उपभोक्ता कीमतों वाली खुदरा महंगाई की दर दस फीसद से ऊपर बनी हुई। इन तीन आंकड़ों के मद्देनजर रिजर्व बैंक के गवर्नर आधिकारिक रूप से महंगाई के आकलन पर संदेह जता चुके हैं। वह ब्याज दर कम करने के लिए पॉलिसी इंफ्लेशन की पांच फीसद दर को वास्तविक महंगाई मानने को तैयार नहीं हैं।

सुब्बाराव ने कहा कि मुद्रास्फीति की दर अभी भी ऊंची बनी हुई है। इसे पांच फीसद से नीचे लाने की जरूरत है। आरबीआइ की चुनौती ब्याज दरों को इस तरह से प्रबंधित करने की है जिससे महंगाई भी कम हो और विकास दर में भी वृद्धि हो। कॉर्नेल यूनिवर्सिटी में 'उदारीकरण की दुनिया में भारत: नीतियों की दुविधा' विषय पर आयोजित परिचर्चा में सुब्बाराव ने कहा कि गरीब महंगाई से ज्यादा पीड़ित हैं। उनके पास अपना दुखड़ा बयान करने का कोई जरिया भी मौजूद नहीं है। ऐसे में महंगाई के खिलाफ लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई है।

जुलाई में थोक मूल्य सूचकांक पर आधारित महंगाई दर 6.87 फीसद रही, जो जून में 7.25 फीसद थी। आरबीआइ गवर्नर ने स्पष्ट संकेत दिया कि मौद्रिक नीति में सख्ती का रुख आगे भी जारी रहेगा। अप्रैल में केंद्रीय बैंक ने ब्याज दरों में आधा फीसद की कटौती की थी। मगर उद्योगों के भारी दबाव के बावजूद जुलाई में आरबीआइ ने दरों में कोई कमी नहीं की। अगली मौद्रिक समीक्षा 17 सितंबर को होगी।

सुब्बाराव ने कहा कि केंद्रीय बैंक कीमतों का दबाव कम करने में सफल रहा है। महंगाई दर 11 फीसद से घटकर सात फीसद से नीचे आ गई है। मुद्रास्फीति का दबाव कम करने के लिए विकास के मोर्चे पर कुछ कुर्बानी देनी पड़ती है। उन्होंने कहा कि संस्थागत रूप ले चुकी महंगाई देश की विकास दर के लिए एक समस्या है। सबसे गरीब वर्गो की आय में वृद्धि के दौरान यह समस्या आड़े आ रही है। मगर जरूरी नीतिगत और प्रशासकीय सुधारों से देश तेज विकास और कम महंगाई दर की पटरी पर लौट आएगा।

हालांकि, एजेंसी ने इस बात पर चिंता जताई है कि इस तेजी को बरकरार रखना मुश्किल होगा। रोजगार गारंटी जैसी सरकारी योजनाओं के चलते छोटी अवधि के लिए आमदनी में जरूर इजाफा हुआ है, मगर लंबी अवधि के रोजगार मौकों की ग्रामीण इलाकों में अब भी कमी है। रोजगार बढ़ने के बावजूद गांव के लोगों का शहर की ओर पलायन जारी है। शहरी इन्फ्रास्ट्रक्चर और निर्माण क्षेत्र में तेजी से ग्रामीण मजदूरों के पलायन में वृद्धि हुई है। मगर इनके द्वारा गांव में रहने वाले परिजनों को भेजे जाने वाले धन में इजाफे से खपत बढ़ी है। इस वजह से गांव के लोग भी अब जरूरी चीजों के अलावा दूसरी चीजों पर ज्यादा खर्च कर रहे हैं।

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