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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Saturday, May 25, 2013

अवैध है तारा न्यूज और तारा म्युजिक का अधिग्रहण!

अवैध है तारा न्यूज और तारा म्युजिक का अधिग्रहण!


एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास​



बिना कानूनी प्रावधान के तारा न्यूज और तारा म्युजिक चैनल का अधिग्रहण करने मुख्यमंत्री का दांव फेल हो गया। केंद्रीय सूचना और प्रसारण ​​मंत्रालय ने साफ साफ बता दिया है कि मौजूदा प्रावधानों के मुताबिक ऐसा हो नहीं सकता और इस तरह का अधिग्रहण अवैध है।यह अदालती फैसला नहीं है। अदालत तक मामला पहुंचने से पहले ही केंद्र सरकार ने लाल झंडी दिखा दी।ट्राई भी ऐसी इजाजत नहीं देता। अब क्या करेंगी दीदी?


केंद्रीय सूचना व प्रसारण मंत्री मनीश तिवारी ने साफ साफ कह दिया कि टीवीचैनलों की लाइसेंसिंग प्रणाली के खिलाफ है यह कदम। किसी राज्य सरकार को अपना टेलीविजन चैनल चलाने का अधिकार नहीं है। चलिए, दीदी को केद्र के खिलाफ एक और मुद्दा मिल गया।


पश्चिम बंगाल सरकार ने सारदा समूह के दो टेलीविज़न चैनलों को अपने हाथ में लेने का गुरुवार को निर्णय लिया। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस संबंध में घोषणा करते हुए रायटर्स बिल्डिंग में संवाददाताओं को बताया कि यह फैसला तारा न्यूज और तारा म्युजिक चैनलों के कर्मचारियों के सरकारी हस्तक्षेप की मांग के बाद किया गया है। उन्होंने बताया कि चैनल के 168 कर्मचारियों को प्रति माह 16000 रुपये अनुग्रह राशि की अदायगी की जाएगी। राज्य सरकार चैनलों को चलाने के लिए मुख्यमंत्री राहत कोष के 26 लाख रुपए मुहैया कराएगी। मुख्यमंत्री ने कहा कि हालांकि सरकार चैनलों के ऋणों की जिम्मेदारी नहीं लेगी जो कि छह करोड़ रुपये है।


दीदी ने शारदा समूह के तारा समूह के दो टीवी चैनलों का तो अधिग्रहण कर लिया है, इसकी वजह से इन संस्थाओं के पत्रकारों गैर पत्रकारों को भारी राहत मिली है , पर शारदा मीडिया साम्राज्य के बाकी अखबारों और चैनलों का क्या होगा, इसके बेरा में दीदी ने कोई संकेत नहीं दिया। इसके अलावा राज्य में वाकी जो शारदा मीडिया के अलावा दूसरे समूहों के चैनल और अखबार  बंद है, उनके पत्रकारों और गैरपत्रकारों को भी अब दीदी के मीडिया अवतार  से भारी उम्मीद है, उनका क्या होगा?जिन दो चैनलो के अधिग्रहण की घोषणा हुई है , उनमें मात्र १६२ कर्मचारी हैं जबकि शारदा मीडिया  मीडिया समूह में कुल कर्मचारियों की संख्या तीन हजार से ज्यादा हैं, जो बंद अखबारों के कर्मचारी हैं।दशकों से राज्य का प्रतिष्टित मीजडिया समूह अमृत बाजार पत्रिका बंद हैं, जिनसे जुड़े पत्रकार गैरपत्रकार भुखमरी के कगार पर हैं। बंगलोक, ओवरलैंड, सत्ययुग,​​बसुमती जैसे तमाम अखबार हैं, जो बरसों से बंद है और लोगों को कुछ नहीं मिला। उनपर कोई कृपा नहीं, सरकारी अनुकंपा केवल शारदा समूह के चालू मीडिया के लिए।इस पहेली को बूझने की जरुरत भी नहीं है।




दीदी खुद मानती है कि सरकार की ओर से मीडिया अधिग्रहण का कोई कानूनी आधार नहीं है। इसीलिए उन्होंने इस सिलसिले में कानून भी बनाने की घोषणा की है। सिंगूर के अनिच्छुक किसानों को जमीन वापस दिलाने के लिए बने कानून की इस सिलसिले में चर्चा हो रही है । चर्चा हो रही है चिटफंड पर अंकुश के लिए प्रस्तावित कानून की भी!आखिर बिना वजह राज्य की बदहाल माली हालत के मद्देनजर दीदी ने ऐसा पंगा कैसे ले लिया?फिर मुख्यमंत्री राहत कोष तो प्राकृतिक आपदा य़ा ऐसे ही किसी बड़े संकट से निपटने के लिए है, उससे बंद मीडिया के कर्मचारियों को अनुग्रह राशि देने का क्या औचित्य है, यह सवाल भी उठ रहा है।


तृणमूल कांग्रेस के नेती मुकुल राय की ओर से शारदा समूह के अखबारों पर कब्जा की खबर पुरानी है तो चैनल १० का संचालन तृणमूल की  ओर से पहले से जारी है। सुदीप्त कीगिरफ्तारी के बावजूद चैनल टेन और तारा समूह के अबाधित प्रसारण से सवाल खड़े किये जे रहे थे, जबकि इन चैनलों को बतौर सत्तादल के माउथपीस बतौर इस्तेमाल किया  जा रहा था। अब देश भर में नजीर कायम करके तारा मीडिया समूह के अधिग्रहण का फैसला किया है मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की सरकार ने। वे लगातार मदन मित्र, कुणाल घोष, शुभप्रसन्न, अर्पिता घोष,पूर्व रेलमंत्री मुकुल राय जैसे दागी मंत्रियों का बचाव करती रही हैं। अब तारा समूह के अधिग्रहण से साफ हो गया कि सत्तादल का शारदा आपरेशन एक सुनियोजित परियोजना है, जो लोग अभियुक्त हैं, उनका चेहरा सिर्फ बेनकाब हुआ है लेकिल असली डान कोई और है। वह डान कौन है?


दीदी चिटफंड कारोबार रोकने के लिए विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर विधेयक पारित कर चुकी हैं नया कानून बनाने के लिए। सिंगुर में जमीन अधिग्रहण के लिए भी उन्होंने कानून बनाया हुआ है। अब दीदी मीडिया अधिग्रहण को जायज बनाने के लिए भी कानून बनायेंगी।


शारदा समूह के मीडिया  साम्राज्य पर सत्तादल तृणमूल कांग्रेस के दखल का सिलसिला सुदीप्त सेन के ६ अप्रैल को सीबीआई को पत्र लिखने से पहले शुरुहो चुकाथा। बाद में पुलिस जिरह में भी शारदा कर्णधार सुदीप्त सेन ने बार बार कहा कि समूह की पूंजी मीडिया में लगाने के लिए तृणमूल नेता और मंत्री उन्हें मजबूर कर रहे थे। शारदा मीडिया समूह के सीईओ बतौर तृणमूल सांसद कुणाल घोष को सहीने में सोलह लाख रुपए का वेतन मिलता था, जो देश के किसी भी मीडिया समूह की तुलना में ज्यादा ही है। परिवर्तनपंथी बुद्धिजीवी चित्रकार बंगविभूषण शुभोप्रसन्न सुदीप्त के साथ साझेदारी में टीवी चैनल शुरु करने जा रहे थे, जिसके हेड थी परिवर्तनपंथी नाट्यकर्मी अर्पिता घोष। अब पता चाला है कि मुकुल राय और कुणाल घोष से मुलाकात के बाद सीबीआई को पत्र लिखकर १० अप्रैल को जब सुदीप्त फरार हो गये, तो इन्ही अर्पिता घोष ने तारा न्यूज की ओर से १६ अप्रैल को शारदा समूह के फर्जीवाड़े के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराया था।


पश्चिम बंगाल में शारदा मीडिया समूह के सेवन सिस्टर्स पोस्ट, बंगाल पोस्ट, सकालबेला, आझाद हिंद, तारा न्यूज, तारा मुझिक और तारा बांग्ला इन समाचारपत्रों में काम करने वाले पत्रकारों पर बेरोजगारी की गाज गिरी है।


अप्रैल के मध्य में जैसे ही घोटाले से पर्दे उठने शुरू हुए वैसे ही राजनेताओं और घोटालेबाजों के बीच कथित गठजोड़ की चेतावनी सामने आने लगी। जिन लोगों का नाम घोटाले में उछला है उनमें सबसे अग्रणी तृणमूल के राज्य सभा सांसद कुणाल घोष हैं। शारदा मीडिया के मुख्य कार्यकारी अधिकारी के तौर पर उन्हें शाही वेतन 15 लाख रुपए प्रतिमाह दिया जाता था। इसके अलावा उन्हें भत्ते के तौर पर 1.5 लाख रुपए अलग से मिलते थे।


भारतीय पत्रकारिता जगत में यह वेतनमान और सुविधा ग्रुप में उनकी भूमिका को लेकर सवाल पैदा करता है। ग्रुप के संचालक सुदीप्त सेन ने केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को 6 अप्रैल को लिखे गए पत्र में घोष और 20 अन्य लोगों पर बर्बाद करने का आरोप लगाया है। सेन ने घोष पर असामाजिक तत्वों के साथ उनके कार्यालय में घुसकर चैनल-10 की बिक्री का जबरिया इकरारनामा कराने का आरोप लगाया है।


पत्र में बंगाली दैनिक 'संवाद प्रोतिदिन' के मालिक संपादक सृंजय बोस (अब तृणमूल के राज्य सभा सांसद) पर अखबार को चैनल चलाने के लिए हर महीने 60 लाख रुपए भुगतान करने का दबाव डालने का आरोप लगाया है। सौदा यह हुआ था कि संपादक सेन के कारोबार को सरकार से बचाए रखेंगे।




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