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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Friday, December 5, 2014

बाबासाहेब के महापरिनिर्वाण दिवस को ही बाबरी विध्वंस के लिए क्यों चुना संघ परिवार के हिंदुत्व ब्रिगेड ने ? नवउदारवादी जमाने में अमेरिकी इजराइली समर्थन से ग्लोबल हुए हिंदुत्व के रास्ते में सबसे बड़ा अवरोध बाबासाहेब अंबेडकर के साथ इस देश में कृषि आजीविका

बाबासाहेब के महापरिनिर्वाण दिवस को ही बाबरी विध्वंस  के लिए क्यों चुना संघ परिवार के हिंदुत्व ब्रिगेड ने ?


नवउदारवादी जमाने में अमेरिकी इजराइली समर्थन से ग्लोबल हुए हिंदुत्व के रास्ते में सबसे बड़ा अवरोध बाबासाहेब अंबेडकर के साथ इस देश में कृषि आजीविका से जुड़े बहुसंख्य आबादी की लोकतांत्रिक धर्मनिरपेक्ष साझे चूल्हे की विरासत रही है और खंडित जाति धर्म नस्ल भाषा क्षेत्र अस्मिताओं और विविधताओं को जोड़कर सतीकथा की तरह एकात्म हिंदुत्व के बिना पंडित जवाहर लाल नेहरु की ओर से रखी गयी हिंदू साम्राज्यवाद की नींव पर मुकम्मल  इमारत तामीर करने से पहले एक धर्मोन्मादी महाविस्फोट की जरुरत थी,जो बाबरी विध्वंस है और जिसमें बाबासाहेब समेत फूले, पेरियार, अयंकाली, लोखंडे,नारायणगुरु, हरिचांद गुकरुचांद बीरसा मुंडा,रानी दुर्गावती,सिधो कान्हो,चैतन्य महाप्रभू,संत तुकाराम,गुरु नानक,कबीर रसखान,संत गाडगे महाराज,लिंगायत मतुआ और तमाम आदिवासी किसान आोंदालनों की सारी विरासतें एकमुश्त ध्वस्त हैं।


आप चाहे बाबासाहेब का परानिरवाण दिवस मनाइये, बाबरी विध्वंस के मौके पर काला दिन,उस विरासत को पूरी वैज्ञानिक चेतना के साथ अस्मिताओं के आरपार  फिर बहाल किये बिना मुक्तबाजारी कारपोरेट हिंदू साम्राज्यवाद की चांदमारी से आपकी जान बचेगी नहीं,चारा जो हरियाला है,वह दरअसल वधस्थल का वातावरण है।



पलाश विश्वास


बाबासाहेब के महापरिनिर्वाण दिवस को ही बाबरी विध्वंस  के लिए क्यों चुना संघ परिवार के हिंदुत्व ब्रिगेड ने?


बाबासाहेब के परानिर्वाण दिवस पर बाबासाहेब की कर्मभूमि मुंबई के चैत्यभूमि में श्रद्धांजलि देने के लिए शिवाजी पार्क पर शिवशक्ति में निष्णात भीमशक्ति के लाखों चेहरों पर यकीनन इस प्रश्न का कोई उत्तर नहीं लिखा होगा।


6 दिसंबर को देशभर में बाबारी विध्वंस की वर्षी का जश्न और मातम मनाने वाले परस्परविरोधी भारत देश के आम नागरिकों के सरदर्द का सबब  भी नहीं है यह सवाल और न देश विदेश में बाबासाहेब की स्मृति में भाव विह्वल बाबासाहेब के करोड़ों अनुयायियों भक्तों के लिए इस सवाल का कोई महत्व है।


इस सवाल पर गौर करने से पहले इस सूचना पर गौर करें कि संसद के शीतकालीन सत्र में गैर जरूरी करार दिये गये नब्वे कानूनों को एक मुश्त खत्म कर दिये गये विपक्ष की गैरमौजूदगी में। बिना बहस बिल  पास हो गया है।जैसा बाकी सारे कायदे कानून बदलने याबिगाड़ने के लिए होता रहा है और होता रहेगा।


इस निरसन और संशोधन  (दूसरा) विधेयक का कोई ब्यौरा लेकिन उपलब्ध नहीं है।


गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने 90 पुराने और अप्रासंगिक कानूनों को खत्म करने के लिए निरसन एवं संशोधन (दूसरा) विधेयक 2014 संसद में पेश किया। कानून मंत्री डीवी सदानंद गौड़ा ने कहा कि "बहुत सारे कानून अप्रासंगिक हो गए हैं। ये भ्रम की स्थिति पैदा करते हैं। सरकार शासन और प्रशासन में सुधार करने और इसे सरल बनाने के लिए प्रतिबद्ध है। इस वजह से ऐसे कानूनों को खत्म करना जरूरी हो गया है।'


संसदीय कार्यमंत्री एम. वेंकैया नायडू ने कहा कि सदन में कांग्रेस समेत विपक्ष मौजूद नहीं है। एकतरफा बहस के दौरान भाजपा की मीनाक्षी लेखी ने कहा कि 1998 में एक समिति बनी थी। उसने 1382 कानूनों को समाप्त करने की सिफारिश की थी। लेकिन इस दिशा में काम काफी धीमे-धीमे हुआ।


पुराने और अप्रासंगिक कानूनोेंं को खत्म करने के लिए सरकार की ओर से बृहस्पतिवार को लोकसभा में पेश विधेयक पास हो गया। नरेन्द्र मोदी सरकार द्वारा शीतकालीन सत्र में रखे गये इस संबंधी विधेयक में अभी 36 पुराने पड़ चुके कानूनों को शामिल किया गया है। आने वाले समय में सरकार की योजना ऐसे 300 कानूनों को खत्म करने की है। सदन में भी कोई यह नहीं जानता था कि सड़क पर पड़े 10 रुपये के नोट को बटुए में रखने और बिना इजाजत पतंग उड़ाने से जेल हो सकती है। ये और इस तरह के कई कानून देश पर बोझ बने हुए हैं। इनमें से कई कानून तो ब्रिटिश शासन के समय से चले आ रहे हैं।


सिर्फ एक गैर जरुरी कानून का हवाला देकर धकाधक एकमुश्त 1382 कानूनों को समाप्त कर दिया गयाहै और हम नागरिकों को मालूम भी नहीं हैं कि कौन कौन से कानून खत्म किये जारहे हैं और उनसे राजकाज में क्या सरलता आने है और किसके लिए सरलता आने वाली है।


संसद में हमारे किसी जनप्रतिनिधि ने  इन खत्म होने वाले कानूनों का ब्यौरा नहीं मांगा है।बहरहाल सरका की तरफ से कहा जा रहा है कि इन कानूनों को खत्म करने से न्यायिक प्रक्रिया तेज हो जायेगी और फालतू मुकदमे खत्म हो जायेंगे।


हम नही जानते कि ये फालतू मुकदमे किनके खिलाफ है और किनकी सहूलियत और किनकी सुविधा वास्ते येकानून खत्म किये जा रहे हैं।


नवउदारवाद की संतानों को और उनके राजकाज को कारपोरेट हितों के अलावा किसी और चीज की परवाह है,ऐसा सबूत पिछले तेईस सालों से नहीं मिला है।


समझ में आनी चाहिए लंबित जो परियोजनाएं हैं और उनमें जो देशी विदेशी पूंजी फंसी हैं,उनके सामूहहिक कल्याण के लिए ही ये कानून खत्म किये जा रहे हैं।


हम सहमत है कि अगर मुख्यमंत्री बाहैसियत बंगाल की मुख्यमंत्री को अपशब्द कहने की स्वतंत्रता है तो बाकी लोगों को भी होनी चाहिए।


राजनीति जो सिरे से अभद्र और अश्लील हो गयी है,उसकी वजह धर्मोन्मादी ध्रूवीकरण के जरिये सत्ता समीकरण साधकर कारपोरेट सत्ता की बागडोर पर कब्जा करना है और रंग बिरंगी राजनीति के तमाम क्षत्रप और सिपाही खुलकर भाषा का दुरुपयोग कर रहे हैं।


इसकी आड़ में संसदीय कार्यवाही के बहिस्कार के बहाने एकमुश्त 1382 कानून खत्म करने की जो नूरा कुश्ती तमाशा है,वही आज का लोकतंत्र है और बार बार सत्ता बदलाव के लिए गठजोड़ और सत्ता समीकरण बनाने बिगाड़ने के खेल से कुछ बदलने वाला नहीं है।हर्गिज नहीं बदलने वाला है।पानी सर के ऊपर बहने लगा है,दोस्तों।


बाबासाहेब के परानिर्वाण दिवस पर इस बात को समझने की खास जरुरत है कि संघ परिवार बिना किसी योजना के ,बिना किसी योजना के सिर्फ शुभमुहूर्त के हिसाब से अपने एक्शन की तारीख तय नहीं करता।


समझने वाली बात यह है कि केंद्र में पहली भाजपाई सत्ता समय में और उससे भी पहले इंदिरा गांधी की तानाशाही के खिलाफ सत्ता में आये गैरकांग्रेसी अमेरिका परस्त सत्तासमूह के संघी तत्वों ने इजराइल भारत,ग्लोबल हिंदुत्व और ग्लोबल जायनी गठजोड़ की नींव रखी और भारत इजराइल संबंध का पहला पड़ाव,इस्लाम के खिलाफ तेलयुद्ध सह आतंक के विरुद्ध अमेरिका के महायुद्ध,मुक्त बाजार के अश्वमेध राजसूय के लिए हिंदू साम्राज्यवाद का पुनरू्थान अमेरिकी इजराइली हित और अबाध विदेशी पूंजी के लिए अनिवार्य धर्मोन्मदी राष्ट्रवाद के लिए योजनाबद्ध कारपोरेट केसरिया एजंडा रहा है बाबरी विध्वंस का यह मानवता विरोधी युद्ध अपराध।


कांग्रेस और संघ परिवार के चोली दामन के साथ के रसायन को समझे बिना ,नेहरु के हिंदू साम्राज्यवाद को समझे बिना समाजवादी माडल के इंदिरा गाधी के गरीबी उन्मूलन के देवरस फार्मूले को समझे बिना इस नवउदारवादी वैदिकी मनुस्मृति सभ्यता को समझना आसान नहीं है।


धर्मोन्मदी केसरिया कारपोरेट राज के लिए सबसे जरुरी यह था कि बहुसंख्य भारतीय कृषि आजीविका,देशज उत्पादन प्रणाली से जुड़े बहुसंख्य बहिस्कृत वंचित जनसमुदायों की पूरी विरासत और उनके इतिहास भूगोल,उनकी मातृभाषा,उनके लोक,उनके प्रतीकों को खत्म करना जो एकमुश्त संभव हो सका बाबरी विध्वंस में बाबासाहेब के परानिर्वाण दिवस को समाहित करने से।


दलितों,आदिवासियों, किसानों,ओबीसी समुदायों,असुरक्षित शरणार्थियों,मुसलमान समेत तमाम धार्मिक और भाषायी अल्पसंख्यकों के गेरुआकरण का प्रस्थानबिंदू है यह छह दिसबंर का बाबरी विध्वंस तो यह अरबपति करोड़पति सत्ता वर्चस्वी नवधनाढ्य उत्तरआधुनिक मनुस्मृति वर्णशंकर सत्ता वर्ग का जन्म रहस्य भी है।


जिसे समूचे एशिया को युद्ध भूमि में तब्दील करके ,नरसंहार संस्कृति के तहत प्रकृति और मनुष्यता के सर्वनाश के एजंडा के तहत पूरा किया गया सक्रिय कांग्रेसी साझेदारी के साथ अंजाम दिया संघ परिवार ने।


समझने वाली बात है कि भोपाल गैस त्रासदी हो,या सिखों का नरसंहार यादेश व्यापी दंगो का षड्यंत्र,या बाबरी विध्वंस हो या आरक्षण विरोधी आंदोलन या फिर गुजरात नरसंहार राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय सत्ता समीकरण का इतिहास भूगोल को समझे बिना हम समझ ही नहीं सकते कि इन घटनाओं को अंजाम देने वाले अभियुक्तों के अलावा सरगने शातिराना दिलोदिमाग और भी हैं।


मानवता के विरुद्ध अपराधी उन युद्धअपराधी षड्यंत्रकारियों को,सरगाना ,माफिया गिरोहों को कटघरे में खड़ा करके बांग्लादेश के युद्ध अपराधियों की तरह एक ही रस्सी में पांसी दिये बिना मुक्तबाजारी यह कयामत कभी थमने वाली नहीं है।


जिसके लिए वैज्ञानिक चेतनाके साथ बहुसंख्य भारतीकृषिजीवी प्रकृति और पर्यावरण के संरक्षक समूहों की व्यापक एकता के लिए अपने असली इतिहास को समझे बिना और बाबा साहेब की विरासत को वैज्ञानिक चेतना से लैस किये बिना भावनाओं की राजनीति का अंजाम फिर वहीं केसरिया पैदल फौजे हैं जो हम हैं।


जो चैत्यभूमि में लाखों की तादाद में जमा जनसमूह भी है।और करोड़ों अंध भक्त और अनुयायी बाबासाहेब के भी हैं जिसकी वजह से हमारे तमाम राम हनुमान हुए जाते हैं।


नवउदारवाद की उच्च तकनीक वाले राजवीगाधी ने इसका शुभारंभ राममंदिर का ताला खुलवाकर किया तो नवउदारवाद के मसीहा नरसिंह राव और डां. मनमोहन सिंह के राजकाज के तहत संघ परिवार ने पूरे तालमेल के साथ इस जघन्य कृत्य को अंजाम दिया जो भारत में गृहयुद्ध युद्ध के वैश्विकि सौदागरों का मुक्त बाजार और अमेरिका और इजराइल के नेतृत्व में नागरिकता,नागरिक मनवाधिकार,प्रकृति और पर्यावरण,जल जंगल,जमीन आजीविका के हक हकूक से वंचित करने के पारमाणविक डिजिटल बायोमेट्रिक रोबोटिक आटोमेशन बंदोबस्त की बुनियाद है।



संघ परिवार रके बाबरी विध्वंस एजंडे के तहत ही इजराइल के साथ भारतीय सत्ता तबके की प्रेमपिंगे तेज होती रही है और हमारी आंतरिक सुरक्षा अब अमेरिका इजराइल,मोसाद एफबीआई और सीआईए के हवाले हैं तो हमारी अर्थव्यवस्था और हमारा यह लोकतंत्र एकमुश्त अमेरिकी इजराइली उपनिवेश है,जो अब जापान के साथ भी साझा हो रहा है और इसीके साथ आकार ले रहा है ग्लोबल हिंदू साम्राज्यवाद का रेशमपथ।


समझने की जरुरत है कि  यरूशलम के अल अक्श मसजिद के दखल के ड्रेस रिहर्सल बतौर बाबरी विध्वंस की योजना बनीं और उसकी पृष्ठभूमि भी तैयार की स्वंभू धर्मनिरपेक्ष कांग्रेस ने बाबारी मस्जिद का ताला खुलवाकर।


उससे भी पहले संघ कांग्रेस गठजोड़ ने मिलकर सिखोे के नरसंहार मार्फते हिंदुत्व के पुनरूत्थान को अंजाम दे दिया।वह अल अक्श मंदिर भी अब तालाबंद है और उसे भी किसी भी दिन ध्वस्त कर देगा इजराइल।


जैसे अयोध्या मथुरा वाराणसी के एजंडे के मध्य ही थमा नहीं रहेगा बाबरी विध्वंस का अशवमेधी घोड़ा,लालकिले पर भागवत गीता महोत्सव के आयोजन और क्रिसमस दिवस पर अचल बिहारी वाजपेयी के जन्मदिन को पटेल के जन्मदिन को  एकता दिवस मनाने की तर्ज पर सुशासन दिवस बतौर मनाने के आयोजन और ऩई दिल्ली में ही गिरजाघर में आगजनी वागदात के माध्यम से समझा दिया है निरंकुश केसरिया कारपोरेट मुक्तबाजारी निरंकुश सत्ता ने,जिसमें समूची अरबपति करोड़पति रंग बिरंगी राजनीति निष्णात है ।


धर्म निरपेक्षता तो एक मौकापरस्त सत्ता समीकरण है या फिर अस्मिता केंद्रित वोट बैंक समीकरण जिसके कितने और उपकरण और कितने और संस्करण उपस्थित हों मुक्तबजार में,आम जनता की कयामत बदलेगी नहीं।


रामलला की आराधना की इजाजत और रामलला के भव्यमंदिर से बकरे की अम्मा को जाहिर है किसी की खैर मनाने की इजाजत नहीं मिलने वाली है और न विधर्मियों के भारतीयकरण और हिंदुत्वकरण से जनसंहार का सिलसालिा खत्म होना है क्योंकि इस उत्तरआधुनिक वैदिकी सभ्यता में भी वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति।


नवउदारवादी जमाने में अमेरिकी इजराइली समर्थन से ग्लोबल हुए हिंदुत्व के रास्ते में सबसे बड़ा अवरोध बाबासाहेब अंबेडकर के साथ इस देश में कृषि आजीविका से जुड़े बहुसंख्य आबादी की लोकतांत्रिक धर्मनिरपेक्ष साझे चूल्हे की विरासत रही है और खंडित जाति धर्म नस्ल भाषा क्षेत्र अस्मिताओं और विविधताओं को जोड़कर सतीकथा की तरह एकात्म हिंदुत्व के बिना पंडित जवाहर लाल नेहरु की ओर से रखी गयी हिंदू साम्राज्यवाद की नींव पर मुकम्मल  इमारत तामीर करने से पहले एक धर्मोन्मादी महाविस्फोट की जरुरत थी,जो बाबरी विध्वंस है और जिसमें बाबासाहेब समेत फूले, पेरियार, अयंकाली, लोखंडे,नारायणगुरु, हरिचांद गुकरुचांद बीरसा मुंडा,रानी दुर्गावती,सिधो कान्हो,चैतन्य महाप्रभू,संत तुकाराम,गुरु नानक,कबीर रसखान,संत गाडगे महाराज,लिंगायत मतुआ और तमाम आदिवासी किसान आोंदालनों की सारी विरासतें एकमुश्त ध्वस्त हैं।


आप चाहे बाबासाहेब का परानिरवाण दिवस मनाइये, बाबरी विध्वंस के मौके पर काला दिन,उस विरासत को फिर बहाल किये बिना मुक्तबाजारी कारपोरेट हिंदू साम्राज्यवाद की चांदमारी से आपकी जान बचेगी नहीं,चारा जो हरियाला है,वह दरअसल वधस्थल का वातावरण है।


शीतल चव्हाण ने सुबह ही यह पोस्ट दर्ज  कराया हैः

" महामानव डॉ.बाबासाहेब आंबेडकरांचे महापरिनिर्वाण "

रविवार ,२ डिसेंबरला नानकचंद रत्तू सकाळी नेहमीप्रमाणे सव्वासातला आले, तेव्हा बाबासाहेब बिछान्यात पडून राहिले होते. त्याला पाहताच बाबासाहेब म्हणाले, " आलास वेळेवर ! आज आपल्याला खूप काम करायचे आहे." ते बिछान्यातून उठले, चहा घेतला व 'कार्ल मार्क्सचे ' 'दास कॅपिटल ' या ग्रंथातील मजकूर परत डोळ्यांखालून घालून ' buddha & his dhamma ' या ग्रंथाच्या लेखनासाठी बसले. आणि नानकचंद ला टाईप करायला देत होते. हे काम संध्याकाळपर्यंत चालले .दिनांक ४ डिसेंबर ला बाबासाहेब सुमारे ८-४५ ला उठले . सकाळी सुमारे ११ वाजता बाबासाहेबांना भेटायला जैन धर्माचे काही लोक आले. त्यांनी याबाबतीत विचारविनिमय करावा अशी विनंती केली.बाबासाहेब त्यांना म्हणाले, ' यासंबंधी आपण उद्या रात्री ८-३० च्या नंतर चर्चा करू .

दिनांक ५ डिसेंबर १९५६ ला नानकचंद ऑफिस सुटल्याबरोबर बाबासाहेबांच्या बंगल्यावर आले. तसा बाबासाहेबांचा नोकर सुदाम याने त्यांना फोन केला होता. बाबासाहेबांना झोप लागत नव्हती . ते अस्वस्थ होते. अशा परिस्थितीतही बाबासाहेब मधूनमधून 'buddha & his dhamma ' या ग्रंथांचा मजकूर लिहित होते ३-४ कागद लिहून झाले होते. तेव्हा नानकचंद संध्याकाळी ५-३० आले त्यावेळी बाबासाहेबांचा चेहरा म्लान झालेला व अस्वस्थ असलेले त्याला दिसले त्यांनी नानकचंदला लिहिलेले कागद टाईप करण्यास दिले. त्यानंतर काही वेळ गेल्यावर संध्याकाळी बाबासाहेब डोळे मिटून हळू आवाजात 'बुद्धं शरणं गच्छामि ' त्रिशरण म्हणू लागले . नंतर त्यांनी नानकचंद ला 'बुद्ध भक्तिगीते 'हि रेकॉर्ड लावायला सांगितली व त्या गीतांबरोबर आपणही गुणगुणू लागले नोकराने जेवण आणले तेव्हा बाबासाहेब म्हणाले ' जेवणाची इच्छा नाही ' पंरतु नानकचंद ने आग्रहाणे जेवावयास उठवले डायनिंग हॉलच्या दोन्ही बाजूंना भिंतींच्या कडेने ग्रंथांची कपाटे ओळीने लावलेली होती. त्या ग्रंथांच्या कपाटांना पाहत पाहत बाबासाहेबांनी एक दीर्घ निःश्वास सोडला . आणि हळूहळू चालत डायनिंग टेबलापाशी गेले. इच्छा नसतांना दोन घास खाल्ले .नंतर नानकचंद ला डोकीला तेल लावून मसाज करायला सांगितले . मसाज संपल्यावर ते काठीच्या साहाय्याने उभे राहिले आणि एकदम मोठ्यांदा म्हणाले ," चल उचल कबीरा तेरा भवसागर डेरा."

त्यावेळी ते फार थकलेले दिसत होते, चेहराही एकदम निस्तेज झाला होता. त्यांना झोप येऊ लागली तेव्हा नानकचंद ने जाण्याची परवानगी मागितली . ते म्हणाले " जा आता . पण उद्या सकाळी लवकर ये. लिहिलेला मजकूर टाईप करावयाचा आहे ."

नानकचंद निघाले तेव्हा रात्रीचे ११-१५ झाले होते.

दिनांक ६ डिसेंबर ला नानाकचंद सकाळी नेहमीपेक्षा उशीराच उठेल. ते सायकल बाहेर काढतात तोपर्यंत तर दारावर सुदाम उभा राहिला म्हणाला 'माईसाहेबांनी तुम्हांला लागलीच बोलावले आहे. नानाकचंद तसेच निघाले त्यांनी सुदामला विचारले एवढ्या घाईने का बोलावले आहे ? आणि बंगल्यावर पोहचल्यावर ते बाबासाहेबांच्या बिछान्याजवळ गेले आणि म्हणाले " बाबासाहेब मी आलोय ! असे भांबवून मोठयांदा ओरडले . साहेबांच्या अंगाला हात लावला त्यांना ते गरम असल्याचा भास झाला म्हणून ते छातीचा मसाज करू लागले ऑक्सिजन देण्याचा प्रयत्न केला हे सर्व प्रयत्न निष्फळ ठरले ,तेव्हा कळून चुकले कि , बाबासाहेबांच्या जीवनाचा प्रचंड ग्रंथ आटोपलेला आहे .

बाबा गेल्याचे पाहून नानकचंद मोठ्यांदा रडू लागले. बंगल्यातील सर्व जण गोळा झाले माळ्याने तर बाबासाहेबांच्या पायावर लोळण घेतली आणि तोही रडू लागला .

पुढची व्यवस्था करायची म्हणून नानकचंद यांनी ९ वाजता फोन करण्यास सुरवात केली व सर्वांना हि बातमी कळविली आणि बाबासाहेबांचा पार्थिव देह मुंबईस राजगृह येथे विमानाने आणण्यात येणार आहे हि बातमी मुंबईतील लोकांना कळली तेव्हा लोकांचे थवेच्याथवे विमानतळाकडे जाऊ लागले. दिल्लीहून बाबासाहेबांचा पार्थिव देह घेऊन विमान निघाले सांताक्रूझ विमानतळावर रात्री उतरले .तिथे आधीच सगळी व्यवस्था करण्यात आली होती .अॅम्ब्यूलन्स विमानतळावरून राजगृहाकडे जाण्यास निघाली. हजारो लोक थंडीत कुडकुडत रस्त्याच्या दोन्ही बाजूंना हातात हार घेऊन व डोळ्यातून अश्रूंना वाट करून देत उभे होते. वंदना घेत घेत अॅम्ब्यूलन्स हळूहळू चालत राजगृहाला आली. तेव्हा राजगृहापुढे जमलेल्या लाखो लोकांच्या तोंडून एकच आर्त स्वर निघाला .'बाबा ! ' आणि ते रडू लागले .

स्त्रियांचा आक्रोश तर विचारायलाच नको ! मातांनी आपली मुले बाबांच्या चरणावर घातली. काहींनी भिंतीवर डोकी आपटली, कित्येकजणी मुर्च्छित पडल्या.

हिंदू कॉलनीतील सवर्ण हिंदूंना बाबासाहेबांच्या पार्थिव देहाचे दर्शन घेण्यासाठी रांगेत तीन-चार तास उभे राहावे लागले . हिंदू कॉलनीतील लोकांनी , ' आमच्या वस्तीतील ज्ञानियांचा राजा गेला ! आमच्या हिंदू कॉलनीचे भूषण हरवले ! ' असे उद्गार काढले.

एवढी जरी गर्दी तेथे जमली होती तरी लोक अत्यंत शिस्तीने अत्यंदर्शनासाठी उभे होते.

बाबांचा पार्थिव देह राह्गृहात आणल्यानंतर बौद्ध भिक्षूंनी धार्मिक विधी पार पाडला हा विधी अत्यंत साधा होता. नंतर बाबासाहेबांच्या पार्थिव देहावर पावित्र्यनिदर्शक अशी शुभ्र वस्त्रे चढविण्यात आली पार्थिव देहाजवळ असंख्य मेणबत्त्या लावण्यात आल्या होत्या. त्यांच्या उशाला बुद्धांची एक मूर्ती होती. दुपारी एक वाजेपर्यंत सुमारे दोन लक्ष ( लाख ) लोकांनी अंत्यदर्शन घेतले . बाबासाहेबांच्या दुःखद निधनामुळे सुमारे दोन लक्ष कामगारांनी हरताळ पाळला. त्यामुळे पंचवीस कापड गिरण्या पूर्णपणे बंद होत्या. अनेकांनी आपली दुकाने बंद केली होती. शाळा कॉलेजमधील विद्यार्थ्यांनी देखील हरताळात भाग घेतला होता.

एका शृंगाररलेल्या ट्रकवर बाबासाहेबांचा पार्थिव देह ठेवण्यात आला .त्या मागे बुद्धांची मूर्ती ठेवण्यात आली होती. त्यांच्याशेजारीच पुत्र यशवंतराव (उर्फ भय्यासाहेब आंबेडकर ) व पुतणे मुकुंदराव बसले होते. मिरवणुकीची लांबी सुमारे दीड ते दोन मैल होती. किमान दहा लाख लोकांनी भारताच्या या बंडखोर सुपुत्राचे अंतिम दर्शन घेण्यासाठी मार्गावर दुतर्फा गर्दी केली होती. एवढी मोठी प्रचंड गर्दी ! पण बेशिस्त वर्तनाचा एकही प्रकार कुठेही घडला नाही. अशाप्रकारे डॉ. बाबासाहेबांची अंत्ययात्रा निघाली परळ नाक्यापासून मिरवणूक एल्फिन्स्टनरोडकडे निघाली तेव्हा जिकडे तिकडे माणसांशिवाय दुसरे काहीच दिसत नव्हते.बरोबर दिनांक ७ डिसेंबर ५ वाजता महायात्रा दादरच्या चौपाटीवर आली. डॉ. बाबासाहेबांच्या शवाला अग्नी देण्यासाठी भागेश्वर स्मशानभूमीतच समुद्राच्या बाजूच्या भिंतीलगत एक वाळूचा प्रचंड चौथरा तयार करण्यात आला होता . बाबांचे शव ट्रकच्या खाली उतरविण्यात आले मेणबत्यांचे तबके घेतलेले चार भिक्षु पुढ होते. बाबासाहेबांचे शव सर्वांना दिसेल अशाप्रकारे एका उंच व्यासपीठावर ठेवण्यात आले. मुंबई सरकारतर्फे बाबासाहेबांच्या पार्थिव देहाला पुष्पहार अर्पण करण्यात आला. मुंबईतील व बाहेरगावची अनेक प्रमुख मंडळी उपस्थित होती. भिक्षूंनी धार्मिक विधीस प्रारंभ केला ते करूण दृश्य पाहतांना अनेकांच्या डोळ्यातून अश्रू वाहत होते. त्यांचा हा विधी आनंद कौसल्यायन यांच्या मार्गदर्शनाखाली झाला .यानंतर बाबासाहेबांचे शव चंदनाच्या चितेवर चढविले आणि डॉ. बाबासाहेबांच्या पार्थिव शवाला सशत्र पोलीस दलाने त्रिसर बंदुकीने बार काढून मानवंदना दिली व बिगुलाच्या गंभीर स्वरात त्यांच्या देहाला पुत्र यशवंतराव यांच्या हस्ते संध्याकाळी ७-१५ वाजता अग्नी देण्यात आला बाबासाहेबांच्या शवाला अग्नी देताच यांचे आप्तस्वकीय यांना संयम आवरता आला नाही ते चीतेकडे धावले ओक्साबोक्शी रडू लागले . व त्यांनी पुन्हा ' बाबांचे ' शेवटचे दर्शन घेतले. आणि काही क्षणात बाबासाहेबांचा पार्थिव देह कायमचा अनंतात विलीन झाला.

रविवार दिनांक ९ ला सकाळी ८ वाजता दादर चौपाटीवर विस्तीर्ण वाळूच्या पटांगणात जाहीर शोकसभा झाली अध्यक्ष भदंत कौसल्यायन हे होते. आणि अनेक वक्ते उपस्थितीत होते. अनेकांची भाषणे झाली श्रीमती रेणू चक्रवर्ती यांनी भाषणात हे उद्गार काढले ' आम्हा तरुण सभासदांना डॉ. आंबेडकर यांच्या सान्निध्यात राहण्याचा अगर त्यांच्यबरोबर काम करण्याचा सुयोग मिळाला नाही. डॉ. आंबेडकर यांनी राज्यघटना व हिंदू कायद्याची संहिता जी मुळ तयार केली होती , ती उकृष्ट होती. आणि जोपर्यंत या दोन कृती भारतात अस्तीत्वात राहतील तोपर्यंत आंबेडकरांच्या अद्वितीय बुद्धीमत्तेचा व कर्तुत्वाचा स्मृतीदीप भारतात तेवत राहील .हिंदू समाजातील पिडीत व दलित लोकांना त्यांनी ज्ञानाची संजीवनी पाजून जिवंत केले आणि आपल्या मानवी हक्कांसाठी लढण्यास उभे केले. त्याचप्रमाणे त्यांनी पददलितांबद्दलची वरिष्ठ वर्गाची दृष्टी बदलून टाकली हे त्यांचे अनुपम थोर राष्ट्रकार्य होय.

त्यानंतर आचार्य अत्रे यांनी सुद्धा भाषण केले ते म्हणाले या महान नेत्याच्या मृत्युच्या मृत्यूने मृत्यूचीच कीव वाटू लागली आहे. मरणानेच आज आपले हसू करून घेतले आहे .मृत्यूला काय दुसरी माणसे दिसली नाहीत ? मग त्याने इतिहास निर्माण करण्याऱ्या एका महान जीवनाच्या या ग्रंथावर , इतिहासाच्या एका पर्वावरच का झडप घातली ? भारताला महापुरुषांची वाण कधी पडली नाही . परंतु असा युगपुरुष शतकाशतकात तरी होणार नाही. झंझावाताला मागे सारणारा ,महासागराच्या लाटांसारखा त्यांचा अवखळ स्वभाव होता. जन्मभर त्यांनी बंड केले. आंबेडकर म्हणजे बंड असा बंडखोर शूरवीर , बहाद्दर पुरुष आज मृत्युच्या चिरनिद्रेच्या मांडीवर कायमचा विसावा घेत आहे.त्यांचे वर्णन करण्यास शब्द नाहीत.

महामानव ,बोधिसत्व , भारतीय घटनेचे शिल्पकार डॉ.बाबासाहेब आंबेडकर यांना महापरिनिर्वाण दिनी विनम्र अभिवादन व कोटी कोटी प्रणाम .....

! जय भीम ! !! जय भारत !! !!! नमो बुद्धाय !!!


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