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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Tuesday, March 3, 2015

जन धन डकैती का चाकचौबंद स्थाई बंदोबस्त रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंचा शेयर बाजार, नीतिगत दरों में कटौती के बाद सेंसेक्स पहली बार 30000 के पार पलाश विश्वास

जन धन डकैती का चाकचौबंद स्थाई बंदोबस्त

रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंचा शेयर बाजार, नीतिगत दरों में कटौती के बाद सेंसेक्स पहली बार 30000 के पार


पलाश विश्वास

कारपोरेट मुनाफा के लिए भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने बुधवार को मुख्य नीतिगत दरों में 25 आधार अंकों की कटौती की। रिजर्व बैंक के इस कदम से महंगाई में कमी आने की उम्मीद की जा रही है।

इस घोषणा के बाद नई ब्याज दर 7.50 प्रतिशत हो गई है।वित्त मंत्रालय और रिजर्व बैंक मुद्रास्फीति लक्ष्य के संबंध में सहमत हो गए हैं जिसके तहत केंद्रीय बैंक खुदरा मुद्रास्फीति का लक्ष्य जनवरी 2016 तक 6% से कम और मार्च 2017 तक करीब 4% रखेगा। मौद्रिक नीति ढांचा समझौते पर 20 फरवरी को हुए हस्ताक्षर हुआ जिसका लक्ष्य मुख्य तौर पर वृद्धि के उद्देश्य को ध्यान में रखकर मूल्य स्थिरता को कायम रखना है।


खुशी मनाइये कि पांच भारतीय महिलाओं ने फोर्ब्स की अरबपतियों की सूची में जगह बनाई है। इस साल की अरबपतियों की सूची में रिकार्ड संख्या में महिलाएं हैं। हालांकि कुल अरबपतियों में अब भी उनकी हिस्सेदारी महज 11 प्रतिशत है।


वैसे धनाढ़्य भारतीयों में मुकेश अंबानी 21 अरब डॉलर के नेटवर्थ के साथ अपनी शीर्ष स्थिति लगातार आठवें साल बरकरार रखी है। वहीं वैश्विक धनवानों की सूची में वह एक पायदान ऊपर आये हैं जबकि इस सूची में एक बार फिर साफ्टवेयर दिग्गज बिल गेट्स पहले स्थान पर रहे हैं।


खुशी मनाइये कि वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा है कि भारतीय अर्थव्यवस्था को 9-10 प्रतिशत वृद्धि दर्ज करने और अगले दशक तथा इसके बाद भी इस वृद्धि दर को बरकरार रखने की जरूरत है ताकि बेहतर बुनियादी ढांचा मुहैया कराया जा सके एवं गरीबी कम की जा सके।


बजरंगी हुए मध्यवर्गीय निम्नमध्यवर्गीय हिंदुत्ववादी राष्ट्रवादियों को जोर का झटका कितना आहिस्ते लगेगा,बता नहीं सकते।


कारपोरेट दुनिया, विदेशी पूंजी और कालाधन वर्चस्व के अबाध पूंजी प्रवाह के लिए कर ढांचे में आतंक राज खत्म है और कारपोरेट कर छूटों का सिलसिला जारी रहनाा है।


मौद्रिक नीतियां भी तदनुसार बाजार की जरुरत के मुताबिक समायोजित होती रहेगी।


बुलरन काधमाल जारी रहना है और बहुत जल्द सेनसेक्स पचास पार होने की तरफ दौड़ रहा है।


निफ्टी सारे रिकार्ड तोड़ेने जा रहा है।


विकास दर में हम  चीन से चार कदम आगे बढ़ने वाले हैं।


वित्तीय और राजस्व घाटा शून्यमुद्दास्पीति की तर्ज पर शून्य  घोषित किये जाने के डैटा पाइपलाइन में हैं तो उत्पादन के आंकड़े भी तदनुसार होंगे।


डाउ कैमिकल्स ने कैसलैस समाज का नारा दिया है जो शोषणविहीन वर्गविहीन जाति विहीन समाज का विकल्प है एकदम संघ परिवार के विकल्प बतौर उभरे आप की तरह।


आज टेलीकॉम स्पेक्ट्रम नीलामी को लेकर एक्शन रहने वाला है। आज 2जी और 3जी स्पेक्ट्रम के लिए नीलामी होने वाली है। भारती एयरटेल, आइडिया, वोडाफोन और रिलायंस जियो समेत 8 कंपनियां स्पेक्ट्रम के लिए बोलियां लगाएंगी। टेलीकॉम स्पेक्ट्रम से सरकार को 82000 करोड़ रुपये मिलने की उम्मीद है।


आज 800 मेगाहर्ट्ज, 900 मेगाहर्ट्ज, 1800 मेगाहर्ट्ज और 2300 मेगाहर्ट्ज स्पेक्ट्रम के लिए नीलामी होने वाली है। बता दें कि मौजूदा कंपनियों को अपना स्पेक्ट्रम रीन्यू कराना होगा। साथ ही सर्विस और डाटा ग्रोथ जारी रखने के लिए रीन्युअल जरूरी है। वहीं रिजर्व प्राइस पर सरकार 80,000 करोड़ रुपये जुटा सकती है, जबकि अनुमानों के मुताबिक सरकार को 1 लाख करोड़ रुपये मिल सकते हैं।


आज से कोल ब्लॉक ऑक्शन का दूसरा चरण शुरू हो रहा है। दूसरे चरण में शेड्यूल-3 के 14 ब्लॉक के लिए बोलियां लगेंगी। वहीं आज 3 ब्लॉक के लिए ऑक्शन होगा।सरकार दूसरे चरण में 20 के बजाय 14 ब्लॉक की नीलामी करेगी। शेड्यूल-3 के तहत उन ब्लॉक का समावेश है जिनमें अभी प्रोडक्शन शुरू होना है। पहले दिन झारखंड के जितपुर, मोइत्रा, बृंदा और सासाई ब्लॉक की नीलामी होगी।



खास बात यह है कि बगुला संप्रदाय ने मध्यवर्ग की रीढ़ उनके धर्मोन्मादी कायाकल्प से बेहद मजबूत कर दी है और अर्थव्यवस्था का सारा बोझ इसी गधा पर लाद दिया जाना है।


नीति बन गयी है कि बुल रन से पूरी मुनाफावसूली होने तक व्यक्तिगत करों में यानी खासतौर पर आयकर दरों में कोई छूट भविष्य में दी नहीं जायेगी।


बजाये इसके निवेशकों की आस्था डगमगाने वाले टैक्स टैरर खत्म करने के लिए कारपोरेटदुनिया के लिए निरंतर छूट और प्रोत्साहन का सिलसिला जारी रहना है।


मोरारजी देसाई ,वीपीसिंह और अटलबिहारी सरकारों की तरह शक्तिमान नमो सरकार को राज्यसभा में एकजुट विपक्ष के मुकाबले करारी शिकस्त मिल गयी है लेकिन बशर्म सरकार को इससे जनसंहारी नीतियां और सुधार जारी रखने से कोई रोक पायेगा,इसके आसार नहीं है।


माकपा के संशोधन प्रस्ताव पर खास माकपा की सबसे बड़ी दुश्मन ममता बनर्जी की हिदायत पर माकपा के समर्थन में तृणमूल सांसदों मने वोट डाले हैं,इससे बंगाल में केसरिया सुनामी रुक जायेगी ,यह जैसे फिलहाल असंभव है,वैसे ही पिछले दरवाजों और खिड़कियों और रोशनदानों से संसोधन के साथ तमाम लंबित विधेयकों को लोकसभा में फिर पास कराकर संसद के संयुक्त अधिवेसन में सुधार के सारे अवरोध उड़ाने का मास्टर प्लान है जिसके मुकाबले क्षत्रपों के निजी हित और अहंकार के मुकाबले विपक्ष की यह अस्थाई एकता नाकाफी है।


राज्यसभा में सरकार की हार दरअसल कोई खबर ही नहीं है।असली खबर डिजिटल बायोमैट्रिक तिलिस्म का है,जिसके तहत जल जमीन जंगल प्रकृति पर्यावरण और राष्ट्र को विदेशी पूंजी के हवाले करने के अबाध राष्ट्रवादी हिंदुत्ववादी राष्ट्रद्रोह के साथ साथ बेदखली अभियान के सलवा जुड़ुम और आफसा माहौल में जनधन डकैती का मुकम्मल तिलिस्म तैयार हो गय है।


नजारा जो है,वह कुछ इसतरह का है कि लोकसभा ने माइंस एंड मिनरल्स डेवलपमेंट एंड रेगुलेशन एक्ट (एएमडीआरए) में संशोधन को मंजूरी दे दी। इस संशोधन का मकसद देश में खदानों के आवंटन में पारदर्शिता लाना है। साथ ही कुछ और अहम बिल भी लोकसभा में पेश हुए हैं, जिन पर चर्चा चल रही है।


एएमडीआरए बिल से आयरन ओर, मिनरल्स की खदानों की नीलामी की जा सकेगी। साथ ही केंद्र सरकार नीलामी की शर्तें तय कर पाएगी और राज्यों के हाथ में ज्यादा अधिकार आएंगे। एएमडीआरए बिल से डिस्ट्रिक्ट मिनरल फंड बनाने का रास्ता साफ हो जाएगा। डिस्ट्रिक्ट मिनरल फंड का इस्तेमाल प्रोजेक्ट से प्रभावित लोगों के लिए होगा।


वहीं सरकार के एजेंडे में अभी इंश्योरेंस संशोधन बिल, कोल माइनिंग बिल, मोटर व्हीकल संशोधन बिल और जमीन अधिग्रहण बिल शामिल हैं, जिन्हें सरकार पास कराना चाहती है।



जबसे नकद भुगतान बंद है,चेक से भी वेतन नहीं मिलता है और शून्यजमा खाते में वेतन कंपनियों और सरकारों की ओर से जमा किया जाता है,तब से जमाखाता के साथ फ्री में डीमैट खाता भी उसी बैंक में उसी नाम के साथ खोलने का रिवाज चला है।लेकिन बड़े पैमाने पर चिड़िया फंसाने में बाजार नाकाम रहा है।हर सेकंड बाजार के उछल कूद में जो लाखों,करोड़ों और अरबों का दांव लगता है,आम भारतीय उस दुश्चक्र से बचने की हर संभव कोशिश करता रहा है।


शेयर सूचकांक से भारतीय रोजमर्रे की जिंदगी का नाभि नाल जुड़ाव बनाने का समावेशी विकास करने में डा.मनमोहनसिंह का विकलांग अर्थशास्त्र रिसते हुए ख्वाबों के बावजूद,सामाजिक योजनाओं के जरिये सरकारी खर्च बढ़ाकर बाजार में भारी पैमाने पर कैश बहाने के बावजूद नाकाम रहा है।


दरअसल आम भारतीय फिर वही होरी या गोबर या धनिया है,जिसकी टाटा बिड़ला अंबानी अडानी जिंदल मित्तल बनकर मुनाफा लूटने की कोई महत्वाकांक्षा नही रही है और नउसे बाजार और अर्थशास्त्र की इतनी समझ है कि वह जोखिम उठाकर धनपैदा करने वाली मशीनरी का पुर्जा स्वेच्छा से बन जाये।


यही वजह है कि शेयरसूचकांक से जुड़ी अमेरिकी और यूरोपीय अर्थव्यवस्थाओं को जब 2008 की महामंदी की मार झेलनी पड़ी और महाबलि अमेरिका की मूषक दशा हो गयी तो भी बिना बुनियादी आधार में किसी तब्दीली के,बिना उत्पादन प्रणाली में बदलाव के ,बिना किसी आंतरिक शक्ति के वह महामंदी भारतीय अर्थव्यस्था डालर से जुड़े होने के बावजूद झेल गयी।सिर्फ शेयरबाजार से लिंक न होने के कारण।क्योंकि मध्यवर्ग में जो सबसे नियमित आय वाले लोग हैं,कर्मचारी विभिन्न स्तरों के हैं,वे बाजार के लपलपाते प्रोलोभन के बावजूद डीमैट खाते के जरिए बाजार में दांव लगाने से हिचकिचाते रहे।


इस परिदृश्य को म्युचअल फंड और यूनिट लिंक बीमा से बदलने की कवायद हुई और इस कवायद में विनिवेश के लिए फंड देने के लिए मजबूर भारतीयजीवन बीमा निगम का कंकाल निकल आया।


बीमा एजंट अब सबसे नापसंद किये जाने वाले मनहूस लोग हो गये हैं,जो यूनिट बीमा के जरिये पांच दस गुणा ज्यादा कमाने का सब्जबाग दिखाकर अपना कमीशन निकालकर चुपचाप बैठ गये और ग्राहकों को प्रीमियम तक वापस नहीं मिला।अकेले जीवन बीमा निगम के ऐसे लुटे पिटे ग्राहक करोड़ों हैं।


अब हो क्या रहा है,इसे समझ लीजिये।


हम अबतक कर्मचारियों और गैर हिंदीभाषी जनता को संबोधित करने के लिए अंग्रेजी में इस विषय पर सिलसिलेवार लिखते रहे हैं।लेकिन अंग्रेजी से उनका इतना ज्यादा सशक्तीकरण हो गया है कि जड़ों से उनका कोई नाता है नहीं और चमचमाते उपभोक्ता बाजार में सबसे ज्यादा पैसा इन्हींको चाहिए।इनकी यूनियनें भी इस बेहतर आमदनी की जरुरत के मद्देनजर उन्हें वेतन और भत्तो और सवेतन अवकाश जैसे मुद्दों में खपाती रही है।उन्हें हम पिछले तेइस सालों की लगातार कोशिशों के बावजूद समझा नहीं सके हैं।


अब भी राज्यसभा में सरकार को हराने का बाद वाम आवाम बल्ले बल्ले हैं और न वे अर्थव्यवस्था पर कुछ ज्यादा बोल रहे हैं और न राज्यतंत्र को बदलने की बात कर रहे हैं।


जनांदोलन और सत्यादग्रह का जिम्मा उनने भी आप और अन्ना ब्रिगेड पर छोड़ रखा है।जबकि संसदीय सहमति अस्थाई सरकारों और लघुमत सरकारों के जमाने में भी कारपोरेट लाबिइंग और कारपोरेटफंडिंग की वजह से लोकतंत्र का स्थाई भाव बना हुआ है।


विपक्ष अगर इतना एकजुट है,इतना जनप्रतिबद्ध है तो राज्यसभा में तो नमूना पेश हो ही चुका है कि अगर हमारे मिलियनर बिलियलर राजनीति जमात के लोग चाहें तो कभी भी कहीं भी अश्वमेधी घोडो़ं की नकेल और बुलरन के सांढ़ों की सींग थाम सकते हैं।


पिछले तेइस सालों से ऐसा लेकिन हुआ नहीं है।न आगे होने की संभावना है।


2008 भारतीय अर्थ व्यवस्था शेयर सूचकांक से कहीं जुड़ी न थी,न आकिरी सांस तक मनमहोन बाबू यह करिश्मा कर सके।

लेकिन अब भारतीयअर्थ व्यवस्था मुकम्मल शेयर बाजार है।

जो नीति आयोग बना,योजना आयोग के बदले वह शेयर सूचकांक है दरअसल।

जो बजट रेलबजट विकास का पीपीपी माडल और मेकिंग इन है ,वह दरअसल शेयर सूचकांक की चर्बी है और यह चर्बी भारतीय जनगण के लिए कैंसर का सबब है।


शत प्रतिशत हिंदुत्व के झंडेवरदारों की असली आस्था लेकिन निवेशकों की आस्था है,यह हम बार बार बतला जतला लिख चुके हैं।


निवेशकों का आस्था का आधार शेयर बाजार है,जहां खेलने और कत्ल करने के कैसिनो इंतजामात विदेशी हितों के अनुकूल है।


वहां शुरु से कत्ल होने के लिए तैयार कतारबद्ध भेड़ों और मुर्गियों की बारी कमी महसूस की जा रही है।


नौ महीने के राजकाज में शेयर केंद्रित रंग बिरंगे विकास कार्यक्रमों में और आखिरकार बजट और रेल बजट माध्यमे थोकभाव से ये धर्मोन्मादी भेड़ें और बकरियां अब तैयार हैं।


अब बता ही दें कि लोग झूम रहे थे कि पीएफ आनलाइन हो गया है।जब मन होगा तोड़ निकालेंगे और फिर पांचों उंगलियां में घी होगी और सर कड़ाही में होगा।


दरअसल ईपीएफ फंड और पेंशन की रकम को डिजिटल बना दिया गया है,जिसे कभी भी कहीं भी बिना किसी की इजाजत शेयर बाजार में खपाया जा सकता है।


इसी बूते पीपीपी विकास माडल के तहत निर्माण विनिर्माण के प्रोमोटर बिल्डर माफिया रोज के मुताबिक बजट में डाउ कैमिकल्स और मनसैंटो बहार है कि पेंशन और पीएफ की रकम सीधे बाजार में निजी हितों और विदेशी पूंजी के लिए खटाया जा सकें।


बीमा का किस्सा भी वहींच।

सार्वजनिक उपक्रमों का पैसा और विभिन्न मंत्रालयों में जनत का पैसा भी कारपोरेट हित में, देशी विदेशी पूंजी के हित में पीपीपी विकास के बहाने ओ3म नमो स्वाहा।


अब आप गायत्री मत्र का जाप करें या हनुमान चालीसा का,इससे बाजार आपको बख्शेगा नहीं।खाल उतार कर कंकाल खूंटी पर टांग देगा।


वही इंतजाम के तहत कारपोरेट को धेला भर टैक्स न देना पड़े और जनता को कमसकम सोलह फीसद सर्विस टैक्स देना हो,जीेएसटी का आविर्भाव है।


राज्य सरकारों के पास जो राजस्व है ,विकास परियोजनाओं के पीपीपी माडल केतहत देशी विदेशी पूंजी के मुनाफे के खातिर उसे राज्य सरकारों के विकास में हिस्सेदारी के बहाने खपाया जा रहा है।


इस अलौकिक तिलिस्म का आखिरी मास्टर ब्लास्ट जनधन योजना के तहत खुले करोड़ों विश्वरिकार्ड बनाने वाले खाते और बायोमैट्रिक डिजिटल नागरिकता है कि अब जन धन योजना के तहत खोले गये जमा खाता भी डीमैट खाता के साथ नत्ती होगें।कि खरबूजों को तलवारों की धार से गुजारने का पक्का इंतजाम है।


क्योंकि बगुला विशेषज्ञों की राय है कि सरकार को जनधन योजना की तरह जिनके पास भी मोबाइल फोन हैं उनके लिए डीमैट एकाउंट भी मुफ्त खोल देना चाहिए।


क्योंकि बगुला विशेषज्ञों की राय है कि इक्विटी कल्ट को बढ़ावा देने के लिए सरकार को सरकारी कंपनियों के शेयरों को 10 फीसदी डिस्काउंट पर एलॉट करना चाहिए।


क्योंकि बगुला विशेषज्ञों की राय है कि बाजार में अच्छा पैसे बनाने के लिए 1, 2 या 5 साल के बजाय 30-40 साल का नजरिया होना बेहद अहम है। शेयर बाजार में लंबी अवधि के निवेश से फायदा मिलता है।


अब आम जनता की औकात क्या कि 30 40 साल के नजरिये से निवेस करें और अपनी फौरी जरुरतों अपनी मेडिकल खर्च,शिक्षा, रोजगार ,बेटी की शादी वगैरह वगैरह को स्थगित रख सकें ।


वे न अंबानी है और न अडानी है।


उनके शेयर गिरें तो भी बुल रन बहाल है लेकिन शेयर बाजार से आम जनता को जो जोड़ने की तरकीब है,उनकी अदक्षता और अर्थव्यवस्था के बारे में लगभग ज्ञानशून्यता से फायदा आखिर किन्हें होना है और बाजार से व्यापक पैमाने पर पूंजी बटोरकर बिना धेला भर राष्ट्र को लौटाये शत प्रतिशत मुनाफा कमाने के इस कारपोरेट बंदोबस्त के शत प्रतिशत हिंदुत्व को बूझें तो सही।


बाजार के फंडा से जुड़े हैं तमाम अवसर जो आम जनता को हर जोखिम उठाये खुद को जाने अनजाने बाजार से जोड़ने को मजबूर करता रहे और अमीरों के  लिए धकधक मनी मशीन चलती रहे गिलोटिन की तरह,जहां अब किसी कुलान सर नहीं होंगे,वे सारे सर हमारे तुम्हारो ही होंगे।


गौरतलब है कि वित्त मंत्री अरुण जेटली ने आम बजट में व्यक्तिगत आयकर दरों में तो कोई बदलाव नहीं किया है, लेकिन देश में निवेश आकर्षित करने के लिए कंपनी कर की दर अगले चार साल के दौरान पांच प्रतिशत घटाकर 25 प्रतिशत करने की घोषणा की है। कंपनियों की आय पर कर की दर अभी 30 प्रतिशत है। सरकार ने संपत्ति कर समाप्त करने का प्रस्ताव किया है और इसकी जगह एक करोड़ से अधिक की सालाना आय वाले अमीरों पर दो प्रतिशत अतिरिक्त अधिभार लगा दिया गया है। बजट में सेवाकर की दर दो प्रतिशत बढ़ाकर 14 प्रतिशत कर दी गई है जिससे कई तरह की सेवायें महंगी हो जायेंगी।


निवेशकों में संघ परिवार की आस्था का यह आलम है कि सब्सिडी को तर्कसंगत बनाने पर जोर देते हुए वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा है कि सरकार सब्सिडी के मामले में अगले दौर की कार्रवाई पर विचार कर सकती है।

कोलंबिया विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ इंटरनेशनल एंड पब्लिक अफेयर्स के छात्रों और शिक्षकों को संबोधित करते हुए उन्होंने हालांकि यह नहीं कहा कि सरकार क्या करने जा रही है और उसकी कब ऐसा करने की योजना है। जेटली ने अमीरों पर दो प्रतिशत अतिरिक्त अधिभार लगाने और छूट खत्म करने के साथ विभिन्न चरणों में कारपोरेट कर 30 प्रतिशत से घटाकर 25 प्रतिशत करने के बजट प्रस्ताव के बारे में भी बात की है।

उन्होंने कहा, भारत में कोई भी सरकार सब्सिडी के खिलाफ नहीं हो सकती लेकिन इसे तर्कसंगत होना चाहिये। बहुत से लोग हैं जो सब्सिडी के पात्र हैं और हम उन्हें सब्सिडी देना जारी रखेंगे। लेकिन इसमें कुछ हटना भी चाहिए और हमने कुछ सुविधा संपन्न क्षेत्रों से इसकी शुरुआत की है। उन्होंने कहा, बजट में मैंने लोगों से अपील की है कि जो ज्यादा कर के दायरे में आते हैं वे स्वेच्छा से अपनी सब्सिडी छोड़ दें। यह अगले दौर की कार्रवाई का पहला कदम है जिसके बारे में सरकार विचार सकती है। संपत्ति कर खत्म करने और अमीरों पर दो प्रतिशत अतिरिक्त अधिभार का हवाला देते हुए जेटली ने कहा कि संपत्ति कर की लागत ज्यादा थी और प्राप्ति कम। उन्होंने कहा कि संपत्ति कर खत्म कर वह प्रक्रिया आसान बनाना चाहते थे और अमीरों पर दो प्रतिशत अतिरिक्त अधिभार जोड़कर प्राप्ति बढ़ाना चाहते थे।

वित्त मंत्री ने कहा, व्यावहारिक अनुभव यह था कि संपत्ति कर उंची लागत और कम प्राप्ति वाला कर था। जेटली विश्वविद्यालय में घंटे भर चले सत्र में 28 फरवरी को पेश बजट और भारतीय अर्थव्यवस्था के भविष्य के बारे में पूछे गए सवाल का जवाब दे रहे थे। वित्त मंत्री ने कहा कि उन्होंने संपत्ति कर इसलिए खत्म किया कि वह प्रक्रिया को सरल बनाना चाहते थे। उन्होंने कहा, मैंने अमीरों पर दो प्रतिशत अतिरिक्त अधिभार लगाया और मुझे बताया गया इनकी संख्या भारत में बहुत कम है। कम से कम कर विभाग के रिकॉर्ड में तो ऐसा ही है। इस टिप्पणी से सभागार में हंसी फव्वारा छूट गया।

उन्होंने कहा, इसकी वजह से किसी अमीर ने इसका विरोध नहीं किया। उन्होंने कहा, यही लोग अब दो प्रतिशत अतिरिक्त अधिभार देंगे और मैं बिना किसी उत्पीड़न और वास्तविकता से कम मूल्यांकन के नौ गुना कर का संग्रह कर पाउंगा। उन्होंने कहा, यह ज्यादा साफ कर होगा। यह असान होगा और पहले के मुकाबले ज्यादा प्राप्ति करने वाला कर होगा क्योंकि इससे पहले जो कर था वह सिर्फ सुनने में अच्छा लगता था - कि संपत्ति पर कर लगाया जा रहा है। इसलिए मैंने उतने उतने ही अच्छे लगने वाले मुहावरे वाला कर लगाया कि अमीरों पर कर लगाया जा रहा है।

वित्त मंत्री ने कहा कि भारत में कारपोरेट कर 30 प्रतिशत और कुछ अधिभार अलग से हैं जबकि वास्तविक संग्रह सिर्फ 23 प्रतिशत है। जेटली ने कहा कि उन्होंने इसे धीरे-धीरे कम करने और हर तरह की छूट खत्म करने का विचार आगे बढ़ाया है। उन्होंने कहा, मैंने इस साल ऐसा इसलिए नहीं किया कि मैं हर संबद्ध पक्ष को अग्रिम नोटिस देना चाहता था कि सरकार की यह मंशा है और हम अगले साल से कार्यान्वयन शुरू करेंगे। भारत अन्य आसियान देशों के मुकाबले उच्चतम कर दर के साथ प्रतिस्पर्धा में बने नहीं रह सकता है।

उन्होंने कहा, अब भारत के राजनीतिक नीति निर्माताओं को यह समझाना है कि कमतर दरों के साथ कराधान ढांचा और कोई छूट नहीं रखने वाला ढांचा, उस ढांचे के मुकाबले बहुत बेहतर है जिसमें दरें और विभिन्न किस्म की छूटों का प्रावधान होता है क्योंकि छूट के कारण कई संदेहास्पद फैसलों से कानूनी विवाद पैदा हो सकता है जिससे हम कम प्रतिस्पर्धी हो सकते हैं।



इसी योजना की तार्किक परिणति शेयर बाजार का बुलरन है जो असली भव्य राममंदिर है पूंजी वर्चस्व का और इसीलिए देश के शेयर बाजारों में बुधवार को शुरुआती कारोबारों में तेजी का रुख देखा गया। आरबीआई के मुख्य नीतिगत दरों में 25 आधार अंक की कटौती के कारण मुख्य सूचकांक सेंसेक्स ऐतिहासिक ऊंचाई दर्ज करते हुए 30,000 के पार पहुंच गया।

रिजर्व बैंक की ओर से नीतिगत दर में कटौती के बाद बंबई शेयर बाजार का सेंसेक्स मंगलवार के शुरुआती कारोबार में 30,000 अंक के पार पहुंच गया, जबकि नेशनल स्टाक एक्सचेंज का निफ्टी भी पहली बार 9,119.20 अंक के स्तर पर पहुंच गया। बंबई शेयर बाजार के प्रमुख सूचकांक बीएसई-30 मंगलवार के शुरुआती कारोबार के दौरान 431.01 अंक अथवा 1.45 फीसद की बढ़कर 30,024.74 अंक की सर्वकालिक उंचाई पर पहुंच गया।

इसी प्रकार नेशनल स्टाक एक्सचेंज का निफ्टी-50 भी 122.95 अंक अथवा 1.36 फीसदी बढ़कर पहली बार 9,119.20 अंक पर पहुंच गया। बाजार विश्लेषकों ने बताया कि रिजर्व बैंक की ओर से नीतिगत दर में कटौती के बाद कोषों एवं निवेशकों की ओर से चुनिंदा शेयरों की खरीद बढ़ाये जाने से सेंसेक्स में तेजी आई।



इसी आलोक में इन योजनाओं पर गौर करेंः

इस साल बजट में सरकार ने भले ही टैक्स श्रेणी में कोई बदलाव नहीं किया है लेकिन स्वास्थ्य बीमा, शुकन्या समृद्धि खाता और नेशनल पेंशन स्कीम (एनपीएस) पर टैक्स छूट बढ़ाकर उपभोक्ताओं के लिए निवेश को ज्यादा आकर्षक बना दिया है। सुकन्या खाते पर ब्याज पहले से अधिक था अब उसपर तीन स्तरों पर टैक्स छूट ने उसे सार्वजनिक भविष्य निधि (पीपीएफ) से भी आकर्षक बना दिया है।


पीपीएफ से अधिक ब्याज

सुकन्या समृद्धि खाता 10 साल तक की लड़कियों के लिए खोला जा सकता है। बेटी के 18 साल होने पर इसमें से 50 फीसदी राशि शिक्षा खर्च के लिए निकालने की अनुमति है। 21 वर्ष की उम्र के बाद इसमें से पूरी राशि निकाल सकते हैं। सरकार इस पर 9.10 फीसदी ब्याज दे रही है। सुकन्या खाता में सालाना एक हजार रुपये का निवेश अनिवार्य है और अधिकतम 1.50 लाख रुपये जमा कर सकते हैं।

सुकन्या खाता में निवेश राशि पर ही पहले टैक्स छूट थी लेकिन इस बजट में इसके ब्याज और परिपक्वता पर मिलने वाली राशि पर भी टैक्स छूट दी गई है। इस मामले में यह पीपीएफ के बराबर हो गया जिसपर तीन स्तरों पर टैक्स छूट मिलती है। लेकिन ब्याज के मामले में सुकन्या खाता पीपीएफ से ज्यादा आकर्षक है। पीपीएफ पर 8.75 फीसदी ब्याज मिल रहा है जबकि सुकन्या खाता पर 0.35 फीसदी ब्याज अधिक है।


पेंशन योजनाओं का भी बढ़ा आकर्षक

नेशनल पेंशन स्कीम (एनपीएस) में टैक्स छूट 50 हजार रुपये बढ़ाकर 1.50 लाख रुपये कर दिया गया है। यह छूट धारा 80सी के तहत मिलती है। इसके साथ ही आयकर की धारा 80सीसीडी के तहत नेशनल पेंशन सिस्टम में 50 हजार रुपये की अतिरिक्त टैक्स छूट भी दी गई है। इस तरह अब पेंशन योजना में कुल दो लाख रुपये की टैक्स छूट हासिल कर सकते हैं। एनपीएस पर ब्याज पहले से तय नहीं है क्योंकि इसकी राशि कई माध्यमों में निवेश की जाती है। लेकिन पिछले कुछ वर्षो में इसमें 12 से 15 फीसदी तक रिटर्न दिया है। इसमें रिटर्न पीपीएफ से अधिक है लेकिन इस पर दो स्तरों पर ही टैक्स छूट मिलती है। इसमें निवेश और उसके ब्याज पर टैक्स मिलती है जबकि परिपक्वता राशि पर टैक्स चुकाना पड़ता है।


स्वास्थ्य बीमा पर कितना फायदा

आयकर की धारा 80 डी के तहत स्वास्थ्य बीमा पर पहले 15 हजार रुपये की टैक्स छूट थी जबकि इसे 10 हजार रुपये बढ़ाकर 25 हजार रुपये कर दिया गया है। इसके तहत स्वास्थ्य जांच पर पांच हजार रुपये की छूट मिल रही थी जो आगे भी जारी रहेगी। ऐसे स्थिति में आप 20 हजार रुपये स्वास्थ्य बीमा के प्रीमियम पर और पांच हजार रुपये स्वास्थ्य जांच के खर्च पर सालाना टैक्स छूट हासिल कर सकते हैं। यदि 25 हजार रुपये का स्वास्थ्य बीमा प्रीमियम भरते हैं तो स्वास्थ्य जांच पर पांच हजार रुपये की छूट का दावा नहीं कर सकते हैं।

माता-पिता की बीमा पर ज्यादा टैक्स लाभ

वरिष्ठ नागरिकों के लिए स्वास्थ्य बीमा पर टैक्स छूट 20 हजार रुपये थी जिसे बढ़ाकर 30 हजार रुपये कर दिया गया है। यदि आप खुद के साथ वरिष्ठ नागरिक की श्रेणी में आने वाले माता-पिता के लिए स्वाथ्य बीमा का प्रीमियम भरते हैं तो 25 हजार रुपये के साथ 30 हजार रुपये की अतिरिक्त छूट हासिल कर सकते हैं जिससे कुछ छूट 55 हजार रुपये हो जाएगी।


वरिष्ठ नागरिक को अधिक राहत

वरिष्ठ नागरिकों के लिए स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी पर टैक्स छूट व्यक्तिगत तौर पर 30 हजार रुपये है। लेकिन वरिष्ठ नागरिक की श्रेणी में आने वाले पति-पत्नी या आश्रित 30 हजार रुपये अतिरिक्त छूट का दावा कर सकते हैं। इस तरह कुल छूट बढ़कर 60 हजार रुपये हो जाएगी। इस स्थिति में भी स्वास्थ्य जांच पर पांच हजार रुपये टैक्स छूट सीमा इसके दायरे में होगी।


पीपीएफ पर कैसे उठाएं ज्यादा फायदा

पीपीएफ में सालाना न्यूनतम 500 रुपये निवेश अनिवार्य है। इसपर ब्याज की गणना हर महीने की पांच तारीख से अंतिम तारीख के बीच न्यूनतम जमा राशि पर होती है। यदि आप हर माह एक तारीख से पांच तारीख के बीच पीपीएफ में पैसे जमा करते हैं तो ज्यादा फायदा उठा सकते हैं। यदि आपने पीपीएफ में पहले माह एक हजार रुपये जमा किया लेकिन दूसरे माह छह तारीख को पैसा जमा करते हैं तो ब्याज एक हजार रुपये पर ही मिलेगी। इसके विपरित दूसरे माह पांच तारीख के पहले पैसा जमा करते हैं तो ब्याज का आकलन दो हजार रुपये की राशि पर होगा।

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