Total Pageviews

THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

Twitter

Follow palashbiswaskl on Twitter

Friday, March 13, 2015

मुक्तबाजारी हिंदुत्व का एजंडा,लाल और नील दोनों का सफाया इसके बिना हिंदू राष्ट्र असंभव है चूंकि पलाश विश्वास

मुक्तबाजारी हिंदुत्व का एजंडा,लाल और नील दोनों का सफाया


इसके बिना हिंदू राष्ट्र असंभव है चूंकि

पलाश विश्वास

मुक्तबाजारी हिंदुत्व का एजंडा,लाल और नील दोनों का सफाया।


हमारी समझ में नहीं आ रही है यह बात कि संघ परिवार के इस खुल्ला खेल फर्ऱूखाबाादी को लाल और नील विचारधाराओं और राजनीति के झंडेवरदार  अब तक क्यों समझ नहीं पा रहे हैं।


गौर कीजिये कि कैसे बिना अंबेडकरी और बहुजन आंदोलन के खिलाफ एक शब्द कहे केसरिया सुनामी रचने से पहले दलितों के सारे रामों का संघ ने हनुमान कायाकल्प कर दिया।


पूरी नीली राजनीति और बहुजन आंदोलन को समरसता कार्यक्रम के तहत आत्मसात करने  की रणनीति अपनायी गयी और राजनीतिक मोर्चे पर भारतीय राजनीति में अलग थलग बाकी बचे नील को हाशिये पर धकेल दिया है संघ परिवार ने।बिना उससे टकराये।


अपने सबसे ताकतवर और वफादार चेहरों को हाशिये पर रखकर ओबीसी नरेंद्र भाई मोदी के प्रधानमंत्रित्व  के फैसले से नील को फतह करने का संघ परिवार का रणकौशल बेहद कामयाब रहा है।


क्योंकि हिंदुत्व का एजंडा तो मनुस्मृति अनुशासन की बहाली का एजंडा है और ब्राह्मण वर्चस्व की राजनीति में सर्वोच्च शिखर पर बहुजनों को प्रतिनिधित्व का माहौल रचे बिना बहुजनों को हिंदुत्व की पैदल सेना में तब्दील नहीं किया जा सकता।


गौततलब है कि बहुजन आंदोलन को सिरे से खत्म करने में कामयाब संघ परिवार बहुजन राजनेताओं के खिलाफ या अंबेडकरी आंदोलन के खिलाफ कुछ भी कहने के बजाय बहुजन आंदोलन की समूची विरासत,उसके प्रतीकों और उसके हजारों साल के प्रतिरोध के इतिहास,उसके निरंतर जारी संघर्षों के हिंदुत्वकरण करने का काम कर रहा है ताकि हिंदुत्व के भूगोल में बहुजन का कोई मतलब ही न रहे।


दूसरी ओर बंगाल का खेल अब पूरीतरह खुल गया है।


आज ही कोलकाता के एक बांग्ला न्यूज चैनल से बंगाल के भाजपा प्रभारी राहुल सिन्हा ने खुल्ला ऐलान किया कि भाजपा का लक्ष्य है,लाल रंग को ही सिरे से मिटा देना है।


अब इसे भी समझ लीजिये कि लाल रंग के खिलाफ मोदी हैं और संघ परिवार और भाजपा के साथ साथ लाल रंग की सबसे बड़ी दुश्मन ममता बनर्जी हैं।


दीदी ने तो बंगाल में सत्ता संभालते ही बंगाल की धरती में जहां भी लाल रंग है,वहां उसे नील में तब्दील करने लगी है।मजे की बात है कि नील रंग से दीदी का कोई वैचारिक ताल्लुक नहीं है और न नीलरंगे बहुजन आंदोलन से उनका कुछ लेना देना है।कोलकाता नगर निगम इलाके में तो घरों और इमारतों के रंग नीला करने पर टैक्समाफी का ऐलान भी हुआ है।


धर्मोन्मादी ध्रूवीकरण बंगाल में तेज करने में जितना भारी योगदान मोदी,शाह और संघ परिवार के नेता नेत्रियों का रहा है.उसके बराबर योगदान अकेली ममता बनर्जी का है।



नतीजतन अब बंगाल में कमसकम हर चौथा वोटर केसरिया है और सीबीआई नौटंकी के बावजूद दीदी बंगाल में निरंकुश है।


धार्मिक ध्रूवीकरण से सफाया लाल रंग का हुआ है जो कि संघ परिवार का घोषित एजंडा है।जबकि बंगाल में नीली राजनीति और बहुजन आंदोलन दोनों निषिद्ध है।


बंगाल में बचा खुचा नीला भी मतुआ आंदोलन के भगवेकरण से अब केसरिया केसरिया कमल कमल है।


मुसलमानों के अटूट समर्थन के बिना बंगाल में सत्ता में बने रहना असंभव है।


धर्मनिरपेक्षता राजनीतिक मजबूरी है जो हकीकत में है ही नहीं।


बंगाल में किसी भी चुनाव क्षेत्र में तीस फीसद से कम वोट मुसलमानों के नहीं हैं और विधानसभाक्षेत्रों में से आधे में तो कहीं पचास तो कहीं सत्तर और नब्वे फीसद तक मुसलमान वोटर हैं।


जाहिर है कि दीदी खुलकर संघ परिवार के साथ खड़ी नहीं हो सकती।लेकिन उनका गठजोड़ संघ के साथ है।इसको छुपाना भी जरुरी है।मोदी और दीदी ने यह मुश्किल आसान किया कि लाल का सफाया।


तो मोदी और दीदी का साझा उपक्रम रहा है बंगीय धर्मोन्मादी ध्रूवीकरण और शाह के बंग विजय का असल आशय बंगाल की सत्ता दखल करना नहीं है,बंगाल से वाम का सफाया और बंगाल का केसरियाकरण है।


मोदी के खिलाफ दीदी की रोज रोज की युद्ध घोषणा और दीदी को कटघरे में खड़े करने की केंद्र सरकार की कवायद ने इस साझे उपक्रम को सुपर डुपर सफल बनाया है।


नौ महीने बाद हुई मुलाकात भी इसी साझा रणनीति की परिणति है।


इसे सीधे तौर पर समझे तो बहुजन आंदोलन और अंबेडकरी विचारधारा को खत्म किये बिना मनुस्मृति शासन का हिंदू राष्ट्र बन नहीं सकता।


फिर यह हिंदू राष्ट्र ग्लोबल हिंदुत्व का राष्ट्र है,जिसकी आस्था हिंदुत्व में नहीं,निवेशकों की आस्था है।जिसका राष्ट्र पीपीपी एफडीआई फारेन कैपिटल राष्ट्र है।


भारत में वाम आंदोलन और लाल रंग का वजूद जबतक कायम है तब तक फासीवादी एजंडा को अंजाम देना असंभव है और मुक्तबाजारी हिंदुत्व के खिलाफ कहीं न कहीं आग जलती ही रहेगी।


अब देखिये,बीमा बिल के विरोध के घोषित फैसले के विपरीत राज्यसभा से दीदी की तृणमूल कांग्रेस ने वाकआउट कर दिया।


2008 में यह बिल कांग्रेस ने पेश किया था और पहले से तय था कि बीमा बाजार को विदेशी पूंजी के लिए खोलने में भाजपा कांग्रेस गठजोड़ बना हुआ है।


भूमि अधिग्रहण बिल तो सौदेबाजी में शतरंज की नायाब चाल बन गया।जमीन डकैती के लिए कायदे कानून का पालन इस देश में कब कहां होता रहा है।


होता तो थोक भाव से किसान खुदकशी न कर रहे होते और पांचवीं छठीँ अनुसूचियों और तमाम संवैधानिक रक्षाकवच के बावजूद देशभर में आदिवासियों की बेदखली का सलवा जुडुम चल नहीं रहा होता।


कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस की राजनीति सौ टका खरी ही रही कि बीमा बिल पास कराने के एवज में भूमि  विधेयक राज्यसभा से सिलेक्ट कमिटी में चला गया।जिसे पास करने की वैसे भी कोई जल्दी नहीं है।


ग्राउंड रीयेलिटी लेकिन यही है कि लंबित परियोजनाएं सब चालू हैं और बाकी जो तमाम कानून भूमि विधेयक के विरोध के दिखावे के तहत सर्वदलीय सहमति से बनाये बिगाड़े जा रहे हैं,उससे हर हाल में जमीन से बेदखली तो होनी ही है।



No comments:

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...

PalahBiswas On Unique Identity No1.mpg

Tweeter

Blog Archive

Welcome Friends

Election 2008

MoneyControl Watch List

Google Finance Market Summary

Einstein Quote of the Day

Phone Arena

Computor

News Reel

Cricket

CNN

Google News

Al Jazeera

BBC

France 24

Market News

NASA

National Geographic

Wild Life

NBC

Sky TV