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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Sunday, March 22, 2015

सोने की चिड़िया का आखेट और प्रधानमंत्री की मन की बातें इन जहरीली हवाओं और पानियों बीच मुखौटा लगाये कब तक जीते रहेंगे हम? पलाश विश्वास

सोने की चिड़िया का आखेट और प्रधानमंत्री की मन की बातें

इन जहरीली हवाओं और पानियों बीच मुखौटा लगाये कब तक जीते रहेंगे हम?

पलाश विश्वास



The Economic Times

2 hrs ·

12 global companies in race to be part of PM Narendra Modi's pet Diamond Quadrilateral bullet train project http://ow.ly/KDz0L

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कोलकाता में दफ्तरों और सड़कों पर लोग मंहगे मा्सक के साथ निकल रहे हैं।हम भी मुखौटा पहनेने को मजबूर हैं।


स्वाइन फ्लू है या नहीं है,इसकी जांच की व्यवस्था बंगाल की छोड़िये,देश के किस किस अस्पताल में है,इसके बारे में लोगों को कोई जानकारी नहीं है।


बंगाल में अभी मृतकों की गिनती भी शुरु नहीं हुई हैं कि अनुपलब्ध वैक्सीन के लिए मारामारी है।


बंगाल के तमाम अस्पतालों के डाक्टर खुद तो मास्क पहन ही रहे हैं,वैक्सीन बाजार से औने पौने दामों पर खरीदकर खुद को सुरक्षित करने की फिराक में जनता के बीच पैनिक फैला रहे हैं।


कोई बता नहीं पा रहा है कि फ्लू और स्वाइन फ्लू में फर्क क्या है।

हर साल बंगाल में समुद्रतटीय आबोहवा में मौसम के उताचढ़ाव के साथ सर्दी खासी और फ्लू आम बीमारी है।जिससे किसी को कभी परेशान होते नहीं देखा है।


लेकिन इस बार आतंक का माहौल इतना घना है हे कि जो हालात समझ रहे हैं ,उन्हें भी परिजनों को आश्वस्त करने के लिए अस्पताल या नर्सिंग होम दौड़ना पड़ रहा है।


किसी के खांसते ही चारों तरफ लोगों को सांप सूंघने लग रहा है।


हम लगातार महीनेभर से मेडिकल सुपरविजन पर हैं और अभी दस दिनों का एमोक्सोसिलिन कोर्स पूरा कर चुके हैं।


डाक्टर ने हर तरह का परीक्षण करा लिया है और एंटीबायोटिक डिसकंटीन्यू करके जरुरत हुआ तो कफ सिरप लेने के लिए कहा है।


डाक्टर के मुताबिक कोल्ड की दवा लेते रहने और एंटीबायोटिक कोर्स की वजह से खांसी पूर तरह खत्म होने में वक्त लगता है और यह चिंता की बात नहीं है।


अब आलम यह है कि जो लोग गंभीर से गंभीर बीमारी का इलाज भी नहीं कराते, जो जिंदा परिजनों के लिए मातम मनाते हुए उन्हें मौत के घाटउतारे बिना चैन की नींद नहीं सोते और अपने खींसे से धेलेभर अपनी सेहत पर खर्च नहीं करते,मेरे खांसते ही उनमें सनसनी पैदा हो रही है और सविता को घेर कर उनका कहना है कि कोई न कोई गंभीर बीमारी जरुर है और बिना इंतजार किये नर्सिंग होम में भर्ती हो जाना चाहिए।


ऐसे शुभचिंतक हर गली मोहल्ले गांव में व्यापक पैमाने पर हे गये हैं और उनकी एकमात्र चिंता है कि किसी रोग का संक्रमण उन्हें कहीं स्पर्श न कर लें।


हेल्थ माफिया इसका फायदा उठा रहा है।


महामारियों का कुल जमा फंडा वैक्सीन कारोबार है।


सवाल यह है कि इन जहरीली हवाओं और पानियों बीच मुखौटा लगाये कब तक जीते रहेंगे हम?


हम लगातार कहते रहे हैं कि मौजूदा मुक्तबाजार अर्थव्यवस्था के माईल स्टोन हैं हरित क्रांति के जरिए भारतीय कृषि का सत्यानाश,भोपाल गैस त्रासदी,आपरेशन ब्लू स्टार मार्फत हिंदुत्व का पुनरूत्थान और बाबारी विध्वंस,देश विदेश दंगे और गुजरात नरंसहार।हमरे हिसाब से ये अलग अलग घटनाएं उसीतरह नहीं है ,जैसे नरसंहार और दंगों के अरग अलग मामलों में अभियुक्तों की थोक रिहाई,जैसे सिखों और भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों को दशकों से न्याय से इंकार,जैसे यूनियन कार्बाइड,डाउ कैमिकल्स और एंडरसन का बचाव और जैसे दंगाइयों की ताजपोशी के लिए कारपोरेट सक्रियता अबाध विदेशी पूंजी और अबाध बेदखली की तरह।


सुधारों का,मुक्तबाजार का यह ताना बाना और तिलिस्म अस्मिता रंगा इतना घना है,कि इसे बेनकाब करना बेहद मुश्किल है।


प्रधानमंत्री बन जाने के बड़े फायदे हैं।मीडिया और माध्यमों में प्रधानमंत्री की मन की बाते ही सुनने को मिलती हैं,और बाकी आवाजें सिरे से गायब हो जाती हैं।


भूमि अधिग्रहण से किसानों को कितना फायद होने वाला है,देश भर के किसानों को प्रधानमंत्री ने सिलसिलेवार तरीके से समझाया है।


सबसे पहले हस्तक्षेप पर हाशिमपुरा कांड का खुलासा करने वाले गाजियाबाद के तत्कालीन एसपी विभूति नारायण राय का भोगा हुआ यथार्थ शेयर करने के लिए अमलेंदु का आभार।


मैंने सुबह सुबह जब फोन लगाकर कहा कि विभूति जी के अनुभव को शेयर कर लेना चाहिए,अमलेंदु ने कहा कि पांच मिनट पहले हस्तक्षेप पर उनका अनुभव लग चुका है।


मलियाना और हाशिमपुरा दोनों कांडों में मेरठ कैंट के कुछ सैन्य अधिकारियों की बड़ी भूमिका थी। हापुड़ रोड के आरपार दंगाइयों ने हाशिमपुरा मुस्लिम बस्ती से टेलीलेंस लगाकर एक आर्मी अधिकारी के भाई को गोली से उड़ा दिया तो उस मोहल्ले के सारे मर्दों को ट्रकों  में भरकर ले जाने के आपरेशन में पीएसी के अलावा आर्मी के लोग भी थे।


इसीतरह मेरठ कैंट इलाके में मलियाना को घेरकर जो नरसंहार हुआ ,उसे अंजाम देने में आर्मी का खुल्ला सहयोग रहा है।हम उन बस्तियों और उन लोगों को भी जानते रहे हैं,जिन्हें पैसे ,दारु और मांस देकर मेरठ में सिलसिलेवार दंगे भड़काये जाते रहे हैं।दंगाग्रस्त इलाकों का भौगोलिक ताना बाना और उसमें मेरठ के कुटीर उद्योगों का साझा कारोबार को तबाह करके एकाधिकार घरानों के न्यारा वारा के बारे में बी हम जानते रहे हैं।


गौरतलब है कि अमृतसर स्वर्णमंदिर में आपरेशन ब्लू स्टार का ब्लू प्रिंट भी मेरठ कैंट में ही बना था।गायपट्टी के भगवेकरण में जाहिर है कि मेरठ की खास भूमिका रही है।


विभूति नारायण के सौजन्य से हम मेरठ में पीएसी के कारनामे के बारे में अभी तक जान सके हैं और पूरा किस्सा अभी खुला ही नहीं है।


पीएसी ने ऐसे ही कारनामाे मुरादाबाद और अलीगढ़ और यूपी के दूसरे शहरों  में करके मुसलमानों का हौसला पस्त करने में भारी भूमिका निभायी थी।


अगर विभूति नारायण का कलेजा कमजोर होता तो इस कांड का भी खुलासा नहीं होता।मीडिया में खबरें भी विभूति नारायण की वजह से लगीं,वरना मीडिया ने तो पूरे मामले को रफा दफा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी।मीडिया में होते हुए,सबकुछ जानते हुए हम लोग खबर नहीं बना सके थे।


यूपी के हर शहर में बाबरी विध्वंस के पहले और बाद जो दंगे हुए उनमें देशज उत्पादन प्रणालियों का खात्मा मेरठ,बरेली से लेकर बनारस और फिरोजाबाद तक कामन फैक्टर हैं।


नवउादवादी संतानों के राजकाज से पहले देशज उत्पादन प्रणाली को कैसे खत्म किया गया,मेरठ के दंगे इसकी दिलोदिमाग दहलादेने वाली केस स्टडी है।


हरित क्रांति के अधूरे एजंडा को पूरा करने के लिए सत्तर और अस्सी तके दशकों में सुपरिल्पित तौर पर धर्मोन्मादी राष्ट्रवाद का आवाहन किया पक्ष विपक्ष की कारपोरेट राजनीति ने।


जिसकी फसल है यह मनसैंटो डाउ कैमिकल्स की हुकूमत।


दरअसल इन्हीं दंगाइयों ने जो हमारे राष्ट्र नेता भी हैं,दीर्घकालीन रणनीति बनाकर अब तक मिथकों में कैद सोने की चिडिया के आखेट का चाक चौबंद इंतजाम किया है।

इससे पहले हमने इस सिलसिले में जो लिखा है उस पर भी गौर करेंः

भारत सोने की चिड़िया अब भी है।


जो इसे लूटकर अपना घर भरते रहे हैं,उन्होंने हमें यकीन दिलाया है कि अंग्रेज सोने की चिड़िया लेकर भाग गये हैं।


इस पर आगे चर्चा करेंगे सिलसिलेवार।


सिर्फ इतना समझ लीजिये कि दीवालिये देश में अरबपतियों की यह बहार नहीं होती और न स्विस बैंक में बशुमार खजाना भारतीयों के होते।

हम शुरु से लिख रहे हैं कि भूमि अधिग्रहण से ज्यादा खतरनाक है खान एवं खनिज विधेयक। यह देशभर की प्राकृतिक संपदा,जो असली सोने की चिड़िया है,दरअसल उसके कारपोरेट लूट का स्थाई बंदोबस्त हो गया।


भारतीय मुद्रा प्रबंधन और मौद्रिक नीतियों से भारतीय रिजर्व बैंक की बेदखली


इस सोने की चिड़िया को बेचने की तरकीब के तहत ताजातरीन कवायद है भारतीय मुद्रा प्रबंधन और मौद्रिक नीतियों से भारतीय रिजर्व बैंक की बेदखली और देशी कारपोरेट कंपनियों को अब सिर्फ करों में छूट,टैक्स होलीडे और टैक्स फारगान की सौगात नहीं मिल रही है,उनके कर्ज को रफा दफा करने के लिए मौद्रिक नीति निर्धारण से लेकर पब्लिक डेब्ट मैनेजमेंट एजंसी रिजर्व बैंक के नियंत्रण  से निकाल कर निजी हाथों में सोंपी जा रही है।उसे सत्ताइसों विभागों में निजी कंपनियों का राज पहले से ही बहाल है।


मौद्रिक कामकाज के  नियंत्रण के लिए कारपोरेट मांग मुताबिक ब्याज दर घटाने वाले रिजर्व बैंक के गवर्नर की डाउ कैमिकसल्स मनसैंटो हुकूमत  के साथ ठन गयी है।राजन ने ज्यादा जिद की तो उनकी विदाई देर सवेर हो जानी है।


रघुराम राजन कमिटी की सिफारिशों  के मुताबिक देश कारपोरेटकंपनियों के कर्ज निपटारे के लिए रिजर्व बैंक के दायरे से बाहर जो मानीटरी पलिसी कमिटी और रेगुलेशन आफ गवर्नमेंट सिक्युरिटीज से संबंधित जो कमिटियां कारपोरेट कंपनियों की अगुवाई में बननी हैं,रिजर्व बैंक के गवर्नर उनमें आरबीआई की नुमाइंदगी के लिए अड़े हुए हैं।इसलिए मामला फिलहाल टला हुआ है।


रिजर्व बैंक की औकात खत्म करने का फंडा यह है कि सरकार और रिजर्व बैंक (आरबीआइ) आने वाले दिनों में देश में विदेशी मुद्रा भंडार को बढ़ाने पर और ज्यादा ध्यान दे सकते हैं। देश का मजबूत विदेशी मुद्रा भंडार ही अमेरिका में ब्याज दरों के बढ़ने के खतरे को कम करेगा। भारत का मौजूदा विदेशी मुद्रा भंडार 340 अरब डॉलर का है और पिछले छह महीने से इसमें लगातार बढ़ोतरी हो रही है। अमेरिका में ब्याज दरों के बढ़ने से उत्पन्न होने वाली स्थिति पर भावी रणनीति को लेकर वित्त मंत्रलय और आरबीआइ के बीच लगातार संपर्क बना हुआ है। जाहिर है कि इसल पर नियंत्रण भी रिजर्व बैंक के बदले कारपोरेट विशेषज्ञ कमिटी का ही होगा।


बहराहाल इसकी पृष्ठभूमि तैयार करते हुए  रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन ने बुधवार को कहा कि केंद्रीय बैंक ब्याज दर पर अमेरिकी फेडरल रिजर्व के नीतिगत कदम से भारतीय बाजार में आने वाले उतार चढ़ावों से निपटने के लिए पूरी तरह तैयार है। ऐसी संभावना है कि फेडरल रिजर्व ब्याज दर में वृद्धि का संकेत दे सकता है, क्योंकि अमेरिकी अर्थव्यवस्था में सुधार का संकेत दिख रहा है। इसके परिणामस्वरूप भारत समेत उभरते बाजारों से पूंजी निकल सकती है।


दूसरी ओर,वित्त विधेयक के प्रावधान को लेकर रिजर्व बैंक के अधिकारों में कमी की आशंकाओं के बीच वित्त मंत्री अरुण जेतली ने कहा है कि एेसे किसी प्रावधान पर चर्चा संसद में ही होगी। एेसी आशंका है कि इस प्रावधान से ऋण बाजार के विनियमन की आर.बी.आई. की शक्ति कम हो सकती है।


जेतली ने संवाददाताओं से कहा, ''मैं इसके (इस प्रावधान के) बारे में (संसद के) बाहर चर्चा नहीं करना चाहता। यदि वित्त विधेयक को लेकर कोई भ्रम है तो हम इस पर संसद में चर्चा करेंगे।''


हम जानते हैं कि भारतीय रेलवे के निजीकरण से सिरे से इंकार करने वाली सरकार रेलवे प्रबंधन और रेलवे निर्माण और विकास,बुलेट स्पीड इत्यादि परियोजनाओं,रेलवे की तमाम सेवाओं को पीपीपी माडल के तहत कारपोरेट बना रही है।


मेट्रो रेलवे पर रिलायंस इंफ्रा का वर्चस्व है तो बुलेट रेलेव ट्रैक और पूरे इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर पर रिलायंस के दांव सबसे घने हैं।


इसी बीच रेलवे के इन्नोवेशन का कार्यभार रतन टाटा को सौंप दिया गया है।यह निजीकरण भी नहीं है।


बजट में किए गए वादों को पूरा करते हुए रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने गुरुवार को 'कायाकल्प परिषद' का गठन कर दिया। देश के जाने माने उद्योगपति रतन टाटा को इसका अध्यक्ष नियुक्त किया गया है। रेल मंत्रालय के मुताबिक, 'कायाकल्प परिषद' रेलवे में निवेश आकर्षित करने के लिए अहम बदलावों की रूपरेखा तैयार करेगी और सभी स्टेक होल्डर्स से और अन्य निवेश की इच्छुक पार्टियों से संपर्क साधेंगी।


एअर इंडिया को बेचने की तैयारी है और निजी नयी कंपनियों को विमानन की छूट हैं।आकाश उन्हींका एकाधिकार बनने जा रहा है।


भारत के तमाम बंदरगाह पहले ट्रस्ट हुआ करते थे जैसे कोलकाता पोर्ट ट्रस्ट या बांबे पोर्ट ट्रस्ट।ट्स्ट की संपत्ति और ट्रस्ट की मिल्कियत कानूनन बेच नहीं सकते तो पहले ट्रस्ट को कारपोरेशन बना जिया गया और आहिस्ते आहिस्ते सारे बंदरगाहों का हस्तातंरण निजी कंपनियों को हो रहा है,जिसमें मोदी के खासमखास अडानी समूह को फायदा ही फायदा  है।


अपने प्रिय प्रधानमंत्री की देश विदेश की केसरिया कारपोरेट यात्राओं की कीमत खूब वसूली जा रही है।


हम लोग भूल गये हैं कि भारत में परंपरागत कपड़े उद्योग का अवसान धीरुभाई अंबानी की अगुवाई में इंदिरा गांधी के संरक्षण प्रोत्साहन से रिलायंस के उत्थान से हुआ।



अब रिलायंस समूह जो कलतक कांग्रेस साथ था और तेल गैस,इंफ्रा,एनर्जी,टेलीकाम क्षेत्रों में जिसका बेलगाम विकास हो गया कांग्रेस के सौजन्य से।


हम भूल रहे हैं कि सार्वजनिक उपक्रम ओएनजीसी के खोजे और विकसित तमाम तेलक्षेत्र तोहफे में दिये गये रिलायंस समूह को।


अब मोदी की ताजपोशी में पहल करने वाले रिलायंस समूह के लिए और सौगातों की बहार तैयार है केसरिया समय में।


कहा जा रहा है कि ईंधन के संकट से निबटने के लिए भारत में पांच विशालतम आयल रिजर्वयर बनाये जायेंगे और इनके निर्माण का ठेका पशिचम एशिया की किसी कंपनी को दिया जाने वाला है।


ये रिजार्वेयर इसके हवाले होंगे,फिलहाल इसे राज रहने दें।

हमारे बगुला भगत अर्थशास्त्रियों, मिलियनर बिलियनर जनप्रतिनिधियों, एफडीआई खोर श्रमजीवी मीडियाकर्मी की कमरतोड़ मीडिया और डाउ कैमिकल्स मनसैंटो के नजरिये से असली भारत वही है,जो मोबाइल,पीसी और टीवी की खूबसरत मल्टी डाइमेंशनल हाई रेज्यूलेसन छवि है।


वहां बेनागरिक ग्राम्य भारत की कहीं कोई तस्वीर है ही नहीं और विज्ञापनों में जैसे चमकदार सितारे जीवन के हर क्षेत्र के महमहाते बेदाग चेहरे हैं,वैसा ही खूबसूरत सामाजिक यथार्थ है।


संजोगवश पुरस्कृतों,सम्मानितों और प्रतिष्ठितों के साहित्य कला,विधाओं और माध्यमों का समामाजिक यथार्थ भी यही है।


इसी लिए भारत की स्वतंत्रता संग्राम की विरासत,शहादतों के सिलसिले, किसानों, आदिवासियों और बहुजनों के हजारों साल के प्रतिरोध का हमारे लिए दो कौड़ी मोल नहीं है।


इसीलिए अंबेडकर को हम ईश्वर बना देते हैं गौतम बुद्ध की तरह और दरअसल आचरण में हम रोज रोज उनकी हत्याएं कर रहे हैं.जैसे कि गांधी की हत्या हो रही है रोज रोज।


यह व्यक्ति और विचारों का कत्लेआम नहीं है दोस्तों,न गौतम बुद्ध कोई व्यक्ति है और न अंबेडकर कोई व्यक्ति है और न गांधी कोई व्यक्ति है,वे हमारे जनपदों,हमारे लोक,हमारे इतिहास,हमारे सामाजिक यथार्थ के प्रतीक हैं।कत्लेआम भी हमारे जनपदों, हमारे लोक,हमारे इतिहास,हमारे सामाजिक यथार्थ का।


मुक्तबाजारी उपभोक्ता दीवानगी में हम पाकिस्तानी विकेटों की तरह पूरे जोश खरोश के साथ अपने इन प्रतीकों को कत्म करके बचे खुचे जनपदों को महाश्मशान बना रहे हैं।



कलिंग,कुरुक्षेत्र और वैशाली के विनाश का जो महाभारत है,उसे हम सामाजिक यथार्थ के नजरिये से नहीं,मिथ्या आस्था,प्रत्यारोपित धर्मोन्माद, अटूट अस्मिता और पहचाने के जरिए हासिल अपनी हैसियत  और मिथक तिलिस्म में कैद इतिहास दृष्टि से देख रहे हैं।


इन्हीं मिथकों को इतिहास बनाने की कवायद कोई हिंदू राष्ट्र बनाने  का वास्तुशास्त्र नहीं है,यह सिरे से मुक्तबाजार का धर्मोन्मादी राजसूय अश्वमेध है।


जिसे खूंखार भेड़ियों की जमात ने धर्मोन्मादी राष्ट्रवाद की शक्ल दे दिया है और हमारी गरदनें ऐसे चाक हो रही हैं कयामती गजब दक्षता के साथ कि फिरभी हम सारे कंबंध बजरंगी बने हुए हैं।


सबसे बड़ा झूठ जो बतौर मिथक हम जनमजात जीते रहे हैं,वह यह है कि अतीत में भारत सोने की चिड़िया रहा है और आर्यों के उस सनातन भारत पर हमला करने वाले विदेशियों ने उसी सोने की चिड़िया को लूटा है।


सबसे बड़ा झूठ जो बतौर मिथक हम जनमजात जीते रहे हैं,वह यह है कि आखिरकार वह सोने की चिड़िया अंग्रेज अपने साथ ले गये हैं।


दोस्तों,हकीकत यह है कि सोने की चिड़िया इंग्लैंड में कही नहीं है और दूसरे विश्वयुद्ध जीतने के बाद से जो ब्रिटिश साम्राज्यवाद का अवसान होना शुरु हुआ और निर्णायक तौर पर जिसे अश्वेत विश्व ने  हमेशा हमेशा के लिए इतिहास के पन्नों पर कैद कर दिया दक्षिण अफ्रीका में,जहां से गांधी का सफर शुरु हुआ था,उसके पास सोने की चिड़िया रही होती तो बघिमघम पैलेस का जलवा कुछ और होता।


कृषि और उत्पादन प्रणाली को जलांजलि देकर समूची मेहनतकश विरासत को ब्रिटिश  संसद में ऊन की गद्दी में सीमाबद्ध करे देने वाले हमारे पुराने आकाओं के नक्शेकदम पर चल रहे हम भारतीयों को कभी अहसास ही नहीं हुआ कि हमारे पुरखे बेशकीमती आजादी के साथ सोने की वह चिड़िया भी हमें छोड़ गये और सत्ता वर्ग अब तक ,15 अगस्त  से लेकर अबतक उस चिड़िया के हीरे जवाहिरात मोती जड़े सोने के परों को नोंचते खरोंचते हुए अपना अपना घर भरते रहे और हमें बताते रहे कि सोने की चिड़िया तो कोई और ले गया।


निर्मम सत्य यह है दोस्तों,अब वह सोने की चिड़िया चालीस लाख चोरों के हवाले है।

निर्मम सत्य यह है दोस्तों,उस सोने की चिड़िया की नीलामी ही बेशर्म विकास गाथा है।


अंग्रेज न हमारी उत्पादन प्रणाली ले गये और न हमारे उत्पादन संबंधों को तबाह किया अंगेजों ने और न जनपदों को जिबह किया।वे तो पवित्र गोमाता के संपूर्ण आहार बने पौष्टिक दूध से भारत माता की संतानों को वंचित करके अंग्रेजों की सेहत बनाता रहा।


अंग्रेजों ने हमारे लिए यह मुक्त बाजार नहीं चुना है और इसे हमने चुना है।


अंग्रजों ने हमारे संसद में प्रधानमंत्री बनकर नहीं कहा कि इस देश में इतने संसाधन हैं,जिन्हें विकास के रास्ते लगाया जाये,विदेशी प्रत्यक्ष निवेश और अबाध पूंजी प्रवाह को जारी रहने दिये जाये,तमाम कायदे कानून संसदीयसहमति से बदल दिये जाये तो इतना इतना पैसा आयेगी कि कई राज्यों का खजाना छोटा पड़ जायेगा और राज्य सरकारें इस पीपीपी विकास से हासिल नोटों को गिन भी सकेंगी।


भारत सोने की चिड़िया न रहा होता तो प्रधानमंत्री ऐसा बयान जारी करने का मौका न मिला होता और न भूमि अधिग्रहण,कोयला,खनन,बीमा नागरिकता से संबंधित सारे कानून बदल कर बहुराष्ट्रीय पूंजी के हितों के मुताबिक सारे सुधार लागू करने की ऐसी हड़बड़ी होती।


भारत सोने की चिड़िया न रहा होता तो भारतीय राजनीति,भारतीय साहित्य कला माध्यमों,भारतीय सिनेमा,भारतीय खेलों,भारतीय मीडिया,भारतीयखुदरा बाजार, उपभोक्ता सौंदर्य बाजार, भारत में तमाम सेवाक्षेत्रों और भारत की सुरक्षा आंतरिक सुरक्षा पर डालरों की ऐसी बरसात मूसलाधार नहीं  होती।


भारत सोने की चिड़िया न रहा होता तो डाउ कैमिकल्स और मनसैंटो की हुकूमत,तमाम रंगबरंगे बगुला भगतों और तमाम कारपोरेट वकीलों की लाख कोशिशों के बावजूद भारत को सबसे बड़ा इमर्जिंग मार्केट का खिताब मिलता,न निवेशकों की आस्था सत्ता की आस्था होती और न इस देश में सांढ़ और घोड़े इतने बेलगाम होते।


भारत सोने की चिड़िया न रहा होता तो  पहली बार चुनाव जीतते न जीतते हमारे तमाम जनप्रतिनिधि ग्राम प्रधानों और कारपोरेशन के काउसिंलरो से लेकर सरकारी  समितियों के मनोनीत मेंबर,तमाम मशरूमी लाल बत्ती वालों,तमाम विधायकों,तमाम सांसदों और मंत्रियों,तमाम विचारधाराओं और तमाम अस्मिताओं के झंडेवरदारों,सपनों के सौदागरों का यह मिलियनर बिलियनर तबका होता और न उनमें यह महाभारत होता,जिसकी कि हम पैदल सेनाएं बजरंगी हैं।


भारत सोने की चिड़िया न रहा होता तो अमेरिका और इजराइल हमें अपना साझेदार हर्गिज नहीं मानता।अपनी गरज से तो नहीं।


भारत सोने की चिड़िया न रहा होता तो तमाम देशों के राष्ट्रप्रधान भारत के मुक्त बाजार में अपने हितों की तलाश में इतने बेसब्र होते।



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