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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Wednesday, June 24, 2015

राष्ट्रीय संस्थाओं पर कब्जा: चिंतन प्रक्रिया पर हावी होने की साजिश -इरफान इंजीनियर

24.06.2015

राष्ट्रीय संस्थाओं पर कब्जा: चिंतन प्रक्रिया पर

हावी होने की साजिश

-इरफान इंजीनियर


फिल्म एण्ड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (एफटीआईआई) के शासी निकाय व सोसायटी के अध्यक्ष पद पर गजेन्द्र चौहान की नियुक्ति के विरोध में वहां के विद्यार्थी आंदोलनरत हैं। संस्थान के विभिन्न पाठ्यक्रमों में अध्ययनरत लगभग 150 विद्यार्थी इस राजनैतिक नियुक्ति के विरूद्ध अनिश्चितकालीन हड़ताल कर रहे हैं। चौहान का नाम गूगल पर डालने से पता चलता है कि उन्होंने कुछ फिल्मों जैसे 'अंदाज' (2003), 'बागबान' (2003) और 'तुमको न भूल पाएंगे' (2002) में अभिनय किया है। विकीपीडिया कहता है कि चौहान ने 150 फिल्मों और 600 टीवी सीरियलों में अभिनय किया है परंतु इन फिल्मों में से केवल चन्द से संबंधित लिंक विकीपीडिया में दी गई हैं और उन पर क्लिक करने से यह पता चलता है कि उस फिल्म के अभिनेताओं की सूची में चौहान का नाम तक नहीं है! चौहान का दावा है कि उन्होंने 600 टीवी सीरियलों में अभिनय किया है परंतु उनका केवल एक सीरियल-महाभारत-लोकप्रिय हुआ, जिसमें उन्होंने युधिष्ठिर की भूमिका अदा की थी। विद्यार्थियों का कहना है कि चौहान में न तो वह दृष्टि है, न अनुभव और न कद जो उन्हें इस पद के लायक बनाए। एफटीआईआई के शासी निकाय के पूर्व अध्यक्षों में सत्यजीत रे, मृणाल सेन, गिरीश कर्नाड, श्याम बेनेगल और अडूर गोपालकृष्णन जैसी नामचीन हस्तियां शामिल हैं। जानेमाने फिल्म निर्माता आनंद पटवर्धन ने चौहान की नियुक्ति पर गंभीर चिंता जाहिर की, विशेषकर इसलिए क्योंकि जिन लोगों को इस पद पर नियुक्ति के लिए 'शार्टलिस्ट' किया गया था उनमें गुलजार, श्याम बेनेगल, सईद मिर्जा और अडूर गोपालकृष्णन शामिल थे। संस्थान के पूर्व अध्यक्ष पद्मश्री, पद्मविभूषण, साहित्य अकादमी, दादासाहेब फालके, ज्ञानपीठ आदि प्रतिष्ठित पुरस्कारों से नवाजे जा चुके थे। चौहान के बायोडाटा में बताने लायक कुछ भी नहीं है।

इस नियुक्ति में पारदर्शिता का पूर्णतः अभाव था। सूचना और प्रसारण मंत्रालय के पास उनकी नियुक्ति को औचित्यपूर्ण ठहराने का कोई आधार नहीं है और ना ही चौहान यह बता पा रहे हैं कि वे क्यों इस पद के लिए उपयुक्त हैं। उन्होंने केवल यह कहा कि विद्यार्थियों का विरोध उन्हें और अच्छा काम करने के लिए प्रेरित करेगा। संस्थान के संबंध में उनकी दृष्टि और योजनाएं क्या हैं, इस संबंध में वे कुछ भी नहीं कह सके। पैनल में श्याम बेनेगल, अडूर गोपालकृष्णन व गुलजार के होने के बावजूद, चौहान जैसे मामूली और प्रतिभाहीन कलाकार की इस प्रतिष्ठित पद पर नियुक्ति का सबसे महत्वपूर्ण कारण यह है कि वे भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में दो बार विशेष आमंत्रित सदस्य रह चुके हैं। दूसरा कारण यह है कि आरएसएस, उनकी नियुक्ति में रूचि रखता था। आरएसएस की इस मसले में संबद्धता के आरोपों को इस तथ्य से मजबूती मिलती है कि संस्थान की सोसायटी के सदस्य के रूप में जिन आठ 'प्रख्यात व्यक्तियों' की नियुक्ति की गई है, उनमें से चार आरएसएस से जुड़े हुए हैं। अनघा घईसस के आरएसएस से मजबूत रिश्ते हैं और उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का गुणगान करने वाली कई डाक्यूमेन्ट्री फिल्में बनाई हैं। उनके पति 21 साल से संघ के प्रचारक हैं, जिनमें से 17 साल उन्होंने गुजरात में बिताए। एक अन्य सदस्य नरेन्द्र पाठक, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की महाराष्ट्र इकाई के चार साल तक अध्यक्ष थे। प्राचंल सेकिया आरएसएस से जुड़ी संस्कार भारती में पदाधिकारी हैं। राहुल सोलापुरकर पिछले साल महाराष्ट्र में हुए विधानसभा चुनावों में भाजपा के टिकिट के दावेदार थे।

जब 'इंडियन एक्सप्रेस' ने उनसे संपर्क किया तो उन्होंने बताया कि वे चाहते हैं कि एफटीआईआई के विद्यार्थियों में राष्ट्रीयता (अर्थात हिन्दू राष्ट्रीयता) की भावना विकसित हो। यह संस्थान अपने विद्यार्थियों में स्वतंत्र व दूसरों से भिन्न सोचने की और दृढ़तापूर्वक अपनी बात रखने की क्षमता विकसित करने के लिए जाना जाता है। किसी पूर्व स्थापित विचार से महान रचनाकार शायद ही कभी जन्म लेते हैं और ना ही वे उन लोगों में से उपजते हैं जो नस्ल, जाति, समुदाय, राष्ट्रीयता, क्षेत्रीयता व लैंगिक भेदभाव में विश्वास रखते हों। इस तरह के लोग केवल प्रोपेगेंडा फिल्में बनाने के लिए उपयुक्त होते हैं। एफटीआईआई के लक्ष्यों में शामिल हैं ''भारतीय फिल्मों और टेलीविजन कार्यक्रमों के तकनीकी स्तर को उन्नत करने के लिए सतत प्रयास करना ताकि वे सौन्दर्यशास्त्रीय दृष्टि से अधिक संतोषप्रद व स्वीकार्य बन सकें,  सिनेमा व टेलीविजन के क्षेत्र में नवीन विचारों और नई तकनीकों के अन्तर्वाह और इन विचारों और तकनीकों से लैस प्रशिक्षित व्यक्तियों का बहिर्वाह सुगम बनाना, फिल्म और टेलीविजन के क्षेत्र में भविष्य में काम करने वाले लोगों को इस माध्यम की न केवल मनोरंजन के स्त्रोत वरन् शिक्षा और कलात्मक अभिव्यक्ति के साधन के रूप में संभावनाओं व क्षमताओं के प्रति जागृत करना''। क्या संस्थान के नए अध्यक्ष और उसके शासी निकाय के ये चार सदस्य इन लक्ष्यों की पूर्ति सुनिश्चित कर सकते हैं, जबकि उनकी दृष्टि केवल विद्यार्थियों में राष्ट्रीयता की भावना विकसित करने तक सीमित है।

प्रधानमंत्री मोदी ने चुनाव प्रचार के दौरान स्वयं को हिन्दू राष्ट्रवादी घोषित किया था। हिन्दू राष्ट्रवादी हमेशा से जाति प्रथा और पितृसत्तात्मक परंपराओं को औचित्यपूर्ण व अनूठे व श्रेष्ठ भारतीय मूल्य बताते रहे हैं। भारतीय सिनेमा परिपक्व हो रहा है और सामंती, उच्च जाति के श्रेष्ठि वर्ग की परंपरागत सोच से दूर हो रहा है। वह अब हर प्रकार के अवगुणों से युक्त पति के लिए करवाचैथ का व्रत रखने वाली पतिव्रता भारतीय नारी को 'राष्ट्रीय संस्कृति' का प्रतीक मानने को तैयार नहीं है। फिल्मों को अब लिव-इन रिश्तों (कॉकटेल, प्यार के साईड इफेक्ट्स), कामुकता (शुद्ध देसी रोमांस), निडर व निर्भीक महिलाओं (डर्टी पिक्चर), हर मुसलमान को आतंकी मानने की प्रवृत्ति पर प्रश्न उठाने (खाकी) और ढ़ोंगी बाबाओं की करतूतों को उजागर करने (पीके) से कोई परहेज नहीं है। भारतीय सिनेमा की इस धारा को पलटने का एक तरीका यह है कि एफटीआईआई से निकलने वाले छात्रों की सोच और रचनात्मकता पर नियंत्रण स्थापित किया जाए। उन्हें केवल प्रचारक बना दिया जाए न कि ऐसे रचनात्मक कलाकार, जो अपने आसपास घट रही घटनाओं पर प्रश्न उठाएं, उन्हें आलोचनात्मक दृष्टि से देखें, एक विस्तृत कैनवास पर काम करें और उनमें कुछ नया करने की कसक हो। यह करने का एक तरीका यह है कि यह सुनिश्चित किया जाए कि जिन विद्यार्थियों को संस्थान में प्रवेश दिया जाता है वे उच्च व शहरी पृष्ठभूमि के हों क्योंकि ऐसे लोगों को लीक पर चलना बहुत पसंद होता है। इसके अलावा, पाठ्यक्रम में इस प्रकार के परिवर्तन किए जाएं ताकि वह विद्यार्थियों को स्थापित सिद्धांतों को आंख मूंदकर मानने वाला और राष्ट्रवादी बनाए न कि रचनात्मक कलाकार। और राष्ट्रीयता की भावना क्या है? वह यह दिखाना है कि पति से दबकर रहने वाली पत्नि, शराबी पति से पिटने वाली पत्नि श्रेष्ठ भारतीय नारी है और आतंकवादी एक विशेष समुदाय के होते हैं।

इसके पहले, एनडीए सरकार ने मुकेश खन्ना, जिन्होंने भाजपा के लिए प्रचार किया था और कैमरे के सामने मोदी को 'शक्तिमान' बताया था, को बाल फिल्म सोसायटी का अध्यक्ष नियुक्त किया था। मुकेश खन्ना ने महाभारत में भीष्म की भूमिका अदा की थी। इसी तर्ज पर, मोदी के प्रचार वीडियो बनाने वाले फिल्म निर्माता पहलाज निहलानी को सेन्सर बोर्ड का मुखिया बनाया गया, मलयालम कलाकार व भाजपा समर्थक सुरेश गोपी को राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम (एनएफडीसी) का अध्यक्ष नियुक्त किया गया और मोदी के सिपहसालार व्यवसायी जफर सरेसवाला को मौलाना आजाद राष्ट्रीय उर्दू विश्वविद्यालय का चांसलर बनाया गया। सरेसवाला का उर्दू का ज्ञान अत्यंत सीमित है।

व्यापक मुद्दे

मुख्य मुद्दा यह है कि हिन्दू राष्ट्रवादी आरएसएस, एफटीआईआई जैसे संस्थान ही नहीं बल्कि हमारे प्रजातंत्र की सभी महत्वपूर्ण संस्थाओं में सुनियोजित ढंग से घुसपैठ कर रहा है ताकि प्रजातंत्र में पलीता लगाया जा सके, उदारवादी धर्मनिरपेक्ष सोच का दायरा सीमित किया जा सके और वर्चस्ववादी हिन्दू राष्ट्रवादी विचारधारा को बढावा दिया जा सके। हिन्दू राष्ट्रवादियों का उद्धेश्य है कि अकादमिक स्वायत्तता को सीमित किया जाए और सत्यान्वेषण व ज्ञान की सीमाओं का विस्तार करने के प्रयासों पर हर किस्म के प्रतिबंध लगाए जाएं। हिन्दू राष्ट्रवादी यह मानते हैं कि सारा ज्ञान प्राचीन ग्रंथों, वेद व वेदांतों में समाया हुआ है और ज्ञान प्राप्ति के लिए व्यक्ति को केवल इन ग्रंथों में डूबना भर है। प्रधानमंत्री मोदी ने मुंबई विश्वविद्यालय में विज्ञान कांग्रेस का उद्घाटन करते हुए कहा था कि प्राचीन भारतीयों को हवाई जहाज बनाना आता था और पुष्पक विमान इसका सुबूत है। रामानंद सागर की छोटे पर्दे की महाभारत में बताया गया है कि इस युद्ध में नाभिकीय मिसाईलों का प्रयोग किया गया था। हिन्दू राष्ट्रवादी, पौराणिकता और इतिहास में कोई भेद नहीं करते। जब भाजपा सत्ता में नहीं थी, तब भी हिन्दू राष्ट्रवादी, अकादमिक स्वतंत्रता और शिक्षण संस्थानों की स्वायत्तता के विरोधी थे। एबीव्हीपी ने एके रामानुजम की '300 रामायणस्' का विरोध किया था और आदित्य ठाकरे ने मुंबई विश्वविद्यालय के कुलपति पर यह दबाव डाला था कि रोहिंगटन मिस्त्री की पुरस्कृत पुस्तक 'सच ए लांग जर्नी' को पाठ्यक्रम से हटाया जाए।

इतिहास पर पौराणिकता और पौराणिकता पर इतिहास का मुलम्मा चढ़ाने के लिए ही एनडीए सरकार ने वाई. सुदर्शन राव को प्रतिष्ठित भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद के अध्यक्ष पद पर नियुक्त किया था। इस सरकार द्वारा नियुक्त अधिकांश व्यक्तियों की तरह, प्रोफेसर राव की इतिहासविदों में कोई पहचान नहीं है। वे काकतिया विश्वविद्यालय में इतिहास और पर्यटन प्रबंधन विभाग के मुखिया थे। राव की यह राय है कि जाति प्रथा कोई बड़ी सामाजिक बुराई नहीं थी और उसमें मुगलों के आक्रमण के बाद कठोरता आई और कई तरह की बुराईयां उसका हिस्सा बन गईं। यही बात, दूसरे शब्दों में हिन्दू राष्ट्रवादी कहते आए हैं।

एनडीए सरकार ने ऐसी परिस्थितयां बना दीं कि अमर्त्य सेन को नालंदा विश्वविद्यालय के कुलाधिपति पद से इस्तीफा देना पड़ा। अमर्त्य सेन का अपराध यह था कि वे मोदी सरकार की नीतियों के आलोचक थे। परमाणु ऊर्जा आयोग के पूर्व अध्यक्ष अनिल काकोडकर ने आईआईटी मुंबई के शासी निकाय के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने की पेशकश की थी परंतु बाद में उन्होंने अपना इस्तीफा वापिस ले लिया। इसके पहले, केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने आईआईटी दिल्ली के निदेशक रघुनाथ शेगांवकर को बिना किसी विशेष आधार के इस्तीफा देने पर मजबूर किया था।

कुछ अन्य अपात्र व्यक्ति, जिन्हें केवल संघ का समर्थक होने के कारण महत्ववपूर्ण पदों से नवाजा गया, वे हैं प्रोफेसर इंदरमोहन कपाही (सदस्य, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग), विष्णु रामचन्द्र जामदार (अध्यक्ष, विश्वेश्वरैया नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, नागपुर) और आरएसएस के मुखपत्र पांचजन्य के पूर्व संपादक बलदेव शर्मा (अध्यक्ष, नेशनल बुक ट्रस्ट)।

शिक्षण संस्थानों में विद्यार्थियों को अपनी अकादमिक गतिविधियां चलाने की पूरी स्वतंत्रता होनी चाहिए। परंतु केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने आईआईटी मद्रास के एक छात्र समूह - अंबेडकर पेरियार स्टडी सर्किल की मान्यता रद्द कर दी क्योंकि इसके सदस्यों ने प्रधानमंत्री के खिलाफ एक टिप्पणी कर दी थी। स्कूली छात्रों को मोदी की 'मन की बात' सुनने पर मजबूर किया गया। हिन्दू धर्म से प्रेरित संस्कृति लोगों पर लादी जा रही है। केन्द्रीय विद्यालयों को सकुर्लर जारी कर कहा गया कि दिसंबर 25 को पूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी की वर्षगांठ और मदनमोहन मालवीय की जयंती के अवसर पर सुशासन दिवस मनाया जाएगा। इसी तरह, अनिच्छुक नागरिकों और विद्यार्थियों को योग दिवस में भागीदारी करने के लिए मजबूर किया गया।

हिन्दू संस्कृति अत्यंत समृद्ध और विविधतापूर्ण है। वह लोगों की प्रजातांत्रिक आकांक्षाओं को प्रतिबिंबित करती है। हम नरसी मेहता, तुकाराम, मीरा, रविदास, ज्ञानेश्वर, कबीर, चोख मेला आदि हिन्दू संतों से प्रेम और समानता की सीख ले सकते हैं। इन संतों ने ऊँचनीच और भेदभाव का विरोध किया। एनडीए सरकार इन संतों के बताए रास्ते पर क्यों नहीं चलना चाहती? क्या वे हिन्दू परंपरा का भाग नहीं थे?

वेद, वेदांत और हिन्दू पुराणों पर आधारित पौराणिक संस्कृति को राष्ट्रीय संस्कृति के रूप में प्रस्तुत कर, एनडीए सरकार न केवल हमारी संस्थाओं वरन् प्रजातंत्र को भी कमजोर कर रही है। एनडीए सरकार उस संस्कृति को प्रोत्साहन देना चाहती है जो पदक्रम को सहज स्वीकार करे और जिसे बढ़ती हुई सामाजिक और आर्थिक असमानता से कोई फर्क नहीं पड़े। वह चाहती है कि लोग गर्व से कहें कि 'देश में विकास हो रहा है' क्योंकि कुछ उद्योगपति जमीन, प्राकृतिक संसाधनों और सस्ते श्रम का उपयोग कर अरबों रूपये कमा रहे हैं। बंद दिमाग वाले, चमत्कृत, अंधे अनुयायी केवल व्यक्तिपूजा करते हैं - वे प्रश्न नहीं पूछते।(मूल अंग्रेजी से अमरीश हरदेनिया द्वारा अनुदित)

                                                         

-एल. एस. हरदेनिया


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