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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Monday, January 25, 2016

गेरुआ गर्भे अश्वडिंब प्रसव! जालिम इतना भी जुल्म ना ढाओ कि म्यान में खामोश सो रही तलवारें जाग उठे बेलगाम? हम कैसे मां बाप हैं कि हमारे बच्चों के सर कलम हो रहे हैं और हम कार्निवाल में गेरुआ गेरुआ गा रहे ? कुछ देर पहले हिंदी के हमारे एक अति प्रिय कवि ने हमें फोन किया और यह जानकारी दी कि साव तो ऊंच जाति के हैं,दलित वलित होते नहीं हैं साव। प्रकाश दलित नहीं है। बंगाल पर फिर दावा बोला है पेशवा राज के सिपाह सालार ने। नेताजी फाइल से कुछ साबित हुआ हो या न हो,नेताजी परिवार का सदस्य केसरिया हो गया। हमने बांग्ला और अंग्रेजी में खुलकर लिखा है और फासीवाद के खिलाफ नेताजी के युवाओं को संबोधित अंतिम भाषण को भी सेयर किया है।जिनने न पढ़ा हो कृपया मेरे ब्लाग या हस्तक्षेप देख लें बाकी वहीं जो मैंने बांग्ला में लिखा हैः गेरुआ गर्भे अश्वडिंब प्रसव।वह किस्सा दोहराने लायक भी नहीं है। नेताजी फाइलों का कुल जमा मकसद बंगाल पर ताजा वर्गी हमले में उजागर है।लाइव देख लें। पलाश विश्वास


गेरुआ गर्भे अश्वडिंब प्रसव!

जालिम इतना भी जुल्म ना ढाओ कि म्यान में खामोश सो रही तलवारें जाग उठे बेलगाम?

हम कैसे मां बाप हैं कि हमारे बच्चों के सर कलम हो रहे हैं और हम कार्निवाल में गेरुआ गेरुआ गा रहे ?

कुछ देर पहले हिंदी के हमारे एक अति प्रिय कवि ने हमें फोन किया और यह जानकारी दी कि साव तो ऊंच जाति के हैं,दलित वलित होते नहीं हैं साव। प्रकाश दलित नहीं है।


बंगाल पर फिर दावा बोला है पेशवा राज के सिपाह सालार ने।

नेताजी फाइल से कुछ साबित हुआ हो या न हो,नेताजी परिवार का सदस्य केसरिया हो गया।


हमने बांग्ला और अंग्रेजी में खुलकर लिखा है और फासीवाद के खिलाफ नेताजी के युवाओं को संबोधित अंतिम  भाषण को भी सेयर किया है।जिनने न पढ़ा हो कृपया मेरे ब्लाग या हस्तक्षेप देख लें बाकी वहीं जो मैंने बांग्ला में लिखा हैः गेरुआ गर्भे अश्वडिंब प्रसव।वह किस्सा  दोहराने लायक भी नहीं है।


नेताजी फाइलों का कुल जमा मकसद बंगाल पर ताजा वर्गी हमले में उजागर है।लाइव देख लें।

पलाश विश्वास

भारत राष्ट्र की आंतरिक सुरक्षा को दांव पर लगाकर आतंक के खिलाफ अमेरिका के महाजुध में बागेदारी के तह महामहिम ओलांदे का हमारा गणतंत्र मानाने और राजपथ पर फ्रेंच जवानों का परेड जलवा बहार करने का असली मकसद हासिल हो गया,दाम तो खैर बाद में कमीशन वमीशन का हिसाब किताब जोड़जाड़कर तय कर लेंगे,इस महादेश में फिर जुध का सिलसिला जारी रखने के लिए बेहद मंहगे युद्धक विमान रफेल खरीदकर बिरंची बाबा ने फ्रेंच अर्थव्यवस्था का उसी तरह कायाकल्प कर दिया जैसे बंद पड़ी अमेरिकी परमामु चूल्हा खोलकर स्टीफेन हाकिंग की अमोघ चेतावी के मद्देनजर सर पर नाचती तबाही को अंजाम तक पहुंचाने का चाक चौबंद इंतजाम कर दिया या फिर हिंदुत्व के क्वेटो में गंगा मइया की आरती एबो के साथ उतारते हुए फुकोशिमा परमाणु संकट का आयात भारत में कर दिया।


बंगाल पर फिर दावा बोला है पेशवा राज के सिपाह सालार ने।नेताजी फाइल से कुछ साबित हुआ हो या न हो,नेताजी परिवार का एक सदस्य केसरिया हो गया।


वंश परंपरा के मुताबिक जाहिरे है कि वे नेताजी की विरासत के उसीतरह दावेदार हैं जैसे बाकी वंशजों का है तो सत्ता की लड़ाई में नेताजी फाइल के सौजन्य से वे बंगाल के केशरियाकरण युद्ध के सिपाहसालार हैं।


हमने बांग्ला और अंग्रेजी में खुलकर लिखा है और फासीवाद के खिलाफ नेताजी के युवाओं को संबोधित अंतिम  भाषण को भी सेयर किया है।जिनने न पढ़ा हो कृपया मेरे ब्लाग या हस्तक्षेप देख लें बाकी वहीं जो मैंने बांग्ला में लिखा हैः गेरुआ गर्भे अश्वडिंब प्रसव।वह किस्सा  दोहराने लायक भी नहीं है।


नेताजी फाइलों का कुल जम मकसद बंगाल पर ताजा वर्गी हमले में उजागर है।लाइव देख लें।


कुछ देर पहले हिंदी के हमारे एक अति प्रिय कवि ने हमें फोन किया और यह जानकारी दी कि साव तो ऊंच जाति के हैं,दलित वलित होते नहीं हैं साव।


मैं कल से उन्हें फोल पर पकड़वने की कोशिश कर रहा था क्योंकि वे प्रकाश के गहरे मित्र हैं।उनने कहा कि प्रकाश उनके जिले के हैं और उसी जाति के हैं,जिस उंची जाति के वे हैं।


वे हिंदी के अत्यंत महत्वपूर्ण कवि हैं और हम उन्हें वैज्ञानिक सोच से लैस समझते रहे हैं।हम उनकी निंदा या आलोचना के लिए यह खुलासा नहीं कर रहे हैं,उस सामाजिक यथार्थ का चित्रण करनेकी कोशिश कर रहे हैं ,जिसके तहत भारतीय समाज अस्मिताओं में बंटा है।क्योंकि जाति व्यवस्था का मजा दरअसल यही है कि जाति जितनी भी छोटी हो,वह किसी न किसी जाति के ऊपर है।ऊपर जो जातियां हैं,उनके लिए नीतचचे की सारी जातियां अछूत हैं।


मसलन नेपाल में मधेशी आंदोलन में जो जातियां शामिल हैं,वे उत्तराखंड और हिमाचल और बंगाल के गोरखा क्षेत्र में खुद को न सिर्फ ऊंची जाति मानते हैं,बल्कि जिन जातियों को वे छोटी समझते हैं,उनसे अस्पृश्य जैसा सलूक करते हैं।


हिंदी के महान साहित्यकार शैलेश मटियानी जाति से कसाई रहे हैं और अल्मोड़ा में किशोर वय के एक प्रेम प्रकरण के कारण बुरीतरह मार पिटकर पहाड़ से खदेड़े गये।बाकी संघर्ष यात्रा हम जानते हैं।


एक हादसे की वजह से निजी शोक की सघन त्रासदी के मुहूर्त पुरातन साथियों ने जब उनका हाथ छोड़ दिया तो वे भगवे खेमे में सामिल हो गये तो धर्म निरपेक्ष खेमे ने उन्हें नामदेव धसाल की श्रेणी में रख दिया और धर्मनिरपेश प्रगतिशील खेमे के लिए वे अछूत हो गये।उनके साहित्य की चर्चा भी अब नहीं होती।


जो इलाहाबाद उनकी संघरष यात्रा और उनके उत्कर्ष का साक्षी रहा,उसे छोड़कर भगवा घर वापसी के तहत वे उत्तराखंड पहुंच गये और हल्द्वानी में उनने डेरा डाल दिया।पर अल्मोड़ा पहुंच न सके।


हम पहाड़ के ऐसे तमाम विद्वानों को जानते हैं जो शुरु से शिवानी के संस्कृत तत्सम शब्दों का साहित्य उच्चकोटि का मानते रहे हैं और मटियानी का साहित्य अछूत तुच्छ।उनके चेहरे भी प्रगतिशील है और उनकी जड़े बी मधेस।इस समीकरण का कुल उपलब्धि अल्मोड़ा से बेदखल शैलेश मटियानी का मृत्यु के बाद आजतक पहाड़ों में पुन्रवास न हो सका।


यह भारतीय साहित्य संस्कृति का रंगभेद का परिदृश्य है जिसके तहत ऋत्विक घटक की फिल्म के जरिये जो तितास एकटि नाम विश्वविख्यात क्लासिक है,वे बंगाल की गौरवशाली देश पत्रिका में आजीवन सबएडीटर रहे और जीवन काल में उन्हें मान्यता मिली ही नहीं।तितास के लिए वे ताराशकंर या माणिक या महाश्वेता या नवारुण या भगीरथ मिश्र की तरह मुक्यधारा के लेखक आज बी माने नहीं जाते।


शैलेश मटियानी का साहित्य आंचलिक बताया जाता रहा है जबकि उत्कर्ष में उनका साहित्य भारतीय जनता की जीवनयंत्रणा की सर्वोत्तम अभिव्यक्ति और चरित्र से विशुध दलित आत्मकथा है।


बेशक वे वैज्ञानिक सोच से लैस थे और विकल्प जो पत्रिका वे निकालते रहे हैं,वह अपने समय की सर्वोत्तम अभिव्यक्ति रही है।


दरअसल भारत के वामपंथियों के मुताबिक इस देस की जात पांत वाली संरचना को वे भी सुपरस्ट्रक्चर मानते रहे हैं और उम्मीद करते रहे है कि बेस यानी राष्ट्रव्यवस्था बदल जाती है तो यह सुपरस्ट्रक्चर आपेआप बदल जायेगा।हमारे कवि मित्र से इस सिलसिले में विस्तार से बात हुई।


भारतीय कृषि समाज ही जाति व्यवस्था में विभाजित है तो इस प्रस्थान बिंदू पर भारत में आरक्षणन मिलने की वजह से कोई जाति सवर्ण नही हो जाती जैसे हमारे युवा कवि का तर्क है कि उन्हें आरक्षण नहीं मिला है।जाहिर है कि सवर्ण बनने का मोह उनकी विचारधारा और उनकी कविता के बावजूद जस का तस है।


ऐसे तो बंगाल से बाहर बसे तमाम दलितों को आरक्षण नहीं मिला है तो उन्हें भी सवर्ण माना जाना चाहिए।दरअसल ऐसी गलतफहमी उन्हें रही भी है।


बंगाल के ओबीसी समुदायों ने अपने को हमेशा सवर्ण माना और चंडाल आंदोलन की वजह से बंगाल में बाकी देश की तरह अस्पृश्यता उसी रुप में नहीं है।


बंगाल में अछूतों को आरक्षण देने के लिए अस्पृश्यता का पैमाना गैरप्रसंगिक रहा तो बाबासाहेब ने जाति के आधार पर भेदभाव को प्रासंगिक बनाया।


बंगाल के बाहर बसे शरणार्थियों को उसी अस्पृश्यता की अनुपस्थिति की वजह से कहीं आरक्षण मिला नहीं है।क्योंकि जाति आधारित भेदभाव का प्रावधान सिर्फ बंगाल के लिए था,बंगाल से बाहर बसे शरणार्तियों के लिए नहीं।


असम में कायस्थों को ओबीसी आरक्षण मिलता है और इस आधार पर हम उन्हें शूद्र कहें तो कायस्थ बिरादरी का बस चलें तो हमारी हत्या कर दें क्योंकि जाति की पहचान के अलावा हमारा वजूद कुछ भी नहीं है।


संथालों को सर्वत्र आरक्षण नहीं है और बीलों को बी आरक्षण नहीं है,तो उनराज्यों में वे अपने को सवर्ण समझें तो हम कुछ भी नहीं कह सकते।


यही किस्सा गुज्जरों और धनकड़ों और बनजारों का है कि वे कहीं दलित हैं तो कही आदिवासी तो कहीं ओबीसी।य़जैसे केती करने वाले तमाम लोग एक ही आजीविका और एक ही जलजमीन में रचे बसे होने के बावजूद या ओबीसी है या दलित हैं या आदिवासी।


जाति के नामपर इतना बवंडर है तो धर्म के नाम पर यहसुनामी कोई अजूबा भी नहीं है और हमारा कर्मफल है।


किसान खुदकशी कर रहे हैं  तो विश्वविद्यालयों,मेडिकल कालेजों,तमाम संस्थानों में हमारे बच्चे उत्पीड़ित हैं।या तो उनका सर कलम है या आखिरी रास्ता वे खुदकशी का चुन रहे हैं।


एअर इंडिया के पायलटभी खुदकशी कर सकते हैं,मुक्त बाजार ने दिखा दिया।एक तिहाई जनता भुखमरी के नीचे जी रहे हैं।


सारी जरुरी चीजें,जरुरी सेवाएं अब स्टार्टअप के हवाले हैं और कारोबारियों,खासकर खुदरा कारोबारियों की बारी है खुदकशी की जबकि देस में राजकाज बिजनेस फ्रेंडली है।


फिरभी ग्रोथ रेट हवा हवाई है ,बस,शेयर बाजार वैश्विक इसारों के मुताबिक कभा उछाला तो कभी धड़ाम,वही हमारा विकास है और वही हमारी अर्थ व्यवस्था।उसे बी बिरंची बाबासाध नहीं पा रहे हैं


और बाकी दुनिया के खिलाफ जंग का समान खरीद रहे हैं तो अस्सी फीसद इंजीनियरों और तमाम पेशेवरों को पर्याप्त दक्षता न होने के कारण भाड़ा लायक भी नहीं मानता निवेशक।


जबकि ये अस्सी फीसद हर मोहल्ले में मसरूम संस्थानों में मां बाप की खून पसीने की कमाई से डिग्गिया बटोर कर चपरासी की नौकरी के लिए भी कदम कदम पर ठोकरे खा रहे हैं।


रोहित की आत्महत्या के बाद चेन्नई में तीन मेडिकलकालेज छात्राओं की खुदकशी,हिंदी के सर्वोच्च संस्थान में सीधे मनुस्मृति की देखरेख वाले संस्थान में दस साल से सेवारत ठेके का कर्मचारी पीएचडी,हिंदी का महत्वपूर्ण कवि प्रकाश की आत्महत्या।


और कितनी आत्महत्याओं का इंतजार हम करेंगे?


हमारी जाति कितनी मजबूत है,बिहारमा नीतीशे कुमार जनादेश ने हाल ही में साबित कर दिया वहां इतने बड़े हिंदू धर्म और विश्वव्यापी अश्वमेधी एजंडा सिर्फ कुर्मियों और यादवों की गोलबंदी से धरा का धरा रह गया।


इसीतरह यूपी में भी सारे लोग जाति के नाम कापी जी रहे हैं।पूरे देश में यही नजारा है कि जाति है तो आरक्षण है औरजाति गोलबंद हो गयी तो दूसरी तमाम जातियों के मुकाबले सत्ता का शयर जियादा मिलेगा।यही राजनीति है।


इसी मनुस्मृति राजनीति की ज्वलंत सुनामी के तहत हम मुक्त बाजार के युद्धबंदी हैं,जो जाति की नींव पर खड़ी मुकम्मल नर्क है और हमारा लोक परलोक है और इसे हम किसी भी कीमत पर खत्म करने को हर्गिज तैयार नहीं है।सव्रण जातियां अल्पसंख्यक हैं और उन्हें सबकुछ हासिल भी है तो सारी लड़ाई बहुजनों कीआपसी लड़ाई में है और हरकिसी का हाथ स्वजन वध से लहूलुहान है।


मेरे पिता आजीवन भारतभर में शरणार्थियों के नेता रहे और नैनीताल के तेलंगाना ढिमरी ब्लाक आंदोलन के वे नेता रहे।वे तराई में बसे सिख शरणार्थियों,स्वतंत्रता सेनानी पूरबियों,पहाड़ियों और देसी जनता के साथ मुसलमानों के भी  नेता रहे हैं।


लोगों को साथ जोड़ने का उनका एक चामत्कारिक मंत्र है,वे सिख और बंगाली शरणार्थियों से कहते थे कि जात धर्म से क्या होता है.जल जंगल जमीन से बेदखल,हवा पानी से बेधकल,नागरिकता से बेदखल तमाम लोग नागरिक और मानवाधिकार से बेदखल हैं तो वे सारे लोग जैसे सर्वहारा हैं,वैसे ही वे दलित हैं।


हमारे लिए हमेशा वही बीज मंत्र रहा है।आज भी वही बीजमंत्र है।जाति धर्म की बहस की जरुरत ही क्या है जब मुक्त बाजार में मानवाधिकार,नागरिकता से बेदखल लोगों को सारे हक हकूक निषिद्ध है और उनकी कहीं कोई सुनवाई ही नहीं होती।तो जाति धर्म को लेकर अचार डालेंगे क्या?


इसका खामियाजा अक्सर ही सर्वोच्च बलिदान और विशुद्ध प्रतिबद्धता के बावजूद विरल अपवाद के साथ भारतीय वामपंथी गांधीवादियों या समाजवादियों जितनी समझ भारतीय सामाजिक यथार्थ के बारे में नहीं रखते। नतीजजतन राष्ट्र का चरित्र बदलने के लिए अनिवार्य वर्गीय ध्रूवीकरण कैसे हो,इस बारे में अब भी उनकी कोई धारणा नहीं है।


इसी वजह से मनुस्मृति तांडव जारी है और मनुस्मृति का खुल्ला फतवा है कि रोहित ओबीसी है ,दलित नहीं।यह केसरिया सुनामी का रसायन है।बांटो और राज करो।


मनुस्मृति के इसी रसायन की कृपा से अंग्रेजों ने भारत पर दो सौ साल से राज किया है और दरबारियों को भूषण विभूषण देकर तंत्र मंत्र यंत्र को नरसंहार में तब्दील करने का अश्वमेध का सिलसिला दरअसल न थमा है और तमने जा रहा है।


ताजा किस्सा फिर बंगाल पर भास्कर पंडित का वर्गी हमला है,जिस हमले में यूपी बिहार झारखंड ओड़ीशा बंगाल के रास्ते तमाम जनपद तबाह कर दिये थे बाजीराव पेशवा के सिपाहसालार भास्कर पंडित की वर्गी सेना ने।जबकि महाराष्ट्र के जाधव राजाओं ने तमिल राजाओं के दक्षिण पूर्व विजय अभियान के वक्त बुद्धमय पालराजाओं का हमेशा साथ दिया।इस इतिहास की कहीं चर्चा नहीं होती।


वर्गी हमले की याद हमेशा इतनी ताजा रही कि अंबेडकर से लेकर कांसीराम तक कोई बंगाली बहुजनों को यह समझा नहीं पाया कि अंबेडकरी आंदोलन कोई महारों का आंदोलन नहीं है या महारो का वर्चस्व नहीं है।न अंबेडकर महारो की विरासत हैं।


बंगाल के किसान आदिवासी विद्रोहों से लेकर चंडाल आंदोलन की जो भावभूमि महार आंदोलन की है,वह भी बंगाल और महाराष्ट्र के दलितों बहुजनों और आदिवासियों की नहीं है।


इसीलिए चैत्यभूमि पर भगवा फहरा रहा है और बंगाल में परिवर्तन अब भगवा है क्योंकि जाति व्यवस्था अटूट है और वंश वर्चस्व की रंगभेदी मनुस्मृति जमींदारी में तब्दील हैं वंश।


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