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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Sunday, January 24, 2016

कैसे अच्छे दिन? कैसी हिंदी?कैसा हिंदू?कैसा हिंदुस्तान? बेहद अफसोस!केंद्रीय हिंदी संस्थान आगरा में पूरे दस साल तक ठेके की नौकरी करते हुए हिंदी के युवा कवि दलित प्रकाश साव ने कर ली खुदकशी!


कैसे अच्छे दिन? कैसी हिंदी?कैसा हिंदू?कैसा हिंदुस्तान?

बेहद अफसोस!केंद्रीय हिंदी संस्थान आगरा में पूरे दस साल तक ठेके की नौकरी करते हुए हिंदी के युवा कवि दलित प्रकाश साव ने कर ली खुदकशी!

पलाश विश्वास


बेहद अफसोस!केंद्रीय हिंदी संस्थान आगरा में पूरे दस साल तक ठेके की नौकरी करते हुए हिंदी के युवा कवि प्रकाश साव ने कर ली खुदकशी!अपने टीटीगढ़ स्थित घर में रात को उसने नींद की गोलियां खा ली और सुबह फिर नींद से उठा ही नहीं।


अबकी दफा उससे हमारी बात भी नहीं हुई।हाल में पिछली दफा जब वह कोलकाता आया तो उसने फोन किया था।अब उससे फिर मुलाकात की कोई संभावना नहीं है।


हालांकि पिछली दफा,मैंने मिलने को कहा था,हमें  तब भी हमें मालूम नही था कि किस पीड़ा और किस अवसाद से वह पल छिन पल छिन जूझ रहा है।


वह नब्वे के दशक में करीब पांच छह साल जनसत्ता में संपादकीय सहयोगी रहा है और तब से उसकी कविताओं का सिलसिला जारी है।


जनसत्ता छोड़कर वह गुवाहाॉी में पूर्वांचल प्रहरी में गया और डां.शंभूनाथ के कार्यकाल में वह केंद्रीय हिंदी संस्थान का हो गया।वह वहां 2006 से लगातार काम कर रहा था।


इसबीच उसने न सिर्फ उच्च शिक्षा हासिल कर ली बल्कि हिंदी के मशहूर कवि अशोक वाजपेयी की कविता पर पीएचडी कर ली।लेकिन वह ठेका मजदूर ही बना रहा।


गौरतलब है कि संस्थान की शोध पत्रिका के लेखन संपादन में उसकी भूमिका थी बेहद सक्रिय लेकिन उसे इसकी न मान्यता मिली और न उसकी नौकरी पक्की हुई।


गौरतलब है कि केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार के उच्चतर विभाग द्वारा 1960 ई. में स्थापित स्वायत्त संगठन केंद्रीय हिंदी शिक्षण मंडल द्वारा संचालित शिक्षण संस्था है।


गौरतलब है कि संस्थान मुख्यतः हिंदी के अखिल भारतीय शिक्षण-प्रशिक्षण, अनुसंधान और अंतरराष्ट्रीय प्रचार-प्रसार के लिए कार्य-योजनाओं का संचालन करता है।

  • संस्थान का मुख्यालय आगरा में स्थित है। इसके आठ केंद्र दिल्ली (स्था. 1970), हैदराबाद (स्था. 1976), गुवाहाटी (स्था. 1978), शिलांग (स्था. 1987), मैसूर (स्था. 1988), दीमापुर (स्था. 2003), भुवनेश्‍वर (स्था. 2003) तथा अहमदाबाद (स्था. 2006) में सक्रिय हैं।

जाहिर है कि हिंदी हिंदू हिंदुस्तान का नारा लगाने वाली हिंदुत्व के राजकाज में हिंदी और हिंदी संस्थानों की दुर्दशा में मनुस्मृति काल में भी कोई सुधार हुआ नहीं है।प्रकाश का हमारे मित्र शैलेंद्र से लगातार संपर्क रहा है ।लेकिन वह अपनी कविताओं और समकालीन कविताओं के अलावा किसी और मुद्दों के बारे में बात ही न करता था कि हम जान पाते कि सोलह मई के बाद सत्ता बदलने के बाद ऐसा क्या हो गया कि हिंदी के युवा कवि जिसे साहित्य अकादमी के युवा पुरस्कार के लिए पिछले दिनों नामत भी किया गया था,अचानक उसने खुदकशी कर ली।


इसी बीच उसने विवाह भी कर लिया और अब उसकी दो तीन साल की एक बेटी है।उसके लगातार संघर्ष और संघर्ष के जरिये आगे का रास्ता बनाने,अधूरी पढ़ाई संघर्ष करते हुए पूरी करने और हिंदी संस्थान में लगातार अच्छा काम करने तक की इस यात्रा के हम लोग अंतरंग साक्षी रहे हैं।


जाहिर है कि घुटन किसी अकेले रोहित को नहीं होती।समूची जमात इस घुटन और जीवन यंत्रणा का शिकार है,जिससे हिंदुत्व के राजकाज और संस्कृतनिष्छ विशुद्ध हिंदुत्व का हिंदी प्रेम से कुछ भी लेना देना नहीं है।


गौरतलब है कि प्रकाश दरअसल प्रकाश साव था और उसकी सबसे बड़ी महत्वाकांक्षा हिंदी का मूर्धन्य कवि बनने की थी।इसके लिए उसने पहसे साव नाम हटाकर प्रकाश पत्र नाम से धड़धड़ लिखा।


अपने एकमात्र कविता संग्रह न होने की सुगंध का शीर्षक इस जन्मजात दलित बेहतरीन कवि ने मरकर सत्य कर दिया और हिंदी आलोचना का ग्रंथ का शीर्षक है ः कविता का अशोक पर्व,जो अब सोक पर्व में तब्दील है।


प्रकाश को 2000 में हिंदी कविता के लिए नागार्जुन पुरस्कार मिला तो 2012 में प्रकाश को भारतीय भाषा का युवा पुरस्कार मिला।


उत्तर प्रदेश सरकार का अक्षय पुरस्कार भी उसे मिला।

प्रकाश के मां बाप कोलकाता के नजदीक टीटागढ़ में रहते हैं,उन्हें और उसकी लगभग नई नवेली पत्नी और अबोध बच्ची के लिए सांत्वना के शब्द खोजे नहीं मिल रहे हैं।हम इतने असहाय है और मनुस्मृति के हवाले है यह देश।


इसे अब क्या कहा जाये कि जिस हिंदी संस्थान में 2006 से 2016 तक नौकरी स्थाई न होने की वजह से पीएचडी किये हिंदी के एक होनहार कवि ने खुदकशी कर ली,उस हिंदी संस्थान का विजन 2021 भी है जो इस प्रकार हैः


विज़न 2021

  • आधुनिकतम संचार माध्यमों और सूचना प्रौद्योगिकी का हिंदी भाषा शिक्षण और दूर शिक्षा के लिए अधिकाधिक प्रयोग

  • यूनिकोड का व्यापक प्रचार और प्रसार

  • एक विशाल पोर्टल और बहुभाषी वेबसाइट

  • पॉप्युलर कल्चर के महत्त्व का रेखांकन, फ़िल्म लोक-नाट्य, कविसम्मेलन और मुशायरे

  • हिंदी की बोलियों का संरक्षण हो तथा देश-विदेश में नए केंद्रों की स्थापना

  • देश-विदेश के हिंदी के प्रख्यात साहित्य शिल्पियों के व्यक्तित्व और कृतित्व पर फ़िल्में बनाई जाएं

  • विश्व भर की संस्थाओं और विश्वविद्यालयों से सकर्मक जुड़ाव

श्रीमती स्मृति ज़ूबिन इरानी

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अध्यक्ष, केंद्रीय हिंदी शिक्षण मंडल

श्रीमती स्मृति ज़ूबिन इरानी ने 27 मई, 2014 को मानव संसाधन विकास मंत्रालय की कैबिनेट मंत्री के रूप में कार्य-भार ग्रहण किया। तदनुसार आप केंद्रीय हिंदी शिक्षण मंडल की पदेन अध्यक्ष हैं। आपके गतिशील मार्गदर्शन में केंद्रीय हिंदी संस्थान अपने निर्धारित उत्तरदायित्वों की पूर्ति करते हुए भविष्य पथ पर आगे बढ़ने के लिए कटिबद्ध है।


केंद्रीय हिंदी संस्थान

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भारत सरकार के 'मानव संसाधन विकास मंत्रालय' के अधीन 'केंद्रीय हिंदी संस्थान' एक उच्चतर शैक्षिक और शोध संस्थान है। संविधान के अनुच्छेद 351 के दिशा-निर्देशों के अनुसार हिंदी को समर्थ और सक्रिय बनाने के लिए अनेक शैक्षिक, सांस्कृतिक और व्यवहारिक अनुसंधानों के द्वारा हिंदी शिक्षण-प्रशिक्षण, हिंदी भाषाविश्लेषण, भाषा का तुलनात्मक अध्ययन तथा शिक्षण सामग्री आदि के निर्माण को संगठित और परिपक्व रूप देने के लिए सन 1961 में भारत सरकार के तत्कालीन 'शिक्षा एवं समाज कल्याण मंत्रालय' ने 'केंद्रीय हिंदी संस्थान' की स्थापना उत्तर प्रदेश के आगरा नगर में की थी। हिंदी संस्थान का प्रमुख कार्य हिंदी भाषा से संबंधित शैक्षणिक कार्यक्रम आयोजित करना, शोध कार्य कराना और साथ ही हिंदी के प्रचार व प्रसार में अग्रणी भूमिका निभाना है। प्रारंभ में हिंदी संस्थान का प्रमुख कार्य 'अहिंदी भाषी क्षेत्रों' के लिए योग्य, सक्षम और प्रभावकारी हिंदी अध्यापकों को ट्रेनिंग कॉलेज और स्कूली स्तरों पर शिक्षा देने के लिए प्रशिक्षित करना था, किंतु बाद में हिंदी के शैक्षिक प्रचार-प्रसार और विकास को ध्यान में रखते हुए संस्थान ने अपने दृष्टिकोण और कार्य क्षेत्र को विस्तार दिया, जिसके अंतर्गत हिंदी शिक्षण-प्रशिक्षण, हिंदी भाषा-परक शोध, भाषा विज्ञान तथा तुलनात्मक साहित्य आदि विषयों से संबंधित मूलभूत वैज्ञानिक अनुसंधान कार्यक्रमों को संचालित करना प्रारंभ कर दिया और साथ ही विविध स्तरों के शैक्षिक पाठ्यक्रम, शैक्षिक सामग्री, अध्यापक निर्देशिकाएँ आदि तैयार करने का कार्य भी प्रारंभ किया गया। इस प्रकार के विस्तृत दृष्टिकोण और कार्यक्रमों के आयोजन से हिंदी संस्थान का कार्यक्षेत्र अत्यधिक विस्तृत और विशाल हो गया। इन सभी कार्यक्रमों के कारण हिंदी संस्थान ने केवल भारत में ही नहीं वरन अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी ख्याति और मान्यता प्राप्त की।

हिंदी संस्थान की स्थापना

हिंदी भाषा के अखिल भारतीय स्वरूप को समान स्तर का बनाने के लिए और साथ ही पूरे भारत में हिंदी भाषा के शिक्षण को सबल आधार देने के उद्देश्य से 19 मार्च, 1960 ई. को भारत सरकार के तत्कालीन 'शिक्षा एवं समाज कल्याण मंत्रालय' ने एक स्वायत्तशासी संस्था 'केंद्रीय हिंदी शिक्षण मंडल' का गठन किया और 1 नवम्बर 1960 को इस संस्थान का लखनऊ में पंजीकरण करवाया गया।

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केंद्रीय हिंदी संस्थान के केंद्र

भारत सरकार द्वारा 'केंद्रीय हिंदी शिक्षण मंडल' को 'अखिल भारतीय हिंदी प्रशिक्षण महाविद्यालय' को संचालित करने का पूर्ण दायित्व सौंपा गया। 1 जनवरी, 1963 को अखिल भारतीय हिंदी प्रशिक्षण महाविद्यालय का नाम बदल कर 'केंद्रीय हिंदी शिक्षण महाविद्यालय' कर दिया गया। बाद में 29 अक्टूबर, 1963 को संपन्न परिषद की गोष्ठी में केंद्रीय हिंदी शिक्षण महाविद्यालय नाम भी बदलकर 'केंद्रीय हिंदी संस्थान' कर दिया गया। केंद्रीय हिंदी संस्थान का मुख्यालय आगरा में है। मुख्यालय के अतिरिक्त इसके 8 केंद्र हैं -

  1. दिल्ली

  2. हैदराबाद

  3. गुवाहाटी

  4. शिलांग

  5. मैसूर

  6. दीमापुर

  7. भुवनेश्वर

  8. अहमदाबाद

भारत सरकार ने 'मंडल' के गठन के समय जो प्रमुख प्रकार्य निर्धारित किए थे उन्हें तब से आज तक सतत कार्यनिष्ठा से संपन्न किया जा रहा है।

मंडल के प्रमुख कार्य


केंद्रीय हिंदी शिक्षण मंडल के निर्धारित प्रमुख कार्य हैं-

  • हिंदी भाषा के शिक्षकों को प्रशिक्षित करना ।

  • हिंदीतर प्रदेशों के हिंदी अध्ययन कर्ताओं की समस्याओं को दूर करना।

  • हिंदी शिक्षण में अनुसंधान के लिए अधिक सुविधाएँ उपलब्ध करवाना।

  • उच्चतर हिंदी भाषा, साहित्य और अन्य भारतीय भाषाओं के साथ हिंदी का तुलनात्मक भाषाशास्त्रीय अध्ययन और सुविधाओं को उपलब्ध करवाना।

  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 351 के दिशा-निर्देशों के अनुसार हिंदी भाषा के अखिल भारतीय स्वरूप का विकास कराना और दिशा-निर्देशों के अनुसार हिंदी को अखिल भारतीय भाषा के रूप में विकसित करने के लिए कार्य करना।


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