Total Pageviews

THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

Twitter

Follow palashbiswaskl on Twitter

Saturday, April 30, 2016

बंगाल में दरअसल दीदी की नहीं मोदी की साख दांव पर! और नतीजे तय करेंगे कि फासिज्म का राजकाज कितना चलेगा। संघ परिवार ने आखिरी मौके पर दीदी को जिताने के लिए पूरी ताकत झोंक दी। मोदी,शाह और राजनाथ सिंह की लाख कोशिशों के बावजूद अगर विपक्ष का वोट नहीं बंटा तो दीदी की वापसी बेहद मुश्किल है क्योंकि संघ परिवार के अलावा न बाजार,न माओवादी, न बुद्धिजीवी और न दूसरे दल दीदी के साथ हैं। धार्मिक ध्रूवीकरण हो गया तो फिर दीदी की वापसी हो जायेगी! अभूतपूर्व सुरक्षा इंतजाम और चुनाव आयोग की सख्ती हाथी के दांत हैं।दरअसल मतदान के आगे पीछे दहशतगर्दी आम है। बाकी राष्ट्र का चरित्र जब तक जस का तस है,चेहरे बदलने से हालात लेकिन बदलेंगे नहीं।फिरभी बंगाल में देशभर में संघ परिवार का सबसे ज्यादा विरोध है तो बंगाल का केसरियाकरण और सत्ता में फिर दीदी की बहाली से प्रतिरोध की पकती हुई जमीन की आग फिर भूमिगत हो जाने का अंदेशा है। पलाश विश्वास

बंगाल में दरअसल दीदी की नहीं मोदी की साख दांव पर!  

और नतीजे तय करेंगे कि फासिज्म का राजकाज कितना चलेगा।

संघ परिवार ने आखिरी मौके पर दीदी को जिताने के लिए पूरी ताकत झोंक दी।

मोदी,शाह और राजनाथ सिंह की लाख कोशिशों के बावजूद अगर विपक्ष का वोट नहीं बंटा तो दीदी की वापसी बेहद मुश्किल है क्योंकि संघ परिवार के अलावा न बाजार,न माओवादी, न बुद्धिजीवी और न दूसरे दल दीदी के साथ हैं।

धार्मिक ध्रूवीकरण हो गया तो फिर दीदी की वापसी हो जायेगी!

अभूतपूर्व सुरक्षा इंतजाम और चुनाव आयोग की सख्ती हाथी के दांत हैं।दरअसल मतदान के आगे पीछे दहशतगर्दी आम है।


बाकी राष्ट्र का चरित्र जब तक जस का तस है,चेहरे बदलने से हालात लेकिन बदलेंगे नहीं।फिरभी बंगाल में देशभर में संघ परिवार का सबसे ज्यादा विरोध है तो बंगाल का केसरियाकरण और सत्ता में फिर दीदी की बहाली से प्रतिरोध की पकती हुई जमीन की आग फिर भूमिगत हो जाने का अंदेशा है।

पलाश विश्वास

बंगाल में दरअसल दीदी की नहीं मोदी की साख दांव पर है और नतीजे तय करेंगे कि फासिज्म का राजकाज कितना चलेगा।


चुनाव नतीजे तो 17 मई को ही आयेंगे।


संघ परिवार ने आखिरी मौके पर दीदी को जिताने के लिए पूरी ताकत झोंक दी

धार्मिक ध्रूवीकरण हो गया तो फिर दीदी की वापसी हो जायेगी।


अभूतपूर्व सुरक्षा इंतजाम और चुनाव आयोग की सख्ती हाथी के दांत हैं।दरअसल मतदान के आगे पीछे दहशतगर्दी आम है।


मोदी,शाह और राजनाथ सिंह की लाख कोशिशों के बावजूद अगर विपक्ष का वोट नहीं बंटा तो दीदी की वापसी बेहद मुश्किल है क्योंकि संघ परिवार के अलावा न बाजार,न माओवादी, न बुद्धिजीवी और न दूसरे दल दीदी के साथ हैं।


जो हमसे बार बार सवाल कर रहे हैं,उन्हें मेरा यही जवाब है।


बाकी राष्ट्र का चरित्र जब तक जस का तस है,चेहरे बदलने से हालात लेकिन बदलेंगे नहीं।फिरभी बंगाल में देशभर में संघ परिवार का सबसे ज्यादा विरोध है तो बंगाल का केसरियाकरण और सत्ता में फिर दीदी की बहाली से प्रतिरोध की पकती हुई जमीन की आग फिर भूमिगत हो जाने का अंदेशा है।


इस वक्त बंगाल के विधानसभा चुनाव पर जितना फोकस है,बंगाल के साथ ही बाकी चार विधानसभा चुनावों पर उसकी तुलना में कोई चर्चा ही नहीं हुई है।


क्योंकि बंगाल में मुक्तबाजारी केसरिया सत्तावर्ग का दांव सबसे ज्यादा है।जिससे बंगाल में बन रहे नये राजनीतिक समीकरण से अपने वजूद को सबसे ज्यादा खतरा है क्योंकि बिहार के बाद बंगाल में इस रोजनीतिक गोलबंदी के बाकी देश में संक्रमित होने का खतरा है,जिसका असर उत्तर प्रदेश के बेहद महत्वपूर्ण चुनाव में होने जा रहा है और पंजाब हारने के जोखिम के मद्देनजर बंगला,तमिलनाडुकेरल और असम जैसे राज्यों में बढ़त नहीं मिली तो लंबे समय तक केसरिया तांडव चलेगा नहीं।


इसीलिए संघ परिवार ने सीटें मिलने की कोई उम्मीद न होने के बावजूद पहले पहल विकास का राग अलापने के बाद अचानक हिंदुत्व कार्ड के साथ जो धर्मोन्मादी ध्रूवीकरण करने की पुरजोर कोशिश की है,उससे मुसलामानों का झुकाव फिर दीदी की तरफ है और वाम कांग्रेस गठबंधन के हिंदू शरणार्थी वोट फिर टूटकर संघ परिवार की झोली में जोने की आशंका है।


देश भर से लगातार फोन आते रहे हैं और लोग जानना चाहते हैं कि बंगाल में दीदी का क्या होना है।फिलहाल इस सवाल का कोई सीधा जवाब देना संभव नहीं है।


अभूतपूर्व सुरक्षा इंतजामात और चुनाव आयोग की सख्ती की वजह से फिलहाल इतना ही कहा जा सकता है कि हिंसा मतदान के दौरान नियंत्रित रही तो मतदान के आगे पीछे दहशतगर्दी का आलम है और ऐसे में मतदान के वक्त सत्ता केकिलाफ वोट देने का जोखिम किते फीसद वोटर उठा पाये होंगे ,यह कहा नहीं जा सकता।


जैसे नागरिकता के सवाल पर असम में उल्फा की तर्ज पर 1948  के बाद आये हिंदू विभाजनपीड़ितों को भी घुसपैठिया बताकर खदेड़ देने के जिहाद के बाद बंगाल में मुस्लिम बहुल इलाकों के निर्मायक चुनाव हल्कों में 2014 तक बांग्लादेश से  आये हर शख्स को नागरिकता देने के वायदे पर हिंदू वोटों का कितान हिस्सा भाजपा की झोली में गिरेगा,इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है क्योंकि पिछले विधानसभा चुनावों में भाजपा को सत्रह प्रतिशत वोट मिले थे और आज जिन इलकों में मतदान हुआ,वहां धर्मोन्मादी ध्रूवीकरण और शरणार्थी वोट बैंक की वजह से भाजपा को औसतन बीस फीसद से कम वोट मिले नहीं थे और इसकी प्रतिक्रिया में मुसलमानों ने एकजुट होकर दक्षिण बंगाल में वामदलों और कांग्रेस का सूपड़ा साफ कर दिया था।



--
Pl see my blogs;


Feel free -- and I request you -- to forward this newsletter to your lists and friends!

No comments:

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...

PalahBiswas On Unique Identity No1.mpg

Tweeter

Blog Archive

Welcome Friends

Election 2008

MoneyControl Watch List

Google Finance Market Summary

Einstein Quote of the Day

Phone Arena

Computor

News Reel

Cricket

CNN

Google News

Al Jazeera

BBC

France 24

Market News

NASA

National Geographic

Wild Life

NBC

Sky TV