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THE HIMALAYAN DISASTER: TRANSNATIONAL DISASTER MANAGEMENT MECHANISM A MUST

We talked with Palash Biswas, an editor for Indian Express in Kolkata today also. He urged that there must a transnational disaster management mechanism to avert such scale disaster in the Himalayas. http://youtu.be/7IzWUpRECJM

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Thursday, May 4, 2017

आधार से नागरिकों की जान माल को बारी खतरा।तेरह करोड़ नागरिकों की जानकारी लीक। सबकुछ राष्ट्र के नियंत्रण में होने के बजाय सबकुछ राष्ट्र के नियंत्रण से बाहर निजी, कारपोरेट पूंजी, प्रोमोटरों ,बिल्डरों, माफिया और आपराधिक तत्वों के नियंत्रण में होता जा रहा है ,जिससे नागरिक और राष्ट्र दोनों संकट में हैं,हालांकि निरंकुश सत्ता और सत्ता वर्ग को कोई खतरा नहीं है,कोई चुनौती भी नहीं है। पलाश

आधार से नागरिकों की जान माल को बारी खतरा।तेरह करोड़ नागरिकों की जानकारी लीक।

सबकुछ राष्ट्र के नियंत्रण में होने के बजाय सबकुछ राष्ट्र के नियंत्रण से बाहर निजी, कारपोरेट पूंजी, प्रोमोटरों ,बिल्डरों, माफिया और आपराधिक तत्वों के नियंत्रण में होता जा रहा है ,जिससे नागरिक और राष्ट्र दोनों संकट में हैं,हालांकि निरंकुश सत्ता और सत्ता वर्ग को कोई खतरा नहीं है,कोई चुनौती भी नहीं है।

पलाश विश्वास

वीडियोःhttps://www.facebook.com/palashbiswaskl/videos/1704342366260832/?l=921188677485420886

तेरह लाख आधार कार्ड की जानकारी लीक हो गयी है और सुप्रीम कोर्ट में भारत सरकार ने यह मान लिया है।भारत सरकार के मुताबिक आदार प्राधिकरण के पोर्टल से यह लीक नहीं हुई है।गौरतलब है कि भारत में आधार परियोजना बिना संसदीय अनुमति के मनमोहनसिंह के प्रधानमंत्रित्वकाल में शुरु हुआ जिसके लिए कोई कानून भी तब बनाया नहीं गया जो संघी कार्यकाल में बना लिया गया है।

तबसे लेकर आधार कार्ड बनाने का काम निजी  और कारपोरेट कंपनियों ने किया है।अनिवार्य सेवाओं से सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवमानना करके आधार नंबर लागू कर दिये जाने से राज्य सरकारों और स्थानीय निकायों ने भी अफरातफरी में व्यापक पैमाने पर जो आधार कार्ड बनवाये, वे भी सरकारी एजंसियों के बजाये ठेके की एजंसियों से बनवाये गये हैं,जिसमें सुरक्षा का कोई इंतजाम नहीं हुआ है।

सरकार जब तेरह करोड़लीक होने की बात सुप्रीम कोर्ट में मान रही है तो निजी कंपनियों और एजंसियों की तरफसे बनायेआधार कार्ट और निजी कंपनियों की ओर से तैयार किये गये स्मार्ट आधार कार्ड से किस हद तक लीक हो गयी है,आदार के जरिये डिजिटल लेनदेन चालू हो जाने पर भुक्तभोगी ही इस महसूस कर सकेंगे और फिलहाल राजनीतिक दलों,राजनेताओं,मीडिया,बुद्धिजीनवियों और भारत की धर्मोन्मादी बहुसंख्य आम जनता को नागरिकों की जान माल को इस अभूतपूर्व खतरे से कोई फर्क नहीं पड़ा है क्योंकि उपभोक्ता बाजार और उपभोक्ता संस्कृति के अभूतपूर्व विकास के दौर में स्वतंत्रता और संप्रभुता कोई मुद्दा बन नहीं सकता।

अंतरराष्ट्रीय कानून के मुताबिक कोई भी व्यक्ति नागरिकता से वंचित नहीं किया जा सकता है और न नागरिक मानवाधिकार से। आधार नंबर अनिवार्य बना दिये जाने पर नागरिकता,नागरिक और मानवाधिकार से भी आधार नंबर न होने की स्थिति में मनुष्य वंचित है।यानि नागरिक सिर्फ आधार नंबर है।

आधार नंबर न हुआ किसी नागरिक का कोई वजूद ही नहीं है। उसके कोई नागरिक, संवैधानिक, मौलिक या मानवाधिकार नहीं हैं। वह किसी बुनियादी सुविधाओं का हकदार नहीं है और न उसे रोटी रोजी का कोई हक है।

फिर यह नंबर हुआ तो नागरिकों की कोई गोपनीयता नहीं है। संप्रभुता नहीं है।स्वतंत्रता नहीं है।उसकी तमाम गतिविधियों की पल पल निगरानी है।

भारत में अब नागरिकों के सपनों,आकांक्षाओं,विचारों,मतामत,विवेक और जीवन यापन सबकुछ नियंत्रित है।यह नियंत्रण राष्ट्र का जितना है,उससे कही ज्यादा आपराधिक तत्वों और निजी कारपोरेट देशी विदेशी कंपनियों का है जबकि आदार योजना का असल मकसद राष्ट्र और जनता के संसाधनों की खुली लूट है,जल जंगल जमीन,आजीविका और रोजगार से अनंत बेदखली है।

इसके विपरीत भारत सरकार का मानना है कि नागरिकों की निजी बायोमेट्रिक तथ्यों पर उनका कोई अधिकार नहीं है और न ही उनका अपने शरीर,अपनी निजता और गोपनीयता का कोई अधिकार है।विभिन्न कानूनों का हवाला देते हुए भारत सरकार नें सुप्रीम कोर्ट में यह दलील दी है।

इस बयान के बाद बी भारत की संसदीय राजनीति में कोई हलचल प्रतिक्रिया नहीं है तो समझ लीजिये कि राजनीति किस तरह आम जनता के खिलाफ है।घौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट में आधार का बचाव करते हुए भारत सरकार के अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने मंगलवार को कहा कि किसी भी व्यक्ति का अपने शरीर पर मुकम्मल अधिकार नहीं है।

इसके संदर्भ में गौरतलब है कि बेंगलुरू के सेंटर फॉर इंटरनेट एंड सोसायटी ने 13.5 करोड़ आधार कार्ड का डाटा लीक होने की आशंका जाहिर की है।

इसका उल्लेख करते हुए संघ सरकार के घटक  शिवसेना के मुखपत्र  सामना में लिखा गया है कि यदि संस्था का दावा सच है तो यह एक गंभीर मामला है। 'मजे की बात है विपक्षा के खेमे में सिरे से सन्नाटा है।

सामना के संपादकीय में आगे लिखा है, 'आजकल सरकारी अनुदान, बैंक खाता, डाक व्यवहार के साथ ही अन्य कई जगहों पर आधार कार्ड के लीक होने का मतलब महत्वपूर्ण गोपनीय जानकारी लीक होना है। ऐसा होता रहा तो इसकी सुरक्षा के दावे पर प्रश्नचिन्ह लग जाएगा।'

आधार की सुरक्षा पर बात करते हुए इसमें आगे लिखा है, 'सच तो यह है कि जिस सरकारी वेबसाइट से यह डेटा लीक हुआ है, उन विभागों को केंद्र सरकार ने सूचना दी थी। तीन विभागों ने अपनी गलतियां दूर तो कीं लेकिन जानकारियां लीक होने का खतरा बना हुआ है। इसका खामियाजा लाखों लोगों को उठाना पड़ रहा है। इसका विचार कौन करेगा?'

इस सिलसिले में गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में यह स्वीकार किया कि आधार कार्ड धारकों का डाटा लीक हुआ है। हालांकि सरकार ने कहा कि यह लीक भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूएडीएआई) की ओर से नहीं हुआ है। साथ ही सरकार ने कहा कि जो लोग जानबूझकर आधार नहीं बनवा रहे हैं वे वास्तव में एक तरह से अपराध कर रहे हैं। केंद्र सरकार की ओर से पैरवी कर रहे वकील ने न्यायमूर्ति एके सिकरी की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष कहा कि कुछ सरकारी विभागों से आधार कार्ड धारकों का डाटा लीक हुआ है। ऐसा संभवत: पारदर्शिता बनाने के क्रम में हुआ होगा।

गौरतलब है कि सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा कि ऐसी न्यूज आई है कि आधार का डेटा लीक हुआ है? इस पर केंद्र की ओर से बताया गया कि डेटा यूआईडीएआई से लीक नहीं हुआ है। दूसरे सरकारी डिपार्टमेंट से आधार कार्ड का डेटा लीक हुआ होगा। सुप्रीम कोर्ट में केंद्र ने दलील दी कि आधार का डेटा पूरी तरह से सेफ है। इसे आईटी एक्ट के तहत क्रिटिकल इन्फ्रास्ट्रक्चर की श्रेणी में रखा गया है। याचिकाकर्ता ने कहा कि आधार के लिए बनाया गया मेन एक्ट कहता है कि आधार स्वैच्छिक है, लेकिन वहीं सरकार इसे अनिवार्य कर रही है।

रिपोर्ट के अनुसार पहले जहां से आधार कार्ड का डेटा लीक हुआ, उसमें दो डेटा बेस रूरल डिवेलपमेंट मिनिस्ट्री से जुड़े हैं। इनमें नैशनल सोशल असिस्टेंट प्रोग्राम का डैशबोर्ड और नैशनल रूरल एम्प्लॉयमेंट गारंटी ऐक्ट का पोर्टल शामिल है। दो डेटा बेस आंध्र प्रदेश से जुड़े हैं। इनमें एक स्टेट का नरेगा पोर्टल और चंद्राना बीमा नामक सरकारी स्कीम का डैशबोर्ड है। इन पर लाखों लोगों की आधार डीटेल दी गई है, जिसे कोई भी देख सकता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि चार पोर्टल्स से लीक हुए आधार नंबर 13 से 13.5 करोड़ के बीच हो सकते हैं। इसमें अकाउंट नंबर्स 10 करोड़ के आसपास हो सकते हैं।

सीएनबीसी-आवाज़खुलासा कर दिया है कि   कैसे केंद्र से जुड़े संस्थान आधार पर अपराध किए जा रहे हैं। दरअसल केंद्रीय विद्यालयों और कुछ शिक्षण संस्थानों ने बच्चों के आधार नंबर सार्वजनिक कर दिए हैं। सरकारी स्कूल कर रहे बच्चों की निजता से खिलवाड़ किया जा रहा है। कई केन्द्रीय विद्यालयों की साइट पर बच्चों के आधार नंबर देखे जा सकते हैं। कई और संस्थानों ने भी बच्चों के आधार नंबर सार्वजनिक कर दिए हैं। बच्चों की जन्मतिथि, फोन नंबर और बाकी जानकारियां भी ऑनलाइन देखी जा सकती हैं। महज एक गूगल सर्च से ये सारी जानकारी हासिल की जा सकती है। बता दें कि आधार एक्ट में जानकारी पब्लिक करना गैरकानूनी है।

इसी सिलसिले में अंग्रेजी मीडिया फर्स्ट पोस्ट की इस खबर पर तनिक गौर करेंछ

Aadhaar debate: Govt putting billions at risk by claiming they don't have 'absolute right' over their bodies

Attorney General of India Mukul Rohatgi informed the Supreme Court on Wednesday that Indian citizens cannot claim an "absolute right" over their biometric data and refuse to apply for Aadhaar cards. To support this contention, Rohatgi referred to various laws, such as breathalyser tests, finger printing during property registration, medical termination of pregnancy, and also laws that prohibit the commission of suicide as pointing to the fact that there exists no absolute right over one's body under the Constitution.

This comes at a time while the apex court is hearing arguments challenging the validity of Section 139AA of the Income Tax Act, 1961, that makes it mandatory to link Permanent Account Number (PAN) with Aadhaar. In an earlier hearing on the validity of the UID programme in 2015, the attorney general had informed the court that the question of privacy being a fundamental right under the Constitution needs to be revised, as there seemed to be conflicting judgments on this issue.

यह सरासर नागरिक ,मानवाधिकारों के साथ साथ अंतरराष्ट्रीय कानून का भी खुल्ला उल्लंघन है। इस पर तुर्रा यह कि नागरिकों से उनकी आजादी छीनने के इस कारपोरेट उपक्रम क खिलाफ सारे के सारे संसदीय राजनीतिक दल और राजनेता खामोश हैं।


नतीजतन करीब तेरह करोड़ नागरिकों क आधार और बैंक खातों के तथ्य लीक हुए हैं और क्रेडिट डिबिट एटीएम कार्ड की तरह आधार कार्ड भी डुप्लिकेट बन रहे हैं, उसकी व्यापक पैमाने पर क्लोनिंग हो रही है।अर्थात राष्ट्र के निरंकुश नियंत्रण के बजाय वित्तीय गतिविधियों पर आपराधित तत्वों का नियंत्रण हो गया है।

आधार प्रादिकरण से विभिन्न कारपोरेट कंपनियों के नागरिकों के निजी तथ्यों के लेनदेन के समझौते भी हुए हैं।अभी आपको मेल या फोन पर विभिन्न कंपनियों की ओर से उनकी सेवाएं खरीदने के लिए जो संदेश मिलते हैं,उसके लिए उन्हें सारी जानकारी आपके आधार नंबर से मिलती है।

धड़ल्ले से ऐसा संदेश भेजने वालों को न सिर्फ आपकी क्रय क्षमता बल्कि आपके बैंक खातों के बारे में भी जानकारी रहती है और आपको बड़े लोन और दूसरी वित्तीय सुविधाओं का प्रस्ताव भी उसी आधार पर मिलता है।

इससे उपभोक्ता बाजार और ई बिजनेस,डिजिटल लेनदेन बहुत तेजी से बड़ा है लेकिन इन पर न भारत सरकार और न रिजर्व बैंक का कोई नियंत्रण है जो आगे चलकर भारी आर्तिक अराजकता पैदा कर सकती है और इसमें समूची बैंकिंग प्रमाली ही ध्वस्त हो सकती है।

आपराधिक तत्वों के हाथों में निजी कंपनियों की ओर से बनाये गये और ठेके पर गैरसरकारी एजंसियों से बनाये गये आधार कार्ड के जरिये व्यापक पैमाने पर नागरिकों के गोपनीय  तथ्य आ गये हैं।यह कानून और व्यवस्था के लिए बी बड़ी चुनौती है।

सबसे खतरनाक बात यह है कि आधार नंबर मोबाइल नंबर के लिए मोबाइल कनेक्शन की दुकानों के हवाले बी करना अनिवार्य हो गया है।हर जरुरी सेवाओं के निजीकरण कारपोरेटीकरण की स्थिति में आधार नंबर के जरिये नागरिकों की सारी जरुरी जनाकारियां अजनबी और आपरराधिक तत्वों के हवाले हो रही है जो किसी भी तौर पर राष्ट्र या सरकार का प्रतिनिधित्व नहीं करते।

जब बैंकों के एटीएम डेबिट क्रेडिट कार्ड धड़ल्ले से पिन लीक हो जाने से रद्द किये जा रहे थे,तब भी कोलकाता और मुंबई में बड़े बैंक अधिकारियों और आम बैंक कर्मचारियों से हामारी इस बारे में बात होती रही है।

उन सभी का कहना है कि चेकबुक से लेकर कार्ड और खातों को लेकर बैंकों का सुरक्षा इंतजाम बहुत पुख्ता है।

तब हमने पैनकार्ड और बैंक खातों से आधार नंबर जोड़ने का हवाला देकर पूछा था कि आधार नंबर से तो सारी जानकारियां लीक हो रही हैं और आधार लिंक के जरिये तथ्यों चुराये जाने पर बैंक खातों,कार्डों की सुरक्षा कैसे सुनिश्चित कर सकता है।

उनके पास इसका कोई जबाव नहीं था।

गौरतलब है कि पिन चुराये जाने के मामले में जांच का नतीजा अभी तक नहीं आया है और इसी बीच आधार के जरिये नये सिरे से बैंको के खातों की जानकारियां लीक हो जाने की खबर आ गयी है।

Divan said that there are already over 1,69,000 duplicate Aadhaars in the country.

Aadhaar data of 130 millions, bank account details leaked from govt websites: Report

Indian Express reports.

India Today reports:

Just how leaky is the Aadhaar data? A lot, says a study published by Centre for Internet and Society, a Bengaluru-based organisation (CIS). In a study published on May 1, two researchers from CIS found that data of over 130 million Aadhaar card holders has been leaked from just four government websites. As scary as this is, there is more to it. Not only the Aadhaar numbers, names and other personal details of millions of people have been leaked but also their bank account numbers.

The CIS report noted that the leak is from four portals that deal with National Social Assistance Programme, National Rural Employment Guarantee Scheme, Chandranna Bima Scheme and Daily Online Payment Reports of NREGA.

सबसे खतरनाक बात यह है कि अब भारत सरकार डिजिटल लेन देन आधार नंबर के जरिये चालू करने जा रही है।बार बार आधार नंबर से लेनदेन की स्थिति में अब तक हुए फर्जीवाड़े के मद्देनजर नागरिकों की जान माल को भारी खतरे का अंदेशा है।

गौरतलब है कि साइबार क्राइम या फर्जीवाड़े से बैंको के खातों से चुराये जाने वाले रकम के लिए बैंक कोई मुआवजा नहीं दे रहा है।

प्लेटिनम कार्ट पर अधिकतम डेढ़ लाख रुपये के मुआवजे का प्रावधान है।जबकि आर्थिक लेन देन बैंकिंग के दायरे से बाहर चली जा रहीं है।

जब आधार योजना की पहले पहले चर्चा चली थी, नागरिकता संशोधन कानून के तुरंत बाद और श्रम कानून कर सुधार कानूनों के आर्थिक सुधार लागू होने से पहले, तभी से हम इस बारे में लगातार लिखते बोलते रहे हैं।

डिजिटल इंडिया में उदारीकरण, निजीकरण और ग्लोबीकरण के तहत आटोमेशन के लिए आधार योजना सबसे कारगर हथियार है।

कारपोरेट दुनिया में नागरिकों के कोई अधिकार नहीं होते।

कारपोरेट दुनिया में मानवाधिकार भी नहीं होते।

मुक्तबाजार में विकास और वृद्धि दोनों का मतलब उपभोक्ता बाजार का विस्तार है।विकास और वृद्धि दोनों सत्ता के जाति वर्ग वर्चस्व के एकाधिकार को बहाल करने का इंतजाम है।

अंध राष्ट्रवाद की अस्मिता राजनीति में खंडित भारतीयता और देशभक्ति के भक्तों के लिए नागरिकों की स्वतंत्रता ,संप्रभुता,निजता औ र गोपनीयता को कोई मतलब नहीं है।वे लोग हर क्षेत्र में राष्ट्र का नियंत्रण के पक्ष में हैं।

वंचित उत्पीड़ित जनसमुदायों अल्पसंख्यकों,आदिवासियों,दलितों,पिछड़ों और स्त्रियों के प्रति जाहिर सी बात है कि इन भक्तों की किसी किस्म की सहानुभूति नहीं है।वे राष्ट्र और सत्ता में कोई फर्क भी नहीं समझते और सत्ता को ही राष्ट्र मानकर चलते हुए निरंकुश सत्ता के साथ निरंकुश सैन्य राष्ट्र के पक्ष में धर्मोन्मादी बहुसंख्यक सुनामी है जिसका फिलहाल कोई राजनैतिक या वैचारिक विकल्प नहीं दीख रही है।

दिक्कत यह है कि सबकुछ राष्ट्र के नियंत्रण में होने के बजाय सबकुछ राष्ट्र के नियंत्रण से बाहर निजी,कारपोरेट पूंजी,प्रोमोटरों ,बिल्डरों,माफिया और आपराधिक तत्वों के नियंत्रण में होता जा रहा है ,जिससे नागरिक और राष्ट्र दोनों संकट में हैं,हालांकि निरंकुश सत्ता और सत्ता वर्ग को कोई खतरा नहीं है,कोई चुनौती भी नहीं है।

हमारे मित्र मशहूर पत्रकार उर्मिलेश ने लिखा हैः

'आधार' निराधार नहीं है। इसके पीछे राज्य के लगातार निरंकुश होते जाने और नागरिकों के बुनियादी अधिकारों(यहां तक कि आपका अपने शरीर पर भी अधिकार नहीं है: भारत के अटार्नी जनरल के मुताबिक) के छिनते जाने की पूरी दास्तान है। पर जनता इसके विरोध में सड़कों पर नहीं उतर रही है क्योंकि 'आधार' के नाम पर राज्य कथित सुविधाओं का झुनझुना जो बजा रहा है! क्या राज्य की तरफ से कोई भी उच्चाधिकारी बता सकता है कि 'आधार' से कौन-कौन सी नयी सुविधाएं नागरिक को मिली, जो इसके न रहने पर नहीं मिल सकती थीं? 'आधार' संवैधानिक लोकतंत्र में निरंकुशता की अवैध संतान है, जिसका प्रसव यूपीए काल में हुआ और अब उसे शैतान बनाने का काम एनडीए सरकार कर रही है!



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